आदिवासी क्रान्तिवीर बिरसा मुण्डा!
मूलनिवासी ही इस देश के असली वारिस है।
भारत देश अनेकता में एकता की संस्कृति वाला देश रहा है। यहाँ की जो सभ्यता थी वह बहुत ही महान सभ्यता थी। यहाँ के निवासी हमेशा एक दूसरे से मिलकर रहा करते थे। और खुशहाल जीवन व्यतीत किया करते थे। इस कारण यह सभ्यता फूलती-फतली रही और इस का बहुत ही विकास हुआ। मगर यहाँ पर यूरेशिया से आये विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों ने यहाँ के मूलनिवासियों को अपना गुलाम बनाया और उन पर अपनी ब्राह्मणवादी संस्कृति जबरदस्ती थोपी। तब से लेकर आज तक इस सभ्यता का विनाश ही हुआ है यूरेशियन ब्राह्मण लोगांे के आने के बाद यहाँ पर बहुत सारे विदेशी लोगांे ने आक्रमण किया इस देश की सम्पŸिा को लूट अपने देश ले गये और कुछ ने यहां सौ-दो वर्षो तक शासन भी किया और पुनः अपने देश को लौट गये। मगर इस देश मंे जो सबसे पहले यूरेशियन ब्राह्मण आया था। वह यहां से गया ही नहीं उसने यहाँ के जो मूलनिवासी थे उनको अपना गुलाम बनाया और उनको 6743 जातियों मंे बांट कर उन पर राज करना शुरू किया। और वह अपनी संस्कृति के ज्ञान के लिए यहाँ के जो मूलनिवासी थे उनको पढ़ने का अधिकार भी नहीं दिया। जिससे यहां के मूलनिवासी अनेक समस्याआंे से जूझते रहे। मगर इन्हींे मंे से कुछ ऐसे भी महामानव हुए जिन्हांेने इनका विरोध भी किया। और साथ ही लोगों को उनके खिलाफ खड़ा करने के लिए जन-जागृति का अभियान भी चलाया। क्यांेकि जो विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण थे। वे यहाँ मूलनिवासी नहीं थे इसलिए वे देश को अपना देश मानते नहीं थे। इसलिए उन्हांेने यहाँ की जो खनिज सम्पदा होती थी। उन पर जबदस्ती कब्जा करते थे। चाहे उसके लिए उनको कुछ भी करना पड़ जाये। इसके लिए यहाँ के जो मूलनिवासी थे उनमंे से कुछ महामानवांे ने इनका विरोध भी किया।
ऐसे ही महामानव और आदिवासियांे के लिए भगवान माने जाने वाले उनमें से आदिवासियों के महानायक बिरसा मुण्ड जी थे। जिनका जन्म झारखण्ड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर 15 नवम्बर 1875 को हुआ था। ये बचपन से ही बड़े कुसाग्र बुद्धि के थे। साल्गा गांव मंे प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल मंे पढ़ने आए। उनके मन मंे यहाँ की जो ब्रिटिश सरकार और यहाँ के जमीदारों/जागीरदारांे के खिलाफ बचपन से ही विद्रोह था। क्यांेकि उनको अपनी भूमि, जल, जंगल व संस्कृति से गहरा लगाव था। बिरसा मुंडा जी देखते थे कि इस देश के जमीनदार और साहूकारांे ने आदिवासियों पर कितने जुल्म कर रहे है। जमीदार लोग आदिवासियों से अपने खेतो मंे काम तो करते थे। मगर उसके बदले मंे उनको बहुत कम ही अनाज देते थे। जिससे उनका गुजर हो ही नहीं पाता था। साहूकार लोग उन्हंे ऊँची ब्याजदर पर पैसा उधार देकर उनकी बहू-बेटियों की इज्जत से भी खिलवाड़ करते थे। इसलिए बिरसा मुंडा जी ने हमेशा प्रखरता के साथ आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन पर हक दिलाने के लिए लोगों को जागृति करने का काम करते रहे। और बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को कहा था कि हमंे अपने हक अधिकार के लिए स्वयं लड़ना होगा। हम किसी से कमजोर नहीं है। उन्हांेने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा वे इस निष्र्कष पर पहुँचे कि आदिवासी समाज मिशनरियांे द्वारा भ्रमित किया गया है। और उनको धोखा दिया है इसलिए नए धर्म की स्थापना उनकी मजबूरी थी उनके नए धर्म का नाम था बिरसा धर्म। तब उन्हांेने सोचा कि आदिवासी जागृति न हुये तो वे आचरण के धरातल पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके सा उड़ जायेगा। और आस्था के मामले मंे भटका हुआ रहेगा। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है। धर्म के नाम पर आदिवासी कभी मिशनरियों के प्रलोभन में आ जाते हैं तो कभी ढकोसलांे को ही ईश्वर मान लेते है। और इन सब के कारण जमींदारो और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासको की शोषण भट्टी मंे आदिवासी समाज झुलस रहा था। इसलिए बिरसा मुण्डा जी ने आदिवासियों को शोषण के नारकीय यातनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हांे तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा। और इसके लिए वे गाँव-गाँव घूमकर लोगांे को अपना संकल्प बताया, उन्हांेने ‘‘अबुआः रे दिशोम रे अबुआः राज’’ (हमारा देश मंे हमारा शासन) का बिगुल फूंका। पहला तो सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी समाज मंे फैले अंधविश्वासांे और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखण्ड के पिंजरे से बाहर आ सके। इसके लिए उन्हांेने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया। शिक्षा का महत्व समझाया। उनके इस सामाजिक जागरण से आदिवासियों मंे सामाजिक स्तर पर जागरण के कारण जमींदार-जागीरदार और ब्रिटिश शासन ही बौखलाया और पाखण्डी, झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। बिरसा मुण्डा जी ने आदिवासियों मंे सामाजिक स्तर पर चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरूद्ध स्वयं संगठित होने लगे। और बिरसा मुण्डा जी ने उस नेतृत्व की कमान संभाली। आदिवासियों ने बेगारी प्रथा के विरूद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। अब बिरसा मुंडा जी अंग्रेजो की हिटलिस्ट मंे आ गये थे। उनके पांच शत्रु थे जमीनदार, साहूकार, सरकार, हिन्दू धर्म और ईसाई मिशनरी और उनके अपने ही कुछ आदिवासी भाई जो बिरसा के विरोधी थे। इनका आन्दोलन बहुत तेजी से बढ़ रहा था। जिससे सराकर ने बिरसा पकड़ो अभियान चलाने की घोषाण की। यह बिरसा मुण्डा के विरोधियांे के लिए स्वर्णसंधि थी। शोषणकर्ताओं के खिलाफ लड़ने वाले बिरसा मुंडा को किसी अंग्रेज ने नहीं बल्कि उन्हंे आदमी बदगाव का जमीनदार जगमोहन सिंह ने बिरसा के छिपने की जगह से गिरफ्तार करावा था। और उनको जेल मंे डलवा दिया। और जेल मंे उन्हंे यातनाएं देकर मारा गया। जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र केवल 25 साल थी। जमीदार तथा साहूकारों की भूमिका आदिवासियों के प्रति निर्दयता का प्रतीक बन गई थी। बिरसा मंडा और उनके चेलो को कुचलने के लिए योजना बनाई थी। और उनकी ताकत को नष्ट करने के लिए अंग्रेजो के साथ मिलकर ऐसी चालें चली जिससे आदिवासी हमेशा के लिए इन यूरेशियन ब्राह्मणों-बनियों के गुलाम बनकर रहे। जमीनदार, साहूकार चाहते थे कि बिरसा मुंडा को फाँसी की सजा हो, देशद्रोह का केस दाखिल करने के लिए अंग्रेजो पर दबाव बढ़ा रहे थे। और जेल में ही बिरसा मुंडा जी को अनेक यतनाआंे से प्रताडि़त कर रहे थे आखिरकार 9 जून 1900 को केवल 25 साल की अल्प आयु में ही उनका निधन हो गया। पोस्टमार्टम के बाद उनके शव को उनके साथियों और नहीं घरवालों को सौपा गया बल्कि हरमू नदी के किनारे पर चुपचाप से जला दिया गया। कहा जाता है कि बिरसा मुंडा जी की मृत्यु आर्सेनिक विष देने से हुई। बिरसा मंुडा जी को आदिवासी लोग ‘‘धरती बाबा’’ के नाम से पुकारा करते है। लेकिन आज के समय मंे उनका यूरेशियन ब्राह्मणों द्वारा ब्राह्मणीकरण करने के कारण लोग उनकी पूजा करते है। और उनके उनके द्वारा चलाये गये आन्दोलन को भूलकर ब्राह्मणवादियों के बहकावे मंे फिर आने लगे है। बिरसा मुंडा जी जब तक जीवित थे उन्होंने आदिवासी समाज के लिए जो आन्दोलन चलाया उसमंे लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया लेकिन उनकी मृत्यु के बाद पुनः वहीं प्रक्रिया शुरू हो गयी।
वर्तमान समय मंे आदिवासियों की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गयी है कि उनकी जमीनों पर जबरन बड़ी-बड़ी फैक्ट्ररियाँ लगाई जा रही है और उनको जल, जंगल और जमीन से अलग करने का काम यूरेशियन ब्राह्मणवादियों द्वारा जोरो-शोरो पर चलाया जा रहा है। इससे देश मंे नक्सलवाद आज तेजी से बढ़ रहा है। जो एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। ब्राह्मणवादी लोग उनकी समस्याओं का समाधान करने के बजाय उनको मारने पर उतारू है। भारत के संविधान में डा.बाबा साहब ने आदिवासियों के लिए 5वीं और 6वीं में विशेष अधिकार के तौर पर रखा लेकिन आज का जो शासक वर्ग है वह भारत के संविधान के अनुसार आदिवासियों को उनका हक और अधिकार देना नहीं चाहते है। अगर मुंडा जी जीवित होते तो डा.बाबा साहब के साथ मिलकर आन्दोलन को चलाते, बाबा साहब का मानव मुक्ति आन्दोलन अधिक मजबूत होता इससे बाबा साहब और बिरसा मुंडा जी मिलकर सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्रांति का बड़ा बदलाव लाते। लेकिन समय का परिवर्तन तेजी से हुआ और आदिवासी जहाँ के तहाँ रह गये। बाबा साहब के द्वारा चलाये जा रहे मानव मुक्ति का आन्दोलन अब भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा चलाया जा रहा है। जिसमें इस देश का 85 प्रतिशत मूलनिवासी शामिल समाज जोरो-शोरो पर शामिल हो रहा है। चूकि इस देश के एससी/एसटी/ओबीसी और इन से धर्मपविर्तित अल्पसंख्यक लोग इस देश के मूलनिवासी है यह बात डीएनए के द्वारा सिद्ध हो चुकी है। यूरेशियन ब्राह्मण यहाँ के रहने वाले नहीं है तभी तो वह हमारे महापुरूषों के द्वारा चलाये गये जन-जागृति के आन्दोलनों का विरोध किया और मौका पाते ही उनको नष्ट करने का काम भी किया। लेकिन अब समय बदल रहा है और एक बार फिर देश में नई क्रान्ति का बिगुल बज चुका है और इस क्रान्ति मंे देश का जो असली वारिस है वह तन-मन-धन से सहयोग करेगा है। और यह आन्दोलन तेजी से जन-आंदोलन की तरफ बढ़ रहा। जन-आंदोलन करना क्यों जरूरी है क्योंकि हमारे महापुरूषांे ने जो भी आन्दोलन चलाये वह केवल अपने ही क्षेत्र तक सीमित रहे जिससे दुश्मनों को उनके आन्दोलन को कुचलने मंे आसानी हुई थी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्यांेकि अब देश का मूलनिवासी जाग रहा है। और अपने हक-अधिकार की लड़ाई के लिए मैदान में उतर रहा है। बिरसा मंुडा जी, बाबा साहब आदि महापुरूष भी यहीं चाहते थे। मेरा बस यहीं कहना है कि भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा जो जन-आंदोलन चल रहा है जिसका नेतृत्व मा.वामन मेश्राम साहब कर रहे है उस आन्दोेलन को सफल बनाने के लिए देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासियों साथ सहयोग चाहिए। जिससे मूलनिवासियों के उपर हो रह अन्याय अत्याचार का निर्वाण खुद मूलनिवासी करे। क्योंकि जब मूलनिवासी देश की शासन सŸाा मंे आये तो वह अपने देश और देशवासियों के हित के लिए ही काम करेगा। जिससे हमारी सारी की सारी समस्याओं का समाधान हो सके। यहीं हमारे महापुरूषों के लिए सच्ची श्रद्धांजली होगी।
राहुल वर्मा
अम्बेडकर नगर
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