रविवार, 26 अगस्त 2012

भारत में स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी

 मंगलवार, 20 सितंबर, 2011 को 20:07 IST तक के समाचार

भारत में कई बच्चों को टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध नहीं.
बच्चों के हित में काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रन का कहना है कि भारत में स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या में भारी कमी है, जिसके कारण पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का ख़तरा बढ़ गया है.
संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में पाँच वर्ष पूरे करने से पहले ही मौत के गाल में समा जाने वाले बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा है.
बच्चों को ठीक समय पर स्वास्थ्य सेवाएँ नहीं मिल पातीं क्योंकि देश भर में कम से कम 26 लाख स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है.
संस्था ने माँग की है कि जितने स्वास्थ्य कर्मचारी अभी मौजूद हैं उन्हें अच्छी ट्रेनिंग और भत्ते दिए जाने चाहिए.

भारत क्यों नहीं?

"विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 49 अति पिछड़े देशों में सर्वेक्षण के आधार पर कहा है कि कुल मिलाकर 35 लाख स्वास्थ्य कर्मचारियों की और आवश्यकता है. इस सर्वेक्षण में भारत को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि उसे अति पिछड़े देशों के वर्ग में नहीं माना जाता."
प्रज्ञा वत्स, सेव द चिल्ड्रन
सेव द चिल्ड्रन की प्रज्ञा वत्स ने बीबीसी को बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 49 अति पिछड़े देशों में सर्वेक्षण के आधार पर कहा है कि कुल मिलाकर 35 लाख स्वास्थ्य कर्मचारियों की और आवश्यकता है.
लेकिन संस्था का कहना है कि इस सर्वेक्षण में भारत को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि उसे अति पिछड़े देशों के वर्ग में नहीं माना जाता.
प्रज्ञा वत्स ने बताया कि भारत में पाँच साल से कम उम्र के जितने बच्चे हर साल मर जाते हैं उनकी संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा है.
सेव द चिल्ड्रन की ये रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की गई है जब दुनिया भर के नेता संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिस्सा लेने के लिए न्यूयॉर्क में इकट्ठा हो रहे हैं.

राजनीतिक इच्छाशक्ति

संस्था का कहना है कि इस महासभा में स्वास्थ्य कर्मचारियों की जगहें भरने के लिए अतिरिक्त रक़म की माँग की जाएगी, इसलिए भारत की स्थिति को उजागर करना ज़रूरी है.
संस्था ने कहा है कि भारत में दो साल से कम उम्र के 55 प्रतिशत बच्चों को टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध नहीं है.
जबकि नेपाल और बांग्लादेश जैसे कम आमदनी वाले देशों ने सामु्दायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज़्यादा रक़म ख़र्च करके बाल मृत्यु दर में कमी लाने में सफलता पाई है.
संस्था ने कहा है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो ये काम भारत में भी संभव है.

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