मा. राम समुझ
समाज सुधारक राम समुझ जी का जन्म 11 जुलाई 1937 को उ.प्र. के प्रतापगढ़ जिले के चैवे पट्टी नाम गांव मंे हुआ। इनके पिता जी का नाम शिवम्बर पासी और माता जी का नाम सस्ती देवी था। समाज सुधारक, राम समुझ जी की शिक्षा बी.ए., एम.ए.तक हुयी थी। बामसेफ के वरिष्ठ कार्यकर्ता राम समुझ निरन्तर मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत करने का कार्य करते रहे। और मूलनिवासी बहुजन समाज को आजीवन ब्राह्मणवाद रूपी जहर से बचने की प्रेरणा देते रहे। उनका एक सपना था। मैं 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मणवाद की गुलामी से आजादी दिला सकूँ। और इन्हांेने मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मणवाद की गुलामी से मुक्त करने के लिए अपने महत्वपूर्ण नौकरी को भी त्याग दिया। अर्थात उन्हांेने अपने जिन्दगी को दांव पर लगाकर इस देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत करने के लिए निकल पड़े। और इन्हांेने केवल मौखिक रूप से ही लोगों को जागृत करने का कार्य नहीं बल्कि इन्हांेने मूलनिवासी बहुजन समाज मंे चेतना लाने के लिए कई सारे पुस्तको का भी लिखित रूप से निर्माण किया। ताकि किताबों के माध्यम से भी मूलनिवासी बहुजन समाज मंे जागृति की लहर फैलायी जा सके।
इन्हांेने अपनी पढ़ाई पूरी करने के दौरान 1962 में एडीओ के पद पर कार्यरत रहे। उसके बाद ये बीडीओ के पद पर कार्यरत रहे। इस तरह से निरन्तर ही यह आगे बढ़ते रहे। और बाद मंे जाकर फैजाबाद एम.एच.ई के पद पर भी पहुँच कर कई वर्षो तक सेवारत रहे। उन्हांेने मूलनिवासी बहुजन समाज के मसीहा व बामसेफ के संस्थापक मा.कांशीराम के सम्पर्क में आने के पश्चात उन्हांेने 1986 मंे महत्वपूर्ण सरकारी पद को भी त्याग दिया। और मान्यवर कांशीराम जी के साथ मंे व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन मंे जुड़ गये। और वे व्यवस्था परिवर्तन मंे जुड़कर तन-मन-धन से 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत कने मंे लग गये। उनकी कर्मनिष्ठ लगन, धैर्य और लोगों को प्रभावित करने वाली उनकी ओजस्वी वाणी और ईमानदारी को देखकर मा.कांशीराम ने 1980 में उŸार प्रदेश मंे बामसेफ केे प्रदेश अध्यक्ष के रूप मंे कार्यभार संभालने के लिए कहा और उन्हांेने ईमानदारी पूर्वक उŸार प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष के रूप मंे कार्यभार संभालने का कार्य किया। और अपनी ईमानदारी निष्ठा की वजह से बाद मंे वह डी.एस.फोर के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। तथा वह बाद में 1985 में बी.एस.पी के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे।
पूरे उŸार प्रदेश मंे बामसेफ, डी.एस.फोर व बी.एस.पी. के नींव रखने वाले त्यागमूर्ति राम समुझ पासी ही थे। इसलिए इनके महत्वपूर्ण योगदान को भूला नहीं जा सकता। इन्हांेने 1987 में प्रतापगढ़ के पट्टी से उप चुनाव भी लड़ेक। जिसमंे वे राज अजीत सिंह के खिलाफ जीत भी गये थे। किन्तु उस समय उŸार प्रदेश ब्राह्मणवादी कांग्रेस सरकार ने (बूथ कैपचरिंग) के माध्यम से षड्यंत्र करके उनको जबरदस्ती हराया। बाद मंे वह 1988 मंे जौनपु मछली शहर से एम.पी. का चुनाव लड़े। इसके अलावा उन्हांेने जनता दल, सपा, अपना दल व परिवर्तन दल के मुख्य पदो पर रहकर भी नेतृत्व किया। उन्हांेने 15 प्रतिशत विदेशी बनाम 85 प्रतिशत मूलनिवासी के संघर्ष का ऐलान करते हुए भगवान बुद्ध सेवा संघ, बहुजन जनक्रान्ति दल, तथा आवामी समता दल (राजनीतिक सं.) की स्थापना की। वर्तमान समय मंे आवामी समता दल 2014 के एम.पी. चुनाव में मैदान मंे चुनाव भी लड़ लड़ रही है। इस तरह से उन्हांेने 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए कई सारे संगठनो की स्थापना की। मा.राम समुझ पासी महान साहित्यकार, लेखक, कवि, पत्रकार, संपादक, चित्रकार व समाज को जागृत करने के लिए कई सारी पुस्तको की भी रचानाएं की। जिनमंे उनके द्वार लिखित पुस्तको का विवरण दिया जा सकता है। पहला पुस्तक बहुजन जागरण ज्योतिब (गीत), ज्योति जागरण कविता, डा. अम्बेडकर क्यांे हारे, फŸाू राम सवा सती, कांशीराम ने बहुजन समाज को पतुरिया पार्टी बनाया। तथा इसके अलावा उन्हांेने अन्य कविताआंे की भी रचना की। वे बहुजन संगठक, बहुजन दिग्दर्शिक अखबार के संपादक भी रहे वे युवावस्था मंे बैडमिंटन, शतरंज, कैरमबोड के कुशल खिलाड़ी भी रहे। ऐसा कहा भी जाता है कि जो व्यक्ति विलक्षण प्रतिभा वाले होते है उनके अन्दर सभी प्रकार के गुण होते है। मगर हमंे असफोस इसलिए है कि हमारे महापुरूषांे के आन्दोलन को बढ़ाने वाले 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज के हक की लड़ाई लड़ने वाले मूलनिवासी बहुजन समाज में जागृति फैलाने वाले महान समाज सुधारक व जुझारू कार्यकर्ता मा.राम समुझ जी अब हमारे बीच मंे नहीं रहे। और वे 25 अप्रैल 2014, दिन-शुक्रवार को समय 3.30 अपराहन्त उन्हांेने अंतिम सास ली, और सैदव के लिए चिर निद्रा मंे लीन हो गये। अतः उनसे प्रेरणा लेते हुए मूलनिवासी बहुजनांे से निवेदन है कि उनके द्वारा संचित किये हुए ज्ञान के प्रकाश को मूलनिवासी बहुजन समाज मंे फैलाने का कार्य करे। तभी हम सही मायने मंे उनके सपनो का भारत बना सकते है। यहीं उनके प्रति सच्ची श्रद्धाजंली होगी।
समाज सुधारक राम समुझ जी का जन्म 11 जुलाई 1937 को उ.प्र. के प्रतापगढ़ जिले के चैवे पट्टी नाम गांव मंे हुआ। इनके पिता जी का नाम शिवम्बर पासी और माता जी का नाम सस्ती देवी था। समाज सुधारक, राम समुझ जी की शिक्षा बी.ए., एम.ए.तक हुयी थी। बामसेफ के वरिष्ठ कार्यकर्ता राम समुझ निरन्तर मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत करने का कार्य करते रहे। और मूलनिवासी बहुजन समाज को आजीवन ब्राह्मणवाद रूपी जहर से बचने की प्रेरणा देते रहे। उनका एक सपना था। मैं 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मणवाद की गुलामी से आजादी दिला सकूँ। और इन्हांेने मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मणवाद की गुलामी से मुक्त करने के लिए अपने महत्वपूर्ण नौकरी को भी त्याग दिया। अर्थात उन्हांेने अपने जिन्दगी को दांव पर लगाकर इस देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत करने के लिए निकल पड़े। और इन्हांेने केवल मौखिक रूप से ही लोगों को जागृत करने का कार्य नहीं बल्कि इन्हांेने मूलनिवासी बहुजन समाज मंे चेतना लाने के लिए कई सारे पुस्तको का भी लिखित रूप से निर्माण किया। ताकि किताबों के माध्यम से भी मूलनिवासी बहुजन समाज मंे जागृति की लहर फैलायी जा सके।
इन्हांेने अपनी पढ़ाई पूरी करने के दौरान 1962 में एडीओ के पद पर कार्यरत रहे। उसके बाद ये बीडीओ के पद पर कार्यरत रहे। इस तरह से निरन्तर ही यह आगे बढ़ते रहे। और बाद मंे जाकर फैजाबाद एम.एच.ई के पद पर भी पहुँच कर कई वर्षो तक सेवारत रहे। उन्हांेने मूलनिवासी बहुजन समाज के मसीहा व बामसेफ के संस्थापक मा.कांशीराम के सम्पर्क में आने के पश्चात उन्हांेने 1986 मंे महत्वपूर्ण सरकारी पद को भी त्याग दिया। और मान्यवर कांशीराम जी के साथ मंे व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन मंे जुड़ गये। और वे व्यवस्था परिवर्तन मंे जुड़कर तन-मन-धन से 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत कने मंे लग गये। उनकी कर्मनिष्ठ लगन, धैर्य और लोगों को प्रभावित करने वाली उनकी ओजस्वी वाणी और ईमानदारी को देखकर मा.कांशीराम ने 1980 में उŸार प्रदेश मंे बामसेफ केे प्रदेश अध्यक्ष के रूप मंे कार्यभार संभालने के लिए कहा और उन्हांेने ईमानदारी पूर्वक उŸार प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष के रूप मंे कार्यभार संभालने का कार्य किया। और अपनी ईमानदारी निष्ठा की वजह से बाद मंे वह डी.एस.फोर के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। तथा वह बाद में 1985 में बी.एस.पी के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे।
पूरे उŸार प्रदेश मंे बामसेफ, डी.एस.फोर व बी.एस.पी. के नींव रखने वाले त्यागमूर्ति राम समुझ पासी ही थे। इसलिए इनके महत्वपूर्ण योगदान को भूला नहीं जा सकता। इन्हांेने 1987 में प्रतापगढ़ के पट्टी से उप चुनाव भी लड़ेक। जिसमंे वे राज अजीत सिंह के खिलाफ जीत भी गये थे। किन्तु उस समय उŸार प्रदेश ब्राह्मणवादी कांग्रेस सरकार ने (बूथ कैपचरिंग) के माध्यम से षड्यंत्र करके उनको जबरदस्ती हराया। बाद मंे वह 1988 मंे जौनपु मछली शहर से एम.पी. का चुनाव लड़े। इसके अलावा उन्हांेने जनता दल, सपा, अपना दल व परिवर्तन दल के मुख्य पदो पर रहकर भी नेतृत्व किया। उन्हांेने 15 प्रतिशत विदेशी बनाम 85 प्रतिशत मूलनिवासी के संघर्ष का ऐलान करते हुए भगवान बुद्ध सेवा संघ, बहुजन जनक्रान्ति दल, तथा आवामी समता दल (राजनीतिक सं.) की स्थापना की। वर्तमान समय मंे आवामी समता दल 2014 के एम.पी. चुनाव में मैदान मंे चुनाव भी लड़ लड़ रही है। इस तरह से उन्हांेने 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए कई सारे संगठनो की स्थापना की। मा.राम समुझ पासी महान साहित्यकार, लेखक, कवि, पत्रकार, संपादक, चित्रकार व समाज को जागृत करने के लिए कई सारी पुस्तको की भी रचानाएं की। जिनमंे उनके द्वार लिखित पुस्तको का विवरण दिया जा सकता है। पहला पुस्तक बहुजन जागरण ज्योतिब (गीत), ज्योति जागरण कविता, डा. अम्बेडकर क्यांे हारे, फŸाू राम सवा सती, कांशीराम ने बहुजन समाज को पतुरिया पार्टी बनाया। तथा इसके अलावा उन्हांेने अन्य कविताआंे की भी रचना की। वे बहुजन संगठक, बहुजन दिग्दर्शिक अखबार के संपादक भी रहे वे युवावस्था मंे बैडमिंटन, शतरंज, कैरमबोड के कुशल खिलाड़ी भी रहे। ऐसा कहा भी जाता है कि जो व्यक्ति विलक्षण प्रतिभा वाले होते है उनके अन्दर सभी प्रकार के गुण होते है। मगर हमंे असफोस इसलिए है कि हमारे महापुरूषांे के आन्दोलन को बढ़ाने वाले 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज के हक की लड़ाई लड़ने वाले मूलनिवासी बहुजन समाज में जागृति फैलाने वाले महान समाज सुधारक व जुझारू कार्यकर्ता मा.राम समुझ जी अब हमारे बीच मंे नहीं रहे। और वे 25 अप्रैल 2014, दिन-शुक्रवार को समय 3.30 अपराहन्त उन्हांेने अंतिम सास ली, और सैदव के लिए चिर निद्रा मंे लीन हो गये। अतः उनसे प्रेरणा लेते हुए मूलनिवासी बहुजनांे से निवेदन है कि उनके द्वारा संचित किये हुए ज्ञान के प्रकाश को मूलनिवासी बहुजन समाज मंे फैलाने का कार्य करे। तभी हम सही मायने मंे उनके सपनो का भारत बना सकते है। यहीं उनके प्रति सच्ची श्रद्धाजंली होगी।
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