यूपी के महाराजगंज के भूजल में आर्सेनिक की स्थिति
जल पर्यावरण का जीवनदायी तत्व है. परिस्थितिकी के निर्माण में जल आधारभूत कारक है. वनस्पतियों से लेकर जीव-जंतु अपने पोषक तत्वों की प्राप्ति जल से करते हैं. मनुष्य के भौतिकवादी दृष्टिकोण, विज्ञान और तकनीक की निरंतर प्रगति, बढता औद्योगीकरण और शहरीकरण, खेतों में पैदावार बढाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, कीटनाशकों का अनियंत्रित प्रयोग व जनसंख्या में हो रही वृद्धि तथा जनमानस की प्रदूषण के प्रति उदासीनता के कारण जल प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है.
संसार के अनेक भागों के भूजल में आर्सेनिक पाया गया है. भूजल में आर्सेनिक की उपस्थिति मात्र ही मानव जाति के लिए अवांछनीय है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए यह अति आवश्यक हो जाता है कि आर्सेनिक का भूजल में गहन अध्ययण किया जाए तथा इससे उत्पन्न दुष्प्रभावों के समाधान के लिए समुचित उपाय ढूंढे जाएं. भूजल में आर्सेनिक के स्रोत, भूगर्भीय तत्वों से अथवा मानवीय क्रियाकलापों से हो सकते हैं. जनमानस पर आर्सेनिक (3) की विषाक्तता आर्सेनिक (5) व कार्बनिक आर्सेनिक की अपेक्षा अधिक होती है. पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक और खान-पान के आधार पर भारतीय मानक संस्थान के पेय जल में आर्सेनिक अनुज्ञेय सीमा 0.05 मि.ग्रा./ली. रखी गई है. उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत वैज्ञानिक पत्र में महाराजगंज जनपद, उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक की स्थिति के अध्ययन का प्रयत्न किया गया है. इसके अतिरिक्त इस पत्र में भूजल में आर्सेनिक के स्रोत, आर्सेनिक ता भू-रसायण और मानव स्वास्थय पर विषैले प्रभाव को भी दर्शाने का प्रयत्न किया गया है.
अध्ययन के लिए 28 हैंड पंपों ( इंडिया मार्क 2 व व्यक्तिगत) से जल नमूनों को एकत्र किया गया था. इंडिया मार्क 2 हैंड पंपों की गहराई 15-20 मीटर और व्यक्तिगत हैंड पंपों की गहराई 7-10 मीटर है.
रसायनिक आंकडों का अवलोकन करने से पता चलता है कि अधिकतम भूजल नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रता 0.001 मि.ग्रा./ली. से नीचे पायी गई है. अधिकतम सांद्रता 0.018 मि.ग्रा./ली. और 0.02 मि.ग्रा./ली. खनवा और पनडारी क्रासिंग के भूजल में पाई गई है. उपरोक्त विश्लेषण से यह प्रतीत होता है कि महाराजगंज जनपद, उत्तर प्रदेश के छिछले भूजल में आर्सेनिक की सांद्रता भारतीय मानक संस्थान द्वारा निर्धारित अनुज्ञेय सीमा के अंदर पायी गई है.
1. प्रस्तावनाः
नवसृजित जनपद महाराजगंज पहले गोरखपुर जनपद के हिस्से के रूप में जाना जाता था. इस समय यह जनपद उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तर पूर्वी छोर पर 26 डिग्री 53 मिनट 20 सेकेंड उत्तर अक्षांस तथा 83 डिग्री 7 मिनट 30 सेकेंड व 83 डिग्री 56 मिनट 30 सेकेंड पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है. इस जनपद का कुल भौगोलिक क्षेत्र 2943.1 वर्ग किमी है. महाराजगंज जनपद उत्तर में नेपाल, दक्षिण में गोरखपुर, पश्चिम में सिद्धार्थनगर तथा पूर्व में देवरिया जनपद से घिरा हुआ है. वर्ष 1991 की जनगनना के अनुसार यहां की कुल जनसंख्या 16.8 लाख के लगभग थी. ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में भूजल ही पेयजल का साधन है. पेयजल की आपूर्ति मुख्यतः हैंडपंप से की जाती है.
2. भू-आकृति विज्ञानः
गंगा के मैदानी भाग में इस जनपद का ढलान मुख्यरूप से उत्तर से दक्षिण की तरफ है. छोटी गंडक और घोंघी नदियों से यह जनपद क्रमशः पूर्व तथा पश्चिम दिशाओं घिरा हुआ है जबकि रोहणी नदी की तीसरी धारा के रूप में बासमानी, मालौन, नन्दा व बरुआ आदि नदियां जनपद के बीच से होकर बहती है. इस बेसिन का जल निकास गंगा बेसिन और घाघरा सब बेसिन के द्वारा होता है. इस क्षेत्र में जरोद, रेतीली, सिल्ट तथा क्ले प्रकार की मिट्टी पायी है. यहां की जलवायु अत्यधिक ठंडी तथा गर्म होती है.
3. अध्ययन का आधारः
17 फरवरी 2003 को अंग्रेजी के दैनिक पत्र इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख प्रस्तुत किया गया जिसका शीर्षक Million in Ganga basin exposed to arsenic nature था. इसी आधार पर केंद्रीय भूमिजल प्राधिकरण के पत्र संख्या M(SML)/ CGWB/PA-1/2002-38 दिनांक 21.2.2003 के अनुसार सचिव, जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार में 20.2.2003 को एक मीटिंग बुलाई गई तथा इसकी पुष्टि के लिए चर्चा की. आने वाले समय में बिहार, उत्तर प्रदेश तथा चंडीगढ को इस समस्या से अवगत कराया गया. उत्तर प्रदेश में जनपद महाराजगंज जो कि नेपाल के बार्डर से लगा हुआ है को भूजल में आर्सेनिक की स्थिति जानने व प्रारंभिक अध्ययन करने के लिए चुना गया.
4. भारत में आर्सेनिक अध्ययनः
विज्ञान, चिकित्सा तथा तकनीकी क्षेत्र में आर्सेनिक की विषाक्तता को लंबे समय से जाना जाता रहा है. भारत में आर्सेनिक सबसे पहले पश्चिम बंगाल के बंगाल बेसिन क्षेत्र में सन् 1978 में रिपोर्ट किया गया तथा वर्ष 1983 में आर्सेनिक के विषैलेपन की जांच स्कूल आफ ट्रापीकल मैडीसीन (SMT) तथा आल इंडिया इंस्टीच्यूट आफ हाइजीन (AIIH) तथा पब्लिक हैल्थ (AH) ने की. यहां पर यह देखा गया कि वहां के लोग आर्सेनिक डरमाटोसिस से प्रभावित हैं. जब उस क्षेत्र के जल नमूनों को रासायनिक प्रयोगशाला में लाकर परीक्षण किया गया तो उसमें आर्सेनिक की मात्रा बी.आई.एस. 1991 की अधिकतम सीमा 0.05 मि.ग्रा./ली. से भी अधिक पायी गई.
5. भूजल में आर्सेनिक के स्रोतः
प्राकृतिक पर्यावरण में आर्सेनिक भूमि के अंदर 5 से 6 मि.ग्रा./ली. तक पाया जाता है. इसकी अधिक मात्रा चट्टानों में पायी जाती है. इग्नीअस तथा मैटामौरफिक चट्टानों की अपेक्षा सैडीमेंट्री चट्टानों में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पायी जाती है. आर्सेनिक के मानवोत्पत्ति स्रोत निम्नलिखित हो सकते हैं.
(1) खादानों की सक्रियता व पिघलने से
(2) कीटनाशकों के प्रयोग से
(3) कोयला के द्वारा
(4) उत्पादकों द्वारा कोयला दहन से
(5) वाहित मल से
4. जल नमूने का एकत्रीकरण एवं विश्लेषणः
अध्ययन क्षेत्र महाराजगंज के विभिन्न स्थानों से (हैंडपंप इंडिया मार्क 2 तथा व्यक्तिगत हैंडपंप) पोलिइथायलीन की एक लीटर की सफेद बोतलों में जल नमूनों को एकत्रित करके तथा हाइड्रोक्लोरिक एसिड से उपचरित सुरक्षित किया गया. इसके तुरंत बाद केंद्रीय भूमिजल बोर्ड उत्तर क्षेत्र लखनऊ की रासायनिक प्रयोगशाला में स्टैंडर्ड मैथड्स (APHA-1996) में दी गई विधियों के अनुसार हाईड्राइड वेपर जेनरेटर प्रयोग करते हुए ऐटौमिक एब्जार्पषन स्पैक्ट्रोफोटोमीटर (SHIMADZU-6701F) द्वारा विश्लेषित किया गया.
5. परिणाम व चर्चाः
महाराजगंज जनपद के 10 विकास खंडों के हैंडपंपों (इंडिया मार्क 2 तथा व्यक्तिगत) से लिए गए जलनमूनों के रासायनिक विश्लेषण से प्राप्त आंकडों में आर्सेनिक की न्यूनतम व अधिकतम सीमा तालिका 1 में दर्शायी गई है.
तालिका 1 में दिए गए आंकडों का अवलोकण करने से ज्ञात होता है कि सभी विकास खंडों के भूजल नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रता अनुज्ञेय सीमा (0.05 मिग्रा/ली-बीआईएस-1991) के नीचे ही पाई गई है. सामान्यतः अधिकतर जल नमूनों में आर्सेनिक की सान्द्रता 0.001 मिग्रा/ली या उससे कम ही पाई गई है. अधिकतम सांद्रता 0.024 मिग्रा/ली घुघौली ब्लॉक के भूजल नमूनों में प्राप्त हुई है. नौतनवा, ब्रजमानगंज व सिसवा बाजार विकास खंड में अधिकतम सान्द्रता क्रमशः 0.020, 0.017 और 0.016 मिग्रा/ली प्राप्त हुई है. उपरोक्त आंकडों के आधार पर यह दर्शित होता है कि पिछली शतह का भूजल आर्सेनिक के लिए निर्धारित अनुज्ञेय सीमा के अंदर ही है.
महाराजगंज जनपद, उत्तर प्रदेश के छिछली सतह के जल के नमूनों में आर्सेनिक की सांद्रताः
क्रमांक |
ब्लॉक |
आर्सेनिक सांद्रता मिग्रा/ली |
|
न्यूनतम |
अधिकतम |
||
1. |
फरैंदा |
0.004 |
0.007 |
2. |
ब्रजमानगंज |
0.009 |
0.017 |
3. |
नौतनवा |
अनुपस्थित |
0.018 |
4. |
निचलौल |
अनुपस्थित |
0.009 |
5. |
मिथौरा |
0.003 |
0.003 |
6. |
महराजगंज |
अनुपस्थित |
0.002 |
7. |
सिसवा बाजार |
0.001 |
0.016 |
8. |
घुघौली |
0.001 |
0.024 |
9. |
परतावल |
0.002 |
0.002 |
10. |
पनियारा |
0.003 |
0.003 |
8. भविष्य में अध्ययन के लिए सुझावः
(1) समयबद्ध जल नमूनों का एकत्रीकरण करके भू-रासायनिक व फ्लोमोडलिंग की सहायता से भविष्य में संभावित रूझान का पता लगाना.
(2) अनुज्ञेय सीमा से अधिक आर्सेनिक सांद्रता वाले स्थानों पर कम मूल्य का फिल्टर व नलकूप से जुडे उपकरणों का विकास तथा आर्सेनिक कचरे का सुरक्षित बहिस्राव.
(3) भूजल बहाव और एक्यूफर ज्यामिति के साथ में भूजल रसायन का स्पष्ट अध्ययन.
9. संदर्भः
(1) एपीएचए 1996 स्टैंडर्ड मैथड्स ऑफ एनालिसिस ऑफ वाटर एंड वेस्ट वाटर
(2) बीआईएस 1991 इंडियन स्टैंडर्ड स्पेसिफिकेशन ऑफ ड्रिंकिंग वाटर बीएस 10500
(3) चड्ढा डीके एंड सिन्हा रे एसपी 1999 हाई इन्सिडेंस ऑफ आर्सेनिक इन ग्राउंड वाटर इन वेस्ट बंगाल
(4) सीजीडब्ल्यूबी रिपोर्ट 2002 आर्सेनिक हैजार्डस इन ग्राउंड वाटर इन बंगाल बेसिन (वेस्ट बंगाल इंडिया एंड बंगलादेश)
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