आपके अनाज में क्यों डाला जा रहा है ज़हर?
- 5 अक्तूबर 2014
विकसित देशों में हुई शोध से ये साफ़ हो गया है कि कीटनाशक पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लेकिन विकासशील देशों में इनके इस्तेमाल का सिलसिला बदस्तूर जारी है.
जानकारों का कहना है कि इन कीटनाशकों में से कुछ तो बहुत ही ख़तरनाक हैं और कई देशों में इनके चंगुल से बाहर निकलने के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद दी जा रही है.
लेकिन उनका कहना है कि कुछ देशों में कीटनाशकों के इस्तेमाल के रोकथाम में मुश्किल हो रही है और भारत में यह एक बड़ी चुनौती है.
भारत दुनिया के बड़े कृषि उत्पादकों में से एक है और कृषि रसायनों का एक महत्वपूर्ण निर्यातक भी है.
नवीन सिंह खड़का की रिपोर्ट
भारत सरकार का कहना है कि उसने नुक़सानदेह रसायनों की रोकथाम के लिए सख्त इंतजाम किए हैं, लेकिन ये जरूरी नहीं कि वह पश्चिमी मानदंडों के अनुरूप हों.
कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों की दलील है कि उनका कोई भी उत्पाद ख़तरनाक नहीं है और उन पर लगाए जाने वाले सभी आरोप निराधार हैं.
पिछले साल बिहार के एक स्कूल में मिड-डे मील खाने के बाद 20 बच्चे मर गए थे.
बाद में जांच में यह पाया गया कि उसमें पुराना और बेहद ख़तरनाक कीटनाशक मोनोक्रोटोफ़ॉस मिला हुआ था.
प्रतिबंध
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्रीन पीस इंडिया ने दावा किया कि भारत की चाय में ख़तरनाक कीटनाशकों का अंश है और इसमें बेहद नुक़सानदेह रसायन डीडीटी भी था.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के सीनियर पॉलिसी ऑफ़िसर हैरी वैन डे वल्प कहते हैं, "दरअसल, विकासशील देशों में सबसे बड़ी समस्या मोनोक्रोटोफ़ॉस और मिथाइल पैराथियोन जैसे कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर है."
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया के प्रमुख देशों में मोनोक्रोटोफ़ास कीटनाशकों को स्वास्थ्य कारणों से प्रतिबंधित कर दिया गया है लेकिन भारत में इनका उत्पादन, इस्तेमाल और दूसरे देशों को निर्यात अब भी जारी है.
ख़तरनाक
भारत के पंजाब राज्य में बीबीसी ने जांच के बाद पाया कि किसान अब भी उन कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिन्हें भारत सरकार प्रतिबंधित कर चुकी है.
संगरूर ज़िले में एक किसान ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि वह अब भी अपनी फसलों के लिए एंडोसल्फ़ान का इस्तेमाल कर रहा है.
एंडोसल्फ़ान एक प्रतिबंधित और ख़तरनाक कीटनाशक है.
उन्होंने बताया, "यह मैंने पिछले साल ख़रीदा था, जब दूसरे कीटनाशक उतने असरदार नहीं थे. इसकी गंध बहुत तीखी है. जब इसका छिड़काव करते हैं तो सिर में दर्द होने लगता है."
'कोई दिक्कत नहीं'
पास के ही एक खेत में किसान हरदर्शन सिंह दो कीटनाशकों को नंगे हाथों से मिला रहे थे.
थोड़ी देर बाद वे इस मिश्रण को नंगे हाथों से बिना किसी मास्क, चश्मे या सुरक्षित कपड़ों के खेत में छिड़क रहे थे.
वे कहते हैं, "हम ये इसी तरह से करते हैं. इसमें कोई दिक्कत नहीं है. हम मजबूत लोग हैं."
उस वक्त उनका हाथ नीला पड़ जाता है, बाद में ये लाल रंग का हो जाएगा और कई दिनों तक ऐसा ही रहेगा.
प्रदूषण
पिछले 75 सालों से खेती कर रहे सुखवंत सिंह कहते हैं, "जो सांस हम लेते हैं, जो खाना हम खाते हैं और जो पानी हम पीते हैं, पिछले कुछ दशकों में कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण सब कुछ जहरीला हो चुका है."
"मेरी बहन और मेरी पत्नी की मौत कैंसर की वजह से हुई. मेरा मानना है कि कीटनाशकों की वजह से हुए प्रदूषण के कारण ऐसा हुआ. पंजाब में ऐसे कई लोग कैंसर से पीड़ित हैं."
पंजाब में कई लोग ये मानते हैं कि कीटनाशकों के इस्तेमाल की वजह से राज्य में कैंसर के मामले बढ़े हैं.
हालांकि इन दावों के अध्ययन के लिए पंजाब में कोई व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है.
सुरक्षा चेतावनी
पंजाब के कृषि मंत्री तोता सिंह कहते हैं, "इस तरह के अध्ययन के लिए हमारे पास कोई बजट नहीं है. यह केंद्र सरकार का काम है. उनके पास इसके लिए पैसा भी है और विशेषज्ञ भी."
राज्य के कीटनाशक विक्रेता भी इस बात से इनकार करते हैं कि लोगों की बीमारी की वजह ख़तरनाक कीटनाशक हैं.
उनका कहना है कि कीटनाशकों के पैक पर सुरक्षा चेतावनी लिखी होती है.
भारत के कृषि मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी स्वपन के दत्ता इस बात को स्वीकार करते हैं कि किसान इनका इस्तेमाल करते वक्त सुरक्षा एहतियात नहीं बरतते.
खेती का ढांचा
हालांकि वे कई कृषि रसायनों को प्रतिबंधित न करने के सरकार के फैसले का बचाव करते हैं.
दत्ता कहते हैं, "जैसा कि कुछ कीटनाशकों को अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने प्रतिबंधित कर रखा है, मुझे नहीं लगता कि भारत में ऐसा किया जाना ज़रूरी है. हमारे यहां खेती का ढांचा, जलवायु और कीटनाशकों की मात्रा बहुत अलग है."
भारत में कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों के संगठन 'क्रॉप केयर फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया' के चेयरमैन राजू श्रॉफ़ कहते हैं कि भारत में कोई भी कीटनाशक ख़तरनाक या जानलेवा नहीं है.
सरकार की तवज्जो
भारत सरकार के बजट में भी कीटनाशकों के पानी के स्रोतों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता जाहिर की गई है और इससे निपटने के लिए 20 हज़ार जगहों पर 'वॉटर प्यूरिफ़िकेशन सेंटर' खोलने की बात कही गई है.
जानकारों का कहना है कि भारत सरकार की तवज्जो कीटनाशकों के चलन को रोकने से ज़्यादा खाद्य सुरक्षा पर है और इन कीटनाशकों का इस्तेमाल किसान लंबे समय से अपनी उपज बढ़ाने के लिए कर रहे हैं.
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