शनिवार, 30 नवंबर 2024

डोंबारी बुरु

 झारखंड का जालियांवाला बाग है खूंटी जिले का डोंबारी बुरु


आज से 122 साल पहले नौ जनवरी 1899 को अंग्रेजों ने डोंबारी बुरु में निर्दोष लोगों को चारों तरफ से घेर कर गोलियों से भून दिया था। डोंबारी बुरु में भगवान बिरसा मुंडा अपने 12 अनुयाइयों के साथ सभा कर रहे थे। सभा में आस-पास के दर्जनों गांव के लोग भी शामिल थे। इनमें महिलाएं और बच्चे भी थे। बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में उलगुलान की बिगुल फूंक रहे थे। अंग्रेज को बिरसा की इस सभा की खबर हुई। अंग्रेज सैनिक वहां धमके और डोंबारी पहाड़ को चारों तरफ से घेर लिया और अंग्रेज सैनिक मुंडा लोगों पर कहर बनकर टूट पड़े। बिना कोई सूचना के अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। बिरसा मुंडा भी अपने समर्थकों के साथ पारंपरिक हथियारों के दम पर अंग्रेजों का जमकर सामना किया। इस संघर्ष में सैकड़ों लोग शहीद हो गए। हालांकि, बिरसा मुंडा अंग्रेजों को चकमा देकर वहां से निकलने में सफल रहे। उक्त स्थल पर किए गए पत्थलगड़ी में मात्र छह लोगों का ही नाम दर्ज है। इनमें गुटुहातु के हाथीराम मुंडा, हाड़ी मुंडा, बरटोली के सिगराय मुंडा, बंकन मुंडा की पत्नी, मझिया मुंडा की पत्नी और डुंडंग मुंडा की पत्नी शामिल हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि उस संघर्ष में लगभग चार लोग मारे गए थे। लोग डोंबारी बुरु को झारखंड का जालियांबाला बाग कहते हैं। इस घटना के बाद हर साल यहां नौ जनवरी को मारे गए लोगों की याद में शहादत दिवस मनाया जाता है।




आदिवासी बुद्धिजीवी व साहित्यकार स्वर्गीय डॉ. रामदयाल मुंडा ने डोंबारी बुरु में एक स्तंभ का निर्माण कराया था। 110 फुट ऊंचा यह स्तंभ आज भी सैकड़ों लोगों के शहादत की कहानी बयां करती है। वर्ष 1986-87 में बनाए गए विशाल स्तंभ उलगुलान के इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए




















डोंबारी बुरु

 झारखंड का जालियांवाला बाग है खूंटी जिले का डोंबारी बुरु आज से 122 साल पहले नौ जनवरी 1899 को अंग्रेजों ने डोंबारी बुरु में निर्दोष लोगों को ...