रविवार, 11 नवंबर 2012

बिना ऑक्सीजन के जीने वाले जीव

एक मिलिमीटर आकार के ये जीव एक मोटी रक्षात्मक परत में लिपटे हुए हैं
वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे जीवों की खोज की है जो बिना ऑक्सीजन के जी सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं.
ये जीव भूमध्यसागर के तल पर मिले हैं.
इटली के मार्श पॉलीटेकनिक विश्वविद्यालय में कार्यरत रॉबर्तो दोनोवारो और उनके दल ने इन कवचधारी जीवों की तीन नई प्रजातियों की खोज की है.
दोनोवारो ने बीबीसी को बताया कि इन जीवों का आकार क़रीब एक मिलीमीटर है और ये देखने में कवच युक्त जेलीफ़िश जैसे लगते हैं.
प्रोफ़ैसर रॉबर्तो दोनोवारो ने कहा, "ये गूढ़ रहस्य ही है कि ये जीव बिना ऑक्सीजन के कैसे जी रहे हैं क्योंकि अब तक हम यही जानते थे कि केवल बैक्टीरिया ऑक्सीजन के बिना जी सकते हैं."
भूमध्यसागर की ला अटलांटा घाटी की तलछट में जीवों की खोज करने के लिए पिछले एक दशक में तीन समुद्री अभियान हुए हैं. इसी दौरान इन नन्हे कवचधारी जीवों की खोज हुई.
यह घाटी क्रीट द्वीप के पश्चिमी तट से क़रीब 200 किलोमीटर दूर भूमध्यसागर के भीतर साढ़े तीन किलोमीटर की गहराई में है, जहां ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं है.
नए जीवों के अंडे
प्रोफ़ेसर दानोवारो ने बीबीसी को बताया कि इससे पहले भी बिना ऑक्सीजन वाले क्षेत्र से निकाले गए तलछट में बहुकोशिकीय जीव मिले हैं लेकिन तब ये माना गया कि ये उन जीवों के अवशेष हैं जो पास के ऑक्सीजन युक्त क्षेत्र से वहां आकर डूब गए.
ये गूढ़ रहस्य ही है कि ये जीव बिना ऑक्सीजन के कैसे जी रहे हैं क्योंकि अब तक हम यही जानते थे कि केवल बैक्टीरिया ऑक्सीजन के बिना जी सकते हैं.
प्रोफ़ैसर रॉबर्तो दोनोवारो, खोजी दल के प्रमुख
प्रोफ़ैसर दानोवारो ने कहा, "हमारे दल ने ला अटलांटा में तीन जीवित प्रजातियां पाईं जिनमें से दो के भीतर अंडे भी थे."
हालांकि इन्हे जीवित बाहर लाना संभव नहीं था लेकिन टीम ने जहाज़ पर ऑक्सीजन रहित परिस्थितियां तैयार करके अंडो को सेने की प्रक्रिया पूरी की.
उल्लेखनीय है कि इस ऑक्सीजन रहित वातावरण में इन अंडों से जीव भी निकले.
दानोवारो ने कहा, "यह खोज इस बात का प्रमाण है कि जीव में अपने पर्यावरण के साथ समायोजन करने की असीम क्षमता होती है."
उन्होंने कहा कि दुनिया भर के समुद्रों में मृत क्षेत्र फैलते जा रहे हैं जहां भारी मात्रा में नमक है और ऑक्सीजन नहीं है.
स्क्रिप्स इंस्टिट्यूशन ऑफ़ ओशनोग्राफ़ी की लीसा लेविन कहती हैं, "अभी तक किसी ने ऐसे जीव नहीं खोजे जो बिना ऑक्सीजन के जी सकते हों और प्रजनन कर सकते हों."
उन्होने कहा कि पृथ्वी के समुद्रों के इन कठोर परिवेशों में जाकर और अध्ययन करने की ज़रूरत है. इन जीवों की खोज के बाद लगता है कि अन्य ग्रहों पर भी किसी रूप में जीवन हो सकता है जहां का वातावरण हमारी पृथ्वी से भिन्न है.


कैसे उठाता है कोबरा अपना फन

कोबरा
कोबरा का फन विकासक्रम में हुई रिमॉडलिंग का उदाहरण है.
कोबरा जब अपना फन उठाकर फुंफकारता है तो अच्छे अच्छों की फूंक सरक जाती है. अब वैज्ञानिकों ने इस रहस्य का पता लगा लिया है कि कोबरा फन कैसे उठाता है.
उन्होने कोबरा सांप की मांसपेशियों की विद्युत क्रिया माप कर देखा कि कौन सी मांसपेशियां कोबरा को फन उठाने में मदद करती हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि जैसे जैसे कोबरा की पसलियों को फन उठाने की क्रिया के लिए चुना गया वैसे वैसे उसका फन विकसित हुआ.
उन्होने अपनी खोज प्रायोगिक जीव विज्ञान की एक पत्रिका में प्रकाशित की है.
अमरीका के वॉशिंगटन स्टेट विश्वविद्यालय में प्राणी विज्ञान के प्रोफ़ैसर केनेथ कारडॉंग इस अध्ययन में शामिल थे.
उन्होने बताया कि कोबरा का फन ‘विकासपरक जीव विज्ञान की एक पहेली रहा है’.
कोबरा की पसलियां
प्रोफैसर कारडॉंग ने बीबीसी को बताया, “कोबरा की पसलियां और उन्हे चलाने वाली मांसपेशियां उसका फन उठाने के लिए तैयार रहती हैं”.
“हम ये जांच करना चाहते थे कि किस तरह उसकी पसलियां फन का रूप धारण करने के लिए स्वतंत्र हो जाती हैं और ऐसा करने में मांसपेशियां कैसे मदद करती हैं और बाद में वो कैसे अपनी सामान्य स्थिति में लौट आती हैं”.
इसका पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने कोबरा की गरदन की सभी मांसपेशियों की विद्युत क्रिया का मापन किया.
हम ये जांच करना चाहते थे कि किस तरह उसकी पसलियां फन का रूप धारण करने के लिए स्वतंत्र हो जाती हैं और ऐसा करने में मांसपेशियां कैसे मदद करती हैं और बाद में वो कैसे अपनी सामान्य स्थिति में लौट आती हैं.
प्रोफ़ैसर केनेथ कारडॉंग, वॉशिंगटन स्टेट विश्वविद्यालय
इसके लिए उन्हे बड़ी पेचीदा शल्यचिकित्सा करनी पड़ी. उन्हे कोबरा को बेहोश करके उसकी गरदन की मांसपेशियों में नन्हे नन्हे इलैक्ट्रोड्स लगाने पड़े.
ब्रूस यंग भी इस अध्ययन में शामिल थे. उन्होने बताया कि यह शल्य चिकित्सा बहुत ही ख़तरनाक थी.
“हमें कोबरा के सिर पर काम करना था और ये जाना जाता है कि सांप बेहोशी में भी उठ जाते हैं जिससे भारी परेशानी खड़ी हो सकता थी”.
लेकिन इलैक्ट्रोड्स लग जाने के बाद जब सांप होश में आया और उसने आक्रामक तेवर अपनाया तो शोधकर्ताओं ने देखा कि फन उठाने में केवल आठ मांसपेशियों ने काम किया.
उल्लेखनीय है कि ये मांसपेशियां उन सांपों में भी पाई जाती हैं जो फन नहीं उठाते. तो फिर अन्य सांपों और फन वाले सांपों में यह भेद कैसे पैदा हुआ.
डॉ कारडॉंग का कहना है, “ये विकासक्रम में हुई रिमॉडलिंग का एक उदाहरण है. जब एक वर्ग के जीवों में से अन्य प्रजातियों की व्युत्पत्ति हुई तो उनका स्वरूप बदला. और मांसपेशियों पर नियंत्रण को लेकर इन सांपों की नाड़ी तंत्र में परिवर्तन हुआ”.

लंदन की सड़कों पर 'घूमते थे आदमखोर बाघ'

 रविवार, 11 नवंबर, 2012 को 07:48 IST तक के समाचार
लंदन की सड़कें दुनिया में सबसे व्यवस्थित और सुरक्षित मानी जाती हैं लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था. दिन दहाड़े एक दिन एक बच्चे को एक बाघ ने दबोच लिया था.
साल था 1857, वही साल जब ब्रिटेन के अखबार भारत में बगावत की ख़बरों से रंगे हुए थे.
दरअसल ब्रिटेन महारानी विक्टोरिया के ज़माने में दुनिया भर के अनोखे पशु-पक्षियों की सबसे बड़ी मंडी था. ब्रिटेन में उस ज़माने में दरियाई घोड़ों से लेकर अफ्रीकी और एशियाई हाथियों तक हर किस्म के जानवर ख़रीदे जा सकते थे.
साल 1895 के अकेले लंदन में 118 जंगली जानवरों की दुकाने थीं जहाँ लोग महज़ दुकान के भीतर घुस कर हाथी से लेकर कंगारू तक कुछ भी खरीद सकते थे.
साल 1857 में उस वक़्त के सबसे मशहूर जानवरों के दलालों में से एक थे चार्ल्स जैमरेक. इन साहब का दावा था कि वो दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी किस्म का, कोई भी जानवर मंगा सकते हैं.

भाग निकला बाघ

पूर्वी लंदन में इन्हीं सज्जन की दुकान में लाते वक़्त एक बाघ अपने पिंजरे को तोड़ कर निकल भागा था. बाघ भागा और उसने जॉन वेड नाक के एक बच्चे को दबोच लिया.
आखिरकार किसी तरह से जैमरैक ने उस बच्चे को बाघ के मुँह से निकाला. उन्हें उस ज़माने में इसका 300 पाउंड जुर्माना देना पड़ा था जो आज के ज़माने के करीब 30000 पाउंड या करीब 25 लाख भारतीय रुपयों के बराबर था.
हालाँकि ये बाघ उन्होंने लगभग इसी कीमत पर एक सर्कस कंपनी को बेच दिया था. जिस कंपनी ने बाघ बेचा था उसने इसे आदमखोर बाघ कहकर प्रदर्शित किया और खूब पैसे कमाए.

ग़दर से तुलना

उस ज़माने के अखबारों ने इस बाघ की तुलना भारत में चल रही सैन्य बगावात से की.
जैमरैक जो कि खुद एक अपना अखबार निकालते थे- जिसमें सच्चे-झूठे किस्से छपा करते थे. उस अखबार में उनकी वीरता के बारे में लंबा चौड़ा लेख छपा कि किस तरह से उन्होंने उस बाघ को गर्दन से दबोचा और बच्चे को बचा लिया.
ब्रिटेन में जंगली जानवरों की मांग का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वान इगेन एंड वान ईगेन कंपनी ने साल 1900 से 1950 के बीच 43000 बाघों औत तेंदुओं की खालों में भूसा भरा और उन्हें ब्रिटेन और भारत के बाजारों में बेचा.

इन्हें काट डालो तो भी दर्द नहीं होगा !

 रविवार, 11 नवंबर, 2012 को 11:29 IST तक के समाचार
स्टीव पीट
स्टीव पीट किसी भी तरह के दर्द की संवेदना को महसूस करने में अक्षम हैं
कल्पना कीजिए कि दर्द शब्द दुनिया से ग़ायब हो जाए. सुनने में ये जरूर अच्छा लग सकता है, लेकिन इससे कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं.
अमरीका के वॉशिंगटन में रहने वाले स्टीव पीट इस दर्दरहित दुनिया की परेशानियों का कटु अनुभव कर रहे हैं.
दरअसल, स्टीव कान्जेनिटल एनाल्जेसिया नामक एक आनुवंशिक बीमारी से ग्रस्त हैं. इस बीमारी के चलते उन्हें किसी भी तरह के शारीरिक दर्द का अनुभव नहीं होता.
स्टीव का अंगूठा दबाने पर उन्हें कुछ पता नहीं चलता. यही नहीं, दाँत उखड़वाने के लिए उन्हें किसी तरह की बेहोशी की दवा नहीं लेनी पड़ी क्योंकि इसकी उन्हें जरूरत ही नहीं थी.
अपने जीवन में उन्होंने आज तक सिर दर्द नहीं हुआ.
लेकिन दर्द शरीर के एक प्रमुख जैविक चेतावनी तंत्र का हिस्सा है. दर्द से हमें ये भी अहसास होता है कि हम क्या सही कर रहे हैं, क्या गलत कर रहे हैं. कौन सा काम हमें रोक देना चाहिए.
स्टीव का मामला उस वक्त सामने आया जब बचपन में उनके दाँत उखड़े थे और एक बार वे बिना किसी दर्द के अपनी जीभ का कुछ हिस्सा ही चबा गए थे.
जैसे-जैसे वे बढ़ते गए, उनकी समस्या जटिल होती गई.

आनुवांशिक बीमारी?

"बचपन में जब आपकी टाँग टूट जाती है तो दर्द होता है और आप दोबारा वो गलती नहीं करते हैं. लेकिन यदि दर्द का अनुभव न हो तो आपकी टाँग बार-बार जख्मी होती रहती है और आप बेपरवाह बने रहते हैं"
स्टीव पेटे, मरीज
हालांकि उनका एक भाई और है. साथ ही तीस वर्षीय विवाहित स्टीव के एक बच्चा भी है, लेकिन इस तरह की समस्या उनके अलावा और किसी को नहीं है.
उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी. वो बताते हैं, “बचपन में जब आपकी टाँग टूट जाती है तो दर्द होता है और आप दोबारा वो गलती नहीं करते हैं. लेकिन यदि दर्द का अनुभव न हो तो आपकी टाँग बार-बार जख्मी होती रहती है और आप बेपरवाह बने रहते हैं.”
इस वक्त स्टीव एक अध्ययन शिविर में हिस्सा ले रहे हैं जहां उनकी स्थिति पर चर्चा हो रही है. वे उन चार लोगों में शामिल हैं, जिन पर ये अध्ययन हो रहा है.
यहां कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें हर वक्त दर्द होता रहता है. बीस वर्षीय पीटर कभी हाथ में तो कभी पैर में दर्द का अनुभव करते रहते हैं.
इन कुछेक मामलों पर अध्ययन के जरिए वैज्ञानिक दर्द से जुड़े परिपथों की जटिलता और उनकी वजहों के बारे में शोध करना चाहते हैं.
साथ में ये भी पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि दर्द को अनुभव करने में मस्तिष्क की क्या भूमिका होती है.
एक ही आघात से अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न मात्रा में दर्द होता है. वैज्ञानिक इन कारणों पर भी अध्ययन कर रहे हैं.
दर्द के बारे में ये कार्यशाला लंदन के साइंस म्यूजियम में आठ नवंबर से जुलाई 2013 तक चलेगी.

 रानी फाॅल / रानी जलप्रपात यह झारखण्ड राज्य के प्रमुख मनमोहन जलप्रपात में से एक है यहाँ पर आप अपनी फैमली के साथ आ सकते है आपको यहां पर हर प्...