मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

मर्दों के खेला में औरत का नाच

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शिक्षा, सत्ता और संपत्ति से स्त्रियों को सदियों तक वंचित रखा गया. आज भारत की स्त्री के पास मुक्ति की जो भी चेतना है वह उसके लिए बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध ही ले कर आया है. स्त्री स्वातंत्र्य की इस चेतना ने हमारा जीवन बदल दिया. आज जिस जमीन पर हम खड़े हैं उसे तैयार करने में हमारी पूर्ववर्ती महिला आंदोलनकारियों,  समाजसेवियों और चिंतकों ने बहुत श्रम किया है. बाबा साहब आंबेडकर ने समानता के जिस अधिकार की बात संविधान में लिखी थी, उसमें से लिंगाधारित भेदभाव दूर करने के लिए बालिका शिक्षा अभियान, सर्व शिक्षा अभियान चलाया गया और कार्य स्थल पर यौन शोषण विरोधी अधिनियम, घरेलू हिंसा निवारण अधिनियम जैसे कानून बने.  दहेज प्रथा, कन्याभ्रूण हत्या और बाल विवाह आज भी मौजूद हैं और उनके खिलाफ आंदोलन जारी है. मुड़कर देखें तो पाएंगे कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भारत दुर्दशा पर कविता और नाटकों से ले कर प्रेमचंद की कहानियों और महादेवी वर्मा के निबंधों ने मानवीय समकक्षता की चेतना जगा कर सामाजिक बदलाव के तमाम प्रयासों में साहित्य के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान किया था. आज देखें कि सामाजिक आंदोलनों ,कानून में बदलाव और सरकार के प्रयासों से आ रही स्त्रीमुक्ति की इस चेतना का समकालीन हिंदी लेखन, जिसे साहित्य कहने से परहेज करना उचित होगा, में कैसा इस्तेमाल किया जा रहा है.
स्त्री लेखन होता क्या है? क्या वह, जो कुछ भी स्त्री लिख दे, या वह, जो स्त्री के विषय में हो, या वह, जो स्त्रीवादी हो, या वह, जो स्त्री समर्थक हो? स्त्री लेखन के नाम पर आज जो कुछ परोसा जा रहा है, आखिर वह है क्या? आइए देखें.
कुछ समय पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेत्री और वयोवृद्ध हिंदी लेखिका रमणिका गुप्ता का एक साक्षात्कार एक पत्रिका में छपा था. उसमें उनका कहना है कि सत्ता पाने के लिये हर एक को कुछ न कुछ देना पड़ता है. पुरुष धन देते हैं और स्त्रियां अपना शरीर. वे बताती हैं कि अपनी पार्टी के लिए जमीन आवंटित करवाने के लिए वे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री केबी सहाय से मिलीं, जिन्होंने उन्हें एकांत में बुलाकर कहा कि जो चाहो मांग लो और तत्काल कागज़ पर हस्ताक्षर कर दिए. फिर मुख्यमंत्री ने लेखिका को आलिंगन में भर कर चूम लिया. रमणिका गुप्ता आह्लाद से भर उठीं और उन्हें लगा कि चुंबन द्वारा मुख्यमंत्री ने अपनी सत्ता उन्हें हस्तांतरित कर दी है. लेन-देन की यही अवधारणा उनकी कहानी ‘ओह ये नीली आंखें’ में भी दिखती है जिसमें एक स्त्री अपने पति व बच्चे के साथ ट्रेन में यात्रा कर रही है, साथ वाली बर्थ पर एक नीली आंखों वाला यात्री लेटा है और ऊपर की बर्थ पर पति और बच्चा. स्त्री सहयात्री के साथ ट्रेन में सहवास करती है क्योंकि उसे नीली आंखें पसंद हैं और उसे भी सौंदर्यपान करने का पूरा हक है. अपने साक्षात्कार में प्रगतिशील लेखिका बताती हैं कि वे अपनी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ट्रेड यूनियन के काम से धनबाद की कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के सिलसिले में केंद्र में कांग्रेस सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री नीलम संजीव रेड्डी से मिलने गईं जहां पर होटल के कमरे में वे एकदम निर्वस्त्र होकर उनके सामने आ खड़े हुए और लेखिका की मर्जी के विरुद्ध उनके साथ सहवास किया. जनवादी लेखिका ने शिकायत नहीं लिखवाई (अंग्रेजी आउटलुक 18 जनवरी 2010). ये हैं ‘युद्धरत आम आदमी’ की संपादक के आचार-विचार. आम आदमी युद्धरत है और आम औरत?
गीताश्री की एक कहानी ‘प्रगतिशील इरावती’ मार्च,  2013 के महिला विशेषांक में छपी है- ताप. एक युवा पुत्री की मां अपने बूढ़े पति की शारीरिक भूख से त्रस्त है. वह अपनी व्यथा पुत्री को बताती है. एक आधुनिक युवा पुत्री पिता को समझाने, किसी सलाहकार के पास भेजने या उनके आगे कोई अन्य विकल्प रखने के बजाय खुद उनके लिये एक युवा वेश्या खरीद लाती है जो घर पर ही आकर पिता को होमसर्विस देकर उनकी भूख शांत कर दे. यानी एक युवा स्त्री अपने वृद्ध पिता के लिए दूसरी युवा स्त्री को यौनदासी बनाती है. स्त्री सशक्तीकरण की चरम अवस्था को प्राप्त कर चुकी इस लेखिका की कहानी में एक ट्विस्ट है. कहानी के अंत में युवा वेश्या युवा पुत्री से कहती है- ‘ये किसी काम का नहीं है. तुम बेकार अपने पैसे बर्बाद कर रही हो. मैं ठरकी बुड्ढों को खूब जानती हूं. अंग्रेज़ी मुहावरा याद है न- ‘द डिजायर इज हाइ बट द फ़्लेश इज वीक.’ बोल्ड लेखिका के रूप में एक विशेष समूह द्वारा अति प्रशंसित गीताश्री इससे पूर्व ‘इंद्रधनुष के उस पार’ कहानी में दिखा चुकी हैं कि कॉरपोरेट दफ्तर में काम करने वाली युवती परेशान है कि उसका बॉस उसके कपडे-लत्तों पर हरदम रोक-टोक करवाता रहता है. युवती की चिंता सही भी है क्योंकि सभ्य समाज यही मानता है कि स्त्री को अपने वस्त्र स्वयं चुनने और पहनने का पूरा हक है . मगर इस कहानी में भी ट्विस्ट है. लड़की अपनी पोशाक स्वयं तय करने के अधिकार का प्रयोग करते हुए पूर्णतया निर्वस्त्र होकर न्यूड पार्टी में जाती है जहां पर सभी लोग निर्वस्त्र आए हैं, वह बॉस भी जो उसे स्लीवलेस टॉप पहनने पर टोकता था. ऐसी पार्टियां हमारे समाज में होती हैं या ‘इंद्रधनुष के उस पार’ यह कह पाना कठिन है.
जयश्री रॉय की ‘औरत जो एक नदी है’ नाम की कहानी भी है और इसी नाम का उपन्यास भी. पुरुष की ओर से लिखा पूरा उपन्यास शयनकक्ष, शराब, फेनी, बियर, बकार्डी, बिस्तर और उस पर केंद्रित लंबे उबाऊ संवादों से भरा है. कई दशक पूर्व के घोर मर्दवादी लेखक जैनेंद्र की धारणा थी, पत्नी घर में, प्रेयसी मन में. इस विषय पर शायद एक लंबी चर्चा भी चलाई गई थी. लेखिका इस धारणा के अनुरूप स्वयं को ढाल चुकी हैं. पुरुष के पास तीन औरतें हैं, एक पत्नी उमा, और दो प्रेयसियां-दामिनी और रेचल ,जो तलाकशुदा हैं. पुरुष को पत्नी की ‘साड़ी से रसोई की गंध’ आती है और प्रेमिका के शरीर से ‘परफ़्यूम’ की. कामना पुरुष की ही है और स्त्रियां अन्नपूर्णा नहीं, थाली में रखे हुए व्यंजन हैं, स्वयं को परोसती. दामिनी शादी को वेश्यावृत्ति बताती है जिसमें ‘स्त्री को आजन्म गुलामी करनी पड़ती है’,पर खुद क्या करती है? एक विवाहित आदमी की देह पर आइस क्यूब रगड़ते हुए कहती है, ‘अपनी वाइल्ड फैटेंसी पूरी कर लो. देह से ही मन का रास्ता जाता है.’ विवाहित आदमी कहता है ,  ‘तो क्या मैं तुम्हारी इस न जाने किस किस की जूठन बनी देह के पीछे था?’  शादी को वेश्यावृत्ति बताने वाले और अजनबियों के साथ यौनसंसर्ग करते ये नर-मादा क्या एक-दूसरे का सम्मान या एक-दूसरे से प्रेम कर पाते हैं?
इन्हीं लेखिका की ‘देह के पार’ कहानी में प्रौढ़ स्त्री नव्या अपनी बेटी को स्कूल छोड़ कर आने के बाद अपने से 10 वर्ष छोटे बेरोजगार युवक को खरीद लाती है. ‘इस साल यह उसकी चौथी नौकरी छूटी थी. ‘अब खाओगे क्या?’ ‘तुम हो न मेरी सेठानी’ कहते हुए उसने नव्या के पर्स में से 500 का नोट निकाल लिया जो नव्या को अच्छा नहीं लगा. युवक ने तीन तस्वीरें दिखाते हुए कहा ‘इनमें से एक तस्वीर चुनो मुझे इस साल शादी करनी पड़ेगी….’ मैं तो कहती हूं तीनों से कर लो, तुम तो हो ही कैसानोवा सौ को भी एक साथ संभाल लोगे.’… अय्याश अफसरों  की बूढ़ी-अधबूढ़ी सेठानियों को शरीर बेचने वाला युवक कहता है, ‘कोई अपना हुनर बेचता है कोई फन कोई अक्ल. मैं अपनी सुंदरता बेचता हूं.  इट्स दैट सिम्पल. बास. अगले हफ्ते दुबई जा रहा हूं, शेख़ साहब का मेहमान बन कर.’ जयश्री रॉय की अन्य अनेक कहानियों के अनेक पात्रों की तरह युवक भी विवाह को वेश्यावृत्ति मानता है. देह से ही मन का रास्ता जाता है, जयश्री रॉय के इस सिद्धांत के आधार पर उम्मीद की जानी चाहिए कि शायद युवक भी दुबई में शेख साहब की देह से ही शेख साहब के मन में दाखिल हो जाएगा.
जयश्री रॉय की कहानियों में से एक को दूसरी से अलग कर पाना कठिन है. एक-सा कथानक, एक-से संवाद ,एक-सी बनावटी भाषा यहां तक कि एक-से शीर्षक. उनके पात्र परस्पर देह संबंधी लंबी चर्चाएं करते हैं पर देह के पार नहीं पहुंच पाते. एक-दूसरे को खरीद कर दैहिक भूख पर विस्तृत विचार-विमर्श करने वालेे ये पात्र कहां के रहने वाले हैं? वे जो भाषा बोलते हैं वह कहां बोली जाती है? पुरुष वेश्या और पुरुष शरीर खरीदने वाली सेठानी क्या परस्पर जयशंकर प्रसाद की कामायनी या स्कन्दगुप्त वाली भाषा में बात करते होंगे?
नदी सीरीज में वरिष्ठ जया जादवानी भी शरीक हो गईं. उनकी ‘समंदर में सूखती नदी’ में ‘दोनों बच्चों के होस्टल चले जाने के बाद वे दोनों अकेले रह गए थे. अब उसे अपनी पत्नी की देह पका हुआ कद्दू लगती थी जिस पर वह अक्सर स्वयं को निष्प्राण लेटा हुआ पाता था…. उसे कुछ नया चाहिए था…. उसने सोचा था उसका सामना ऐसी लड़की से होगा जिसने अपनी देह को दुकान की तरह सजाया होगा. ‘प्रौढ़ पुरुष और युवा लड़की लांग ड्राइव पर जाते हैं और स्त्री-पुरुष संबंधों पर सात पृष्ठ लंबी चर्चा करते हैं, ‘तुम स्त्रियां ही ढिंढोरा पीटती हो कि तुम मात्र जिस्म नहीं हो. यही एक चीज ले कर खड़ी रहती हो तुम पुरुषों के सामने.’ यह कहानी शायद जादवानी ने कॉलगर्ल की गरीबी के बारे में लिखी है क्योंकि अंतिम पंक्ति में वह ‘बहुत जोर से रोना चाहती है पर आंसू कहीं घुट कर रह गए.’ (कथादेश, सितंबर 2012)
जयश्री रॉय की कहानी में एक प्रौढ़ स्त्री युवा पुरुष वेश्या को खरीदती है तो जया जादवानी की कहानी में एक प्रौढ़ पुरुष एक युवा स्त्री वेश्या को . स्त्री लेखन के नाम से परोसी गई यह सामग्री कोई अलग स्वीट डिश नहीं, अब इसे ही स्त्री लेखन का महाभोज माना जा रहा है. ये सच्ची कहानियां हैं या काल्पनिक? यह यथार्थ है या जादुई यथार्थ?
लेखिका मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास चाक की नायिका सारंग किशोरी बालिका के रूप में ‘सत्यार्थप्रकाश के बीच रखी ऋतुसंहार की पतली सी किताब पढ़ती है’ और बताती है ‘40 वर्ष की अवस्था के, गोरे रंग और लंबे कद के मुलायम मुख वाले शास्त्री जी की छवि बुरी तरह तंग किए थी. खादी के वस्त्र पहने हुए – काश महीन वस्त्र पहने होते. मैं भोग की इच्छा रखती हुई भी शास्त्री जी की बांहों में फिसल रही थी.’ (चाक,   पृ. 89-90). अधेड़ उम्र की भाभी रिश्ते के ननदोई की मालिश करती है, ‘ज्यादा ही सरमदार का घुसला बन रहा था, तैमद ऊपर को सरकावै ही न. लत्ता जितना ही ऊपर उठाऊं , उतना ही भींचता जाय तैमद को. मैंने कही, लुगाई है रे तू? जबरदस्ती तैमद खोल कर फेंक दिया बंजमारे का… मैंने ऐसी मालिश करी जैसे छः महीने का बालक हो और फिर खाट पर लोट गई उसके बरब्बर में. बोल दिया कि लल्लू कैलासी, भूल जाओ रिश्ते नाते… और फिर ये तो देह रहते के खेला हैं रे. पाप पुन्न मत सोचना’ (चाक, पृ.104). रंजीत की पत्नी सांरग श्रीधर के साथ आनंद में मग्न है,  ‘श्रीधर, अगर तुम्हारी आंखें इस देह को देख कर आनंद पाती हैं तो जी भर कर देखो मुझे. मेरी सुंदरता सार्थक हुई. भोग करने से तुम्हारे प्राण तृप्त हों तो आओ रात बाकी है अभी’ (पृ. 329 चाक)? जून, 2008 के संपादकीय में राजेंद्र यादव कहते हैं, ‘औरतों के पास उनकी देह है वरना योग्यता के नाम पर उनके पास रखा ही क्या है.’ मैत्रेयी पुष्पा की नायिका कहती है, ‘मेरे पास था ही क्या – हरी भरी देह.’ (चाक, पृ. 329 )
लेनिनवादी लेखिका रमणिका गुप्ता की एक अन्य कहानी में एक स्त्री एक आकर्षक अश्वेत पुरुष के शरीर का उपभोग करना चाहती है. वह रात को स्त्री के होटल के कमरे में आ पहुंचता है. आगे की गतिविधि का वर्णन लेखिका ने विस्तार से किया है. अजनबी अश्वेत पुरुष जाते वक्त एक गुड़िया छोड़ जाता है. गुड़िया शीर्षक कहानी में यह गुड़िया नायिका को संदूक में मिलती है.
जैसी गुड़िया रमणिका की नायिका को संदूक में मिली वैसी ही एक गुड़िया मैत्रेयी पुष्पा के भीतर भी है. वे किसी कार्यक्रम में आमंत्रित की गईं और गेस्ट हाउस में ठहराई गईं . लॉबी में उनके पीछे चल रहे राजेंद्र यादव कहीं ‘बुखार का ताप देखने के लिये उनकी कलाई न पकड़ लें’ इस डर से वे उनसे अधिक बात न बढ़ाकर जल्दी से अपने कमरे में चली गईं. मगर आधी रात को प्यास लगने पर रूमसर्विस से पानी न मंगा कर वे राजेंद्र यादव के कमरे का दरवाजा खटखटाती हैं और दरवाजा छूते समय उन्हें लगता है कि उन्होंने ‘राजेंद्र यादव को छू लिया’. (गुड़िया भीतर गुड़िया, पृ. 315-316 )
विचार का विषय है कि रिश्ते के ननदोई की लुंगी खींच कर उसे फुल बॉडी मसाज देने वाली अधेड़ भाभी के लल्लू कैलासी के साथ स्वच्छंद यौनाचार का विशद वर्णन करने वाली 1944 में जन्मी वयस्क लेखिका ने 2008 में एकाएक ‘गुड़िया’ बनकर लकड़ी के दरवाजे को छू कर राजेंद्र यादव कैसे समझा? यही नहीं, कैसे उन्होंने इस प्रसंग को इतना अधिक महत्वपूर्ण समझा कि उसे अपनी आत्मकथा का हिस्सा बनाया. यौन सक्रियता के वर्णन में सारे लेखकों को पीछे छोड़ कर इस क्षेत्र की पुरोधा के रूप में प्रतिष्ठा पा चुकी लेखिका मैत्रेयी पुष्पा संपादक के आगे चाइल्ड वुमन बन जाती हैं, उन्हें छूने को लालायित. क्यों?
बार्बी डॉल 1959 में बनाई गई थी. उसका चेहरा बच्चों जैसा था पर शरीर वयस्क. कम्युनिस्ट रूस ने इन गुड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि इन्हें बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया (द ऑबजर्वर, नवंबर 2002). लेकिन हमारे हिंदी के जनवादी मठाधीशों ने अनेक बार्बी डॉल्स तैयार कर ली हैं जो वयस्क हैं, पर जो अपने हाव-भाव शिशुवत रखती हैं. चाइल्ड वुमन पोर्नोग्राफर का सबसे हसीन ख्वाब होती है. बालबुद्धि वाली इठलाती, तुतलाती, पलकें झपकाती वयस्क शरीर वाली स्त्री. विडंबना यह है कि यह सारा खेल स्वयं को जनपक्षधर, प्रगतिशील, सेक्युलर बताने वालों के दरबार में चल रहा है, न कि रूढि़वादियों के बीच. ये डॉल्स वृद्धवृंद की फरमाइश पर रचनाएं प्रस्तुत करती हैं, और उनके सुझाव पर रचना में परिवर्तन, परिवर्द्धन करते हुए उसे मनोरंजन का खजाना बना देती हैं.
इसी बीच एक युवा लेखिका ज्योति कुमारी की किताब को अचानक बेस्टसेलर घोषित कर दिया गया. इस किताब में शरीफ लड़की नामक कहानी में पाठकों को चौंकाने के लिए लड़की के 14 वर्ष की हो जाने का विस्तृत विवरण है. ऐसा और इससे भी अधिक विस्तृत विवरण पाठक आज से 40 साल पहले कमला दास की आत्मकथा में पढ़ चुके थे अतः वे चौंके ही नहीं. जुगुप्सा जगाने में कोई कसर न रह जाए इसलिए उसके तत्काल बाद लड़की के प्रेम प्रसंग का वर्णन है- ‘लड़की वीर्य से लिथड़ी है…ऊपर से नीचे तक…आगे से पीछे तक…अंदर से बाहर तक उसका रोम रोम लिथड़ा है.’(हंस). यह किशोर-किशोरी के प्रेम का वर्णन है या किसी सूनामी का? क्षमा कीजिएगा, मेरी जिज्ञासा है कि आखिर एक किशोर बालक के पास कितने लीटर वीर्य होता है? देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जेएनयू के साम्यवादी प्रोफेसर नामवर सिंह ने इसकी प्रशंसा में ‘इसे अनदेखा करना मुमकिन नहीं’ शीर्षक आलेख लिखा और स्त्री लेखन के क्षेत्र की इस ज्योति की शान में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता उद्धृत की. युवा लेखिका की क्रांति न केवल कथ्य में है बल्कि शिल्प में भी है. प्रतिष्ठित साहित्यकार महेंद्र राजा जैन ने हिंदी के विराम चिह्नों के उपयोग के बारे में एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है. ज्योति कुमारी ने अर्धविराम, अल्पविराम और पूर्णविराम को तिलांजलि देकर एक नई परंपरा का सूत्रपात किया. वे हर वाक्यांश के बाद तीन बिंदु लगाती हैं. कहानी में लगभग 595 बार तीन बिंदुओं का प्रयोग है. लगभग 1,785 बिंदुओं वाली इस रचना को देखकर निर्णय करना कठिन हो जाता है यह गद्य लिखा गया है या बूंदों वाली रंगोली.
असली जीवन में जमीनी काम करते हुए हमने सैकड़ों किशोर- किशोरियों के प्रेम प्रसंग देखे हैं. इनका प्रेम टूटते भी देखा, टूटते दिलों की कहानी भी सुनी, उन्हें सांत्वना दी और आत्महत्या करने से रोक कर फिर से जीने के लिए प्रेरित भी किया. मेरा विश्वास है कि कोई भी 18 वर्ष के किशोर-किशोरी अपने पहले प्यार का वर्णन उन शब्दों में नहीं कर सकते जिनमें ज्योति कुमारी ने किया. असली प्रेमी आज भी एक-दूसरे को खून से चिट्ठी लिख रहे हैं, मां-बाप का घर छोड़ कर भाग रहे हैं, नदी में कूद कर एक साथ जान देने को तैयार हैं. मेरा अनुभव है कि आज भी प्रेम में पड़ने वाले लोग प्रेम ही करते हैं. ज्योति कुमारी की प्रशस्ति नामवर सिंह के हस्तलेख में इंटरनेट पर भी उपलब्ध है. जाहिर है, ऐसा विशद वर्णन वृद्धजनों की खातिर ही किया जाता है.
यह सब यूं ही नहीं हुआ है. हंस संप्रदाय के सतत और अथक प्रयासों से पोर्नोग्राफी का जो अश्लील अनुष्ठान हिंदी लेखन में जनवाद के नाम से आयोजित किया गया है, उसमें उसी प्रकार की स्त्रियां भी शामिल कर ली गई हैं. यह मर्दों द्वारा चयनित स्त्रियों का नृत्य है जिसमें वयोवृद्ध रमणिका गुप्ता, मैत्रेयी पुष्पा, प्रौढ़ गीताश्री और जयश्री रॉय आदि तथा युवा ज्योति कुमारी जैसी अनेक स्त्रियां शरीक हैं. यह सूची बड़ी लंबी है.
imgदरअसल विगत कई दशकों से हंस संप्रदाय सारी स्त्रियों को यौनकर्मी साबित करने पर तुला हुआ है. हंस के स्तंभकार अभय कुमार दुबे के शब्दों में, ‘लेकिन क्या सेक्सवर्क के जरिये भी स्त्री सबलीकरण की राह पर चल सकती है? यौनकर्म में समाजसेवा या सेक्सुअल थेरेपी के पहलू अंतर्निहित होने का तो तर्क बनता है.’ दुबे नारीवाद से असहमत हैं, ‘नारीवाद की बौद्धिक दुनिया सेक्सवर्क को दो हिस्सों में बांट देती है. वह वेश्या के सेक्सवर्क को बिना पारिश्रमिक लिए सेक्सवर्क कर रही औरतों के बरक्स रखते हुए विभिन्न तर्कों के आधार पर उसे निकृष्ट और स्त्री की आजादी के लिए नुकसान देह मान लेती है. चाहे वह प्रेमिका द्वारा किया गया हो या विवाहिता पत्नी द्वारा, मुफ्त में किया गया सेक्सवर्क उच्चतर, उदात्त और एक हद तक मुक्तिकारक बन जाता है…. नारीवाद उसमें ज्यादा से ज्यादा दैहिक संतुष्टि की दावेदारी और प्रेम के तहत किए जाने वाले सेक्स को और जोड़ देता है. लेकिन प्रेम और प्रजनन से रहित, पारिश्रमिक की अपेक्षा में किया गया सेक्सवर्क इस विचारधारा की निगाह में जिंसीकरण कहलाता है या यौन दासता का पर्याय मानकर उसे कलंकित कर दिया जाता है.’ (हंस, जुलाई 2008)
दुबे इस प्रकार स्पष्ट करते हैं कि ‘स्त्री हमेशा सेक्सवर्क ही करती है भले ही वह अपनी दैहिक संतुष्टि के लिए करे, प्रेम के तहत करे, प्रजनन के लिए करे, विवाहिता के रूप में करे, चाहे प्रेमिका के रूप में, वह मुफ्त का वर्क है.’  दुबे जी के इतना विस्तार से समझाने पर अब तक इतना तो पाठकगण समझ ही चुके होंगे कि सारी स्त्रियां यौनकर्मी हैं, नाचने-गाने की तरह यौनकला भी स्त्री सबलीकरण का माध्यम है और स्त्री यौनकर्म द्वारा समाज सेवा या सेक्स थेरेपी करती है. मेरा सवाल यह है कि क्या उसी गतिविधि में संलग्न उनके साथी, प्रेमी, पति भी यौनकर्मी ही हैं या कुछ और एक ही खेल का एक प्रतिभागी ग्राहक-उपभोक्ता और दूसरा प्रतिभागी वर्कर किस आधार पर बनता है? क्या दुबे के लोकतंत्र में स्त्री-पुरुष समकक्ष नहीं हो सकते? कैसे एक क्रेता बनता है, दूसरा क्रीत? (नवरीतिकालीन, कथादेश, सितंबर 2008). हिंदी की जिन प्रवृत्तियों का उल्लेख मैंने उस लेख में किया था, वे आज अपनी पूरी कुरूपता में सबके सामने खड़ी हैं. स्वस्थ साहचर्य में अक्षम व्यक्ति अक्सर ब्लू फिल्में बनाते-देखते, अश्लील एसएमएस भेजते और फोन पर अश्लील वार्तालाप करते हुए धरे-पकडे़ जाते रहे हैं. यह उसी तरह का मानसिक व्यभिचार है.
मर्दों के इस खेला में पुरुषों को आनंद देने के लिए औरतों की एक ऐसी पोर्न छवि गढ़ी गई है जो पूर्णतया यौनीकृत है. उसमें न चेतना है, न हृदय, न मन और न भावना. यह पोर्न की क्लासिकल सेडोमेसोचिस्ट छवि है. इन औरतों को यौनिक वस्तु होने, कष्ट पाने और अपमानित होने में आनंद आता है. गीताश्री की नायिका के वस्त्र कोई बलात्कारी नहीं उतारता, वह स्वयं ही निर्वस्त्र होकर न्यूड पार्टी में जाती है. उनकी दूसरी कहानी में युवा वेश्या का शोषण कोई पुरुष नहीं करता, कहानी की नायिका ही दूसरी स्त्री का शरीर खरीद कर अपने वृद्ध पिता के आगे परोसती है. बोल्ड मानी जाने वाली मैत्रेयी की नायिका सारंग अपनी
हरी-भरी देह परोसती है, मास्टर श्रीधर भोग लगाता है. यह समकक्षता की भाषा नहीं है.
अखबार पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा की खाप पंचायतों के मनमाने निर्णयों से भरे हैं जिनमें प्रेम करने के अपराध में युवक-युवतियों के नाक-कान काटे जा रहे हैं. उन्हें खुलेआम पेड़ों पर लटकाया जा रहा है. उन्हें बिरादरी के बाहर भी प्रेम करना मना है और गोत्र के भीतर भी. महिलाओं का 33 प्रतिशत आरक्षण ग्राम पंचायतों में है, समाज के निर्णय ले रही खाप पंचायतों में कहां?
मगर ग्रामीण जीवन की चर्चित चितेरी मैत्रेयी पुष्पा की ग्रामीण स्त्री कहती है, ‘चल लुच्ची, हम जाटिनी तो जेब में बिछिया धरे फिरती हैं. मन आया ताके पहर लिए.’ (चाक, पृ.104).  ऐसी स्वयंसिद्धा-स्वयंवरा स्त्रियों वाले गांव पश्चिमी उत्तर प्रदेश या बुंदेलखंड के किस जिले में हैं? घर पर एक पत्नी के रहते दूसरी स्त्री को ले आने पर पत्नियां त्रस्त हो कर पति की शिकायत करती देखी जाती हैं. शिकायत लिखवाने पर भारतीय दंड संहिता की एडल्ट्री के विरुद्ध बनी धारा 497 के अंतर्गत पुरुष दंडित होता है. मगर अपनी ससुराल में ही एक पति के रहते हुए रंजीत की युवा पत्नी सारंग स्कूल के मास्टर श्रीधर के साथ भोगविलास में मग्न है. पति के प्रतिरोध करने पर उसका ससुर अपने बेटे को समझाता है कि पति का काम पत्नी के ‘लहंगे की चैकीदारी करना नहीं.’ क्यों न खाप के निर्णयों से त्रस्त जोड़ों को मैत्रेयी पुष्पा वाले उसी जिले में भेज दिया जाए जहां पर यौनक्रांति का ऐसा बिगुल बज चुका है कि स्त्री-पुरुष स्वेच्छा से जब चाहे जितने चाहे उतने यौन साथी चुन सकते हैं?
स्त्री विमर्श के नाम पर चल रहे अश्लीलता के इस यज्ञ में हवि डालने पर स्त्रियों को भी उनका यज्ञफल पर्याप्त मात्रा में मिला है. दैनिक अखबार नवभारत टाइम्स में अक्टूबर, 2013 में एक खबर छपी. इसके मुताबिक लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पाठ्यक्रम में से महादेवी वर्मा की ‘श्रृंखला की कड़ियां’ हटा कर उसके स्थान पर मैत्रेयी पुष्पा की ‘चाक’ नहीं लगाई जा सकी इसलिए साम्यवादी विचारधारा वाले स्वैच्छिक संगठन ने विश्वविद्यालय की निंदा की है.
स्त्रीमुक्ति के नाम पर क्रांति के इस नए चलन में फेसबुक वाली नई तकनीक के भी दर्शन होते हैं. 75 वर्षीय लेखक प्रेमचन्द सहजवाला की फेसबुक वाली कहानी एक युवक की ओर से लिखी गई है, जो एक युवती के आमंत्रण पर उसके घर जाता है और उसके माता पिता के सामने ही युवती के साथ सहवास करके वापस अपने शहर लौट जाता है. गीताश्री ने भी एक युवा स्त्री के बारे में कहानी लिखी जिसमें नायिका अपने पार्टनर से उस समय रूठ जाती है जब वे दोनों बेड पर थे. ‘इंद्रजीत बिना किसी भूमिका के भड़क उठा था – ‘तुम्हें अपने बॉस के साथ अकेले बार में नहीं जाना चाहिए था. ….अर्पिता के मन में आया कह दे कि तुम्हारे पांव की जूती नहीं हूं. पति की तरह सामंत मत बनो पर कह न सकी…. अधखुली किताब की तरह अर्पिता को आतुर, अतृप्त और फड़फड़ाती छोड़ कर इंद्र जा चुका था.’ गीताश्री की नायिका सशक्त है. वह एक रात भी अकेली क्यों गुजारे? वह तत्काल ‘लैपटॉप लेकर बेड पर बैठ गई, फेसबुक ऑन किया. ‘क्या कर रही हो?’ .. ‘मर्द ढूंढ रही हूं, मिलेगा क्या?’.. ‘जोकिंग?’ .. ‘क्यों,  व्हाई जस्ट बिकॉज आई एम अ गर्ल इसलिए आपको जोक लग रहा है? बट आइ रियली नीड अ मैन फॉर टुनाइट.’ आमंत्रण देख कर कुछ बत्तियां इनविजिबिल हो गईं. ‘स्सालों, फट गई क्या? तुम औरतें ढूंढो, जाल फेंको तो ठीक, और कोई औरत वही करे तो जोक लगता है.’ आधी रात को आकाश नाम का एक अजनबी युवक आ भी पहुंचता है. लेखिका ने उन दोनों अजनबियों के ‘गोरिल्ला प्यार’ का पूरा वृत्तांत लिखा है- ‘देह देर तक एक दूसरे को मथती रही’ आदि. इसके बाद पार्टनर मोबाइल फोन से माफी मांगने लगता है और तब अजनबी के साथ क्रीड़ा कर चुकी नायिका का ‘गला रुंध गया. बमुश्किल उसने रुलाई रोकी.’ (हंस, सितंबर, 2012)
रुंधे गले से बमुश्किल रुलाई रोकते हुए गीताश्री ने बाजार में बेची जाती हुई औरतों की दशा पर भी पूरी एक किताब लिख डाली. इस किताब में एशिया में वेश्यावृत्ति मे झोंकी गई स्त्रियों की उपलब्धता तथा उनके रेट्स का वर्णन इस प्रकार किया गया है मानो किसी होटल के व्यंजनों का मेन्यू कार्ड हो. ‘औरत की बोली’  शीर्षक इस किताब के मुखपृष्ठ पर औरतों के आंसुओं की जगह औरतों की नंगी टांगें बनी हुई हैं. वृद्ध लेखक तथा प्रौढ़ लेखिका उत्तम पुरुष में 20 वर्ष के युवक-युवती बनकर फेसबुक के बहाने कितनी वीभत्स कल्पना को यथार्थ रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. बढ़ती उम्र के साथ लोग बेशर्म होते चले जाते हैं पर क्या इतने बेरहम भी हो जाते हैं ?
‘भावना, प्रेम, चाहत रहित दैहिक प्रक्रियाओं का चित्रण पोर्नोग्राफी का विषय है. अध्ययन बताते हैं कि पोर्न आख्यानों में दो ऐसे व्यक्तियों का चित्रण होता है जो बस अभी-अभी मिले हैं, इस संसर्ग के बाद फिर मिलेंगे भी नहीं. ऐसा संसर्ग व्यक्ति को और भी अकेला कर देता है. ऐसे चित्रण पढ़ने और देखने के बाद व्यक्ति जीवन में लंबे और स्थायी प्रेम संबंधों तथा पारिवारिक जीवन जीने में अक्षम हो जाता है. ऐसी छवियों से मुखातिब रहने वाले लोगों के मन में प्रेम, एकनिष्ठता, प्रतिबद्धता और चाहत की भावना खत्म हो जाती है.’ (डॉल्फ जिल्मैन)
चाहे रमणिका गुप्ता का नीली आंखों वाला आदमी हो या अश्वेत पुरुष, चाहे गीताश्री का गोरिल्ला प्यार का यौन साथी हो या एक पुत्री द्वारा पिता के लिए खरीदी गई युवती, चाहे जया जादवानी की स्त्री वेश्या हो या जयश्री रॉय का पुरुष वेश्या, चाहे सहजवाला के फेसबुक वाले युवक-युवती हों और चाहे मैत्रेयी पुष्पा के लल्लू कैलासी और दूर के रिश्ते की भौजाई.  ये सारे पात्र अजनबियों के साथ यौन संसर्ग करते हुए निरूपित किए गए हैं. ये केवल शरीर हैं, हृदयविहीन शरीर. ये कहानियां पोर्न आख्यान हैं.  इन संसर्गों के लिये सेक्स या सहवास संज्ञा का प्रयोग करना इन शब्दों का अपमान करना है.
यूनान में साहित्य और कला की देवी म्यूज कहलाती है. म्यूज कलाकारों की प्रेरणा मानी जाती है. वह पूजनीय थी. भारत में प्रेरणा के लिए नवाबों-शायरों ने तवायफों को गढ़ा. तहजीब की रक्षा के नाम पर वहां केवल गाना-बजाना ही नहीं था, नाज-नखरा और अदाएं उसका प्रमुख हिस्सा थीं. उनका काम था रिझाना. नपुंसक तथा निकम्मे नवाबों को रिझाने के लिए नियुक्त तवायफों और उत्तेजित करने वाले पुरुष हिचकारों के रोचक वृत्तांत हमारे लखनऊ के ही प्रतिष्ठित इतिहासकार योगेश प्रवीण की पुस्तकों में उपलब्ध हैं. समकक्षता के इस युग में स्त्रियों का उद्देश्य स्वयं को अभिव्यक्त करना है या चुके हुए संपादकों-समीक्षकों को रिझाना?
महात्मा गांधी के नाम पर स्थापित वर्धा विश्वविद्यालय में अपना छद्म साम्यवाद लाने के लिए कटिबद्ध उम्र के छठे दशक में विद्यमान कुलपति विभूति नारायण राय ने एक लेखिका को यौन केंद्रित गाली दी. उम्र के सातवें दशक में चल रहे रवीन्द्र कालिया ने गाली को नया ज्ञानोदय के सुपर बेवफाई अंक में छापा. उम्र के आठवें दशक में विद्यमान राजेंद्र यादव ने राय को कुलपति पद से हटाने की मांग को तालिबानी बताते हुए कहा, ‘दोस्तों, लोकतंत्र का भी कुछ सम्मान करना सीखो. आखिर हम इक्कीसवीं सदी में रह रहे हैं. यह शुद्ध मर्दवादी अहंकार कब तक हुंकारता रहेगा कि हम अपनी महिलाओं का अपमान नहीं सहेंगे.’ (हंस, सितंबर 2010 ). और उम्र के नवें दशक में विद्यमान साम्यवादी प्रोफेसर नामवर सिंह ने मौन सहमति दी.
मैत्रेयी पुष्पा रिटायर्ड पुरुष पुलिस अधिकारी से यौन केंद्रित गाली खाने के बाद भी उन्हीं के साथ चर्चारत दिखाई दीं (पाखी). उस छिछली चर्चा में क्षमाप्रार्थी होने के बजाय राय ने बड़ी निर्लज्जता से वरिष्ठ मैत्रेयी पुष्पा की तुलना अत्यंत फूहड़ लेखन करने वाली कनिष्ठ ज्योति कुमारी से कर दी. कोई सैद्धांतिक प्रतिरोध करने की जगह वे ‘ऊंऽऽ, आप लोग तो बड़े वैसे हैं’ की तर्ज पर कुनमुनाती नजर आईं. यह सब कैसे संभव हुआ? मैत्रेयी पुष्पा के आचार-विचार से तमाम असहमतियों के बावजूद मेरा मत है कि वे एक समर्थ लेखिका हैं. यदि यौन सक्रियता के वृत्तांतों से उनका सशक्तीकरण हो चुका होता तो क्या यह संभव था कि एक औसत से भी बदतर कहानी-उपन्यास लिखने वाला पुरुष इतनी वरिष्ठ लेखिका को इस तरह अपमानित कर दे और वह निरुत्तर रह जाए? यह मर्दों के खेला में नाचने के लिए तैयार होने का ही प्रतिफल है कि साहित्य में और समाज में लेखिकाएं मखौल का पात्र बन रही हैं.  इस बीच कुछ बेहतर लेखन भी अवश्य हुआ होगा मगर इस खेल में शामिल न होने के कारण वह अचर्चित रहा.
हिंदी लेखन अब तक भयंकर रूप से पितृसत्तात्मक है. अपने पुरुषवर्चस्ववादी स्वत्व की रक्षा करते हुए पिछली पीढ़ी के दंभी वयोवृद्ध पुरुषों ने पूरी तरह नकली औरतें गढ़ ली हैं. हर आयु वर्ग और आकार-प्रकार की ये बार्बी डॉल्ज हिंदी लेखन के बाजार में उपलब्ध हैं. इन्हें पूंजीवादी विदेशियों ने नहीं देसी जनवादियों ने तैयार किया है. चाबी से चलने वाली चीनी गुडि़यों की तरह इनके भीतर एक प्रोग्राम भरा है. चाबी लगाने पर ये वही बोलती हैं जो इनके निर्माताओं ने इनके भीतर भरा है. ये गुडि़यां बच्चों के लिए नहीं, हिंदी के प्रगतिशील वयोवृद्धवृंद की क्रीड़ा के लिए हैं.
रमणिका गुप्ता की ट्रेन में अजनबी सहयात्री से सहवास करने वाली स्त्री कहती है, ‘वे आंखें भी तो अपनी नीलिमा से मेरी देह को सहला ही तो रही हैं. कल जो दिन चढ़ेगा उसमें यह विलक्षण क्षण अलग से जुड़ जाएगा. इजाफा हो जाएगा तुम्हारे अनुभवों की फेहरिस्त में.’
इन चर्चित लेखिकाओं ने अनुभवों की फेहरिस्त में इजाफा करते हुए स्त्री-पुरुषों के वेश्याओं और अजनबियों के साथ यौन संसर्गों को अपना विषय बनाया है ताकि उन्हें मन, बुद्धि, चेतना, आत्मा और सारे मानवीय संबंधों से रहित शरीर के वर्णन का वितान मिल जाए. यह हिंदी में साहित्य के नाम पर चल रहा देह व्यापार है, जहां स्त्री, और अब तो पुरुष भी मांस का टुकड़ा हैं, बेचेहरा और हृदयहीन.
छद्म विमर्शकार बड़ी बेहयाई से पूछ रहे हैं कि क्या स्त्री को वह लिखने का अधिकार नहीं जो पुरुष लिख रहे हैं. मगर मूल प्रश्न इससे गंभीर है- आखिर लिखा क्या जा रहा है? स्त्री कौन-सा हक मांग रही है? मानव शरीर के अपमानित और विमानवीकृत चित्रण का हक? भावना विहीन देह वृत्तांत कहने का हक? यदि स्त्री तथा पुरुष के रचे में भिन्नता है ही नहीं तो स्त्री लेखन को अलग से रेखांकित क्यों किया जाए? प्रियंवद की ‘गंदी’ कहानी में नायक की भूतपूर्व सखी उसके घर ठहरी. वह कहती है- ‘बस मैं नहा लूं फिर बैठते हैं….अंदर से नल की धार की आवाज आ रही थी. दो कदम आगे बढ़ कर मैं झुका और गुसलखाने की दरार से आंख लगा दी. उसकी पीठ मेरी तरफ थी. लपटें फेंकते हुए दो अग्निकुंडों की तरह उसके नितंब चमक रहे थे’ (कथादेश, दिसंबर 2012). नायक एक प्रौढ़ पुरुष है, कोई किशोर बालक नहीं.
‘छुट्टी का दिन’ कहानी भी जयश्री रॉय ने पुरुष की ओर से उत्तम पुरुष में लिखी है,’ सच पूछो तो भारी नितंबों वाली स्त्री के पीछे पीछे रोज एकाध घंटे चलना मुझे बुरा भी नहीं लगता था. वह आगे आगे बतख की तरह कूल्हे मटकाती नाजो अदा से चलती थी.’ पुरुष घर आ कर ‘नौकरानी कांता बाई के नितंब निहारता.’ प्रौढ़ दंपति में से पति रोशनदान से झांकता हुआ पड़ोस की अमला भाभी को नहाते हुए देखता है, और प्रौढ़ पत्नी पड़ोस के त्रिपाठी भाई साहब को.
सहज स्वाभाविक संबंधों का विवरण साहित्य में कभी समस्याप्रद नहीं रहा. यह स्वस्थ साहचर्य का चित्रण है ही नहीं, यह तो ‘वाइकेरियस प्लेजर’ देने वाला ‘की-होल जर्नलिज्म’ है. गुदगुदी और सनसनी पैदा करने के लिए लेखक-लेखिका दरारों से झांक रहे हैं. पोर्नोग्राफर स्त्री को अपने ही शरीर का अवयवीकरण और अपमान करना सिखाता है. जयश्री रॉय पुरुष बन कर मर्दों के खेला में नाचती हुई भारी नितंबों वाली स्त्री के पीछे-पीछे चल रही हैं , नौकरानी कांता बाई के नितंब निहार रही हैं, गुसलखाने के रोशनदान से पड़ोस की अमला भाभी को बिना टाट का पर्दा डाले ही नहाते हुए झांक रही हैं और उपहास की भाषा में स्त्री अवयव वर्णन कर रही हैं. बहुत खूब.
इंटरनेट पर चैट करने वाले, मॉर्निंग वाक करने वाले मध्यवर्गीय प्रौढ़ दंपति ऐसे किस मुहल्ले में रहते थे जहां पड़ोसी त्रिपाठी दंपति आंगन में टाट का पर्दा डाल कर और कभी कभी बिना पर्दा डाले ही नहाता होगा? गीताश्री की कहानी का परिवार, जहां होमसर्विस देने वाली वेश्या तक इंग्लिश बोलती है, ऐसी किस सोसाइटी के टावर्स में रहता होगा जहां फर्स्ट फ्लोर की बाल्कनी में ‘बताऊं क्या-क्या गिरते हैं?..यूज्ड कॉन्डम और सैनिटरी नैपकिन्स’ ( ताप ). जुगुप्सा जगाने की प्रतियोगिता में एक -दूसरे को पछाड़ती इन लेखिकाओं की कहानियों में पात्रों और पृष्ठभूमि की विश्वसनीयता की अपेक्षा करना धरती पर चांद मांगने जैसा है.
दशकों के प्रयासों से यह समूह साहित्य की मुख्यधारा को पोर्न आख्यानों से बदल चुका है. ऐसे आख्यान अब अपवाद नहीं नियम हैं जिनमें यौन संसर्ग आकस्मिक और भावना विहीन है और स्त्री एक पूर्णतः यौनीकृत वस्तु.
जयश्री रॉय की देह, नदी और रात सीरीज की एक अन्य कहानी ‘समन्दर, बारिश और एक रात’ (कथादेश) में ‘फुलमून नाइटडांस में डॉनी अपनी बांहों में दो लड़कियों को एक साथ भींचे झूम रहा था. स्कारलेट 14 वर्ष की ब्राजीलियन लड़की थी जो पिछले तीन महीनों से अपनी प्रेमिका नीकीबार्नो के साथ एक कमरा लेकर रह रही थी, कभी कभी अपना स्वाद बदलने के लिए पुरुषों के साथ भी हो लेती थी. आज की रात उसका डेट अफ्रीकन युवक था.’ वह बलिष्ठ अफ्रीकन युवक के कंधे पर से उतर कर जेनी नामकी लड़की का जबरदस्ती यौन शोषण करती है. जहां सभी लोग स्वेच्छा से एक साथ अनेक अजनबियों के साथ यौन संसर्ग में लिप्त थे वहां सामूहिक बलात्कार की गुंजाइश कहां थी? मगर जयश्री रॉय ने जगह निकाल ली और सामूहिक बलात्कार की पूरी प्रक्रिया का वर्णन इतने विस्तार और इतनी तटस्थता से किया मानो ‘सामूहिक बलात्कार कैसे करें’ की दिशानिर्देशक हैंडबुक तैयार कर रही हों. न स्त्री की यातना का लेशमात्र वर्णन, न पुरुष की दरिन्दगी के प्रति क्षोभ. 75 वर्षीय वृद्ध परमानन्द श्रीवास्तव ने लेखिका की ऐसी कहानियों को कविता बताते हुए कसीदे काढ़े हैं (पाखी, दिसम्बर 2011) दरिंदगी के ऐसे बढ़ते अपराधों से समाज दहल रहा है मगर हिंदी लेखन में उत्सव चल रहा है.
इस परंपरा में ज्योति कुमारी की ‘अनझिप आंखें’ में पति द्वारा उत्पीड़ित नायिका के आगे उसका मामा यौन संसर्ग का प्रस्ताव रखता है फिर कार्यस्थल पर अखबार का संपादक. वह एक समाज सेविका से मदद मांगती है जो उसका हौसला बढ़ाती है, ‘चल कल मूवी चलते हैं.’ मूवी चल रही है. इंग्लिश बोल्ड लव स्टोरी. बड़ी तेजी से मेरे पैरों पर फिसलता हुआ एक हाथ बढ़ा चला आता है-‘अरे यह तो मैम का हाथ है.’ मैं हकला कर रह गई…’ मैम मैं वैसी लड़की नहीं हूं…मैम आइ एम नाट लेस्बियन.’..’ओह’, अचानक ऊपर आता मैम का हाथ रुक गया..’अच्छा तो तुम मर्दख़ोर हो’ और आंख दबा कर मुस्करा दीं.’ (हंस, अगस्त 2012)
जिस तरह हिंदी की मसाला फिल्मों में लंबे रेप सीन स्त्री पर होने वाले अत्याचार के प्रति करुणा जगाने के लिए नहीं मर्दों को रेप करने का वाइकेरियस प्लेजर देने के लिए रखे जाते हैं, उसी तरह इन कहानियों में स्त्री शोषण के सारे आयाम एक ही स्थान पर उपलब्ध करा दिए गए हैं. यह बूढ़े मर्दों की फरमाइश पर पेश किया गया ‘मेड टु ऑर्डर’ व्यंजन है, इसीलिए उनके द्वारा प्रकाशित, प्रशंसित, अनुशंसित और पुरस्कृत है. यहां मर्दवादी लेस्बियन होमोफोबिया भी मौजूद है. पितृभाव दिखाते हुए पुरानी पीढ़ी के घोर पुरुषवादी लेखकों ने पिछले दो तीन दशकों में स्त्री की जो विमानवीकृत छवि गढ़ी उसी के अनुरूप स्वयं को ढालती हुई ये गुड़ियाएं खुद को अपने शरीर से अलग करके लेखन में स्त्री शरीर परोस रही हैं.
गीताश्री की कहानी ताप इस प्रवृत्ति का शास्त्रीय उदाहरण है. उसमें मां बेटी से कहती है, ‘मैं ठंडा गोश्त हूं जिसे गर्म नहीं किया जा सकता. अपने पापा के लिए किसी लड़की का इंतजाम कर दे.’ यही बात उसका सहकर्मी विप्लव उससे अपने पिता के विषय में कहता है, ‘बुड्ढा बहुत सेक्सी है. मिलवाऊंगा तो आफत आ जाएगी. फिर न कहना कि देखो तेरे पिता ने क्या कर दिया. नॉट जोकिंग यार सीरियसली. मेरी मां अब बहुत बूढ़ी हो गई है. पिता अब भी फफन रहे हैं. सोचता हूं उनके लिए किसी लड़की-वड़की का इंतजाम कर दूं. विप्लव हंसते हुए बता रहा था. न कोई संकोच न कोई शर्मिंदगी.’ (इरावती पृ.126)
वृद्धा मां और युवा विप्लव दोनों ‘लड़की-वड़की का इंतजाम’ की भाषा बोलते हैं. युवा बेटा अपने बाप के लिए लड़की का इंतजाम करता है और युवा बेटी अपने बाप के लिए. वृद्ध पिता कहता है’, ‘पांच-पांच हज़ार में एक से एक मिलती हैं.’ मां ‘ठंडा गोश्त’ है, पिता अब भी ‘फफन रहे हैं’ और लड़कियां बिक रही हैं. एग्रेसिव मेन और सब्मिसिव वुमन की सेडोमेसोचिस्ट छवि को अब पुरुष नहीं स्त्री पुख्ता कर रही है. ‘स्त्री आकांक्षा के मानचित्र’ की चितेरी इन गीताश्री की शान में राजेंद्र यादव संपादकीय लिख चुके हैं. मर्दों के खेला में यही स्त्री विमर्श है. वृद्ध पुरुष यौन बुभुक्षित हैं और युवा स्त्रियां उनका आहार. औरतों ने भी यही छवि आत्मसात कर ली है.
स्त्री की इस आत्मछवि के निर्माण में उन पुरस्कारों का भी हाथ है जो ऐसा लेखन प्रोत्साहित करने के लिए दिए जाते रहे. पुरस्कारों का अर्थ केवल 51 या 51 लाख रुपये, एक शॉल तथा नारियल, जिसे कविगण मंच से श्रीफल कहते सुने जाते हैं, ही नहीं होता. इसका मतलब यह भी है कि उन समयों में वैसा लेखन समाज में उत्कृष्ट माना जा रहा था. यही लेखन पीढ़ी के लिए नजीर बनता है और भावी पीढ़ी उसका अनुसरण करती है. लोकप्रियता ही श्रेष्ठता का आधार नहीं होती. इसी कारण उत्कृष्ट कला फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है भले ही वे लोकप्रिय न भी हुई हों. हिंदी लेखन में कलावस्तु के स्थान पर पोर्न वस्तुओं का पुरस्कृत होना गहरी चिंता का विषय है.
आज सभी क्षेत्रों में स्त्रियां पुरुषों के बराबर खड़ी दिखाई दे रही हैं. आज वे केवल परीक्षाओं में सफल होकर डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापिका ही नहीं बन रहीं, राष्ट्रीय और निजी क्षेत्र के बैंकों की चेयरमैन कम मैनेजिंग डारेक्टर, कॉरपोरेट हाउसेज की मालकिन और अंतरिक्ष यात्री भी हैं. गांवों और शहरों में लाखों स्वास्थ्यकर्मी, एएनएम, आशा बहुएं, आंगनवाड़ी और प्राथमिक पाठशालाओं में काम करने वाली स्त्रियां खुद कमा रही हैं और घर चला रही हैं. अध्ययन बताते हैं कि एक तिहाई घरों की अकेली कमाने वाली सदस्य स्त्रियां हैं. परिवार के मुखिया के रूप में भले ही रजिस्टर में पुरुष का नाम लिखवा दिया जाए पर इन घरों में बच्चे अपने निखट्टू पिता की जगह कर्मठ मां की ही सत्ता मानते हैं.
खेद है कि हिंदी लेखन में सारी सत्ता ऐसे मर्दों के हाथ में है जिनके अपने निजी जीवन में स्त्रियों का न कोई आदर- सम्मान है न ही स्थान. वे प्रोफेसर हैं, संपादक और चयनकर्ता भी. इन मठाधीशों ने रमणिका गुप्ता जैसे लेखन को साहसिक बता कर अनुकरणीय बनाया और हिंदी लेखन में आलिंगन चुंबन द्वारा सत्ता हस्तांतरण की प्रणाली स्थापित होती चली गई. यह समकक्षता नहीं है. अवनतिशील वृद्धवृंद प्रगतिशीलता के प्रमाणपत्र बांट रहा है और  बार्बी डॉल्ज प्रमाणपत्र पाने को पंक्तिबद्ध खड़ी हैं.
इन हेय और उपेक्षणीय रचनाओं को उद्धृत करना मेरे लिए एक कष्टप्रद अनुभव रहा. मेरा उद्देश्य रचनाकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा करना नहीं बल्कि पाठकों के सामने स्त्री लेखन के नाम पर चल रही दुर्भावनापूर्ण पोर्न परंपरा की बानगी प्रस्तुत करना है. अंतिम निर्णय तो पाठक करेंगे और आने वाला समय.
जनवादियों द्वारा अतिनिंदित वेदों में एक प्रार्थना है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’. साहित्य को समाज के आगे मशाल ले कर चलते हुए समाज का पुरोधा होना चाहिए. आदिकाल, वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिककाल के बाद छद्म जनवादियों द्वारा निर्मित यह नवरीतिकाल का अंधायुग है. इस अंधे युग के ‘हर पल गहरे होते जाते अंधियारे’ में आबाल-वृद्ध (छोटी-बड़ी) बार्बी डॉल्ज से प्रगतिशीलता के रैंप पर कैटवॉक करवाई जा रही है- उजाले से अंधेरे की ओर.
जो पोर्न छवियां पूंजीवाद के बाजार में इंटरनेट पर क्रेडिट कार्ड द्वारा पेमेंट करके खरीदी जाती हैं, प्रगतिशील जनवादियों के बाजार में वे ही छवियां मुफ्त में उपलब्ध हैं. इस बाजार को ही हिंदी साहित्य बताया जा रहा है. यह बाजार युवाओं द्वारा नहीं मर्दों के वृद्धवृंद द्वारा संचालित, पोषित और नियंत्रित है. इसमें वृद्ध, प्रौढ़ और युवा बार्बी डॉल्ज नृत्य में अव्वल आने के लिए एक-दूसरे से होड़ ले रही हैं. यह स्त्री विमर्श के नाम पर चल रहा उन्मादग्रस्त आनंदनृत्य है .
धार्मिक रूढि़वाद के विरुद्ध स्त्रीमुक्ति की आवाज उठाते बहुत समय हो गया. जनवादियों का यह पोर्न अनुष्ठान उससे ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इसे प्रगतिशील स्त्री विमर्श के रूप में पेश किया जा रहा है. आज यह आवाज छद्म जनवाद के खिलाफ उठा रही हूं, इसलिए कि अब और चुप रह पाना मुमकिन नहीं और इसलिए भी कि मुझे पूरा यकीन है इस आवाज को जरूर सुना जाएगा.

bahujan mukti party


 विषय -एड0 महमूद प्राचा अधिवक्ता सुप्रीम र्कोट को जान से मारने की धमकी देने के विरोध में धरना।
महोदय,
    बेगुनाह मुसलमानों को कानूनी राहत दिलाने वाले एड0 महमूद प्राचा अधिवक्ता सुप्रीम र्कोट को जान से मारने की धमकी देने के विरोध में बहुजन मुक्ति पार्टी जिला इकाई वाराणसी द्वारा दिनांक 30 मार्च 2014 को राष्ट्रव्यापी एक दिवसीय धरना, प्रदर्षन के क्रम में लालबहादुर शास्त्री घाट, कचहरी पर अनुमति न मिलने के कारण निजी स्थान पर प्रातः 11 बजे से दिया गया। जिसमें जिला महासचिव डाॅ0 डी.के. गौतम ने कहा कि निर्दोष मुसलमानों को बेवजह फर्जी मुकदमें में फसाया जा रहा है और माननीय एड0 महमूद प्राचा जी ने कानूनी लड़ाई लड़ कर जिस तरह निर्दोष मुसलमानो को राहत दिलाई इससे घबराकर अण्डरवल्र्ड के लोगों द्वारा धमकी दिया जा रहा है जो गलत है जिसका हम विरोध करतें है। आगे बहुजन मुक्ति पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष मनीष सोनकर जी ने कहा कि इस प्रकार गैर संवैधानिक रुप से दी जाने वाली धमकी व इसमें सरकार का सहयोग न मिलने से देष की आम जनता की भावनाओ को काफी ठेस पहँुच रहा है जिसका खामियाजा 2014 के लोकसभा चुनाव में सरकार को भुगतना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मान्यवर हकीमूददीन अंसारी जी ने जेल में बन्द निर्दोष मूलनिवासी मुस्लिमों को कानूनी सहायता देने पर एड0 महमूद प्राचा अधिवक्ता सुप्रीम र्कोट को धन्यवाद दिया और कहा कि भारत में आये दिन निर्दोष मूलनिवासी मुस्लिमोंश्को बेवजह जेल में डाल दिया जाता है वर्षों तक चार्जसीट दाखिल नही होती और बाद में अदालत उन्हे बाईज्जत बरी कर देती है लेकिल जेल में बिताये दिनो से उनका भविष्य खत्म हो जाता है इसका जिम्मेदार कौन है? जांच एजेन्सी के खिलाफ कार्यवाही क्यों नही होती सरकार इसका जवाब दे। श्री एस. एम. मुषरिफ (महाराष्ट्र) की किताब ‘‘करकरे का कातिल कौन’’ पढने से मालूम हो जायेगा कि आई. बी. व अन्य जांच एजेन्सियो से आर. एस. एस. से क्या रिस्ता है। बहुजन मुक्ति पार्टी और भारत मुक्ति मोर्चा के सहयोग से एड0 महमूद प्राचा जी ने कई मुस्लिम नौजवानो की लडाई लडकर राहत दिलायी ऐसे व्यक्ति को अण्डरवल्र्ड के लोगों द्वारा धमकी दिये जाने पर सरकार की चुप्पी शंदेह के घेरे में है यदि सरकार ऐसे लोगो के खिलाफ कार्यवाही नही करती है तो बहुजन मुक्ति पार्टी पूरे देष में तहसील व ब्लाक स्तर तक जन आंदोलन करेगी। सभा में मुख्य रुप से विनय कुमार, धर्मेन्द्र, दुलारे, अरविन्द, अमर, आलोक, उमाषंकर, विक्की, विनोद, लक्ष्मण, विकाष जायसवाल, उषा यादव, मीनू गुप्ता, प्रेमा देवी इत्यादि लोग उपस्थित थे। तथा सभा का संचालन मा0 नियाज अंसारी संगठन सचिव बहुजन मुक्ति पार्टी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन मा0 अषरफ हुदा (षहर दक्षिणी विधान सभा अध्यक्ष) ने की।

1. समान शिक्षा, अनिवार्य शिक्षा और निःशुल्क शिक्षा के अन्तर्गत गुणवŸाा वाली शिक्षा सभी को प्राप्त हो। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा (च्तपउंतल म्कनबंजपवद), मिडिल स्कूल, और हाई स्कूल के बेहतरीन उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एक लाख गांवों में 5 वर्ष के अन्दर ही विद्यालय खोले जायेंगे। जिसकी परीक्षा पास करने के लिए प्रतिवर्ष प्रत्येक कक्षा का वार्षिक योग्यता परीक्षा देना अनिवार्य होगा।
2. भारत में सबको उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान खोला जायेगा। इसकी शाखाऐं प्रत्येक राज्यों में खोली जायेगी।
3. ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए 75 प्रतिशत सीटंे आरक्षित होंगी। जिसमंे 50 प्रतिशत सीटें एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनाॅरिटी के लिए होंगी। गुणवŸाा पूर्ण शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 10 प्रतिशत बजट खर्च किया जायेगा।
4. विश्व के 200 विश्वविद्यालयों के श्रेणी में भारत का एक भी विश्वविद्यालय उस स्तर का नहीं है। इसके लिए भारत मंे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय खोले जायेंगे, जिसमंे 50 प्रतिशत कोटा (एससी, एसटी, ओबीसी तथा मायनाॅरिटी) का होगा।
5. विश्वस्तरीय गुणवŸाा वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत से प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख और ज्यादा से ज्यादा 5 लाख विद्यार्थियों को विदेशों मंे भेजा जाएगा। यह योजना कक्षा 5 से ही लागू होगी। इसमंे 85 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी, ओबीसी तथा मायनाॅरिटी कम्युनिटी से
होंगे।
6. भारत के 83 करोड़ लोगों को आय (प्दबवउम) प्रतिदिन कम से कम 6 रूपये तथा अधिकतम 20 रूपये है। ऐसे 20 करोड़ लोगों को भुखमरी रेखा पर जीवन जीने वाला परिवार माना जायेगा और उनको सम्मान पूर्वक जीने के लिए ‘‘सम्मानित जीवन निर्वाह निधि’’ योजना के अन्तर्गत 11000/ रूपये (ग्यारह हजार रूपये) प्रतिमाह दिया जायेगा।
7. भारत के धार्मिक मंदिरों तथा धार्मिक स्थलों की सम्पŸिा का राष्ट्रीयकरण किया जाएगा अर्थात् मंदिरों की सम्पŸिा को राष्ट्रीय घोषित कर दिया जायेगा तथा उस सम्पŸिा को जन-कल्याण योजनाओं मंे खर्च किया जायेगा।
8. भारत के एससी, एसटी, ओबीसी और मायनाॅरिटी कम्युनिटी के छात्रों के लिए व्यवसायिक शिक्षा, सभी सरकारी एवं प्राईवेट स्कूलो मंे दी जाएगी। मेरिट वाले बच्चों को एडमिशन एवं शिक्षण के लिए पैसे की कमी ना पड़े, इसके लिए बैंक से लोन की गांरटी दी जायेगी।
9. भारत मंे कृषि विकास के लिए कृषि मंत्रालय को अलग से कृषि बजट पेश करने की व्यवस्था की जायेगी। जिस प्रकार रेल बजट पेश किया जाता है।
10. भारत में वर्षा के कारण प्रतिवर्ष होने वाले बाढ़ से बचाव के लिए सभी छोटी-बड़ी नदियों को जोड़कर बांध बनाये जायेगंे। जहाँ-जहाँ पानी की समस्या है, वहाँ पानी वितरित किया जायेगा। जिससे फसलों की सिंचाई होगी।
11. नदियों को जोड़ने का कार्य तुरन्त शुरू किया जायेगा ताकि पानी का उपयोग औद्योगिक विकास के लिए एवं औद्योगिकरण करने के लिए पानी का सदुपयोग किया जा सके।
12. भारत में कृषि कों एवं कृषि विकास के लिए, कृषि उत्पादन लागत मूल्य से 25 प्रतिशत ज्यादा मूल्य दिया जायेगा और केन्द्र सरकार इसकी गांरटी देगी। कृषि प्रधान देश में कृषि को महत्व दिया जायेगा।
13. भारत में अलग-अलग कृषि क्षेत्रों में अलग-अलग कृषि उत्पाद होते हैं, उन सभी मूल्यवान कृषि उत्पादों का औद्योगिक कार्यो के लिए उपयोग किया जायेगा। कृषि उत्पाद आधारित उद्योगों का मालिकाना हक किसानों का होगा।
आरक्षण
14. भारत की समस्त सार्वजनिक और निजी (च्तपअंजम) संस्थाआंे मंे शत-प्रतिशत (100 प्रतिशत) आरक्षण की व्यवस्था की जायेगी।
15. ओबीसी  की जाति आधारित गिनती करवाकर संख्या के आधार पर आरक्षण को लागू की जाएगी।
16. भारत के प्रति परिवार के एक ही व्यक्ति को सरकारी अथवा गैर सरकारी (प्राइवेट) संस्थाआंे में नौकरी मिलेगी। परिवार के बाकी योग्य लोगों को स्वयं रोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा एवं स्वयं रोजगार को प्रोत्साहन के लिए न्यूनतम 2 प्रतिशत ब्याज पर बैंको से कर्ज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
17. भारत के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के शिक्षित बेरोजगारों जैसे पोस्ट ग्रेजुएट  (स्नातकोŸार) को 5000/ रूपये, ग्रेजुएट (स्नातक) को 3000 रूपये, इन्टरमीडिएट (10$2) के लिए 2500/-रूपये तथा हाई स्कूल (मैटिक) पास बेरोजगारों को 2000/- रूपये प्रतिमाह बेरोजगारी भŸाा दिया जायेगा।
18. स्वयं रोजगार निर्माण एवं बेरोजगारी निर्मूलन के लिए केन्द्र सरकार में कैबिनेट स्तर का मंत्रालय खोला जायेगा।
19. भारत के सरकारी एवं प्राईवेट संस्थानों में आरक्षण में प्रमोशन संख्या के अनुपात में दिया जायेगा।  अनुसूचित जाति में भी आरक्षण के लिए वर्गीकरण (कैटेगराईजेशन) ।ए ठए ब् वर्ग बनाया जाएगा। जैसे । पिछड़ी अनुसूचित जाति, ठ अतिपिछड़ी अनुसूचित जाति, ब् अत्याधिक पिछड़ी अनुसूचित जाति मंे वर्गीकृत किया जायेगा।
20. अनु.जनजातियों मंे भी यही प्रक्रिया अपनायी जायेगी। ।ठब् जैसी । पिछड़ी अनु.जनजाति जाति ठ अति पिछड़ी अनु. जाति और ब् अत्याधिक पिछड़ी अनु.जनजाति।
21. वर्गीकरण की प्रक्रिया में ओबीसी को चार वर्गो ।ठब्क् में वर्गीकृत किया जायेगा, तथा रेनके कमीशन के सिफारिशांे को लागू किया जायेगा।
22. भारत में जिन प्रान्तांे मंे एन.टी-डी.एन.टी. के लोग रहते है, उन प्रान्तों में उन वर्गो में पढ़ने वाले छात्रों के लिए आवासीय विद्यालय खोले जायेगंे।
23. भारत मंे आरक्षण को लागू करने वाला केन्द्रीय आयोग (आरक्षण कार्यान्वयन आयोग) का गठन होगा। आयोग की शाखायंे प्रत्येक राज्य में खोली जायंेगी।
24. संवैधानिक वर्गीकृत समूहों के अन्तर्गत प्रत्येक समूह जैसे (अनु.जाति, अनु.जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियां, मायनाॅरिटी कम्युनिटी और सामान्य वर्ग) की अलग-अलग प्रतियोगिता की  परीक्षा ली जायेगी, उनके अपने-अपने समूह के अन्तर्गत ही मेरिट लिस्ट बनायी जायेगी। उसमें सर्वोŸाम अभ्यार्थियों को वर्गीकरण में जगह दी जायेगी। इससे बैक लाॅग की समस्या खत्म कर दी जायेगी।
25. आरक्षण में क्रीमिलेयर सम्पूर्ण भारत में पूरी तरह खत्म कर दिया जायेगा। यह व्यवस्था प्रत्येक क्षेत्रों में लागू होगी।
26. भारत के सभी सामाजिक समूह वर्गो में जैसे अनु.जाति को । और ठ दो भागों मंे विभाजित करके हिस्सेदारी का अनुपात 50ः50 का होगा। । वर्ग में अमीर और शिक्षित वर्ग को रखा जायेगा तथा ठ वर्ग में गरीबों और कम पढ़े-लिखे लोगांे को रखा जायेगा। यह प्रक्रिया सभी सामाजिक समूहों में लागू किया जायेगा अर्थात् एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनाॅरिटी कम्युनिटी मंे लागू किया जायेगा।
27. भारत की समस्त निजीकरण व्यवस्था की समीक्षा करने के लिए एक पूर्ण संवैधानिक आयोग का गठन किया जायेगा। जो तीन माह में समीक्षा रिपोर्ट तैयार करके संसद में पेश करेगा। इसे स्वतंत्रत रूप से संसद मंे बहस करायी जायेगी।
28. भारतीय संसद मंे भारत के पिछड़े वर्गो (अनु.जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और मायनाॅरिटी के उत्थान और विकास की चर्चा के लिए संसद के प्रत्येक सत्र मंे अलग-अलग समय सीमा का निर्धारण आरक्षित किया जायेगा।
29. भारत में पिछड़े वर्गो (अनु.जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, मायनाॅरिटी कम्युनिटी के विकास और उत्थान के लिए अलग-अलग स्वतंत्र मंत्रालय बनाये जायेंगे तथा इसके लिए प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रूपये का प्रावधान किया जायेगा।
30. भारत का विकास और भारत के लोगों के विकास के लिए, दो अलग-अलग संकल्पनाआंे को अलग-अलग रखा जायेगा तथा दोनों संकल्पनाओं का समान रूप से विकास किया जायेगा।
31. भारत मंे क्षेत्रीय अंसतुलित विकास जैसे किसी राज्य का ज्यादा विकास और किसी राज्य का कम विकास होता है, इसको दूर किया जायेगा। प्रत्येक राज्य का बराबर विकास कराने के लिए कैबिनेट स्तर का एक स्वतंत्र मंत्रालय बनाया जायेगा, जो राज्यों तथा राज्यांे के लोगांे के विकास के लिए कार्य करेगा।
32. सम्पूर्ण भारत में कम से कम 60 राज्यांे, तथ ज्यादा से ज्यादा 100 राज्यांे का निर्माण किया जायेगा। क्योंकि छोटे राज्यांे का विकास तेजी से हुआ है, इसी बात को ध्यान मंे रखकर छोटे राज्यांे का निर्माण करना होगा ताकि राज्यांे के लोगों का समुचित विकास हो सके।
33. महानगरों की बढ़ती आबादी को ध्यान मंे रखते हुए महानगरांे पर आबादी का बोझा ना बढ़ पाये, इसके लिए नये नगरों और महानगरांे का निर्माण किया जायेगा। इसके लिए 250 नयंे अतिरिक्त नगरांे का निर्माण किया जायेगा।
34. भारत का समायोजित विकास करने के लिए छोटी-छोटी प्रशासिनक इकाईयांे को बढ़ावा देने के लिए 1000 जिलों का गठन किया जायेगा।
35. भारत के छोटे-छोटे गाँवांे को समुचित विकास करने के लिए एक लाख गाँवों का तीव्र विकास किया जायेगा। जिसमंे सारे देश के 6 लाख गाँवांे के लोगांे को एक साथ, एक ही जगह पर सारी सुविधायंे उपलब्ध हो सकें।
36. भारत में लगभग 12 करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ी तथा टाट-पट्टियों की झोपड़ी बनाकर रहते हैं। उन झोपड़-पट्टी, बस्तियों को समाप्त करके उनके स्थान पर मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनायी जायेगी। इन्हीं बिल्डिंगों मंे प्रति परिवार को लगभग 600 वर्गफुट का एक फ्लैट दिया जायेगा। जिसमें सभी मूलभूत सुविधायें उपलब्ध होगी।
37. भारत के असंगठित क्षेत्रों के कुशल और अकुशल मजदूरों के हित में सख्त कानून बनाया जायेगा तथा श्रम कानूनों को ज्यादा मजबूत बनाया जायेगा।
38. भारत में चहुमुखी विकास के लिए तीव्र गति से औद्योगिकीकरण हो सके, इसके लिए स्पेशल औद्योगिक नीति बनायी जायेगी।
39. भारत में अन्याय और अत्याचार को रोकने के लिए कानून बनाकर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया जायेगा, जिससे पिछड़े वर्गो (एससी, एसटी, ओबीसी, एनडी, डीएनटी, वीजेएनटी) पर कोई व्यक्ति या संगठन अन्याय ना कर सकें।
40. अत्याचार निरोधक दल, स्वयं सेवी संस्थाआंे के माध्यम से विकसित किया जाएगा। स्वयं सेवी संस्थाएं उन्हीं लोगांे की होगी। अत्याचार पर रोक लगाने के लिए तथा लोगांे की सुरक्षा के लिए हथियार भी दिये जायेेगंे, इसके लिए कानून बनाये जायेगें।
फसाद
41. भारत में फसाद, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के नाम पर किसी भी समूह या जाति के निर्दोष व्यक्ति जिसने अपराध नहीं किया हो, ऐसे किसी भी व्यक्ति को जेल मंे डाला जाता है और बाद में सबूतों के अभाव मंे छोड़ दिया जाता है तो ऐसे भुक्त भोगी व्यक्ति को राहत राशि के नाम पर कम से कम 25 लाख रूपये दिये जायेंगे और ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जाँच मंे ठोस सबूत मिलते है तो ऐसे अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाई करते हुए निलम्बित कर दिया जायेगा तथा मामला कोर्ट मंे भेज दिया जायेगा।
अन्य राष्ट्रीय मुद्दे
42. भारत मंे भूमि अधिग्रहण कानून किसानों के अनुकूल बनायें जायेंगे। (ैमर््) के माध्यम से पूँजीपतियों द्वारा ली गयी किसानों की जमीनों का मालिकाना हक किसानों को दिया जायेगा। ली गयी जमीन उद्योगपति और पूँजीपति के पास ही रहेगी, लेकिन उस जमीन से होने वाले लाभ में किसानों की हिस्सेदारी निश्चित की जायेगी।
43. राईट टू एजूकेशन (त्ज्म्) इसे गुणवŸाा पूर्ण शिक्षा देने के लिए दुबारा संसद मंे पास किया जायेगा।
44. राईट टू इंर्फोमेशन (त्ज्प्) अर्थात सूचना का अधिकार कानून को और मजबूत किया जायेगा और इसे भी दुबारा संसद मंे पास किया जायेगा।
45. लोकपाल कानून में अभी भी बहुत कमियां-खामियां हैं, उसे दूर किया जायेगा और सभी राज्यांे मंे लोकायुक्त बनाये जायेंगे।
46. भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए पूर्ण प्रतिनिधत्व जनतंत्र लाया जायेगा और इससे ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म हो जायेगा। भ्रष्टाचार को उच्च स्तर पर खत्म करने से ही निचले स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा।
47. केन्द्र सरकार एवं सभी राज्य सरकारें तथा स्थानीय राज्य संस्थायंे एवं स्वायŸा संस्थायें और पब्लिक अंडरटेकिग संस्थाआंे मंे कार्य की गुणवŸाा के अनुसार समय सीमा में कार्य करने की अवधि निर्धारित किया जायेगी। पूर्ण  गणुवŸाा एवं समय सीमा में कार्य नहीं करने वाले कार्मिकांे की दोषी घोषित कर दण्डित किया जायेगा।
48. प्रत्येक भारतीय नागरिक को स्वास्थ्य बीमा योजना के अन्तर्गत लाया जायेगा ताकि गरीब से गरीब आदमी को अच्छी से अच्छी स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।
49. स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है, इन्हंे उपलब्ध कराया जायेगा।
50. सम्पूर्ण भारत मंे स्थायी प्रवृŸिा के कार्याे व नियमित कार्यो को जैसे स्वास्थ्य सफाई, शिक्षा, आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा एवं अन्य मूलभूत आवश्यक कार्यों निश्चित कार्यो को केन्द्र सरकार के अधीन रखा जायेगी। संविधान में ऐसी व्यवस्था की जायेगी कि भविष्य मंे उनका निजीकरण न हो सके।
51. जनप्रतिनिधियांे की ठेकेदारी खत्म की जायेगी। जैसे विधायक निधि, सांसद निधि इत्यादि। प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य होगा। जनप्रतिनिधियों का कार्य सिर्फ कानून बनाना और कानून की रक्षा करने के लिए सर्तक रहना होगा जिससे न्यायालयों के बाहरी हस्तक्षेप को रोका जा सके।
52. अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के लिए भारतीय संविधान की अनुसूची 5वीं एवं अनुसूची 6वीं को तुरन्त लागू किया जायेगा।
53. देशभर मंे सफाईकर्मी का काम करते वक्त सीवर लाईन मंे मृत्यु हो जाती है, ऐसे मृतक के परिवार को 1 करोड़ रूपये का प्रावधान केन्द्र सरकार करेगी जिसका संयुक्त बैंक एकाउन्ट सरकार और मृतक परिवार का होगा। जिसका प्रतिमाह ब्याज उस परिवार को दिया जायेगा।
54. प्रचार माध्यम मंे पिं्रट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया जो अंधश्रद्धा और कर्मकाण्ड फैलाने का काम करेगा, उसका लाईसेंस रद्द कर दिया जायेगा।
55. सरकार के द्वारा एससी, एसटी, ओबीसी और मायॅनोरिटी वर्ग के लिए पत्रकारिता एवं मीडिया टेªडिंग की व्यवस्था की जायेगी और इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा।
56. भारत की न्यायपालिका विशेषकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजांे की नियुक्ति, भारतीय प्रशासनिक सेवा की भाँति ही परीक्षा के माध्यम से करायी जायेगी। जिसमंे अनुपातिक प्रतिनिधित्व का कोटा होगा।

गुरुवार, 6 मार्च 2014

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को मिलेगा 11 हजार प्रतिमाह पेंशन-एड. जे.एस.कश्यप बहुजन मुकित पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यख एड.जे.एस.कश्यप ने कहा कि भारत में सम्पŸाि मनिदराें में जमा हो रही है और विदेशाें में काला धन के रूप में जमा हो रही है। जिसके कारण देश में 83 करोड़ लोग भुखमरी एवं अर्धभुखमरी के शिकार है। भारत का शासक वर्ग भारत के पूंजीपतियों को देश लूटने की खुली छूट दे रहा है। उन्हाेंने कहा है कि भारत गरीब नहीं है भारत आज भी सोने की चिडि़या हैं, पहले भी सोने की चिडि़या था। लेकिन शासक वर्ग की गलत नीतियों के कारण देश में लोग भुखमरी एवं महंगार्इ से परेशान है। उन्हाेंने कहा कि जहाँ एक तरफ जनता भुखमरी से मर रही है। वहीं देश में किसान आत्महत्या कर रहे है। और देश के मनिदरों में धन सड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि भारत का संविधान भारत के नागरिको को सम्मानित जीवन जीने का मौलिक अधिकार देता है। लेकिन भारत में 83 करोड़ लोग की प्रतिदिन प्रति व्यकित आय 6 रूपये से लेकर 20 रूपये है। ऐसे में 83 करोड़ लोगों को सम्मानित जीवन जीने के मौलिक अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि अभी तक की सरकारें भुखमरी खत्म करने के लिए ठोस योजना नहीं बना रही है। बलिक खाध सुरक्षा कानून पास कर केवल नेताआें एवं अधिकारियाें की जेब भरने तथा भ्रष्टाचार को और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हाेंने यह भी कहा कि जिन लोगाें ने आवश्यकता से अधिक धन देश के मनिदराें में, अपने घरों में छुपा रखा है या फिर विदेशों में जमा कर रखा है वे लोग भारतीय संविधान के विरोधी है। भारत तथा भारतवासियाें के विरोधी है। उन्हाेंने यह भी कहा कि समस्त धन को जब्त किया जायेगा। विदेशों में जमा काले धन को लाया जायेगा। मनिदरों का राष्ट्रीकरण किया जायेगा, तथा समस्त धन को देश के विकास में लगाया जायेगा। तथा हर गरीब परिवार को 11 हजार रूपये प्रतिमाह सम्मानित जीवन निर्वाह निधि के रूप में पेंशन दी जायेगी। वर्तमान में शासक वर्ग द्वारा शिक्षा की गुणवŸाा को खत्म करने के लिए जिन षडयत्राें का सहारा लिया जा रहा है। जिससे मूलनिवासी बहुजनाें में मेरिट का विकास नहीं, वर्तमान शासक वर्ग की इन सभी प्रकार की साजिशाें को खत्म करके, देश में सबके लिए समान शिक्षा प्रणाली को लागू किया जायेगा। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा, मिडिल स्कूल और हार्इस्कूल की सबसे अच्छी शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 1 लाख गाँवाें में 5 वर्ष के अन्दर ही विधालय खोल जायेगें। जिसके लिए प्रतिवर्ष परीक्षा पास करने के प्रत्येक कक्षा का वार्षिक परीक्षा देने अनिवार्य होगा। भारत में सबके लिए उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान खोला जायेगा। जिसकी शाखायें प्रत्येक राज्याें में खोली जायेंगी। तथा आम चुनाव में बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनाने पर शिक्षा के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत बजट अलग से दिया जायेगा। विश्व स्तरीय गुणवŸाा वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनने पर प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख तथा अधिकतम पाँच लाख विधार्थियाें के विदेश भेजा जायेगा यह योजना कक्षा 5 से ही लागू की जायेगी। इसमें 85 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी, ओबीसी तथा इनसे धर्मपविर्तित अल्पसंख्कों के होगें। आरक्षण में क्रिमिलेयर को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया जायेगा। भारत में फंसाद, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के नाम पर किसी समुदाय के नाम पर निर्दोष व्यकित जिसमें अपराध नहीं किया हो ऐसे व्यकित को भी जेल में डाला जाता है। बाद में सबूताें के अभाव में छोड़ दिया जाता है। तो ऐसे व्यकित को राहत राशित के तौर पर कम से कम 25 लाख रूपये दिये जायेगें। ऐसे पुलिस अधिकारियों के विरूद्ध जांच के ठोस सबूत मिलते है तो ऐसे अधिकारियों को सस्पेन्ड करके मुकदमा चलाया जायेगा। देश की आधी आबादी महिलाआें को समान अवसर देकर उनके विरूद्ध हो रह अत्याचारों को उन्मूलन शीघ्रता से किया जायेगा। देश में सभी वर्गो को न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व देने के लिए हार्इकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुकित के लिए आर्इ.जे.एस. आयोग बनाया जायेगा। उक्त बातें कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एड.जे.एस.कश्यप ने अपने अम्बेडकर नगर संसदीय क्षेत्र में आयी परिवर्तन संकल्प यात्रा के दौरान कहीं। यह पूछे जाने पर कि 83 करोड़ लोगाें को सम्मानित जीवन निर्वाह निधि 11 हजार रूपये प्रतिमाह देने की मांग भारत मुकित मोर्चा के लोग काफी समय से कर रहे है। उन्हाेंने कहा कि बहुजन मुकित पार्टी बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा के आन्दोलन से प्रेरणा लेकर बनायी गयी हैं। इसलिए बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा जिन मूलभूत मुददो की लड़ार्इ देश में लड़ रहा है। उस लड़ार्इ को बहुजन मुकित पार्टी संसद में लडे़गी और अवसर मिलते ही बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा की सभी मांगो को पूरा भी करेगी। अभी जिन लोगाें को भारत की जनता के विकास का पैसा मनिदराें में तथा अपनें घरों में या फिर विदेशाें में छुपा रखा है। वे सामूहिक नरसंहार के लिए जिम्मेवार है। क्याेंकि यदि वह पैसा देश के विकास के लिए लगाया गया होता तो देश में लाखों की संख्या में किसानों ने आत्महत्यायें नहीं होते। करोड़ाें की संख्या में बच्चे कुपोषण के शिकार नहीं होते देश दुनिया में महाशकित बना होता लेकिन देश में करोड़ों निर्दोष लोगाें की मौत के जिम्मेदार वहीं लोग है। जिन्हाेंने यह पैसा जमा कर रखा है। और देश के विकास में नहीं लगने दिया है। इसलिए ये बहुत बड़े अपराधी एवं देशद्रोही भी है। बहुजन मुकित पार्टी को अवसर मिलेगा तो ऐसे लोगाें का डी.एन.ए. टेस्ट करवाया जायेगा। और बहुजन मुकित पार्टी विदेशी और मूलनिवासियों की पहचान हेतु डी.एन.ए. टेस्ट के आधार पर डी.एन.ए. कार्ड जारी करेगी। उन्हाेंने कहा बहुजन मुकित पार्टी की सरकार आने पर देश में अमन, चैन कायम होगा देश में भ्रष्टाचार, भुखमरी, आतंकवाद, नक्सलवाद समाप्त किया जायेगा। देश को महाशकित, सोने की चिडि़या और विश्व गुरू बनाया जायेगा। उन्हाेंने यह भी कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब इस देश का मूलनिवासी शासक बना है। तो देश महाशकित बना है। इसलिए मूलनिवासी बहुजनों को देश को महाशकित बनाने के लिए देश की शासन सŸाा को अपने हाथ में लेने के लिए बहुजन मुकित पार्टी का साथ सहयोग करना होगा।

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को मिलेगा 11 हजार प्रतिमाह पेंशन-एड. जे.एस.कश्यप
बहुजन मुकित पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यख एड.जे.एस.कश्यप ने कहा कि भारत में सम्पŸाि मनिदराें में जमा हो रही है और विदेशाें में काला धन के रूप में जमा हो रही है। जिसके कारण देश में 83 करोड़ लोग भुखमरी एवं अर्धभुखमरी के शिकार है। भारत का शासक वर्ग भारत के पूंजीपतियों को देश लूटने की खुली छूट दे रहा है। उन्हाेंने कहा है कि भारत गरीब नहीं है भारत आज भी सोने की चिडि़या हैं, पहले भी सोने की चिडि़या था। लेकिन शासक वर्ग की गलत नीतियों के कारण देश में लोग भुखमरी एवं महंगार्इ से परेशान है। उन्हाेंने कहा कि जहाँ एक तरफ जनता भुखमरी से मर रही है। वहीं देश में किसान आत्महत्या कर रहे है। और देश के मनिदरों में धन सड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि भारत का संविधान भारत के नागरिको को सम्मानित जीवन जीने का मौलिक अधिकार देता है। लेकिन भारत में 83 करोड़ लोग की प्रतिदिन प्रति व्यकित आय 6 रूपये से लेकर 20 रूपये है। ऐसे में 83 करोड़ लोगों को सम्मानित जीवन जीने के मौलिक अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि अभी तक की सरकारें भुखमरी खत्म करने के लिए ठोस योजना नहीं बना रही है। बलिक खाध सुरक्षा कानून पास कर  केवल नेताआें एवं अधिकारियाें की जेब भरने तथा भ्रष्टाचार को और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हाेंने यह भी कहा कि जिन लोगाें ने आवश्यकता से अधिक धन देश के मनिदराें में, अपने घरों में छुपा रखा है या फिर विदेशों में जमा कर रखा है वे लोग भारतीय संविधान के विरोधी है। भारत तथा भारतवासियाें के विरोधी है। उन्हाेंने यह भी कहा कि समस्त धन को जब्त किया जायेगा। विदेशों में जमा काले धन को लाया जायेगा। मनिदरों का राष्ट्रीकरण किया जायेगा, तथा समस्त धन को देश के विकास में लगाया जायेगा। तथा हर गरीब परिवार को 11 हजार रूपये प्रतिमाह सम्मानित जीवन निर्वाह निधि के रूप में पेंशन दी जायेगी।
वर्तमान में शासक वर्ग द्वारा शिक्षा की गुणवŸाा को खत्म करने के लिए जिन षडयत्राें का सहारा लिया जा रहा है। जिससे मूलनिवासी बहुजनाें में मेरिट का विकास नहीं, वर्तमान शासक वर्ग की इन सभी प्रकार की साजिशाें को खत्म करके, देश में सबके लिए समान शिक्षा प्रणाली को लागू किया जायेगा। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा, मिडिल स्कूल और हार्इस्कूल की सबसे अच्छी शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 1 लाख गाँवाें में 5 वर्ष के अन्दर ही विधालय खोल जायेगें। जिसके लिए प्रतिवर्ष परीक्षा पास करने के प्रत्येक कक्षा का वार्षिक परीक्षा देने अनिवार्य होगा।
भारत में सबके लिए उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान खोला जायेगा। जिसकी शाखायें प्रत्येक राज्याें में खोली जायेंगी। तथा आम चुनाव में बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनाने पर शिक्षा के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत बजट अलग से दिया जायेगा।
विश्व स्तरीय गुणवŸाा वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनने पर प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख तथा अधिकतम पाँच लाख विधार्थियाें के विदेश भेजा जायेगा यह योजना कक्षा 5 से ही लागू की जायेगी। इसमें 85 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी, ओबीसी तथा इनसे धर्मपविर्तित अल्पसंख्कों के होगें।
आरक्षण में क्रिमिलेयर को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया जायेगा। भारत में फंसाद, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के नाम पर किसी समुदाय के नाम पर निर्दोष व्यकित जिसमें अपराध नहीं किया हो ऐसे व्यकित को भी जेल में डाला जाता है। बाद में सबूताें के अभाव में छोड़ दिया जाता है। तो ऐसे व्यकित को राहत राशित के तौर पर कम से कम 25 लाख रूपये  दिये जायेगें। ऐसे पुलिस अधिकारियों के विरूद्ध जांच के ठोस सबूत मिलते है तो ऐसे अधिकारियों को सस्पेन्ड करके मुकदमा चलाया जायेगा। देश की आधी आबादी महिलाआें को समान अवसर देकर उनके विरूद्ध हो रह अत्याचारों को उन्मूलन शीघ्रता से किया जायेगा।
देश में सभी वर्गो को न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व देने के लिए हार्इकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुकित के लिए आर्इ.जे.एस. आयोग बनाया जायेगा।
उक्त बातें कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एड.जे.एस.कश्यप ने अपने अम्बेडकर नगर संसदीय क्षेत्र में आयी परिवर्तन संकल्प यात्रा के दौरान कहीं। यह पूछे जाने पर कि 83 करोड़ लोगाें को सम्मानित जीवन निर्वाह निधि 11 हजार रूपये प्रतिमाह देने की मांग भारत मुकित मोर्चा के लोग काफी समय से कर रहे है। उन्हाेंने कहा कि बहुजन मुकित पार्टी बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा के आन्दोलन से प्रेरणा लेकर बनायी गयी हैं। इसलिए बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा जिन मूलभूत मुददो की लड़ार्इ देश में लड़ रहा है। उस लड़ार्इ को बहुजन मुकित पार्टी संसद में लडे़गी और अवसर मिलते ही बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा की सभी मांगो को पूरा भी करेगी।
अभी जिन लोगाें को भारत की जनता के विकास का पैसा मनिदराें में तथा अपनें घरों में या फिर विदेशाें में छुपा रखा है। वे सामूहिक नरसंहार के लिए जिम्मेवार है। क्याेंकि यदि वह पैसा देश के विकास के लिए लगाया गया होता तो देश में लाखों की संख्या में किसानों ने आत्महत्यायें नहीं होते। करोड़ाें की संख्या में बच्चे कुपोषण के शिकार नहीं होते देश दुनिया में महाशकित बना होता लेकिन देश में करोड़ों निर्दोष लोगाें की मौत के जिम्मेदार वहीं लोग है। जिन्हाेंने यह पैसा जमा कर रखा है। और देश के विकास में नहीं लगने दिया है। इसलिए ये बहुत बड़े अपराधी एवं देशद्रोही भी है।
बहुजन मुकित पार्टी को अवसर मिलेगा तो ऐसे लोगाें का डी.एन.ए. टेस्ट करवाया जायेगा। और बहुजन मुकित पार्टी विदेशी और मूलनिवासियों की पहचान हेतु डी.एन.ए. टेस्ट के आधार पर डी.एन.ए. कार्ड जारी करेगी। उन्हाेंने कहा बहुजन मुकित पार्टी की सरकार आने पर देश में अमन, चैन कायम होगा देश में भ्रष्टाचार, भुखमरी, आतंकवाद, नक्सलवाद समाप्त किया जायेगा। देश को महाशकित, सोने की चिडि़या और विश्व गुरू बनाया जायेगा। उन्हाेंने यह भी कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब इस देश का मूलनिवासी शासक बना है। तो देश महाशकित बना है। इसलिए मूलनिवासी बहुजनों को देश को महाशकित बनाने के लिए देश की शासन सŸाा को अपने हाथ में लेने के लिए बहुजन मुकित पार्टी का साथ सहयोग करना होगा।

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 गरीबी, भुखमरी का मूल कारण शासक वर्ग-किरन चौधरी
लालगंजदै.मू.समाचार
1. महिलाआें पर होने वाले अत्याचार के लिए कठोर कानून।
2. सीवर लार्इन में कार्य करते वक्त कर्मचारी की मौत पर एक करोड़ की सहयात राशि।
3. झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले 12 करोड़ लोगाें को स्थायी निवास की व्यवस्था।
4. बेरोजगारी का खात्मा।
5. भारत के सभी मनिदरों की सम्पŸाि का राष्ट्रीयकरण।
बहुजन मुकित पार्टी के द्वारा आयोजित एक जनसभा को संबोधित करती हुर्इ बीएमपी की प्रत्याशी किरन चौधरी ने कहा कि वर्तमान में मूलनिवासी बहुजन समाज गरीबी में जीने को मजबूर है। जिसके लिए सिर्फ ब्राह्राणी व्यवस्था ही दोषी है। देश में आज 83 करोड़ लोग भुखमरी का जीवन यापन कर रहे है। ऐसा इसलिए है क्याेंकि देश की तथाकथित आजादी से लेकर वर्तमान में देश की सŸाा पर ब्राह्राणवादियों का एकाधिकार होना है? वहीं देश की सŸाा पर ब्राह्राणवादियों का एकाधिकार होने के कारण जो योजनाएं तथा कानून बनाएँ जाते हैं। वह सब ब्राह्राणवादी के हित में बनाए जाते है। वहीं बीएमपी के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बीएमपी का मकसद एमपी और एम.एल.ए. बनाना नहीं है। बलिक अधिकार वंचित लोगाें को अधिकार दिलाना है। उन्हाेंने कहा जिस प्रकार चारपार्इ में चार पाए होते हैं। और यदि एक भी पाया कमजोर या टूट जाता हंै। तो पूरी चारपार्इ बेकार हो जाती है। उसी प्रकार हमारे देश का जो लोकतंत्र है वह भी चार पोलो (स्तम्भाें) पर खड़ा है (1). विधायिका (2) कार्यपालिका (3) न्यायपालिका तथा मीडिया। अगर इनमें से एक भी पोल कमजोर हो जाता है।  तो इसका असर पूरे लोकतंत्र पर पड़ता है। आज लोकतंत्र के चारों स्तम्भों पर ब्राह्राणवादियों का कब्जा है। जिसे इन ब्राह्राणावादियाें ने कमजोर कर दिया है, जिसके कारण आज समाज में दलाल-भड़वों का निर्माण हुआ है। इसी लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए ही बीएमपी का निर्माण हुआ है। बीएमपी द्वारा किए जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य-
1.आज देश में शासक वर्ग का वर्चस्व होने के कारण ही देश में महिलाओं के ऊपर अत्याचार हो रहे हंै। जिसमें बलात्कार, छेड़-छाड़, शरीर पर तेजाब डालना, दहेज न देने का ससुराल वालो द्वारा प्रताडि़त करना आदि बहुत सारी घटनाएँ अत्याचार महिलाओं पर हो रहा है जो ब्राह्राणवादी व्यवस्था की देन है। यदि बहुजन मुकित पार्टी की सरकार केन्द्र में आती है तो इन सब घटनाआें को रोकने के लिए तथा दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए कठोर कानून का निर्माण किया जाएगा। वही अत्याचार पर रोक लगाने के लिए तथा लोगों की सुरक्षा के लिए हथियार दिए जाएंगे इसके लिए भी कानून का निर्माण होना।
2. आज देशभर यदि कोर्इ देश को साफ सुथरा रखता है तो वह है सफार्इ कर्मचारी। वही सफार्इ कर्मचारी द्वारा सफार्इ का कार्य करते वक्त सीवर लार्इनाें में मृत्यु हो जाती है। परन्तु ब्राह्राणवादी सरकार द्वारा इनके परिवार के भरण पोषण हेतु कोर्इ आर्थिक सहायता नहीं प्रदान की जाती है। जिससे उस सफार्इ कर्मचारी का परिवार और भी दयनीय सिथत में चला जाता है। परन्तु बीएमपी द्वारा यदि कोर्इ सफार्इ कर्मचारी सफार्इ को कार्य करते वक्त यदि सीवर लार्इन में उसकी मृत्यु हो जाती है। तो ऐस में मृतक के परिवार को एक करोड़ रूपये का प्रावधान केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी जिसका संयुक्त बैंक अकाउन्ट सरकार और मृतक परिवार का होगा।
3. आज देश की यह सिथति है कि 12 करोड़ से भी ज्यादा लोग आज झुग्गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर है। इनके रहने की जहमत ब्राह्राणवादी सरकार ने आज तक नहीं उठार्इ परन्तु बहुजन मुकित पार्टी द्वारा ऐसे 12 करोड़ परिवाराें को 600 वर्ग फुट का एक फ्लैट मल्टी स्टोरी बिलिडंग में उपलब्ध करायी जाएगी।
देश की ब्राह्राणी व्यवस्था में बेरोजगारी का यह आलम है कि शिक्षित, बेरोजगार आज आत्महत्या करने तथा गलत रास्ताें पर चलने को मजबूर हो रहे हंै। बीएमपी की सरकार बनते ही सर्वप्रथम सार्वजनिक तथा निजी संस्थाआें में 100 प्रतिशत आरक्षण कर बेरोजगाराें को रोजगार देने का कार्य किया जाएगा। तथा स्व रोजगार प्रोत्साहन के लिए न्यूनतम 2 प्रतिशत ब्याज पर बैंको से कर्ज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी सरकार की होगी। वही कृषि को बढ़ावा देने के लिए कृषि  के लिए अलग बजट की व्यवस्था की जाएगी।
5. वहीं किरन चौधरी ने आगे बताते हुए कहा कि आज मूलनिवासियों से लूटा हुआ देश का आधे से ज्यादा धन भारत के धार्मिक मनिदराें में है जो ब्राह्राणवादियाें तथा पण्डे-पुजारियों द्वारा लूटकर मनिदरों में छुपा रखा है। बीएमपी की सरकार आते ही देश के सभी धार्मिक मनिदरों तथा धार्मिक स्थलों की सम्पŸाि को राष्ट्रीय सम्पŸाि घोषित की जाएगी तथा उस सम्पŸाि को जनकल्याण योजनाआें में खर्च किया जाएगा। आदि कर्इ मुददो के जनसभा में लोगों के सामने किरन चौधरी जी ने रखा। जैसे-जैसे किरन चौधरी जी के मुददे बढ़े रहे थे वैेसे-वैसे वहाँ पर लोगाें की संख्या बढ़ रही थी जिसमें हजारों लोगाें ने उपसिथति दर्ज करार्इ। तथा सभी ने अपनी प्रत्याशी को जितवाने का संकल्प लिया।





मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

भ्रष्टाचार और घोटालों का देश भारत

भ्रष्टाचार और घोटालों का देश भारत


corruption in indiaभ्रष्टाचार और घोटालों से लबरेज अगर हम भारत को भ्रष्टाचार और घोटालों का देश कहें तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। देश ने घोटालों की रफ़्तार में इतनी बढ़त जो हासिल कर लि है। ट्रांस्पैरेंसी इंटरनेशनल नामक संस्था द्वारा जारी वर्ष 2010 के भ्रष्टाचार सूचकांग में हम 87 स्थान पर पहुँच चुके हैं।
भारत घोटालों में सबसे अधिक तेजी से प्रगति करने वाला देश है - इसे भी सभी भ्रष्ट नेताओं को सार्वजानिक कर ही देना चाहिए ताकि नागरिक अपनी एक और उपलब्धि पर गर्वान्वित हो सके।
हालांकि भारत ने घोटालों में रिकॉर्ड कायम करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है, न जाने कितने ही घोटाले देश में हुए। उनमे से कुछ सामने आये तो बात दूर तक गई, वरना न जाने ऐसे कितने ही
घोटाले हुए होंगे और कितने ही होने वाले हैं, आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। आइए नजर डालते है हमारे देश के ऐसे ही कुछ बड़े घोटालों पर जिनके कारण भारत भ्रष्टाचार और घोटालों के लिए विश्व विख्यात हो चुका है।

भारत के प्रमुख आर्थिक घोटाले: 
बोफोर्स घोटाला- 64 करोड़ रुपये
यूरिया घोटाला- 133 करोड़ रुपये
चारा घोटाला- 950 करोड़ रुपये
शेयर बाजार घोटाला- 4000 करोड़ रुपये
सत्यम घोटाला- 7000 करोड़ रुपये
स्टैंप पेपर घोटाला- 43 हजार करोड़ रुपये
कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला- 70 हजार करोड़ रुपये
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 1 लाख 67 हजार करोड़ रुपये
अनाज घोटाला- 2 लाख करोड़ रुपए ;अनुमानितद्ध
कोयला खदान आवंटन घोटाला- 192 लाख करोड़ रुपये
राजनीति में घोटाला या घोटाले की राजनीति:
राजनीति में घोटाला या घोटाले की राजनीति कुछ भी कह लीजिए। भारतीय राजनीति में घोटाला शब्द तो एक अहम हिस्सा बन गया है, नेताओं का शायद ही कोई ऐसा काम हो जो बिना घोटाले और तीन तीगडम के बिना पूरा हो जाए। वैसे देखा जाए तो यह बात कोई नई नहीं है जब राजनेताओं द्वारा किये गये घोटाले जनता के सामने आ रहे हों, सभी को यह पता है कि हमारे कौन से नेता कितने बिकाऊ हैं और कितने इमानदार। दलाली की इस राजनीति में हर नेता बिकाऊ है बस उसकी कीमत अच्छी मिलनी चाहिए।
2005 में भारत में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा ही किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 62% से अधिक भारतवासियों को सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिये रिश्वत या ऊँचे दर्ज़े के प्रभाव का प्रयोग करना पड़ा। वर्ष 2008 में पेश की गयी इसी संस्था की रिपोर्ट ने बताया है कि भारत में लगभग 20 करोड़ की रिश्वत अलग-अलग लोकसेवकों को (जिसमें न्यायिक सेवा के लोग भी शामिल हैं) दी जाती है। उन्हीं का यह निष्कर्ष है कि भारत में पुलिस और कर एकत्र करने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है। आज यह कड़वा सच है कि किसी भी शहर के नगर निगम में रिश्वत दिये बगैर कोई मकान बनाने की अनुमति नहीं मिलती। इसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यह मानकर चलता है कि किसी भी सरकारी महकमे में पैसा दिये बगैर गाड़ी नहीं चलती।
किसी को निर्णय लेने का अधिकार मिलता है तो वह एक या दूसरे पक्ष में निर्णय ले सकता है। यह उसका विवेकाधिकार है और एक सफल लोकतन्त्र का लक्षण भी है। परन्तु जब यह विवेकाधिकार वस्तुपरक न होकर दूसरे कारणों के आधार पर इस्तेमाल किया जाता है तब यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ जाता है, अथवा इसे करने वाला व्यक्ति भ्रष्ट कहलाता है। किसी निर्णय को जब कोई शासकीय अधिकारी धन पर अथवा अन्य किसी लालच के कारण करता है तो वह भ्रष्टाचार कहलाता है।
भ्रष्टाचारियों ने लूटी देश की इज्जतः
यहां अगर हम यह कहते हैं कि सभी नेता चोर (भ्रष्ट) हैं तो सबको यह बात हजम नहीं होती है। लेकिन अधिकतर नेता भ्रष्टाचार में लिप्त है, क्योंकि लगभग जितने भी स्टींग आपरेशन और एकत्र आंकड़ों तो यही साबित करते हैं कि अधिकतर नेता बलात्कारी हैं- भ्रष्टाचारी हैं। बलात्कार यानी देश की प्रतिष्ठा और मान सम्मान के साथ बलात्कार करने वाले अपराधी। अभी तक देश में हुए जिनते भी घोटाले सामने आए हैं उसमें भी अधिकतर नेता ही शामिल हैं। आम जनता कहां हैं? वह तो सिर्फ बलात्कार की शिकार होती आ रही है। उसकी तो रोज इज्जत दुनिया के सामने निलाम रही है। यदि देश का हर नागरिक भारत है तो यकीनन उसकी इज्जत हर रोज लूट रही है, और हर नागरिक बलात्कार का शिकार है।
सही अर्थों में देखें तो घोटाले दर घोटाले कर हमारे देश में नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस नए कीर्तिमान की बदौलत ही हम दुनिया के सबसे भ्रष्टत्तम देशों में शुमार हो चुके हैं। दुनिया के सामने हमारी जो किरकिरी हुई है, वह अलग से। सवाल यह है कि भारत में घोटोलों का यह सिलसिला थमता क्यों नहीं? लेकिन, जो भी है हमारे सामने ही है। हमारे देश में सबसे अधिक भ्रष्टाचार में संलिप्त होने वाले लोग ये ही हैं, जो भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपने पदों पर नियुक्त हैं।
वह चाहे नौकरशाह हो, नेता हो या फिर खुद सरकार। सिर्फ न्यायपालिका की बदौलत हम भ्रष्टाचार पर कितना काबू पा सकेते हैं? भ्रष्टाचारिष्यों के दिन प्रतिदिन बढ़ते मनोबल और आए दिन नये घोटालों ने सोचने पर मजबूर कर दिया है। लोकतंत्र में सभी की स्वतंत्रता इसकी विशेषता है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार की छूट सबसे बड़ी और शर्मनाक पहचान बनती जा रही है। घोटालों में आयी इस रफ्तार के पीछे कई कारण दिखते हैं। सबसे पहला कारण नजर आता है वह है नैतिक पतन। हम दुनिया के विकसित देशों से हर चीज उधार ले रहे हैं, और इस उधार लेने की अंधी प्रवृति में हम वह चीजे भी ले रहे हैं जो हमारे पास उनसे कहीं अधिक समृद्ध है।
भारत शुरू से ही धर्म-नियमों पर चलने वाला देश है। देश के नागरिक जन्म से ही इस बात में विश्वास करने वाले रहे हैं कि चोरी पाप है, किसी का हक छीनना बुरी बात है। ईश्वर है और वह हमारी तरफ हर पल देख रहा है। हमारी कोई भी बुराई उससे छुपी नहीं है और हमारी सजा भी वह तय करता है। हमारी इस सोच से हमारा नैतिक बल तो बढ़ता ही, हमारा चरित्र - बल भी सभी देशों से अधिक रहा। जब तक यह मान्यता, यह सोच, यह परंपरा चलती रही तब तक हम दुनिया में सबसे अधिक सभ्य, संस्कृत, चरित्रवान नागरिक थे। लेकिन जैसे ही हम पर पश्चिमी आधुनीकरण का भूत सवार हुआ हमारी यह समृद्धशाली सोच, परंपरा कहीं पीछे छूटती चली गई।
आज यह हमसे इतनी दूर जा चुकी है कि हम पलटकर चाहने पर भी उसके नजदीक नहीं जा सकते। हम आधुनीकरण के दौर में इतने आगे निकल चुके हैं, निकलते जा रहे हैं कि हम पश्चिमी देशों से भी अधिक असभ्य होते जा रहे हैं। जितनी तेजी से हमारा भौतिक विकास हो रहा हैं, उससे भी कहीं अधिक तेजी से हम नैतिक भ्रष्टाचार की ओर अग्रसर हो रहे हैं। हमारे नेता, हमारे नौकरशाह भी इससे अछूत नहीं। अब भ्रष्टाचार अधिकार का रूप ले चुका है। यह कितनी हद तक बढ़ चुका है इसका अंदाजा देश के एक मजदूर से लेकर एक बड़े रसूख वाले व्यक्ति तक को है।
हर नागरिक या तो भ्रष्टाचार का शिकार है या फिर खुद भ्रष्टाचार में सहभागी बन चुका है। एक किसान को कर्ज लेने में भी घूस देना पड़ता है- इससे अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है? एक तो कर्ज, उसमें भी घूस? एक आम किसान ही, क्यों, देश का सबसे धनी व्यक्ति भी भ्रष्टाचार का कितना बड़ा शिकार है, इस बात से तो हम सभी अच्छे से वाकिफ हैं।
अब भ्रष्टाचार करते समय हममे यह भावना कभी नहीं आती, कि ऐसा करना गलत है, पाप है। अब तो इसे छुपाकर भी नहीं करना पड़ता। भ्रष्टाचार कुछ लोगों का व्यवसाय बना चुका है तो कुछ लोगों के ख्याति का जरिया। यानी, भ्रष्टाचार अब वह सबकुछ दे रहा है जो बड़ी मेहनत के बाद भी प्राप्त करना मुश्किल होता है। अब जनता भी जानती है कि चुनाव लड़ने वालों का मकसद क्या है। 'ये पब्लिक है सब जानती है’ लेकिन शायद, कुछ भी नहीं जानती। पब्लिक के जानने से भी आगे बहुत कुछ है जो ये भ्रष्ट नेता करते हैं, सरकारे करती हैं। यदि ऐसा नहीं है तो भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?
यदि एक लड़की का बलात्कार होने पर पूरे देश के नागरिकों का खून खौल उठता है, तो फिर पूरे देश की प्रतिष्टा के साथ बलात्कार करने वालों की सजा क्या है? और इन्हें सजा क्यों नहीं मिलती? आप कहेंगे मिलती है। लेकिन, क्या यह वैसी होती है जितना के सवा अरब लोगों के साथ बलात्कार करने की सजा होनी चाहिए? पूरी दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा खत्म हुई, हम शर्म से डूब मरे, क्योंकि यह भी तो बलात्कार जैसा ही है।
देश आए दिन होने वाले घोटालों की संख्या यूँ बढ़ रही है कि अब तो घाटाले याद भी नहीं रहते हैं। लेकिन क्या इस मामले में किसी को फांसी हुई? यदि फांसी मानवाधिकार के खिलाफ है, तो क्या किसी भ्रष्टाचारी की देश की नागरिकता समाप्त की गई? क्या ऐसे लोगों को देश का नागरिक बने रहने का अधिकार है, जो देश की ही इज्जद को निलाम कर ऐशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं? भारत की जनता तो शुरू से ही सहनशील रही है, लेकिन क्या इतना सबकुछ होने के बावजूद अब भी उसे सहना ही चाहिए? हमें लगता है कि सारी सीमाएं अब पार हो चुकी हैं। जनता को अपनी ताकत का अहसास करा ही देना चाहिए।
हम यह भी नहीं कहते कि जनता अहिंसक बन जाए, वह अहिंसायुक्त ही रहे, लेकिन अब कम से कम अपनी सहनशीलता तो तोड़ ही दे। आखिरकार कब तक हम अपनी इज्जत खुद ही लुटाता हुआ देखते रहेंगे। अपनों या अपनी लूटती इज्जत को बचाने के लिए हमें खड़ा होना ही पड़ेगा। जब तक जनता जागृत नहीं हो जाती, भ्रष्टाचारियों का मनोबल बढ़ता ही जाएगा और हमारी-जनता की इज्जत लूटती रहेगी।
भ्रष्टाचार भारत के महाशक्ति बनने में रोड़ा:
यह सच है कि भारत महाशक्ति बनने के करीब है परन्तु हम भ्रष्टाचार की वजह से इस से दूर होते जा रहे है। भारत के नेताओ को जब अपने फालतू के कामो से फुरसत मिले तब ही तो वो इस सम्बन्ध मे सोच सकते है उन लोगो को तो फ्री का पैसा मिलता रहे देश जाये भाड मे।भारत को महाशक्ति बनने मे जो रोडा है वो है नेता। युवाओ को इस के लिये इनके खिलाफ लडना पडेगाए आज देश को महाशक्ति बनाने के लिये एक महाक्रान्ति की जरुरत है, क्योकि बदलाव के लिये क्रान्ति की ही आवश्यकता होती है लेकिन इस बात का ध्यान रखना पडेगा की भारत के रशिया जैसे महाशक्तिशाली देश की तरह टुकडे न हो जायेए क्योंकि अपने को बचाने के लिये ये नेता कभी भी रुप बदल सकते है।
भ्रष्टाचार पिछड़ेपन का द्योतक है। भ्रष्टाचार का बोलबाला यह दर्शाता है कि जिसे जो करना है वह कुछ ले.देकर अपना काम चला लेता है, और लोगों को कानों-कान खबर तक नहीं होती। और अगर होती भी हो तो यहाँ हर व्यक्ति खरीदने और बिकने के लिए तैयार है। गवाहों का उलट जानाए जाँचों का अनन्तकाल तक चलते रहनाए सत्य को सामने न आने देना . ये सब एक पिछड़े समाज के अति दुरूखदायी पहलू हैं। अत: भ्रष्टाचार और असमानता की समस्याओं को रोकने में हम असफल हैं। यही हमारी महाशक्ति बनने में रोड़ा है।

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

बहुजन मुकित पार्टी की विशाल संकल्प यात्रा

बहुजन मुकित पार्टी की विशाल संकल्प यात्रा शुरू!
सभी पार्टियों के होश उड़े!
लखनऊदै.मू.समाचार
उŸार प्रदेश में बहुजन मुकित पार्टी की संकल्प यात्रा की शुरूआत हो गयी है। यह यात्रा पूरे प्रदेश के तीन स्थानों से शुरू होकर पूरे प्रदेश का भ्रमण और जगह-जगह जनसभाओं को संबोधित करते हुए भ्रमण करेगी। यह संकल्प यात्रा उŸार प्रदेश के हर मुख्यालय से होकर गुजरेगी जिसमें सभी जिम्मेदार साथी भागेदारी निभायेंगे। इस संकल्प यात्रा का मकसद पार्टी की जो नीतियां है उनको लोगों के बीच पहुँचाने का है। और जनमत तैयार करके मूलनिवासी बहुजन समाज के महापुरूष राष्ट्रपिता जोतिराव फुले, भारत रत्न डा.बाबा साहब अम्बेडकर जी के सपनों का भारत निर्माण करने के लिए उनकी विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए और मूलनिवायाें में योग्यता पैदा करना ही बहुजन मुकित पार्टी के संकल्प यात्रा का उíेश्य है।
बहुजन मुकित पार्टी की उíेश्य राजनैतिक नहीं है। बलिक शासन सŸाा पर एकाधिकार स्थापित  ब्राह्राणाें से मुकित का उíेश्य है। इस देश में अनके राजनैतिक पार्टियांं है मगर वह राजनैतिक पार्टी यह सब मिलकर इस देश के मूलनिवासी बहुजन समाज को गुमराह करने का काम करती है। इस राजनैतिक पार्टियाें के बहकावें में आकर हमारा मूलनिवासी समाज आज अनके समस्याआें से जूझ रहा है। इस समस्याआें के निदान और निर्वाण के लिए ही बहुजन मुकित पार्टी का निर्माण कि गया है।
बहुजन मुकित पार्टी ने प्रदेश के सभी मतदाताओं के हित में काम करने हेतु यह संकल्प यात्रा की शुरूआत किया है। जिससे प्रदेश के सभी मतदाताओं को यह जानकारी दी जा सके कि उनके साथ हो रही अन्याय, अत्याचार से निजाद दिलाने और मतदाताओं के अन्दर नेतृत्व का निर्माण   है।
बहुजन मुकित पार्टी की संकल्प यात्रा उŸार प्रदेश के तीन स्थानों  इलाहाबाद, वनारस , और गोरखपुर से शुरू हो रही है। जिसमें बहुजन मुकित पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एड.जे.एस.कश्यप गोरखपुर से इस संकल्प यात्रा की अध्यक्षता करते हुए पूरे प्रदेश में भ्रमण बनारस से इस संकल्प यात्रा की अध्यक्षता डा.एस.अकमल (राष्ट्रीय महासचिव, बहुजन मुकित पार्टी) करेंगे। और इलाहाबाद से बहुजन मुकित पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बाबूराम यादव जी करेगे।
यह संकल्प यात्रा पूरे प्रदेश का भ्रमण करते हुए 9 रामलीला मैदान नर्इ दिल्ली की महारैलीमें शामिल होगी। बहुजन मुकित पार्टी का इस देश में समता, स्वतंत्रता, बन्धुता और न्याय पर आधारित राष्ट्र का निर्माण करने का मकसद है इस मकसद को पूरा करने के लिए बहुजन मुकित पार्टी ने अपने घोषण पत्र में जारी करते हुए 54 सूत्रीय घोषणा पत्र कहा कि अगर हमारी सरकार आयेगी तो विश्वस्तरीय शिक्षा (गुणवŸाा युक्त) के लिए 85 मूलनिवासी के लोगों को प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख तथा ज्यादा से 5 लाख लोगाें को विदेश में शिक्षा के लिए भेजेगी।    बहुजन मुकित पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में यह भी कहा कि भारत में 83 करोड़ लोगों की आय प्रतिदिन कम से कम 6 रूपये तथा अधिकतम 20 रूपये है। ऐसे 20 करोड़ लोगों को भुखमरी रेखा पर जीवन जीने वाला परिवार माना जायेगा और उनको सम्मान पूर्वक जीने के लिए ''सम्मानित जीवन निर्वाह निधि योजना के अन्तर्गत 11000 रूपये (ग्यारह हजार रूपये) प्रतिमाह दिया जायेगा।
बहुजन मुकित पार्टी ने इस देश की अर्थव्यवस्था को बचारक रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले किसानाें के हित को ध्यान में रखकर अपने घोषणा पत्र में कहा है कि अगर बहुजन मुकित पार्टी की सरकार आती है तो भारत में कृषि विकास के लिए कृषि मंत्रालय को अलग से कृषि बजट पेश करने की व्यवस्था करेगी। और किसानों को उनके कृषि उत्पादन लागत मूल्य से 25 प्रतिशत ज्यादा मूल्य दिया जायेगा। और केन्द्र सरकार इसकी गारेण्टी लेगी। भारत के अलग-अलग  कृषि उत्पाद होेते है उन सभी मूल्यावान कृषि उत्पादों का औधोगिक कार्यो के लिए उपयोग किया जायेगा। कृषि उत्पाद आधारित उधोगों का मालिकाना हक किसानों का होगा। बहुजन मुकित पार्टी ने इस देश के सभी मूलनिवासी बहुजनाें को ध्यान में रखकर कार्य करने का वादा किया है।
बहुजन मुकित पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा.वी.एल.मातंग ने बताया कि जब बहुजन मुकित पार्टी की सरकार केन्द्र में आती है तो बहुजन मुकित पार्टी इस देश के मूलनिवासी समाज के हितों के लिए भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू किया जायेगा। और इस देश की सŸाा पर एक ही  वर्ग का अधिकार खत्म करके। मूलनिवासी बहुजन समाज के सभी वर्गो के वास्तविक प्रतिनिधित्व देकर भारत की सŸाा को चालने का काम करेगी।







गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

.देवदासी प्रथा


.देवदासी प्रथा एक घिनौना रूप जिसे धर्म के नाम पर सहमति प्राप्त ( सच का आईना )

धर्म के नाम पर महिलाओं के साथ यौनाचार होगा तो भारत जैसे मुल्क का भविष्य क्या होगा
देवदासी प्रथा भारत के दक्षिणी पश्चिम हिस्से में सदियों से चले आ रहे धार्मिक उन्माद की उपज है ! धर्म के नाम औरतों के साथ हो रहे यौनाचार का इतिहास बहुत पुराना है ! भारत के कुछ क्षेत्रों में धर्म और आस्था के नाम पर महिलाओं को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाता है ! महिलायें सामाजिक और पारिवारिक दवाब के चलते हुये इस धार्मिक कुरीत का हिस्सा बनने को मजबूर हो जाती हैं ! कुछ दिनों पहले वेलोर पर खबर कुछ ऐसी थी कि १२-१३ साल की बच्चियों  को देवदासी बनाया गया जिसके तहत इन किशोरियों का विवाह किसी मंदिर या देव से कर दिया जाता है ! घोषित रूप से ब्रह्मचार्य का पालन करना होता है !  पर विशेष अधिकार के तौर पर हिन्दू संस्कारो से इतर वैवाहिक संस्था को तार- तार कर के पुरुष सन्सर्ग भी कर सकती है !. इस प्रथा के तहत उन किशोरियों को अगले कुछ सालों तक देवियों और देवताओं की सेवा मे अपना जीवन व्यतीत करना होगा ! बालिकायें ये समझ रहीं थी कि समाज मे उनका दर्जा जरुर कुछ श्रेष्ठ हो गया है ! पर वो मासूम क्या जाने कि देवदासी प्रथा के तहत उनकी आज़ादी छिन गई है इस बात से अनजान ये बच्चियां सिर्फ इस बात से खुश हो रहीं थी कि अब उन्हें मंदिर की स्वामिनीऔर देख-रेख का अधिकार प्राप्त हो गया है ! इस स्थिती में रहने के दौरान वस्त्र और अच्छा खाना खाने को मिलेगा साथ ही उस गरीबी से भी छुटकारा जिनके साथ वह पैदा हुई थी ! कमर के उपरी हिस्से तक निर्वस्त्र इन बच्चियो के सर पर मटकियां रख कर जुलुस भी निकाला गया ! सरकार आँखें बंद करके सारे नज़ारे को नजरअंदाज करती रही ! क्या यही है हमारे देश का भविष्य ? भीड़ के आगे प्रतिनिधितित्व करती ये अल्लहड् किशोरियां जब परिपक्व होगी ! फिर बढती हुई उम्र और मातृत्व की लालसा जब चरम पर होगी ,तो ये यादें क्या उन्हें एक सम्मानित जीवन की नींव रखने देंगी इन कड़वी यादों के साथ कैसे जी पाएंगी ये दूसरी ओर एक खुशहाल जिंदगी न मिल पाना और समाज द्वारा नकार दिया जाना इनके क़दमों को क्या वेश्यावृति की ओर नहीं ले जाएगा ? क्या इसका जवाब है इन धर्म के ठेकेदारों के पास ? न चाहते हुए भी उन्हें वेश्यावृति के गहरे दलदल मे ढकेल दिया जाएगा !
जाहिरा तौर पर देखा जाए तो सभी धर्मों में मिलती जुलती धारणाएं जुड़ी हैं !
अगर हम अपने पीछे के इतिहास के आइने को देखें तो यह समझना बहुत ही आसान है कि छठी और दसवीं शत्ताब्दी मे इसका क्या स्वरुप था और बाद मे यह कितना विकृत हो गया था  प्रान्तीय राजाओं और सामंतो के लिए यह भोग विलासऔर समाज में अपनी प्रतिष्ठा की पहचान बन चुका था !
अब ईसाई धर्म के तहत ही देख लीजिए चर्च और कॉन्वेंटस में नन रहने लगीं जो चिरकुमारियों के नाम से जानी जाने लगीं ! कैथोलिक चर्च में भी सैक्स से सम्बंधित खेल के खुले-खुलासे होते आ रहे है ! दूर क्यों जाते है कुछ दिनों पहले ही एक नन ने पादरियों के व्यभिचार का सनसनीखेज खुलासा किया था ! नन ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि पादरी ननों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ! इससे जब वह गर्भवती हो जाती है ! तो बच्चों को गर्भ में ही मार देते है !
नन सिस्टर मैरी चांडी ने अपनी आत्मकथा `ननमा निरंजवले सवस्तिमें लिखा है कि मैंने वायनाड गिरजाघर में हाशिल अनुभवों को सहेजने की कोशिश की है ! चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता की वजाय वासना से भरी थी ! एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी ! मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचाई थी !उनके मुताबिक़ चर्च में नर्सें सैक्सी किताबें पढ़तीं  थी !
नन सिस्टर जेस्मी ने `आमेन : द ऑटोबायोग्राफीनामक किताब लिखकर धार्मिक पाखंडों का खुलासा किया था ! 
अब देखिये महात्मा बुद्द मठों में औरतों का प्रवेश वर्जित था ! उनका मत था कि औरतों की मौजूदगी व्यक्ति के मन को काम वासना के लिए आकर्षित करती है ! पर उनके महाप्रयास के बावजूद भी औरतों के लिए मठ के द्वार खुल गये ! बौद्ध धर्म की कारगुजारियां पूरी तरह तंत्र पर ठहर गई और तंत्र प्रणाली में औरतों की देह को मोक्ष का नाम देकर औरतों को छला जाने लगा !
हिंदू धर्म के तहत मंदिरों में देवदासी प्रथा का प्रचलन शुरू हो गया ! और यहीं बेबीलोन के मंदिरों में देवदासियां रहा करती थी ! जैन धर्म के संतों के साथ साध्वियां भी होती थी !  
देवदासी प्रथा के चलते ऊँची जाति की महिलायें मंदिरों में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा में लीन रहती थी ! और देवता खुश हो जाये इसलिए मंदिरों में नृत्य करतीं थी ! देवदासी प्रथा से जुड़ी महिलाओं के साथ मंदिर से जुड़े पुजारियों ने ये कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि शारीरिक सम्बन्ध बनाने से उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है ! धीरे-धीरे पुजारी इसे अपना अधिकार समझने लगे और सामाजिक रूप से किसी ने भी हस्तक्षेप नहीं किया ! सही मायने में कहा जाए तो वह किसी अन्य व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकती ! सभी पुरुषों में देवी-देवता का अक्श मान उसकी इच्छा पूर्ति करती हैं !
इस कुप्रथा को सबसे ज्यादा बढावा देने वाले (चोल वंश के राजा ) थे ! सदियां गुजर गई फिर भी ये प्रथा ज्यों की त्यों चली आ रही हैकुछ भी ना बदला अगर बदले तो सिर्फ हमारे बाहरी आवरण जो दिखावे की भेंट चढ़ कर  इस कुप्रथा की जड़ों को इतनी मजबूत और गहरी कर रहे है कि वो इन बच्चियों के सुनहरे वर्तमान और भविष्य पर भारी पड़ रहे हैं ! प्रशासन को कोई खबर नहीं है ! यह शुद्ध रूप से धर्मक्षेत्र की वेश्यावृत्ति है,जिसे धार्मिक स्वीकृति हासिल है इतिहास गवाह है कि राजा-महाराजाओं ने अपने महलों में देवदासियों को रखने का चलन शुरू किया था ! मुग़ल-काल में जब देवदासियों की संख्या जरुरत से ज्यादा बढ़ गई तो देवदासियों के पालन पोषण में कठिनाई आने के कारण उन्हें सार्वजानिक सम्पत्ति बना दिया गया!
विचार करने की बात ये है कि आंध्र-प्रदेश के 14 और कर्नाटक के 10
जिलों में ये प्रथा बदस्तूर अभी भी जारी है ! खबर है कि उड़ीसा के पुरी मंदिर में एक देवदासी है ! लेकिन आंध्र-प्रदेश ने 16,624 देवदासियां का आंकड़ा पेश किया ! जब महिला आयोग ने देवदासियों के लिए भत्ते का एलान किया ! तब आयोग को 8793 आवेदन मिले !
जिसमें से 2479 को भत्ता दिया गया ! बाकी 6314 कि पात्रता सही नहीं थी !
यहाँ पर में ये बताना चाहूंगी कि हिंदू धर्म में देवदासियां ऐसी स्त्रियों को कहते हैं जिनका विवाह मंदिर या अन्य किसी भी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है ! इनका काम नृत्य संगीत सीखना और मंदिरों की देखभाल करना होता है ! समाज में इन्हें एक उच्च दर्जा प्राप्त होता है ! 
परम्परागत रूप से ब्रह्मचारी होना और साथ – साथ पुरुषों से सम्भोग का अधिकार भी होना ये एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है ! दक्षिण भारत में इसका प्रचलन मुख्य रूप से था !
अब देखिये यहाँ सवाल ये उठता है कि अगर कोई मौत हो जाती है तो गाजे -बाजे के साथ मौत का जनाजा निकलता है ! और लोगो को खबर हो जाती  हैपर यहां तो गाजे-बाजे के साथ इन बच्चियों के भविष्य का तमाशा निकाला जाता है ! सदियो से चली आ रही परम्परा का अब समाप्त होना बहुत ही आवश्यक है ! इस प्रथा के समाप्त होने से कहीं ज्यादा उन बच्चियों के भविष्य की नींव का मजबूत होना बहुत आवश्यक है ! क्योंकि उनके ऊपर हमारे भारत का भविष्य हैउनके जैसे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरनी बहुत जरुरी है ! देखा जाये तो बीसवीं सदी में देवदासियों कि स्थिती में कुछ सुधार आया ! पेरियार जैसे कई नेताओं ने इस प्रथा को समाप्त करने की भरसक कोशिश की ! देवदासी प्रथा हमारी संस्कृति पर एक काला दाग है ! ये प्रथा हमारे इतिहास का वो काला पन्ना है जिसे अब समाप्त होना चाहिए ! आज के युग में इसका कोई औचित्य नहीं है ! देवदासी की परम्परा हमारे समाज का एक घृणित चेहरा है ! इसपर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए ! सरकार को चाहिए कि इस विषय को गंभीरता से लें और हमारे देश की कानून व्यवस्था के तहत कोई ठोस कदम उठाए जिससे न केवल इस कुप्रथा का उन्मूलन हो बल्कि देवदासियों और उनके बच्चों को भी पुनर्वासित किया जा सके ताकि वे इस कुप्रथा की गिरफ्त से बाहर आयें !
                  ...सुनीता दोहरे .....

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

देवदासी प्रथा

देवदासी प्रथा

http://www.mynews.in/merikhabar/News/_N34497.html

भगवान जैसे निर्जीव चीज की सेवा करने के नाम पर पुजारियों और मठाधिशों की सेवा के लिए शुरू की गई ‘देवदासी प्रथा’ घोषित रूप से भले ही समाप्त हो गई हो, लेकिन देवदासियां आज भी हैं। इस बात को बल हाल ही में रितेश शर्मा की एक डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘द होली वाइव्स’ से मिला है। दिल्ली में प्रदर्शित की गई इस फिल्म में देवदासी प्रथा जैसी उस कुरीति पर सवाल उठाए गए, जिस पर मेनस्ट्रीम मीडिया में आजकल मुश्किल से ही कोई बहस होती है। यह फिल्म बताती है किस तरह इस दौर में जहां महिला अधिकारों को लेकर हल्ला मचाया गया, घरेलू हिंसा विरोधी कानून बने और महिला अधिकारों पर कई बहसें हुईं, बावजूद इसके कर्नाटक, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कई इलाके ऐसे हैं, जहां इन कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। वह भी धर्म के नाम पर और पूरी तरह सार्वजनिक तौर पर।

अपनी फिल्म के निर्माण के दौरान रितेश उन इलाकों में गए, जहां महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाता है और कई बार बलात्कार तक का शिकार होना पड़ता है। लेकिन, जीविकोपार्जन और सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर हैं। अपने प्रारंभिक दौर में देवदासी प्रथा के अंतर्गत ऊंची जाति की महिलाएं जो पढ़ी-लिखी और विदुषी हुआ करती थीं, मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं और देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं। समय ने करवट ली और इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है। धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकार्यता भी मिल गई। उसके बाद राजाओं ने अपने महलों में देवदासियां रखने का चलन शुरू किया। मुगल काल में, जबकि राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गईं।

आज भी कहीं वैसवी, कहीं जोगिनी, कहीं माथमा तो कहीं वेदिनी नाम से देवदासी प्रथा देश के कई हिस्सों में कायम है। कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों में यह प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। देवदासी प्रथा को लेकर कई गैर-सरकारी संगठन अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं। इन संगठनों का मानना है कि अगर यह प्रथा आज भी बदस्तूर जारी है, तो इसकी मुख्य वजह इस कार्य में लगी महिलाओं की सामाजिक स्वीकार्यता है। इससे बड़ी समस्या इनके बच्चों का भविष्य है। ये ऐसे बच्चे हैं, जिनकी मां तो ये देवदासियां हैं, लेकिन जिनके पिता का कोई पता नहीं है। ये तमाम समस्याएं उठाने वाली रितेश की इस फिल्म को मानवाधिकारों के हनन का ताजा और वीभत्स चित्रण मानते हुए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शित किया जा रहा है। रितेश हालांकि मानते हैं कि फिल्म के प्रदर्शन से ज्यादा जरूरी है कि इस विषय पर हमारे देश की कानून व्यवस्था कोई ठोस कदम उठाए, जिससे न केवल इस कुप्रथा का उन्मूलन हो, बल्कि ऐसी महिलाओं और उनके बच्चों को भी पुनर्वासित किया जा सके, जो इस कुप्रथा की गिरफ्त में हैं।

देवदासी हिन्दू धर्म में ऐसी स्त्रियों को कहते हैं, जिनका विवाह मन्दिर या अन्य किसी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है। समाज में उन्हें उच्च स्थान प्राप्त होता है और उनका काम मंदिरों की देखभाल तथा नृत्य तथा संगीत सीखना होता है। परंपरागत रूप से वे ब्रह्मचारी होती हैं, पर अब उन्हे पुरुषों से संभोग का अधिकार भी रहता है। यह एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है। इसका प्रचलन दक्षिण भारत में प्रधान रूप से था। बीसवीं सदी में देवदासियों की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। पेरियार तथा अन्य नेताओं ने देवदासी प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की। कुछ लोगों ने अंग्रेजों के इस विचार का विरोध किया कि देवदासियों की स्थिति वेश्याओं की तरह होती है।

कुछ दिनों पहले मैंने किसी न्यूज़ चैनल पर वेल्‍लोर की खबर चलते देखी। खबर कुछ ऐसी थी कि 12-13 साल की बच्चियों को देवदासी चुना गया और उन्हें अगले कुछ सालों तक देव और देवियों यानी भगवान की सेवा में अपना जीवन व्यतित करना है। समाज में इन बालिकाओं का दर्जा जरुर कुछ श्रेष्ठ हो जायेगा, पर देवदासी प्रथा के तहत उनकी आज़ादी छिन चुकी है, इस बात से अनजान ये बच्चियां सिर्फ इस बात से खुश थीं कि अब उन्हें मंदिर की स्वामिनी का दर्जा और देखरेख का अधिकार प्राप्त हो गया है। वहां रहने के दौरान वस्त्र और अच्छा खाना खाने को मिलेगा, साथ ही उस गरीबी से भी छुटकारा भी मिलेगा, जिसके साथ वह पैदा हुई हैं। कमर के उपरी हिस्से तक निर्वस्त्र इन बच्चियों के सर पर मटकियां रख कर जुलुस भी निकाला गया। भीड़ का नेतृत्‍व करती इन किशोरियों का बालमन जब परिपक्व होगा, बढ़ती उम्र और मातृत्व की लालसा चरम पर होगी और ये यादें साथ होंगी, तो क्या वो एक सम्मानित जीवन की नीव रख पाएंगी? कैसे जी पाएंगी वो इन कड़वी यादों के साथ? दूसरी ओर एक खुशहाल जिंदगी न मिल पाने पर, समाज द्वारा नकार दिए जाने पर क्या वेश्यावृति की ओर इनके कदम नहीं मुडेंगे? न चाहते हुए भी उन्हें वेश्यावृति के गहरे दलदल मे ढकेल दिया जाएगा।

हम थोड़ा पीछे इतिहास के आइने में देखें, तो यह समझना आसान हो जाएगा कि छठी और 10वीं शत्ताब्दी में इसका क्या स्वरुप था और बाद में यह कितना विकृत हो गया था। राजाओं और सामंतों के लिए यह भोग विलास और समाज मे अपनी प्रतिस्ठा की पहचान बन चुका था। इस प्रथा को सबसे ज्यादा बढावा दिया चोलों (चोल वंश के राजा) ने। सदियां गुजरने के बाद भी प्रथा ज्यों की त्यों चली आ रही है, बदले तो सिर्फ हमारे बाहरी आवरण। इस कुप्रथा की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वो इन बच्चियों के सुनहरे वर्तमान और भविष्य पर भारी हैं। जो मैंने देखा और जो अनुभव किया, उसमें दो चीजे थीं। पहली यह कि बच्चियों को निर्वस्त्र कर के घुमाया जा रहा था। दूसरा, लोगो का हुजूम, जो इन नाबालिग बच्चियों का उत्साहवर्द्धन कर रहा था और प्रशासन को कोई खबर नहीं थी।

गौरतलब है कि कर्नाटक में प्रशासन ने 1982 में और आन्ध्र प्रदेश में 1988 में इस प्रथा पर रोक लगा दी थी। पर 2006 में हुए सर्वे में यह बात निकल कर सामने आई कि इस परम्परा का निर्विरोध पालन होता चला आ रहा है। उन समुदायों की भावना प्रगतिशील देश की कल्पना पर भारी पड़ रही है। और, उन्हें कोई मतलब नहीं है कि इस बुराई को अपने साथ ढोते रहना कितना गलत है। समय-समय पर फिल्मकारों ने इस विषय की गंभीरता को उठाने की कोशिश की है, लेकिन हमारे यहां की जनता, जो मलिका और प्रियंका चोपड़ा को अधनंगी देखने की आदि हो चुकी है, ने नकार दिया। फिल्म ‘प्रणाली’ इसका बेहतरीन उदहारण है कि कैसे देवदासी बनी नायिका अपने ख़ोल से बाहर आ कर मातृत्व सुख और अपने बच्चे को सामाजिक अधिकार दिलाने के लिए समाज के ठेकेदारों से लड़ती है।

सदियों से चली आ रही परम्परा का अब ख़तम होना बहुत ही जरुरी है। देवदासी प्रथा हमारे इतिहास का और संस्कृति का एक पुराना और काला अध्याय है, जिसका आज के समय में कोई औचित्य नहीं है। इस प्रथा के खात्मे से कहीं ज्यादा उन बच्चियों के भविष्य की नींव का मजबूत होना बहुत आवश्यक है, जिनके ऊपर हमारे आने वाले भारत का भविष्य है। उनके जैसे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरनी बहुत जरुरी है।

इसके इतर एक अच्छी खबर यह है कि पुरी के प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर में 800 साल पुरानी देवदासी परंपरा खत्म होने के कगार पर है और यहां विशेष अनुष्ठानों के लिए केवल दो ही देवदासियां हैं। इस बात का पहले से ही आभास होने पर मंदिर प्रशासन ने परंपरा को जीवंत रखने के लिए 90 के दशक की शुरुआत में नई देवदासियों को जोडऩे का प्रयास किया था, लेकिन इस पद्धति के खिलाफ देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन के चलते और महिलाओं के इसमें रुचि नहीं दिखाने से ये कोशिशें नाकाम रहीं। 12वीं सदी के इस मंदिर में 36 अलग-अलग सेवाएं देवदासियों द्वारा की जाती हैं। स्थानीय तौर पर इन्हें ‘महरी’ कहा जाता है।

एक शोधकर्ता रवि नारायण मिश्रा ने कहा कि देश में यह एक मात्र विष्णु मंदिर है, जहां महिलाओं को नृत्य और गायन के अलावा विशेष अनुष्ठान करने की भी इजाजत होती है। महरी सेवा एकमात्र सेवा है, जिसमें महिलाओं की एक बड़ी भूमिका होती है। पुजारी रवींद्र प्रतिहारी कहते हैं कि एक महिला के बिना इस अनुष्ठान को नहीं किया जा सकता। जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के उप प्रशासक भास्कर मिश्रा ने कहा कि इस बार नंदोत्सव के दौरान महिलाओं की सेवा नहीं ली जा सकी। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव में देवदासियां उनकी मां की भूमिका में होती हैं। भास्कर मिश्रा ने कहा कि 80 साल पहले इस मंदिर में दर्जनों देवदासियां थीं, लेकिन अब केवल दो शशिमणि और पारसमणि रह गई हैं। उन्होंने कहा कि 85 वर्षीय शशिमणि के बाएं पैर में फ्रैक्चर होने के कारण वह बिस्तर पर हैं, वहीं पारसमणि ने भी लंबे समय से मंदिर आना बंद कर दिया है। मंदिर के पास अपने कमरे में बिस्तर पर ही रहने को मजबूर शशिमणि कहती हैं कि वह अब सेवा नहीं कर सकतीं, जो वह आठ साल की उम्र से करती आ रहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं आठ साल की उम्र में महरी बन गई थी। मैं उस समय से मंदिर के अनुष्ठानों में भाग ले रही हूं।’ शशिमणि ने कहा कि लोग देवदासियों का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि देवदासियों को भगवान जगन्नाथ की ‘जीवित पत्नी’ माना जाता है। उन्होंने कहा, वह (भगवान जगन्‍नाथ) मेरे पति हैं और मैं उनकी पत्नी। इस बारे में कोई विवाद नहीं है।’

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र की देवदासियों ने इस साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुंबई में अपना अर्धनग्न प्रदर्शन किया। वे सरकार के सामने पहले ही अपनी मांगें कई बार रख चुकी हैं तथा विरोध प्रदर्शन कर चुकी हैं। उन्हें उम्मीद है कि अब इस अनोखे अर्धनग्न प्रदर्शन से सरकार दबाव में आ जायेगी और उनकी सुनवाई हो सकेगी। यह एक अलग ही प्रश्न है, जो हमारे समाज की संरचना पर विचार करने के लिए मजबूर करता है कि इस जमाने में भी देवदासी प्रथा जीवित क्यों है? यह प्रथा, जिसमें माना जाता है कि इन महिलाओं का विवाह भगवान से हुआ है और वे उन्हीं की सेवा के लिए मंदिर के प्रांगण में रहती है, की हकीकत का सभी को पता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ये महिलायें निराश्रित और बदहाल होती हैं। इन्‍हें भगवान जैसे निर्जीव चीज की सेवा की आड़ में पुजारियों और मठाधीशों की सेवा करनी पड़ती है।

यह शुद्ध रूप से धर्मक्षेत्र की वेश्यावृत्ति है, जिसे धार्मिक स्वीकृति हासिल है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इन देवदासियों, जिन्हें जोगिनियां भी कहा जाता है, के बच्चों की स्थिति का संज्ञान लिया और आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा कि उसने इन बच्चों के कल्याण के लिए क्या किया है? 2007 में सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र मिला था, जिसमें इन बच्चों की दुर्दशा को बयान किया गया था, जिसे कोर्ट ने जनहित याचिका मान लिया था। मानवाधिकार आयोग के 2004 की एक रिपोर्ट में इन देवदासियों के बारे में बताया गया है कि देवदासी प्रथा पर रोक के बाद वे देवदासियां नजदीक के इलाके में या शहरों में चली गई, जहां वे वेश्यावृत्ति के धंधें में लग गई। 1990 के एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 45।9 प्रतिशत देवदासियां एक ही जिलें में वेश्यावृत्ति करती हैं तथा शेष अन्य रोजगार जैसे खेती-बाड़ी या उद्योगों में लग गईं। 1982 में कर्नाटक सरकार ने और 1988 में आंध्र प्रदेश सरकार ने देवदासी प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 15 जिलों में अब भी यह प्रथा कायम है।

इस प्रथा को कई सारे दूसरे स्थानीय नामों से भी जाना जाता है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी अपनी तरफ़ से पहल कर इन महिलाओं के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए राज्य सरकारों से सूचना मांगी। इसमें तमिलनाडु आदि कई राज्‍यों ने कहा कि उनके यहां यह प्रथा समाप्त हो चुकी है। उड़ीसा में बताया गया कि केवल पुरी मंदिर में एक देवदासी है, लेकिन आंध्र प्रदेश ने 16,624 देवदासियों का आंकड़ा पेश किया। महाराष्ट्र सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी। जब महिला आयोग ने उनके लिए भत्ते का एलान किया, तब आयोग को 8793 आवेदन मिले, जिसमें से 2479 को भत्ता दिया गया। बाकी 6314 में पात्रता सही नहीं पायी गई।

डोंबारी बुरु

 झारखंड का जालियांवाला बाग है खूंटी जिले का डोंबारी बुरु आज से 122 साल पहले नौ जनवरी 1899 को अंग्रेजों ने डोंबारी बुरु में निर्दोष लोगों को ...