मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

bahujan mukti party


 विषय -एड0 महमूद प्राचा अधिवक्ता सुप्रीम र्कोट को जान से मारने की धमकी देने के विरोध में धरना।
महोदय,
    बेगुनाह मुसलमानों को कानूनी राहत दिलाने वाले एड0 महमूद प्राचा अधिवक्ता सुप्रीम र्कोट को जान से मारने की धमकी देने के विरोध में बहुजन मुक्ति पार्टी जिला इकाई वाराणसी द्वारा दिनांक 30 मार्च 2014 को राष्ट्रव्यापी एक दिवसीय धरना, प्रदर्षन के क्रम में लालबहादुर शास्त्री घाट, कचहरी पर अनुमति न मिलने के कारण निजी स्थान पर प्रातः 11 बजे से दिया गया। जिसमें जिला महासचिव डाॅ0 डी.के. गौतम ने कहा कि निर्दोष मुसलमानों को बेवजह फर्जी मुकदमें में फसाया जा रहा है और माननीय एड0 महमूद प्राचा जी ने कानूनी लड़ाई लड़ कर जिस तरह निर्दोष मुसलमानो को राहत दिलाई इससे घबराकर अण्डरवल्र्ड के लोगों द्वारा धमकी दिया जा रहा है जो गलत है जिसका हम विरोध करतें है। आगे बहुजन मुक्ति पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष मनीष सोनकर जी ने कहा कि इस प्रकार गैर संवैधानिक रुप से दी जाने वाली धमकी व इसमें सरकार का सहयोग न मिलने से देष की आम जनता की भावनाओ को काफी ठेस पहँुच रहा है जिसका खामियाजा 2014 के लोकसभा चुनाव में सरकार को भुगतना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मान्यवर हकीमूददीन अंसारी जी ने जेल में बन्द निर्दोष मूलनिवासी मुस्लिमों को कानूनी सहायता देने पर एड0 महमूद प्राचा अधिवक्ता सुप्रीम र्कोट को धन्यवाद दिया और कहा कि भारत में आये दिन निर्दोष मूलनिवासी मुस्लिमोंश्को बेवजह जेल में डाल दिया जाता है वर्षों तक चार्जसीट दाखिल नही होती और बाद में अदालत उन्हे बाईज्जत बरी कर देती है लेकिल जेल में बिताये दिनो से उनका भविष्य खत्म हो जाता है इसका जिम्मेदार कौन है? जांच एजेन्सी के खिलाफ कार्यवाही क्यों नही होती सरकार इसका जवाब दे। श्री एस. एम. मुषरिफ (महाराष्ट्र) की किताब ‘‘करकरे का कातिल कौन’’ पढने से मालूम हो जायेगा कि आई. बी. व अन्य जांच एजेन्सियो से आर. एस. एस. से क्या रिस्ता है। बहुजन मुक्ति पार्टी और भारत मुक्ति मोर्चा के सहयोग से एड0 महमूद प्राचा जी ने कई मुस्लिम नौजवानो की लडाई लडकर राहत दिलायी ऐसे व्यक्ति को अण्डरवल्र्ड के लोगों द्वारा धमकी दिये जाने पर सरकार की चुप्पी शंदेह के घेरे में है यदि सरकार ऐसे लोगो के खिलाफ कार्यवाही नही करती है तो बहुजन मुक्ति पार्टी पूरे देष में तहसील व ब्लाक स्तर तक जन आंदोलन करेगी। सभा में मुख्य रुप से विनय कुमार, धर्मेन्द्र, दुलारे, अरविन्द, अमर, आलोक, उमाषंकर, विक्की, विनोद, लक्ष्मण, विकाष जायसवाल, उषा यादव, मीनू गुप्ता, प्रेमा देवी इत्यादि लोग उपस्थित थे। तथा सभा का संचालन मा0 नियाज अंसारी संगठन सचिव बहुजन मुक्ति पार्टी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन मा0 अषरफ हुदा (षहर दक्षिणी विधान सभा अध्यक्ष) ने की।

1. समान शिक्षा, अनिवार्य शिक्षा और निःशुल्क शिक्षा के अन्तर्गत गुणवŸाा वाली शिक्षा सभी को प्राप्त हो। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा (च्तपउंतल म्कनबंजपवद), मिडिल स्कूल, और हाई स्कूल के बेहतरीन उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एक लाख गांवों में 5 वर्ष के अन्दर ही विद्यालय खोले जायेंगे। जिसकी परीक्षा पास करने के लिए प्रतिवर्ष प्रत्येक कक्षा का वार्षिक योग्यता परीक्षा देना अनिवार्य होगा।
2. भारत में सबको उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान खोला जायेगा। इसकी शाखाऐं प्रत्येक राज्यों में खोली जायेगी।
3. ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए 75 प्रतिशत सीटंे आरक्षित होंगी। जिसमंे 50 प्रतिशत सीटें एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनाॅरिटी के लिए होंगी। गुणवŸाा पूर्ण शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 10 प्रतिशत बजट खर्च किया जायेगा।
4. विश्व के 200 विश्वविद्यालयों के श्रेणी में भारत का एक भी विश्वविद्यालय उस स्तर का नहीं है। इसके लिए भारत मंे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय खोले जायेंगे, जिसमंे 50 प्रतिशत कोटा (एससी, एसटी, ओबीसी तथा मायनाॅरिटी) का होगा।
5. विश्वस्तरीय गुणवŸाा वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत से प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख और ज्यादा से ज्यादा 5 लाख विद्यार्थियों को विदेशों मंे भेजा जाएगा। यह योजना कक्षा 5 से ही लागू होगी। इसमंे 85 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी, ओबीसी तथा मायनाॅरिटी कम्युनिटी से
होंगे।
6. भारत के 83 करोड़ लोगों को आय (प्दबवउम) प्रतिदिन कम से कम 6 रूपये तथा अधिकतम 20 रूपये है। ऐसे 20 करोड़ लोगों को भुखमरी रेखा पर जीवन जीने वाला परिवार माना जायेगा और उनको सम्मान पूर्वक जीने के लिए ‘‘सम्मानित जीवन निर्वाह निधि’’ योजना के अन्तर्गत 11000/ रूपये (ग्यारह हजार रूपये) प्रतिमाह दिया जायेगा।
7. भारत के धार्मिक मंदिरों तथा धार्मिक स्थलों की सम्पŸिा का राष्ट्रीयकरण किया जाएगा अर्थात् मंदिरों की सम्पŸिा को राष्ट्रीय घोषित कर दिया जायेगा तथा उस सम्पŸिा को जन-कल्याण योजनाओं मंे खर्च किया जायेगा।
8. भारत के एससी, एसटी, ओबीसी और मायनाॅरिटी कम्युनिटी के छात्रों के लिए व्यवसायिक शिक्षा, सभी सरकारी एवं प्राईवेट स्कूलो मंे दी जाएगी। मेरिट वाले बच्चों को एडमिशन एवं शिक्षण के लिए पैसे की कमी ना पड़े, इसके लिए बैंक से लोन की गांरटी दी जायेगी।
9. भारत मंे कृषि विकास के लिए कृषि मंत्रालय को अलग से कृषि बजट पेश करने की व्यवस्था की जायेगी। जिस प्रकार रेल बजट पेश किया जाता है।
10. भारत में वर्षा के कारण प्रतिवर्ष होने वाले बाढ़ से बचाव के लिए सभी छोटी-बड़ी नदियों को जोड़कर बांध बनाये जायेगंे। जहाँ-जहाँ पानी की समस्या है, वहाँ पानी वितरित किया जायेगा। जिससे फसलों की सिंचाई होगी।
11. नदियों को जोड़ने का कार्य तुरन्त शुरू किया जायेगा ताकि पानी का उपयोग औद्योगिक विकास के लिए एवं औद्योगिकरण करने के लिए पानी का सदुपयोग किया जा सके।
12. भारत में कृषि कों एवं कृषि विकास के लिए, कृषि उत्पादन लागत मूल्य से 25 प्रतिशत ज्यादा मूल्य दिया जायेगा और केन्द्र सरकार इसकी गांरटी देगी। कृषि प्रधान देश में कृषि को महत्व दिया जायेगा।
13. भारत में अलग-अलग कृषि क्षेत्रों में अलग-अलग कृषि उत्पाद होते हैं, उन सभी मूल्यवान कृषि उत्पादों का औद्योगिक कार्यो के लिए उपयोग किया जायेगा। कृषि उत्पाद आधारित उद्योगों का मालिकाना हक किसानों का होगा।
आरक्षण
14. भारत की समस्त सार्वजनिक और निजी (च्तपअंजम) संस्थाआंे मंे शत-प्रतिशत (100 प्रतिशत) आरक्षण की व्यवस्था की जायेगी।
15. ओबीसी  की जाति आधारित गिनती करवाकर संख्या के आधार पर आरक्षण को लागू की जाएगी।
16. भारत के प्रति परिवार के एक ही व्यक्ति को सरकारी अथवा गैर सरकारी (प्राइवेट) संस्थाआंे में नौकरी मिलेगी। परिवार के बाकी योग्य लोगों को स्वयं रोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा एवं स्वयं रोजगार को प्रोत्साहन के लिए न्यूनतम 2 प्रतिशत ब्याज पर बैंको से कर्ज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
17. भारत के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के शिक्षित बेरोजगारों जैसे पोस्ट ग्रेजुएट  (स्नातकोŸार) को 5000/ रूपये, ग्रेजुएट (स्नातक) को 3000 रूपये, इन्टरमीडिएट (10$2) के लिए 2500/-रूपये तथा हाई स्कूल (मैटिक) पास बेरोजगारों को 2000/- रूपये प्रतिमाह बेरोजगारी भŸाा दिया जायेगा।
18. स्वयं रोजगार निर्माण एवं बेरोजगारी निर्मूलन के लिए केन्द्र सरकार में कैबिनेट स्तर का मंत्रालय खोला जायेगा।
19. भारत के सरकारी एवं प्राईवेट संस्थानों में आरक्षण में प्रमोशन संख्या के अनुपात में दिया जायेगा।  अनुसूचित जाति में भी आरक्षण के लिए वर्गीकरण (कैटेगराईजेशन) ।ए ठए ब् वर्ग बनाया जाएगा। जैसे । पिछड़ी अनुसूचित जाति, ठ अतिपिछड़ी अनुसूचित जाति, ब् अत्याधिक पिछड़ी अनुसूचित जाति मंे वर्गीकृत किया जायेगा।
20. अनु.जनजातियों मंे भी यही प्रक्रिया अपनायी जायेगी। ।ठब् जैसी । पिछड़ी अनु.जनजाति जाति ठ अति पिछड़ी अनु. जाति और ब् अत्याधिक पिछड़ी अनु.जनजाति।
21. वर्गीकरण की प्रक्रिया में ओबीसी को चार वर्गो ।ठब्क् में वर्गीकृत किया जायेगा, तथा रेनके कमीशन के सिफारिशांे को लागू किया जायेगा।
22. भारत में जिन प्रान्तांे मंे एन.टी-डी.एन.टी. के लोग रहते है, उन प्रान्तों में उन वर्गो में पढ़ने वाले छात्रों के लिए आवासीय विद्यालय खोले जायेगंे।
23. भारत मंे आरक्षण को लागू करने वाला केन्द्रीय आयोग (आरक्षण कार्यान्वयन आयोग) का गठन होगा। आयोग की शाखायंे प्रत्येक राज्य में खोली जायंेगी।
24. संवैधानिक वर्गीकृत समूहों के अन्तर्गत प्रत्येक समूह जैसे (अनु.जाति, अनु.जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियां, मायनाॅरिटी कम्युनिटी और सामान्य वर्ग) की अलग-अलग प्रतियोगिता की  परीक्षा ली जायेगी, उनके अपने-अपने समूह के अन्तर्गत ही मेरिट लिस्ट बनायी जायेगी। उसमें सर्वोŸाम अभ्यार्थियों को वर्गीकरण में जगह दी जायेगी। इससे बैक लाॅग की समस्या खत्म कर दी जायेगी।
25. आरक्षण में क्रीमिलेयर सम्पूर्ण भारत में पूरी तरह खत्म कर दिया जायेगा। यह व्यवस्था प्रत्येक क्षेत्रों में लागू होगी।
26. भारत के सभी सामाजिक समूह वर्गो में जैसे अनु.जाति को । और ठ दो भागों मंे विभाजित करके हिस्सेदारी का अनुपात 50ः50 का होगा। । वर्ग में अमीर और शिक्षित वर्ग को रखा जायेगा तथा ठ वर्ग में गरीबों और कम पढ़े-लिखे लोगांे को रखा जायेगा। यह प्रक्रिया सभी सामाजिक समूहों में लागू किया जायेगा अर्थात् एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनाॅरिटी कम्युनिटी मंे लागू किया जायेगा।
27. भारत की समस्त निजीकरण व्यवस्था की समीक्षा करने के लिए एक पूर्ण संवैधानिक आयोग का गठन किया जायेगा। जो तीन माह में समीक्षा रिपोर्ट तैयार करके संसद में पेश करेगा। इसे स्वतंत्रत रूप से संसद मंे बहस करायी जायेगी।
28. भारतीय संसद मंे भारत के पिछड़े वर्गो (अनु.जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और मायनाॅरिटी के उत्थान और विकास की चर्चा के लिए संसद के प्रत्येक सत्र मंे अलग-अलग समय सीमा का निर्धारण आरक्षित किया जायेगा।
29. भारत में पिछड़े वर्गो (अनु.जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, मायनाॅरिटी कम्युनिटी के विकास और उत्थान के लिए अलग-अलग स्वतंत्र मंत्रालय बनाये जायेंगे तथा इसके लिए प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रूपये का प्रावधान किया जायेगा।
30. भारत का विकास और भारत के लोगों के विकास के लिए, दो अलग-अलग संकल्पनाआंे को अलग-अलग रखा जायेगा तथा दोनों संकल्पनाओं का समान रूप से विकास किया जायेगा।
31. भारत मंे क्षेत्रीय अंसतुलित विकास जैसे किसी राज्य का ज्यादा विकास और किसी राज्य का कम विकास होता है, इसको दूर किया जायेगा। प्रत्येक राज्य का बराबर विकास कराने के लिए कैबिनेट स्तर का एक स्वतंत्र मंत्रालय बनाया जायेगा, जो राज्यों तथा राज्यांे के लोगांे के विकास के लिए कार्य करेगा।
32. सम्पूर्ण भारत में कम से कम 60 राज्यांे, तथ ज्यादा से ज्यादा 100 राज्यांे का निर्माण किया जायेगा। क्योंकि छोटे राज्यांे का विकास तेजी से हुआ है, इसी बात को ध्यान मंे रखकर छोटे राज्यांे का निर्माण करना होगा ताकि राज्यांे के लोगों का समुचित विकास हो सके।
33. महानगरों की बढ़ती आबादी को ध्यान मंे रखते हुए महानगरांे पर आबादी का बोझा ना बढ़ पाये, इसके लिए नये नगरों और महानगरांे का निर्माण किया जायेगा। इसके लिए 250 नयंे अतिरिक्त नगरांे का निर्माण किया जायेगा।
34. भारत का समायोजित विकास करने के लिए छोटी-छोटी प्रशासिनक इकाईयांे को बढ़ावा देने के लिए 1000 जिलों का गठन किया जायेगा।
35. भारत के छोटे-छोटे गाँवांे को समुचित विकास करने के लिए एक लाख गाँवों का तीव्र विकास किया जायेगा। जिसमंे सारे देश के 6 लाख गाँवांे के लोगांे को एक साथ, एक ही जगह पर सारी सुविधायंे उपलब्ध हो सकें।
36. भारत में लगभग 12 करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ी तथा टाट-पट्टियों की झोपड़ी बनाकर रहते हैं। उन झोपड़-पट्टी, बस्तियों को समाप्त करके उनके स्थान पर मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनायी जायेगी। इन्हीं बिल्डिंगों मंे प्रति परिवार को लगभग 600 वर्गफुट का एक फ्लैट दिया जायेगा। जिसमें सभी मूलभूत सुविधायें उपलब्ध होगी।
37. भारत के असंगठित क्षेत्रों के कुशल और अकुशल मजदूरों के हित में सख्त कानून बनाया जायेगा तथा श्रम कानूनों को ज्यादा मजबूत बनाया जायेगा।
38. भारत में चहुमुखी विकास के लिए तीव्र गति से औद्योगिकीकरण हो सके, इसके लिए स्पेशल औद्योगिक नीति बनायी जायेगी।
39. भारत में अन्याय और अत्याचार को रोकने के लिए कानून बनाकर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया जायेगा, जिससे पिछड़े वर्गो (एससी, एसटी, ओबीसी, एनडी, डीएनटी, वीजेएनटी) पर कोई व्यक्ति या संगठन अन्याय ना कर सकें।
40. अत्याचार निरोधक दल, स्वयं सेवी संस्थाआंे के माध्यम से विकसित किया जाएगा। स्वयं सेवी संस्थाएं उन्हीं लोगांे की होगी। अत्याचार पर रोक लगाने के लिए तथा लोगांे की सुरक्षा के लिए हथियार भी दिये जायेेगंे, इसके लिए कानून बनाये जायेगें।
फसाद
41. भारत में फसाद, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के नाम पर किसी भी समूह या जाति के निर्दोष व्यक्ति जिसने अपराध नहीं किया हो, ऐसे किसी भी व्यक्ति को जेल मंे डाला जाता है और बाद में सबूतों के अभाव मंे छोड़ दिया जाता है तो ऐसे भुक्त भोगी व्यक्ति को राहत राशि के नाम पर कम से कम 25 लाख रूपये दिये जायेंगे और ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जाँच मंे ठोस सबूत मिलते है तो ऐसे अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाई करते हुए निलम्बित कर दिया जायेगा तथा मामला कोर्ट मंे भेज दिया जायेगा।
अन्य राष्ट्रीय मुद्दे
42. भारत मंे भूमि अधिग्रहण कानून किसानों के अनुकूल बनायें जायेंगे। (ैमर््) के माध्यम से पूँजीपतियों द्वारा ली गयी किसानों की जमीनों का मालिकाना हक किसानों को दिया जायेगा। ली गयी जमीन उद्योगपति और पूँजीपति के पास ही रहेगी, लेकिन उस जमीन से होने वाले लाभ में किसानों की हिस्सेदारी निश्चित की जायेगी।
43. राईट टू एजूकेशन (त्ज्म्) इसे गुणवŸाा पूर्ण शिक्षा देने के लिए दुबारा संसद मंे पास किया जायेगा।
44. राईट टू इंर्फोमेशन (त्ज्प्) अर्थात सूचना का अधिकार कानून को और मजबूत किया जायेगा और इसे भी दुबारा संसद मंे पास किया जायेगा।
45. लोकपाल कानून में अभी भी बहुत कमियां-खामियां हैं, उसे दूर किया जायेगा और सभी राज्यांे मंे लोकायुक्त बनाये जायेंगे।
46. भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए पूर्ण प्रतिनिधत्व जनतंत्र लाया जायेगा और इससे ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म हो जायेगा। भ्रष्टाचार को उच्च स्तर पर खत्म करने से ही निचले स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा।
47. केन्द्र सरकार एवं सभी राज्य सरकारें तथा स्थानीय राज्य संस्थायंे एवं स्वायŸा संस्थायें और पब्लिक अंडरटेकिग संस्थाआंे मंे कार्य की गुणवŸाा के अनुसार समय सीमा में कार्य करने की अवधि निर्धारित किया जायेगी। पूर्ण  गणुवŸाा एवं समय सीमा में कार्य नहीं करने वाले कार्मिकांे की दोषी घोषित कर दण्डित किया जायेगा।
48. प्रत्येक भारतीय नागरिक को स्वास्थ्य बीमा योजना के अन्तर्गत लाया जायेगा ताकि गरीब से गरीब आदमी को अच्छी से अच्छी स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।
49. स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है, इन्हंे उपलब्ध कराया जायेगा।
50. सम्पूर्ण भारत मंे स्थायी प्रवृŸिा के कार्याे व नियमित कार्यो को जैसे स्वास्थ्य सफाई, शिक्षा, आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा एवं अन्य मूलभूत आवश्यक कार्यों निश्चित कार्यो को केन्द्र सरकार के अधीन रखा जायेगी। संविधान में ऐसी व्यवस्था की जायेगी कि भविष्य मंे उनका निजीकरण न हो सके।
51. जनप्रतिनिधियांे की ठेकेदारी खत्म की जायेगी। जैसे विधायक निधि, सांसद निधि इत्यादि। प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य होगा। जनप्रतिनिधियों का कार्य सिर्फ कानून बनाना और कानून की रक्षा करने के लिए सर्तक रहना होगा जिससे न्यायालयों के बाहरी हस्तक्षेप को रोका जा सके।
52. अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के लिए भारतीय संविधान की अनुसूची 5वीं एवं अनुसूची 6वीं को तुरन्त लागू किया जायेगा।
53. देशभर मंे सफाईकर्मी का काम करते वक्त सीवर लाईन मंे मृत्यु हो जाती है, ऐसे मृतक के परिवार को 1 करोड़ रूपये का प्रावधान केन्द्र सरकार करेगी जिसका संयुक्त बैंक एकाउन्ट सरकार और मृतक परिवार का होगा। जिसका प्रतिमाह ब्याज उस परिवार को दिया जायेगा।
54. प्रचार माध्यम मंे पिं्रट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया जो अंधश्रद्धा और कर्मकाण्ड फैलाने का काम करेगा, उसका लाईसेंस रद्द कर दिया जायेगा।
55. सरकार के द्वारा एससी, एसटी, ओबीसी और मायॅनोरिटी वर्ग के लिए पत्रकारिता एवं मीडिया टेªडिंग की व्यवस्था की जायेगी और इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा।
56. भारत की न्यायपालिका विशेषकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजांे की नियुक्ति, भारतीय प्रशासनिक सेवा की भाँति ही परीक्षा के माध्यम से करायी जायेगी। जिसमंे अनुपातिक प्रतिनिधित्व का कोटा होगा।

गुरुवार, 6 मार्च 2014

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को मिलेगा 11 हजार प्रतिमाह पेंशन-एड. जे.एस.कश्यप बहुजन मुकित पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यख एड.जे.एस.कश्यप ने कहा कि भारत में सम्पŸाि मनिदराें में जमा हो रही है और विदेशाें में काला धन के रूप में जमा हो रही है। जिसके कारण देश में 83 करोड़ लोग भुखमरी एवं अर्धभुखमरी के शिकार है। भारत का शासक वर्ग भारत के पूंजीपतियों को देश लूटने की खुली छूट दे रहा है। उन्हाेंने कहा है कि भारत गरीब नहीं है भारत आज भी सोने की चिडि़या हैं, पहले भी सोने की चिडि़या था। लेकिन शासक वर्ग की गलत नीतियों के कारण देश में लोग भुखमरी एवं महंगार्इ से परेशान है। उन्हाेंने कहा कि जहाँ एक तरफ जनता भुखमरी से मर रही है। वहीं देश में किसान आत्महत्या कर रहे है। और देश के मनिदरों में धन सड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि भारत का संविधान भारत के नागरिको को सम्मानित जीवन जीने का मौलिक अधिकार देता है। लेकिन भारत में 83 करोड़ लोग की प्रतिदिन प्रति व्यकित आय 6 रूपये से लेकर 20 रूपये है। ऐसे में 83 करोड़ लोगों को सम्मानित जीवन जीने के मौलिक अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि अभी तक की सरकारें भुखमरी खत्म करने के लिए ठोस योजना नहीं बना रही है। बलिक खाध सुरक्षा कानून पास कर केवल नेताआें एवं अधिकारियाें की जेब भरने तथा भ्रष्टाचार को और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हाेंने यह भी कहा कि जिन लोगाें ने आवश्यकता से अधिक धन देश के मनिदराें में, अपने घरों में छुपा रखा है या फिर विदेशों में जमा कर रखा है वे लोग भारतीय संविधान के विरोधी है। भारत तथा भारतवासियाें के विरोधी है। उन्हाेंने यह भी कहा कि समस्त धन को जब्त किया जायेगा। विदेशों में जमा काले धन को लाया जायेगा। मनिदरों का राष्ट्रीकरण किया जायेगा, तथा समस्त धन को देश के विकास में लगाया जायेगा। तथा हर गरीब परिवार को 11 हजार रूपये प्रतिमाह सम्मानित जीवन निर्वाह निधि के रूप में पेंशन दी जायेगी। वर्तमान में शासक वर्ग द्वारा शिक्षा की गुणवŸाा को खत्म करने के लिए जिन षडयत्राें का सहारा लिया जा रहा है। जिससे मूलनिवासी बहुजनाें में मेरिट का विकास नहीं, वर्तमान शासक वर्ग की इन सभी प्रकार की साजिशाें को खत्म करके, देश में सबके लिए समान शिक्षा प्रणाली को लागू किया जायेगा। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा, मिडिल स्कूल और हार्इस्कूल की सबसे अच्छी शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 1 लाख गाँवाें में 5 वर्ष के अन्दर ही विधालय खोल जायेगें। जिसके लिए प्रतिवर्ष परीक्षा पास करने के प्रत्येक कक्षा का वार्षिक परीक्षा देने अनिवार्य होगा। भारत में सबके लिए उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान खोला जायेगा। जिसकी शाखायें प्रत्येक राज्याें में खोली जायेंगी। तथा आम चुनाव में बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनाने पर शिक्षा के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत बजट अलग से दिया जायेगा। विश्व स्तरीय गुणवŸाा वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनने पर प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख तथा अधिकतम पाँच लाख विधार्थियाें के विदेश भेजा जायेगा यह योजना कक्षा 5 से ही लागू की जायेगी। इसमें 85 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी, ओबीसी तथा इनसे धर्मपविर्तित अल्पसंख्कों के होगें। आरक्षण में क्रिमिलेयर को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया जायेगा। भारत में फंसाद, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के नाम पर किसी समुदाय के नाम पर निर्दोष व्यकित जिसमें अपराध नहीं किया हो ऐसे व्यकित को भी जेल में डाला जाता है। बाद में सबूताें के अभाव में छोड़ दिया जाता है। तो ऐसे व्यकित को राहत राशित के तौर पर कम से कम 25 लाख रूपये दिये जायेगें। ऐसे पुलिस अधिकारियों के विरूद्ध जांच के ठोस सबूत मिलते है तो ऐसे अधिकारियों को सस्पेन्ड करके मुकदमा चलाया जायेगा। देश की आधी आबादी महिलाआें को समान अवसर देकर उनके विरूद्ध हो रह अत्याचारों को उन्मूलन शीघ्रता से किया जायेगा। देश में सभी वर्गो को न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व देने के लिए हार्इकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुकित के लिए आर्इ.जे.एस. आयोग बनाया जायेगा। उक्त बातें कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एड.जे.एस.कश्यप ने अपने अम्बेडकर नगर संसदीय क्षेत्र में आयी परिवर्तन संकल्प यात्रा के दौरान कहीं। यह पूछे जाने पर कि 83 करोड़ लोगाें को सम्मानित जीवन निर्वाह निधि 11 हजार रूपये प्रतिमाह देने की मांग भारत मुकित मोर्चा के लोग काफी समय से कर रहे है। उन्हाेंने कहा कि बहुजन मुकित पार्टी बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा के आन्दोलन से प्रेरणा लेकर बनायी गयी हैं। इसलिए बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा जिन मूलभूत मुददो की लड़ार्इ देश में लड़ रहा है। उस लड़ार्इ को बहुजन मुकित पार्टी संसद में लडे़गी और अवसर मिलते ही बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा की सभी मांगो को पूरा भी करेगी। अभी जिन लोगाें को भारत की जनता के विकास का पैसा मनिदराें में तथा अपनें घरों में या फिर विदेशाें में छुपा रखा है। वे सामूहिक नरसंहार के लिए जिम्मेवार है। क्याेंकि यदि वह पैसा देश के विकास के लिए लगाया गया होता तो देश में लाखों की संख्या में किसानों ने आत्महत्यायें नहीं होते। करोड़ाें की संख्या में बच्चे कुपोषण के शिकार नहीं होते देश दुनिया में महाशकित बना होता लेकिन देश में करोड़ों निर्दोष लोगाें की मौत के जिम्मेदार वहीं लोग है। जिन्हाेंने यह पैसा जमा कर रखा है। और देश के विकास में नहीं लगने दिया है। इसलिए ये बहुत बड़े अपराधी एवं देशद्रोही भी है। बहुजन मुकित पार्टी को अवसर मिलेगा तो ऐसे लोगाें का डी.एन.ए. टेस्ट करवाया जायेगा। और बहुजन मुकित पार्टी विदेशी और मूलनिवासियों की पहचान हेतु डी.एन.ए. टेस्ट के आधार पर डी.एन.ए. कार्ड जारी करेगी। उन्हाेंने कहा बहुजन मुकित पार्टी की सरकार आने पर देश में अमन, चैन कायम होगा देश में भ्रष्टाचार, भुखमरी, आतंकवाद, नक्सलवाद समाप्त किया जायेगा। देश को महाशकित, सोने की चिडि़या और विश्व गुरू बनाया जायेगा। उन्हाेंने यह भी कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब इस देश का मूलनिवासी शासक बना है। तो देश महाशकित बना है। इसलिए मूलनिवासी बहुजनों को देश को महाशकित बनाने के लिए देश की शासन सŸाा को अपने हाथ में लेने के लिए बहुजन मुकित पार्टी का साथ सहयोग करना होगा।

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को मिलेगा 11 हजार प्रतिमाह पेंशन-एड. जे.एस.कश्यप
बहुजन मुकित पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यख एड.जे.एस.कश्यप ने कहा कि भारत में सम्पŸाि मनिदराें में जमा हो रही है और विदेशाें में काला धन के रूप में जमा हो रही है। जिसके कारण देश में 83 करोड़ लोग भुखमरी एवं अर्धभुखमरी के शिकार है। भारत का शासक वर्ग भारत के पूंजीपतियों को देश लूटने की खुली छूट दे रहा है। उन्हाेंने कहा है कि भारत गरीब नहीं है भारत आज भी सोने की चिडि़या हैं, पहले भी सोने की चिडि़या था। लेकिन शासक वर्ग की गलत नीतियों के कारण देश में लोग भुखमरी एवं महंगार्इ से परेशान है। उन्हाेंने कहा कि जहाँ एक तरफ जनता भुखमरी से मर रही है। वहीं देश में किसान आत्महत्या कर रहे है। और देश के मनिदरों में धन सड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि भारत का संविधान भारत के नागरिको को सम्मानित जीवन जीने का मौलिक अधिकार देता है। लेकिन भारत में 83 करोड़ लोग की प्रतिदिन प्रति व्यकित आय 6 रूपये से लेकर 20 रूपये है। ऐसे में 83 करोड़ लोगों को सम्मानित जीवन जीने के मौलिक अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है। उन्हाेंने कहा कि अभी तक की सरकारें भुखमरी खत्म करने के लिए ठोस योजना नहीं बना रही है। बलिक खाध सुरक्षा कानून पास कर  केवल नेताआें एवं अधिकारियाें की जेब भरने तथा भ्रष्टाचार को और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हाेंने यह भी कहा कि जिन लोगाें ने आवश्यकता से अधिक धन देश के मनिदराें में, अपने घरों में छुपा रखा है या फिर विदेशों में जमा कर रखा है वे लोग भारतीय संविधान के विरोधी है। भारत तथा भारतवासियाें के विरोधी है। उन्हाेंने यह भी कहा कि समस्त धन को जब्त किया जायेगा। विदेशों में जमा काले धन को लाया जायेगा। मनिदरों का राष्ट्रीकरण किया जायेगा, तथा समस्त धन को देश के विकास में लगाया जायेगा। तथा हर गरीब परिवार को 11 हजार रूपये प्रतिमाह सम्मानित जीवन निर्वाह निधि के रूप में पेंशन दी जायेगी।
वर्तमान में शासक वर्ग द्वारा शिक्षा की गुणवŸाा को खत्म करने के लिए जिन षडयत्राें का सहारा लिया जा रहा है। जिससे मूलनिवासी बहुजनाें में मेरिट का विकास नहीं, वर्तमान शासक वर्ग की इन सभी प्रकार की साजिशाें को खत्म करके, देश में सबके लिए समान शिक्षा प्रणाली को लागू किया जायेगा। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा, मिडिल स्कूल और हार्इस्कूल की सबसे अच्छी शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 1 लाख गाँवाें में 5 वर्ष के अन्दर ही विधालय खोल जायेगें। जिसके लिए प्रतिवर्ष परीक्षा पास करने के प्रत्येक कक्षा का वार्षिक परीक्षा देने अनिवार्य होगा।
भारत में सबके लिए उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान खोला जायेगा। जिसकी शाखायें प्रत्येक राज्याें में खोली जायेंगी। तथा आम चुनाव में बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनाने पर शिक्षा के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत बजट अलग से दिया जायेगा।
विश्व स्तरीय गुणवŸाा वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुजन मुकित पार्टी की सरकार बनने पर प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख तथा अधिकतम पाँच लाख विधार्थियाें के विदेश भेजा जायेगा यह योजना कक्षा 5 से ही लागू की जायेगी। इसमें 85 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी, ओबीसी तथा इनसे धर्मपविर्तित अल्पसंख्कों के होगें।
आरक्षण में क्रिमिलेयर को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया जायेगा। भारत में फंसाद, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के नाम पर किसी समुदाय के नाम पर निर्दोष व्यकित जिसमें अपराध नहीं किया हो ऐसे व्यकित को भी जेल में डाला जाता है। बाद में सबूताें के अभाव में छोड़ दिया जाता है। तो ऐसे व्यकित को राहत राशित के तौर पर कम से कम 25 लाख रूपये  दिये जायेगें। ऐसे पुलिस अधिकारियों के विरूद्ध जांच के ठोस सबूत मिलते है तो ऐसे अधिकारियों को सस्पेन्ड करके मुकदमा चलाया जायेगा। देश की आधी आबादी महिलाआें को समान अवसर देकर उनके विरूद्ध हो रह अत्याचारों को उन्मूलन शीघ्रता से किया जायेगा।
देश में सभी वर्गो को न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व देने के लिए हार्इकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुकित के लिए आर्इ.जे.एस. आयोग बनाया जायेगा।
उक्त बातें कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एड.जे.एस.कश्यप ने अपने अम्बेडकर नगर संसदीय क्षेत्र में आयी परिवर्तन संकल्प यात्रा के दौरान कहीं। यह पूछे जाने पर कि 83 करोड़ लोगाें को सम्मानित जीवन निर्वाह निधि 11 हजार रूपये प्रतिमाह देने की मांग भारत मुकित मोर्चा के लोग काफी समय से कर रहे है। उन्हाेंने कहा कि बहुजन मुकित पार्टी बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा के आन्दोलन से प्रेरणा लेकर बनायी गयी हैं। इसलिए बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा जिन मूलभूत मुददो की लड़ार्इ देश में लड़ रहा है। उस लड़ार्इ को बहुजन मुकित पार्टी संसद में लडे़गी और अवसर मिलते ही बामसेफ एवं भारत मुकित मोर्चा की सभी मांगो को पूरा भी करेगी।
अभी जिन लोगाें को भारत की जनता के विकास का पैसा मनिदराें में तथा अपनें घरों में या फिर विदेशाें में छुपा रखा है। वे सामूहिक नरसंहार के लिए जिम्मेवार है। क्याेंकि यदि वह पैसा देश के विकास के लिए लगाया गया होता तो देश में लाखों की संख्या में किसानों ने आत्महत्यायें नहीं होते। करोड़ाें की संख्या में बच्चे कुपोषण के शिकार नहीं होते देश दुनिया में महाशकित बना होता लेकिन देश में करोड़ों निर्दोष लोगाें की मौत के जिम्मेदार वहीं लोग है। जिन्हाेंने यह पैसा जमा कर रखा है। और देश के विकास में नहीं लगने दिया है। इसलिए ये बहुत बड़े अपराधी एवं देशद्रोही भी है।
बहुजन मुकित पार्टी को अवसर मिलेगा तो ऐसे लोगाें का डी.एन.ए. टेस्ट करवाया जायेगा। और बहुजन मुकित पार्टी विदेशी और मूलनिवासियों की पहचान हेतु डी.एन.ए. टेस्ट के आधार पर डी.एन.ए. कार्ड जारी करेगी। उन्हाेंने कहा बहुजन मुकित पार्टी की सरकार आने पर देश में अमन, चैन कायम होगा देश में भ्रष्टाचार, भुखमरी, आतंकवाद, नक्सलवाद समाप्त किया जायेगा। देश को महाशकित, सोने की चिडि़या और विश्व गुरू बनाया जायेगा। उन्हाेंने यह भी कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब इस देश का मूलनिवासी शासक बना है। तो देश महाशकित बना है। इसलिए मूलनिवासी बहुजनों को देश को महाशकित बनाने के लिए देश की शासन सŸाा को अपने हाथ में लेने के लिए बहुजन मुकित पार्टी का साथ सहयोग करना होगा।

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 गरीबी, भुखमरी का मूल कारण शासक वर्ग-किरन चौधरी
लालगंजदै.मू.समाचार
1. महिलाआें पर होने वाले अत्याचार के लिए कठोर कानून।
2. सीवर लार्इन में कार्य करते वक्त कर्मचारी की मौत पर एक करोड़ की सहयात राशि।
3. झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले 12 करोड़ लोगाें को स्थायी निवास की व्यवस्था।
4. बेरोजगारी का खात्मा।
5. भारत के सभी मनिदरों की सम्पŸाि का राष्ट्रीयकरण।
बहुजन मुकित पार्टी के द्वारा आयोजित एक जनसभा को संबोधित करती हुर्इ बीएमपी की प्रत्याशी किरन चौधरी ने कहा कि वर्तमान में मूलनिवासी बहुजन समाज गरीबी में जीने को मजबूर है। जिसके लिए सिर्फ ब्राह्राणी व्यवस्था ही दोषी है। देश में आज 83 करोड़ लोग भुखमरी का जीवन यापन कर रहे है। ऐसा इसलिए है क्याेंकि देश की तथाकथित आजादी से लेकर वर्तमान में देश की सŸाा पर ब्राह्राणवादियों का एकाधिकार होना है? वहीं देश की सŸाा पर ब्राह्राणवादियों का एकाधिकार होने के कारण जो योजनाएं तथा कानून बनाएँ जाते हैं। वह सब ब्राह्राणवादी के हित में बनाए जाते है। वहीं बीएमपी के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बीएमपी का मकसद एमपी और एम.एल.ए. बनाना नहीं है। बलिक अधिकार वंचित लोगाें को अधिकार दिलाना है। उन्हाेंने कहा जिस प्रकार चारपार्इ में चार पाए होते हैं। और यदि एक भी पाया कमजोर या टूट जाता हंै। तो पूरी चारपार्इ बेकार हो जाती है। उसी प्रकार हमारे देश का जो लोकतंत्र है वह भी चार पोलो (स्तम्भाें) पर खड़ा है (1). विधायिका (2) कार्यपालिका (3) न्यायपालिका तथा मीडिया। अगर इनमें से एक भी पोल कमजोर हो जाता है।  तो इसका असर पूरे लोकतंत्र पर पड़ता है। आज लोकतंत्र के चारों स्तम्भों पर ब्राह्राणवादियों का कब्जा है। जिसे इन ब्राह्राणावादियाें ने कमजोर कर दिया है, जिसके कारण आज समाज में दलाल-भड़वों का निर्माण हुआ है। इसी लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए ही बीएमपी का निर्माण हुआ है। बीएमपी द्वारा किए जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य-
1.आज देश में शासक वर्ग का वर्चस्व होने के कारण ही देश में महिलाओं के ऊपर अत्याचार हो रहे हंै। जिसमें बलात्कार, छेड़-छाड़, शरीर पर तेजाब डालना, दहेज न देने का ससुराल वालो द्वारा प्रताडि़त करना आदि बहुत सारी घटनाएँ अत्याचार महिलाओं पर हो रहा है जो ब्राह्राणवादी व्यवस्था की देन है। यदि बहुजन मुकित पार्टी की सरकार केन्द्र में आती है तो इन सब घटनाआें को रोकने के लिए तथा दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए कठोर कानून का निर्माण किया जाएगा। वही अत्याचार पर रोक लगाने के लिए तथा लोगों की सुरक्षा के लिए हथियार दिए जाएंगे इसके लिए भी कानून का निर्माण होना।
2. आज देशभर यदि कोर्इ देश को साफ सुथरा रखता है तो वह है सफार्इ कर्मचारी। वही सफार्इ कर्मचारी द्वारा सफार्इ का कार्य करते वक्त सीवर लार्इनाें में मृत्यु हो जाती है। परन्तु ब्राह्राणवादी सरकार द्वारा इनके परिवार के भरण पोषण हेतु कोर्इ आर्थिक सहायता नहीं प्रदान की जाती है। जिससे उस सफार्इ कर्मचारी का परिवार और भी दयनीय सिथत में चला जाता है। परन्तु बीएमपी द्वारा यदि कोर्इ सफार्इ कर्मचारी सफार्इ को कार्य करते वक्त यदि सीवर लार्इन में उसकी मृत्यु हो जाती है। तो ऐस में मृतक के परिवार को एक करोड़ रूपये का प्रावधान केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी जिसका संयुक्त बैंक अकाउन्ट सरकार और मृतक परिवार का होगा।
3. आज देश की यह सिथति है कि 12 करोड़ से भी ज्यादा लोग आज झुग्गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर है। इनके रहने की जहमत ब्राह्राणवादी सरकार ने आज तक नहीं उठार्इ परन्तु बहुजन मुकित पार्टी द्वारा ऐसे 12 करोड़ परिवाराें को 600 वर्ग फुट का एक फ्लैट मल्टी स्टोरी बिलिडंग में उपलब्ध करायी जाएगी।
देश की ब्राह्राणी व्यवस्था में बेरोजगारी का यह आलम है कि शिक्षित, बेरोजगार आज आत्महत्या करने तथा गलत रास्ताें पर चलने को मजबूर हो रहे हंै। बीएमपी की सरकार बनते ही सर्वप्रथम सार्वजनिक तथा निजी संस्थाआें में 100 प्रतिशत आरक्षण कर बेरोजगाराें को रोजगार देने का कार्य किया जाएगा। तथा स्व रोजगार प्रोत्साहन के लिए न्यूनतम 2 प्रतिशत ब्याज पर बैंको से कर्ज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी सरकार की होगी। वही कृषि को बढ़ावा देने के लिए कृषि  के लिए अलग बजट की व्यवस्था की जाएगी।
5. वहीं किरन चौधरी ने आगे बताते हुए कहा कि आज मूलनिवासियों से लूटा हुआ देश का आधे से ज्यादा धन भारत के धार्मिक मनिदराें में है जो ब्राह्राणवादियाें तथा पण्डे-पुजारियों द्वारा लूटकर मनिदरों में छुपा रखा है। बीएमपी की सरकार आते ही देश के सभी धार्मिक मनिदरों तथा धार्मिक स्थलों की सम्पŸाि को राष्ट्रीय सम्पŸाि घोषित की जाएगी तथा उस सम्पŸाि को जनकल्याण योजनाआें में खर्च किया जाएगा। आदि कर्इ मुददो के जनसभा में लोगों के सामने किरन चौधरी जी ने रखा। जैसे-जैसे किरन चौधरी जी के मुददे बढ़े रहे थे वैेसे-वैसे वहाँ पर लोगाें की संख्या बढ़ रही थी जिसमें हजारों लोगाें ने उपसिथति दर्ज करार्इ। तथा सभी ने अपनी प्रत्याशी को जितवाने का संकल्प लिया।





मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

भ्रष्टाचार और घोटालों का देश भारत

भ्रष्टाचार और घोटालों का देश भारत


corruption in indiaभ्रष्टाचार और घोटालों से लबरेज अगर हम भारत को भ्रष्टाचार और घोटालों का देश कहें तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। देश ने घोटालों की रफ़्तार में इतनी बढ़त जो हासिल कर लि है। ट्रांस्पैरेंसी इंटरनेशनल नामक संस्था द्वारा जारी वर्ष 2010 के भ्रष्टाचार सूचकांग में हम 87 स्थान पर पहुँच चुके हैं।
भारत घोटालों में सबसे अधिक तेजी से प्रगति करने वाला देश है - इसे भी सभी भ्रष्ट नेताओं को सार्वजानिक कर ही देना चाहिए ताकि नागरिक अपनी एक और उपलब्धि पर गर्वान्वित हो सके।
हालांकि भारत ने घोटालों में रिकॉर्ड कायम करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है, न जाने कितने ही घोटाले देश में हुए। उनमे से कुछ सामने आये तो बात दूर तक गई, वरना न जाने ऐसे कितने ही
घोटाले हुए होंगे और कितने ही होने वाले हैं, आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। आइए नजर डालते है हमारे देश के ऐसे ही कुछ बड़े घोटालों पर जिनके कारण भारत भ्रष्टाचार और घोटालों के लिए विश्व विख्यात हो चुका है।

भारत के प्रमुख आर्थिक घोटाले: 
बोफोर्स घोटाला- 64 करोड़ रुपये
यूरिया घोटाला- 133 करोड़ रुपये
चारा घोटाला- 950 करोड़ रुपये
शेयर बाजार घोटाला- 4000 करोड़ रुपये
सत्यम घोटाला- 7000 करोड़ रुपये
स्टैंप पेपर घोटाला- 43 हजार करोड़ रुपये
कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला- 70 हजार करोड़ रुपये
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 1 लाख 67 हजार करोड़ रुपये
अनाज घोटाला- 2 लाख करोड़ रुपए ;अनुमानितद्ध
कोयला खदान आवंटन घोटाला- 192 लाख करोड़ रुपये
राजनीति में घोटाला या घोटाले की राजनीति:
राजनीति में घोटाला या घोटाले की राजनीति कुछ भी कह लीजिए। भारतीय राजनीति में घोटाला शब्द तो एक अहम हिस्सा बन गया है, नेताओं का शायद ही कोई ऐसा काम हो जो बिना घोटाले और तीन तीगडम के बिना पूरा हो जाए। वैसे देखा जाए तो यह बात कोई नई नहीं है जब राजनेताओं द्वारा किये गये घोटाले जनता के सामने आ रहे हों, सभी को यह पता है कि हमारे कौन से नेता कितने बिकाऊ हैं और कितने इमानदार। दलाली की इस राजनीति में हर नेता बिकाऊ है बस उसकी कीमत अच्छी मिलनी चाहिए।
2005 में भारत में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा ही किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 62% से अधिक भारतवासियों को सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिये रिश्वत या ऊँचे दर्ज़े के प्रभाव का प्रयोग करना पड़ा। वर्ष 2008 में पेश की गयी इसी संस्था की रिपोर्ट ने बताया है कि भारत में लगभग 20 करोड़ की रिश्वत अलग-अलग लोकसेवकों को (जिसमें न्यायिक सेवा के लोग भी शामिल हैं) दी जाती है। उन्हीं का यह निष्कर्ष है कि भारत में पुलिस और कर एकत्र करने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है। आज यह कड़वा सच है कि किसी भी शहर के नगर निगम में रिश्वत दिये बगैर कोई मकान बनाने की अनुमति नहीं मिलती। इसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यह मानकर चलता है कि किसी भी सरकारी महकमे में पैसा दिये बगैर गाड़ी नहीं चलती।
किसी को निर्णय लेने का अधिकार मिलता है तो वह एक या दूसरे पक्ष में निर्णय ले सकता है। यह उसका विवेकाधिकार है और एक सफल लोकतन्त्र का लक्षण भी है। परन्तु जब यह विवेकाधिकार वस्तुपरक न होकर दूसरे कारणों के आधार पर इस्तेमाल किया जाता है तब यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ जाता है, अथवा इसे करने वाला व्यक्ति भ्रष्ट कहलाता है। किसी निर्णय को जब कोई शासकीय अधिकारी धन पर अथवा अन्य किसी लालच के कारण करता है तो वह भ्रष्टाचार कहलाता है।
भ्रष्टाचारियों ने लूटी देश की इज्जतः
यहां अगर हम यह कहते हैं कि सभी नेता चोर (भ्रष्ट) हैं तो सबको यह बात हजम नहीं होती है। लेकिन अधिकतर नेता भ्रष्टाचार में लिप्त है, क्योंकि लगभग जितने भी स्टींग आपरेशन और एकत्र आंकड़ों तो यही साबित करते हैं कि अधिकतर नेता बलात्कारी हैं- भ्रष्टाचारी हैं। बलात्कार यानी देश की प्रतिष्ठा और मान सम्मान के साथ बलात्कार करने वाले अपराधी। अभी तक देश में हुए जिनते भी घोटाले सामने आए हैं उसमें भी अधिकतर नेता ही शामिल हैं। आम जनता कहां हैं? वह तो सिर्फ बलात्कार की शिकार होती आ रही है। उसकी तो रोज इज्जत दुनिया के सामने निलाम रही है। यदि देश का हर नागरिक भारत है तो यकीनन उसकी इज्जत हर रोज लूट रही है, और हर नागरिक बलात्कार का शिकार है।
सही अर्थों में देखें तो घोटाले दर घोटाले कर हमारे देश में नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस नए कीर्तिमान की बदौलत ही हम दुनिया के सबसे भ्रष्टत्तम देशों में शुमार हो चुके हैं। दुनिया के सामने हमारी जो किरकिरी हुई है, वह अलग से। सवाल यह है कि भारत में घोटोलों का यह सिलसिला थमता क्यों नहीं? लेकिन, जो भी है हमारे सामने ही है। हमारे देश में सबसे अधिक भ्रष्टाचार में संलिप्त होने वाले लोग ये ही हैं, जो भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपने पदों पर नियुक्त हैं।
वह चाहे नौकरशाह हो, नेता हो या फिर खुद सरकार। सिर्फ न्यायपालिका की बदौलत हम भ्रष्टाचार पर कितना काबू पा सकेते हैं? भ्रष्टाचारिष्यों के दिन प्रतिदिन बढ़ते मनोबल और आए दिन नये घोटालों ने सोचने पर मजबूर कर दिया है। लोकतंत्र में सभी की स्वतंत्रता इसकी विशेषता है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार की छूट सबसे बड़ी और शर्मनाक पहचान बनती जा रही है। घोटालों में आयी इस रफ्तार के पीछे कई कारण दिखते हैं। सबसे पहला कारण नजर आता है वह है नैतिक पतन। हम दुनिया के विकसित देशों से हर चीज उधार ले रहे हैं, और इस उधार लेने की अंधी प्रवृति में हम वह चीजे भी ले रहे हैं जो हमारे पास उनसे कहीं अधिक समृद्ध है।
भारत शुरू से ही धर्म-नियमों पर चलने वाला देश है। देश के नागरिक जन्म से ही इस बात में विश्वास करने वाले रहे हैं कि चोरी पाप है, किसी का हक छीनना बुरी बात है। ईश्वर है और वह हमारी तरफ हर पल देख रहा है। हमारी कोई भी बुराई उससे छुपी नहीं है और हमारी सजा भी वह तय करता है। हमारी इस सोच से हमारा नैतिक बल तो बढ़ता ही, हमारा चरित्र - बल भी सभी देशों से अधिक रहा। जब तक यह मान्यता, यह सोच, यह परंपरा चलती रही तब तक हम दुनिया में सबसे अधिक सभ्य, संस्कृत, चरित्रवान नागरिक थे। लेकिन जैसे ही हम पर पश्चिमी आधुनीकरण का भूत सवार हुआ हमारी यह समृद्धशाली सोच, परंपरा कहीं पीछे छूटती चली गई।
आज यह हमसे इतनी दूर जा चुकी है कि हम पलटकर चाहने पर भी उसके नजदीक नहीं जा सकते। हम आधुनीकरण के दौर में इतने आगे निकल चुके हैं, निकलते जा रहे हैं कि हम पश्चिमी देशों से भी अधिक असभ्य होते जा रहे हैं। जितनी तेजी से हमारा भौतिक विकास हो रहा हैं, उससे भी कहीं अधिक तेजी से हम नैतिक भ्रष्टाचार की ओर अग्रसर हो रहे हैं। हमारे नेता, हमारे नौकरशाह भी इससे अछूत नहीं। अब भ्रष्टाचार अधिकार का रूप ले चुका है। यह कितनी हद तक बढ़ चुका है इसका अंदाजा देश के एक मजदूर से लेकर एक बड़े रसूख वाले व्यक्ति तक को है।
हर नागरिक या तो भ्रष्टाचार का शिकार है या फिर खुद भ्रष्टाचार में सहभागी बन चुका है। एक किसान को कर्ज लेने में भी घूस देना पड़ता है- इससे अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है? एक तो कर्ज, उसमें भी घूस? एक आम किसान ही, क्यों, देश का सबसे धनी व्यक्ति भी भ्रष्टाचार का कितना बड़ा शिकार है, इस बात से तो हम सभी अच्छे से वाकिफ हैं।
अब भ्रष्टाचार करते समय हममे यह भावना कभी नहीं आती, कि ऐसा करना गलत है, पाप है। अब तो इसे छुपाकर भी नहीं करना पड़ता। भ्रष्टाचार कुछ लोगों का व्यवसाय बना चुका है तो कुछ लोगों के ख्याति का जरिया। यानी, भ्रष्टाचार अब वह सबकुछ दे रहा है जो बड़ी मेहनत के बाद भी प्राप्त करना मुश्किल होता है। अब जनता भी जानती है कि चुनाव लड़ने वालों का मकसद क्या है। 'ये पब्लिक है सब जानती है’ लेकिन शायद, कुछ भी नहीं जानती। पब्लिक के जानने से भी आगे बहुत कुछ है जो ये भ्रष्ट नेता करते हैं, सरकारे करती हैं। यदि ऐसा नहीं है तो भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?
यदि एक लड़की का बलात्कार होने पर पूरे देश के नागरिकों का खून खौल उठता है, तो फिर पूरे देश की प्रतिष्टा के साथ बलात्कार करने वालों की सजा क्या है? और इन्हें सजा क्यों नहीं मिलती? आप कहेंगे मिलती है। लेकिन, क्या यह वैसी होती है जितना के सवा अरब लोगों के साथ बलात्कार करने की सजा होनी चाहिए? पूरी दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा खत्म हुई, हम शर्म से डूब मरे, क्योंकि यह भी तो बलात्कार जैसा ही है।
देश आए दिन होने वाले घोटालों की संख्या यूँ बढ़ रही है कि अब तो घाटाले याद भी नहीं रहते हैं। लेकिन क्या इस मामले में किसी को फांसी हुई? यदि फांसी मानवाधिकार के खिलाफ है, तो क्या किसी भ्रष्टाचारी की देश की नागरिकता समाप्त की गई? क्या ऐसे लोगों को देश का नागरिक बने रहने का अधिकार है, जो देश की ही इज्जद को निलाम कर ऐशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं? भारत की जनता तो शुरू से ही सहनशील रही है, लेकिन क्या इतना सबकुछ होने के बावजूद अब भी उसे सहना ही चाहिए? हमें लगता है कि सारी सीमाएं अब पार हो चुकी हैं। जनता को अपनी ताकत का अहसास करा ही देना चाहिए।
हम यह भी नहीं कहते कि जनता अहिंसक बन जाए, वह अहिंसायुक्त ही रहे, लेकिन अब कम से कम अपनी सहनशीलता तो तोड़ ही दे। आखिरकार कब तक हम अपनी इज्जत खुद ही लुटाता हुआ देखते रहेंगे। अपनों या अपनी लूटती इज्जत को बचाने के लिए हमें खड़ा होना ही पड़ेगा। जब तक जनता जागृत नहीं हो जाती, भ्रष्टाचारियों का मनोबल बढ़ता ही जाएगा और हमारी-जनता की इज्जत लूटती रहेगी।
भ्रष्टाचार भारत के महाशक्ति बनने में रोड़ा:
यह सच है कि भारत महाशक्ति बनने के करीब है परन्तु हम भ्रष्टाचार की वजह से इस से दूर होते जा रहे है। भारत के नेताओ को जब अपने फालतू के कामो से फुरसत मिले तब ही तो वो इस सम्बन्ध मे सोच सकते है उन लोगो को तो फ्री का पैसा मिलता रहे देश जाये भाड मे।भारत को महाशक्ति बनने मे जो रोडा है वो है नेता। युवाओ को इस के लिये इनके खिलाफ लडना पडेगाए आज देश को महाशक्ति बनाने के लिये एक महाक्रान्ति की जरुरत है, क्योकि बदलाव के लिये क्रान्ति की ही आवश्यकता होती है लेकिन इस बात का ध्यान रखना पडेगा की भारत के रशिया जैसे महाशक्तिशाली देश की तरह टुकडे न हो जायेए क्योंकि अपने को बचाने के लिये ये नेता कभी भी रुप बदल सकते है।
भ्रष्टाचार पिछड़ेपन का द्योतक है। भ्रष्टाचार का बोलबाला यह दर्शाता है कि जिसे जो करना है वह कुछ ले.देकर अपना काम चला लेता है, और लोगों को कानों-कान खबर तक नहीं होती। और अगर होती भी हो तो यहाँ हर व्यक्ति खरीदने और बिकने के लिए तैयार है। गवाहों का उलट जानाए जाँचों का अनन्तकाल तक चलते रहनाए सत्य को सामने न आने देना . ये सब एक पिछड़े समाज के अति दुरूखदायी पहलू हैं। अत: भ्रष्टाचार और असमानता की समस्याओं को रोकने में हम असफल हैं। यही हमारी महाशक्ति बनने में रोड़ा है।

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

बहुजन मुकित पार्टी की विशाल संकल्प यात्रा

बहुजन मुकित पार्टी की विशाल संकल्प यात्रा शुरू!
सभी पार्टियों के होश उड़े!
लखनऊदै.मू.समाचार
उŸार प्रदेश में बहुजन मुकित पार्टी की संकल्प यात्रा की शुरूआत हो गयी है। यह यात्रा पूरे प्रदेश के तीन स्थानों से शुरू होकर पूरे प्रदेश का भ्रमण और जगह-जगह जनसभाओं को संबोधित करते हुए भ्रमण करेगी। यह संकल्प यात्रा उŸार प्रदेश के हर मुख्यालय से होकर गुजरेगी जिसमें सभी जिम्मेदार साथी भागेदारी निभायेंगे। इस संकल्प यात्रा का मकसद पार्टी की जो नीतियां है उनको लोगों के बीच पहुँचाने का है। और जनमत तैयार करके मूलनिवासी बहुजन समाज के महापुरूष राष्ट्रपिता जोतिराव फुले, भारत रत्न डा.बाबा साहब अम्बेडकर जी के सपनों का भारत निर्माण करने के लिए उनकी विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए और मूलनिवायाें में योग्यता पैदा करना ही बहुजन मुकित पार्टी के संकल्प यात्रा का उíेश्य है।
बहुजन मुकित पार्टी की उíेश्य राजनैतिक नहीं है। बलिक शासन सŸाा पर एकाधिकार स्थापित  ब्राह्राणाें से मुकित का उíेश्य है। इस देश में अनके राजनैतिक पार्टियांं है मगर वह राजनैतिक पार्टी यह सब मिलकर इस देश के मूलनिवासी बहुजन समाज को गुमराह करने का काम करती है। इस राजनैतिक पार्टियाें के बहकावें में आकर हमारा मूलनिवासी समाज आज अनके समस्याआें से जूझ रहा है। इस समस्याआें के निदान और निर्वाण के लिए ही बहुजन मुकित पार्टी का निर्माण कि गया है।
बहुजन मुकित पार्टी ने प्रदेश के सभी मतदाताओं के हित में काम करने हेतु यह संकल्प यात्रा की शुरूआत किया है। जिससे प्रदेश के सभी मतदाताओं को यह जानकारी दी जा सके कि उनके साथ हो रही अन्याय, अत्याचार से निजाद दिलाने और मतदाताओं के अन्दर नेतृत्व का निर्माण   है।
बहुजन मुकित पार्टी की संकल्प यात्रा उŸार प्रदेश के तीन स्थानों  इलाहाबाद, वनारस , और गोरखपुर से शुरू हो रही है। जिसमें बहुजन मुकित पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एड.जे.एस.कश्यप गोरखपुर से इस संकल्प यात्रा की अध्यक्षता करते हुए पूरे प्रदेश में भ्रमण बनारस से इस संकल्प यात्रा की अध्यक्षता डा.एस.अकमल (राष्ट्रीय महासचिव, बहुजन मुकित पार्टी) करेंगे। और इलाहाबाद से बहुजन मुकित पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बाबूराम यादव जी करेगे।
यह संकल्प यात्रा पूरे प्रदेश का भ्रमण करते हुए 9 रामलीला मैदान नर्इ दिल्ली की महारैलीमें शामिल होगी। बहुजन मुकित पार्टी का इस देश में समता, स्वतंत्रता, बन्धुता और न्याय पर आधारित राष्ट्र का निर्माण करने का मकसद है इस मकसद को पूरा करने के लिए बहुजन मुकित पार्टी ने अपने घोषण पत्र में जारी करते हुए 54 सूत्रीय घोषणा पत्र कहा कि अगर हमारी सरकार आयेगी तो विश्वस्तरीय शिक्षा (गुणवŸाा युक्त) के लिए 85 मूलनिवासी के लोगों को प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख तथा ज्यादा से 5 लाख लोगाें को विदेश में शिक्षा के लिए भेजेगी।    बहुजन मुकित पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में यह भी कहा कि भारत में 83 करोड़ लोगों की आय प्रतिदिन कम से कम 6 रूपये तथा अधिकतम 20 रूपये है। ऐसे 20 करोड़ लोगों को भुखमरी रेखा पर जीवन जीने वाला परिवार माना जायेगा और उनको सम्मान पूर्वक जीने के लिए ''सम्मानित जीवन निर्वाह निधि योजना के अन्तर्गत 11000 रूपये (ग्यारह हजार रूपये) प्रतिमाह दिया जायेगा।
बहुजन मुकित पार्टी ने इस देश की अर्थव्यवस्था को बचारक रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले किसानाें के हित को ध्यान में रखकर अपने घोषणा पत्र में कहा है कि अगर बहुजन मुकित पार्टी की सरकार आती है तो भारत में कृषि विकास के लिए कृषि मंत्रालय को अलग से कृषि बजट पेश करने की व्यवस्था करेगी। और किसानों को उनके कृषि उत्पादन लागत मूल्य से 25 प्रतिशत ज्यादा मूल्य दिया जायेगा। और केन्द्र सरकार इसकी गारेण्टी लेगी। भारत के अलग-अलग  कृषि उत्पाद होेते है उन सभी मूल्यावान कृषि उत्पादों का औधोगिक कार्यो के लिए उपयोग किया जायेगा। कृषि उत्पाद आधारित उधोगों का मालिकाना हक किसानों का होगा। बहुजन मुकित पार्टी ने इस देश के सभी मूलनिवासी बहुजनाें को ध्यान में रखकर कार्य करने का वादा किया है।
बहुजन मुकित पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा.वी.एल.मातंग ने बताया कि जब बहुजन मुकित पार्टी की सरकार केन्द्र में आती है तो बहुजन मुकित पार्टी इस देश के मूलनिवासी समाज के हितों के लिए भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू किया जायेगा। और इस देश की सŸाा पर एक ही  वर्ग का अधिकार खत्म करके। मूलनिवासी बहुजन समाज के सभी वर्गो के वास्तविक प्रतिनिधित्व देकर भारत की सŸाा को चालने का काम करेगी।







गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

.देवदासी प्रथा


.देवदासी प्रथा एक घिनौना रूप जिसे धर्म के नाम पर सहमति प्राप्त ( सच का आईना )

धर्म के नाम पर महिलाओं के साथ यौनाचार होगा तो भारत जैसे मुल्क का भविष्य क्या होगा
देवदासी प्रथा भारत के दक्षिणी पश्चिम हिस्से में सदियों से चले आ रहे धार्मिक उन्माद की उपज है ! धर्म के नाम औरतों के साथ हो रहे यौनाचार का इतिहास बहुत पुराना है ! भारत के कुछ क्षेत्रों में धर्म और आस्था के नाम पर महिलाओं को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाता है ! महिलायें सामाजिक और पारिवारिक दवाब के चलते हुये इस धार्मिक कुरीत का हिस्सा बनने को मजबूर हो जाती हैं ! कुछ दिनों पहले वेलोर पर खबर कुछ ऐसी थी कि १२-१३ साल की बच्चियों  को देवदासी बनाया गया जिसके तहत इन किशोरियों का विवाह किसी मंदिर या देव से कर दिया जाता है ! घोषित रूप से ब्रह्मचार्य का पालन करना होता है !  पर विशेष अधिकार के तौर पर हिन्दू संस्कारो से इतर वैवाहिक संस्था को तार- तार कर के पुरुष सन्सर्ग भी कर सकती है !. इस प्रथा के तहत उन किशोरियों को अगले कुछ सालों तक देवियों और देवताओं की सेवा मे अपना जीवन व्यतीत करना होगा ! बालिकायें ये समझ रहीं थी कि समाज मे उनका दर्जा जरुर कुछ श्रेष्ठ हो गया है ! पर वो मासूम क्या जाने कि देवदासी प्रथा के तहत उनकी आज़ादी छिन गई है इस बात से अनजान ये बच्चियां सिर्फ इस बात से खुश हो रहीं थी कि अब उन्हें मंदिर की स्वामिनीऔर देख-रेख का अधिकार प्राप्त हो गया है ! इस स्थिती में रहने के दौरान वस्त्र और अच्छा खाना खाने को मिलेगा साथ ही उस गरीबी से भी छुटकारा जिनके साथ वह पैदा हुई थी ! कमर के उपरी हिस्से तक निर्वस्त्र इन बच्चियो के सर पर मटकियां रख कर जुलुस भी निकाला गया ! सरकार आँखें बंद करके सारे नज़ारे को नजरअंदाज करती रही ! क्या यही है हमारे देश का भविष्य ? भीड़ के आगे प्रतिनिधितित्व करती ये अल्लहड् किशोरियां जब परिपक्व होगी ! फिर बढती हुई उम्र और मातृत्व की लालसा जब चरम पर होगी ,तो ये यादें क्या उन्हें एक सम्मानित जीवन की नींव रखने देंगी इन कड़वी यादों के साथ कैसे जी पाएंगी ये दूसरी ओर एक खुशहाल जिंदगी न मिल पाना और समाज द्वारा नकार दिया जाना इनके क़दमों को क्या वेश्यावृति की ओर नहीं ले जाएगा ? क्या इसका जवाब है इन धर्म के ठेकेदारों के पास ? न चाहते हुए भी उन्हें वेश्यावृति के गहरे दलदल मे ढकेल दिया जाएगा !
जाहिरा तौर पर देखा जाए तो सभी धर्मों में मिलती जुलती धारणाएं जुड़ी हैं !
अगर हम अपने पीछे के इतिहास के आइने को देखें तो यह समझना बहुत ही आसान है कि छठी और दसवीं शत्ताब्दी मे इसका क्या स्वरुप था और बाद मे यह कितना विकृत हो गया था  प्रान्तीय राजाओं और सामंतो के लिए यह भोग विलासऔर समाज में अपनी प्रतिष्ठा की पहचान बन चुका था !
अब ईसाई धर्म के तहत ही देख लीजिए चर्च और कॉन्वेंटस में नन रहने लगीं जो चिरकुमारियों के नाम से जानी जाने लगीं ! कैथोलिक चर्च में भी सैक्स से सम्बंधित खेल के खुले-खुलासे होते आ रहे है ! दूर क्यों जाते है कुछ दिनों पहले ही एक नन ने पादरियों के व्यभिचार का सनसनीखेज खुलासा किया था ! नन ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि पादरी ननों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ! इससे जब वह गर्भवती हो जाती है ! तो बच्चों को गर्भ में ही मार देते है !
नन सिस्टर मैरी चांडी ने अपनी आत्मकथा `ननमा निरंजवले सवस्तिमें लिखा है कि मैंने वायनाड गिरजाघर में हाशिल अनुभवों को सहेजने की कोशिश की है ! चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता की वजाय वासना से भरी थी ! एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी ! मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचाई थी !उनके मुताबिक़ चर्च में नर्सें सैक्सी किताबें पढ़तीं  थी !
नन सिस्टर जेस्मी ने `आमेन : द ऑटोबायोग्राफीनामक किताब लिखकर धार्मिक पाखंडों का खुलासा किया था ! 
अब देखिये महात्मा बुद्द मठों में औरतों का प्रवेश वर्जित था ! उनका मत था कि औरतों की मौजूदगी व्यक्ति के मन को काम वासना के लिए आकर्षित करती है ! पर उनके महाप्रयास के बावजूद भी औरतों के लिए मठ के द्वार खुल गये ! बौद्ध धर्म की कारगुजारियां पूरी तरह तंत्र पर ठहर गई और तंत्र प्रणाली में औरतों की देह को मोक्ष का नाम देकर औरतों को छला जाने लगा !
हिंदू धर्म के तहत मंदिरों में देवदासी प्रथा का प्रचलन शुरू हो गया ! और यहीं बेबीलोन के मंदिरों में देवदासियां रहा करती थी ! जैन धर्म के संतों के साथ साध्वियां भी होती थी !  
देवदासी प्रथा के चलते ऊँची जाति की महिलायें मंदिरों में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा में लीन रहती थी ! और देवता खुश हो जाये इसलिए मंदिरों में नृत्य करतीं थी ! देवदासी प्रथा से जुड़ी महिलाओं के साथ मंदिर से जुड़े पुजारियों ने ये कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि शारीरिक सम्बन्ध बनाने से उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है ! धीरे-धीरे पुजारी इसे अपना अधिकार समझने लगे और सामाजिक रूप से किसी ने भी हस्तक्षेप नहीं किया ! सही मायने में कहा जाए तो वह किसी अन्य व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकती ! सभी पुरुषों में देवी-देवता का अक्श मान उसकी इच्छा पूर्ति करती हैं !
इस कुप्रथा को सबसे ज्यादा बढावा देने वाले (चोल वंश के राजा ) थे ! सदियां गुजर गई फिर भी ये प्रथा ज्यों की त्यों चली आ रही हैकुछ भी ना बदला अगर बदले तो सिर्फ हमारे बाहरी आवरण जो दिखावे की भेंट चढ़ कर  इस कुप्रथा की जड़ों को इतनी मजबूत और गहरी कर रहे है कि वो इन बच्चियों के सुनहरे वर्तमान और भविष्य पर भारी पड़ रहे हैं ! प्रशासन को कोई खबर नहीं है ! यह शुद्ध रूप से धर्मक्षेत्र की वेश्यावृत्ति है,जिसे धार्मिक स्वीकृति हासिल है इतिहास गवाह है कि राजा-महाराजाओं ने अपने महलों में देवदासियों को रखने का चलन शुरू किया था ! मुग़ल-काल में जब देवदासियों की संख्या जरुरत से ज्यादा बढ़ गई तो देवदासियों के पालन पोषण में कठिनाई आने के कारण उन्हें सार्वजानिक सम्पत्ति बना दिया गया!
विचार करने की बात ये है कि आंध्र-प्रदेश के 14 और कर्नाटक के 10
जिलों में ये प्रथा बदस्तूर अभी भी जारी है ! खबर है कि उड़ीसा के पुरी मंदिर में एक देवदासी है ! लेकिन आंध्र-प्रदेश ने 16,624 देवदासियां का आंकड़ा पेश किया ! जब महिला आयोग ने देवदासियों के लिए भत्ते का एलान किया ! तब आयोग को 8793 आवेदन मिले !
जिसमें से 2479 को भत्ता दिया गया ! बाकी 6314 कि पात्रता सही नहीं थी !
यहाँ पर में ये बताना चाहूंगी कि हिंदू धर्म में देवदासियां ऐसी स्त्रियों को कहते हैं जिनका विवाह मंदिर या अन्य किसी भी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है ! इनका काम नृत्य संगीत सीखना और मंदिरों की देखभाल करना होता है ! समाज में इन्हें एक उच्च दर्जा प्राप्त होता है ! 
परम्परागत रूप से ब्रह्मचारी होना और साथ – साथ पुरुषों से सम्भोग का अधिकार भी होना ये एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है ! दक्षिण भारत में इसका प्रचलन मुख्य रूप से था !
अब देखिये यहाँ सवाल ये उठता है कि अगर कोई मौत हो जाती है तो गाजे -बाजे के साथ मौत का जनाजा निकलता है ! और लोगो को खबर हो जाती  हैपर यहां तो गाजे-बाजे के साथ इन बच्चियों के भविष्य का तमाशा निकाला जाता है ! सदियो से चली आ रही परम्परा का अब समाप्त होना बहुत ही आवश्यक है ! इस प्रथा के समाप्त होने से कहीं ज्यादा उन बच्चियों के भविष्य की नींव का मजबूत होना बहुत आवश्यक है ! क्योंकि उनके ऊपर हमारे भारत का भविष्य हैउनके जैसे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरनी बहुत जरुरी है ! देखा जाये तो बीसवीं सदी में देवदासियों कि स्थिती में कुछ सुधार आया ! पेरियार जैसे कई नेताओं ने इस प्रथा को समाप्त करने की भरसक कोशिश की ! देवदासी प्रथा हमारी संस्कृति पर एक काला दाग है ! ये प्रथा हमारे इतिहास का वो काला पन्ना है जिसे अब समाप्त होना चाहिए ! आज के युग में इसका कोई औचित्य नहीं है ! देवदासी की परम्परा हमारे समाज का एक घृणित चेहरा है ! इसपर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए ! सरकार को चाहिए कि इस विषय को गंभीरता से लें और हमारे देश की कानून व्यवस्था के तहत कोई ठोस कदम उठाए जिससे न केवल इस कुप्रथा का उन्मूलन हो बल्कि देवदासियों और उनके बच्चों को भी पुनर्वासित किया जा सके ताकि वे इस कुप्रथा की गिरफ्त से बाहर आयें !
                  ...सुनीता दोहरे .....

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

देवदासी प्रथा

देवदासी प्रथा

http://www.mynews.in/merikhabar/News/_N34497.html

भगवान जैसे निर्जीव चीज की सेवा करने के नाम पर पुजारियों और मठाधिशों की सेवा के लिए शुरू की गई ‘देवदासी प्रथा’ घोषित रूप से भले ही समाप्त हो गई हो, लेकिन देवदासियां आज भी हैं। इस बात को बल हाल ही में रितेश शर्मा की एक डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘द होली वाइव्स’ से मिला है। दिल्ली में प्रदर्शित की गई इस फिल्म में देवदासी प्रथा जैसी उस कुरीति पर सवाल उठाए गए, जिस पर मेनस्ट्रीम मीडिया में आजकल मुश्किल से ही कोई बहस होती है। यह फिल्म बताती है किस तरह इस दौर में जहां महिला अधिकारों को लेकर हल्ला मचाया गया, घरेलू हिंसा विरोधी कानून बने और महिला अधिकारों पर कई बहसें हुईं, बावजूद इसके कर्नाटक, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कई इलाके ऐसे हैं, जहां इन कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। वह भी धर्म के नाम पर और पूरी तरह सार्वजनिक तौर पर।

अपनी फिल्म के निर्माण के दौरान रितेश उन इलाकों में गए, जहां महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाता है और कई बार बलात्कार तक का शिकार होना पड़ता है। लेकिन, जीविकोपार्जन और सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर हैं। अपने प्रारंभिक दौर में देवदासी प्रथा के अंतर्गत ऊंची जाति की महिलाएं जो पढ़ी-लिखी और विदुषी हुआ करती थीं, मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं और देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं। समय ने करवट ली और इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है। धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकार्यता भी मिल गई। उसके बाद राजाओं ने अपने महलों में देवदासियां रखने का चलन शुरू किया। मुगल काल में, जबकि राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गईं।

आज भी कहीं वैसवी, कहीं जोगिनी, कहीं माथमा तो कहीं वेदिनी नाम से देवदासी प्रथा देश के कई हिस्सों में कायम है। कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों में यह प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। देवदासी प्रथा को लेकर कई गैर-सरकारी संगठन अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं। इन संगठनों का मानना है कि अगर यह प्रथा आज भी बदस्तूर जारी है, तो इसकी मुख्य वजह इस कार्य में लगी महिलाओं की सामाजिक स्वीकार्यता है। इससे बड़ी समस्या इनके बच्चों का भविष्य है। ये ऐसे बच्चे हैं, जिनकी मां तो ये देवदासियां हैं, लेकिन जिनके पिता का कोई पता नहीं है। ये तमाम समस्याएं उठाने वाली रितेश की इस फिल्म को मानवाधिकारों के हनन का ताजा और वीभत्स चित्रण मानते हुए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शित किया जा रहा है। रितेश हालांकि मानते हैं कि फिल्म के प्रदर्शन से ज्यादा जरूरी है कि इस विषय पर हमारे देश की कानून व्यवस्था कोई ठोस कदम उठाए, जिससे न केवल इस कुप्रथा का उन्मूलन हो, बल्कि ऐसी महिलाओं और उनके बच्चों को भी पुनर्वासित किया जा सके, जो इस कुप्रथा की गिरफ्त में हैं।

देवदासी हिन्दू धर्म में ऐसी स्त्रियों को कहते हैं, जिनका विवाह मन्दिर या अन्य किसी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है। समाज में उन्हें उच्च स्थान प्राप्त होता है और उनका काम मंदिरों की देखभाल तथा नृत्य तथा संगीत सीखना होता है। परंपरागत रूप से वे ब्रह्मचारी होती हैं, पर अब उन्हे पुरुषों से संभोग का अधिकार भी रहता है। यह एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है। इसका प्रचलन दक्षिण भारत में प्रधान रूप से था। बीसवीं सदी में देवदासियों की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। पेरियार तथा अन्य नेताओं ने देवदासी प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की। कुछ लोगों ने अंग्रेजों के इस विचार का विरोध किया कि देवदासियों की स्थिति वेश्याओं की तरह होती है।

कुछ दिनों पहले मैंने किसी न्यूज़ चैनल पर वेल्‍लोर की खबर चलते देखी। खबर कुछ ऐसी थी कि 12-13 साल की बच्चियों को देवदासी चुना गया और उन्हें अगले कुछ सालों तक देव और देवियों यानी भगवान की सेवा में अपना जीवन व्यतित करना है। समाज में इन बालिकाओं का दर्जा जरुर कुछ श्रेष्ठ हो जायेगा, पर देवदासी प्रथा के तहत उनकी आज़ादी छिन चुकी है, इस बात से अनजान ये बच्चियां सिर्फ इस बात से खुश थीं कि अब उन्हें मंदिर की स्वामिनी का दर्जा और देखरेख का अधिकार प्राप्त हो गया है। वहां रहने के दौरान वस्त्र और अच्छा खाना खाने को मिलेगा, साथ ही उस गरीबी से भी छुटकारा भी मिलेगा, जिसके साथ वह पैदा हुई हैं। कमर के उपरी हिस्से तक निर्वस्त्र इन बच्चियों के सर पर मटकियां रख कर जुलुस भी निकाला गया। भीड़ का नेतृत्‍व करती इन किशोरियों का बालमन जब परिपक्व होगा, बढ़ती उम्र और मातृत्व की लालसा चरम पर होगी और ये यादें साथ होंगी, तो क्या वो एक सम्मानित जीवन की नीव रख पाएंगी? कैसे जी पाएंगी वो इन कड़वी यादों के साथ? दूसरी ओर एक खुशहाल जिंदगी न मिल पाने पर, समाज द्वारा नकार दिए जाने पर क्या वेश्यावृति की ओर इनके कदम नहीं मुडेंगे? न चाहते हुए भी उन्हें वेश्यावृति के गहरे दलदल मे ढकेल दिया जाएगा।

हम थोड़ा पीछे इतिहास के आइने में देखें, तो यह समझना आसान हो जाएगा कि छठी और 10वीं शत्ताब्दी में इसका क्या स्वरुप था और बाद में यह कितना विकृत हो गया था। राजाओं और सामंतों के लिए यह भोग विलास और समाज मे अपनी प्रतिस्ठा की पहचान बन चुका था। इस प्रथा को सबसे ज्यादा बढावा दिया चोलों (चोल वंश के राजा) ने। सदियां गुजरने के बाद भी प्रथा ज्यों की त्यों चली आ रही है, बदले तो सिर्फ हमारे बाहरी आवरण। इस कुप्रथा की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वो इन बच्चियों के सुनहरे वर्तमान और भविष्य पर भारी हैं। जो मैंने देखा और जो अनुभव किया, उसमें दो चीजे थीं। पहली यह कि बच्चियों को निर्वस्त्र कर के घुमाया जा रहा था। दूसरा, लोगो का हुजूम, जो इन नाबालिग बच्चियों का उत्साहवर्द्धन कर रहा था और प्रशासन को कोई खबर नहीं थी।

गौरतलब है कि कर्नाटक में प्रशासन ने 1982 में और आन्ध्र प्रदेश में 1988 में इस प्रथा पर रोक लगा दी थी। पर 2006 में हुए सर्वे में यह बात निकल कर सामने आई कि इस परम्परा का निर्विरोध पालन होता चला आ रहा है। उन समुदायों की भावना प्रगतिशील देश की कल्पना पर भारी पड़ रही है। और, उन्हें कोई मतलब नहीं है कि इस बुराई को अपने साथ ढोते रहना कितना गलत है। समय-समय पर फिल्मकारों ने इस विषय की गंभीरता को उठाने की कोशिश की है, लेकिन हमारे यहां की जनता, जो मलिका और प्रियंका चोपड़ा को अधनंगी देखने की आदि हो चुकी है, ने नकार दिया। फिल्म ‘प्रणाली’ इसका बेहतरीन उदहारण है कि कैसे देवदासी बनी नायिका अपने ख़ोल से बाहर आ कर मातृत्व सुख और अपने बच्चे को सामाजिक अधिकार दिलाने के लिए समाज के ठेकेदारों से लड़ती है।

सदियों से चली आ रही परम्परा का अब ख़तम होना बहुत ही जरुरी है। देवदासी प्रथा हमारे इतिहास का और संस्कृति का एक पुराना और काला अध्याय है, जिसका आज के समय में कोई औचित्य नहीं है। इस प्रथा के खात्मे से कहीं ज्यादा उन बच्चियों के भविष्य की नींव का मजबूत होना बहुत आवश्यक है, जिनके ऊपर हमारे आने वाले भारत का भविष्य है। उनके जैसे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरनी बहुत जरुरी है।

इसके इतर एक अच्छी खबर यह है कि पुरी के प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर में 800 साल पुरानी देवदासी परंपरा खत्म होने के कगार पर है और यहां विशेष अनुष्ठानों के लिए केवल दो ही देवदासियां हैं। इस बात का पहले से ही आभास होने पर मंदिर प्रशासन ने परंपरा को जीवंत रखने के लिए 90 के दशक की शुरुआत में नई देवदासियों को जोडऩे का प्रयास किया था, लेकिन इस पद्धति के खिलाफ देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन के चलते और महिलाओं के इसमें रुचि नहीं दिखाने से ये कोशिशें नाकाम रहीं। 12वीं सदी के इस मंदिर में 36 अलग-अलग सेवाएं देवदासियों द्वारा की जाती हैं। स्थानीय तौर पर इन्हें ‘महरी’ कहा जाता है।

एक शोधकर्ता रवि नारायण मिश्रा ने कहा कि देश में यह एक मात्र विष्णु मंदिर है, जहां महिलाओं को नृत्य और गायन के अलावा विशेष अनुष्ठान करने की भी इजाजत होती है। महरी सेवा एकमात्र सेवा है, जिसमें महिलाओं की एक बड़ी भूमिका होती है। पुजारी रवींद्र प्रतिहारी कहते हैं कि एक महिला के बिना इस अनुष्ठान को नहीं किया जा सकता। जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के उप प्रशासक भास्कर मिश्रा ने कहा कि इस बार नंदोत्सव के दौरान महिलाओं की सेवा नहीं ली जा सकी। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव में देवदासियां उनकी मां की भूमिका में होती हैं। भास्कर मिश्रा ने कहा कि 80 साल पहले इस मंदिर में दर्जनों देवदासियां थीं, लेकिन अब केवल दो शशिमणि और पारसमणि रह गई हैं। उन्होंने कहा कि 85 वर्षीय शशिमणि के बाएं पैर में फ्रैक्चर होने के कारण वह बिस्तर पर हैं, वहीं पारसमणि ने भी लंबे समय से मंदिर आना बंद कर दिया है। मंदिर के पास अपने कमरे में बिस्तर पर ही रहने को मजबूर शशिमणि कहती हैं कि वह अब सेवा नहीं कर सकतीं, जो वह आठ साल की उम्र से करती आ रहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं आठ साल की उम्र में महरी बन गई थी। मैं उस समय से मंदिर के अनुष्ठानों में भाग ले रही हूं।’ शशिमणि ने कहा कि लोग देवदासियों का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि देवदासियों को भगवान जगन्नाथ की ‘जीवित पत्नी’ माना जाता है। उन्होंने कहा, वह (भगवान जगन्‍नाथ) मेरे पति हैं और मैं उनकी पत्नी। इस बारे में कोई विवाद नहीं है।’

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र की देवदासियों ने इस साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुंबई में अपना अर्धनग्न प्रदर्शन किया। वे सरकार के सामने पहले ही अपनी मांगें कई बार रख चुकी हैं तथा विरोध प्रदर्शन कर चुकी हैं। उन्हें उम्मीद है कि अब इस अनोखे अर्धनग्न प्रदर्शन से सरकार दबाव में आ जायेगी और उनकी सुनवाई हो सकेगी। यह एक अलग ही प्रश्न है, जो हमारे समाज की संरचना पर विचार करने के लिए मजबूर करता है कि इस जमाने में भी देवदासी प्रथा जीवित क्यों है? यह प्रथा, जिसमें माना जाता है कि इन महिलाओं का विवाह भगवान से हुआ है और वे उन्हीं की सेवा के लिए मंदिर के प्रांगण में रहती है, की हकीकत का सभी को पता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ये महिलायें निराश्रित और बदहाल होती हैं। इन्‍हें भगवान जैसे निर्जीव चीज की सेवा की आड़ में पुजारियों और मठाधीशों की सेवा करनी पड़ती है।

यह शुद्ध रूप से धर्मक्षेत्र की वेश्यावृत्ति है, जिसे धार्मिक स्वीकृति हासिल है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इन देवदासियों, जिन्हें जोगिनियां भी कहा जाता है, के बच्चों की स्थिति का संज्ञान लिया और आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा कि उसने इन बच्चों के कल्याण के लिए क्या किया है? 2007 में सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र मिला था, जिसमें इन बच्चों की दुर्दशा को बयान किया गया था, जिसे कोर्ट ने जनहित याचिका मान लिया था। मानवाधिकार आयोग के 2004 की एक रिपोर्ट में इन देवदासियों के बारे में बताया गया है कि देवदासी प्रथा पर रोक के बाद वे देवदासियां नजदीक के इलाके में या शहरों में चली गई, जहां वे वेश्यावृत्ति के धंधें में लग गई। 1990 के एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 45।9 प्रतिशत देवदासियां एक ही जिलें में वेश्यावृत्ति करती हैं तथा शेष अन्य रोजगार जैसे खेती-बाड़ी या उद्योगों में लग गईं। 1982 में कर्नाटक सरकार ने और 1988 में आंध्र प्रदेश सरकार ने देवदासी प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 15 जिलों में अब भी यह प्रथा कायम है।

इस प्रथा को कई सारे दूसरे स्थानीय नामों से भी जाना जाता है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी अपनी तरफ़ से पहल कर इन महिलाओं के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए राज्य सरकारों से सूचना मांगी। इसमें तमिलनाडु आदि कई राज्‍यों ने कहा कि उनके यहां यह प्रथा समाप्त हो चुकी है। उड़ीसा में बताया गया कि केवल पुरी मंदिर में एक देवदासी है, लेकिन आंध्र प्रदेश ने 16,624 देवदासियों का आंकड़ा पेश किया। महाराष्ट्र सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी। जब महिला आयोग ने उनके लिए भत्ते का एलान किया, तब आयोग को 8793 आवेदन मिले, जिसमें से 2479 को भत्ता दिया गया। बाकी 6314 में पात्रता सही नहीं पायी गई।

बुधवार, 29 जनवरी 2014

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सोनिया गांधी का सच

- एस. गुरुमूर्ति
जब श्वेजर इलस्ट्रेटे ने यह आरोप लगाया कि सोनिया गांधी ने राजीव गांधी द्वारा घूस में लिए गए पैसे को राहुल गांधी के खाते में रखा है तो मां-बेटे में से किसी ने न तो विरोध किया और न ही इस पत्रिका के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की।

राजनीति में राजीव गांधी ने सबसे खतरनाक गलती क्या की थी? यह बताने में दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं पड़ना चाहिए कि उनकी सबसे बड़ी गलती खुद ईमानदार होने का दावा करते हुए अपने को मिस्टर क्लीन के तौर पर पेश करना थी। यह उनके लिए घातक साबित हुआ। इंदिरा गांधी उनसे अलग थीं। जब उनसे उनकी सरकार के भ्रष्टाचार के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि यह तो पूरी दुनिया में चल रहा है। यह बात 1983 की है। दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने इसके बाद यह कहा था कि जब इतने उच्च पद पर बैठने वाला इसे तर्कसंगत बता रहा है तो ऐसे में आखिर भ्रष्टाचार पर काबू कैसे पाया जाएगा। इन बातों का नतीजा यह हुआ कि इंदिरा गांधी पर कभी किसी ने भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया। क्योंकि उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि वह ईमानदार हैं। पर इसके उलट राजीव गांधी ने अपनी ईमानदारी के दावे कर खुद को कड़ी निगरानी में ला दिया। राजीव गांधी की ईमानदारी की पोल 1989 में बोफोर्स मामले पर खुल गई और जनता ने इसकी सजा देते हुए उन्हें और कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। सियासी लोगों के लिए इस घटना ने यह सीख दी कि अगर आप ईमानदार नहीं हैं तो कभी ईमानदारी के दावे मत कीजिए। पर यह सीख खुद गांधी परिवार को याद नहीं है। इस मामले में सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के सुरक्षित रास्ते को न चुनकर राजीव गांधी के घातक रास्ते पर चलने का फैसला किया है। इसके नतीजे भी उनके लिए दुखदायी होने की ही उम्मीद है। तो क्या 1987 से 1989 के बीच की राजनीति का एक बार फिर दुहराव होने वाला है?
इंदिरा को भूलकर राजीव की राह चलने वाली सोनिया गांधी ने 2010 के नवंबर में इलाहाबाद में हुई पार्टी की एक रैली में भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने यानि जीरो टालरेंस की बात कही थी। इसके कुछ दिनों बाद ही जब दिल्ली में कांग्रेस अधिवेशन हुआ तो सोनिया गांधी ने फिर यही बात दोहराई। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने कभी भी भ्रष्ट लोगों को नहीं बख्शा है क्योंकि भ्रष्टाचार से विकास बाधित होता है। इसी तरह का भाषण राजीव गांधी ने 25 साल पहले मुंबई अधिवेशन में दिया था। इस मसले पर राजीव दो मामलों में सोनिया से अलग थे। जब राजीव गांधी ने खुद को मिस्टर क्लीन कहा था उस वक्त ऐसा कोई घोटाला नहीं था जिसकी वजह से उन्हें रक्षात्मक होना पड़े। पर सोनिया ने तो राष्ट्रमंडल, आदर्श और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बीच ईमानदार होने का दावा किया है। दूसरी बात यह कि राजीव ने बिल्कुल शून्य से शुरुआत की थी और उनकी मिस्टर क्लीन की छवि को खत्म करने का काम तो बोफोर्स घोटले ने किया था। इसके विपरीत सोनिया गांधी के खिलाफ घूसखोरी के तौर पर अरबों डालर लेकर स्विस बैंक खातों में जमा करने की बात पहले ही सामने आ चुकी है। इसमें बोफोर्स सौदे में क्वात्रोचि से मिले लाखों डॉलर शामिल नहीं हैं। स्विट्जरलैंड की एक प्रतिष्ठित पत्रिका और रूस के एक खोजी पत्रकार ने सोनिया गांधी के परिवार पर घूसखोरी में लिप्त होने के कई सबूत जुटाकर सबके सामने रखा है। इस बात के दो दशक बीत जाने के बाद भी सोनिया ने आरोपों का न तो खंडन किया है और न ही खुलासा करने वालों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की है। इसकी पृष्ठभूमि में सोनिया गांधी की वह बात ढकोसला मालूम पड़ती है जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की बात कही है। दरअसल, कहानी कुछ इस प्रकार है।
2.2 अरब डॉलर से 11 अरब डॉलर!
स्विस बैंक में सोनिया गांधी के अरबों डालर जमा होने की बात खुद स्विट्जरलैंड में ही उजागर हुई। यही वह देश है जहां दुनिया भर के भ्रष्टाचारी लूट का धन रखते हैं। स्विट्जरलैंड की सबसे लोकप्रिय पत्रिका श्वेजर इलस्ट्रेटे ने अपने 19 नवंबर, 1991 के एक अंक में एक खास रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें विकासशील देशों के ऐसे 13 नेताओं का नाम था जिन्होंने भ्रष्ट तरीके से अर्जित किए पैसे को स्विस बैंक में जमा कर रखा था। इसमें राजीव गांधी का नाम भी था। श्वेजर इलस्ट्रेटे कोई छोटी पत्रिका नहीं है बल्कि इसकी 2.15 लाख प्रतियां बिकती हैं और इसके पाठकों की संख्या 9.17 लाख है। यह संख्या स्विट्जरलैंड की कुल वयस्क आबादी का छठा हिस्सा है। केजीबी के रिकार्ड्स का हवाला देते हुए पत्रिका ने लिखा, ”पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी अपने नाबालिग बेटे के नाम पर एक गुप्त खाते का संचालन कर रही हैं जिसमें ढाई अरब स्विस प्रफैंक यानि 2.2 अरब डालर हैं।” राहुल गांधी 1988 के जून में बालिग हुए थे। इसलिए यह खाता निश्चित तौर पर इसके पहले ही खुला होगा। अगर इस रकम को आज के रुपए में बदला जाए तो यह 10,000 करोड़ रुपये के बराबर बैठती है। स्विस बैंक अपने ग्राहकों के पैसे को दबा कर नहीं रखता है, बल्कि इसका निवेश करता है। सुरक्षित दीर्घ अवधि वाली योजनाओं में निवेश करने पर यह रकम 2009 तक बढ़कर 9.41 अरब डालर यानी 42,345 करोड़ रुपये हो जाती है। अगर इसे अमेरिकी शेयर बाजार में लगाया गया होगा तो यह 58,365 करोड़ रुपए हो गई होगी। यदि घूस की इस रकम को आधा दीर्घावधि निवेश योजनाओं में और आधा शेयर बाजार में लगाया गया होगा, जिसकी पूरी संभावना है, तो यह रकम 50,355 करोड़ रुपए हो जाती है। अगर इस पैसे को शेयर बाजार में लगाया गया होता तो 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी से पहले यह रकम 83,900 करोड़ रुपए होती। किसी भी तरह से हिसाब लगाने पर 2.2 अरब डालर की वह रकम आज 43,000 करोड़ रुपए से 84,000 करोड़ रुपए के बीच ठहरती है।
केजीबी दस्तावेज
सोनिया गांधी के खिलाफ कहीं ज्यादा गंभीर तरीके से मामले को उजागर किया रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने। एजेंसी के दस्तावेजों में यह दर्ज है कि गांधी परिवार ने केजीबी से घूस के तौर पर पैसे लिए। प्रख्यात खोजी पत्रकार येवगेनिया अलबतस ने अपनी किताब ‘दि स्टेट विदिन ए स्टेट: दि केजीबी एंड इट्स होल्ड ऑन रसिया-पास्ट, प्रजेंट एंड फ्यूचर’ में लिखा है, ”एंद्रोपोव की जगह लेने वाले नए केजीबी प्रमुख विक्टर चेब्रीकोव के दस्तखत वाले 1982 के एक पत्र में लिखा है- ‘यूएसएसआर केजीबी ने भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे से संबंध बना रखे हैं। आर गांधी ने इस बात पर आभार जताया है कि सोवियत कारोबारी संगठनों के सहयोग से वह जो कंपनी चला रहे हैं, उसके कारोबारी सौदों का लाभ प्रधानमंत्री के परिवार को मिल रहा है। आर. गांधी ने बताया है कि इस चैनल के जरिए प्राप्त होने वाले पैसे का एक बड़ा हिस्सा आर गांधी की पार्टी की मदद के लिए खर्च किया जा रहा है।” (पृष्ठ 223)। अलबतस ने यह भी उजागर किया है कि दिसंबर, 2005 में केजीबी प्रमुख विक्टर चेब्रीकोव ने सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति से राजीव गांधी के परिवार को अमेरिकी डालर में भुगतान करने की अनुमति मांगी थी। राजीव गांधी के परिवार के तौर पर उन्होंने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी की मां पाओला मैनो का नाम दिया था। अलबतस की किताब आने से पहले ही रूस की मीडिया ने पैसे के लेनदेन के मामले को उजागर कर दिया था। इसके आधार पर 4 जुलाई 1992 को दि हिंदू में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें कहा गया, ”रूस की विदेशी खुफिया सेवा इस संभावना को स्वीकार करती है कि राजीव गांधी के नियंत्रण वाली कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए केजीबी ने उन्हें सोवियत संघ से लाभ वाले ठेके दिलवाए हों।’
भारतीय मीडिया
राजीव गांधी की हत्या की वजह से उस वक्त भारतीय मीडिया में स्विट्जरलैंड और रूस के खुलासों की चर्चा नहीं हो पाई। पर जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली तो भारतीय मीडिया की दिलचस्पी इस मामले में बढ़ गई। जाने-माने स्तंभकार एजी नूरानी ने इन दोनों खुलासों के आधार पर 31 दिसंबर 1998 को स्टेट्समैन में लिखा था। सुब्रमण्यम स्वामी ने श्वेजर इलस्ट्रेटे और अलबतस की किताब के पन्नों को स्कैन कर अपनी जनता पार्टी की वेबसाइट पर डाला है। इसमें पत्रिका का वह ई-मेल भी शामिल है जिसमें इस बात की पुष्टि है कि पत्रिका ने 1991 के नवंबर अंक में राजीव गांधी के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जब सोनिया गांधी ने 27 अप्रैल, 2009 को मैंगलोर में यह कहा कि स्विस बैंक में जमा भारतीय काले धन को वापस लाने के लिए कांग्रेस कदम उठा रही है तब मैंने 29 अप्रैल, 2009 को इन तथ्यों को शामिल करते हुए एक लेख न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा। काला धन वापस लाने के सोनिया गांधी के दावे के संदर्भ में इस लेख में उनके परिवार के भ्रष्टाचार पर सवाल उठाया गया। जाने-माने पत्रकार राजिंदर पुरी ने 15 अगस्त 2006 को केजीबी के खुलासों पर एक लेख लिखा था। इंडिया टुडे के 27 दिसंबर, 2010 के अंक में राम जेठमलानी ने स्विट्जरलैंड में हुए खुलासे की बात कहते हुए यह सवाल उठाया कि वह पैसा अब कहां है? साफ है कि भारतीय मीडिया ने इन दोनों खुलासों पर बीच-बीच में लेख प्रकाशित किया। माकपा सांसद अमल दत्ता ने 7 दिसंबर, 1991 को 2.2 अरब डालर के मसले को संसद में उठाया था, लेकिन उस वक्त लोकसभा के अध्यक्ष रहे शिवराज पाटिल ने राजीव गांधी का नाम कार्यवाही से निकलवा दिया था।
संदेह का घेरा
सवाल यह उठता है कि इन दोनों खुलासों पर सोनिया गांधी और 1988 में बालिग हुए राहुल गांधी ने क्या जवाब दिया? जवाब है कुछ नहीं। सच कहा जाए तो इन खुलासों से ज्यादा गांधी परिवार की चुप्पी ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने का काम किया है। जब श्वेजर इलस्ट्रेटे ने यह आरोप लगाया कि सोनिया गांधी ने राजीव गांधी द्वारा घूस में लिए गए पैसे को राहुल गांधी के खाते में रखा है, तो मां-बेटे में से किसी ने न तो इसका विरोध किया और न ही इस पत्रिका के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की। मां-बेटे ने न ही 1998 में इस मामले पर लेख लिखने वाले एजी नूरानी के खिलाफ कोई कदम उठाया और न ही संबंधित दस्तावेज 2002 में अपनी वेबसाइट पर डालने वाले सुब्रमण्यम स्वामी के खिलाफ कुछ किया। न ही उन्होंने मेरे या एक्सप्रेस के खिलाफ 2009 के अप्रैल में इन तथ्यों पर आधारित लेख छापने के लिए कोई कानूनी कार्रवाई की। जब 1992 में रूस में केजीबी से संबंधित खुलासे की खबर दि हिंदू और टाइम्स आफ इंडिया ने प्रकाशित की, उस वक्त भी किसी गांधी ने कोई शिकायत नहीं की। न ही किसी गांधी ने येवगेनिया अलबतस के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की जिन्होंने 1994 में केजीबी और राजीव गांधी के बीच पैसे के लेनदेन के बारे में लिखा। न ही इन लोगों ने 15 अगस्त, 2006 को ऐसा लेख लिखने वाले राजिंदर पुरी के खिलाफ कोई कदम उठाया। हालांकि, 2007 में सोनिया के कुछ वफादार लोगों ने उनकी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अमेरिका में बड़े अनमने ढंग से एक मुकद्दमा जरूर दर्ज कराया था। ऐसा तब हुआ जब वहां के कुछ प्रवासी भारतीयों ने अलबतस के खुलासों के आधार पर पूरे पन्ने का विज्ञापन न्यूयार्क टाइम्स में छपवाया। वे सोनिया गांधी की सच्चाई को अमेरिका वालों के सामने रखना चाहते थे। अमेरिकी अदालत ने इस मुकद्दमे को तुरंत खारिज कर दिया क्योंकि सोनिया गांधी खुद अपने नाम से मुकद्दमा दर्ज कराने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं। आश्चर्य की बात यह है कि इस मुकद्दमें में भी स्विस बैंक में 2.2 अरब डालर होने की बात को चुनौती नहीं दी गई थी।
अगर मान लिया जाए कि ये दोनों खुलासे आधारहीन हैं और गांधी परिवार ईमानदार है तो ऐसे में उनकी ओर से कैसी प्रतिक्रिया होनी चाहिए थी? ईमानदार आदमी की प्रतिक्रिया वैसी ही होती है जैसी मोरारजी देसाई ने दी थी। जब पुलित्जर पुरस्कार विजेता खोजी पत्रकार सेमोर हेर्स ने अपनी किताब में यह आरोप लगाया कि भारतीय कैबिनेट में मोरारजी सीआईए एजेंट थे तो 87 साल के बूढ़े और रिटायर्ड मोरारजी देसाई ने न सिर्फ गुस्से का इजहार किया बल्कि एक मानहानि का मुकद्दमा भी दर्ज कराया। मोरारजी देसाई के मरने के पांच साल बाद अमेरिकन स्पेक्टेटर में रेल जेन आइजैक ने लिखा कि हेर्स चरित्र हनन करने में माहिर थे और हेनरी किसिंजर को नीचा दिखाने के लिए उन्होंने मोरारजी को निशाना बना लिया। जब मोरारजी के मानहानि मुकद्दमे पर सुनवाई शुरू हुई तो 93 साल की उम्र वाले मोरारजी अमेरिका जाने में सक्षम नहीं थे और उनकी जगह पर किसिंजर ने जाकर हेर्स के दावों को खारिज किया। कहने का मतलब है कि अगर कोई ईमादार होता है तो अपनी उम्र का ख्याल न करते हुए खुद पर लगाए जा रहे आरोपों पर प्रतिक्रिया देता है। संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अब तक इस मसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह तब जब वे पूरी तरह से सक्रिय हैं, न कि मोरारजी देसाई की तरह सेवानिवृत्त और बुजुर्ग। जब स्विस पत्रिका में यह मामला उजागर हुआ था तो उनकी उम्र महज 41 साल थी। अगर सोनिया और राहुल के बजाए इन दोनों खुलासों में भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी का नाम होता तो भारतीय मीडिया और सोनिया गांधी की सरकार उन्हें सलाखों के पीछे भेजने के लिए क्या नहीं करती।
20.80 लाख करोड़ रुपए की लूट
स्विस बैंक में गांधी परिवार के अरबों रुपए का मामला विदेशी गुमनाम खातों में जमा भारतीय पैसे को वापस लाने से जुड़ा हुआ है। भारत को छोड़कर दुनिया के सभी देशों ने स्विस बैंक और इसकी तरह अन्य बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने में दिलचस्पी दिखाई है। पर भारत ने इस काम में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। आखिर ऐसा क्यों?
2009 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने यह कहा था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो विदेशों में जमा काले धन को वापस लाएंगे। विदेशों में भारत का 500 अरब डालर से लेकर 1400 अरब डालर के बीच काला धन जमा होने का अनुमान है। कांग्रेस ने इतनी रकम होने की बात को शुरुआत में नकार दिया था। पर जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तो मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने भी यह कहा कि वे इस काले धन को वापस लाएंगे। वैश्विक स्तर पर काले धन के मसले पर काम करने वाली संस्था ग्लोबल फायनैंशियल इंटीग्रिटी (जीएफआई) ने भारत में हुई लूट के बारे में कहा है, ”1948 से लेकर 2008 के बीच भारत ने 213 अरब डालर काले धन के रूप में गंवाए हैं। यह कर चोरी, भ्रष्टाचार, घूसखोरी और आपराधिक गतिविधियों के जरिए किया गया है।” ऐसे में क्या किसी को यह बताने में बहुत मुश्किल होगी कि आखिर कैसे सोनिया के परिवार के गुप्त खाते में 2.2 अरब डॉलर आए? जीएफआई के आंकड़े में 2जी और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के नाम पर हुई लूट तो शामिल ही नहीं है। अब ऐसे में इस बात पर विचार करना जरूरी हो जाता है कि सोनिया गांधी के गुप्त खाते की वजह से भारत का विदेशों में जमा काला धन वापस लाने की कोशिशों पर किस तरह का असर पड़ेगा?
लूटने वाले सुरक्षित
कुछ उदाहरणों से यह बात साफ हो जाएगी कि भारत सरकार किस तरह विदेशों में जमा भारत के काले धन को वापस लाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। 2008 के फरवरी में जर्मनी के सरकारी अधिकारियों ने यह जानकारी जुटाई की लिशेंस्टीन बैंक में दुनिया के कई देशों के नागरिकों ने कितना काला धन जमा किया है। जर्मनी के वित्त मंत्री ने उस वक्त कहा कि अगर दुनिया की कोई और सरकार काला धन जमा करने वाले अपने नागरिकों का नाम जानना चाहती है तो वे उसे ये नाम दे देंगे। मीडिया में कुछ ऐसी खबरें आईं जिनमें कहा गया कि लिशेंस्टीन बैंक से जिन खाताधारियों के नाम मिले हैं उनमें 250 भारतीय भी हैं। जर्मनी के खुले प्रस्ताव के बावजूद संप्रग सरकार ने इन नामों को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। टाइम्स आफ इंडिया में भी उस समय एक खबर प्रकाशित हुई जिसमें बताया गया कि वित्त मंत्रालय और प्रधनमंत्री कार्यालय लिशेंस्टीन के खाताधारियों के नाम जानने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इस बीच दबाव बढ़ने पर भारत सरकार ने नाम के लिए अनुरोध तो किया लेकिन खुले प्रस्ताव के बजाए जर्मनी के साथ हुए कर समझौते के तहत। आखिर दोनों में फर्क क्या है? फर्क यह है कि कर समझौते के तहत मिलने वाले नामों को गोपनीय रखा जाता है लेकिन खुले प्रस्ताव के तहत मिलने वाले नाम को सार्वजनिक किया जा सकता है। इससे साफ हो जाता है कि सरकार वैसे लोगों का नाम नहीं उजागर करना चाहती है जिन्होंने काला धन विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है।
दूसरा सनसनीखेज मामला है हसन अली का। पुणे के इस कारोबारी के बारे में यह पाया गया कि वह 1.5 लाख करोड़ रुपए के स्विस खाते का संचालन कर रहा था। आयकर विभाग ने उस पर भारत का पैसा गलत ढंग से विदेशी खाते में रखने के लिए 71,848 करोड़ रुपए का कर लगाया। इस मामले में जानकारी हासिल करने के लिए स्विस सरकार को जो अनुरोध भेजा गया उसे इस तरह से तैयार किया गया कि सूचनाएं नहीं मिल सकें। हसन अली के साथ कई बड़े नामों के जुड़े होने की बात की जा रही है। सरकार आखिर क्यों नहीं इस मामले की गहराई से जांच करना चाहती है। हसन अली जैसे लोग ही भारत के भ्रष्ट लोगों का पैसा विदेशों में हवाला के जरिए पहुंचाते हैं। अगर हसन अली से जुड़ी सच्चाई सामने आ जाती है तो कई भ्रष्ट लोग नंगे हो जाएंगे। हमें यह भी समझना होगा कि सोनिया गांधी के अरबों डालर स्विस बैंक में होते हुए भारत के 462 अरब डालर की लूट की स्वतंत्र जांच नहीं हो सकती। सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने चुनाव लड़ते वक्त जो हलफनामा दिया था उसके मुताबिक दोनों की संयुक्त संपत्ति सिर्फ 363 लाख रुपए है। सोनिया के पास कोई कार नहीं है। 19 नवंबर 2010 को सोनिया ने कहा कि भ्रष्टाचार और लोभ भारत में बढ़ रहा है। 19 दिसंबर 2010 को राहुल गांधी ने कहा कि भ्रष्ट लोगों को कठोर सजा दी जानी चाहिए। आमीन!

डोंबारी बुरु

 झारखंड का जालियांवाला बाग है खूंटी जिले का डोंबारी बुरु आज से 122 साल पहले नौ जनवरी 1899 को अंग्रेजों ने डोंबारी बुरु में निर्दोष लोगों को ...