मंगलवार, 26 अगस्त 2014

rahul verma madhan garh

भ्रष्टाचार मंे लिप्त नेता भ्रष्टाचार खत्म करने का करते है झूठा दावा!
आज वहीं लोग भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा कर रहे है जो स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त रहे। जिनके इंसाफ चरित्र को अगर देखा जाय और निष्पक्ष ही कर तो पूरा कि चरित्र ही अत्याचार, भ्रष्टाचार, अन्याय, बरर्बरता साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद से भरा पड़ा है। जिस व्यक्ति का राजनीतिक सफर की शुरू आत ही अत्याचार, भ्रष्टाचार से भरा है वह अत्याचार, भ्रष्टाचार कैसे खत्म कर सकता है। क्यांेकि उसकी बुनियाद ही गलत है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि कोई भी महल बुनियाद पर ही टिकी होती है। अब अगर उसकी बुनियाद ही कमजोर होकर नष्ट हो जाती है। तो वह महल स्वाभाविक है कि बुनियाद के कमजोर होते ही धराशायी हो जायेगी। यह बात दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति जानता है। इसलिए वह उस बुनियाद को कमी स्वयं कमजोर नहीं सकता पर वह महल जिस बुनियाद पर टिकी ही। यह बात समझ में आती है कि भ्रष्टाचार खत्म करने का महज एक दिखावा कर सकता है। अब मोदी की इस दावे को कैसे मान लिया जाये कि मोदी भारत से अत्याचार, भ्रष्टाचार खत्म कर देगा। क्यांेकि मोदी की राजनीतिक महल अत्याचार, भ्रष्टाचार, अन्याय, बर्बरता कामय है। यह भला किसे नहीं मालूम है कि मोदी आरएसएस का सदस्य है। और लोगों को यह भी है कि आरएसएस का काम ही अत्याचार भ्रष्टाचार, अन्याय, बर्बरता सामाजिक भेदभाव सासम्प्रदायकिता पैदा करके ब्राह्मणी व्यवस्था को मजबूत करके भारत की सŸाा पर कन्ट्रोल बनाये रखना उसकी प्राथमिकता होती है।
अब नरेन्द्र मोदी और भाजपा पर कैसे यकीन किया जा सकता है कि भाजपा गर्वमेन्ट जो दावा करती है वह उस पर अमल करेगी क्यांेकि सच्चाई यह है कि भाजपा पर तरह से आरएसएस का कब्जा है सभी जानते है कि चुनाव मंे भाजपा की कमान मोहन भागवता के पास पूरी रही है। जिसने भाजपा को यहां केन्द्र तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी यहाँ तक की केन्द्र की बागडोर के लिए अत्याचार, भ्रष्टाचार, अन्याय, बर्बरता का सहारा लिया और एससी, एसटी, ओबीसी को मुसलमानांे के विरोध मंे भड़का कर वोट बैंक के लिए प्रेरित किये। अब भाजपा यह बताये कि आरएसएस को कैसे भूल सकती है। और अगर मोदी और भाजपा पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा आरएसएस पर प्रतिबंदी लगायेगी जो एक अत्याचार, भ्रष्टाचार, अन्याय, बर्बरता फैलाने वाला संगठन है। यहाँ तक कि आंतकवाद  देशद्रोह मंे लिप्त पाया गया। प्रमाण भी मौजूद है कि असीमानन्द 21 बम ब्लास्ट की जिम्मेदारी अदालत में स्वयं स्वीकार किया। और प्रज्ञा ठाकुर नाम की लड़की कर्नल पुरोहित जैसे लोग आतंवकाद मंे लिप्त पाये गये है। ये सभी आरएसएस के सदस्य है। क्या भाजपा इस संगठन पर प्रतिबंध लगायेगी। ऐसा भरोसा नहीं होता है। क्योंकि इन्हीं संगठनांे के आसामाजिक और अमानवीय कारनामे के कारण आज भाजपा केन्द्र मे विराजमान है। कहने का अर्थ है कि जिसकी बुनियाद पर भाजपा की महल खड़ी है। उस बुनियाद की ईट मोदी या भाजप कैस निकलेगी किस पर यकीन नहीं किया जा सकता है। मोदी को गुजरात काण्ड से पहले गुजरात के अलावा कौन पहचानता था। अगर यह बात पूछी जाय तो उतर यही मिलेगा कि कोई नहीं। विकास की दलील देने वालांे से पूछा जाय कि गुजरात झगड़े से पहले मोदी को क्यांे नहीं पहचानते थे। अगर विकास से सच में मोदी की पहचान बनी तो गुजरात झगड़े से पहले क्यांे नहीं पहचान बनी, सच तो यह है कि मोदी ने गुजरात में विकास किया ही नहीं तो विकास के नाम पर पहचान कैसे बनती। एक बात साफ है कि मोदी ने विकास के नाम गरीब किसानों की खेती योग्य जमीन पर कब्जा करके टाटा, अंबानी, जैसे पूंजीपतियों को मौजूदा रेट से कम कीमत पर बचे दिया। यहाँ तक की लखपत तालूका दीपक सीमंेन्ट को मात्र 5 रूपये वर्ग मीटर और एबीजी सीमंेट को तीन सौ हेक्टेयर जमीन मात्र 11 रूपये वर्ग मीटर मंे बेच दिया। इससे बड़ा भ्रष्टाचार और क्या हो सकता है कि इतने कम कीमत में जमीन मिल सकती है। आज भारत में किसी भी राज्य मंे इतनी कम कीमत में जमीन नहीं मिल सकती है। क्या मोदी किसानों को और मजदूर को भी इस कीमत मंे जमीन दे सकते है? सवाल है कि इतनी कम कीमत में जमीन गरीब, मजदूर, किसान को न देकर पूंजीपतियो को क्यों दिया गया? अब इससे बड़ा भ्रष्टाचार और क्या हो सकता है? भारत के लोगांे को मालूम होना चाहिए कि मोदी की पहचान गुजरात मंे विकास से नहीं बल्कि गुजरात में दंगे फसाद से साम्प्रदायिक लीडर के रूप मंे हुई। गुजरात दंगे ने पूरी तरह से मोदी और गुजरात गर्वमेन्ट को अयोग्य, अकुशल साबित किया और कांग्रेस की गलत नीतियांे का यह परिणाम था कि जो मोदी को एक साम्प्रदायिक लीडर बनने का मौका मिला। क्यांेकि केन्द्र की  गर्वमेन्ट को यह अधिकार होता है कि किसी भी राज्य की गर्वमेन्ट राज्य मंे अमन शान्ति बनाये रखने मंे अयोग्य और नकाम है तो केन्द्र की गर्वमेन्ट प्रदेश गर्वमेन्ट को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। लेकिन कई महीनों तक दंगा हुआ। इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है? मोदी और गुजरात गर्वमेंन्ट आयोग्य, अक्षम होने का प्रमाण मौजूद था। फिर भी कांग्रेस सरकार ने मोदी को साम्प्रदायिक लीडर बनने का पूरा-पूरा अवसर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि मोदी ने साम्प्रदायिक लीडर के रूप में पहचान बनायी और कोई रूकावट न होने के कारण मोदी ने आरएसएस का सहारा लिया। गुजरात और गुजरात जैसा माहौल पूरे भारत मंे आरएसएस के लोगांे द्वारा बनाने में सहयोग किया। कहने का अर्थ यह हुआ कि पूरे भारत में आरएसएस अत्याचार, भ्रष्टाचार, अन्याय, बर्बारता फैलाने का काम कर रही है। लेकिन आज तक कांग्रेस की गर्वमेन्ट ने आरएसएस पर कभी नहीं प्रतिबंध लगाया। तो फिर भाजपा और मोदी गर्वमेन्ट को कैसे रोक लगा सकती है। क्योंकि इनकी राजनैतिक इमारत ही आरएसएस के अत्याचार, भ्रष्टाचार, बर्बरता, पर खड़ी है। इसलिए यह गर्वमेन्ट ऐसा कभी नहीं कर सकती। यह केवल भ्रष्टाचार और बर्बरता खत्म करने का दिखावा कर सकती है, अगर मोदी सरकार विकास के लम्बे चैड़े दावे कर रही है तो हम चुनौती देते है कि मोदी बैकवर्ड के लीडर है इसलिए मोदी को पिछड़े वर्ग की आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक विकास के लिए जाति आधारित गिनती कराना चाहिए, और मोदी को जाति आधारित गिनती का मुद्दा उठाकर समझ लेना चाहिए कि भाजपा गर्वमेन्ट में उसकी क्या औकात है?
इरशाद (प्रदेश सचिव, बीएमपी)
मो.7388008549

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

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आखिर क्यों खाया था पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस ?



आज हम आपको महाभारत से जुडी एक घटना बताते है जिसमे पांचो पांडवों ने अपने मृत पिता पाण्डु का मांस खाया था उन्होंने ऐसा क्यों किया यह जानने के लिए पहले हमे पांडवो के जनम के बारे में जानना पड़ेगा। पाण्डु के पांच पुत्र युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे।  इनमे से युधिष्ठर, भीम और अर्जुन की माता कुंती तथा नकुल और सहदेव की माता माद्री थी। पाण्डु इन पाँचों पुत्रों के पिता तो थे पर इनका जनम पाण्डु के वीर्य तथा सम्भोग से नहीं हुआ था क्योंकि पाण्डु को श्राप था की जैसे ही वो सम्भोग करेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी (सम्पूर्ण कहानी आप यहाँ पढ़ सकते है -  16 पौराणिक कथाएं - पिता के वीर्य और माता के गर्भ के बिना जन्मे पौराणिक पात्रों की ) . इसलिए पाण्डु के आग्रह पर यह पुत्र कुंती और माद्री ने भगवान का आहवान करके प्राप्त किये थे।


जब पाण्डु की मृत्यु हुई तो उसके मृत शरीर का मांस पाँचों भाइयों ने मिल बाट कर खाया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योकिं स्वयं पाण्डु की ऐसी इच्छा थी। चुकी उसके पुत्र उसके वीर्ये से पैदा नहीं हुए थे इसलिए पाण्डु का ज्ञान, कौशल उसके बच्चों में नहीं आ पाया था।  इसलिए उसने अपनी मृत्यु पूर्व ऐसा वरदान माँगा था की उसके बच्चे उसकी मृत्यु के पश्चात उसके शरीर का मांस मिल बाँट कर खाले ताकि उसका ज्ञान बच्चों में स्थानांतरित हो जाए।

पांडवो द्वारा पिता का मांस खाने के सम्बन्ध में दो मान्यता प्रचलित है।  प्रथम मान्यता के अनुसार मांस तो पांचो भाइयों ने खाया था पर सबसे ज्यादा हिस्सा सहदेव ने खाया था।  जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार सिर्फ सहदेव ने पिता की इच्छा का पालन करते हुए उनके मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये। पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने पे वर्तमान का और तीसरे टुकड़े को खाते ही भविष्य का। यहीं कारण था की सहदेव पांचो भाइयों में सबसे अधिक ज्ञानी था और इससे उसे भविष्य में होने वाली घटनाओ को देखने की शक्ति मिल गई थी।

शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण के अलावा वो एक मात्र शख्स सहदेव ही था जिसे भविष्य में होने वाले महाभारत के युद्ध के बारे में सम्पूर्ण बाते पता थी। श्री कृष्ण को डर था की कहीं सहदेव यह सब बाते औरों को न बता दे इसलिए श्री कृष्ण ने सहदेव को श्राप  दिया था की की यदि उसने ऐसा किया तो  मृत्यु हो जायेगी।

16 पौराणिक कथाएं - पिता के वीर्य और माता के गर्भ के बिना जन्मे पौराणिक पात्रों की

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि में कई ऐसे पात्रों का वर्णन है जिनका जन्म बिना माँ के गर्भ और पिता के वीर्य के हुआ था। यहां हम आपको कुछ ऐसे ही पौराणिक पात्रो क़े ज़न्म की 16  कहानी बतायेँगे। इनमे से कई पात्रो के ज़न्म मे माँ के गर्भ का कोई योगदान नहीं था तो कुछ पात्रों के ज़न्म में पिता क़े वीर्य का जबकि कुछ मैं दोनो क़ा हीं।

Child in mother womb
माँ के गर्भ में बच्चा  

1. धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर के जन्म कि कथा :
हस्तिनापुर नरेश शान्तनु और रानी सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। शान्तनु का स्वर्गवास चित्रांगद और विचित्रवीर्य के बाल्यकाल में ही हो गया था इसलिये उनका पालन पोषण भीष्म ने किया। भीष्म ने चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया लेकिन कुछ ही काल में गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मारा गया। इस पर भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया। अब भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिन्ता हुई। उन्हीं दिनों काशीराज की तीन कन्याओं, अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला था। उनके स्वयंवर में जाकर अकेले ही भीष्म ने वहाँ आये समस्त राजाओं को परास्त कर दिया और तीनों कन्याओं का हरण कर के हस्तिनापुर ले आये। बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म को बताया कि वह अपना तन-मन राज शाल्व को अर्पित कर चुकी है। उसकी बात सुन कर भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया और अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया।


राजा शाल्व ने अम्बा को ग्रहण नहीं किया अतः वह हस्तिनापुर लौट कर आ गई और भीष्म से बोली, "हे आर्य! आप मुझे हर कर लाये हैं अतएव आप मुझसे विवाह करें।" किन्तु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। अम्बा रुष्ट हो कर परशुराम के पास गई और उनसे अपनी व्यथा सुना कर सहायता माँगी। परशुराम ने अम्बा से कहा, "हे देवि! आप चिन्ता न करें, मैं आपका विवाह भीष्म के साथ करवाउँगा।" परशुराम ने भीष्म को बुलावा भेजा किन्तु भीष्म उनके पास नहीं गये। इस पर क्रोधित होकर परशुराम भीष्म के पास पहुँचे और दोनों वीरों में भयानक युद्ध छिड़ गया। दोनों ही अभूतपूर्व योद्धा थे इसलिये हार-जीत का फैसला नहीं हो सका। आखिर देवताओं ने हस्तक्षेप कर के इस युद्ध को बन्द करवा दिया। अम्बा निराश हो कर वन में तपस्या करने चली गई।

विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग विलास में रत हो गये किन्तु दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई और वे क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। अब कुल नाश होने के भय से माता सत्यवती ने एक दिन भीष्म से कहा, "पुत्र! इस वंश को नष्ट होने से बचाने के लिये मेरी आज्ञा है कि तुम इन दोनों रानियों से पुत्र उत्पन्न करो।" माता की बात सुन कर भीष्म ने कहा, "माता! मैं अपनी प्रतिज्ञा किसी भी स्थिति में भंग नहीं कर सकता।"

यह सुन कर माता सत्यवती को अत्यन्त दुःख हुआ। तब  उन्हें अपने ज्येष्ठ पुत्र वेदव्यास का स्मरण किया।स्मरण करते ही वेदव्यास वहाँ उपस्थित हो गये। सत्यवती उन्हें देख कर बोलीं, "हे पुत्र! तुम्हारे सभी भाई निःसन्तान ही स्वर्गवासी हो गये। अतः मेरे वंश को नाश होने से बचाने के लिये मैं तुम्हें आज्ञा देती हूँ कि तुम नियोग विधि से उनकी पत्नियों से सन्तान उत्पन्न करो।" वेदव्यास उनकी आज्ञा मान कर बोले, "माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिये कि वो मेरे सामने से निवस्त्र हॉकर गुजरें जिससे की उनको गर्भ धारण होगा।"  सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका और फिर छोटी रानी छोटी रानी अम्बालिका गई पर अम्बिका ने उनके तेज से डर कर अपने नेत्र बन्द कर लिये जबकि अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई। वेदव्यास लौट कर माता से बोले, "माता अम्बिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा जबकि अम्बालिका के गर्भ से  पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र पैदा होगा " ।  यह जानकार इससे माता सत्यवती ने बड़ी रानी अम्बिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जा कर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी बिना किसी संकोच के वेदव्यास के सामने से गुजरी।   इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा, "माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदान्त में पारंगत अत्यन्त नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।" इतना कह कर वेदव्यास तपस्या करने चले गये।

समय आने पर अम्बिका के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।

2. कौरवों के जन्म की कथा :
एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए। गांधारी ने उनकी बहुत सेवा की। जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने गांधारी को वरदान मांगने को कहा। गांधारी ने अपने पति के समान ही बलवान सौ पुत्र होने का वर मांगा। समय पर गांधारी को गर्भ ठहरा और वह दो वर्ष तक पेट में ही रहा। इससे गांधारी घबरा गई और उसने अपना गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के समान एक मांस पिण्ड निकला।

महर्षि वेदव्यास ने अपनी योगदृष्टि से यह सब देख लिया और वे तुरंत गांधारी के पास आए। तब गांधारी ने उन्हें वह मांस पिण्ड दिखाया। महर्षि वेदव्यास ने गांधारी से कहा कि तुम जल्दी से सौ कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो और सुरक्षित स्थान में उनकी रक्षा का प्रबंध कर दो तथा इस मांस पिण्ड पर जल छिड़को। जल छिड़कने पर उस मांस पिण्ड के एक सौ एक टुकड़े हो गए। व्यासजी ने कहा कि मांस पिण्डों के इन एक सौ एक टुकड़ों को घी से भरे कुंडों में डाल दो। अब इन कुंडों को दो साल बाद ही खोलना। इतना कहकर महर्षि वेदव्यास तपस्या करने हिमालय पर चले गए। समय आने पर उन्हीं मांस पिण्डों से पहले दुर्योधन और बाद में गांधारी के 99 पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई।
3. पांडवों के जन्म की कथा : 
पांचो पांडवो का जन्म भी बिना पिता के वीर्य के हुआ था। एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों - कुन्ती तथा माद्री - के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया, "राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जायेगी।"

इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुये और अपनी रानियों से बोले, "हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग कर के इस वन में ही रहूँगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ़" उनके वचनों को सुन कर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा, "नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिये।" पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर के उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी।

इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, "राजन्! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।"

ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, "हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?" कुन्ती बोली, "हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ।" इस पर पाण्डु ने धर्म को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुन्ती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को उस मन्त्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ।

एक दिन राजा पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन मे प्रवृत हुये ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई।

4. कर्ण के जन्म की कथा :
कर्ण का जन्म कुन्ती को मिले एक वरदान स्वरुप हुआ था। जब वह कुँआरी थी, तब एक बार दुर्वासा ऋषि उसके पिता के महल में पधारे। तब कुन्ती ने पूरे एक वर्ष तक ऋषि की बहुत अच्छे से सेवा की। कुन्ती के सेवाभाव से प्रसन्न होकर उन्होनें अपनी दिव्यदृष्टि से ये देख लिया कि पाण्डु से उसे सन्तान नहीं हो सकती और उसे ये वरदान दिया कि वह किसी भी देवता का स्मरण करके उनसे सन्तान उत्पन्न कर सकती है। एक दिन उत्सुकतावश कुँआरेपन में ही कुन्ती ने सूर्य देव का ध्यान किया। इससे सूर्य देव प्रकट हुए और उसे एक पुत्र दिया जो तेज़ में सूर्य के ही समान था, और वह कवच और कुण्डल लेकर उत्पन्न हुआ था जो जन्म से ही उसके शरीर से चिपके हुए थे। चूंकि वह अभी भी अविवाहित थी इसलिये लोक-लाज के डर से उसने उस पुत्र को एक बक्से में रख कर गंगाजी में बहा दिया।

5. राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन के जन्म की कथा :
दशरथ अधेड़ उम्र तक पहुँच गये थे लेकिन उनका वंश सम्हालने के लिए उनका पुत्र रूपी कोई वंशज नहीं था। उन्होंने पुत्र कामना के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने का विचार किया। उनके एक मंत्री सुमन्त्र ने उन्हें सलाह दी कि वह यह यज्ञ अपने दामाद ऋष्यशृंग या साधारण की बोलचाल में शृंगि ऋषि से करवायें। दशरथ के कुल गुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ थे। वह उनके धर्म गुरु भी थे तथा धार्मिक मंत्री भी। उनके सारे धार्मिक अनुष्ठानों की अध्यक्षता करने का अधिकार केवल धर्म गुरु को ही था। अतः वशिष्ठ की आज्ञा लेकर दशरथ ने शृंगि ऋषि को यज्ञ की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया।
शृंगि ऋषि ने दोनों यज्ञ भलि भांति पूर्ण करवाये तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ के दौरान यज्ञ वेदि से एक आलौकिक यज्ञ पुरुष या प्रजापत्य पुरुष उत्पन्न हुआ तथा दशरथ को स्वर्णपात्र में नैवेद्य का प्रसाद प्रदान करके यह कहा कि अपनी पत्नियों को यह प्रसाद खिला कर वह पुत्र प्राप्ति कर सकते हैं। दशरथ इस बात से अति प्रसन्न हुये और उन्होंने अपनी पट्टरानी कौशल्या को उस प्रसाद का आधा भाग खिला दिया। बचे हुये भाग का आधा भाग (एक चौथाई) दशरथ ने अपनी दूसरी रानी सुमित्रा को दिया। उसके बचे हुये भाग का आधा हिस्सा (एक बटा आठवाँ) उन्होंने कैकेयी को दिया। कुछ सोचकर उन्होंने बचा हुआ आठवाँ भाग भी सुमित्रा को दे दिया। सुमित्रा ने पहला भाग भी यह जानकर नहीं खाया था कि जब तक राजा दशरथ कैकेयी को उसका हिस्सा नहीं दे देते तब तक वह अपना हिस्सा नहीं खायेगी। अब कैकेयी ने अपना हिस्सा पहले खा लिया और तत्पश्चात् सुमित्रा ने अपना हिस्सा खाया। इसी कारण राम (कौशल्या से), भरत (कैकेयी से) तथा लक्ष्मण व शत्रुघ्न (सुमित्रा से) का जन्म हुआ। 

6. पवन पुत्र हनुमान के जन्म कि कथा : 
पुराणों की कथानुसार हनुमान की माता अंजना संतान सुख से वंचित थी। कई जतन करने के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इस दुःख से पीड़ित अंजना मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा सरोवर के पूर्व में एक नरसिंहा आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है वहां जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करना पड़ेगा तब जाकर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।

अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था बारह वर्ष तक केवल वायु का ही भक्षण किया तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से खुश होकर उसे वरदान दिया जिसके परिणामस्वरूप चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा को अंजना को पुत्र की प्राप्ति हुई। वायु के द्वारा उत्पन्न इस पुत्र को ऋषियों ने वायु पुत्र नाम दिया।

7. हनुमान पुत्र मकरध्वज के ज़न्म की कथा :
हनुमान वैसे तो ब्रह्मचारी थे फिर भी वो एक पुत्र के पिता बने थे हालांकि यह पुत्र वीर्य कि जगाह पसीनें कि बूंद से हुआ था। कथा कुछ इस प्रकार है जब हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी थी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे। उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जिसका नाम पड़ा मकरध्वज। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था उसे अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वार पाल नियुक्त किया गया था। जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। तत्पश्चात मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

8. द्रोणाचार्य के जन्म की कथा : 
द्रोणाचार्य कौरव व पाण्डव राजकुमारों के गुरु थे। द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ इसका वर्णन महाभारत के आदि पर्व में मिलता है- एक समय गंगा द्वार नामक स्थान पर महर्षि भरद्वाज रहा करते थे। वे बड़े व्रतशील व यशस्वी थे। एक दिन वे महर्षियों को साथ लेकर गंगा स्नान करने गए। वहां उन्होंने देखा कि घृताची नामक अप्सरा स्नान करके जल से निकल रही है। उसे देखकर उनके मन में काम वासना जाग उठी और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। तब उन्होंने उस वीर्य को द्रोण नामक यज्ञ पात्र (यज्ञ के लिए उपयोग किया जाने वाला एक प्रकार का बर्तन) में रख दिया। उसी से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। द्रोण ने सारे वेदों का अध्ययन किया। महर्षि भरद्वाज ने पहले ही आग्नेयास्त्र की शिक्षा अग्निवेश्य को दे दी थी। अपने गुरु भरद्वाज की आज्ञा से अग्निवेश्य ने द्रोणाचार्य को आग्नेयास्त्र की शिक्षा दी। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान की पुत्री कृपी से हुआ था।


9. ऋषि ऋष्यश्रृंग के जन्म की कथा : 
ऋषि ऋष्यश्रृंग महात्मा काश्यप (विभाण्डक) के पुत्र थे। महात्मा काश्यप बहुत ही प्रतापी ऋषि थे। उनका वीर्य अमोघ था और तपस्या के कारण अन्त:करण शुद्ध हो गया था। एक बार वे सरोवर में पर स्नान करने गए। वहां उर्वशी अप्सरा को देखकर जल में ही उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को जल के साथ एक हिरणी ने पी लिया, जिससे उसे गर्भ रह गया। वास्तव में वह हिरणी एक देवकन्या थी। किसी कारण से ब्रह्माजी उसे श्राप दिया था कि तू हिरण जाति में जन्म लेकर एक मुनि पुत्र को जन्म देगी, तब श्राप से मुक्त हो जाएगी।

इसी श्राप के कारण महामुनि ऋष्यश्रृंग उस मृगी के पुत्र हुए। वे बड़े तपोनिष्ठ थे। उनके सिर पर एक सींग था, इसीलिए उनका नाम ऋष्यश्रृंग प्रसिद्ध हुआ। वाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।

10. कृपाचार्य व कृपी के जन्म की कथा : 
कृपाचार्य महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। उनके जन्म के संबंध में पूरा वर्णन महाभारत के आदि पर्व में मिलता है। उसके अनुसार- महर्षि गौतम के पुत्र थे शरद्वान। वे बाणों के साथ ही पैदा हुए थे। उनका मन धनुर्वेद में जितना लगता था, उतना पढ़ाई में नहीं लगता था। उन्होंने तपस्या करके सारे अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। शरद्वान की घोर तपस्या और धनुर्वेद में निपुणता देखकर देवराज इंद्र बहुत भयभीत हो गए। उन्होंने शरद्वान की तपस्या में विघ्न डालने के लिए जानपदी नाम की देवकन्या भेजी। वह शरद्वान के आश्रम में आकर उन्हें लुभाने लगी। उस सुंदरी को देखकर शरद्वान के हाथों से धनुष-बाण गिर गए। वे बड़े संयमी थे तो उन्होंने स्वयं को रोक लिया, लेकिन उनके मन में विकार आ गया था। इसलिए अनजाने में ही उनका शुक्रपात हो गया। वे धनुष, बाण, आश्रम और उस सुंदरी को छोड़कर तुरंत वहां से चल गए।

​उनका वीर्य सरकंडों पर गिरा था, इसलिए वह दो भागों में बंट गया। उससे एक कन्या और एक पुत्र की उत्पत्ति हुई। उसी समय संयोग से राजा शांतनु वहां से गुजरे। उनकी नजर उस बालक व बालिका पर पड़ी। शांतनु ने उन्हें उठा लिया और अपने साथ ले आए। बालक का नाम रखा कृप और बालिका नाम रखा कृपी। जब शरद्वान को यह बात मालूम हुई तो वे राजा शांतनु के पास आए और उन बच्चों के नाम, गोत्र आदि बतलाकर चारों प्रकार के धनुर्वेदों, विविध शास्त्रों और उनके रहस्यों की शिक्षा दी। थोड़े ही दिनों में कृप सभी विषयों में पारंगत हो गए। कृपाचार्य की योग्यता देखते हुए उन्हें कुरुवंश का कुलगुरु नियुक्त किया गया।

11. द्रौपदी व धृष्टद्युम्न के जन्म की कथा : 
द्रोणाचार्य और द्रुपद बचपन के मित्र थे। राजा बनने के बाद द्रुपद को अंहकार हो गया। जब द्रोणाचार्य राजा द्रुपद को अपना मित्र समझकर उनसे मिलने गए तो द्रुपद ने उनका बहुत अपमान किया। बाद में द्रोणाचार्य ने पाण्डवों के माध्यम से द्रुपद को पराजित कर अपने अपमान का बदला लिया। राजा द्रुपद अपनी पराजय का बदला लेना चाहते थे था इसलिए उन्होंने ऐसा यज्ञ करने का निर्णय लिया, जिसमें से द्रोणाचार्य का वध करने वाला वीर पुत्र उत्पन्न हो सके। राजा द्रुपद इस यज्ञ को करवाले के लिए कई विद्वान ऋषियों के पास गए, लेकिन किसी ने भी उनकी इच्छा पूरी नहीं की।

अंत में महात्मा याज ने द्रुपद का यज्ञ करवा स्वीकार कर लिया। महात्मा याज ने जब राजा द्रुपद का यज्ञ करवाया तो यज्ञ के अग्निकुण्ड में से एक दिव्य कुमार प्रकट हुआ। इसके बाद उस अग्निकुंड में से एक दिव्य कन्या भी प्रकट हुई। वह अत्यंत ही सुंदर थी। ब्राह्मणों ने उन दोनों का नामकरण किया। वे बोले- यह कुमार बड़ा धृष्ट(ढीट) और असहिष्णु है। इसकी उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई है, इसलिए इसका धृष्टद्युम्न होगा। यह कुमारी कृष्ण वर्ण की है इसलिए इसका नाम कृष्णा होगा। द्रुपद की पुत्री होने के कारण कृष्णा ही द्रौपदी के नाम से विख्यात हुई।

12. राधा के जन्म की कथा : 
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार एक बार गोलोक में किसी बात पर राधा और श्रीदामा नामक गोप में विवाद हो गया। इस पर श्रीराधा ने उस गोप को असुर योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब उस गोप ने भी श्रीराधा को यह श्राप दिया कि आपको भी मानव योनि में जन्म लेना पड़ेगा। वहां गोकुल में श्रीहरि के ही अंश महायोगी रायाण नामक एक वैश्य होंगे। आपका छाया रूप उनके साथ रहेगा। भूतल पर लोग आपको रायाण की पत्नी ही समझेंगे, श्रीहरि के साथ कुछ समय आपका विछोह रहेगा।

ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का समय आया तो उन्होंने राधा से कहा कि तुम शीघ्र ही वृषभानु के घर जन्म लो। श्रीकृष्ण के कहने पर ही राधा व्रज में वृषभानु वैश्य की कन्या हुईं। राधा देवी अयोनिजा थीं, माता के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुई। उनकी माता ने गर्भ में वायु को धारण कर रखा था। उन्होंने योगमाया की प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया परंतु वहां स्वेच्छा से श्रीराधा प्रकट हो गईं।

13. राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के जन्म की कथा :
रामायण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक प्रसिद्ध राजा हुए। उनकी दो रानियां थीं- केशिनी और सुमति। दीर्घकाल तक संतान जन्म न होने पर राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। तब महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को साठ हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा।

कालांतर में सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। राजा उसे फेंक देना चाहते थे किंतु तभी आकाशवाणी हुई कि इस तूंबी में साठ हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में साठ हजार पुत्र प्राप्त होंगे। इसे महादेव का विधान मानकर सगर ने उन्हें वैसे ही सुरक्षित रखा। समय आने पर उन मटकों से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया।

देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के साठ हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोली राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।

14. जनक नंदिनी सीता के जन्म की कहानी : 
भगवान श्रीराम की पत्नी सीता का जन्म भी माता के गर्भ से नहीं हुआ था। रामायण के अनुसार उनका जन्म भूमि से हुआ था। वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड में राजा जनक महर्षि विश्वामित्र से कहते हैं कि-

अथ मे कृषत: क्षेत्रं लांगलादुत्थिता तत:।
क्षेत्रं शोधयता लब्धा नाम्ना सीतेति विश्रुता।
भूतलादुत्थिता सा तु व्यवर्धत ममात्मजा।

अर्थात्- एक दिन मैं यज्ञ के लिए भूमि शोधन करते समय खेत में हल चला रहा था। उसी समय हल के अग्र भाग से जोती गई भूमि से एक कन्या प्रकट हुई। सीता (हल द्वारा खींची गई रेखा) से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम सीता रखा गया। पृथ्वी से प्रकट हुई वह मेरी कन्या क्रमश: बढ़कर सयानी हुई।

15. मनु व शतरूपा के जन्म की कहानी : 
धर्म ग्रंथों के अनुसार मनु व शतरूपा सृष्टि के प्रथम मानव माने जाते हैं। इन्हीं से मानव जाति का आरंभ हुआ। मनु का जन्म भगवान ब्रह्मा के मन से हुआ माना जाता है। मनु का उल्लेख ऋग्वेद काल से ही मानव सृष्टि के आदि प्रवर्तक और समस्त मानव जाति के आदि पिता के रूप में किया जाता रहा है। इन्हें 'आदि पुरूष' भी कहा गया है। वैदिक संहिताओं में भी मनु को ऐतिहासिक व्यक्ति माना गया है। ये सर्वप्रथम मानव थे जो मानव जाति के पिता तथा सभी क्षेत्रों में मानव जाति के पथ प्रदर्शक स्वीकृत हैं। मनु का विवाह ब्रह्मा के दाहिने भाग से उत्पन्न शतरूपा से हुआ था।

मनु एक धर्म शास्त्रकार भी थे। धर्मग्रंथों के बाद धर्माचरण की शिक्षा देने के लिये आदिपुरुष स्वयंभुव मनु ने स्मृति की रचना की जो मनुस्मृति के नाम से विख्यात है। उत्तानपाद जिसके घर में ध्रुव पैदा हुआ था, इन्हीं का पुत्र था। मनु स्वायंभुव का ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत पृथ्वी का प्रथम क्षत्रिय माना जाता है। इनके द्वारा प्रणीत 'स्वायंभुव शास्त्र' के अनुसार पिता की संपत्ति में पुत्र और पुत्री का समान अधिकार है। इनको धर्मशास्त्र का और प्राचेतस मनु अर्थशास्त्र का आचार्य माना जाता है। मनुस्मृति ने सनातन धर्म को आचार संहिता से जोड़ा था।

16. राजा पृथु के जन्म की कथा :
पृथु एक सूर्यवंशी राजा थे, जो वेन के पुत्र थे। स्वयंभुव मनु के वंशज राजा अंग का विवाह सुनिथा नामक स्त्री से हुआ था। वेन उनका पुत्र हुआ। वह पूरी धरती का एकमात्र राजा था। सिंहासन पर बैठते ही उसने यज्ञ-कर्मादि बंद कर दिये। तब ऋषियों ने मंत्रपूत कुशों से उसे मार डाला, लेकिन सुनिथा ने अपने पुत्र का शव संभाल कर रखा। राजा के अभाव में पृथ्वी पर पाप कर्म बढऩे लगे। तब ब्राह्मणों ने मृत राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिसके फलस्वरूप स्त्री-पुरुष का जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम पृथु तथा स्त्री का नाम अर्चि हुआ। अर्चि पृथु की पत्नी हुई। पृथु पूरी धरती के एकमात्र राजा हुए। पृथु ने ही उबड़-खाबड़ धरती को जोतने योग्य बनाया। नदियों, पर्वतों, झरनों आदि का निर्माण किया। राजा पृथु के नाम से ही इस धरा का नाम पृथ्वी पड़ा।

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लुटेरे थैलीशाहों के लिए “अच्छे दिन” – मेहनतकशों और ग़रीबों के लिए “कड़े क़दम”!

सम्‍पादक मण्‍डल
Mukesh-Ambani-with-Modi‘मोदी सरकार’ के आते ही जिन अच्छे दिनों का शोर मचाया गया था, उनकी असलियत को अब आम लोग भी कुछ-कुछ समझने लगे हैं। बेशक़, ज़्यादा समझदार लोगों को इसे समझने में अभी वक़्त लगेगा। देशभर के तमाम बड़े पूँजीवादी घरानों से पाये हुए दस हज़ार करोड़ रुपये के चकाचौंध भरे चुनावी प्रचार के दौरान तूमार बाँधा गया था कि “अच्छे दिन बस आने वाले हैं”। तब कोई न कहता था कि इनके आने में अभी कई बरस लगेंगे। मगर सत्ता मिलते ही ‘ख़ज़ाना ख़ाली है’, ‘दुनिया में आर्थिक संकट है’, ‘कड़े कदम उठाने होंगे’ जैसी बातें शुरू हो गयी हैं। मानो पहले इनके बारे में कुछ पता ही नहीं था, जब जनता से लम्बे-चौड़े वादे किये जा रहे थे।
सिर्फ़ एक महीने के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो आने वाले दिनों की झलक साफ़ दिख जाती है। एक ओर यह बिल्कुल साफ़ हो गया है कि निजीकरण-उदारीकरण की उन आर्थिक नीतियों में कोई बदलाव नहीं होने वाला है जिनका कहर आम जनता पिछले ढाई दशक से झेल रही है। बल्कि इन नीतियों को और ज़ोर-शोर से तथा कड़क ढंग से लागू करने की तैयारी की जा रही है। दूसरी ओर, संघ परिवार से जुड़े भगवा उन्मादी तत्वों और हिन्दुत्ववादियों के गुण्डा-गिरोहों ने जगह-जगह उत्पात मचाना शुरू कर दिया है। पुणे में राष्ट्रवादी हिन्दू सेना नामक गुण्डा-गिरोह ने सप्ताह भर तक शहर में जो नंगा नाच किया जिसकी परिणति मोहसिन शेख नाम के युवा इंजीनियर की बर्बर हत्या के साथ हुई, वह तो बस एक ट्रेलर है। इन दिनों शान्ति-सद्भाव और सबको साथ लेकर चलने की बात बार-बार दुहराने वाले नरेन्द्र मोदी या उनके गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस नृशंस घटना पर चुप्पी साध ली। मेवात, मेरठ, हैदराबाद आदि में साम्प्रदायिक दंगे हो चुके हैं और कई अन्य जगहों पर ऐसी हिंसा की घटनाएँ हुई हैं।
विरोध के हर स्वर को कुचल देने के इरादों का संकेत अभी से मिलने लगा है। केरल में एक कालेज की पत्रिका में नरेन्द्र मोदी का चित्र तानाशाहों की कतार में छापने पर प्रिंसिपल और चार छात्रों पर मुकदमा दर्ज करने का मामला पुराना भी नहीं पड़ा था कि उसी राज्य में नौ छात्रों को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने पत्रिका में मोदी का मज़ाक उड़ाया था। दिल्ली में हिन्दी की एक युवा लेखिका को फेसबुक पर मोदी की आलोचना करने के कारण पहले भाजपा के एक कार्यकर्ता ने धमकियाँ दीं और जब वह उसके ख़ि‍लाफ़ अदालत में गयीं तो मजिस्ट्रेट ने उल्टे उन्हीं को ‘देशद्रोही’ बताकर उनके विरुद्ध मुक़दमा दर्ज करा दिया। इलाहाबाद में छात्रों-युवाओं की लोकप्रिय दीवार पत्रिका ‘संवेग’ निकालने वाले ग्रुप को चुनाव के बाद से मोदी-समर्थकों की ओर से लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं। ज़ाहिर है, यह तो केवल झाँकी है। जब इस सरकार का असली एजेण्डा लोगों के सामने आयेगा और इसकी नीतियों से बढ़ने वाली तबाही-बदहाली के विरुद्ध मेहनतकश लोग सड़कों पर उतरने लगेंगे तब ये सारे रामनामी दुशाले फेंककर नंगे दमन का सहारा लेंगे और लोगों को आपस में बाँटने के लिए जमकर धर्मोन्माद फैलायेंगे।
अभी तो मोदी सरकार का पहला एजेण्डा है पूँजीपतियों से किये गये अच्छे दिनों के वादों को जल्दी से जल्दी पूरा करना। इसमें वे बड़ी तेज़ी से जुट गये हैं। ऐलान कर दिया गया है – जनता बहुत से कड़े क़दमों के लिए तैयार हो जाये। नरेन्द्र मोदी का कहना है कि इन कड़े क़दमों के कारण समाज के कुछ वर्गों के लोग मुझसे नाराज़ हो सकते हें, लेकिन देशहित में ऐसा करना ज़रूरी है। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये सारे कड़े क़दम इस देश के मज़दूरों-मेहनतकशों और आम ग़रीब लोगों के लिए ही होंगे। जब भी अर्थव्यवस्था के संकट की बात होती है, तब ग़रीबों से ही क़ुर्बानी करने और अपने खाली पेट को थोड़ा और कसकर बाँध लेने के लिए कहा जाता है। संकट के कारण कभी ऐसा नहीं होता कि अपनी अय्याशियों में करोड़ों रुपये फूँकने वाले अमीरों पर लगाम कसी जाये। उनकी फ़िज़ूलख़र्चियों पर रोक लगायी जाये, उनकी लाखों-करोड़ों की तनख़्वाहों में कटौती की जाये या उनकी बेतहाशा आमदनी पर टैक्स बढ़ाकर संकट का बोझ हल्का करने के लिए संसाधन जुटाये जायें। अरबों-खरबों के ख़र्च वाली नेताशाही और अफ़सरशाही की अश्लील शाहख़र्चियों पर कोई अंकुश लगाने की बात कभी नहीं होती। “कड़े क़दमों” का हमेशा ही मतलब होता है, आम मेहनतकश लोगों की थाली से बची-खुची रोटी भी छीन लेना, उनके बच्चों के मुँह से दूध की आिख़री बूँद भी सुखा देना, उन्हें मजबूर कर देना कि जीने के लिए बैल की तरह दिनो-रात अपनी हड्डियाँ निचुड़वाते रहें।
इसके लिए मज़दूरों के जो भी थोड़े-बहुत अधिकार कागज़ पर बचे हैं, उन्हें भी हड़प लेने की तैयारी शुरू हो गयी है। राजस्थान में वसुन्धरा राजे की भाजपा सरकार ने मज़दूर अधिकारों पर हमला बोलकर रास्ता दिखा दिया है। 300 तक मज़दूरों वाले कारख़ानों के मालिक अब सरकार की अनुमति के बिना मज़दूरों को निकाल बाहर कर सकते हैं। 40 मज़दूरों वाले कारख़ानों को फैक्ट्री क़ानून से ही बाहर कर दिया गया है और यूनियन बनाना पहले से भी ज़्यादा मुश्किल बना दिया गया है। (इसकी विस्तृत रिपोर्ट पेज 7 पर पढ़ें।) श्रम क़ानूनों में सुधार के नाम पर जल्दी ही ऐसे क़दम देशभर में लागू किये जाने हैं। पूँजीपतियों और उनके भोंपू मीडिया ने इसका स्वागत करके अपनी इच्छा ज़ाहिर कर ही दी है।
जिस तरह अटलबिहारी वाजपेयी की 13 दिन वाली सरकार ने 1996 में सत्ता में आने के साथ ही देशव्यापी विरोध के बावजूद कुख्यात अमेरिकी कम्पनी एनरॉन की फ़ाइलें पास करायी थीं उसी तरह मोदी सरकार ने आने के साथ ही रिलायंस की गैस के दाम दोगुने करने को हरी झण्डी दे दी है। पाकिस्तान से बात करने पर पिछली सरकार को पानी पी-पीकर कोसने वाली भाजपा के नेता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को मोदी के शपथग्रहण समारोह में बुलाकर लहालोट हो रहे थे। पहले सैनिक हेमराज का कटा सिर वापस माँगने वाले मोदी अब नवाज़ शरीफ़ से साड़ी और शॉल का आदान-प्रदान कर रहे थे। क्योंकि अब उनके आका पूँजीपतियों को पाकिस्तान के बाज़ार की ज़रूरत है। दोनों तरफ़ के पूँजीपति एक-दूसरे के साथ पूँजीनिवेश और व्यापार बढ़ाने के मौक़े तलाश रहे हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार मोदी के प्रिय उद्योगपति घराने अडानी ने गुजरात में पाकिस्तान सीमा के निकट 10,000 मेगावाट का जो बिजलीघर लगाया है उसकी ज़्यादा बिजली वह पाकिस्तान को सप्लाई करना चाहता है, इसलिए भी नवाज़ शरीफ़ का इतना स्वागत किया गया है। अभी दोनों मुल्कों के शासक वर्ग की ज़रूरत है कि शान्ति के माहौल में उद्योग-व्यापार बढ़ाया जाये। लेकिन जैसे ही दोनों तरफ महँगाई, बेरोज़गारी, दमन-उत्पीड़न से बदहाल जनता सड़कों पर उतरने लगेगी वैसे ही एक बार फिर अन्धराष्ट्रवादी नारे देकर लोगों की भावनाओं को भड़काने का खेल शुरू कर दिया जायेगा।
मोदी सरकार के नये एजेण्डे में श्रम क़ानूनों में सुधार के अलावा मनरेगा में कटौती करना, रेल का माल ढुलाई भाड़ा और यात्री किराये में बढ़ोत्तरी, पूँजीपतियों के लिए ज़मीनें हड़पना आसान बनाने के वास्ते भूमि अधिग्रहण क़ानून को बदलना, जनता को मिलने वाली सब्सिडी में कटौती, खाद के दामों में बढ़ोत्तरी, खाद्य सुरक्षा विधेयक का दायरा कम करना, एलपीजी और डीज़ल के दामों में मासिक वृद्धि की प्रणाली लागू करना जैसी चीज़ें सबसे ऊपर हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि इनकी सबसे ज़्यादा मार आम ग़रीब-मेहनतकश जनता पर पड़ेगी। इस एजेण्डा में मज़दूरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी और बुनियादी हक़ों की गारण्टी करना, उनके शोषण-उत्पीड़न को ख़त्म करना, मालिकान द्वारा जब चाहे काम पर रखने जब चाहे निकाल बाहर करने की मनमानी को ख़त्म करना जैसी चीज़ें निश्चित तौर पर नहीं हैं। इन बातों से तो देश का विकास बाधित होता है। इसीलिए, गुजरात में मोदी सरकार ने राज्य से श्रम विभाग को ही ग़ायब कर दिया था। अब इतने के बाद यह बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए कि मोदी की नज़र में देश का मतलब कौन है? गुजरात में सिर्फ तीन कम्पनियों टाटा, मारुति और फोर्ड को 80,000 करोड़ की सब्सिडी देने वाले और अडानी ग्रुप को हज़ारों एकड़ ज़मीन एक रुपये एकड़ की दर से देने वाले मोदी की सरकार अब कह रही है कि ग़रीबों को मिलने वाली सब्सिडी से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है इसलिए उन्हें ख़त्म करना ज़रूरी है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इन सबकी क़ीमत देश की आम मेहनतकश आबादी की हड्डियाँ निचोड़कर ही वसूली जायेगी। चुनावों में लगभग 40,000 करोड़ रुपये का जो भारी खर्च हुआ है, जिसमें करीब 10,000 करोड़ रुपये का ख़र्च अकेले मोदी के प्रचार पर बताया जा रहा है, उसकी भरपाई भी तो आम जनता को ही करनी है।
दरअसल नरेन्द्र मोदी का सत्ता में आना पूरी दुनिया में चल रहे सिलसिले की ही एक कड़ी है। पूँजीवादी व्यवस्था का संकट जैसे-जैसे गम्भीर होता जा रहा है, वैसे-वैसे दुनियाभर में फासीवादी शक्तियों में नयी जान फूँकी जा रही है। मिस्र, ग्रीस, स्पेन, इटली, फ्रांस, उक्रेन, जर्मनी, नार्वे जैसे यूरोप के कई देशों में फासिस्ट किस्म की धुर दक्षिणपंथी पार्टियों की ताक़त बढ़ रही है और कई देशों में नव-नाज़ी ग्रुपों का उत्पात तेज़ हो रहा है। आने वाले समय में मोदी की आर्थिक नीतियों का बुलडोज़र जब चलेगा तो अवाम में बढ़ने वाले असन्तोष को भटकाने के लिए यहाँ भी साम्प्रदायिक और जातिगत आधार पर मेहनतकश जनता को बाँटकर उसकी वर्गीय एकजुटता को ज़्यादा से ज़्यादा तोड़ने की कोशिशें की जायेंगी। देश के भीतर के असली दुश्मनों से ध्यान भटकाने के लिए उग्र अन्धराष्ट्रवादी नारे दिये जायेंगे और सीमाओं पर तनाव पैदा किया जायेगा। संघ परिवार के अनेक संगठन लम्बे समय से जैसा ज़हरीला प्रचार करते आ रहे हैं उसके द्वारा पैदा किये माहौल में इनके अनगिनत संगठनों के चरमपंथी तत्वों के उत्पात के कारण दंगे-फसाद की आशंका कभी भी बनी रहेगी। फासिस्ट स्वभाव से कायर होते हैं लेकिन जब सत्ता की ताक़त इनके साथ होती है तब ये कोई भी दुस्साहस करने से नहीं चूकते। वैसे भी, पूँजीपति वर्ग फासीवाद को ज़ंजीर से बँधे कुत्ते की तरह इस्तेमाल करना चाहता है ताकि जब असन्तोष की आँच उस तक पहुँचने लगे तो ज़ंजीर को ढीला करके जनता को डराने और आतंकित करने में इसका इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन कई बार कुत्ता उछलकूद करते-करते ज़ंजीर छुड़ाकर अपने मालिक की मर्ज़ी से ज़्यादा ही उत्पात मचा डालता है। इसलिए मेहनतकशों, नौजवानों और सजग-निडर नागरिकों को चौकस रहना होगा। उन्हें ख़ुद साम्प्रदायिक उन्माद में बहने से बचना होगा और उन्माद पैदा करने की किसी भी कोशिश को नाकाम करने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करने का साहस जुटाना होगा।
इतिहास में हमेशा ही फासीवाद विरोधी निर्णायक संघर्ष सड़कों पर हुआ है और मज़दूर वर्ग को क्रान्तिकारी ढंग से संगठित किये बिना, संसद में और चुनावों के ज़रिए फासीवाद को कभी शिकस्त नहीं दी जा सकी है। फासीवाद विरोधी संघर्ष को पूँजीवाद विरोधी संघर्ष से काटकर नहीं देखा जा सकता। फासीवाद विरोधी संघर्ष एक लम्बा संघर्ष है और उसी दृष्टि से इसकी तैयारी होनी चाहिए। अब हमारे सामने एक फौरी चुनौती आ खड़ी हुई है। हमें इसके लिए भी तैयार रहना होगा।
फासीवाद हर समस्या के तुरत-फुरत समाधान के लोकलुभावन नारों के साथ तमाम मध्यवर्गीय जमातों, छोटे कारोबारियों, सफ़ेदपोश कर्मचारियों, छोटे उद्यमियों और मालिक किसानों को लुभाता है। उत्पादन प्रक्रिया से बाहर कर दी गयी मज़दूर आबादी का एक बड़ा हिस्सा भी फासीवाद के झण्डे तले गोलबन्द हो जाता है जिसके पास वर्ग चेतना नहीं होती और जिनके जीवन की परिस्थितियों ने उनका लम्पटीकरण कर दिया होता है। निम्न मध्यवर्ग के बेरोज़गार नौजवानों और पूँजी की मार झेल रहे मज़दूरों का एक हिस्सा भी अन्धाधुन्ध प्रचार के कारण मोदी जैसे नेताओं द्वारा दिखाये सपनों के असर में आ जाता है। जब कोई क्रान्तिकारी सर्वहारा नेतृत्व उसकी लोकरंजकता का पर्दाफाश करके सही विकल्प प्रस्तुत करने के लिए तैयार नहीं होता तो फासीवादियों का काम और आसान हो जाता है। आरएसएस जैसे संगठनों द्वारा लम्बे समय से किये गये प्रचार से उनको मदद मिलती है। लेकिन अगर क्रान्तिकारी शक्तियाँ अपनी ताक़तभर इनके झूठे प्रचार का मुकाबला करती हैं तो जल्दी ही इनकी ख़ुद की हरकतों से इनको नंगा करने के मौके सामने आने लगेंगे।
संशोधनवादी, संसदमार्गी नकली कम्युनिस्ट और सामाजिक जनवादी, जिन्होंने पिछले कई दशकों के दौरान मात्र आर्थिक संघर्षों और संसदीय विभ्रमों में उलझाकर मज़दूर वर्ग की वर्गचेतना को कुण्ठित करने का काम किया, आज फासीवादियों के सत्ता में आ जाने से सकपकाये हुए हैं। ये संशोधनवादी फासीवाद- विरोधी संघर्ष को मात्र चुनावी हार-जीत के रूप में ही प्रस्तुत करते रहे, या फिर सड़कों पर मात्र कुछ प्रतीकात्मक विरोध-प्रदर्शनों तक सीमित रहे। दरअसल ये संशोधनवादी आज फासीवाद का जुझारू और कारगर विरोध कर ही नहीं सकते। आज पूँजीवादी ढाँचे में किसी कल्याणकारी राज्य के विकल्प की सम्भावनाएँ बहुत कम हो गयी हैं, इसलिए पूँजीवाद के लिए भी ये संशोधनवादी काफी हद तक अप्रासंगिक हो गये हैं। ये बस मज़दूर वर्ग को अर्थवाद और संसदवाद के दायरे में कैद रखकर उसकी वर्गचेतना को कुण्ठित करते रहेंगे। जब फासीवादी आतंक चरम पर होगा तो ये संशोधनवादी चुप्पी साधकर बैठ जायेंगे। ना इनके कलेजे में इतना दम है और ना ही इनकी ये औक़ात रह गयी है कि ये फासीवादी गिरोहों और लम्पटों के हुजूमों से आमने-सामने की लड़ाई लड़ने के लिए लोगों को सड़कों पर उतार सकें। न पहले कभी इन्होंने ऐसा किया है और अब कर सकेंगे।
आने वाले समय में क्रान्तिकारी शक्तियों के प्रचार एवं संगठन के कामों का बुर्जुआ जनवादी स्पेस और कम हो जायेगा, यह तय है। लेकिन दूसरी तरफ, मोदी सरकार की नीतियों के अमल तथा हर प्रतिरोध को कुचलने की कोशिशों के चलते पूँजीवादी ढाँचे के सभी अन्तरविरोध उग्र होते चले जायेंगे। लोगों के भ्रम और झूठी उम्मीदें टूटेंगे। मज़दूर वर्ग और समूची मेहनतकश जनता रीढ़विहीन ग़ुलामों की तरह सबकुछ झेलती नहीं रहेगी। वह सड़कों पर उतरेगी। व्यापक मज़दूर उभारों की परिस्थितियाँ तैयार होंगी। यदि इन्हें नेतृत्व देने वाली क्रान्तिकारी शक्तियाँ तैयार रहेंगी और साहस के साथ ऐसे उभारों में शामिल होकर उनकी अगुवाई अपने हाथ में लेंगी तो क्रान्तिकारी संकट की उन सम्भावित परिस्थितियों में संघर्ष को व्यापक बनाने और सही दिशा देने का काम किया जा सकेगा। अपने देश में और और पूरी दुनिया में बुर्जुआ जनवाद के कम होते जाने और नव फासीवादी ताक़तों का उभार दूरगामी तौर पर नयी क्रान्तिकारी सम्भावनाओं के विस्फोट की दिशा में भी संकेत कर रहा है।
निश्चित तौर पर, आने वाला समय में हमें ज़मीनी स्तर पर ग़रीबों और मज़दूरों के बीच अपना आधार मज़बूत बनाना होगा। बिखरी हुई मज़दूर आबादी को जुझारू यूनियनों में संगठित करने के अतिरिक्त उनके विभिन्न प्रकार के जनसंगठन, मंच, जुझारू स्वयंसेवक दस्ते, चौकसी दस्ते आदि तैयार करने होंगे। मेहनतकश जनता और क्रान्तिकारी शक्तियों को राज्यसत्ता के दमन का ही नहीं, सड़कों पर फासीवादी गुण्डा गिरोहों का भी सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। लेकिन इतिहास का यह भी सबक है कि मज़दूर वर्ग ने हमेशा ही फासीवाद को धूल चटायी है।

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हर साल लाखों माँओं और नवजात शिशुओं को मार डालती है यह व्यवस्था

कविता
किसी भी समाज की ख़ुशहाली का अनुमान उसके बच्चों और माँओं को देखकर लगाया जा सकता है। लेकिन जिस समाज में हर साल तीन लाख बच्चे इस दुनिया में अपना एक दिन भी पूरा नहीं कर पाते और क़रीब सवा लाख स्त्रियाँ हर साल प्रसव के दौरान मर जाती हैं, वह कैसा समाज होगा, इसे बयां करने की ज़रूरत नहीं। आज़ादी के 66 साल बाद, जब देश में आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की कोई कमी नहीं है, तब ऐसा होना शर्मनाक ही नहीं बल्कि एक घृणित अपराध है। और इसकी ज़िम्मेदार है यह पूँजीवादी व्यवस्था जिसके लिए ग़रीबों की ज़िन्दगी का मोल कीड़े-मकोड़ों से ज़्यादा नहीं है।
पूँजीवादी मीडिया गर्व से बताता है कि भारत इतनी तरक्की कर गया है कि यहाँ अमेरिका और इंग्लैण्ड से लोग इलाज कराने के लिए आ रहे हैं। लेकिन वह यह नहीं बताता कि पूरी दुनिया में जन्म के पहले दिन ही मरने वाले बच्चों में से 30 फ़ीसदी हमारे देश में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई अन्य संगठनों की एक रिपोर्ट (2007) के अनुसार पूरी दुनिया में हर साल प्रसव के दौरान 5.36 लाख स्त्रियों की मृत्यु हो जाती हैं इनमें से 1.17 लाख यानी क़रीब 25 प्रतिशत मौतें सिर्फ़ भारत में होती हैं भारत में प्रसव के दौरान हर 1 लाख में से 450 स्त्रियों की मत्यु हो जाती है। इस मामले में अफ्रीका के कई बेहद ग़रीब  देशों से भी हम पीछे हैं। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मृत्यु के 47 प्रतिशत मामलों में कारण शरीर में ख़ून की कमी और बहुत अधिक ख़ून बहना होता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत सहित सभी विकासशील देशों में गर्भवती और जन्म देने वाली महिलाओं के मामलों में 99 फीसदी मौतें ग़रीबी, भूख और बीमारी के चलते होती हैं। ख़ुद भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2007 में जारी रिपोर्ट ‘एन.एफ.एच.एस.-3’ में यह माना था कि माँओं की मृत्यु की ऊँचली दर का मुख्य कारण यह है कि ग़रीबी के कारण ज़्यादातर महिलाओं को समुचित डाक्टरी देखभाल नहीं मिल पाती। आज भी क़रीब 25 प्रतिशत स्त्रियों को प्रसव के पहले या उसके बाद डाक्टरी देखभाल की कोई सुविधा नसीब नहीं हो पाती। गाँवों में ज़्यादातर महिलाओं का प्रसव घर पर ही दाई द्वारा कराया जाता है। अन्धविश्वास और शिक्षा की कमी से बहुतेरी स्त्रियाँ पूरे नौ महीने डाक्टरी सलाह से भी दूर रहती हैं। कस्बों और शहरों के आसपास की स्त्रियाँ प्रसव के लिए अस्पताल अक्सर तब पहुँचती हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है। अगर उन्हें समय पर अस्पताल की सुविधा मिल जाये तो बहुतेरी माँओं ओर बच्चों की ज़िन्दगी बच सकती है।
India-Maternal-Deaths
दूसरी तरफ़ गाँवों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही है। आबादी के हिसाब से जितने प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र, सरकारी डिस्पेंसरी और जच्चा-बच्चा केन्द्र होने चाहिए उससे बहुत कम मौज़ूद हैं। जो हैं उनमें भी डाक्टर और स्टाफ नहीं रहते, दवाएँ काले बाज़ार में बिक जाती हैं। सरकार ने सबको स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने की अपनी ज़िम्मेदारी से पूरी तरह हाथ खींच लिया है और इसे भी बाज़ार के हवाले कर दिया है। यानी जिसके पास पैसा है वह अपने लिए अच्छे से अच्छा डाक्टर ओर नर्सिंग होम की सुविधा हासिल कर ले, और जिसके पास मोटी फीस चुकाने को पैसा नहीं है वह तिल-तिलकर मरे। देश के सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों और नर्सों के आधे से लेकर दो तिहाई तक पद खाली पड़े हैं, बहुत बड़ी आबादी के लिए कोई सरकारी अस्पताल उपलब्ध ही नहीं हैं, मगर इस कमी को पूरा करने के बजाय सरकार ने ए.एन.एम. और आशा बहू जैसी योजनाओं के जरिए अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। सरकारी अस्पतालों की हालत यह है कि राजधानी दिल्ली तक में लाखों की आबादी वाली ग़रीबों की कई बस्तियों के आसपास जल्दी डाक्टर नहीं मिलता।
पूँजीवादी मीडिया ने लोगों के दिमागों को इस तरह से अनुकूलित कर दिया है कि ज़्यादातर लोगों में अपने अधिकारों की चेतना ही नहीं रह गयी है। अक्सर वे कहते हैं कि सरकार सबका दवा-इलाज कहाँ से करायेगी। मगर सच तो यह है कि आज़ादी के समय देश की जनता से वादा किया गया था कि रोजी-रोटी, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सरकार की ज़िम्मेदारी होगी, और सरकार के लिए ऐसा करना पूरी तरह मुमकिन था।
प्रसव के समय होने वाली मौतों की संख्या इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि भारत में अधिकतर माँएँ कुपोषण और ख़ून की कमी की शिकार होती हैं। इससे उनमें और गर्भस्थ शिशु में रोगरोधक क्षमता की कमी हो जाती है। इसकी वजह से हल्का-सा संक्रमण भी उनके लिए जानलेवा हो जाता है।
भारत के बच्चे पड़ोसी ग़रीब देशों बंगलादेश और नेपाल से भी ज़्यादा कुपोषित हैं। बंगलादेश में शिशु मृत्यु दर 48 प्रति हज़ार है जबकि भारत में यह 67 प्रति हज़ार है, यानी पैदा होने वाले 1000 बच्चों में से 67 पैदा होते ही मर जाते हैं। भारत में बच्चों में कुपोषण की दर 55 प्रतिशत है। कुछ रिपोर्टों में इसे 70 प्रतिशत तक बताया गया है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब एक करोड़ बच्चों का कुपोषण के कारण शारीरिक विकास बाधित है।
हमारे समाज में स्त्रियों की दोयम दर्जे की स्थिति के कारण भी उनका स्वास्थ्य उपेक्षित रहता है। घरों में अक्सर स्त्रियाँ सबसे बाद में, बचा हुआ खाना खाती हैं। उन्हें पौष्टिक भोजन सबसे कम मिलता है। यहाँ तक कि कारख़ानों और खेतों में काम करने वाली स्त्रियाँ दोहरे काम का बोझ उठाने के बावजूद पुरुषों के
मुकाबले ख़राब खाना खाती हैं। इसकी वजह से उनमें ख़ून की कमी और उससे पैदा होने वाली अनेक बीमारियाँ आम तौर पर पायी जाती हैं। बीमारियों के इलाज में भी स्त्रियों की स्थिति दोयम दर्जे की होती है।
देश में करोड़ों की संख्या में कारख़ानों में काम करने वाली स्त्री मज़दूरों को न तो जच्चगी के लिए छुट्टी मिलती है और न ही कोई अन्य सुविधा। काम छूट जाने और आर्थिक तंगी के कारण वे प्रसव से कुछ दिन पहले तक कमरतोड़ काम करती रहती हैं। ऐसे में माँ और बच्चे दोनों का जीवन ख़तरे में पड़ जाता है।
माँ और ममता के बारे में हमारे देश में बहुत बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, लेकिन देश की करोड़ों माँओं और नन्हें शिशुओं के साथ यह व्यवस्था जो सुलूक करती है, उसके बाद अगर किसी के मन में इस व्यवस्था को आग लगा देने का विचार नहीं पैदा होता है, तो उसे अपने बारे में गम्भीरता से सोचना चाहिए।

बोलते आँकड़े चीखती सच्चाइयाँ

बोलते आँकड़े चीखती सच्चाइयाँ

सतीश आचार्य का कार्टून। उनके ब्लॉग से साभार (http://cartoonistsatish.blogspot.in/2013/07/lootere-since-1947.html)
सतीश आचार्य का कार्टून। उनके ब्लॉग से साभार
(http://cartoonistsatish.blogspot.in/2013/07/lootere-since-1947.html)
रिजर्व बैंक की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी बैंकों ने पूँजीपतियों का एक लाख करोड़ का कर्ज़ माफ़ कर दिया है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने बताया कि एक वर्ष के दौरान जुटाये गये आँकड़ों से पता चला है कि ये वे ऋण थे जो पूँजीपति कई वर्षों से दबाकर बैठे थे। 2008 में जब सरकार ने किसानों का 60,000 करोड़ का ऋण माफ़ किया था तो पूँजीपतियों ने भारी शोर मचाया था। यही पूँजीपति और मीडिया में इनके दलाल सरकारी शिक्षा और बस, रेल, पानी, बिजली, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं पर दी जाने वाली सब्सिडी पर भी बेशर्मी से हो-हल्ला मचाते हैं कि इससे अर्थव्यवस्था चौपट हो जायेगी। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि दो वर्ष पहले के बजट में सरकार ने पूँजीपतियों को पाँच लाख करोड़ रुपये की छूट दी थी। उन्हें तमाम तरह के टैक्सों आदि में भी हर केन्द्र और राज्य सरकार से भारी छूट मिलती है। इसके बाद भी उन्हें देने के लिए जो देनदारी बचती है उसे भी न देने के लिए वे तरह-तरह की तिकड़में करते हैं। इसके लिए उनके पास एकाउण्ट्स के विशेषज्ञों और वक़ीलों की पूरी फौज़ रहती है।
रिजर्व बैंक के मुताबिक 2007 से 2013 के बीच बैंकों के न चुकाये जाने वाले ऋणों की कुल राशि में क़रीब पाँच लाख करोड़ का इज़ाफा हो गया। इसमें से भारी हिस्सा वे ऋण हैं जो कारपोरेट कम्पनियों को दिये गये थे।
कुछ सबसे बड़े लोन डिफॉल्टरों की सूचीः
मोज़रबियर इंडिया और ग्रुप कम्पनियाँ – 581 करोड़ रुपये
सेंचुरी कम्युनिकेशंस लि. – 624 करोड़ रुपये
इंडिया टेक्नोमैक – 629 करोड़ रुपये
डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग लि. – 700 करोड़ रुपये
मुरली इण्डस्ट्रीज़ एंड एक्सपोर्ट लि. 884 करोड़ रुपये
केमरॉक इण्डस्ट्रीज़ एंड एक्सपोर्ट 929 करोड़ रुपये
वरुण इण्डस्ट्रीज़ लि. – 1129 करोड़ रुपये
स्टर्लिंग ऑयल रिसोर्सेज़ 1197 करोड़ रुपये
कारपोरेट इस्पात एलॉय – 1360 करोड़ रुपये
सूर्या विनायक इण्डस्ट्रीज़ 1446 करोड़ रुपये
स्टर्लिंग बायोटेक लि. – 1732 करोड़ रुपये
ज़ूम डेवलपर्स प्रा. लि. – 1810 करोड़ रुपये
इलेक्ट्रोथर्म इण्डिया लि. – 2211 करोड़ रुपये
विनसम डायमंड एंड ज्यूलरी – 2660 करोड़ रुपये
किंगफिशर एअरलाइंस – 2673 करोड़ रुपये
इसके अलावा किंगफिशर के मालिक विजय माल्या को 6500 करोड़ रुपये कर्ज़ देने वाले 14 बैंकों पर माल्या ने कर्ज़ न चुकाने के लिए कई अदालतों में मुक़दमा कर रखा है। यह वही विजय माल्या है जो हर साल आईपीएल के तमाशे के लिए करोड़ों रुपये क्रिकेट खिलाड़ियों को ख़रीदने पर खर्च करता है और पार्टियों पर पानी की तरह पैसे बहाता है।
फरवरी माह में वित्त राज्य मंत्री जेडी सीलम ने लोकसभा में बताया कि कारपोरेट घरानों पर 2,46,416 करोड़ रुपये के भारी टैक्स बकाया हैं। 45 ऐसे मामले हैं जिनमें एक-एक कम्पनी पर 500 करोड़ रुपये से अधिक बकाया है। इनमें ऐसे घराने भी शामिल हैं जो केजरीवाल के भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन को समर्थन देते रहे हैं।
पिछले दिनों एक संस्था द्वारा कराये गये अध्ययन से पता चला कि 2004-05 के बीच छह राष्ट्रीय पार्टियाँ की आय का 75 प्रतिशत – यानी 4,895 करोड़ रुपये – ‘‘अज्ञात स्रोतों’’ से आया। इनमें कारपोरेट घरानों से लेकर हवाला कारोबारी तक शामिल हैं। कांग्रेस तो सबसे बड़ी राशि पाने वाली है ही मगर इसमें तथाकथित लाल झण्डे वाली भाकपा-माकपा से लेकर शुचिता की दुहाई देने वाली भाजपा तक शामिल हैं। इस रक़म का आधा हिस्सा ऐन चुनावों के पहले जमा किया गया था।

बोलते आँकड़े चीखती सच्चाइयाँ


• भूख और कुपोषण से दुनिया भर में रोज़ 24 हज़ार लोग मरते हैं। इनमें से एक तिहाई मौतें भारत में होती हैं। भूख से मरने वालों में 18 हज़ार बच्चे होते हैं, जिनमें से 6 हज़ार बच्चे भारत के होते हैं। (जनसत्ता, 7 जुलाई 2013)
• इस समय दुनिया में 80 करोड़ लोगों को दो वक़्त की रोटी नहीं मिलती। इनमें से 40 करोड़ भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में हैं। इन तीनों देशों के खाद्यान्‍न के भण्डार अन्न से भरे हैं।
• देश में हर साल जितना अनाज बरबाद होता है उससे दस करोड़ बच्चों को एक साल तक खाना ख़िलाया जा सकता है।
• सरकार हर साल 12-13 रुपये प्रति किलो के भाव गेहूँ ख़रीदती है जिसका भारी हिस्सा गोदामों पड़े-पड़े ख़राब हो जाता है। फिर उसे 5-6 रुपये या उससे भी कम पर शराब कम्पनियों को बेच दिया जाता है। मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावज़ूद गोदामों में पड़ा अनाज भूखे लोगों तक पहुँचाने के लिए सरकार तैयार नहीं है।
• पिछले दस वर्षों में एक्सप्रेस वे, अत्याधुनिक हवाई अड्डे, होटल, अन्तरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि बनवाने पर सरकार ने सार्वजनिक धन से क़रीब 25 लाख करोड़ रुपये खर्च किये हैं। केवल एक वर्ष, 2011-12 के बजट में ही बड़े पूँजीपतियों को 5 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गयी। इसके बहुत छोटे-से हिस्से से पूरे देश में अनाज के सुरक्षित भण्डारण का इन्तज़ाम किया जा सकता है।
• संयुक्त राष्ट्र संघ के खाघ व कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर तीन में से एक, भारतीय को अक्सर भूखे पेट सोना पड़ता है। इसका कारण खाद्यान्‍न की कमी नहीं बल्कि खाने-पीने की चीज़ों की बढ़ती महँगाई ओर लोगों की घटती वास्तविक आय है।
• संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1991 में (यानी नयी आर्थिक नीतियों की शुरुआत के समय) प्रति व्यक्ति औसत 580 ग्राम खाद्यान्‍न उपलब्ध था, जो 2007 तक घटकर 445 ग्राम रह गया। ध्यान देने की बात है कि इस दौरान समाज के समृद्ध तबके का खान-पान पर ख़र्च और बरबादी काफ़ी बढी है। यानी खाद्यान्‍न की औसत उपलब्धता में आयी कमी का का भारी हिस्सा ग़रीब के भोजन से कम हुआ है। इसी रिपोर्ट के अनुसार, उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के दौर में ग़रीबों की प्रति व्यक्ति कैलोरी की खपत में भी काफ़ी कमी आयी है
• भारत में प्रोटीन के मुख्य स्रोत के रूप में औसतन एक आदमी को प्रतिदिन 50 ग्राम दाल मिलनी चाहिए। लेकिन भारत की नीचे की 30 प्रतिशत आबादी को औसतर 13 ग्राम ही दाल मिल पाती है। पिछले कुछ वर्षों में दालों की क़ीमत में दोग़ुने से भी अधिक की बढ़ोत्तरी ने इसे और भी कम कर दिया है। आज से 55 वर्ष पहले 5 व्यक्तियों का परिवार एक साल में औसतन जितना अनाज खाता था, आज उससे 200 किलो कम खाता है।



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