कार लोन 10%, फ़सल पर क़र्ज़ 16%
अगर आप नई कार या घर ख़रीदने के लिए क़र्ज़ चाहते हैं तो आपका काम घर बैठे हो सकता है.
अगर
आप किसान हैं और फ़सल के लिए सरकारी बैंक से कर्ज़ चाहते हैं तो आपको वो
पापड़ बेलने पड़ेंगे कि आप शायद दोबारा इस बारे में सोचेंगे भी नहीं.सूखा सिरीज़ की अन्य कहानियां यहां पढ़ें.
सरकारी वादे एक तरफ़ लेकिन असलियत ये है कि कार के लिए कर्ज़ पर आप उस किसान से कम ब्याज़ देते हैं जो अपनी फ़सल पर क़र्ज़ लेता है.
शहरी बनाम काश्तकार
इसका पता मुझे महाराष्ट्र में जालना के किसान जनार्दन पिंपले से मुलाक़ात के बाद चला. जनार्दन किसान के साथ ही डॉक्टर भी हैं और उन्होंने पहले कार ख़रीदने के लिए लोन लिया, फिर अपनी फ़सल पर.
दोनों क़र्ज़ हासिल करने के दौरान उन्हें पता चला कि बैंकों के सामने किसान और शहरी भारतीय एक समान नहीं.
डॉक्टर जनार्दन ने नवंबर 2012 में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से कार के लिए ऋण लिया, जो उन्हें 10 फ़ीसदी की दर पर मिला. उसी बैंक से 2014 में उन्होंने कम अवधि वाला कृषि ऋण लिया जो उन्हें छह महीने के लिए 13.15% प्रतिवर्ष की दर पर मिला.
कार लोन का अप्रैल 2012 से नवंबर 2012 के बीच का बैंक स्टेटमेंट और एग्रीकल्चर लोन के लिए अप्रैल 2014 से जून 2014 के बीच का बैंक स्टेटमेंट देखकर कोई भी इसे आसानी से समझ सकता है.
एक और ख़ास बात, फ़सल पर क़र्ज़ लेने के बाद उन्हें इंस्पेक्शन चार्ज के नाम पर एक बार 1,073 रुपए और फिर दूसरी बार 1,326 रुपए देने पड़े.
इसके अलावा उनसे अकाउंट कीपिंग फ़ीस भी वसूली गई. और यहीं तक बात नहीं रुकती. इंस्पेक्शन चार्जेज़ और अकाउंट कीपिंग फ़ीस के पैसे पर भी उन्हें ब्याज चुकाना पड़ा.
सब्सिडी बेमानी
जनार्दन के मुताबिक़ नो ड्यूज़ और डॉक्यूमेंटेशन चार्जेज़ के नाम पर ये ख़र्च तक़रीबन 2000 रुपए और आया. चूंकि फ़सल के लोन पर बीमा ज़रूरी है तो इसके लिए उन्होंने 3000 रुपए और दिए.
जनार्दन कहते हैं कि हॉर्टीकल्चर लोन पर 3 लाख 30 हज़ार का क़र्ज़ लेने पर सरकार की ओर से एक लाख 32 हज़ार रुपए सब्सिडी मिलती है पर सवा 13 फ़ीसदी की ब्याज देने पर ये सब्सिडी असल में बेमानी साबित होती है.
उनके मुताबिक़, ''अगर आप शहरवासियों के 10 फ़ीसदी और किसान के सवा 13 फ़ीसदी के क़र्ज़ के बीच अंतर की पड़ताल करेंगे तो सात साल के लोन का ब्याज सब्सिडी के भी ऊपर जा रहा है तो सरकार किसान पर कोई अहसान नहीं कर रही है. सवा तीन फ़ीसदी उसे ज़्यादा ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है. तो ये कैसी नीति है. पहले ज़्यादा ब्याज मांगते हैं और फिर सब्सिडी देकर उन्हें उल्लू बनाते हैं. किसान क्यों नहीं खुदकुशी करेगा.’’
जनार्दन के मुताबिक़ होम या कार लोन लेते वक़्त इंस्पेक्शन चार्ज नहीं लगाते हैं. मगर किसान की फ़सल के लिए मुआयना करते हैं. किस चीज़ का मुआयना करते हैं. क्रॉप लोन छह महीने का रहता है तो 1300-1400 रुपए लगाते हैं. वह कहते हैं कि अगर ये अतिरिक्त चार्जेज़ और उन पर ब्याज जोड़ लें तो कम अवधि वाले क़र्ज़ के लिए उन्हें 16.5% तक ब्याज चुकाना पड़ा.
क़ानूनों का मकड़जाल
किसान को कम अवधि वाले फ़सल कर्ज़ पर आम शहरी के मुक़ाबले ज़्यादा कागज़ी कार्रवाई करनी पड़ती है, ज़्यादा ब्याज देना होता है, कई तरह के चार्ज देने पड़ते हैं, जो कई बार चक्रवृद्धि ब्याज की शक्ल ले लेते हैं.संवेदना यात्रा के संयोजक योगेंद्र यादव कहते हैं, ''कागज़ पर भारत सरकार की नीतियां बहुत अच्छी हैं. नीतियां कहती हैं कि किसान को सस्ती दर पर क़र्ज़ दिया जाएगा. पहले तो किसान को आसानी से क़र्ज़ा मिलता नहीं. दूसरे किसान से वो-वो कागज़ मांगे जाते हैं जिनकी आवश्यकता ही नहीं. मजबूर किसान से अगर कोई बैंक मैनेजर तरह-तरह के कागज़ मांगता है तो क्या किसान सुप्रीम कोर्ट जाएगा इसकी शिकायत करने के लिए. जब किसान बैंक में जाता है तो न तो वो बैंक के क़ानून जानता है न उससे अच्छा व्यवहार होता है और न इज़्ज़त मिलती है.''
अकाल की दहलीज़ पर बैठे किसान के लिए कर्ज़, ब्याज और क़ानूनों का मकड़जाल उस लाठी की तरह है जो उसकी चमड़ी तक छील लेता है और उसे दोबारा उठने नहीं देता.
योगेंद्र यादव के नेतृत्व में हुई इस संवेदना यात्रा के दौरान मैं जिन राज्यों में पहुँचा वहां किसानों के लिए सरकारी साहूकार भी विलेन की तरह दिखे.
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