गुरुवार, 28 नवंबर 2013

भारत में माओवादी क्यों बनती हैं महिलाएं?

भारत में माओवादी क्यों बनती हैं महिलाएं?

 गुरुवार, 28 नवंबर, 2013 को 18:31 IST तक के समाचार

महिला माओवादी
रिबैका एक आदिवासी लड़की हैं. वो भारत के पूर्वी प्रदेश ओडिशा में माओवादियों के बग़ावत करने वाले दल के एक स्थानीय एरिया कमांडर की बॉडीगार्ड हैं.
माओवादी, जो नक्सली के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के मध्य और पूर्व में बीते चालीस सालों से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं.
वे ग़रीबों के लिए भूमि और नौकरियों की मांग करते हैं और उनका उद्देश्य भारत की 'अर्द्ध-औपनिवेशिक, अर्द्ध-सामंती व्यवस्था' को सत्ता से बेदख़ल करके साम्यवादी समाज की स्थापना करना है.

'सरकार का दमन'

"माओवादी हमारे गाँव से अपने कैडर में लोगों को भर्ती कर रहे थे. उन्होंने परिवार के लिए आय का ज़रिया दिलाने का वादा किया. मेरे पास उनके साथ जुड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था."
रश्मी महली, पूर्व माओवादी
एक स्व-संचालित रायफ़ल से लैस रिबैका ने कंधमाल ज़िले के जंगलों में ख़ुद को मलेरिया से बचाने के लिए अपने चेहरे को काली जाली से ढक रखा है.
रिबैका की बहन साल 2010 में माओवादियों के दल में शामिल हुईं. गिरफ़्तारी के बाद उनके साथ क्लिक करें पुलिस हिरासत में कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया.
रिबैका बताती हैं कि उनके भाई को भी सुरक्षा बलों ने पकड़ा और उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई.
उनके मुताबिक़, 'सरकार के दमन' ने उनको हथियार उठाने और माओवादियों के दल में शामिल होने को मजबूर कर दिया.
वो निडरता के साथ कहती हैं, "हम बेवज़ह ही ऐसी ज़िंदगी नहीं जी रहे हैं. मेरे पास क्रांति में शामिल होने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है."
माओवादी आंदोलन की शुरुआत पश्चिम बंगाल में साल 1960 में चाय के बागान में किसानों के विद्रोह के साथ हुई.
विश्लेषकों का कहना है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के ख़राब हालात के कारण ज़्यादातर महिलाएं इस 'आंदोलन' से जुड़ रही हैं.

महिलाओं की भागीदारी

माओवादियों के साथ जुड़ती महिलाएं
बड़े व्यावसायिक प्रोजेक्ट के कारण स्थानीय स्तर पर लोगों का अपनी ज़मीनों से विस्थापन, ग़रीबी का दुष्चक्र और क्लिक करें सुरक्षा बलों के अत्याचार के भय और सरकार-समर्थित सलवा-जुडूम जैसे संगठनों के कारण महिलाएं बड़ी संख्या में माओवादी समूहों में शामिल हो रही हैं.
पुलिस अधिकारी कहते हैं कि माओवादी महिलाओं को अपने दल से जोड़ने में विचारधारा की कोई समस्या नहीं देखते.
छत्तीसगढ़ मेंक्लिक करें माओवादियों के गढ़ बस्तर के एक पूर्व पुलिस अधिकारी राहुल भगत कहते हैं, "माओवादी महिलाओं की भर्ती लड़ने और कॉ़डर के पुरुष सदस्यों पर निगरानी के लिए करते हैं जो गाँव के लोगों का उत्पीड़न कर सकते हैं."
वो बताते हैं, "अब लड़ाकों की लगभग आधी संख्या महिलाओं की है. अधिकांश महिला और पुरुष लड़ाके एक-दूसरे के साथ विवाहित या ग़ैर विवाहित जोड़ों की तरह साथ रहते हैं."
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक़ महिलाएं आमतौर पर रणनीतिक भूमिकाएं निभाती हैं. सुरक्षा बलों का ध्यान भटकाने के लिए उन्हें लड़ाई के दौरान सबसे आगे रखा जाता है.
पुलिस के अनुसार, मई में छत्तीसगढ़ में हुए घातक हमले में महिला माओवादी भी शामिल थीं, इसमें राज्य के शीर्ष कांग्रेस नेताओं समेत 24 लोग मारे गए थे.

मोहभंग

"हमारे दल में 16 साल से 40 साल तक की महिलाएं शामिल होती हैं. लगभग सभी महिलाएं जिनको मैं जानता हूं, जब उन्होंने अपने घर से बाहर क़दम रखे तो लैंगिक दुर्व्यवहार या शोषण का अनुभव किया, इसमें सुरक्षा बल भी शामिल थे."
रामपति राजू, पूर्व माओवादी कमांडर
दुर्व्यवहार और थकान की शिकायत के कारण कुछ महिला माओवादी लड़ाकों के दल से अलग हो रही हैं.
बिहार में माओवादियों के कमांडर रहे रामपति राजू कहते हैं, "हमारे दल में 16 साल से 40 साल तक की महिलाएं शामिल होती हैं. लगभग सभी महिलाएं जिनको मैं जानता हूं, जब उन्होंने अपने घर से बाहर क़दम रखे तो लैंगिक दुर्व्यवहार या शोषण का अनुभव किया, इसमें सुरक्षा बल भी शामिल थे."
वो कहते हैं, "ये महिलाएं बदला लेने के लिए समूह में शामिल हुईं लेकिन अब चीज़ें बहुत बदल गई हैं."
राजू के मुताबिक़, "इनमें से अधिकांश महिलाओं का मोहभंग हो रहा है, कुछ महिलाओं के साथ उनके पुरुष साथियों द्वारा दुर्व्यवहार किया जा रहा है."
रश्मि महली साल 2011 तक क्लिक करें माओवादियों के दल की सक्रिय सदस्य रहीं. अभी वो झारखंड की राजधानी रांची में चाय की एक दुकान चलाती हैं.

ग़रीबी और रोज़गार

महिला माओवादी
ग़रीबी के कारण वो माओवादियों के लिए लड़ाई में शामिल हुईं, लेकिन साल 2011 में उन्होंने जंगल को पीछे छोड़ सामान्य ज़िंदगी शुरू की.
बीते दिनों को याद करते हुए वो कहती हैं, "हम सात भाई-बहन थे. हम छोटे से खेत के सहारे जी रहे थे. कई दिनों तक हमें केवल एक वक़्त का भोजन नसीब होता था."
वो बताती हैं, "माओवादी हमारे गाँव से अपने कैडर में लोगों को भर्ती कर रहे थे. उन्होंने परिवार के लिए आय का ज़रिया दिलाने का वादा किया. मेरे पास उनके साथ जुड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था."
रश्मि कहती हैं, "मैंने अपने कैडर के साथी से शादी की और हमारा एक बच्चा भी है. इसने मेरा जीवन बदल दिया. मैं अपने बच्चे के साथ ऐसी ज़िंदगी नहीं जी सकती थी. हम हमेशा क्लिक करें गुप्त स्थान पर रहते और चलते रहते थे. मैंने आत्मसमर्पण कर दिया क्योंकि मैं शांति से जीना चाहती थी."
सुरक्षा बलों को उम्मीद है कि अन्य माओवादी दलों में शामिल दूसरी महिलाएं भी यही राह चुनेंगी.

भारत में माओवादी क्यों बनती हैं महिलाएं?

भारत में माओवादी क्यों बनती हैं महिलाएं?

 गुरुवार, 28 नवंबर, 2013 को 18:31 IST तक के समाचार

महिला माओवादी
रिबैका एक आदिवासी लड़की हैं. वो भारत के पूर्वी प्रदेश ओडिशा में माओवादियों के बग़ावत करने वाले दल के एक स्थानीय एरिया कमांडर की बॉडीगार्ड हैं.
माओवादी, जो नक्सली के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के मध्य और पूर्व में बीते चालीस सालों से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं.
वे ग़रीबों के लिए भूमि और नौकरियों की मांग करते हैं और उनका उद्देश्य भारत की 'अर्द्ध-औपनिवेशिक, अर्द्ध-सामंती व्यवस्था' को सत्ता से बेदख़ल करके साम्यवादी समाज की स्थापना करना है.

'सरकार का दमन'

"माओवादी हमारे गाँव से अपने कैडर में लोगों को भर्ती कर रहे थे. उन्होंने परिवार के लिए आय का ज़रिया दिलाने का वादा किया. मेरे पास उनके साथ जुड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था."
रश्मी महली, पूर्व माओवादी
एक स्व-संचालित रायफ़ल से लैस रिबैका ने कंधमाल ज़िले के जंगलों में ख़ुद को मलेरिया से बचाने के लिए अपने चेहरे को काली जाली से ढक रखा है.
रिबैका की बहन साल 2010 में माओवादियों के दल में शामिल हुईं. गिरफ़्तारी के बाद उनके साथ क्लिक करें पुलिस हिरासत में कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया.
रिबैका बताती हैं कि उनके भाई को भी सुरक्षा बलों ने पकड़ा और उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई.
उनके मुताबिक़, 'सरकार के दमन' ने उनको हथियार उठाने और माओवादियों के दल में शामिल होने को मजबूर कर दिया.
वो निडरता के साथ कहती हैं, "हम बेवज़ह ही ऐसी ज़िंदगी नहीं जी रहे हैं. मेरे पास क्रांति में शामिल होने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है."
माओवादी आंदोलन की शुरुआत पश्चिम बंगाल में साल 1960 में चाय के बागान में किसानों के विद्रोह के साथ हुई.
विश्लेषकों का कहना है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के ख़राब हालात के कारण ज़्यादातर महिलाएं इस 'आंदोलन' से जुड़ रही हैं.

महिलाओं की भागीदारी

माओवादियों के साथ जुड़ती महिलाएं
बड़े व्यावसायिक प्रोजेक्ट के कारण स्थानीय स्तर पर लोगों का अपनी ज़मीनों से विस्थापन, ग़रीबी का दुष्चक्र और क्लिक करें सुरक्षा बलों के अत्याचार के भय और सरकार-समर्थित सलवा-जुडूम जैसे संगठनों के कारण महिलाएं बड़ी संख्या में माओवादी समूहों में शामिल हो रही हैं.
पुलिस अधिकारी कहते हैं कि माओवादी महिलाओं को अपने दल से जोड़ने में विचारधारा की कोई समस्या नहीं देखते.
छत्तीसगढ़ मेंक्लिक करें माओवादियों के गढ़ बस्तर के एक पूर्व पुलिस अधिकारी राहुल भगत कहते हैं, "माओवादी महिलाओं की भर्ती लड़ने और कॉ़डर के पुरुष सदस्यों पर निगरानी के लिए करते हैं जो गाँव के लोगों का उत्पीड़न कर सकते हैं."
वो बताते हैं, "अब लड़ाकों की लगभग आधी संख्या महिलाओं की है. अधिकांश महिला और पुरुष लड़ाके एक-दूसरे के साथ विवाहित या ग़ैर विवाहित जोड़ों की तरह साथ रहते हैं."
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक़ महिलाएं आमतौर पर रणनीतिक भूमिकाएं निभाती हैं. सुरक्षा बलों का ध्यान भटकाने के लिए उन्हें लड़ाई के दौरान सबसे आगे रखा जाता है.
पुलिस के अनुसार, मई में छत्तीसगढ़ में हुए घातक हमले में महिला माओवादी भी शामिल थीं, इसमें राज्य के शीर्ष कांग्रेस नेताओं समेत 24 लोग मारे गए थे.

मोहभंग

"हमारे दल में 16 साल से 40 साल तक की महिलाएं शामिल होती हैं. लगभग सभी महिलाएं जिनको मैं जानता हूं, जब उन्होंने अपने घर से बाहर क़दम रखे तो लैंगिक दुर्व्यवहार या शोषण का अनुभव किया, इसमें सुरक्षा बल भी शामिल थे."
रामपति राजू, पूर्व माओवादी कमांडर
दुर्व्यवहार और थकान की शिकायत के कारण कुछ महिला माओवादी लड़ाकों के दल से अलग हो रही हैं.
बिहार में माओवादियों के कमांडर रहे रामपति राजू कहते हैं, "हमारे दल में 16 साल से 40 साल तक की महिलाएं शामिल होती हैं. लगभग सभी महिलाएं जिनको मैं जानता हूं, जब उन्होंने अपने घर से बाहर क़दम रखे तो लैंगिक दुर्व्यवहार या शोषण का अनुभव किया, इसमें सुरक्षा बल भी शामिल थे."
वो कहते हैं, "ये महिलाएं बदला लेने के लिए समूह में शामिल हुईं लेकिन अब चीज़ें बहुत बदल गई हैं."
राजू के मुताबिक़, "इनमें से अधिकांश महिलाओं का मोहभंग हो रहा है, कुछ महिलाओं के साथ उनके पुरुष साथियों द्वारा दुर्व्यवहार किया जा रहा है."
रश्मि महली साल 2011 तक क्लिक करें माओवादियों के दल की सक्रिय सदस्य रहीं. अभी वो झारखंड की राजधानी रांची में चाय की एक दुकान चलाती हैं.

ग़रीबी और रोज़गार

महिला माओवादी
ग़रीबी के कारण वो माओवादियों के लिए लड़ाई में शामिल हुईं, लेकिन साल 2011 में उन्होंने जंगल को पीछे छोड़ सामान्य ज़िंदगी शुरू की.
बीते दिनों को याद करते हुए वो कहती हैं, "हम सात भाई-बहन थे. हम छोटे से खेत के सहारे जी रहे थे. कई दिनों तक हमें केवल एक वक़्त का भोजन नसीब होता था."
वो बताती हैं, "माओवादी हमारे गाँव से अपने कैडर में लोगों को भर्ती कर रहे थे. उन्होंने परिवार के लिए आय का ज़रिया दिलाने का वादा किया. मेरे पास उनके साथ जुड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था."
रश्मि कहती हैं, "मैंने अपने कैडर के साथी से शादी की और हमारा एक बच्चा भी है. इसने मेरा जीवन बदल दिया. मैं अपने बच्चे के साथ ऐसी ज़िंदगी नहीं जी सकती थी. हम हमेशा क्लिक करें गुप्त स्थान पर रहते और चलते रहते थे. मैंने आत्मसमर्पण कर दिया क्योंकि मैं शांति से जीना चाहती थी."
सुरक्षा बलों को उम्मीद है कि अन्य माओवादी दलों में शामिल दूसरी महिलाएं भी यही राह चुनेंगी.

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