शुक्रवार, 27 जून 2014

नंगा राजा-कहानी

नंगा राजा-कहानी

येह शेङ ताओ
nanga rajaबहुत से लोगों ने नये-नये कपड़े पहनने के शौक़ीन उस राजा के बारे में हैन्स एण्डर्सन की कहानी पढ़ी होगी जिसे एक बार दो ठगों ने उल्लू बना दिया था। उन ठगों ने यह दावा किया कि वे राजा के लिए ऐसी सुन्दर पोशाक़ तैयार करेंगे जैसी कि कोई सपने में भी नहीं सोच सकता। पर सबसे बड़ी ख़ूबी उसमें यह होगी कि वह पोशाक़ किसी मूर्ख व्यक्ति या अपने पद के लिए अयोग्य व्यक्ति को दिखायी नहीं देगी। राजा ने तुरन्त अपने लिए ऐसी पोशाक़ बनाने को आदेश दे दिया और दोनों ठग बुनने, काटने और सिलने का अभिनय करने में जुट गये। राजा ने कई बार अपने मन्त्रियों को काम की रफ़्तार देखने के लिए भेजा और हर बार उन्होंने उसे बताया कि वे अपनी आँखों से नये वस्त्रें को देखकर आ रहे हैं और वे वाकई बेहद ख़ूबसूरत हैं। दरअसल, राजा के मन्त्रियों ने कुछ भी नहीं देखा था, पर वे मूर्ख कहलाना नहीं चाहते थे और उससे भी बढ़कर अपने पदों के लिए अयोग्य घोषित किया जाना तो नहीं ही चाहते थे।
राजा ने तय किया कि जिस दिन नयी पोशाक़ तैयार हो जायेगी, उस दिन एक भव्य समारोह होगा और राजा नयी पोशाक़ पहनकर नगर में निकलेगा। राज्यभर में इसकी मुनादी करवा दी गयी।
जब वह दिन आया तो ठगों ने राजा के सारे कपड़े उतरवा दिये। फिर वे देर तक उसे नये परिधान में सजाने-धजाने का अभिनय करते रहे। राजा के दरबारियों और नौकर-चाकरों ने एक स्वर में उसकी तारीफ़ों के पुल बाँधने शुरू कर दिये क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वे मूर्ख कहलायें या अपने पदों के लिए अयोग्य घोषित कर दिये जायें। राजा ने सन्तुष्ट भाव से सर हिलाया और नंगधड़ंग बाहर चल पड़ा।
रास्ते के दोनों तरफ़ खड़े लोग भी मूर्ख कहलाना नहीं चाहते थे। वे सब के सब राजा की नयी पोशाक़ की इस तरह से प्रशंसा कर रहे थे जैसे वे उसे साफ़-साफ़ देख रहे हों। लेकिन तभी एक बच्चा बड़ी मासूमियत से बोल पड़ा, “अरे, उस आदमी ने तो कुछ पहना ही नहीं है!”
भीड़ के कानों में यह बात पड़ते ही चारों तरफ़ फैल गयी और जल्दी ही हर आदमी हँस रहा था और चिल्ला रहा थाः “अरे सच! राजा के बदन पर एक सूत भी नहीं है।” अचानक राजा की समझ में आया कि उसे धोखा दिया गया है। लेकिन अब तो खेल शुरू हो चुका था और उसे बीच में रोकने का मतलब होता, और बेइज़्ज़ती। उसने तय किया कि वह इसे जारी रखेगा और सीना फुलाकर आगे चल दिया।
इसके बाद क्या हुआ? हैन्स एण्डर्सन ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा है, लेकिन दरअसल इस कहानी में और भी बहुत कुछ हुआ था।
राजा अपने भव्य जुलूस के साथ आगे चलता रहा, मानो कुछ हुआ ही न हो। और वह इतना अकड़कर चल रहा था कि उसके कन्धे और रीढ़ की हड्डी तक दुखने लगे। उसकी अदृश्य पोशाक़ के पिछले भाग को उठाकर चलने का अभिनय कर रहे सेवक बड़ी मुश्किल से अपने होंठ चबा-चबाकर हँसी रोक रहे थे क्योंकि वे मूर्ख कहलाना नहीं चाहते थे। अंगरक्षक अपनी निगाहें जमीन पर गड़ाये हुए चल रहे थे क्योंकि अगर किसी एक की भी नज़र अपने साथी से मिल जाती तो उसके मुँह से जरूर हँसी फूट पड़ती।
लेकिन जनता तो ज़्यादा स्पष्टवादी होती है। उसे अपने होंठ काटने और निगाहें ज़मीन पर गड़ाये रखने की कोई वजह समझ में नहीं आयी। इसलिए जब एक बार यह नंगी सच्चाई उजागर हो गयी कि राजा कुछ नहीं पहने है, तो वे ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाकर हँसने लगे।
“अच्छा राजा है यह तो, नंगधड़ंग चला जा रहा है,” एक ने खिलखिलाते हुए कहा।
“ज़रूर इसकी अकल घास चरने चली गयी है,”” दूसरे ने कहकहा लगाया।
“थुलथुल, बदसूरत कीड़ा,” किसी ने फब्ती कसी।”
““उसके कन्धे और टांगें देखे, जैसे पंख नुची हुई मुर्गी,”” चौथे आदमी ने ताना मारा।
इन फ़ब्तियों से राजा का ग़ुस्सा भड़क उठा। उसने जुलूस रोक दिया और अपने मन्त्रियों को डपटा, “सुना तुमने, इन मूर्खों और देशद्रोहियों की ज़ुबान बहुत चलने लगी है। तुम लोग रोकते क्यों नहीं उन्हें? मेरे नये वस्त्र बहुत ठाठदार हैं और इन्हें पहनने से मेरी राजसी आनबान बढ़ती है। तुम लोग ख़ुद यह बात कह रहे थे। आज से मैं सिर्फ़ यही कपड़े पहनूँगा और दूसरा कुछ नहीं पहनूँगा। जो कोई यह कहने की हिम्मत करता है कि मैं नंगा हूँ, वह दुष्ट और ग़द्दार है। उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करके मौत के घाट उतार दिया जाये। यह एक नया क़ानून है। इसकी घोषणा फ़ौरन कर दी जाये।””
राजा के मन्त्री तुरन्त भागदौड़ करने लगे। नगाड़े पीटकर प्रजा को इकट्ठा किया गया और मन्त्रियों ने पूरी ताक़त से चिल्ला-चिल्लाकर इस नये क़ानून की घोषणा कर दी। हँसना और फब्तियाँ कसना बन्द हो गया और राजा ने सन्तुष्ट होकर जुलूस को आगे बढ़ने का आदेश दिया।
लेकिन वह अभी थोड़ी ही दूर गया था कि ठहाकों और फ़ब्तियों की आवाजें उसके कानों में पटाखों की तरह गूँजने लगी।
““उसके बदन पर एक सूत भी नहीं है।””
“कैसा घिनौना पिलपिला बदन है।””
““उसकी तोंद देखो, जैसे सड़ा हुआ कद्दू!””
““उसके नये कपड़े वाक़ई कमाल के हैं!”” हर ताने के साथ ज़ोरदार कहकहे लगते थे।
राजा फिर भड़क गया। उसने खा जाने वाली नज़रों से मन्त्रियों को घूरा और चिंघाड़ा, ““इसे सुना तुमने!””
“हाँ महाराज, हमने सुना इसे,”” काँपते हुए मन्त्रियों ने जवाब दिया।
“क्‍या तुम भूल गये अभी-अभी मैंने क्या नया क़ानून बनाया है?””
राजा की बात पूरी होने का इन्तज़ार किये बिना मन्त्रियों ने सिपाहियों को आदेश दिया कि उन सबको गिरफ़्तार कर लायें जो हँस रहे थे या फ़ब्तियाँ कस रहे थे।
nanga raja-2चारों तरफ़ भगदड़ मच गयी। सिपाही इधर से उधर दौड़ने लगे और भागने की कोशिश कर रहे लोगों को अपने बल्लमों से रोकने लगे। बहुत से लोग गिर पड़े, कुछ दूसरों के ऊपर से छलाँग मारकर भागने में सफल हो गये। फ़ब्तियों और हँसी की जगह चीख़ें और सिसकियाँ सुनाई पड़ने लगीं। क़रीब पचास लोग पकड़े गये और राजा ने उनको वहीं मार डालने का हुक्म दिया ताकि प्रजा समझ जाये कि उसके मुँह से निकली बात लौह क़ानून है और कोई उसका मज़ाक नहीं उड़ा सकता।
उस दिन के बाद से राजा ने कोई कपड़ा नहीं पहना। अन्तःपुर से लेकर दरबार तक, हर जगह वह नंगा ही जाता था और बीच-बीच में अपनी पोशाक़ की सिलवटें ठीक करने का अभिनय करता रहता था। उसकी रानियाँ और दरबारी शुरू-शुरू में उसे अपने बदसूरत पिलपिले शरीर के साथ घूमते और ऐसी हरक़तें करते देखकर मज़ा लेते थे, पर धीरे-धीरे वे ऐसा दिखावा करना सीख गये जैसे कोई बात ही न हो। वे इसके आदी हो गये और अब वे राजा को ऐसे ही देखते थे जैसे वह पूरी तरह कपड़े पहने हुए हो। रानियाँ और दरबारीगण इसके सिवा कुछ कर भी नहीं सकते थे, अन्यथा वे अपने पदों से और यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धो बैठते। लेकिन इतनी जीतोड़ कोशिशों के बावजूद एक पल की गफलत भी उनके सर्वनाश का कारण बन सकती थी।
एक दिन राजा की प्रिय रानी उसे ख़ुश करने के लिए अपने हाथों से सुरापान करा रही थी। उसने लाल शराब का एक प्याला भरकर राजा के होठों से लगाया और ख़ूब मीठे स्वर में बोली, “इसे पीजिये और ईश्वर करे कि आप हमेशा जीवित रहें।”
राजा इतना ख़ुश हुआ कि उसने एक साँस में प्याला खाली कर दिया। लेकिन इसने शायद कुछ ज़्यादा ही जल्दी कर दी क्योंकि उसे खाँसी आ गयी और शराब उसकी छाती पर बह चली।
“अरे आपकी छाती पर धब्बा लग गया है,” रानी बोल पड़ी।
“क्‍या, मेरी छाती पर!””
अपनी भूल का अनुभव करते ही राजा की प्रिय रानी का चेहरा पीला पड़ गया। “नहीं, आपकी छाती पर नहीं,”” उसने काँपते हुए स्वर में अपनी भूल सुधारी, ““आपकी पोशाक़ पर धब्बा लग गया है।””
“तुमने कहा कि मेरी छाती पर धब्बा लग गया है। यह वही बात हुई कि मैं कुछ भी नहीं पहने हूँ। बेवकूफ़ कहीं की! तू दग़ाबाज़ है और तूने मेरा क़ानून तोड़ा है!”” इतना कहने के साथ ही राजा चिल्लाया, “ले जाओ इसे जल्लाद के पास।”” और उसके सिपाही रानी को घसीट ले गये।
राजा का एक बहुत विद्वान मन्त्री भी राजा की सनक का शिकार हुआ। हालाँकि उसने भी सबकुछ अनदेखा करने की आदत डाल ली थी, लेकिन उसे भरे दरबार में एक ऐसे आदमी को राजा कहने में शर्म आती थी, जो गद्दी पर बिलकुल नंगा बैठता था। मन ही मन वह उसे ‘गंजा बन्दर’ कहता था। वह डरता था कि यदि किसी दिन उसके मुँह से असावधानीवश कोई बात निकल गयी या वह किसी ग़लत मौक़े पर हँस पड़ा तो उसकी बरबादी निश्चित है। इसलिए उसने अपनी बूढ़ी माँ को देखने घर जाने के बहाने से राजा से छुट्टी माँगी।
राजा ने कहा कि, “मैं किसी मातृभक्त बेटे की प्रार्थना भला कैसे ठुकरा सकता हूँ।”” और उसे जाने की छुट्टी दे दी। मन्त्री को उस समय ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसे मोटी-मोटी ज़ंजीरों से मुक्ति मिल गयी हो। उसने राहत की साँस ली और उसके मुँह से धीरे से निकल गया, “भगवान का लाख-लाख शुक्र है, अब मुझे उस नंगे राजा की ओर देखना नहीं पड़ेगा।””
राजा के कान में भनक पड़ी तो उसने अपने सेवकों से पूछा, “क्‍या कहा उसने?”” सेवक हड़बड़ी में कोई बात बना नहीं पाये और उन्होंने उसे पूरी बात बता दी।
““अच्छा तो तुमने इसलिए छुट्टी माँगी थी क्योंकि तुम मुझे देखना बरदाश्त नहीं कर सकते,”” राजा चिल्लाया। “तुमने मेरा क़ानून तोड़ा है। अब देखो मैं ऐसा इन्तज़ाम करता हूँ कि तुम घर पहुँच ही न पाओ।”” इसके बाद उसने अपने जल्लादों को हुक्म दिया कि वे मन्त्री को ले जायें और उसकी गरदन उड़ा दें।
इन घटनाओं के बाद अन्तःपुर और दरबार में हर आदमी और ज़्यादा चौकन्ना हो गया। लेकिन आम जनता ने तो रानियों और दरबारियों जैसी चालाकी नहीं सीखी थी। जब भी राजा लोगों के सामने आता था और वे उसके ढोंग को और उसके भद्दे शरीर को देखते थे, वे हँसी रोक नहीं पाते थे। इसके बाद खूनी हत्याओं का सिलसिला शुरू हो जाता था। एक दिन जब राजा मन्दिर में यज्ञ करने के लिए गया तो उसके सिपाहियों ने तीन सौ लोगों को जल्लाद के हवाले किया। जिस दिन वह अपने सैनिकों का मुआयना करने निकला उस दिन पाँच सौ लोग मौत के घाट उतारे गये, और एक दिन जब वह राज्य के शाही दौरे पर निकला तो राज्य भर में हजारों लोग मारे गये।
एक दयालु बूढ़े मन्त्री ने सोचा कि राजा हद से बाहर जा रहा है और अब यह सब बन्द होना चाहिए। लेकिन राजा यह कभी नहीं मानता कि वह ग़लत है। उससे उसकी ग़लती बताना अपने गले में फन्दा डालने के समान था। बूढ़े मन्त्री ने सोचा कि अगर किसी तरह से राजा को फिर से कपड़े पहना दिये जायें तो जनता की हँसी और फ़ब्तियाँ रुक जायेंगी और लोगों की जान बचेगी। कई रातों तक जाग-जागकर वह सोचता रहा कि क्या करे जिससे साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।
आख़ि‍र उसे एक योजना सूझी और वह राजा के पास गया। उसने कहा, “मेरे मालिक! आपके एक वफ़ादार सेवक के नाते मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ। आप हमेशा नये-नये कपड़ों के शौक़ीन रहे हैं क्योंकि उनसे आपकी शानशौक़त को चार चाँद लग जाते हैं। लेकिन इधर बहुत दिनों से आप राज्य के मामलों में इतने व्यस्त रहे हैं कि आपको नये कपड़ों का ध्यान ही नहीं रहा है। जो पोशाक़ आपने पहनी हुई है, उसका रंग फीका पड़ रहा है। आप अपने दर्जियों को आदेश दीजिये कि वे आपके लिए एक नयी और शानदार पोशाक़ बनाकर तैयार करें।”
“क्‍या कहा, मेरी पोशाक़ का रंग फीका पड़ रहा है?”” उसने अपने शरीर पर हाथ फिराते हुए कहा। “बकवास! ये जादुई पोशाक़ है। इसका रंग कभी फीका नहीं पड़ सकता। तुमने सुना नहीं, मैंने कहा था कि अब मैं इसके सिवा और कुछ नहीं पहनूँगा। तुम चाहते हो कि मैं इसे उतार दूँ, ताकि मैं भद्दा दिखूँ! चलो, तुम्हारी उम्र और तुम्हारी पिछली सेवाओं का ख़्याल करके तुम्हारी जान बख़्श दे रहा हँ, लेकिन तुम्हारी बाक़ी ज़िन्दगी अब जेल में कटेगी।””
सैकड़ों निर्दोषों को प्राणदण्ड देने का क्रम चलता रहा। उल्टे, लोगों की हँसी बन्द न होने से राजा एकदम तुनक गया और उसने और भी ज़्यादा कड़ा क़ानून बना दिया। इस बार उसने फ़रमान जारी कर दिया कि जब राजा सड़क पर निकले उस वक़्त कहीं से किसी आदमी की किसी भी तरह की आवाज़ नहीं आनी चाहिये। अगर किसी ने कोई आवाज़ निकाली तो उसे हाथी से कुचलवा दिया जायेगा।
इस क़ानून की घोषणा के बाद राज्यभर के गणमान्य नागरिक सोचने लगे कि अब तो राजा अति कर रहा है। ठीक है कि राजा की हँसी उड़ाना अच्छी बात नहीं है, लेकिन दूसरी चीज़ों के बारे में बात करने पर क्यों प्राणदण्ड दिया जाये? वे सब जुलूस बनाकर राजा के यहाँ गये और राजमहल के बाहर घुटनों के बल झुककर बोलो कि वे राजा को एक अर्ज़ी देने आये हैं।
घबराया हुआ राजा बाहर आया और गरजकर बोला, “तुम लोग यहाँ क्या करने आये हो? बग़ावत करना चाहते हो?””
गणमान्य नागरिकों ने अपने सर उठाने की जुर्रत किये बिना जल्दी से जवाब दिया, “नहीं, नहीं महाराज, आप हमें ग़लत समझ बैठे हैं। हम ऐसा कुछ नहीं करने जा रहे हैं।”” राहत महसूस करते हुए राजा ने शान से अपनी अदृश्य पोशाक़ की सलवटें ठीक कीं और पहले से भी ज़्यादा कड़ी आवाज में बोला, “फिर तुम लोग इतनी भीड़ बनाकर यहाँ क्यों आये हो?””
“हम महाराज से प्रार्थना करने आये हैं कि हमारी हँसने-बोलने की आज़ादी लौटा दी जाये। जो आप पर कीचड़ उछालते हैं और हँसी उड़ाते हैं, वे दुष्ट लोग हैं और उनको ज़रूर मार डालना चाहिए। मगर हम सब लोग राजभक्त, ईमानदार नागरिक हैं, हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप अपना नया क़ानून वापस ले लें।””
““आज़ादी? और तुम लोगों को? अगर तुम आज़ादी चाहते हो तो मेरी प्रजा नहीं रह सकते। अगर तुम मेरी प्रजा रहना चाहते हो तो मेरे क़ानूनों को मानना पड़ेगा। और मेरे क़ानून लोहे जैसे सख़्त हैं। उन्हें मैं वापस ले लूँ? कभी नहीं!”” – इतना कहने के साथ ही राजा पलटा और अपने महल में चला गया।
नागरिकों को इससे आगे कहने की हिम्मत नहीं हुई। डरते-डरते उन्होंने धीरे से सर उठाया और देखा कि राजा जा चुका है। अब वे वापस घर लौटने के सिवा कुछ नहीं कर सकते थे। इसके बाद से लोगों ने एक नया तरीक़ा अपना लिया – जब राजा बाहर आता था, तब वे बन्द दरवाजों के पीछे अपने घरों में ही क़ैद रहते थे, सड़कों पर झाँकते तक नहीं थे।
एक दिन राजा अपने मन्त्रियों और अंगरक्षकों के साथ महल से बाहर अपनी आरामगाह के लिए चला। सारी सड़कें सूनी पड़ी थीं और दोनों तरफ़ घरों के दरवाजे बन्द थे। जो अकेली आवाज़ उन्हें सुनायी दे रही थी वह उनके अपने पैरों की पदचाप थी, जैसे रात के सन्नाटे में कोई सेना मार्च कर रही हो।
तभी अचानक राजा थम गया और कान खड़े करते हुए अपने मन्त्रियों पर गरजा, फ्सुन रहे हो ये आवाज़?” मन्त्रियों ने भी सुनने के लिए कान लगा दिये।
“हाँ, एक बच्चा रो रहा है,”” एक बोला।
““एक औरत गा रही है,”” दूसरे ने बताया।
“वह आदमी ज़रूर नशे में धुत्त होगा, बदमाश कहीं का, खिलखिलाकर हँस रहा है,”” तीसरे मन्त्री ने कहा।
अपने मन्त्रियों को सारा मामला इतना हल्का बनाते देखकर राजा आगबबूला हो गया। “क्‍या तुम लोग मेरा नया क़ानून भूल गये हो?”” – वह पूरी ताक़त से चिंघाड़ा। ग़ुस्से के मारे उसकी आँखें बाहर निकली पड़ रही थीं और उसका थुलथुल सीना धौंकनी की तरह चल रहा था।
मन्त्रियों ने तुरन्त सिपाहियों को हुक्म दिया कि घरों में घुस जायें और जिस किसी ने भी कोई भी आवाज़ निकाली हो – चाहे वह बूढ़ा, जवान, मर्द, औरत कोई भी हो – उसे पकड़ लायें और जल्लाद के हवाले कर दें।
लेकिन तभी ऐसी घटना घटी जिसकी राजा ने सपने में भी आशा नहीं की थी। जब सिपाहियों ने घरों के दरवाज़े तोड़े तो औरतों, पुरुषों और बच्चों का हुजूम बाहर उमड़ पड़ा। वे राजा की ओर झपटे और हाथों को बाज़ के पंजों की तरह ताने हुए उसके शरीर पर टूट पड़े। वे चिल्ला रहे थे, “नोच डालो! इसकी ख़ूनी पोशाक़ को नोच डालो!””
आदमियों ने राजा की बाँहें पकड़कर मरोड़ दीं। औरतें उसकी छाती और पीठ पर मुक्के बरसा रही थीं। दो छोटे बच्चे उसकी बाँहों के नीचे और पेट में गुदगुदी मचा रहे थे। चारों तरफ़ से घिर चुके राजा को भागने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। उसने अपना सिर घुटनों में छिपा लिया और गिलहरी की तरह गुड़ीमुड़ी हो गया, लेकिन सब बेकार। उसकी बगलों में मच रही भयानक गुदगुदी और उसके पूरे बदन में हो रही जलन उसकी बरदाश्त के बाहर हो रहे थे। वह किसी भी तरह इस मुसीबत से छुटकारा नहीं पा सकता था। उसने अपना सिर कंधें में दुबका लिया और उसके मुँह से क्रोध, भय और हैरानी की मिलीजुली ध्वनियाँ निकलने लगीं। उसके भृकुटि तानने और उन्हें डराने-धमकाने के प्रयासों को देखकर लोगों का हँसी के मारे बुरा हाल हो गया।
लोगों के घरों से निकलते हुए सिपाहियों ने देखा कि राजा कितना मज़ाकिया लग रहा था – जैसे क्रुद्ध बर्रों से घिरा बन्दर – तो वे भूल गये कि उन्हें उसके प्रति सम्मान दिखाना चाहिए और वे भी सबके साथ हँसी में शामिल हो गये। इसे देखकर पहले तो मन्त्रीगण डर गये, लेकिन फिर उन्होंने कनखी से राजा की ओर देखा और वे सब भी ठहाका मारकर हँस पड़े।
हँसते-हँसते दोहरे हुए जाते मन्त्रियों के दिमाग में अचानक यह बात आयी कि वे राजा का क़ानून तोड़ रहे हैं और उन्हें गिरफ़्तार किया जा सकता है। इसके पहले जब जनता राजा की खिल्ली उड़ाती थी तो मन्त्री ही उसे दण्ड दिया करते थे और अब वे खुद उस पर हँस रहे थे। तभी उन्होंने उसकी तरफ़ फिर ध्यान से देखा। उसके पूरे शरीर पर काले-काले चकत्ते पड़े हुए थे और वह गठरी बना हुआ ऐसा लग रहा था जैसे बरसात में भीगा हुआ मुर्गी़ का बच्चा। उसे देखते ही हँसी छूट रही थी।
“क्‍या यह स्वाभाविक नहीं है कि लोग मज़ाकिया चीज़ों पर हँसें? लेकिन राजा ने तो क़ानून बनाकर लोगों के हँसने पर पाबन्दी लगा दी थी। क्या बेहूदा क़ानून है!”” और मन्त्री भी लोगों के साथ मिलकर चिल्लाने लगे “नोच डालो! इसके झूठे कपड़ों को नोच डालो!””
जब राजा ने देखा कि उसके मन्त्री और सिपाही भी जनता से मिल गये हैं और अब वे उससे जरा भी खौफ़ नहीं खा रहे हैं तो उसे ऐसा धक्का लगा जैसे किसी ने उसके सिर पर भारी हथौड़ा दे मारा हो, और वह चारों खाने चित्त, धरती पर जा गिरा।

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मॉ की ममता, मां का ऑचल जींस और टॉप में गायब हो गया ……..

शादाब जफर ‘‘शादाब’’
दुनिया ने आज भले ही चाहे कितनी तरक्की कर ली हो, पर हम लोगो द्वारा स्थापित दिखावे की तैयार की गई इस संस्कृति से हमारे अपने जीवन और समाज में अशांति और विषमता आज लगातार बढती जा रही है। जिसने कई बुनियादी रिश्तो के साथ ही आज समाज में मॉ और बच्चे के रिश्तो की बुनियाद को हिला कर रख दिया है। आज भागमभाग वाले इस जमाने में अधिकतर मॉओ को अपने बच्चो के पास रहने का वक्त ही नही है। आज भयंकर मंहगाई के इस दौर में रोजमर्रा की जरूरतो को पूरा करने में परिवार के दोनो पहिये कमाई करने में लगे है। नतीजन बच्चे को आया पाल रही है या फिर परिवार का दूसरा कोई सदस्य। ऐसी स्थिति में बच्चे को मॉ का प्यार दुलार नही मिल पा रहा है, वो गोद नही मिल पा रही है जिस में लेट कर वो घंटो घंटो गहरी नींद सोता है, वो कंधा नही मिल पा रहा है जिस से लग कर उसे मॉ के दिल की घडकन सुनाई देती है, वो छाती नही मिल पा रही है जिस से मुॅह लगा कर वो अपना पेट भरता है। बच्चे के जीवन के शुरूआती सालो में ही नैतिक कार्य की जडे उस में विकसित होती है अगर इस समयावधि में बच्चे की सही देखभाल न की जाये तो आगे चलकर उस के षारीरिक और मानसिक विकास और जीवन पर इस का बहुत बडा असर पडता है। स्वभाविक है कि ऐसी स्थिति में जब बच्चे को मॉ की गोद, स्नेह, दुलार नही मिलेगा तो वो सारा दिन रोते हुए ही व्यतीत करेगा। आज देखने में ये आता है कि मॉ के घर से निकलते ही आया बच्चे पर कोई ध्यान नही देती बच्चे को सोफे या पालने में डाल आया टीवी देखने में व्यस्त हो जाती है बच्चा हॅस रहा है या रो रहा है उस की सेहत पर इस का कोई असर नही पडता। बच्चा घंटो घंटो रोता रहता है बग्घी या पालने में पडा रहता है। आज बच्चो के अपहरण की वजह से हाई सोसाईटी के ये मॉ बाप अपनी आया या परिवार के किसी सदस्य को बच्चो को घर के बाहर घुमाने की इजाजत भी नही देते। आज बच्चे का समुचित विकास नही हो पा रहा है जिस से आज हमारे समाज में एक अपेक्षाकृत अक्ष्म पीढी तैयार हो रही है।
सचमुच आज हमारे समाज में ऐसा ही हो रहा आज बच्चो के जीवन से मॉ गायब हो चुकी है। अब से दो दशक पहले तक बच्चो को मॉ हमेशा अपने साथ और सीने से लगा कर रखती थी। पर अब बच्चो का ज्यादा समय बग्गी, ट्रॉली, पालने, बेबी सीट, आया की गोद या फिर कार की सीट पर बीतता है। पहले मॉ बच्चे के रोने या किसी भी हरकत पर उसे लेकर फौरन हरकत में आ जाती थी। बच्चा ज्यादा देर मॉ से दूर होकर परेशान नही हो पाता था। पर आज बच्चो को रोने के लिये छोड दिया जाता है। आज की आधुनिक मॉए इस के पीछे ये तर्क देती है कि इस से बच्चा रात में खुद भी सही से सोएगा और हमे भी चैन से सोने देगा। पहले जमाने में बच्चो को तीन चार साल तक मॉ अपना दूध पिलाती थी। आज कुछ चुंनिदा माताए ही अपने बच्चो को दूध पिलाती है। आध्ुनिक मॉए तीन दिन भी अपने नवजात बच्चे को दूध नही पिलाती और तर्क देती है कि स्तन खोलकर बच्चे को दूध पिलाने से बैकवर्ड फीलिंग होता है। फीगर बिगड जाती है वो खुद को देहाती मॉ कहलाना नही चाहती। जब कि एक षोध के अनुसार बच्चो को साथ साथ रखने, उसे सीने से लगाकर पुचकारने, दुलारने, रोने के लिये अकेला न छोडने, ज्यादातर समय घर के बाहर व्यतीत करने और महीनो की जगह वर्षो बच्चो को स्तनपान कराने से शरीर ताकतवर होने के साथ ही उन के कल्याण और नैतिक मूल्यो में वृद्धि होती है। मॉ द्वारा बच्चो का जोश-ओ-खरोश और जिम्मेदारी पूर्वक ध्यान रखने से बच्चा शांत रहने के साथ ही दिन रात चैन की नींद लेता है जिस के कारण बीमारियो से बचने के साथ ही बच्चे के शरीर का संपूर्ण विकास होता है। पहले जमाने में मॉ बाप के आलावा बच्चे का ध्यान पारिवारिक सदस्य रखते थे। पर आज गुजरे कुछ वर्षा मे हमारे घरो की तस्वीर तेजी से बदली है बच्चो से बात करने की उनके पास बैठने उसे दुलारने निहारने की आज की आधुनिक मॉ को फुरसत नही। क्यो कि वो तो नौकरी, किटटी पाॅिट्रयो ,शापिंग घरेलू कामो में उलझी है। दादा दादी ज्यादातर घरो में है नही। ज्यादातर हाई सोसायटी घरो में एक बच्चा है। घर में अकेला बच्चा रोने के अलावा क्या करे किस से बोले किस के साथ खेले आया के साथ माली के साथ, आखिर कब तक खेले इन से लिपट कर चिपट कर इन कंधे से लगकर उसे वो गंध वो सुगंध नही आती जो उस की मॉ की है। इन के सीने से लग कर बच्चे को वो धडकन सुनाई नही देती जो इस के मॉ के दिल से निकलती है। पडोस, पडोसी से इन पॉश कालोनी वालो का कोई वास्ता नही होता। बच्चा अकेलेपन ,सन्नाटे ,घुटन और उपेक्षा के बीच बडा होता है। बच्चे को ना तो अपने मिलते है और ना ही अपनापन। पहले जमाने में बच्चे को घर से बाहर निकलकर अलग अलग आयु वर्ग के बच्चो के साथ खेलने की पूरी आजादी थी। पर आज बच्चे को एक काल कोठरी रूपी कमरे में बंद कर दिया जाता है। जिस में उसे सोफे पर बैठ कर पूरे दिन अकेले टीवी, डीवीडी, कंप्यूटर पर वीडियो गेम्स खेलते हुए समय काटना पडता है।
आज दूधमुहे बच्चो की दुनिया लाचारी भरी होने के साथ ही उन के जीवन से मॉ का प्यार, दुलार, लोरी, मॉ की गोद और मॉ का दूध खत्म होता जा रहा है। आने वाले समय में हम किसी को ये भी नही कह कर ललकार सकते की मॉ का दूध पीया है तो सामने आजा। आज की आधुनिक मॉ को बच्चा गोद में लेकर चलने में शर्म आती है। हा अब तो बच्चे को पीठ पर कपडे के एक झिगोले में ठंूसकर लेकर चलने का चलन भी शहरो में बडी तेजी से चल निकला है। जैसे बच्चा न हो कोई सामान हो। पर मॉ की गोद की बात ही निराली होती है। मॉ के द्वारा चलते हुए थकान से बच्चे का बार बार बदलता कंधा, मॉ के दोनो हाथो का सिर से लेकर पॉव तक बच्चे को बार बार करता स्पर्ष, मॉ के धडकते हुए दिल की धडकन का बच्चे की धडकन से बार बार टकराने और इन धडकनो का एक दूसरे को महसूस करना, बच्चा पूरी तरह से मॉ के दिल में उतरा हुआ रहता था। बच्चा मॉ की ममता को पूरी शिद्दत के साथ जीता था। जिगर से जिगर के टुकडे का नाता ऐसे बनता था की एक बच्चे में एक मॉ को पूरी कायनात, कायनात की सारी खुशिया दिखाई देती थी। उसे उस बच्चे में अपना पूरा जीवन अपनी पूरी ताकत दिखाई देती थी। आज के दौर की मॉए आखिर ऐसी क्यो नही सोचती, क्यो ऐसा महसूस नही करती, समझ नही आता। क्या ये सब बदलाव बच्चे के जन्म देने की प्रक्रिया के बदलाव के कारण हुआ या आधुनिक समाज की संरचना ने मॉ के सामाजिक ताने बाने को बिखेर कर रख दिया शायद आज इस पर एक लम्बी बहस की जरूरत है। बच्चे के जन्म देने की प्रक्रिया भले ही बदली हो पर आज भी बच्चे के पहली बार मॉ कहने का सम्बोधन वही है। मॉ की गोद वही है, मॉ चाहे आधुनिक समाज की हो या पिछडे समाज की बच्चा चाहे प्राकृतिक तरीके से पैदा हुआ हो या मेडीकल तकनीक के द्वारा बच्चे के जन्म के बाद दोनो मॉओ की छाती में दूध एक जैसा ही उतरता है, फिर मॉ क्यो बदलती जा रही आज ये सवाल हमारे सामने एक बडा सवाल बनकर खडा हो रहा है।
दरअसल इस का एक बडा कारण ये भी है कि आज षहरो में जो मॉए प्राकृतिक रूप से बच्चा जनना पसंद नही करती वो उस मॉ बनने के अहसास को जीवन भर महसूस नही कर पाती। उस पीडा उस दर्द को महसूस ही नही करती जो मॉ और बच्चे के बीच में प्यार का रिश्ता बनाता है। आज बडे बडे शहरो में हाई सोसायटी की महिलाए बच्चा जनने की पीढा के डर से आप्रेशन द्वारा बच्चा पैदा कराना आसान समझती है। जिस कारण आज बच्चा मॉ के जिगर का टुकडा नही बन पा रहा है। नर्सिग होम का बिल चुका कर बच्चा एक बाजार से खरीदे सामान की तरह घर आ जाता है। और छोड दिया जाता व्हीकल टैªक पर ट्रॅाली में गुमसुम अनाथो की तरह आया या नौकरो के हवाले ट्रॅाली धकेलने के लिये। कोई उस की कौली नही भरता उस के खिल खिलाने पर उठाकर कोई उसे चूमता नही। अपने कंधो से कोई उसे प्यार से नही लगाकर चिपकाता। आज कोई इन आधुनिक माओ को बताए की बच्चे को गोद में लेने से कोई मॉ देहाती मॉ नही कहलाता बल्कि एक जिम्मेदार मॉ कहलाई जाती है। बाजार या सडक पर बच्चे को गोद में लेकर चलने से बैकवर्ड फीलिग नही बल्कि फील गुड महसूस होता है। आज बच्चे मॉ से गोद और अपने हिस्से का दूध ही तो मॉग रहे बाकी जीवन की लडाई तो इन्हे खुद ही लडनी है।

बुधवार, 25 जून 2014

bahujan mukti party

















फरीदाबाद (हरियाणा)/दै.मू.समाचार
बहुजन मुक्ति पार्टी ने चुनाव आयोग के विरोध मंे लोकतंत्र बचाओ अभियान के अंतर्गत आज 22 जून 2014 को देश के 29 राज्यांे मंे 535 जिलांे मंे राष्ट्रव्यापी धरना प्रदर्शन किया। जिसके अन्तर्गत बहुजन मुक्ति पार्टी के फरीदाबाद (हरियाणा) यूनिट ने उपायुक्त कार्यालय फरीदाबाद (हरियाणा) के प्रांगण मंे ईवीएम मशीनांे के मुद्दे पर चुनाव आयोग के विरोध मंे धरना प्रदर्शन करते हुए बहुजन मुक्ति पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मा.कमल चन्द एडवोकेट ने कहा कि देश मंे पहली लोकतंत्र को खत्म करने के खिलाफ हो रहे षड्यंत्र को रोकने के लिए राष्ट्रपति के नाम का ज्ञापन दिया गया है। तथा राष्ट्रपति जी से यह भी कहा गया है कि  16 मई 2014 को घोषित चुनाव परिणाम के मद्दे नजर हमारी पार्टी का ईवीएम मशीनांे से भरोसा खत्म हो गया है।। जिस तरीके से बैलेट पेपर पर भौतिक सत्यापन संभव है वैसे ईवीएम में वोटांे की संख्या को वेरीफाई करना संभव नहीं है। जिस नाम के सामने बटन दबाया गया है वह वोट उसी उम्मीदवार को गया है या नहीं इसे ईवीएम मंे सत्यापित करना संभव नहीं है। ईवीएम मंे मतदाताआंे की इच्छा के विरूद्ध हेराफेरी करना कोई मुश्किल काम नहीं है। बहुजन मुक्ति पार्टी चाहती है कि भविष्य मंे मतदाताआंे की इच्छा जानने के लिए ईवीएम मशीन का प्रयोग बंद होना चाहिए या फिर ऐसी व्यवस्था की जाए कि मशीन से पेपर स्लीप बाहर निकले जो बैटल बाॅक्स मंे डाली जाए और ईवीएम का आंकडा पेपर स्लीप की गिनती के साथ टैली हो. इसके लिए इण्डियन इलेक्शन सर्विस का कैडर होना चाहिए जो राज्य और केन्द्र सरकार के नियंत्रण मंे नहीं हो। तभी फ्री एण्ड फेयर इलेेक्शन संभव होगा। और जनता की वास्तविक इच्छा का पता चल सकेगा।
चुनाव आयोग के विरोध मंे लोकतंत्र बचाओ अभियान के मुद्दे पर एक अन्य राजनीतिक पार्टी ‘‘हिन्दुस्तान क्रांति दल’’ का सहयोग भी हमारी पार्टी को मिला हिन्दुस्तान क्रान्ति दल के राष्ट्रीय महासचिव मा.शकील खान सैफी हमारे ज्ञापन को पढ़ कर लोगांे को सुनाया।

मुजफ्फरपुर/दै.मू.समाचार
चुनाव आयेाग द्वारा ई.वी.एम. मशीन में धोखाधड़ी को लेकर बहुजन मुक्ति पार्टी नारे बाजी के साथ धरना प्रदर्शन किया। बहुजन मुक्ति पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मा. विजय कुमार सिंह के नेतृत्व में रविवार को मुजफ्फरपुर (बिहार) में ई.वी.एम. मशीन को लेकर धरना प्रर्दशन किया। प्राप्त जानकारी के अनुसार मा. सिंह ने कहा कि
लोकतंत्र में चुनाव आयेाग ई.वी.एम. मशीन का प्रयोग कर देश के साथ धेखा धड़ी कर रही है। इसी धोखाधड़ी के साथ ई.वी.एम. मशीन में छेड़ छांड़ करके भाजपा की सरकार को बनाया जो देश जनता के साथ धोखा है। और इसको बीएमपी विरोध करती है।
ज्ञापन देते हुए मा. विजय सिंह ने कहा कि ई.वी.एम. मशीन को तत्काल बन्द किया जाए और बैलट पेपर का प्रयोग किया जाए जिससे लेाकतंत्र मयार्दा बना रहे नहीं तो बीएमपी इसके विरोध में जनआन्दोलन करने को बाध्य होगी धरना प्रदर्शन में डा. यू.एस. सहनी, नरेश कुमार निषाद, विन्देश्वरी ठाकुर, बालक नाथ सहनी, मदन कुश्वाहा, राम नरेश यादव, लड्डू सहनी (जिला अध्यक्ष) पप्पू यादव (जिला प्रवक्ता) अरविन्द पासवान, जयनाथ राम, आशुतोष राम, मुकेश सहनी, चन्दन कुमार, विरेन्द्र कुमार सहनी, सुरेन्द्र चन्द्रवंशी तथा अन्य कार्यकर्ता में उपस्थित रहे।
सहारनपुर/दै.मू.समाचार
चुनाव आयेाग के द्वारा जिस ई.वी.एम. का प्रयोग किया जाता है। उस मशीन को बनाने वाले देश जापान व अल्पविकसित देशों में भी ई.वी.एम. का प्रयोग नहीं किया जाता है। वर्ष 2010 में इसके प्रयोग को लेकर माननीय न्यायालय में वाद दायर किया गया जिसमें माननीय न्यायालय के ई.वी.एम. में वोट डालने के बाद एक पर्ची देने का आदेश किया गया जिससे यह पक्का हो सके। कि वोटर का वोट उसके द्वारा दिये गये बटन पर गया। लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसा नहीं किया।
सभा की अध्यक्षता कर रहे बहुजन मुक्ति पार्टी के मण्डल कोआर्डिनेटर एडवोकेट विनोद तेजियान ने बताया कि ई.वी.एम. के माध्यम से लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है। दूसरी ओर जनपद में गुण्डा राज चरम पर है। बाबेल, शिमलना, नन्दपुर काण्ड के दोषियों को सजा अभी तक नहीं मिली। दल्हेडी गांव में दिनांक 13-6-2014 को सरेआम गोली मारकर हत्या की गयी। इससे यह साबित हो रहा है कि कानून की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। मूलनिवासी लोगों को कीडे मकोड़ों की तरह मारा जा रहा है। यह भी घोषणा की गयी कि दल्हेडी काण्ड को लेकर बहुजन मुक्ति पार्टी दोषियों को सजा दिलाने के लिए जनपद में बहुत बड़ा आन्दोलन करेगी। बीएमपी के प्रदेश सचिव इन्तखाब आजाद ने बताया कि जनपद में ऐसी घटनाओं को लेकर दोषियों को सजा दिलाने के लिए बड़ा आन्दोलन होगा। बैठक में मृत ओमकार के भाई संजय कुमार ने घटना की पूरी जानकारी दी। मुख्यवक्ता के रूप में जिलाध्यक्ष एम.पी. सिंह, विधानसभा अध्यक्ष गंगोह, इसम सिंह गौतम बेहट विधानसभा प्रभारी, शीशपाल सिंह, सचिव सैनी, डा. श्याम सिंह रहे वह अन्य हाफीज सरीफ अहमद, फरकान, ताबिज, इजहार अहमद, मो. अरशद, सलीम, राजकुमार कर्णवाल, डा. विपिन कुमार, संजय पेगवाल, रामभूल आदि लोग उपस्थित रहे, और अन्त में उन्होंने यह भी कहा कि यदि इसी प्रकार 85 प्रतिशत मूलनिवासियों के ऊपर अन्याय अत्याचार होता रहेगा तो बहुजन मुक्ति पार्टी देशव्यापी आन्दोलन करेगी।

बलिया/दै.मू.समाचार
हम चुनाव आयेाग का विरोध क्यों कर रहे हैं? जनता की वास्तविक इच्छा जानने के लिए चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष  होना चाहिए। क्या चुनाव आयोग ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए काम किया? क्योंकि ऐसा ई.वी.एम के द्वारा संभव नहीं है। ई.वी.एम. के बारे में हमारे कुछ महत्वपूर्ण सवाल है। अमेरिका सबसे बड़ा विकसित राष्ट्र है। टेक्नोलाजी में भी विकसित है। परन्तु आज तक अमेरिका ने अपने राष्ट्रपति के चुनाव में ई.वी.एम. का उपयोग क्यों नहीं किया? विकसित यूरोपियन राष्ट्र भी ई.वी.एम. का उपयोग क्यों नहीं करते हैं? जर्मनी भी टेक्नोलाॅजी में विकसित राष्ट्र है। परन्तु उन्होंने ई.वी.एम. से चुनाव कराना बन्द कर दिया है। आस्ट्रेलिया में अभी तक ई.वी.एम. के द्वारा चुनाव नहीं होता है।
उपरोक्त सारे सवाल यह सिद्ध करती हैं कि ई.वी.एम. पर वहाँ कि जनता का विश्वास नहीं है। और इससे जनता की वास्तविक इच्छा के साथ खिलवाड़ हो सकता है। ऐसी उनकी मान्यता है।  उपरोक्त बातों से यह सिद्ध होता है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र संवैधानिक संस्था होते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर रहा है। इसका मतलब है कि यह भी वर्तमान शासक वर्गो के नियंत्रण में कार्य कर रहा है। जो संविधान के विरोध में है। और इस तरह से बड़े पैमाने पर इस पेश की जनता की वास्तविक इच्छाओं का चुनाव आयोग के द्वारा दमन किया जा रहा है। हम चाहते हैं कि चुनाव कराने हेतु ई.वी.एम. मशीनों को रद्द कर देना चाहिए या फिर उससे इलेक्ट्रानिक स्लीप निकलना चाहिए जिसे वैलेट बाक्स में डाली जाए और ई.वी.एम. मशीन का आँकड़ा एवं इलेक्ट्रानिक स्लीप का आंकड़ा टैली हो, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। इस कार्यक्रम में अशोक चंवर, अवधेश वर्मा, गुलबदन बौद्ध, मोती चन्द बागी, ओंकारनाथ गुप्ता, देवराज, बृजमोहन, अजय अम्बेडकर, शोएब आलम, रमेश चन्द मौर्य, बृजमोहन कुशवाहा, सत्य प्रकाश आदि भारी मात्रा में लोग उपस्थित रहे।

इलाहाबाद/दै.मू.समाचार
अभी-अभी 16वीं लोकसभा चुनाव हुए जिसके नतीजे भी आए लेकिन नतीजे आश्चर्यजनक रहे। भाजपा के जोरदार प्रचार-प्रसार से और भाजपा की जो लहर आम जनता मंे पैदा की गयी उसका परिणाम यह रहा कि देश के सभी लोकसभा सीटों से सिर्फ भाजपा की ही सीटें निकली। कहीं-कहीं तो पूरी की पूरी सीटे निकल आयी बाकी सभी राजनैतिक पार्टिया या तो उनका खाता ही नहीं खुला या फिर आशा के अनुरूप सीटें हासिल नहीं हुई। आम जनता में में यह चर्चा का विषय रहा और लोगों ने यह कहा कि जरूर इस बार शासक वर्ग ने ईवीएम के द्वारा कुछ गड़बड़ी की है। इस सम्बन्ध में 22/6/2014 को चुनाव आयोग के विरोध में लोकतंत्र बचाओं के अन्तर्गत बहुजन मुक्ति पार्टी ने इलाहाबाद जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन किया और लोगों को सम्बोधित किया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे मा. राजेश मौर्या (जिला उपाध्यक्ष, बी.एम.पी.) ने कहा कि वर्ष 2010 में जब एनजीओं ने चुनाव आयोग के सामने यह साबित कर दिखाया कि ईवीएम मशीन से हर स्तर पर धोखाधड़ी की जा सकती है। जिसे चुनाव आयोग ने स्वीकार किया। फिर भी 2014 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम का प्रयोग क्यों किया?
चुनाव आयोग द्वारा बनाया गया एक्सपर्ट कमेटी ने ईवीएम के विरोध में सलाह दिया फिर भी एक्सपर्ट कमेटी की बात क्यों नहीं मानी गयी? उपरोक्त बातों से यही सिद्ध होता है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र संवैधानिक संस्था होते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर रहा है। इसका मतलब है कि यह भी वर्तमान शासक वर्गों के नियंत्रण में कार्य कर रहा है। जो संविधान के विरोध में है और बड़े पैमाने पर इस देश के जनता की वास्तविक इच्छाओं का चुनाव आयोग के द्वारा दमन किया जा रहा हैं।
चुनाव आयोग एवं वर्तमान भ्रष्ट व्यवस्था के बारे में सभी वक्ताओे ने अपने अपने विचार रखे अन्त में एड.बी.एम.सिंह (प्रदेश अध्यक्ष, इलाहाबाद) ने अध्यक्षीय भाषण करते हुए कहा कि चुनाव प्रणाली में सुधार की जानी चाहिए जिसके लिये जिलाधिकारी महोदय को ज्ञापन सौंपा गया है। यह कार्यक्रम आगामी 29 जून को भी सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन रैलियाँ की जाएगी। अगस्त माह में राज्य स्तरीय महारैलियाँ एवं नवम्बर में राष्ट्रीय विशाल महारैली नई दिल्ली में किया जाएगा।
कार्यक्रम में मा. दीपक मौर्य (छात्रनेता इ.वि.वि.), मा. शैलेन्द्र भारती (जिलाध्यक्ष, बी.एम.पी.), मा. प्रदीप माही (मण्डल प्रभारी बी.एम.पी.), मा.हरिओम निराला (प्रदेश उपाध्यक्ष, बी.एम.पी.), आयु. किरन चैधरी (प्रदेश महासचिव, बी.एम.पी.), मा.नाथूराम बौद्ध, मा. महेन्द्र भारती, मा. राकेश गौड़, मा. नीरज पासी, मा.रामरक्षा कुशवाहा, मा. हौसला प्रसाद पटेल, मा.मोहम्द जैद, मा. एड.बृजेश निषाद (प्रदेश सचिव, बी.एम.पी.), मा. दीपक पटेल, मा.सुनील कुमार शर्मा, मा.सुनील गौतम, आयु.कुसुम गौतम आदि उपस्थित रहे।


हापुड़/दै.मू.समाचार
दिनांक 22.06.2014 दिन रविवार को बहुजन मुक्ति पार्टी के द्वारा ई.वी.एम. मशीनों में भारी गड़बड़ी की सम्भावनाओं को लेकर हापुड़ जिले में
कैलेक्ट्रेट स्थल पर धरना प्रर्दशन किया गया। इस अवसर पर बहुजन मुक्ति पार्टी के जिला अध्यक्ष मा. सतीश पाल सिंह ने बताया कि यह धरना बीएमपी के तत्वाधान में भारत के 29 राज्यों के 535 जिलों में जिला मुख्यालयों एवं तहसीलों मुख्यालयों पर किया जा रहा है। क्योंकि ई.वी.एम.मशीनों में भारी गड़बड़ी हुयी है। इस मशीनों के द्वारा चुनाव कराना लेाकतंत्र के विरोध में है। इसलिए हम सभी ई.वी.एम. मशीनों द्वारा किये गये चुनाव का विरोध करते हैं।
इस अवसर पर रामऔतार रघुवंशी जिला उपाध्यक्ष, बहुजन मुक्ति पार्टी ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए जबकि भारत में ऐसा नहीं है। अब चुनाव आयेाग को वर्ष 2010 में एनजीओ ने आयोग के समक्ष यह साबित कर दिया की ई.वी.एम. मशीन से धोखाधड़ी की जा सकती है। ई.वी.एम. से चुनाव क्यों कराया गया चुनाव द्वारा बनाई गयी एक्सपर्ट कमेटी ने ईवीएम के विरोध में सलाह दिया तो आयोग ने अपनी एक्सपर्ट कमेटी की बात को क्यों नहीं माना इन सभी बातों से सिद्ध होता है कि चुनाव आयोग पर शासक वर्ग का कब्जा है। और भारत में चुनाव आयेाग निष्पक्ष नहीं है। इसे लोकतंत्र के नाम पर भारत की जनता के साथ धोखा किया जा रहा है। इस अवसर पर माइकल, करोड़ी सिंह, सतीश उर्फ टीटू, डा. अशोक, प्रमोद कुमार, ओमपाल सिंह, सिद्धार्थ राव गौतम, वेद प्रकाश, विजय सिंह, नरेश सिंह, डा. अदिते अम्बेडकर, रामशरण बौद्ध, रेखा सिंह, अंशुल शावंत, देवेन्द्र, भारत भूषण, अशोक कुमार आदि लोग उपस्थित थे।

शनिवार, 21 जून 2014

राजमाता जिजाबाई

राजमाता जिजाबाई का स्मृति दिवस!
राजमाता जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी महाराष्ट्र के जिला बुलढाना में लकखोजीराव के घर में हुआ था। इनका विवाह कर्नाटक के बीजापुर के मूलनिवासी शाहजी भांेसले के साथ हुआ था। जीजाबाई के आठ बच्चें थे जिनमंे छ बेटियाँ और दो बेटे थे लेकिन बेटियों की अल्प आयु मंे ही मृत्यु हो गयी। और उनके दोनों बेटे संभाजी और शिवाजी ही बचे। उनके बड़े बेटे संभाजी अपने पिता के साथ रहते थे और शिवाजी महाराज माता जीजाबाई के साथ रहते थे। माता जीजाबाई ने शिवाजी महाराज को बहुत कम उम्र से देश मंे ब्राह्मणांे द्वारा यहां के मूलनिवासियांे पर हो रहे अन्याय और अत्याचार के बारे में बताया करती थी।
माता जीजाबाई का शिवाजी महाराज के जीवन में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्हांेने शिवाजी महाराज को शासन-सŸाा मंे काम आने वाले हर प्रकार की कूटनीति आदि का बहुत ही बारीकी से बताया है। ऐसा कहा जाता है कि माता जीजाबाई शिवाजी महाराज की गुरू थी। शिवाजी का जब राजतिलक के समय उन्हें ब्राह्मणांे ने शूद्र कहकर राजतिलक करने से मना कर दिया। अन्त मंे एक लालची ब्राह्मण गंगाभट्ट ने शिवाजी महाराज का अपने बाँये पाॅव के अंगुली से उनका राजतिलक किया था। जिससे माता जीजाबाई को बहुत ही दुःख पहुँचा और 21 जून 1974 को उनकी मृत्यु हो गई। माता जीजाबाई ने जिस प्रकार से मूलनिवासियांे की आजादी के लिए अपने पुत्र को ब्राह्मणांे के खिलाफ मैदान में उतसरा। उसी प्रकार से आज की महिलाओं को भी माता जीजाबाई से सीख लेना चाहिए और अपने बच्चों को ब्राह्मणों के अत्याचार और अन्याय को बताकर शिवाजी महाराज की तरह बनाना चाहिए। जिससे मूलनिवासी लोग ब्राह्मणांे की हजारांे साल से चली आ रही गुलामी से आजाद हो सके। आज माता जीजाबाई के स्मृति दिन पर सभी मूलनिवासियों को यही संकल्प लेना चाहिए। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी। राष्ट्र माता जीजाबाई के स्मृति दिवस पर दैनिक मूलनिवासी नायक हिन्दी पेपर की ओर से सच्ची श्रद्धांजली।-संपादक


सोमवार, 9 जून 2014

बिरसा मुण्डा!

आदिवासी क्रान्तिवीर बिरसा मुण्डा!
मूलनिवासी ही इस देश के असली वारिस है।
भारत देश अनेकता में एकता की संस्कृति वाला देश रहा है। यहाँ की जो सभ्यता थी वह बहुत ही महान सभ्यता थी। यहाँ के निवासी हमेशा एक दूसरे से मिलकर रहा करते थे। और खुशहाल जीवन व्यतीत किया करते थे। इस कारण यह सभ्यता फूलती-फतली रही और इस का बहुत ही विकास हुआ। मगर यहाँ पर यूरेशिया से आये विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों ने यहाँ के मूलनिवासियों को अपना गुलाम बनाया और उन पर अपनी ब्राह्मणवादी संस्कृति जबरदस्ती थोपी। तब से लेकर आज तक इस सभ्यता का विनाश ही हुआ है यूरेशियन ब्राह्मण लोगांे के आने के बाद यहाँ पर बहुत सारे विदेशी लोगांे ने आक्रमण किया इस देश की सम्पŸिा को लूट अपने देश ले गये और कुछ ने यहां सौ-दो वर्षो तक शासन भी किया और पुनः अपने देश को लौट गये। मगर इस देश मंे जो सबसे पहले यूरेशियन ब्राह्मण आया था। वह यहां से गया ही नहीं उसने यहाँ के जो मूलनिवासी थे उनको अपना गुलाम बनाया और उनको 6743 जातियों मंे बांट कर उन पर राज करना शुरू किया। और वह अपनी संस्कृति के ज्ञान के लिए यहाँ के जो मूलनिवासी थे उनको पढ़ने का अधिकार भी नहीं दिया। जिससे यहां के मूलनिवासी अनेक समस्याआंे से जूझते रहे। मगर इन्हींे मंे से कुछ ऐसे भी महामानव हुए जिन्हांेने इनका विरोध भी किया। और साथ ही लोगों को उनके खिलाफ खड़ा करने के लिए जन-जागृति का अभियान भी चलाया। क्यांेकि जो विदेशी यूरेशियन ब्राह्मण थे। वे यहाँ मूलनिवासी नहीं थे इसलिए वे देश को अपना देश मानते नहीं थे। इसलिए उन्हांेने यहाँ की जो खनिज सम्पदा होती थी। उन पर जबदस्ती कब्जा करते थे। चाहे उसके लिए उनको कुछ भी करना पड़ जाये। इसके लिए यहाँ के जो मूलनिवासी थे उनमंे से कुछ महामानवांे ने इनका विरोध भी किया।
ऐसे ही महामानव और आदिवासियांे के लिए भगवान माने जाने वाले उनमें से आदिवासियों के महानायक बिरसा मुण्ड जी थे। जिनका जन्म झारखण्ड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर 15 नवम्बर 1875 को हुआ था। ये बचपन से ही बड़े कुसाग्र बुद्धि के थे।  साल्गा गांव मंे प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल मंे पढ़ने आए। उनके मन मंे यहाँ की जो ब्रिटिश सरकार और यहाँ के जमीदारों/जागीरदारांे के खिलाफ बचपन से ही विद्रोह था। क्यांेकि उनको अपनी भूमि, जल, जंगल व संस्कृति से गहरा लगाव था। बिरसा मुंडा जी देखते थे कि इस देश के जमीनदार और साहूकारांे ने आदिवासियों पर कितने जुल्म कर रहे है। जमीदार लोग आदिवासियों से अपने खेतो मंे काम तो करते थे। मगर उसके बदले मंे उनको बहुत कम ही अनाज देते थे। जिससे उनका गुजर हो ही नहीं पाता था। साहूकार लोग उन्हंे ऊँची ब्याजदर पर पैसा उधार देकर उनकी बहू-बेटियों की इज्जत से भी खिलवाड़ करते थे। इसलिए बिरसा मुंडा जी ने हमेशा प्रखरता के साथ आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन पर हक दिलाने के लिए लोगों को जागृति करने का काम करते रहे। और बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को कहा था कि हमंे अपने हक अधिकार के लिए स्वयं लड़ना होगा। हम किसी से कमजोर नहीं है। उन्हांेने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा वे इस निष्र्कष पर पहुँचे कि आदिवासी समाज मिशनरियांे द्वारा भ्रमित किया गया है। और उनको धोखा दिया है इसलिए नए धर्म की स्थापना उनकी मजबूरी थी उनके नए धर्म का नाम था बिरसा धर्म। तब उन्हांेने सोचा कि आदिवासी जागृति न हुये तो वे आचरण के धरातल पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके सा उड़ जायेगा। और आस्था के मामले मंे भटका हुआ रहेगा। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है। धर्म के नाम पर आदिवासी कभी मिशनरियों के प्रलोभन में आ जाते हैं तो कभी ढकोसलांे को ही ईश्वर मान लेते है। और इन सब के कारण जमींदारो और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासको की शोषण भट्टी मंे आदिवासी समाज झुलस रहा था। इसलिए बिरसा मुण्डा जी ने आदिवासियों को शोषण के नारकीय यातनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हांे तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा। और इसके लिए वे गाँव-गाँव घूमकर लोगांे को अपना संकल्प बताया, उन्हांेने ‘‘अबुआः रे दिशोम रे अबुआः राज’’ (हमारा देश मंे हमारा शासन) का बिगुल फूंका। पहला तो सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी समाज मंे फैले अंधविश्वासांे और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखण्ड के पिंजरे से बाहर आ सके। इसके लिए उन्हांेने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया। शिक्षा का महत्व समझाया। उनके इस सामाजिक जागरण से आदिवासियों मंे सामाजिक स्तर पर जागरण के कारण जमींदार-जागीरदार और ब्रिटिश शासन ही बौखलाया और पाखण्डी, झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। बिरसा मुण्डा जी ने आदिवासियों मंे सामाजिक स्तर पर चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरूद्ध स्वयं संगठित होने लगे। और बिरसा मुण्डा जी ने उस नेतृत्व की कमान संभाली। आदिवासियों ने बेगारी प्रथा के विरूद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। अब बिरसा मुंडा जी अंग्रेजो की हिटलिस्ट मंे आ गये थे। उनके पांच शत्रु थे जमीनदार, साहूकार, सरकार, हिन्दू धर्म और ईसाई मिशनरी और उनके अपने ही कुछ आदिवासी भाई जो बिरसा के विरोधी थे। इनका आन्दोलन बहुत तेजी से बढ़ रहा था। जिससे सराकर ने बिरसा पकड़ो अभियान चलाने की घोषाण की। यह बिरसा मुण्डा के विरोधियांे के लिए स्वर्णसंधि थी। शोषणकर्ताओं के खिलाफ लड़ने वाले बिरसा मुंडा को किसी अंग्रेज ने नहीं बल्कि उन्हंे आदमी बदगाव का जमीनदार जगमोहन सिंह ने बिरसा के छिपने की जगह से गिरफ्तार करावा था। और उनको जेल मंे डलवा दिया। और जेल मंे उन्हंे यातनाएं देकर मारा गया। जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र केवल 25 साल थी। जमीदार तथा साहूकारों की भूमिका आदिवासियों के प्रति निर्दयता का प्रतीक बन गई थी। बिरसा मंडा और उनके चेलो को कुचलने के लिए योजना बनाई थी। और उनकी ताकत को नष्ट करने के लिए अंग्रेजो के साथ मिलकर ऐसी चालें चली जिससे आदिवासी हमेशा के लिए इन यूरेशियन ब्राह्मणों-बनियों के गुलाम बनकर रहे। जमीनदार, साहूकार चाहते थे कि बिरसा मुंडा को फाँसी की सजा हो, देशद्रोह का केस दाखिल करने के लिए अंग्रेजो पर दबाव बढ़ा रहे थे। और जेल में ही बिरसा मुंडा जी को अनेक यतनाआंे से प्रताडि़त कर रहे थे आखिरकार 9 जून 1900 को केवल 25 साल की अल्प आयु में ही उनका निधन हो गया। पोस्टमार्टम के बाद उनके शव को उनके साथियों और नहीं घरवालों को सौपा गया बल्कि हरमू नदी के किनारे पर चुपचाप से जला दिया गया। कहा जाता है कि बिरसा मुंडा जी की मृत्यु आर्सेनिक विष देने से हुई।  बिरसा मंुडा जी को आदिवासी लोग ‘‘धरती बाबा’’ के नाम से पुकारा करते है। लेकिन आज के समय मंे उनका यूरेशियन ब्राह्मणों द्वारा ब्राह्मणीकरण करने के कारण लोग उनकी पूजा करते है। और उनके उनके द्वारा चलाये गये आन्दोलन को भूलकर ब्राह्मणवादियों के बहकावे मंे फिर आने लगे है। बिरसा मुंडा जी जब तक जीवित थे उन्होंने आदिवासी समाज के लिए जो आन्दोलन चलाया उसमंे लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया लेकिन उनकी मृत्यु के बाद पुनः वहीं प्रक्रिया शुरू हो गयी।
वर्तमान समय मंे आदिवासियों की हालत इतनी ज्यादा खराब हो गयी है कि उनकी जमीनों पर जबरन बड़ी-बड़ी फैक्ट्ररियाँ लगाई जा रही है और उनको जल, जंगल और जमीन से अलग करने का काम यूरेशियन ब्राह्मणवादियों द्वारा जोरो-शोरो पर चलाया जा रहा है। इससे देश मंे नक्सलवाद आज तेजी से बढ़ रहा है। जो एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। ब्राह्मणवादी लोग उनकी समस्याओं का समाधान करने के बजाय उनको मारने पर उतारू है। भारत के संविधान में डा.बाबा साहब ने आदिवासियों के लिए 5वीं और 6वीं में विशेष अधिकार के तौर पर रखा लेकिन  आज का जो शासक वर्ग है वह भारत के संविधान के अनुसार आदिवासियों को उनका हक और अधिकार देना नहीं चाहते है। अगर मुंडा जी जीवित होते तो डा.बाबा साहब के साथ मिलकर आन्दोलन को चलाते, बाबा साहब का मानव मुक्ति आन्दोलन अधिक मजबूत होता इससे बाबा साहब और बिरसा मुंडा जी मिलकर सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्रांति का बड़ा बदलाव लाते। लेकिन समय का परिवर्तन तेजी से हुआ और आदिवासी जहाँ के तहाँ रह गये। बाबा साहब के द्वारा चलाये जा रहे मानव मुक्ति का आन्दोलन अब भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा चलाया जा रहा है। जिसमें इस देश का 85 प्रतिशत मूलनिवासी शामिल समाज जोरो-शोरो पर शामिल हो रहा है। चूकि इस देश के एससी/एसटी/ओबीसी और इन से धर्मपविर्तित अल्पसंख्यक लोग इस देश के मूलनिवासी है यह बात डीएनए के द्वारा सिद्ध हो चुकी है। यूरेशियन ब्राह्मण यहाँ के रहने वाले नहीं है तभी तो वह हमारे महापुरूषों के द्वारा चलाये गये जन-जागृति के आन्दोलनों का विरोध किया और मौका पाते ही उनको नष्ट करने का काम भी किया। लेकिन अब समय बदल रहा है और एक बार फिर देश में नई क्रान्ति का बिगुल बज चुका है और इस क्रान्ति मंे देश का जो असली वारिस है वह तन-मन-धन से सहयोग करेगा है। और यह आन्दोलन तेजी से जन-आंदोलन की तरफ बढ़ रहा। जन-आंदोलन करना क्यों जरूरी है क्योंकि हमारे महापुरूषांे ने जो भी आन्दोलन चलाये वह केवल अपने ही क्षेत्र तक सीमित रहे जिससे दुश्मनों को उनके आन्दोलन को कुचलने मंे आसानी हुई थी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्यांेकि अब देश का मूलनिवासी जाग रहा है। और अपने हक-अधिकार की लड़ाई के लिए मैदान में उतर रहा है। बिरसा मंुडा जी, बाबा साहब आदि महापुरूष भी यहीं चाहते थे। मेरा बस यहीं कहना है कि भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा जो जन-आंदोलन चल रहा है जिसका नेतृत्व मा.वामन मेश्राम साहब कर रहे है उस आन्दोेलन को सफल बनाने के लिए देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासियों साथ सहयोग चाहिए। जिससे मूलनिवासियों के उपर हो रह अन्याय अत्याचार का निर्वाण खुद मूलनिवासी करे। क्योंकि जब मूलनिवासी देश की शासन सŸाा मंे आये तो वह अपने देश और देशवासियों के हित के लिए ही काम करेगा। जिससे हमारी सारी की सारी समस्याओं का समाधान हो सके। यहीं हमारे महापुरूषों के लिए सच्ची श्रद्धांजली होगी।
राहुल वर्मा
अम्बेडकर नगर
मो.9984799292

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