शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

भारतीय सेना की चूक : सेना में नेपाली नक्सली की भर्ती -

नेपाल में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे नाराज माओवादियों के फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. फिर नेपाली माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर माओवादी कमांडरों ने नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया. -
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जालसाजी और फर्जीवाड़ा करके नौकरी पाने का देश में सिलसिला चल पड़ा है. व्यापमं घोटाले की कड़ियां केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत देश के कई अन्य राज्यों से भी जुड़ी हुई हैं. नौकरियों में उत्तर प्रदेश का घोटाला दर घोटाला सुर्खियों में है. यूपी में पुलिस की भर्ती में घोटाला परम्परागत कर्मकांड की तरह हो गया है. घोटालों से अर्धसैनिक बल और भारतीय सेना की नियुक्तियां भी अछूती नहीं हैं. चौथी दुनिया के 06 जुलाई से 12 जुलाई के अंक में आपने पढ़ा कि पिछड़ी जाति के लोग किस तरह अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर अर्धसैनिक बलों में भर्ती हो रहे हैं. सीआरपीएफ और बीएसएफ में भर्ती हुए तकरीबन चार दर्जन लोगों की आधिकारिक तौर पर शिनाख्त हुई, जो दलित बन कर भर्ती हो गए थे. जिनकी पहचान हुई, उनमें से अधिकांश लोग यादव जाति के पाए गए. इसी तरह फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए नियमित सेना में भी भर्तियां हो रही हैं. जो लोग पकड़े जा रहे हैं, उनकी संख्या नगण्य है. इसका सबसे संवेदनशील पहलू है भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में गोरखाओं के नाम पर नेपाल से भागे हुए माओवादियों की भर्ती. नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में भर्ती कराने में लखनऊ में रह रहे नेपाली दलाल, पूर्व सैनिक और नेपाल के कुछ माओवादी नेता सक्रिय हैं. भारतीय सेना की मध्य कमान का मुख्यालय लखनऊ है. गोरखाओं की भर्ती का सबसे बड़ा कमांड भी यही है. लखनऊ के कुछ स्कूल नेपाल से आने वाले युवकों को अपने यहां से फर्जी सर्टिफिकेट देते हैं और यहीं से उन्हें निवास का प्रमाण पत्र भी मिल जाता है और उन्हें बड़े आराम से सेना की वर्दी मिल जाती है. भर्ती महकमे के अधिकारी यह भी तस्दीक नहीं करते कि अभ्यर्थी ने अपना पता क्या लिखाया है. कुछ भर्तियां तो ऐसी भी सामने आईं, जिसमें अभ्यर्थियों ने कर्नल स्तर के अधिकारी के घर का ही पता दे डाला और उसकी छानबीन भी नहीं हुई. एक ही कर्नल के घर का पता कई अभ्यर्थियों ने लिखवाया और उसे सेना में भर्ती भी कर लिया गया. भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए कई नेपाली माओवादी सत्ता संघर्ष में हथियारबंद कैडर के रूप में सक्रिय थे. उन्होंने बाकायदा नेपाली सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और बाद में वे नेपाली सेना की बैरकों से भाग निकले थे. फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए सेना में भर्ती होने के कुछ मामले लगातार पकड़े जा रहे हैं, लेकिन पैसे का इतना बोलबाला है कि सैन्य तंत्र भी नाकाबिल साबित होता जा रहा है.
भारतीय सेना में नेपाल के माओवादियों की भर्ती के बारे में जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि कई सिपाहियों के नाम और उनके असली पते तक की पुष्टि हो गई है. गोरखा रेजीमेंट की विभिन्न बटालियनों में माओवादियों की बाकायदा पोस्टिंग भी हो चुकी है. कार्रवाई के नाम पर सेना भर्ती की प्रक्रिया में थोड़ा रद्दोबदल किया गया, लेकिन जो भर्ती हो गए, उन्हें पकड़ने में सेना ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. माओवादियों की लखनऊ, वाराणसी व कुछ अन्य भर्ती केंद्रों पर बहाली हुई और उन्हें ट्रेनिंग के बाद बाकायदा सेना में शामिल कर लिया गया. यह पाया गया कि लखनऊ और आसपास के स्कूलों ने नेपाली माओवादियों को आठवीं पास के फर्जी सर्टिफिकेट प्रदान किए थे. नेपाली माओवादियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारतीय नागरिक साबित कराया गया या उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से फर्जी डोमिसाइल सर्टिफिकेट देकर उन्हें सेना में भर्ती कराया गया. फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो रही भर्ती की भनक मिलने पर गोरखों की भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास से दसवीं पास कर दी गई, लेकिन इस फेरबदल के पहले जिन गोरखों की नियुक्तियां फर्जी प्रमाण पत्रों पर हो गईं, वे नियमित सेना में शामिल हो गए और उनका कुछ नहीं बिगड़ा.
नेपाल में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे नाराज माओवादियों के फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. फिर नेपाली माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर माओवादी कमांडरों ने नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया. रोम बहादुर खत्री ने मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ के साथ-साथ वाराणसी, बरेली, बाराबंकी, फैजाबाद, गोरखपुर में अपना जाल मजबूत किया. उसने सेना के अफसरों समेत फौजी भर्ती के धंधे में लगे दलालों और स्थानीय स्कूलों को अपने प्रभावक्षेत्र में लिया, जिनसे फर्जी प्रमाणपत्र लिए जा सकें. लखनऊ में खत्री को एक ऐसा आदमी भी मिल गया, जो भर्ती में दलाली करता था और हाईकोर्ट परिसर में टाइपिंग का काम भी करता था. अब वह वकील बन चुका है.
इस गिरोह ने सात-आठ साल तक नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में खूब भर्तियां कराईं. नेपाल से आने वाले माओवादियों को आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देने में लखनऊ के कई स्कूल आगे रहे और राष्ट्रद्रोह के एवज में पैसे कमाते रहे. इनमें बालागंज के कैम्पबेल रोड स्थित स्कूल, आनंद नगर स्थित एक स्कूल, उदयगंज स्थित एक स्कूल, माल में रहिमाबाद रोड स्थित एक स्कूल, इटौंजा रोड स्थित एक स्कूल अव्वल हैं. ‘चौथी दुनिया’ के पास इन स्कूलों के नाम भी हैं, लेकिन सेना ने छानबीन की कार्रवाई में व्यवधान न पड़े, इसके लिए उन स्कूलों का नाम प्रकाशित नहीं करने का आग्रह किया. हालांकि छानबीन में कोई उल्लेनीय प्रगति नहीं हुई है. लखनऊ और लखनऊ से बाहर के ऐसे कई स्कूल हैं, जहां नेपाली युवकों को अपने स्कूल का छात्र बताया गया और आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देकर उनकी वैधता पर मुहर लगा कर राष्ट्र के साथ द्रोह किया गया. लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी जैसे कई जिलों की प्रशासनिक इकाइयां भी इस देश विरोधी हरकत में शामिल हैं, जिन्होंने नेपालियों को यहां का स्थाई निवास प्रमाण पत्र प्रदान किया और इस आधार पर माओवादियों ने सेना में नौकरी पा ली.
डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने वाली प्रशासनिक इकाइयों ने पता का सत्यापन (ऐड्रेस वेरिफिकेशन) कराने की भी जरूरत नहीं समझी. बलराम गुरुंग नाम के निपट अनपढ़ नेपाली ने स्थानीय स्कूल से आठवीं पास का फर्जी प्रमाण पत्र हासिल किया और अपना पता 28/बी, आवास विकास कॉलोनी, माल एवेन्यु, लखनऊ लिखा दिया. बलराम गुरुंग मई 2010 में सेना में भर्ती होकर गोरखा रेजीमेंट में तैनाती पर भी चला गया. उसके आधिकारिक दस्तावेजों में बाकायदा माल एवेन्यु का पता दर्ज है. जब इस ऐड्रेस की छानबीन की गई तो पता चला कि वह घर सेना के ही एक कर्नल साहब का है. कर्नल साहब अब सेना से रिटायर हो चुके हैं. उनका नाम कर्नल अजित सिंह है. जब कर्नल साहब से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने कहा, ‘मुझे क्या पता कि किसने मेरे घर का ऐड्रेस लिखा दिया! किसी ने मुझसे पूछताछ करने की जरूरत भी नहीं समझी. मैं किसी बलराम गुरुंग को जानता भी नहीं.’
सनसनीखेज तथ्य यह है कि माओवादी गुरिल्ला कमांडर व यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री ने भारतीय सेना में जिन माओवादियों को भर्ती कराया, वे उस तक सेना की सूचनाएं पहुंचाते हैं. रोम बहादुर खत्री ने अपने दो बेटों संतोष बहादुर खत्री और भोजराज बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना में भर्ती करा दिया है. संतोष बहादुर खत्री खखख-9 गोरखा रेजीमेंट में भर्ती है और भोजराज बहादुर खत्री 17वीं जैक राइफल्स में भर्ती है. रोम बहादुर खत्री का एक बेटा भोजराज बहादुर खत्री पहले नेपाली सेना में था. तीन साल तक नेपाली सेना में रहते हुए वह माओवादियों के लिए मुखबिरी करता था. भोजराज की मुखबिरी पर माओवादियों ने नेपाल सेना की कई युनिटों पर हमले किए थे. ऐसे ही एक हमले में माओवादियों ने नेपाली सैनिकों को मारा, हथियार लूटे, लेकिन भोजराज को वहां से भगा दिया गया. नेपाली सेना से भागा हुआ वही माओवादी बाकायदा भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नौकरी कर रहा है. माओवादी कमांडर खत्री ने अपने भतीजे सुरेश बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना की नौकरी में लगवाया. वह भी एक कर्नल साहब के जरिए. वे कर्नल साहब फिलहाल पुणे में तैनात हैं.
माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री नेपाल के बरदिया जिले के तारातल गांव का रहने वाला है. वहां से उसके बारे में खुफिया जानकारियां मंगाई जा सकती हैं, लेकिन सेना की खुफिया इकाई भी भारत की मुख्यधारा में बह रही है. रोम बहादुर खत्री के दोनों बेटों, भतीजों और तमाम माओवादी काडरों की भारतीय सेना में हुई भर्ती का भी सेना अगर चाहे तो पता लगा कर कार्रवाई कर सकती है, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है. माओवादी कमांडर के गांव के ही दो और युवकों के बारे में जानेंगे तो आपको आश्चर्य होगा. दीपक छेत्री फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेना में भर्ती हो चुका है. वह खखख-9 गोरखा बटालियन में तैनात है. भर्ती की प्रक्रिया कितनी अंधी है कि दीपक छेत्री के दाहिने हाथ की वह उंगली कटी हुई है, जिससे राइफल का ट्रिगर दबाया जाता है. ऐसे सिपाही से सेना क्या काम लेती होगी, यह तो सेना ही बताए. दीपक का भाई रमेश छेत्री भी खत-9 गोरखा बटालियन में भर्ती है. यहां फिर से फर्जी पोस्टल ऐड्रेस का रोचक प्रसंग आता है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं. रमेश छेत्री के सैन्य दस्तावेजों में 8/5 विक्रमादित्य मार्ग का पता दर्ज है. निश्चित तौर पर इसी ऐड्रेस के आधार पर उसने डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया होगा. उस ऐड्रेस की भी ‘चौथी दुनिया’ ने छानबीन की. वह भी फर्जी पाया गया. यह पता भी कर्नल अजित सिंह के ही दूसरे घर का है. कर्नल ने कहा, ‘मैं सेना से रिटायर हो चुका हूं. मैं विकलांग हूं, चल-फिर भी नहीं सकता. गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोगों को मेरा घर ही सटीक लगता होगा, जहां से उन्हें किसी सक्रिय प्रतिरोध की कोई संभावना नहीं दिखती होगी, लेकिन सेना के अधिकारियों को तो पते की छानबीन करनी चाहिए थी कि सिपाही के लिए भर्ती होने वाला नेपाली गोरखा सेना के किसी आला अफसर के घर का पता क्यों लिखवा रहा है, वह भी माल एवेन्यु जैसे पॉश इलाके का?’ कर्नल ने कहा कि पूरे सिस्टम में ही भ्रष्टाचार की भंग पड़ी हुई हो तो और क्या होगा! दीपक छेत्री और रमेश छेत्री माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री के गांव बरदिया तारातल के ही रहने वाले हैं. लिहाजा, उनके माओवादी कनेक्शन स्पष्ट हैं.
सेना में फर्जी लोगों की भर्ती का गोरखधंधा बार-बार सामने आने के बावजूद इस पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है. सेना के सूत्र कहते हैं कि इस धंधे में सेना के अधिकारी ही लिप्त हैं, तो इस पर रोक कैसे लगे. खास तौर पर सेना के मध्य कमान में यह धंधा अधिक तेजी से पसरा है. अभी कुछ ही अर्सा पहले बरेली में सेना में भर्ती के लिए चयनित हो चुके 24 युवक पकड़े गए थे. खुफिया एजेंसी की सूचना अगर ऐन मौके पर नहीं मिलती तो वे भी भर्ती होकर सेना में शामिल हो चुके होते. फर्जी प्रमाण पत्रों पर बाकायदा चुने जा चुके सुखराम सिंह, जुगेंद्र सिंह, रामनिवास, महेश, पवन कुमार, सवेंद्रा सिंह, राजू कुमार, संदीप सिंह, पुरुषोत्तम सिंह, संजीव कुमार, मुकेश, कासिम, हरीश कुमार अंकित, दीपक कुमार, योगेंद्र सिंह, अय्यूब खान, भूपेंद्र, अरुण शर्मा, सचिन कुमार, सत्यपाल सिंह, ओंकार सिंह, रामू यादव और संजीव कुमार के शैक्षणिक और आवासीय प्रमाण पत्र, सभी नकली पाए गए थे.
सेना में घुसपैठ कराने वाले धंधेबाजों का बाकायदा एक सिंडिकेट चल रहा है और उन लोगों ने अपने-अपने जोन बांट रखे हैं. बरेली जोन में आदेश गुर्जर का गैंग यह धंधा चला रहा है. उसके धंधे में कई रिटायर्ड फौजी अफसर शामिल हैं. इसी गैंग के जरिए बरेली, पीलीभीत, बदायूं, संभल, शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी से फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र, चरित्र और आवासीय प्रमाण पत्र तैयार कराया जाता है. फर्जी भर्ती प्रकरण में पकड़े गए युवकों में से चार ने सेना को सबूत भी दिए कि कैसे उनसे रुपये लेकर आदेश गुर्जर गिरोह के सदस्य रिटायर मेजर आदित्य चौहान ने उन्हें बरेली में भर्ती कराया था। इन युवकों में विष्णु शर्मा राजस्थान के भरतपुर जिले के इकनहरा गांव का रहने वाला है, लेकिन उसे पीलीभीत बीसलपुर के देवरिया गांव का निवासी दिखाया गया. राहुल कुमार और हरेंद्र सिंह अलीगढ़ में टप्पल थाने के निगुना सुगना गांव के रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें पीलीभीत के बीसलपुर स्थित ईंचगांव का निवासी दिखाया गया. जीतू भी राहुल कुमार के ही गांव का रहने वाला है, जिसे राहुल की जगह दौड़ाया गया था. राहुल कानपुर की सेना भर्ती रैली में फेल हो गया था. इसीलिए उसकी जगह जीतू को दौड़ाया गया था. इस प्रकरण के बाद सेना बेफिक्र होकर बैठ गई और पुलिस ने भी हाथ ढीले कर दिए. फर्जी दस्तावेज पर भर्तियां धड़ल्ले से चलती रहीं. ग्यारह लड़के फिर पकड़े गए और सेना भी महज औपचारिकता निभाती रही. सेना के सूत्र बताते हैं कि फर्जी दस्तावेजों पर भर्ती होने के साथ-साथ किसी और के नाम पर किसी और के दौड़ने या लिखित परीक्षा में शामिल होने का धंधा निर्बाध गति से जारी है. बरेली, पीलीभीत, रामपुर, बदायूं, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी के युवक गाजीपुर, बलिया, देवरिया, हरदोई, अलीगढ़, मैनपुरी, एटा जैसे दूरस्थ जिलों से हाईस्कूल और इंटर पास का सर्टिफिकेट लाकर सेना में भर्ती हो रहे हैं. अभी पिछले ही महीने ऐसे करीब सौ सर्टिफिकेट्स फिर संदेह के दायरे में आए, जिनकी छानबीन की जा रही है. मध्य कमान के फतेहगढ़ सैन्य ठिकाने पर भी भर्ती हो चुके 205 युवकों के फर्जी दस्तावेजों का पता चला तो उनकी ट्रेनिंग रोकी गई. कहा गया कि फतेहगढ़ भर्ती प्रकरण में फर्रुखाबाद के कई लोकवाणी केंद्रों और दलालों की पड़ताल हो रही है. पड़ताल की बात कही जा रही है, पर हो कुछ नहीं रहा है. फतेहगढ़ स्थित राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के करियप्पा कॉम्प्लेक्स में बरेली सेना भर्ती बोर्ड की ओर से भर्ती की गई थी. इसमें फर्रुखाबाद के अलावा श्रावस्ती, बहराइच, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, संभल हरदोई, बलरामपुर और सीतापुर के युवक शामिल हुए थे. शारीरिक परीक्षण में चयनित अभ्यर्थियों में से कुल 640 युवकों ने लिखित परीक्षा पास की थी. उन्हें ट्रेनिंग के लिए विभिन्न सैन्य प्रशिक्षण केंद्रों में भेज भी दिया गया. बाद में खुफिया जानकारी मिलने पर छानबीन की गई तो दो सौ जवानों के प्रमाणपत्र संदिग्ध पाए गए. इनमें अनुराग यादव (कन्नौज), अनुज कुमार (बुलंदशहर), मानवीर सिंह (बुलंदशहर), अनिरुद्ध प्रताप सिंह (मैनपुरी), जयंती (मैनपुरी), गौरव सिंह राठौर (मैनपुरी), आदर्श कुमार (मैनपुरी), अखिलेश कुमार (मैनपुरी), धर्मेंद्र (आगरा), नवीन सिंह (आगरा), धर्मेंद्र सिंह (आगरा), सूरज सिंह (कानपुर देहात), नरेश सिंह (इलाहाबाद), राहुल (मथुरा) और शिवम(दिल्ली) समेत अन्य के नाम शामिल हैं.
फर्जी प्रमाण पत्र पर भर्ती हुए लोग बड़े आराम से पूरी नौकरी करके रिटायर भी हो जा रहे हैं और उसके बाद सरकार पर पेंशन का बोझ भी बढ़ा रहे हैं. जानकारी मिलने के बाद भी ऐसे फर्जी पूर्व सैनिकों की पेंशन और सुविधाएं रोकने की कोई कार्रवाई नहीं होती. सेना मुख्यालय को फैजाबाद के अजित कुमार सिंह के बारे में जानकारी भी दी गई कि फर्जी प्रमाण पत्र पर सेना में भर्ती हुआ वह शख्स रिटायर होकर पेंशन भी लेने लगा, लेकिन सेना ने कोई कार्रवाई नहीं की. इसी तरह मध्य कमान क्षेत्र के अंतर्गत तीसरी बिहार बटालियन के हवलदार देवेंद्र कुमार (नंबर- 4262912 के) पर भी फर्जी दस्तावेज के आधार पर सेना में नौकरी पाने और रियाटरमेंट के बाद पेंशन लेने की शिकायत है, लेकिन सेना मुख्यालय पर इस शिकायत का भी कोई असर नहीं पड़ा.

दिलदारी पड़ सकती है भारी
नेपाल के रास्ते पाकिस्तानी आतंकवाद भारत पहुंच रहा है और नेपाल को भी अपने चंगुल में लेता जा रहा है. भारत और नेपाल की सेनाएं प्रशिक्षण में साझेदारी तो कर रही हैं, लेकिन भारतीय सेना में भर्ती के जरिए माओवादियों की जो भारी घुसपैठ हुई है, उससे निपटने की सेना के पास कोई रणनीति नहीं है.
भारत में तकरीबन 50 हजार गोरखा सैनिक हैं और गोरखा रेजीमेंट की 39 बटालियनें भारत में सक्रिय हैं. नेपाल के माओवादियों की भारतीय सेना में हुई भर्तियां भविष्य में समस्याएं खड़ी कर सकती हैं. नेपाल से लगने वाली सीमा भी आफत का कारण बनने वाली है. बिहार और नेपाल की सीमा पर नक्सलियों द्वारा आपत्तिजनक पोस्टर बांटे जा रहे हैं. इन पोस्टरों से भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का काम हो रहा है. ऐसे कुछ पोस्टर हम आपको दिखा रहे हैं. नेपाली माओवादी भारत-नेपाल सीमा की शिनाख्त कराने वाले पुराने सीमा स्तम्भ हटा रहे हैं, जिससे सीमा की पहचान समाप्त हो जाए. माओवादियों ने ऐसे करीब साढ़े पांच सौ स्तम्भ गायब कर दिए हैं. भारत नेपाल की करीब 18 सौ किलोमीटर सीमा पर साढ़े तीन हजार से अधिक स्तम्भ लगाए गए थे, लेकिन इनमें से अधिकांश का कोई अता-पता नहीं है. उत्तराखंड के नैनीताल, चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पीलीभीत के जंगलों में माओवादी अपनी जड़ें जमा रहे हैं. भारत नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी इन्हें काबू करने में नाकाम है. उत्तराखंड से लगी नेपाल की सीमा पर ‘नो मैन्स लैंड’ पर माओवादियों ने अपने घर बना लिए हैं. वहां रह रहे नेपाली नागरिक यंग कम्युनिस्ट लीग के झंडे फहराते हैं. कुछ अर्सा पहले उत्तराखंड के जगलों में माओवादियों को हथियारों की ट्रेनिंग देने वाला कमांडर पकड़ा गया था. उसका नाम प्रशांत राही है. उत्तराखंड के जंगलों में माओवादियों को प्रशिक्षण दे रहे ऐसे भारतीय कमांडरों की कोई कमी नहीं है. भारतीय सेना में नेपाली गोरखा समुदाय के जो 50 हजार से अधिक लोग भर्ती हैं, वे हर साल सात-आठ सौ करोड़ रुपए अपने परिवारों के लिए नेपाल भेजते हैं. एक लाख से अधिक गोरखा भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद नेपाल में रहते हैं. इन्हें भी 500 करोड़ से अधिक की राशि सालाना पेंशन के रूप में मिलती है. यह तादाद अगर माओवादियों के सक्रिय हितचिंतकों में तब्दील हो गई तो क्या होगा? यह अहम सवाल सामने है.

सेना में नशीली दवाएं पहुंचा रहे हैं माओवादी
नक्सलवाद से प्रभावित बिहार-झारखंड में सैन्य इकाइयों के अंदर माओवादियों की पैठ की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है. अभी कुछ ही दिनों पहले 12 जून 2015 को बिहार के गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र में सेना के जवान कृष्णा राम, सेना से रिटायर्ड जवान गोपी लाल और माओवादी कमांडर इंदल भोक्ता के साथी लेखा सिंह भोक्ता को सात किलो अफीम के साथ पकड़ा गया था (चौथी दुनिया में प्रकाशित). इस वाकये से साबित हुआ कि माओवादियों की सैन्य इकाइयों तक सीधी पहुंच है. सूत्रों का कहना है कि अफीम पकड़े जाने का मामला तो एक है, जबकि इस इलाके में सेना को माओवादियों से नशीली दवाओं की खेपें लगातार मिलती रही हैं, जिसमें केवल अफीम ही नहीं, बल्कि हेरोइन और अन्य नशीले पदार्थ शामिल हैं. सेना के जवानों को नशा देकर माओवादी उनसे क्या-क्या जानकारियां हासिल कर रहे हैं, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. बिहार-झारखंड भी सेना की मध्य कमान के अंतर्गत आता है.

सेना में भर्ती हो गए ये माओवादी
संतोष थापा- 14 गोरखा रेजिमेंट
सरजू रिमाल- गोरखा रेजिमेंट
रमाकांत शर्मा- गोरखा रेजिमेंट
रमेश राणा- गोरखा रेजिमेंट नंबर-एलयूजीडी-1088
सूर्य बहादुर थापा- गोरखा रेजिमेंट
वीरेंद्र थापा- गोरखा रेजिमेंट
इंद्र बहादुर तमांग- 11 गोरखा रेजिमेंट
बलराम गुरुंग- गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री- खत-9 गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री (2)- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
सुरेश खत्री- नॉन कॉम्बैटेंट दस्ते में भर्ती
संतोष बहादुर खत्री- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
भोजराज बहादुर खत्री- 17 जैक राइफल्स

फर्जी दलित बन कर भी नौकरी पा रहे हैं नेपाली
फर्जी प्रमाण पत्र लेकर नेपाली लोग केवल सेना में ही भर्ती नहीं हो रहे हैं, बल्कि अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर वे अन्य सरकारी नौकरियों में भी घुस रहे हैं. उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में भी ऐसे दो मामले पकड़े गए. दो भाई अमित सिंह और अरुण कुमार नेपाल के खलंगा (पोस्ट ः ढूलेपानी, गांव ः प्यूठन) से यहां आकर अनुसूचित जाति के कोटे से सिंचाई विभाग में सरकारी नौकरी पा गए. शिकायत होने पर मामले की छानबीन की गई तो अरुण कुमार को बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उसी फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी पाये उसके भाई अमित सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. सिंचाई विभाग में अनुसूचित जाति के फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे अमित सिंह का आवासीय प्रमाण पत्र भी फर्जी है, क्योंकि उसमें सिंचाई विभाग की कॉलोनी का ही पता दर्ज है. सिंचाई विभाग में फर्जी नियुक्ति का यह मामला उठाने वाले व्हिसिल ब्लोअर हरपाल सिंह के उत्पीड़न का जो दौर चला, वह उनके रिटायर होने के बाद भी जारी है.
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रविवार, 16 अगस्त 2015

हमारा दुश्मन हमारे समाज में हर समय फैलाता है, जिसकी वजह से अभी तक महिलाओं का पृथक चुनाव क्षेत्र निर्माण नहीं हुआ।—आयु.सावित्री बौद्ध (कानपुर, उत्तर प्रदेश)


हमारा दुश्मन हमारे समाज में हर समय फैलाता है, जिसकी वजह से अभी तक महिलाओं का पृथक चुनाव क्षेत्र निर्माण नहीं हुआ।—आयु.सावित्री बौद्ध (कानपुर, उत्तर प्रदेश)

महिलाआंे के तीसरे राष्ट्रीय अधिवेशन मंे सभी महापुरूषांे को नमन करते हुए और यहाँ पर उपस्थित सभी लोगांे का स्वागत करते हुए, राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला अधिवेशन के प्रबोधन सत्र मंे जो विषय है कि महिलाआंे के लिए पृथक चुनाव क्षेत्र निर्माण किये बगैर महिलाआंे का सशक्तीकरण संभव नहीं है इस विषय पर बोलते हुए मैडम ने कहा कि ये विषय पूना पैक्ट से जुड़ा हुआ है। जो इसी पूना मंे बाबा साहब अम्बेडकर और गांधी के बीच मंे हुआ था। दूसरी एक बात है कि महिलाआंे का सशक्तीकरण मतलब हमारी महिला पहले सशक्त नहीं थी ऐसा नहीं है। इन 3 प्रतिशत ब्राह्मणांे को कमजोर बनाया लेकिन सावित्रीबाई फुले के शिक्षा ने हम महिलाआंे को फिर से सशक्त बनाया क्यांेकि शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पियेगा वो दहाड़ेगा।
लेकिन ये ब्राह्मणवादी शिक्षा नहीं तो इस राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम जी की शिक्षा को ग्रहण करना पड़ेगा। विषय के संबंध मंे मेरा कहना ये है कि हमारे लोगांे को वोट डालने का अधिकार नहीं था अनपढ़ो की तो छोड़ो हमारे पढ़े-लिखे लोगांे को भी ये वोट डालने का अधिकार नहीं था। हमको तो ये भी मालूम नहीं के वोट का अधिकार कैसे कब और क्यांे मिला है। ब्राह्मणांे ने जब अपनी आजादी के लिए आंदोलन चलाया अंग्रेजांे के विरोध मंे तो भारत छोड़ने से पहले अंग्रेजो ने यहाँ के विधिमण्डल का जिक्र किया। इस काम के लिए डा.बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर जी को अमेरिका कही बार जाना पड़ा तो देखा की वहाँ भी लोगांे को वोट डालने का अधिकार सिर्फ पढ़े-लिखे लोगांे को ही है। वहाँ वोट डालने के लिए पढ़ा-लिखा होने का
ब्मतजपपिबंजम लगता है। तो बाबासाहब ने सोचा अगर हमारे यहाँ ऐसा होगा तो हमारे लोगांे को वोट डालने का अधिकार ही नहीं मिलेगा क्यांेकि जिन लोगांे को धन रखने का अधिकार नहीं है। शस्त्र रखने का अधिकार नहीं है, बोलने का अधिकार नहीं है तो उनको शिक्षा का अधिकार कैसे मिलेगा। तो इस हिसाब से हमारे लोग वोट नहीं कर पायेंगे तो उन्हांेने अंग्रेजांे को बताया त्मुनमेज किया की यदि हम लोगांे को मताधिकार देना है तो प्रौढ़ मताधिकार देना होगा क्यांेकि हमारे लोगांे के पास कोई पढ़े-लिखे होने का प्रमाण पत्र नहीं है। अगर ऐसा है, तो बाबा साहब तो बहुत पढ़े-लिखे थे और चैथी पास आदमी को याने का जोड़कर को बाबासाहब के विरोध मंे चुनवाकर लाया गया था। तो इसी कारणवश महिलाआंे को भी पृथक चुनाव क्षेत्र निर्माण करना होगा तभी जा करके महिलाआंे का सशक्तीकरण होगा। इसीलिए हम लोगांे को घर-घर मंे जाकर लोगांे को पूना पैक्ट समझना होगा इसी पूना शहर मंे पूना पैक्ट ने और गांधी जी ने हमारे हक्क अधिकार छीने। क्यांेकि इन 3 प्रतिशत ब्राह्मणांे की ग्रामपंचायत सदस्य बनने के भी औकात नहीं है। लेकिन उनकी नेशनल लेवल की तीन-तीन पार्टियाँ है इस देश मंे, तो बहनांे हमंे जागृत रहना होगा हमारा राष्ट्रव्यापी संगठन बनाना पड़ेगा राष्ट्रव्यापी संगठन से औरमहिलाआंे के पृथक चुनाव क्षेत्र से हमे हमारे हक्क अधिकार मिल जायेंगे और हमारे से दलाल भडवे पैदा ना होेगे. जैसे कि सुशील कुमार शिंदे यहाँ के है तो जब प्रभु चावला ने उनसे पूछा था कि ज्ञानी जलसिंग राष्ट्रपति बने थे तो सुना था कि आप गांधी परिवार की चमचे गिरी ज्यादा करते हो तो कहाँ था हाँ और आपका क्या कहना है तो कहने लगा वो तो ठंबाूंतक है वो गांधी परिवार मंे झाडू लगा सकते है तो मैं तो एससी का हूँ मैं क्या नहीं कर सकता तो ऐस दलाल भड़वे पूना पैक्ट से निर्माण हुए ये सारी बाते हमंे घर-घर जाके महिलाआंे को बतानी चाहिए। तो ही हम महिलाआंे के लिए पृथक चुनाव क्षेत्र निर्माण कर सकते है। इसके लिए हमंे बहुत बड़ा काम करना होगा इसी विश्वास के साथ मैं अपनी बात समाप्त करती हूँ धन्यवाद!       
                                                                                           !! जय मूलनिवासी !!

मा. सावित्री बौद्ध


बामसेफ की महिला विंग राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला संघ उ.प्र. की वरिष्ठ कार्यकर्ता मा. सावित्री बौद्ध की आकस्मिक निधन दिनांक 15अगस्त 2015 को एक सड़क दुर्घटना मे हो गया ! जिनका अन्तिम संस्कार 16 अगस्त को उनके जनपद रमाबाई नगर मे सन्पन्न हुआ !उनके परिवार के लोगो ने कहा कि पूरा संगठन हमारा परिवार है !इसलीय राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला संघ की राष्ट्रीय प्रचारक आयु.निशा मेश्राम ने उनके पति और बच्चो के अनुरोध पर उनकी चिता को अग्नि दी !

पूना पैक्ट के ज्वाईंट इलेक्टोरेट ने सच्चा प्रतिनिधिक लोकतंत्र समाप्त किया-एक बहस - वामन मेश्राम

पूना पैक्ट के ज्वाईंट इलेक्टोरेट ने सच्चा प्रतिनिधिक लोकतंत्र समाप्त किया-एक बहस - वामन मेश्राम

        यह जो संयुक्त निर्वाचन है, यह गांधी जी के द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों के उपर थोपा गया षड्यंत्र है।इस समझने के लिए हमें तुलनात्मक तरीके से समझना होगा। ये जो भी ब्राह्मणों के संगठन है, इसे देश के आधुनिक काल में ब्राह्मणों ने संगठन बनाए। कांग्रेस का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया। कम्युनिष्टों का संगठन भी ब्राह्मणों ने बनाया। उस समय के समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी का संगठन फैजाबाद के आचार्य नरेन्द्रदेव ने बनाया जो ब्राह्मण थे और अच्यूत पटवर्धन पूना के ब्राह्मण थे। अशोक मेहता गुजरात के ब्राह्मण थे। बहुत सारे लोगों को इतिहास की जानकारी नहीं है। ये जो समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी बनाई गई थी। महाराष्ट्र में प्रजा समाजवादी पार्टी सन्त जोशी नामक ब्राह्मण ने बनाई थी। कांग्रेस का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, कम्युनिष्टो का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, सोशलिस्ट का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, हिन्दू महासभा का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, राष्ट्र सेवादल का संगठन ब्राह्मण ने बनाया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया और हर जगह पहल ब्राह्मणों की है। ब्राह्मण लोगों ने योजना बनाकर पहल की और बाकी के जो द्विज जाति के लोग जिसे उ.प्र. में राजपूत कहे जा सकते है, वे ब्राह्मणों के संगठन में शामिल हुए और उनके पिछलग्गू हुए। 3.5 प्रतिशत ब्राह्मणों के 4 राष्ट्रीय स्तर की रिकागनाईज पार्टियाँ है। 6 प्रतिशत क्षत्रिय है। देशभर में उनकी एक भी राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। वैश्यों की भी यहीं स्थिति है। 
         अभी केजरीवाल जो हरियाण का वैश्य जो हिसार जिले का है। पहली बार ऐसा हुआ के बीजेपी और कांग्रेस से जो लोग दुखी है, उनके लिए तो ब्राह्मणों ने एक और सप्लीमेन्ट्री (पूरक) योजना बनाया कि लोग अगर कांग्रेस से दुखी है, बीजेपी से भी दुखी है तो तीसरी पार्टी भी द्विजों की होनी चाहिए। उन्होंने ऐसा योजना बनाकर किया। यहां तक कि केजरीवाल ने अन्ना हजारे का इस्तेमाल किया। यह भी बात अब प्रमाणित हो गई। क्योंकि अन्ना-हजारे द्विज नहीं है। वह कुर्मी जाति का है और बाबा रामदेव अहिर (यादव) है। तो उन लोगों का इस्तेमाल इन लोगों ने किया। ये सारे ब्राह्मणों के संगठन है। यह उदाहरण मैंने यह संयुक्त निर्वाचन प्रणाली समझाने के लिए दिया। जब यह ब्राह्मणों के नीचे लगने वालों के संगठन होते है। तो ये क्या करते है? ये एससी के आदमी को यदि बाबा साहब अम्बेडकर ने पष्थक निर्वाचन हासिल किया था जो उसमें एससी के लोगों को ही वोट देना और एससी के लोगों का ही चुनाव क्षेत्र होता, तो केवल एससी के लोगों को वोट देने का अधिकार होता और चुनाव भी लड़ने का अधिकार होता। तब एससी में जो सबसे लड़ाकू होता, वहीं चुनकर जाता है। लेकिन हुआ क्या? गांधी जी ने पूना-पैक्ट किया और एससी के लोगों के उपर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली थोप दिया। परिणाम क्या हुआ? ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, का नेतष्त्व क्या करते है? वे एससी में किसी एक आदमी को नामित करते है। ये जो ब्राह्मणों की पार्टियाँ है, जिसका सपोर्ट क्षत्रिय और वैश्य कर रहे है। उन्हें नामित करने के बाद ये सारे मिलकर मनी, मीडिया और माफिया की मदद से जो एससी का आदमी ब्राह्मणों द्वारा नामित है उसे चुनावकर लाते है। यदि एससी का आदमी ब्राह्मणों द्वारा नामित किया हुआ आदमी चुनवाकर लाया जाता है तो विधानसभा में ब्राह्मणों की तरफ देखकर बोलेगा अभी तो देखकर बोलने का भी मामला नहीं है कि विधानसभा में कौन बोलना चाहिए और कौन नहीं विधानसभा में बोलना चाहिए। ये पार्टी के सांसदीय दल का जो नेता होता है, वह निर्धारित करते है। उन्हें समय ही बोलने के लिए नहीं दिया जाता है। ये जो लोग है, ये नामित लोग है। संयुक्त निर्वाचन प्रणाली में वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त कर दिया गया और नोमिनेटेड प्रतिनिधित्व लागू कर दिया गया। जिसको नामित किया गया है, वह प्रतिनिधि नहीं है जिस समाज और जाति में वह पैदा हुआ। बल्कि जिसने उसको नामित किया वह उसका और उसके पार्टी का प्रतिनिधि है। उसे यह कहा जाता है कि यदि किसी एससी के एम.पी या एम.एल. पार्टी हाईकमान के पास कोई सामाजिक मुद्दा लेकर गये तो उसको बोलते है कि आपका कोई व्यक्तिगत मामला है, आपको पेट्रोल पम्प चाहिए। पेट्रोल पम्प है तो गैस एजेन्सी या सी.एन.जी पम्प वाला पम्प ले लो, मगर समाज की बात मत करो। यदि किसी एम.एल.ए, एमपी. ने ज्यादा दबाव बनाया तो कहते है कि क्या आपको अगले चुनाव में टिकट नहीं चाहिए तो वो अपनी औकात पर आ जाते है। वह दुबारा जाता ही नहीं है। यदि इसके बाद भी वह आ गया तो आने से पहले ही उसकी फाइल तैयार करते है। पहले उसे वह फाइल पढ़ने के लिए देते है कि तुमने ये अवैध काम किया, ये भ्रष्टाचार किया, ये ऐसे किये, वह वैसे किये तो उसे बोलने से पहले ही डरा देते है। वह फाइल देते है। जिससे वह बोलना ही भूल जाता है। और नमस्कार बोल करके वह वापस चला जाता है। ये संयुक्त निर्वाचन से ऐसा हुआ है। 
        संयुक्त निर्वाचन में इसे नामित कर देते है। ये एससी का आदमी है इसे नामित करके, चुनवाकर लाते है। ऐसा हो रहा है और इससे वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त हो गया। इसके बाद एसटी आ गया। एसटी को तो पता हीं नहीं है, एससी को तो कम से कम पता है। ये पूना पैक्ट आदिवासियों को लागू कर दिया गया जबकि आदिवासियों ने मांग भी नहीं किया फिर भी लागू कर दिया। पांचवी और छवीं अनुसूची की वजह से आदिवासी अपने क्षेत्र में स्वायत शासन गठित करने का जो अधिकार उन्हें मिला था कि संसद और विधानसभा में जो भी कानून पास किया जायेगा, आदिवासी इलाके में लागू करने से पहले आदिवासियों से सहमति लेनी होगी। सहमति लिए बगैर उस इलाके में संसद, विधानसभा द्वारा पास किया गया कानून भी लागू नहीं होगा। इतना बड़ा अधिकार आदिवासियों को पांचवी और छठी अनुसूची में दिया गया है। यदि आदिवासियों के इलाके में मान लो कि कोयले की खदान है। यह खदान किसे देना है? इसकी सहमति जब तक आदिवासी की नहीं होगी, उसका आवंटन नहीं होगा। वह प्रोविजन इस पांचवी और छंवी अनुसूची में है। इसे समाप्त करने के लिए आदिवासियों की मांग न होते हुए भी उन पर संयुक्त निर्वाचन लागू कर दिया गया। जिस तरह से एससी में चममे, दलाल और भड़वे पैदा किये, उसी तरह से आदिवासियों में भी पैदा कर दिये गये और आदिवासियों में वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त कर दिया गया। उसके बाद ओबीसी की ले लो। ओबीसी में संयुक्त निर्वाचन कानूनन लागू नहीं है। इन लोगों ने दूसरा रास्ता निकाला कि ओबीसी पार्टी लेबल (स्तर) पर लागू कर दिया। जो पंचायत राज कानून है, जिसे राजीव गांधी ने बनाया, यह निचले स्तर पर जैसे ग्राम पंचायत है, तालुका पंचायत है, नगर पंचायत है, जिला पंचायत है, नगर पालिका है, महानगर पालिका है और उसमें पंचायत राज कानून लागू किया। एससी और एसटी को जो संयुक्त निर्वाचन लागू है, वह ओबीसी को पंचायत राज में लागू कर दिया। पंचायत राज में ओबीसी का नेतष्त्व समाप्त कर दिया। ओबीसी में निम्न स्तर पर दलाल और भड़वे पैदा करवा दिया। वे जो दलाल और भड़वे पैदा कर दिये गये, वे ब्राह्मणों की पार्टी को वोट देने के लिए, उसके बदले में उनको कमीशन मिलता है। फिर इस तरह से एक जुगाड़ बिठाया गया है कि आपको टिकट दिया जायेगा, तो इसके लिए जुगाड़ आप को एम.एल.ए और एम.पी के लिए करना होगा। आपको पंचायत, तालुका पंचायत के लिए दिया जाएगा। निम्न स्तर पर आपको क्या लूटना है? हम नहीं पूछेगें। विधानसभा में लोकसभा में उनको आपको चुनकर लाना है। ये कोई काल्पनिक बात नहीं है। ऐसा हो रहा है। पूना पैक्ट ओबीसी में भी लागू कर दिया गया है। 
       2010 में साढ़े आठ 52 प्रतिशत ओबीसी के लोगों की जाति आधारित गिनती होनी चाहिए, जब यह मामला हमने उठाया तो उस समय साढ़े आठ मुख्यमंत्री ओबीसी के थे। किसी मुख्यमंत्री ने जिस मंत्रिमण्डल का वह प्रमुख था। कागज में रेगुलेशन तक पारित नहीं किया कि ओबीसी की जातिआधारित गिनती होनी चाहिए। सबसे धाकड़ आदमी ओबीसी का नरेन्द्र मोदी माना जाता है। उसने भी यह काम नहीं किया। और न ही वह कर सकता है। उसे किसी ओबीसी के व्यक्ति ने पूछा कि नरेन्द्र जी आप ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो? तो नरेन्द्र मोदी ने कहा आप मुझे अकेले में मिलो। जब वह आदमी अकेले में मिला तो नरेन्द्र मोदी ने कहा कि क्या तुम मुझे मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते हो? तो आदमी ने कहा कि मैं ग्राम पंचायत का सदस्य भी नहीं हूँ, नरेन्द्र भाई मैं कैसे आपको हटा सकता हूँ? तो मोदी ने कहा कि मैं जानता हूँ कि तुम नहीं हटा सकते। लेकिन जब जाति आधारित गिनती के लिए मैं बोलूंगा तो आरएसएस के लोग क्या मुझे छोड़ेगें? क्या मुझे मुख्यमंत्री पदपर रखेगें? ये बात जिस ओबीसी के कार्यकर्ता ने बताया वह महेन्द्र भाई हमारा कार्यकर्ता है। उसने हमसे बताया कि नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कहा। नरेन्द्र मोदी ओबीसी का होकर भी गुजरात के अन्दर ओबीसी के लिए कुछ नहीें कर रहा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह देश में कुछ करने वाला है क्या? हाँ अपने प्रधानमंत्री के कार्यालय के समाने एक चाय की दुकान खुलवा सकता है। इसके अलावा और कुछ नहीं करवा सकता है। उसके लिए प्रधानमंत्री के अनुमति की क्या जरूरत है। हाँ, उसके लिए तो एक चार बाई चार का का ठेला ले लो, चीनी और चायपत्ती खरीद लो और किसी भी चौराहे पर बिना किसी किराये का खड़ी कर दो। दुकान चल जाती है। उसके लिए किसी की परमीशन की कोई जरूरत नहीं है। उस समय साढ़े आठ मुख्यमंत्री थे। उनमें से किसी ने योजना आयोग को चिट्ठी नहीं लिखी, जनगणना कमीशन को कोई चिट्ठी नहीं लिखी, प्रधानमंत्री को कोई चिट्ठी नहीं लिखी और अखबार में किसी मुख्यमंत्री ने बयान तक नहीं दिया। नितीश कुमार ने एक अखबार में बयान दिया था। वह भी दबी जबान से, वह भी दुबारा हमेशा के लिए भूल गया। उनकी बीजेपी के समर्थन के बिना सरकार चल रही है। तो अभी जनगणना कर सकता है। लेकिन वह उसकी औकात नहीं है, नहीं कर सकता। ये सारे उदाहरण इस बात को सिद्ध करते हेै कि ये सब मुख्यमंत्री ओबीसी के हैं, लेकिन ये ओबीसी के वास्तविक प्रतिनिधि नहीं है। 52 प्रतिशत ओबीसी में भी संयुक्त निर्वाचन प्रणाली लागू कर दिया गया है। अब माइनॉरिटी की बात ले लो। माईनॉरिटी में सबसे बड़ी माइनॉरिटी मुसलमानों की है। इसी तरह से सभी माइनारिटी की दशा है। मुसलमानों का आजकल जो कांगे्रस की तरफ से प्रतिनिधित्व करते है। जैसे गुलाम नवी आजाद। मैनें कभी मुसलमानों की समस्याओं पर उन्हें बोलते हुए नहीं सुना। शायद ही मुसलमानों को मालूम हो, लेकिन मैंने अभी तक नहीं सुना। बीजेपी ने सैयद शाहनवाज हुसैन नाम का एक आदमी रखा है। जब कांग्रेस के लोग आरएसएस पर टीका-टिप्पणी करते है तो उसका जवाब देने के लिए सैयद शाहनवाज हुसैन को भेज देते हैं। मुसलमानों के लिए जब कोई मामला आता है तो उसके लिए प्रवीण तोगड़िया को भेज देते है कि ये मामला तेरा है, इसे तू देख ले। इस तरह से ओबीसी और माइनॉरिटी में भी संयुक्त निर्वाचन लागू कर दिया गया है। इस प्रकार एससी/एसटी/ओबीसी और माइनोरिटी के 85 प्रतिशत लोगों को वास्तविक प्रतिनिधित्व के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। नोमिनेटेड प्रतिनिधित्व, वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं होता है। इसका दूसरी तरफ परिणाम हुआ कि पार्टियां ब्राह्मणों की है। एससी, एसटी और ओबीसी के लोग उन पार्टियों से टिकट मांगते है। इस प्रकार उन लोगों ने हमारे लोगों को मागने वाला बना रखा है। बीजेपी, कांग्रेस और कम्युनिस्ट आदि पार्टियों के सामने हमारी औकात मांगने वाला है। हाँ थोड़ा सा एम.पी स्तर का मांगने वाला, एम.एल.ए स्तर का मांगने वाला तथा सफारी और टाई लगाकर मांगने वाला है। मांगने वाले की क्वालिटी थोड़ा ऊँची है। जैसे पहले कोई धोती पहनकर ब्राह्मणों को चाय-पानी पीलाता था, अब कोई सफारी और टाई पहन कर ब्राह्मण को पानी पिला दे तो क्या ब्राह्मण को कोई दुख होगा? उसे खुशी होगी कि सफारी और टाई पहनकर चपरासी सेवा कर रहा है। इस प्रकार एससी, एसटी और ओबीसी को उन ब्राह्मणों के पार्टियों से टिकट मांगनी पड़ती है। पार्टी ब्राह्मणों की है, इसलिए वैश्य लोगों को भी ब्राह्मणों से टिकट मांगना पड़ता है। क्षत्रियों को भी ब्राह्मणों से टिकट मांगना पड़ता है। ब्राह्मणों की पार्टियाँ है। अत: केवल ब्राह्मणों को इस देश में टिकट नहीं मांगना पड़ता है। यह इस देश की कड़वी सच्चाई है। दूसरी तरफ सारे प्रतिनिधित्व पर ब्राह्मणों ने कैंजा कर लिया है। जैसे विधायिका पर, कार्यपालिका पर, न्यायपालिका पर, मीडिया पर, गवर्नर पर, मीलिट्री पर, सेक्रेटरी पर, सचिवालय पर, वायसचान्सलर पर तथा सारी लोकत्रांतिक संस्थाओं पर ब्राह्मणों ने कैंजा कर लिया। इन सारी संस्थाओं पर ब्राह्मणों के कैंजा होने से हम कह सकते है कि इस देश में लोकतंत्र नहीं ब्राह्मणतंत्र आ गया हैं। ब्राह्मणतंत्र क्या है? प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र ही ब्राह्मणतंत्र है। ये सारा का सारा कारण संयुक्त निर्वाचन प्रणाली ने पैदा किया है। यह संयुक्त निर्वाचन प्रणाली का जन्मदाता मोहन दास करमचन्द गांधी है। इसका अर्थ है कि मोहन दास करमचन्द गांधी द्वारा कांग्रेस (जो ब्राह्मणों की पार्टी है) के माध्यम से इस देश में लोकतंत्र का सत्यानाश किया गया है। इसके लिए किसी और आदमी को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है। इसके लिए पूरा का पूरा मोहनदास करमचन्द गांधी जिम्मेदार है। इसीलिए कहते रहते है कि गांधी हमारे सर पर बिठाया गया है। हम उसे उतारने की कोशिश कर रहे है। इसके पहले कि हम गांधी को सिर से उतार दें, अन्ना हजारे नाम का दूसरा गांधी हमारे सिर पर बिठाया जा रहा है। अभी पहला ही पूरी तरह से नहीं उतार पाया है और दूसरा बैठा रहे हैं। वह गांधी तो कम से कम बैरिस्टर था लेकिन दूसरा गांधी तो सातवीं फेल है। इस प्रकार संयुक्त निर्वाचन प्रणाली ने इस देश की वास्तविक लोकतंत्र को समाप्त किया है। इसका सबसे भंयकर परिणाम यह है कि सच्चा लोकतंत्र को संयुक्त निर्वाचन प्रणाली ने समाप्त कर दिया है। यदि सच्चा लोकतंत्र होता तो हमारा सच्चा प्रतिनिधि पार्लियामेन्ट और विधानसभा में हमारी गरीबी, दरिद्रता, मानसिक दरिद्रता, शिक्षा की दरिद्रता और सभी किस्म की समस्याओं के विरोध में लड़ता। यदि वह लड़ता तो हमारी सभी समस्याओं का समाधान होता। अगर हमारी दरिद्रता है, हमारी भुखमरी है, और भुखमरी से हम मर रहे है, असहाय हो गये है हम लाचार हो गये है। हम निराश हो गये है, हम कुछ करने के लायक नहीं है हम प्रतिकार विहीन है तो ये सारा का सारा प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र का परिणाम है। 
        मैं तो कहता हूँ कि जो एससी, एसटी और ओबीसी का आदमी उच्च न्यायलय में वकील है, उनको यह समझ में नहीं आता है, वकीलों का हमने संगठन बनाया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील उधर आये थे। मैं उन लोगों को कहा कि आप लोगों को क्या ये पता है? आप लोगों को हमें बताना चाहिए, मैं तो वकील भी नहीं हूँ। चलो बताने की छोड़ो, उन्हें पता भी है कि नहीं देश की गवर्नेन्स का जो तरीका है, वह कैसे बनाया जाता है? हमारे लोगों को पता हीं नहीं है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील जो संवैधानिक मामले देखते है, उनको ये पता होना चाहिए था, मगर उनको भी पता नहीं है। बाकी लोगों का क्या पता होगा? इस देश में जो अशिक्षा, बेरोजगारी और भुखमरी ये सारी समस्यायें हैं। इन समस्याओं का जड़ सच्चा प्रतिनिधित्व का नहीं होना है। संसद में कोई बोलता ही नहीं है। 
        बाबा साहब अम्बेडकर का तजुर्बा था। उन्होंने कहा कि उनके सामने लोग जाते थे और संसद में नहीं बोलते थे। इसलिए उन्होंने अंग्रेजी में एक जगह कहा कि वे केवल जम्हाई लेने के लिए ही संसद में मुँह खोलते है, अन्यथा खोलते ही नहीं है। ये बाबा साहब का तजुर्बा है। मैं अपना तजुर्बा बताता हूँ कि अगर जम्हाई लेना प्राकष्तिक कार्य नहीं होता तो इसके लिए भी नहीं खोलते। मजबूरी में खोलना पड़ता है, नहीं तो वे इसके लिए भी वे मुँह नहीं खोलते। उन्हें मुँह इस प्रकार प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र ने ब्राह्मणतंत्र निर्माण किया गया। इस ब्राह्मणतंत्र को निर्माण करने का श्रेय गांधी जी को जाता है। यह सारी सत्यानाशी के लिए गांधीजी जिम्मेवार है। जिस गांधीजी को हमारे देश के बहुत सारे लोग सिर पर ढो रहे है, वहीं गांधी आपके दुर्दशा और सारी समस्याओं का कारण है। इस देश में यदि लोकतंत्र अर्थहीन हो गया है तो उसके लिए गांधीजी जिम्मेवार हैं, पूना पैक्ट जिम्मेवार है, संयुक्त निर्वाचन प्रणाली जिम्मेवार है। यदि इस देश में एससी की कोई स्वतंत्रत आन्दोलन नहीं चल रहा है और उस स्वतंत्र आन्दोलन को दबा दिया गया है, या खत्म कर दिया गया है तो उसके लिए संयुक्त निर्वाचन प्रणाली जिम्मेदार है। इसने दलाल और भड़वों को पैदा किया है। जिनको हमारे अनपढ़ लोगों ने अपना सच्चा नेता माना लिया है। जो लड़ाई लड़ने वाले लोग थे, उनका समर्थन करने के बजाए अनपढ़ लोगों ने दलालों का समर्थन किया। परिणामत: एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी का स्वतंत्रत आन्दोलन समाप्त हो गया। अशिक्षित लोग दलालों को अपना नेता मानने लगे। एम.एल.ए और एम.पी जो दलाल हैं, उन्हें अपना नेता मानकर, लड़ने वालों लोगों का समर्थन करना बन्द कर दिया। यही आज भी हो रहा है। मैं उनका हल जानता हूँ। इस समस्या का समाधान हमने ढूढ़ निकाला है। आने वाले समय में हम इसे लागू करेंगे। मगर ये आज की परिस्थिति है। 
       वर्तमान व्यवस्था में हमारे समस्या का समाधान नहीं है। इसलिए हम लोगों को इसे समाप्त करना होगा। क्योंकि इसने हमारे स्वतंत्र आन्दोलन को समाप्त कर दिया। दूसरा इसने हमारे अन्दर नेतष्त्वहीनता पैदा की। क्योंकि दलालों को हमने नेता माना। दलाल नेता नहीं बन सकता, लेकिन नेता हमनें मान लिया। इसलिए समाज में नेतष्त्वहीनता निर्माण हो गई। जो समाज नेतष्त्वहीन हो जाता है, तो वह भीड़ में रूपान्तरित हो जाता है, फिर भीड़ को चलाने के लिए यानि भेड़-बकरियों को चराने के लिए किसी योग्यता या पढ़ा-लिखा होने की जरूरत नहीं है। जैसे भीड़ को आप जिधर ले जाना चाहते हो आप उधर ले जा सकते हो। ये हो रहा है। इस देश की जनता को ही नहीं, इस देश को भी दरिद्र बनाया गया। अगर मान लोग ब्राह्मण हमारे लोगों को भुखमरी के कगार पर नहीं पहुँचाएंगा तो हमारे लोग वोट बेचने के लिए कैसे तैयार होंगे? अगर हमारे लोग वोट बेचने को तैयार नहीं होंगे तो अल्पसंख्यक ब्राह्मणों को बहुसंख्यक बहुजनों के उपर राज करने का अवसर कैसे प्राप्त होगा? इसलिए ब्राह्मण हमारे लोगों को दरिद्र बनाते है और भुखमरी के कगार पर पहुँचा देते है। फिर भी कोई एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी एमपी और एमएलए उसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा सकता है। क्योंकि वो वास्तविक प्रतिनिधि नहीं है। इसने एक और भंयकर परिणाम किया कि गुलाम भारत में जोतिरवा फुले के आन्दोलन में ब्राह्मणवाद को विरोध करने की भावना थी। जोतिराव फुले, शाहूजी महाराज, पेरियार और बाबा साहब के समय लोगों के अन्दर विद्रोह की भावना थी अर्थात् गुलाम भारत में विद्रोह की भावना थी मगर आजाद भारत में विद्रोह की भावना समाप्त हो गई। ये भयंकर परिणाम है। मैं जानता हूँ, क्योंकि देश में लोगों के अन्दर विद्रोह की भावना पैदा किये बगैर कोई आन्दोलन निर्माण होने वाला नहीं है। विद्रोह की भावना से समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया गया है। देश में एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों पर अत्याचार होता है, तो उनके एम.एल.ए और एम.पी. उनके उपर अत्याचार करने वालों के समर्थन में पुलिस चौकी थानों में फोन करते है। इसलिए उनके विरोध में कुछ भी कार्यवाही नहीं होता है। इसलिए अत्याचार बढ़ रहा है। ये सारे के सारे मामले संयुक्त निर्वाचन प्रणाली के माध्यम से प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र की वजह से निर्माण हुए। भारत में वास्तविक लोकतंत्र को समाप्त कर दिया गया है। इसका कारण संयुक्त निर्वाचन प्रणली है हमारे कितने पढ़े-लिखे लोगों को ये पता है? इसलिए जानकारी के लिए यह विषय रखा गया था। क्योंकि जानने के बाद मन में प्रतिक्रिया और विद्रोह पैदा हो सकते है। इसलिए हमारे तरफ से कोशिश हो रही हैं कि पहले जाने, क्योंकि जाने बगैर ही कई किस्म का हम एक्शन प्लान बनाते है। इससे कोई सफलता मिलने वाली नहीं है। इसलिए हम लोगों को ज्यादा समय लग रहा है।     
       अभी भी हमारे लोग दलाल-भड़वों का समर्थन करने का काम करते है। एससी, एसटी और ओबीसी के कर्मचारी और पढ़े-लिखे लोग तथा यूनियन चलाने वाले लोग ऐसा करते रहते है। ये एम.एल.ए और एम.पी. चमचा है और ये कर्मचारी एम. एल.ए और एम.पी. का चमचा है अर्थात कर्मचारी चमचों का चमचा है। क्योंकि हमारा एससी/एसटी/ओबीसी का कर्मचारी चमचे एम.एल.ए, एम.पी. के पीछे-पीछे, पीछे-पीछे घूमता रहता है। इस प्रकार जो चमचा हमारी समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। जब तक आप उसके पीछे-पीछे घूमते रहेंगे तब तक आपकी किसी भी समस्या का समाधान होने वाला नहीं होगा। समाधान कहीं और है। चमचों के पीछे घूमने में समाधान नहीं है। ये चमचा बनाने का काम भी भयंकर परिणाम में आता है। ये बहुत सारी बातें है। इसलिए हमारे पुरखों द्वारा चलाए गये स्वाभिमानी, स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर स्वतंत्र आन्दोलन को निर्माण करने से पहले सत्यानाश करने के कारण जानना होगा। क्योंकि इसे जाने बगैर आन्दोलन पुर्ननिर्माण करना संभव नहीं है।  -वामन मेश्राम, राष्ट्रिय अध्यक्ष, बामसेफ

रविवार, 2 अगस्त 2015

काला धन बाहर भेजने वाले टॉप 5 देशों में भारत भी

काला धन बाहर भेजने वाले टॉप 5 देशों में भारत भी

  • 1 घंटा पहले
प्रापर्टी ख़रीद में काला धन 
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा है कि ब्रितानी सरकार लंदन समेत देश में कहीं भी महंगी प्रॉपर्टी ख़रीदने से आने वाले ग़ैरक़ानूनी धन के प्रवाह को बंद करना चाहती है.
लेकिन कालाधन एक वैश्विक समस्या है और विकासशील देश इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं.
कैमरन का कहना है कि लंदन को किसी भी किस्म के ‘कालेधन’ की ज़रूरत नहीं है.
ब्रिटेन में अवैध धन से प्रापर्टी ख़रीदने वाले विदेशियों पर कठोर नीति की वकालत करते हुए एक भाषण में उन्होंने कहा था, “ब्रिटेन आपके अवैध धन को छुपाने की जगह नहीं है.”
नेशनल क्राइम एजेंसी (एनसीए) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़, ब्रिटेन में महंगी प्रापर्टी ख़रीदने के लिए मनीलॉंड्रिंग (हवाला) के जरिए अरबों पाउंड धन लाया जा रहा है.

लंदन बना केंद्र

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इस तरह की ख़रीदारी खासकर ब्रिटेन की राजधानी लंदन में हो रही है. कई लोग इसे वैश्विक मनी लॉंड्रिंग (हवाला) का प्रमुख केंद्र मानते हैं.
अधिकांश प्रॉपर्टी फ़र्जी कंपनियों के मार्फत ख़रीदी जाती हैं, जो आम तौर पर कर चोरी का अड्डा बने देशों की होती हैं.
ये फ़र्जी कंपनियां अपने देश में टैक्स से बचने और ग़लत तरह से कमाए गए धन को बाहर भेजने के लिए अपने गोपनीय मालिकों की मदद लेती हैं.
इसका ब्रिटेन पर सीधा असर पड़ा है क्योंकि इससे घरों की क़ीमतों में नाटकीय बढ़ोत्तरी हुई है, जिससे घरेलू ख़रीदारों के लिए घर ख़ीरदना बूते से बाहर की बात हो गया है.

विकासशील देश

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लेकिन यह समस्या असल में वैश्विक स्तर की है. इन संपत्तियों की ख़रीद फ़रोख़्त से जो धन अर्थव्यवस्था में आ रहा है वो विकासशील देशों से आ रहा है.
विशेषज्ञों के मुताबिक़, यह उभरती और कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं को होने वाले बहुत बड़े नुकसान को दिखाता है.
कालेधन पर नज़र रखने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की तमाम रिपोर्टों का मानना है कि हर साल क़रीब एक ख़रब डॉलर विकासशील देशों से बाहर जाता है.

मदद, निवेश से ज़्यादा काला धन

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यह तथ्य है कि साल 2012 में वैश्विक स्तर पर कालेधन का प्रवाह 991.2 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर तक पहुंच गया था.
वॉशिंगटन की एक रिसर्च संस्था ग्लोबल फ़ाइनेंशियल इंटीग्रिटी ने विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और सरकारों के जारी आंकड़ों का विश्लेषण किया.
संस्था ने 2003 से लेकर साल 2012 के बीच देश से बाहर जाने वाले धन के प्रवाह का अध्ययन किया और बताया कि ऐसे धन के प्रवाह में 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हो रही है.
संस्था के मुताबिक़, धन का बाहर जाना, विकासशील देशों को विकास के लिए मिलने वाली विदेशी सहायता और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी ज़्यादा है.

कहां से आता है कालाधन?

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वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल होने वाला कालाधन मुख्य रूप से विकासशील देशों से आता है, लेकिन इसका वितरण बहुत असान होता है.
ग़ैरक़ानूनी धन के मामले में एशिया सबसे अव्वल है. पिछले दस सालों में आने वाले कुल गैरक़ानूनी धन का 40 प्रतिशत इसी क्षेत्र से आया है.
कथित तौर पर विकाशसील यूरोपीय देश कहे जाने वाले रूस, तुर्की और पूर्वी यूरोप के अधिकांश देशों से आने वाला ग़ैरक़ानूनी धन की वैश्विक कालाधन प्रवाह में हिस्सेदारी 21 प्रतिशत है.
लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि जिस देश से सबसे अधिक धन बाहर जाता है, उसका असर भी उस पर सबसे ज़्यादा हो.

ज़्यादा नुकसान किसे?

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विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर इस ‘गायब धन’ के वास्तविक असर को आंकने के लिए विशेषज्ञ इसकी तुलना देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से करने का सुझाव देते हैं.
इस मायने में कालेधन का जितना प्रवाह है वो विकासशील देशों के कुल जीडीपी का 3.9 प्रतिशत है.
सब सहारन अफ़्रीका और पूर्वी यूरोप के देश अपनी जीडीपी की तुलना में सबसे अधिक नुकसान उठाते हैं, इसलिए इन पर सबसे अधिक असर होता है.
ग़ैरक़ानूनी ड्रग व्यापार सबसे मुनाफ़े वाला धंधा है, जो अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध से होने वाली कमाई का आधा होता है.

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