नेपाल
में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर
रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में
सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में
हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा
गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें
नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे
नाराज माओवादियों के फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. फिर नेपाली
माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर
माओवादी कमांडरों ने नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का
बीड़ा उठाया. -
जालसाजी और फर्जीवाड़ा करके नौकरी पाने का देश में सिलसिला चल पड़ा है. व्यापमं घोटाले की कड़ियां केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत देश के कई अन्य राज्यों से भी जुड़ी हुई हैं. नौकरियों में उत्तर प्रदेश का घोटाला दर घोटाला सुर्खियों में है. यूपी में पुलिस की भर्ती में घोटाला परम्परागत कर्मकांड की तरह हो गया है. घोटालों से अर्धसैनिक बल और भारतीय सेना की नियुक्तियां भी अछूती नहीं हैं. चौथी दुनिया के 06 जुलाई से 12 जुलाई के अंक में आपने पढ़ा कि पिछड़ी जाति के लोग किस तरह अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर अर्धसैनिक बलों में भर्ती हो रहे हैं. सीआरपीएफ और बीएसएफ में भर्ती हुए तकरीबन चार दर्जन लोगों की आधिकारिक तौर पर शिनाख्त हुई, जो दलित बन कर भर्ती हो गए थे. जिनकी पहचान हुई, उनमें से अधिकांश लोग यादव जाति के पाए गए. इसी तरह फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए नियमित सेना में भी भर्तियां हो रही हैं. जो लोग पकड़े जा रहे हैं, उनकी संख्या नगण्य है. इसका सबसे संवेदनशील पहलू है भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में गोरखाओं के नाम पर नेपाल से भागे हुए माओवादियों की भर्ती. नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में भर्ती कराने में लखनऊ में रह रहे नेपाली दलाल, पूर्व सैनिक और नेपाल के कुछ माओवादी नेता सक्रिय हैं. भारतीय सेना की मध्य कमान का मुख्यालय लखनऊ है. गोरखाओं की भर्ती का सबसे बड़ा कमांड भी यही है. लखनऊ के कुछ स्कूल नेपाल से आने वाले युवकों को अपने यहां से फर्जी सर्टिफिकेट देते हैं और यहीं से उन्हें निवास का प्रमाण पत्र भी मिल जाता है और उन्हें बड़े आराम से सेना की वर्दी मिल जाती है. भर्ती महकमे के अधिकारी यह भी तस्दीक नहीं करते कि अभ्यर्थी ने अपना पता क्या लिखाया है. कुछ भर्तियां तो ऐसी भी सामने आईं, जिसमें अभ्यर्थियों ने कर्नल स्तर के अधिकारी के घर का ही पता दे डाला और उसकी छानबीन भी नहीं हुई. एक ही कर्नल के घर का पता कई अभ्यर्थियों ने लिखवाया और उसे सेना में भर्ती भी कर लिया गया. भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए कई नेपाली माओवादी सत्ता संघर्ष में हथियारबंद कैडर के रूप में सक्रिय थे. उन्होंने बाकायदा नेपाली सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और बाद में वे नेपाली सेना की बैरकों से भाग निकले थे. फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए सेना में भर्ती होने के कुछ मामले लगातार पकड़े जा रहे हैं, लेकिन पैसे का इतना बोलबाला है कि सैन्य तंत्र भी नाकाबिल साबित होता जा रहा है.
भारतीय सेना में नेपाल के माओवादियों की भर्ती के बारे में जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि कई सिपाहियों के नाम और उनके असली पते तक की पुष्टि हो गई है. गोरखा रेजीमेंट की विभिन्न बटालियनों में माओवादियों की बाकायदा पोस्टिंग भी हो चुकी है. कार्रवाई के नाम पर सेना भर्ती की प्रक्रिया में थोड़ा रद्दोबदल किया गया, लेकिन जो भर्ती हो गए, उन्हें पकड़ने में सेना ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. माओवादियों की लखनऊ, वाराणसी व कुछ अन्य भर्ती केंद्रों पर बहाली हुई और उन्हें ट्रेनिंग के बाद बाकायदा सेना में शामिल कर लिया गया. यह पाया गया कि लखनऊ और आसपास के स्कूलों ने नेपाली माओवादियों को आठवीं पास के फर्जी सर्टिफिकेट प्रदान किए थे. नेपाली माओवादियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारतीय नागरिक साबित कराया गया या उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से फर्जी डोमिसाइल सर्टिफिकेट देकर उन्हें सेना में भर्ती कराया गया. फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो रही भर्ती की भनक मिलने पर गोरखों की भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास से दसवीं पास कर दी गई, लेकिन इस फेरबदल के पहले जिन गोरखों की नियुक्तियां फर्जी प्रमाण पत्रों पर हो गईं, वे नियमित सेना में शामिल हो गए और उनका कुछ नहीं बिगड़ा.
नेपाल में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे नाराज माओवादियों के फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. फिर नेपाली माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर माओवादी कमांडरों ने नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया. रोम बहादुर खत्री ने मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ के साथ-साथ वाराणसी, बरेली, बाराबंकी, फैजाबाद, गोरखपुर में अपना जाल मजबूत किया. उसने सेना के अफसरों समेत फौजी भर्ती के धंधे में लगे दलालों और स्थानीय स्कूलों को अपने प्रभावक्षेत्र में लिया, जिनसे फर्जी प्रमाणपत्र लिए जा सकें. लखनऊ में खत्री को एक ऐसा आदमी भी मिल गया, जो भर्ती में दलाली करता था और हाईकोर्ट परिसर में टाइपिंग का काम भी करता था. अब वह वकील बन चुका है.
इस गिरोह ने सात-आठ साल तक नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में खूब भर्तियां कराईं. नेपाल से आने वाले माओवादियों को आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देने में लखनऊ के कई स्कूल आगे रहे और राष्ट्रद्रोह के एवज में पैसे कमाते रहे. इनमें बालागंज के कैम्पबेल रोड स्थित स्कूल, आनंद नगर स्थित एक स्कूल, उदयगंज स्थित एक स्कूल, माल में रहिमाबाद रोड स्थित एक स्कूल, इटौंजा रोड स्थित एक स्कूल अव्वल हैं. ‘चौथी दुनिया’ के पास इन स्कूलों के नाम भी हैं, लेकिन सेना ने छानबीन की कार्रवाई में व्यवधान न पड़े, इसके लिए उन स्कूलों का नाम प्रकाशित नहीं करने का आग्रह किया. हालांकि छानबीन में कोई उल्लेनीय प्रगति नहीं हुई है. लखनऊ और लखनऊ से बाहर के ऐसे कई स्कूल हैं, जहां नेपाली युवकों को अपने स्कूल का छात्र बताया गया और आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देकर उनकी वैधता पर मुहर लगा कर राष्ट्र के साथ द्रोह किया गया. लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी जैसे कई जिलों की प्रशासनिक इकाइयां भी इस देश विरोधी हरकत में शामिल हैं, जिन्होंने नेपालियों को यहां का स्थाई निवास प्रमाण पत्र प्रदान किया और इस आधार पर माओवादियों ने सेना में नौकरी पा ली.
डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने वाली प्रशासनिक इकाइयों ने पता का सत्यापन (ऐड्रेस वेरिफिकेशन) कराने की भी जरूरत नहीं समझी. बलराम गुरुंग नाम के निपट अनपढ़ नेपाली ने स्थानीय स्कूल से आठवीं पास का फर्जी प्रमाण पत्र हासिल किया और अपना पता 28/बी, आवास विकास कॉलोनी, माल एवेन्यु, लखनऊ लिखा दिया. बलराम गुरुंग मई 2010 में सेना में भर्ती होकर गोरखा रेजीमेंट में तैनाती पर भी चला गया. उसके आधिकारिक दस्तावेजों में बाकायदा माल एवेन्यु का पता दर्ज है. जब इस ऐड्रेस की छानबीन की गई तो पता चला कि वह घर सेना के ही एक कर्नल साहब का है. कर्नल साहब अब सेना से रिटायर हो चुके हैं. उनका नाम कर्नल अजित सिंह है. जब कर्नल साहब से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने कहा, ‘मुझे क्या पता कि किसने मेरे घर का ऐड्रेस लिखा दिया! किसी ने मुझसे पूछताछ करने की जरूरत भी नहीं समझी. मैं किसी बलराम गुरुंग को जानता भी नहीं.’
सनसनीखेज तथ्य यह है कि माओवादी गुरिल्ला कमांडर व यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री ने भारतीय सेना में जिन माओवादियों को भर्ती कराया, वे उस तक सेना की सूचनाएं पहुंचाते हैं. रोम बहादुर खत्री ने अपने दो बेटों संतोष बहादुर खत्री और भोजराज बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना में भर्ती करा दिया है. संतोष बहादुर खत्री खखख-9 गोरखा रेजीमेंट में भर्ती है और भोजराज बहादुर खत्री 17वीं जैक राइफल्स में भर्ती है. रोम बहादुर खत्री का एक बेटा भोजराज बहादुर खत्री पहले नेपाली सेना में था. तीन साल तक नेपाली सेना में रहते हुए वह माओवादियों के लिए मुखबिरी करता था. भोजराज की मुखबिरी पर माओवादियों ने नेपाल सेना की कई युनिटों पर हमले किए थे. ऐसे ही एक हमले में माओवादियों ने नेपाली सैनिकों को मारा, हथियार लूटे, लेकिन भोजराज को वहां से भगा दिया गया. नेपाली सेना से भागा हुआ वही माओवादी बाकायदा भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नौकरी कर रहा है. माओवादी कमांडर खत्री ने अपने भतीजे सुरेश बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना की नौकरी में लगवाया. वह भी एक कर्नल साहब के जरिए. वे कर्नल साहब फिलहाल पुणे में तैनात हैं.
माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री नेपाल के बरदिया जिले के तारातल गांव का रहने वाला है. वहां से उसके बारे में खुफिया जानकारियां मंगाई जा सकती हैं, लेकिन सेना की खुफिया इकाई भी भारत की मुख्यधारा में बह रही है. रोम बहादुर खत्री के दोनों बेटों, भतीजों और तमाम माओवादी काडरों की भारतीय सेना में हुई भर्ती का भी सेना अगर चाहे तो पता लगा कर कार्रवाई कर सकती है, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है. माओवादी कमांडर के गांव के ही दो और युवकों के बारे में जानेंगे तो आपको आश्चर्य होगा. दीपक छेत्री फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेना में भर्ती हो चुका है. वह खखख-9 गोरखा बटालियन में तैनात है. भर्ती की प्रक्रिया कितनी अंधी है कि दीपक छेत्री के दाहिने हाथ की वह उंगली कटी हुई है, जिससे राइफल का ट्रिगर दबाया जाता है. ऐसे सिपाही से सेना क्या काम लेती होगी, यह तो सेना ही बताए. दीपक का भाई रमेश छेत्री भी खत-9 गोरखा बटालियन में भर्ती है. यहां फिर से फर्जी पोस्टल ऐड्रेस का रोचक प्रसंग आता है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं. रमेश छेत्री के सैन्य दस्तावेजों में 8/5 विक्रमादित्य मार्ग का पता दर्ज है. निश्चित तौर पर इसी ऐड्रेस के आधार पर उसने डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया होगा. उस ऐड्रेस की भी ‘चौथी दुनिया’ ने छानबीन की. वह भी फर्जी पाया गया. यह पता भी कर्नल अजित सिंह के ही दूसरे घर का है. कर्नल ने कहा, ‘मैं सेना से रिटायर हो चुका हूं. मैं विकलांग हूं, चल-फिर भी नहीं सकता. गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोगों को मेरा घर ही सटीक लगता होगा, जहां से उन्हें किसी सक्रिय प्रतिरोध की कोई संभावना नहीं दिखती होगी, लेकिन सेना के अधिकारियों को तो पते की छानबीन करनी चाहिए थी कि सिपाही के लिए भर्ती होने वाला नेपाली गोरखा सेना के किसी आला अफसर के घर का पता क्यों लिखवा रहा है, वह भी माल एवेन्यु जैसे पॉश इलाके का?’ कर्नल ने कहा कि पूरे सिस्टम में ही भ्रष्टाचार की भंग पड़ी हुई हो तो और क्या होगा! दीपक छेत्री और रमेश छेत्री माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री के गांव बरदिया तारातल के ही रहने वाले हैं. लिहाजा, उनके माओवादी कनेक्शन स्पष्ट हैं.
सेना में फर्जी लोगों की भर्ती का गोरखधंधा बार-बार सामने आने के बावजूद इस पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है. सेना के सूत्र कहते हैं कि इस धंधे में सेना के अधिकारी ही लिप्त हैं, तो इस पर रोक कैसे लगे. खास तौर पर सेना के मध्य कमान में यह धंधा अधिक तेजी से पसरा है. अभी कुछ ही अर्सा पहले बरेली में सेना में भर्ती के लिए चयनित हो चुके 24 युवक पकड़े गए थे. खुफिया एजेंसी की सूचना अगर ऐन मौके पर नहीं मिलती तो वे भी भर्ती होकर सेना में शामिल हो चुके होते. फर्जी प्रमाण पत्रों पर बाकायदा चुने जा चुके सुखराम सिंह, जुगेंद्र सिंह, रामनिवास, महेश, पवन कुमार, सवेंद्रा सिंह, राजू कुमार, संदीप सिंह, पुरुषोत्तम सिंह, संजीव कुमार, मुकेश, कासिम, हरीश कुमार अंकित, दीपक कुमार, योगेंद्र सिंह, अय्यूब खान, भूपेंद्र, अरुण शर्मा, सचिन कुमार, सत्यपाल सिंह, ओंकार सिंह, रामू यादव और संजीव कुमार के शैक्षणिक और आवासीय प्रमाण पत्र, सभी नकली पाए गए थे.
सेना में घुसपैठ कराने वाले धंधेबाजों का बाकायदा एक सिंडिकेट चल रहा है और उन लोगों ने अपने-अपने जोन बांट रखे हैं. बरेली जोन में आदेश गुर्जर का गैंग यह धंधा चला रहा है. उसके धंधे में कई रिटायर्ड फौजी अफसर शामिल हैं. इसी गैंग के जरिए बरेली, पीलीभीत, बदायूं, संभल, शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी से फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र, चरित्र और आवासीय प्रमाण पत्र तैयार कराया जाता है. फर्जी भर्ती प्रकरण में पकड़े गए युवकों में से चार ने सेना को सबूत भी दिए कि कैसे उनसे रुपये लेकर आदेश गुर्जर गिरोह के सदस्य रिटायर मेजर आदित्य चौहान ने उन्हें बरेली में भर्ती कराया था। इन युवकों में विष्णु शर्मा राजस्थान के भरतपुर जिले के इकनहरा गांव का रहने वाला है, लेकिन उसे पीलीभीत बीसलपुर के देवरिया गांव का निवासी दिखाया गया. राहुल कुमार और हरेंद्र सिंह अलीगढ़ में टप्पल थाने के निगुना सुगना गांव के रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें पीलीभीत के बीसलपुर स्थित ईंचगांव का निवासी दिखाया गया. जीतू भी राहुल कुमार के ही गांव का रहने वाला है, जिसे राहुल की जगह दौड़ाया गया था. राहुल कानपुर की सेना भर्ती रैली में फेल हो गया था. इसीलिए उसकी जगह जीतू को दौड़ाया गया था. इस प्रकरण के बाद सेना बेफिक्र होकर बैठ गई और पुलिस ने भी हाथ ढीले कर दिए. फर्जी दस्तावेज पर भर्तियां धड़ल्ले से चलती रहीं. ग्यारह लड़के फिर पकड़े गए और सेना भी महज औपचारिकता निभाती रही. सेना के सूत्र बताते हैं कि फर्जी दस्तावेजों पर भर्ती होने के साथ-साथ किसी और के नाम पर किसी और के दौड़ने या लिखित परीक्षा में शामिल होने का धंधा निर्बाध गति से जारी है. बरेली, पीलीभीत, रामपुर, बदायूं, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी के युवक गाजीपुर, बलिया, देवरिया, हरदोई, अलीगढ़, मैनपुरी, एटा जैसे दूरस्थ जिलों से हाईस्कूल और इंटर पास का सर्टिफिकेट लाकर सेना में भर्ती हो रहे हैं. अभी पिछले ही महीने ऐसे करीब सौ सर्टिफिकेट्स फिर संदेह के दायरे में आए, जिनकी छानबीन की जा रही है. मध्य कमान के फतेहगढ़ सैन्य ठिकाने पर भी भर्ती हो चुके 205 युवकों के फर्जी दस्तावेजों का पता चला तो उनकी ट्रेनिंग रोकी गई. कहा गया कि फतेहगढ़ भर्ती प्रकरण में फर्रुखाबाद के कई लोकवाणी केंद्रों और दलालों की पड़ताल हो रही है. पड़ताल की बात कही जा रही है, पर हो कुछ नहीं रहा है. फतेहगढ़ स्थित राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के करियप्पा कॉम्प्लेक्स में बरेली सेना भर्ती बोर्ड की ओर से भर्ती की गई थी. इसमें फर्रुखाबाद के अलावा श्रावस्ती, बहराइच, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, संभल हरदोई, बलरामपुर और सीतापुर के युवक शामिल हुए थे. शारीरिक परीक्षण में चयनित अभ्यर्थियों में से कुल 640 युवकों ने लिखित परीक्षा पास की थी. उन्हें ट्रेनिंग के लिए विभिन्न सैन्य प्रशिक्षण केंद्रों में भेज भी दिया गया. बाद में खुफिया जानकारी मिलने पर छानबीन की गई तो दो सौ जवानों के प्रमाणपत्र संदिग्ध पाए गए. इनमें अनुराग यादव (कन्नौज), अनुज कुमार (बुलंदशहर), मानवीर सिंह (बुलंदशहर), अनिरुद्ध प्रताप सिंह (मैनपुरी), जयंती (मैनपुरी), गौरव सिंह राठौर (मैनपुरी), आदर्श कुमार (मैनपुरी), अखिलेश कुमार (मैनपुरी), धर्मेंद्र (आगरा), नवीन सिंह (आगरा), धर्मेंद्र सिंह (आगरा), सूरज सिंह (कानपुर देहात), नरेश सिंह (इलाहाबाद), राहुल (मथुरा) और शिवम(दिल्ली) समेत अन्य के नाम शामिल हैं.
फर्जी प्रमाण पत्र पर भर्ती हुए लोग बड़े आराम से पूरी नौकरी करके रिटायर भी हो जा रहे हैं और उसके बाद सरकार पर पेंशन का बोझ भी बढ़ा रहे हैं. जानकारी मिलने के बाद भी ऐसे फर्जी पूर्व सैनिकों की पेंशन और सुविधाएं रोकने की कोई कार्रवाई नहीं होती. सेना मुख्यालय को फैजाबाद के अजित कुमार सिंह के बारे में जानकारी भी दी गई कि फर्जी प्रमाण पत्र पर सेना में भर्ती हुआ वह शख्स रिटायर होकर पेंशन भी लेने लगा, लेकिन सेना ने कोई कार्रवाई नहीं की. इसी तरह मध्य कमान क्षेत्र के अंतर्गत तीसरी बिहार बटालियन के हवलदार देवेंद्र कुमार (नंबर- 4262912 के) पर भी फर्जी दस्तावेज के आधार पर सेना में नौकरी पाने और रियाटरमेंट के बाद पेंशन लेने की शिकायत है, लेकिन सेना मुख्यालय पर इस शिकायत का भी कोई असर नहीं पड़ा.
दिलदारी पड़ सकती है भारी
नेपाल के रास्ते पाकिस्तानी आतंकवाद भारत पहुंच रहा है और नेपाल को भी अपने चंगुल में लेता जा रहा है. भारत और नेपाल की सेनाएं प्रशिक्षण में साझेदारी तो कर रही हैं, लेकिन भारतीय सेना में भर्ती के जरिए माओवादियों की जो भारी घुसपैठ हुई है, उससे निपटने की सेना के पास कोई रणनीति नहीं है.
भारत में तकरीबन 50 हजार गोरखा सैनिक हैं और गोरखा रेजीमेंट की 39 बटालियनें भारत में सक्रिय हैं. नेपाल के माओवादियों की भारतीय सेना में हुई भर्तियां भविष्य में समस्याएं खड़ी कर सकती हैं. नेपाल से लगने वाली सीमा भी आफत का कारण बनने वाली है. बिहार और नेपाल की सीमा पर नक्सलियों द्वारा आपत्तिजनक पोस्टर बांटे जा रहे हैं. इन पोस्टरों से भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का काम हो रहा है. ऐसे कुछ पोस्टर हम आपको दिखा रहे हैं. नेपाली माओवादी भारत-नेपाल सीमा की शिनाख्त कराने वाले पुराने सीमा स्तम्भ हटा रहे हैं, जिससे सीमा की पहचान समाप्त हो जाए. माओवादियों ने ऐसे करीब साढ़े पांच सौ स्तम्भ गायब कर दिए हैं. भारत नेपाल की करीब 18 सौ किलोमीटर सीमा पर साढ़े तीन हजार से अधिक स्तम्भ लगाए गए थे, लेकिन इनमें से अधिकांश का कोई अता-पता नहीं है. उत्तराखंड के नैनीताल, चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पीलीभीत के जंगलों में माओवादी अपनी जड़ें जमा रहे हैं. भारत नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी इन्हें काबू करने में नाकाम है. उत्तराखंड से लगी नेपाल की सीमा पर ‘नो मैन्स लैंड’ पर माओवादियों ने अपने घर बना लिए हैं. वहां रह रहे नेपाली नागरिक यंग कम्युनिस्ट लीग के झंडे फहराते हैं. कुछ अर्सा पहले उत्तराखंड के जगलों में माओवादियों को हथियारों की ट्रेनिंग देने वाला कमांडर पकड़ा गया था. उसका नाम प्रशांत राही है. उत्तराखंड के जंगलों में माओवादियों को प्रशिक्षण दे रहे ऐसे भारतीय कमांडरों की कोई कमी नहीं है. भारतीय सेना में नेपाली गोरखा समुदाय के जो 50 हजार से अधिक लोग भर्ती हैं, वे हर साल सात-आठ सौ करोड़ रुपए अपने परिवारों के लिए नेपाल भेजते हैं. एक लाख से अधिक गोरखा भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद नेपाल में रहते हैं. इन्हें भी 500 करोड़ से अधिक की राशि सालाना पेंशन के रूप में मिलती है. यह तादाद अगर माओवादियों के सक्रिय हितचिंतकों में तब्दील हो गई तो क्या होगा? यह अहम सवाल सामने है.
सेना में नशीली दवाएं पहुंचा रहे हैं माओवादी
नक्सलवाद से प्रभावित बिहार-झारखंड में सैन्य इकाइयों के अंदर माओवादियों की पैठ की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है. अभी कुछ ही दिनों पहले 12 जून 2015 को बिहार के गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र में सेना के जवान कृष्णा राम, सेना से रिटायर्ड जवान गोपी लाल और माओवादी कमांडर इंदल भोक्ता के साथी लेखा सिंह भोक्ता को सात किलो अफीम के साथ पकड़ा गया था (चौथी दुनिया में प्रकाशित). इस वाकये से साबित हुआ कि माओवादियों की सैन्य इकाइयों तक सीधी पहुंच है. सूत्रों का कहना है कि अफीम पकड़े जाने का मामला तो एक है, जबकि इस इलाके में सेना को माओवादियों से नशीली दवाओं की खेपें लगातार मिलती रही हैं, जिसमें केवल अफीम ही नहीं, बल्कि हेरोइन और अन्य नशीले पदार्थ शामिल हैं. सेना के जवानों को नशा देकर माओवादी उनसे क्या-क्या जानकारियां हासिल कर रहे हैं, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. बिहार-झारखंड भी सेना की मध्य कमान के अंतर्गत आता है.
सेना में भर्ती हो गए ये माओवादी
संतोष थापा- 14 गोरखा रेजिमेंट
सरजू रिमाल- गोरखा रेजिमेंट
रमाकांत शर्मा- गोरखा रेजिमेंट
रमेश राणा- गोरखा रेजिमेंट नंबर-एलयूजीडी-1088
सूर्य बहादुर थापा- गोरखा रेजिमेंट
वीरेंद्र थापा- गोरखा रेजिमेंट
इंद्र बहादुर तमांग- 11 गोरखा रेजिमेंट
बलराम गुरुंग- गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री- खत-9 गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री (2)- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
सुरेश खत्री- नॉन कॉम्बैटेंट दस्ते में भर्ती
संतोष बहादुर खत्री- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
भोजराज बहादुर खत्री- 17 जैक राइफल्स
फर्जी दलित बन कर भी नौकरी पा रहे हैं नेपाली
फर्जी प्रमाण पत्र लेकर नेपाली लोग केवल सेना में ही भर्ती नहीं हो रहे हैं, बल्कि अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर वे अन्य सरकारी नौकरियों में भी घुस रहे हैं. उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में भी ऐसे दो मामले पकड़े गए. दो भाई अमित सिंह और अरुण कुमार नेपाल के खलंगा (पोस्ट ः ढूलेपानी, गांव ः प्यूठन) से यहां आकर अनुसूचित जाति के कोटे से सिंचाई विभाग में सरकारी नौकरी पा गए. शिकायत होने पर मामले की छानबीन की गई तो अरुण कुमार को बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उसी फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी पाये उसके भाई अमित सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. सिंचाई विभाग में अनुसूचित जाति के फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे अमित सिंह का आवासीय प्रमाण पत्र भी फर्जी है, क्योंकि उसमें सिंचाई विभाग की कॉलोनी का ही पता दर्ज है. सिंचाई विभाग में फर्जी नियुक्ति का यह मामला उठाने वाले व्हिसिल ब्लोअर हरपाल सिंह के उत्पीड़न का जो दौर चला, वह उनके रिटायर होने के बाद भी जारी है.
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जालसाजी और फर्जीवाड़ा करके नौकरी पाने का देश में सिलसिला चल पड़ा है. व्यापमं घोटाले की कड़ियां केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत देश के कई अन्य राज्यों से भी जुड़ी हुई हैं. नौकरियों में उत्तर प्रदेश का घोटाला दर घोटाला सुर्खियों में है. यूपी में पुलिस की भर्ती में घोटाला परम्परागत कर्मकांड की तरह हो गया है. घोटालों से अर्धसैनिक बल और भारतीय सेना की नियुक्तियां भी अछूती नहीं हैं. चौथी दुनिया के 06 जुलाई से 12 जुलाई के अंक में आपने पढ़ा कि पिछड़ी जाति के लोग किस तरह अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर अर्धसैनिक बलों में भर्ती हो रहे हैं. सीआरपीएफ और बीएसएफ में भर्ती हुए तकरीबन चार दर्जन लोगों की आधिकारिक तौर पर शिनाख्त हुई, जो दलित बन कर भर्ती हो गए थे. जिनकी पहचान हुई, उनमें से अधिकांश लोग यादव जाति के पाए गए. इसी तरह फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए नियमित सेना में भी भर्तियां हो रही हैं. जो लोग पकड़े जा रहे हैं, उनकी संख्या नगण्य है. इसका सबसे संवेदनशील पहलू है भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में गोरखाओं के नाम पर नेपाल से भागे हुए माओवादियों की भर्ती. नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में भर्ती कराने में लखनऊ में रह रहे नेपाली दलाल, पूर्व सैनिक और नेपाल के कुछ माओवादी नेता सक्रिय हैं. भारतीय सेना की मध्य कमान का मुख्यालय लखनऊ है. गोरखाओं की भर्ती का सबसे बड़ा कमांड भी यही है. लखनऊ के कुछ स्कूल नेपाल से आने वाले युवकों को अपने यहां से फर्जी सर्टिफिकेट देते हैं और यहीं से उन्हें निवास का प्रमाण पत्र भी मिल जाता है और उन्हें बड़े आराम से सेना की वर्दी मिल जाती है. भर्ती महकमे के अधिकारी यह भी तस्दीक नहीं करते कि अभ्यर्थी ने अपना पता क्या लिखाया है. कुछ भर्तियां तो ऐसी भी सामने आईं, जिसमें अभ्यर्थियों ने कर्नल स्तर के अधिकारी के घर का ही पता दे डाला और उसकी छानबीन भी नहीं हुई. एक ही कर्नल के घर का पता कई अभ्यर्थियों ने लिखवाया और उसे सेना में भर्ती भी कर लिया गया. भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए कई नेपाली माओवादी सत्ता संघर्ष में हथियारबंद कैडर के रूप में सक्रिय थे. उन्होंने बाकायदा नेपाली सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और बाद में वे नेपाली सेना की बैरकों से भाग निकले थे. फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए सेना में भर्ती होने के कुछ मामले लगातार पकड़े जा रहे हैं, लेकिन पैसे का इतना बोलबाला है कि सैन्य तंत्र भी नाकाबिल साबित होता जा रहा है.
भारतीय सेना में नेपाल के माओवादियों की भर्ती के बारे में जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि कई सिपाहियों के नाम और उनके असली पते तक की पुष्टि हो गई है. गोरखा रेजीमेंट की विभिन्न बटालियनों में माओवादियों की बाकायदा पोस्टिंग भी हो चुकी है. कार्रवाई के नाम पर सेना भर्ती की प्रक्रिया में थोड़ा रद्दोबदल किया गया, लेकिन जो भर्ती हो गए, उन्हें पकड़ने में सेना ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. माओवादियों की लखनऊ, वाराणसी व कुछ अन्य भर्ती केंद्रों पर बहाली हुई और उन्हें ट्रेनिंग के बाद बाकायदा सेना में शामिल कर लिया गया. यह पाया गया कि लखनऊ और आसपास के स्कूलों ने नेपाली माओवादियों को आठवीं पास के फर्जी सर्टिफिकेट प्रदान किए थे. नेपाली माओवादियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारतीय नागरिक साबित कराया गया या उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से फर्जी डोमिसाइल सर्टिफिकेट देकर उन्हें सेना में भर्ती कराया गया. फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो रही भर्ती की भनक मिलने पर गोरखों की भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास से दसवीं पास कर दी गई, लेकिन इस फेरबदल के पहले जिन गोरखों की नियुक्तियां फर्जी प्रमाण पत्रों पर हो गईं, वे नियमित सेना में शामिल हो गए और उनका कुछ नहीं बिगड़ा.
नेपाल में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे नाराज माओवादियों के फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. फिर नेपाली माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर माओवादी कमांडरों ने नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया. रोम बहादुर खत्री ने मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ के साथ-साथ वाराणसी, बरेली, बाराबंकी, फैजाबाद, गोरखपुर में अपना जाल मजबूत किया. उसने सेना के अफसरों समेत फौजी भर्ती के धंधे में लगे दलालों और स्थानीय स्कूलों को अपने प्रभावक्षेत्र में लिया, जिनसे फर्जी प्रमाणपत्र लिए जा सकें. लखनऊ में खत्री को एक ऐसा आदमी भी मिल गया, जो भर्ती में दलाली करता था और हाईकोर्ट परिसर में टाइपिंग का काम भी करता था. अब वह वकील बन चुका है.
इस गिरोह ने सात-आठ साल तक नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में खूब भर्तियां कराईं. नेपाल से आने वाले माओवादियों को आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देने में लखनऊ के कई स्कूल आगे रहे और राष्ट्रद्रोह के एवज में पैसे कमाते रहे. इनमें बालागंज के कैम्पबेल रोड स्थित स्कूल, आनंद नगर स्थित एक स्कूल, उदयगंज स्थित एक स्कूल, माल में रहिमाबाद रोड स्थित एक स्कूल, इटौंजा रोड स्थित एक स्कूल अव्वल हैं. ‘चौथी दुनिया’ के पास इन स्कूलों के नाम भी हैं, लेकिन सेना ने छानबीन की कार्रवाई में व्यवधान न पड़े, इसके लिए उन स्कूलों का नाम प्रकाशित नहीं करने का आग्रह किया. हालांकि छानबीन में कोई उल्लेनीय प्रगति नहीं हुई है. लखनऊ और लखनऊ से बाहर के ऐसे कई स्कूल हैं, जहां नेपाली युवकों को अपने स्कूल का छात्र बताया गया और आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देकर उनकी वैधता पर मुहर लगा कर राष्ट्र के साथ द्रोह किया गया. लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी जैसे कई जिलों की प्रशासनिक इकाइयां भी इस देश विरोधी हरकत में शामिल हैं, जिन्होंने नेपालियों को यहां का स्थाई निवास प्रमाण पत्र प्रदान किया और इस आधार पर माओवादियों ने सेना में नौकरी पा ली.
डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने वाली प्रशासनिक इकाइयों ने पता का सत्यापन (ऐड्रेस वेरिफिकेशन) कराने की भी जरूरत नहीं समझी. बलराम गुरुंग नाम के निपट अनपढ़ नेपाली ने स्थानीय स्कूल से आठवीं पास का फर्जी प्रमाण पत्र हासिल किया और अपना पता 28/बी, आवास विकास कॉलोनी, माल एवेन्यु, लखनऊ लिखा दिया. बलराम गुरुंग मई 2010 में सेना में भर्ती होकर गोरखा रेजीमेंट में तैनाती पर भी चला गया. उसके आधिकारिक दस्तावेजों में बाकायदा माल एवेन्यु का पता दर्ज है. जब इस ऐड्रेस की छानबीन की गई तो पता चला कि वह घर सेना के ही एक कर्नल साहब का है. कर्नल साहब अब सेना से रिटायर हो चुके हैं. उनका नाम कर्नल अजित सिंह है. जब कर्नल साहब से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने कहा, ‘मुझे क्या पता कि किसने मेरे घर का ऐड्रेस लिखा दिया! किसी ने मुझसे पूछताछ करने की जरूरत भी नहीं समझी. मैं किसी बलराम गुरुंग को जानता भी नहीं.’
सनसनीखेज तथ्य यह है कि माओवादी गुरिल्ला कमांडर व यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री ने भारतीय सेना में जिन माओवादियों को भर्ती कराया, वे उस तक सेना की सूचनाएं पहुंचाते हैं. रोम बहादुर खत्री ने अपने दो बेटों संतोष बहादुर खत्री और भोजराज बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना में भर्ती करा दिया है. संतोष बहादुर खत्री खखख-9 गोरखा रेजीमेंट में भर्ती है और भोजराज बहादुर खत्री 17वीं जैक राइफल्स में भर्ती है. रोम बहादुर खत्री का एक बेटा भोजराज बहादुर खत्री पहले नेपाली सेना में था. तीन साल तक नेपाली सेना में रहते हुए वह माओवादियों के लिए मुखबिरी करता था. भोजराज की मुखबिरी पर माओवादियों ने नेपाल सेना की कई युनिटों पर हमले किए थे. ऐसे ही एक हमले में माओवादियों ने नेपाली सैनिकों को मारा, हथियार लूटे, लेकिन भोजराज को वहां से भगा दिया गया. नेपाली सेना से भागा हुआ वही माओवादी बाकायदा भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नौकरी कर रहा है. माओवादी कमांडर खत्री ने अपने भतीजे सुरेश बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना की नौकरी में लगवाया. वह भी एक कर्नल साहब के जरिए. वे कर्नल साहब फिलहाल पुणे में तैनात हैं.
माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री नेपाल के बरदिया जिले के तारातल गांव का रहने वाला है. वहां से उसके बारे में खुफिया जानकारियां मंगाई जा सकती हैं, लेकिन सेना की खुफिया इकाई भी भारत की मुख्यधारा में बह रही है. रोम बहादुर खत्री के दोनों बेटों, भतीजों और तमाम माओवादी काडरों की भारतीय सेना में हुई भर्ती का भी सेना अगर चाहे तो पता लगा कर कार्रवाई कर सकती है, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है. माओवादी कमांडर के गांव के ही दो और युवकों के बारे में जानेंगे तो आपको आश्चर्य होगा. दीपक छेत्री फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेना में भर्ती हो चुका है. वह खखख-9 गोरखा बटालियन में तैनात है. भर्ती की प्रक्रिया कितनी अंधी है कि दीपक छेत्री के दाहिने हाथ की वह उंगली कटी हुई है, जिससे राइफल का ट्रिगर दबाया जाता है. ऐसे सिपाही से सेना क्या काम लेती होगी, यह तो सेना ही बताए. दीपक का भाई रमेश छेत्री भी खत-9 गोरखा बटालियन में भर्ती है. यहां फिर से फर्जी पोस्टल ऐड्रेस का रोचक प्रसंग आता है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं. रमेश छेत्री के सैन्य दस्तावेजों में 8/5 विक्रमादित्य मार्ग का पता दर्ज है. निश्चित तौर पर इसी ऐड्रेस के आधार पर उसने डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया होगा. उस ऐड्रेस की भी ‘चौथी दुनिया’ ने छानबीन की. वह भी फर्जी पाया गया. यह पता भी कर्नल अजित सिंह के ही दूसरे घर का है. कर्नल ने कहा, ‘मैं सेना से रिटायर हो चुका हूं. मैं विकलांग हूं, चल-फिर भी नहीं सकता. गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोगों को मेरा घर ही सटीक लगता होगा, जहां से उन्हें किसी सक्रिय प्रतिरोध की कोई संभावना नहीं दिखती होगी, लेकिन सेना के अधिकारियों को तो पते की छानबीन करनी चाहिए थी कि सिपाही के लिए भर्ती होने वाला नेपाली गोरखा सेना के किसी आला अफसर के घर का पता क्यों लिखवा रहा है, वह भी माल एवेन्यु जैसे पॉश इलाके का?’ कर्नल ने कहा कि पूरे सिस्टम में ही भ्रष्टाचार की भंग पड़ी हुई हो तो और क्या होगा! दीपक छेत्री और रमेश छेत्री माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री के गांव बरदिया तारातल के ही रहने वाले हैं. लिहाजा, उनके माओवादी कनेक्शन स्पष्ट हैं.
सेना में फर्जी लोगों की भर्ती का गोरखधंधा बार-बार सामने आने के बावजूद इस पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है. सेना के सूत्र कहते हैं कि इस धंधे में सेना के अधिकारी ही लिप्त हैं, तो इस पर रोक कैसे लगे. खास तौर पर सेना के मध्य कमान में यह धंधा अधिक तेजी से पसरा है. अभी कुछ ही अर्सा पहले बरेली में सेना में भर्ती के लिए चयनित हो चुके 24 युवक पकड़े गए थे. खुफिया एजेंसी की सूचना अगर ऐन मौके पर नहीं मिलती तो वे भी भर्ती होकर सेना में शामिल हो चुके होते. फर्जी प्रमाण पत्रों पर बाकायदा चुने जा चुके सुखराम सिंह, जुगेंद्र सिंह, रामनिवास, महेश, पवन कुमार, सवेंद्रा सिंह, राजू कुमार, संदीप सिंह, पुरुषोत्तम सिंह, संजीव कुमार, मुकेश, कासिम, हरीश कुमार अंकित, दीपक कुमार, योगेंद्र सिंह, अय्यूब खान, भूपेंद्र, अरुण शर्मा, सचिन कुमार, सत्यपाल सिंह, ओंकार सिंह, रामू यादव और संजीव कुमार के शैक्षणिक और आवासीय प्रमाण पत्र, सभी नकली पाए गए थे.
सेना में घुसपैठ कराने वाले धंधेबाजों का बाकायदा एक सिंडिकेट चल रहा है और उन लोगों ने अपने-अपने जोन बांट रखे हैं. बरेली जोन में आदेश गुर्जर का गैंग यह धंधा चला रहा है. उसके धंधे में कई रिटायर्ड फौजी अफसर शामिल हैं. इसी गैंग के जरिए बरेली, पीलीभीत, बदायूं, संभल, शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी से फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र, चरित्र और आवासीय प्रमाण पत्र तैयार कराया जाता है. फर्जी भर्ती प्रकरण में पकड़े गए युवकों में से चार ने सेना को सबूत भी दिए कि कैसे उनसे रुपये लेकर आदेश गुर्जर गिरोह के सदस्य रिटायर मेजर आदित्य चौहान ने उन्हें बरेली में भर्ती कराया था। इन युवकों में विष्णु शर्मा राजस्थान के भरतपुर जिले के इकनहरा गांव का रहने वाला है, लेकिन उसे पीलीभीत बीसलपुर के देवरिया गांव का निवासी दिखाया गया. राहुल कुमार और हरेंद्र सिंह अलीगढ़ में टप्पल थाने के निगुना सुगना गांव के रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें पीलीभीत के बीसलपुर स्थित ईंचगांव का निवासी दिखाया गया. जीतू भी राहुल कुमार के ही गांव का रहने वाला है, जिसे राहुल की जगह दौड़ाया गया था. राहुल कानपुर की सेना भर्ती रैली में फेल हो गया था. इसीलिए उसकी जगह जीतू को दौड़ाया गया था. इस प्रकरण के बाद सेना बेफिक्र होकर बैठ गई और पुलिस ने भी हाथ ढीले कर दिए. फर्जी दस्तावेज पर भर्तियां धड़ल्ले से चलती रहीं. ग्यारह लड़के फिर पकड़े गए और सेना भी महज औपचारिकता निभाती रही. सेना के सूत्र बताते हैं कि फर्जी दस्तावेजों पर भर्ती होने के साथ-साथ किसी और के नाम पर किसी और के दौड़ने या लिखित परीक्षा में शामिल होने का धंधा निर्बाध गति से जारी है. बरेली, पीलीभीत, रामपुर, बदायूं, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी के युवक गाजीपुर, बलिया, देवरिया, हरदोई, अलीगढ़, मैनपुरी, एटा जैसे दूरस्थ जिलों से हाईस्कूल और इंटर पास का सर्टिफिकेट लाकर सेना में भर्ती हो रहे हैं. अभी पिछले ही महीने ऐसे करीब सौ सर्टिफिकेट्स फिर संदेह के दायरे में आए, जिनकी छानबीन की जा रही है. मध्य कमान के फतेहगढ़ सैन्य ठिकाने पर भी भर्ती हो चुके 205 युवकों के फर्जी दस्तावेजों का पता चला तो उनकी ट्रेनिंग रोकी गई. कहा गया कि फतेहगढ़ भर्ती प्रकरण में फर्रुखाबाद के कई लोकवाणी केंद्रों और दलालों की पड़ताल हो रही है. पड़ताल की बात कही जा रही है, पर हो कुछ नहीं रहा है. फतेहगढ़ स्थित राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के करियप्पा कॉम्प्लेक्स में बरेली सेना भर्ती बोर्ड की ओर से भर्ती की गई थी. इसमें फर्रुखाबाद के अलावा श्रावस्ती, बहराइच, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, संभल हरदोई, बलरामपुर और सीतापुर के युवक शामिल हुए थे. शारीरिक परीक्षण में चयनित अभ्यर्थियों में से कुल 640 युवकों ने लिखित परीक्षा पास की थी. उन्हें ट्रेनिंग के लिए विभिन्न सैन्य प्रशिक्षण केंद्रों में भेज भी दिया गया. बाद में खुफिया जानकारी मिलने पर छानबीन की गई तो दो सौ जवानों के प्रमाणपत्र संदिग्ध पाए गए. इनमें अनुराग यादव (कन्नौज), अनुज कुमार (बुलंदशहर), मानवीर सिंह (बुलंदशहर), अनिरुद्ध प्रताप सिंह (मैनपुरी), जयंती (मैनपुरी), गौरव सिंह राठौर (मैनपुरी), आदर्श कुमार (मैनपुरी), अखिलेश कुमार (मैनपुरी), धर्मेंद्र (आगरा), नवीन सिंह (आगरा), धर्मेंद्र सिंह (आगरा), सूरज सिंह (कानपुर देहात), नरेश सिंह (इलाहाबाद), राहुल (मथुरा) और शिवम(दिल्ली) समेत अन्य के नाम शामिल हैं.
फर्जी प्रमाण पत्र पर भर्ती हुए लोग बड़े आराम से पूरी नौकरी करके रिटायर भी हो जा रहे हैं और उसके बाद सरकार पर पेंशन का बोझ भी बढ़ा रहे हैं. जानकारी मिलने के बाद भी ऐसे फर्जी पूर्व सैनिकों की पेंशन और सुविधाएं रोकने की कोई कार्रवाई नहीं होती. सेना मुख्यालय को फैजाबाद के अजित कुमार सिंह के बारे में जानकारी भी दी गई कि फर्जी प्रमाण पत्र पर सेना में भर्ती हुआ वह शख्स रिटायर होकर पेंशन भी लेने लगा, लेकिन सेना ने कोई कार्रवाई नहीं की. इसी तरह मध्य कमान क्षेत्र के अंतर्गत तीसरी बिहार बटालियन के हवलदार देवेंद्र कुमार (नंबर- 4262912 के) पर भी फर्जी दस्तावेज के आधार पर सेना में नौकरी पाने और रियाटरमेंट के बाद पेंशन लेने की शिकायत है, लेकिन सेना मुख्यालय पर इस शिकायत का भी कोई असर नहीं पड़ा.
दिलदारी पड़ सकती है भारी
नेपाल के रास्ते पाकिस्तानी आतंकवाद भारत पहुंच रहा है और नेपाल को भी अपने चंगुल में लेता जा रहा है. भारत और नेपाल की सेनाएं प्रशिक्षण में साझेदारी तो कर रही हैं, लेकिन भारतीय सेना में भर्ती के जरिए माओवादियों की जो भारी घुसपैठ हुई है, उससे निपटने की सेना के पास कोई रणनीति नहीं है.
भारत में तकरीबन 50 हजार गोरखा सैनिक हैं और गोरखा रेजीमेंट की 39 बटालियनें भारत में सक्रिय हैं. नेपाल के माओवादियों की भारतीय सेना में हुई भर्तियां भविष्य में समस्याएं खड़ी कर सकती हैं. नेपाल से लगने वाली सीमा भी आफत का कारण बनने वाली है. बिहार और नेपाल की सीमा पर नक्सलियों द्वारा आपत्तिजनक पोस्टर बांटे जा रहे हैं. इन पोस्टरों से भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का काम हो रहा है. ऐसे कुछ पोस्टर हम आपको दिखा रहे हैं. नेपाली माओवादी भारत-नेपाल सीमा की शिनाख्त कराने वाले पुराने सीमा स्तम्भ हटा रहे हैं, जिससे सीमा की पहचान समाप्त हो जाए. माओवादियों ने ऐसे करीब साढ़े पांच सौ स्तम्भ गायब कर दिए हैं. भारत नेपाल की करीब 18 सौ किलोमीटर सीमा पर साढ़े तीन हजार से अधिक स्तम्भ लगाए गए थे, लेकिन इनमें से अधिकांश का कोई अता-पता नहीं है. उत्तराखंड के नैनीताल, चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पीलीभीत के जंगलों में माओवादी अपनी जड़ें जमा रहे हैं. भारत नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी इन्हें काबू करने में नाकाम है. उत्तराखंड से लगी नेपाल की सीमा पर ‘नो मैन्स लैंड’ पर माओवादियों ने अपने घर बना लिए हैं. वहां रह रहे नेपाली नागरिक यंग कम्युनिस्ट लीग के झंडे फहराते हैं. कुछ अर्सा पहले उत्तराखंड के जगलों में माओवादियों को हथियारों की ट्रेनिंग देने वाला कमांडर पकड़ा गया था. उसका नाम प्रशांत राही है. उत्तराखंड के जंगलों में माओवादियों को प्रशिक्षण दे रहे ऐसे भारतीय कमांडरों की कोई कमी नहीं है. भारतीय सेना में नेपाली गोरखा समुदाय के जो 50 हजार से अधिक लोग भर्ती हैं, वे हर साल सात-आठ सौ करोड़ रुपए अपने परिवारों के लिए नेपाल भेजते हैं. एक लाख से अधिक गोरखा भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद नेपाल में रहते हैं. इन्हें भी 500 करोड़ से अधिक की राशि सालाना पेंशन के रूप में मिलती है. यह तादाद अगर माओवादियों के सक्रिय हितचिंतकों में तब्दील हो गई तो क्या होगा? यह अहम सवाल सामने है.
सेना में नशीली दवाएं पहुंचा रहे हैं माओवादी
नक्सलवाद से प्रभावित बिहार-झारखंड में सैन्य इकाइयों के अंदर माओवादियों की पैठ की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है. अभी कुछ ही दिनों पहले 12 जून 2015 को बिहार के गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र में सेना के जवान कृष्णा राम, सेना से रिटायर्ड जवान गोपी लाल और माओवादी कमांडर इंदल भोक्ता के साथी लेखा सिंह भोक्ता को सात किलो अफीम के साथ पकड़ा गया था (चौथी दुनिया में प्रकाशित). इस वाकये से साबित हुआ कि माओवादियों की सैन्य इकाइयों तक सीधी पहुंच है. सूत्रों का कहना है कि अफीम पकड़े जाने का मामला तो एक है, जबकि इस इलाके में सेना को माओवादियों से नशीली दवाओं की खेपें लगातार मिलती रही हैं, जिसमें केवल अफीम ही नहीं, बल्कि हेरोइन और अन्य नशीले पदार्थ शामिल हैं. सेना के जवानों को नशा देकर माओवादी उनसे क्या-क्या जानकारियां हासिल कर रहे हैं, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. बिहार-झारखंड भी सेना की मध्य कमान के अंतर्गत आता है.
सेना में भर्ती हो गए ये माओवादी
संतोष थापा- 14 गोरखा रेजिमेंट
सरजू रिमाल- गोरखा रेजिमेंट
रमाकांत शर्मा- गोरखा रेजिमेंट
रमेश राणा- गोरखा रेजिमेंट नंबर-एलयूजीडी-1088
सूर्य बहादुर थापा- गोरखा रेजिमेंट
वीरेंद्र थापा- गोरखा रेजिमेंट
इंद्र बहादुर तमांग- 11 गोरखा रेजिमेंट
बलराम गुरुंग- गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री- खत-9 गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री (2)- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
सुरेश खत्री- नॉन कॉम्बैटेंट दस्ते में भर्ती
संतोष बहादुर खत्री- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
भोजराज बहादुर खत्री- 17 जैक राइफल्स
फर्जी दलित बन कर भी नौकरी पा रहे हैं नेपाली
फर्जी प्रमाण पत्र लेकर नेपाली लोग केवल सेना में ही भर्ती नहीं हो रहे हैं, बल्कि अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर वे अन्य सरकारी नौकरियों में भी घुस रहे हैं. उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में भी ऐसे दो मामले पकड़े गए. दो भाई अमित सिंह और अरुण कुमार नेपाल के खलंगा (पोस्ट ः ढूलेपानी, गांव ः प्यूठन) से यहां आकर अनुसूचित जाति के कोटे से सिंचाई विभाग में सरकारी नौकरी पा गए. शिकायत होने पर मामले की छानबीन की गई तो अरुण कुमार को बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उसी फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी पाये उसके भाई अमित सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. सिंचाई विभाग में अनुसूचित जाति के फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे अमित सिंह का आवासीय प्रमाण पत्र भी फर्जी है, क्योंकि उसमें सिंचाई विभाग की कॉलोनी का ही पता दर्ज है. सिंचाई विभाग में फर्जी नियुक्ति का यह मामला उठाने वाले व्हिसिल ब्लोअर हरपाल सिंह के उत्पीड़न का जो दौर चला, वह उनके रिटायर होने के बाद भी जारी है.
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