महंगाई की सीधी मार बच्चों के विकास पर
बुधवार, 15 फ़रवरी, 2012
को 16:49 IST तक के समाचार
भारत में बच्चों की आधी आबादी का विकास खाने की कमी के कारण रुक गया है
अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रन' ने कहा
है कि भोजन की कमी के कारण भारत में बच्चों की आधी आबादी का पूरी तरह से शारीरिक
और मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है.
सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रेन' के सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले
भारतीय परिवारों में से एक चौथाई परिवारों ने माना कि उनके बच्चों को अक्सर भूखा
रहना पड़ता है.
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ये सर्वेक्षण दुनिया के पांच देशों भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, पेरू और नाइजीरिया में किया गया है. इन देशों में दुनिया के कुपोषण के शिकार बच्चों की आधी आबादी रहती है.
संस्था का कहना है कि इससे ''अगले पंद्रह सालों में दुनिया भर के करीब 50 करोड़ बच्चों के
शारीरिक और मानसिक तौर पर अविकसित रह जाने की आशंका है.''
इन आंकड़ों में भी मध्यम और निम्न वर्ग के गरीबों के बीच असमानता पाई गई है.
आंकड़ों के अनुसार मध्य वर्ग के 11 प्रतिशत गरीब अभिभावकों ने माना
कि ऐसा कभी-कभार होता है कि उनके बच्चों को भूखे रहना
पड़ता है लेकिन निम्न वर्ग के गरीबों में ये प्रतिशत बढ़कर 24 हो जाता है.
चिंता का मुद्दा
भारत समेत जिन पांच देशों में ये सर्वेक्षण किया गया है उनमें से 80 प्रतिशत लोगों ने माना है कि वर्ष 2011 में खाने की
बढ़ती कीमतें उनके लिए चिंता का अहम मुद्दा रहा है.
इनमें से एक तिहाई अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चे कम भोजन मिलने की शिकायत करते हैं.
सर्वेक्षण के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- भारत में सर्वेक्षण में शामिल 24 प्रतिशत लोगों के अनुसार उनके यहां 16 साल से कम उम्र के बच्चों को अक्सर भूखे रहना पड़ता था.
- 29 प्रतिशत लोगों ने उनके बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने की शिकायत की है.
- 27 प्रतिशत लोग हर हफ्ते अपने बच्चों के लिए मांस, दूध और सब्ज़ी नहीं खरीद सकते हैं.
- 66 प्रतिशत लोगों ने माना कि पिछले पूरे साल खाने की बढ़ती कीमतों से वो चिंतित रहे हैं.
- 29 प्रतिशत लोगों ने परिवार के लिए खरीदे जाने वाले राशन में कटौती करनी शुरु कर दी है.
- 17 प्रतिशत लोगों ने परिवार के लिए खाना जुटाने के लिए अपने बच्चों की स्कूल छुड़वा कर उन्हें काम पर लगा दिया है.
भारत में किए गए इस सर्वेक्षण में शामिल परिवारों को चुनाव आयोग की सूची से बिना किसी क्रम के चुना गया था.
सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रेन' की कार्यकारी अधिकारी जैसमिन व्हिटहेड ने बीबीसी से खास बातचीत में बताया, ''ये बहुत ही चिंताजनक है कि एक तेज़ी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था
के बावजूद भारत, नाइजीरिया के बाद दूसरा देश है जहां
सर्वेक्षण में शामिल एक चौथाई अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों को अक्सर भूखे रहना
पड़ता है.''
व्हिटहेड ने आगे कहा,'' हालांकि भारत की बढ़ती जनसंख्या भी इसकी एक वजह है क्योंकि अगर किसी गरीब दंपति के तीन बच्चे
हैं तो उनके लिए खाने का इंतज़ाम करना ज़्यादा मुश्किल है, बनिस्बत उस दंपति के जिनके एक या दो बच्चे हैं लेकिन इसके बाद भी असल वजह
खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें ही हैं.''
खाने की चीज़ों के बढ़े हुए दामों के कारण भारत के गरीब बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं और उनका शारीरिक और मानसिक विकास
नहीं हो पा रहा है.
बीमारियाँ
उनके खाने में होने वाली ये कमी उनके दिमाग और शरीर में कई तरह की
कमियों को पैदा कर रही है जिससे वे या तो हमेशा के लिए शारीरिक या मानसिक दुर्बलता
के शिकार हो सकते हैं या बचपन से जुड़ी अन्य बीमारियों से ग्रस्त.
'सेव दे चिल्ड्रेन' ने आशंका जताई है कि अगर जल्द ही इस दिशा में कारगर कदम नहीं उठाए गए तो
अब से पंद्रह साल बाद पूरी के दुनिया के 50 करोड़ बच्चों का
शारीरिक या मानसिक विकास पूरी तरह से रुक सकता है.
ये जानकारियां सर्वे के बाद सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट – ‘ए लाइफ़ फ़्री फ़्रोम हंगर: टेकलिंग चाइल्ड मालन्यूट्रीशन’ - से सामने आई हैं.
"ये बहुत ही
चिंताजनक है कि एक तेज़ी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था के बावजूद भारत में
सर्वेक्षण में शामिल एक चौथाई अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों को अक्सर भूखे रहना
पड़ता है'"
जैसमिन व्हिटहेड, कार्यकारी अधिकारी, सेव द चिल्ड्रेन
‘सेव द चिल्ड्रन’ के अनुसार बढ़ते दामों ने कुपोषण की स्थिति को और बिगाड़ दिया है और इससे बाल-मृत्यु दर को कम करने के प्रयासों को आघात पहुंच सकता है.
सहायता एजेंसी ने कहा है कि अगर इस पर कोई कार्रवाई नहीं की
गई तो आने वाले 15 सालों में 50 करोड़
बच्चे शारीरिक और दिमागी तौर पर अविकसित रह जाएंगे.
‘सेव द चिल्ड्रन’ ने ये सर्वे अंतरराष्ट्रीय पोलिंग एजेंसी ग्लोबस्कैन द्वारा उन पांच
देशों में करवाया है जहां दुनिया के आधे कुपोषित बच्चे रहते हैं.
एजेंसी ने पाया है कि बीते एक साल में 25 करोड़ माता-पिता ने अपने परिवार के भोजन में कटौती की है.
सर्वे किए गए लोगों में एक तिहाई माता-पिता ने कहा है कि उनके बच्चे उनसे अपर्याप्त भोजन मिलने की शिकायत करते हैं.
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