नवरात्रि क्याें मनार्इ जाती है?
आज भारत देश विकासशील देश की श्रेणी में आ रहा है मगर क्या आपको पता है कि पहले भारत विश्व गुरू हुआ करता था। जब यहाँ नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि नाम के विश्वविधालय हुआ करते थे। तब यहां पर पूरे देश से लोग पढ़ने आया करते थे। तब इस देश के राजा यहाँ के मूलनिवासी हुआ करते थे। यहां की एक विशाल सभ्यता जो विश्व में दूसरे नम्बर पर थी। लेकिन यूरेशियन ब्राह्राणों ने इस देश की सभ्यता को खत्म कर दिया और इस देश के मूलनिवासियों को गुलाम बनाकर रखा है। इनके षडयंत्रों ने यहां के मूलनिवासियों को गुलाम बनाये रखने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते है। और यूरेशियन ब्राह्राणों ने इस देश में मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए यहाँ की महिलाआें का इस्तेमाल किया और इस तरह से इस देश में यूरेशियन ब्राह्राणाें की सŸाा स्थापित हुर्इ। उन्हाेंने महिलाआें को कोर्इ हक और अधिकार नहीं दिया और केवल उनका समय-समय पर इस्तेमाल किया। और आज भी कर रहे है उनके वेद, पुराणों में महिलाओं को केवल भोग विलास की वस्तु बताया गया है। ब्राह्राणवादियों ने समय-समय पर अपनी चाले बदली है इसका एक उदाहरण यह है कि पहले महिलाओं को (पति के जीते स्त्री को किसी भी प्रकार का व्रत, उपवास से रोका गया) और आज ब्राणवादियों ने उन्हीें को पूजने का काम चालू कर दिया। उनके पुराण में स्त्री विरोधी मानसिकता के चलते उनके तुलसीदास तो यहाँ तक कह चुके है कि ''ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी और अब जब उनकी सŸाा पर खतरा पैदा होने लगा तो वे फिर से महिलाआें को पूजना शुरू कर दिया। अब यह बात आती है कि जिस समाज में नारी को नीच, दुष्ट, अपवित्र और दण्डनीय करार दिया हो वही समाज आज नारी को पूजने के पक्ष में कैसे हो सकता है। तो मनुवादियों ने सोचा कि अगर महात्मा बुद्ध महिलाआें को ऊँचा स्थान देकर हमारी सŸाा को छीन सकते है तो हम अपनी सŸाा को बचाने के लिए क्यों नहीं महिलाओं को दिखावे के लिए ऊँचा स्थान दे।
नवरात्रि मनाने का एक कारण यह है कि यूरेशियन ब्राह्राणी लोग हमको यह दिखाता है कि देखों तुम्हारे ही मूलनिवासी महिला तुम्हारा नाश कैसे कर रही है। लेकिन ब्राह्राण यह कभी नहीं बताया है कि यह मूलनिवासी महिला कहां से हमारी गुलाम बनी। और हम कहां से आये है।
यहीं से नवरात्रि का उदय हुआ विदेशी यूरेशियन ब्राह्राणों ने महिलाआें को पूजने का काम शुरू किया और वह उनको तमाम रूपों में अपनी सच्चार्इ को छुपाने के लिये बताने लगे। और इसके पीछे अपने ढोंग, अंधविश्वास का राज्य चलाने लगे। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह कहा जाता है कि प्राचीन काल में सुरथ नाम के एक राजा थे, स्वाभाव से वे बड़े शालीन और उदार थे। उनके मंत्रिमण्डल में ब्राह्राणों का बाहुल्य था राजा की गíी हड़पने के लालच में, मंत्रियों ने राजा के दुश्मनाें से मिलकर अपने राजा पर ही आक्रमण करवा दिया। मंत्रियों ने आक्रमकारियों का पूरा साथ दिया जिसके कारण राजा की हार हुर्इ और उसे अपनी जान बचाकर मैदान छोड़कर भागना पड़ा। और राजा जंगल में सन्यासी बनकर रहने लगे और एक दिन वह समाधि नाम के आदमी से मिले और दोनों महर्षि मेधा के आश्रम में गये। महर्षि ने उन्हें यह बताया कि एक बार जब महाप्रयल हुर्इ तो उस समय विष्णु जी क्षीर सागर में नाग शैय्या पर सो रहे थे। तो दो असुर उनके कान से उत्पन्न हुये। उनका नाम मुध और कैटभ था। और उन्हाेंने ब्रह्राा को मारने के लिए दौड़ाया। और तब ब्रह्राा भगकर विष्णु के पास गये। और तब विष्णु ने ब्रह्राा की मदद की और विष्णु ने मधु और कैटभ से 5000 वर्ष तक युद्ध किया। और अन्त में विष्णु हार गया। उन्हाेंने विष्णु की वीरता को देखकर रहम खाकर वरदान मांगने को कहा तो विष्णु ने कहा कि मै चाहता हूँ कि तुम दोनाें की मृत्यु मेरे ही हाथों हो। और अन्त में विष्णु उनको मारने में कामयाब हो गया। ब्राह्राणों ने भारत के मूलनिवासियों को सत्य की जानकारी न हो इसलिए इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया और साथ में यहाँ के मूलनिवासियों को शिक्षा से वंंचित रखा।
नवरात्रि का इतिहास ऐसा था कि आर्यो द्वारा अनार्यो के साथ छल-कपट, धोखेबाजी तथा आर्यो के षड़यंत्र से अनार्यो के विनाश को स्मरण रखने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है। वास्तव में जो मधु, कैटभ नाम के दो असुर विष्णु के कर्ण से पैदा ही नहीं हुए थे। बलिक वे स्वतंत्र असुर सम्राट थे। और उनका नाम 'जय और 'विजय भी था। आर्य लोग उनके राज्य पर भी कब्जा करना चाहते थे। आर्यो के राजा इन्द्र अपनी चालबाजी से असुराें के राजाआें को मारकर उनके राज्य पर कब्जा करना चाहता था। मगर वे मुध, कैटभ वीरों के आगे नहीं टिक पाये और हार गये। और जब उनकी हार हुर्इ तो सब आर्य मिलकर विष्णु के पास गये और विष्णु ने षडयंत्र का सहारा लिया और उसने अपना पुरूषत्व को नीलाम कर दिया और अपनी पत्नी लक्ष्मी को बुलाकर कहा कि जाआें और असुरों को अपने पे्रम जाल में फसाओं। लक्ष्मी ने ऐसा ही किया। लक्ष्मी के शारीरिक आकर्षण के मोह में मुध, कैटभ लक्ष्मी के बहकावे में आकर विष्णु पर रहम खा बैठे और उन्हाेंने विष्णु को वरदान मांगने को कहा। तब छल-कटप में माहिर विष्णु ने दोनों की मौत मांग ली। (देखें दुर्गा-सप्तसती प्रथम अध्याय 89-98) और अवसर पाते ही विष्णु ने इनका गला काट लिया। इसी तरह से ये लोग षडयंत्र पर षडयंत्र करते रहते थे और इनके इस षडयंत्र में जो इसमें जो महिलायें थी वह भी साथ दे रही थी। जिनको वे आज दुर्गा, काली, भगवती, चण्डी आदि नौ नामों से पुकारते है। जिना इस्तेमाल मूलनिवासियाें के राजाआें के विरोध में किया गया था। आज इन महिलाओं का नाम आज ब्राह्राण लोग क्यू लेते है क्याेंकि उनको पता है कि जिस प्रकार से उस समय मूलनिवासी राजाआें को अपने फरेब में फंसाकर मार डाला वैसे आज भी किया जा रहा है। इसलिए वे दुर्गा, काली आदि देवी की बड़ी जोरो पर प्रचार-प्रसार करते है। जब दुर्गा को बार-बार शराब पीते हुए बताया गया है। और शराब के नशे में उसका चेहरा लाल हो जाता था, वाणी लड़खड़ा जाती थी। (देखें दुर्गा-सप्तसती अध्याय-3 श्लोक 34-36) और आज हमारे लोग ही उन देवियों की पूजा करते है जिन देवियों ने हमारे पुरखों का नाश किया और उस देवता की पूजा करते है जिस देवता ने हमारे पुरखाें के साथ षडयंत्र पर षडयंत्र किया और उनकी हत्या की। विदेशी यूरेशियन ब्राह्राणों ने अंधविश्वास को बहुत जोराें शोरों पर बढ़ाया है। और इसमें उनका साथ जो आज की मीडिया है वह भी दे रही है। और अब जब नवरात्रि शुरू होता है तो उसमें जो ओझा, सोखा, पण्डे, पुजारी होते है उनकी खूब कमार्इ होती है। क्योंकि लोग अंधविश्वास में खूब चढ़ावा चढ़ाते है और अपने ही पुरखाें के हत्यारों की पूजा करते है। बाबा साहब ने कहा था कि हिन्दू धर्म के जितने भी देवी-देवता है वे सभी के सभी हमारे पूर्वजों के हत्यारे है। इसलिए हमें निर्णय करना चाहिए कि अपने ही पूर्वजाें के हत्या के दिन अर्थात नवरात्र का परित्याग करना चाहिए? सही अगर माना जाये तो नवरात्रि के नव दिन मूलनिवासियाें को शोक मनाना चाहिए कब तक जब तक अपने महान पूर्वजों के महानता पर लगे हुए दानवता के कलंक को मिटाकर अपने गौरवशाली इतिहास को पुन: स्थापित न कर ले। कर्इ हजारों सालों बाद अब वह समय आया है कि हम अपने पुरखों के सच्चे इतिहास को जाने और उनके महान कार्यो से प्रेरणा लेकर भारत मुकित मोर्चा द्वारा चलाये जा रहे। राष्ट्रव्यापी जन-आन्दोलन में सहभागी हों। और इस देश पर 2500 साल से राज्य करने वाले यूरेशियन ब्राह्राणों को यहां से निकाल सके। इस लेख से मेरा किसी की भावना को ठेसा पहुँचाने का मतलब नहीं है। मगर वास्तविकता यहीं है अगर विश्वास नहीं होता ब्राह्राणी व्यवस्था के पुराणाें का इतिहास उठाकर दे लो आपको यकीन हो जायेगा।
आज भारत देश विकासशील देश की श्रेणी में आ रहा है मगर क्या आपको पता है कि पहले भारत विश्व गुरू हुआ करता था। जब यहाँ नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि नाम के विश्वविधालय हुआ करते थे। तब यहां पर पूरे देश से लोग पढ़ने आया करते थे। तब इस देश के राजा यहाँ के मूलनिवासी हुआ करते थे। यहां की एक विशाल सभ्यता जो विश्व में दूसरे नम्बर पर थी। लेकिन यूरेशियन ब्राह्राणों ने इस देश की सभ्यता को खत्म कर दिया और इस देश के मूलनिवासियों को गुलाम बनाकर रखा है। इनके षडयंत्रों ने यहां के मूलनिवासियों को गुलाम बनाये रखने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते है। और यूरेशियन ब्राह्राणों ने इस देश में मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए यहाँ की महिलाआें का इस्तेमाल किया और इस तरह से इस देश में यूरेशियन ब्राह्राणाें की सŸाा स्थापित हुर्इ। उन्हाेंने महिलाआें को कोर्इ हक और अधिकार नहीं दिया और केवल उनका समय-समय पर इस्तेमाल किया। और आज भी कर रहे है उनके वेद, पुराणों में महिलाओं को केवल भोग विलास की वस्तु बताया गया है। ब्राह्राणवादियों ने समय-समय पर अपनी चाले बदली है इसका एक उदाहरण यह है कि पहले महिलाओं को (पति के जीते स्त्री को किसी भी प्रकार का व्रत, उपवास से रोका गया) और आज ब्राणवादियों ने उन्हीें को पूजने का काम चालू कर दिया। उनके पुराण में स्त्री विरोधी मानसिकता के चलते उनके तुलसीदास तो यहाँ तक कह चुके है कि ''ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी और अब जब उनकी सŸाा पर खतरा पैदा होने लगा तो वे फिर से महिलाआें को पूजना शुरू कर दिया। अब यह बात आती है कि जिस समाज में नारी को नीच, दुष्ट, अपवित्र और दण्डनीय करार दिया हो वही समाज आज नारी को पूजने के पक्ष में कैसे हो सकता है। तो मनुवादियों ने सोचा कि अगर महात्मा बुद्ध महिलाआें को ऊँचा स्थान देकर हमारी सŸाा को छीन सकते है तो हम अपनी सŸाा को बचाने के लिए क्यों नहीं महिलाओं को दिखावे के लिए ऊँचा स्थान दे।
नवरात्रि मनाने का एक कारण यह है कि यूरेशियन ब्राह्राणी लोग हमको यह दिखाता है कि देखों तुम्हारे ही मूलनिवासी महिला तुम्हारा नाश कैसे कर रही है। लेकिन ब्राह्राण यह कभी नहीं बताया है कि यह मूलनिवासी महिला कहां से हमारी गुलाम बनी। और हम कहां से आये है।
यहीं से नवरात्रि का उदय हुआ विदेशी यूरेशियन ब्राह्राणों ने महिलाआें को पूजने का काम शुरू किया और वह उनको तमाम रूपों में अपनी सच्चार्इ को छुपाने के लिये बताने लगे। और इसके पीछे अपने ढोंग, अंधविश्वास का राज्य चलाने लगे। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह कहा जाता है कि प्राचीन काल में सुरथ नाम के एक राजा थे, स्वाभाव से वे बड़े शालीन और उदार थे। उनके मंत्रिमण्डल में ब्राह्राणों का बाहुल्य था राजा की गíी हड़पने के लालच में, मंत्रियों ने राजा के दुश्मनाें से मिलकर अपने राजा पर ही आक्रमण करवा दिया। मंत्रियों ने आक्रमकारियों का पूरा साथ दिया जिसके कारण राजा की हार हुर्इ और उसे अपनी जान बचाकर मैदान छोड़कर भागना पड़ा। और राजा जंगल में सन्यासी बनकर रहने लगे और एक दिन वह समाधि नाम के आदमी से मिले और दोनों महर्षि मेधा के आश्रम में गये। महर्षि ने उन्हें यह बताया कि एक बार जब महाप्रयल हुर्इ तो उस समय विष्णु जी क्षीर सागर में नाग शैय्या पर सो रहे थे। तो दो असुर उनके कान से उत्पन्न हुये। उनका नाम मुध और कैटभ था। और उन्हाेंने ब्रह्राा को मारने के लिए दौड़ाया। और तब ब्रह्राा भगकर विष्णु के पास गये। और तब विष्णु ने ब्रह्राा की मदद की और विष्णु ने मधु और कैटभ से 5000 वर्ष तक युद्ध किया। और अन्त में विष्णु हार गया। उन्हाेंने विष्णु की वीरता को देखकर रहम खाकर वरदान मांगने को कहा तो विष्णु ने कहा कि मै चाहता हूँ कि तुम दोनाें की मृत्यु मेरे ही हाथों हो। और अन्त में विष्णु उनको मारने में कामयाब हो गया। ब्राह्राणों ने भारत के मूलनिवासियों को सत्य की जानकारी न हो इसलिए इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया और साथ में यहाँ के मूलनिवासियों को शिक्षा से वंंचित रखा।
नवरात्रि का इतिहास ऐसा था कि आर्यो द्वारा अनार्यो के साथ छल-कपट, धोखेबाजी तथा आर्यो के षड़यंत्र से अनार्यो के विनाश को स्मरण रखने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है। वास्तव में जो मधु, कैटभ नाम के दो असुर विष्णु के कर्ण से पैदा ही नहीं हुए थे। बलिक वे स्वतंत्र असुर सम्राट थे। और उनका नाम 'जय और 'विजय भी था। आर्य लोग उनके राज्य पर भी कब्जा करना चाहते थे। आर्यो के राजा इन्द्र अपनी चालबाजी से असुराें के राजाआें को मारकर उनके राज्य पर कब्जा करना चाहता था। मगर वे मुध, कैटभ वीरों के आगे नहीं टिक पाये और हार गये। और जब उनकी हार हुर्इ तो सब आर्य मिलकर विष्णु के पास गये और विष्णु ने षडयंत्र का सहारा लिया और उसने अपना पुरूषत्व को नीलाम कर दिया और अपनी पत्नी लक्ष्मी को बुलाकर कहा कि जाआें और असुरों को अपने पे्रम जाल में फसाओं। लक्ष्मी ने ऐसा ही किया। लक्ष्मी के शारीरिक आकर्षण के मोह में मुध, कैटभ लक्ष्मी के बहकावे में आकर विष्णु पर रहम खा बैठे और उन्हाेंने विष्णु को वरदान मांगने को कहा। तब छल-कटप में माहिर विष्णु ने दोनों की मौत मांग ली। (देखें दुर्गा-सप्तसती प्रथम अध्याय 89-98) और अवसर पाते ही विष्णु ने इनका गला काट लिया। इसी तरह से ये लोग षडयंत्र पर षडयंत्र करते रहते थे और इनके इस षडयंत्र में जो इसमें जो महिलायें थी वह भी साथ दे रही थी। जिनको वे आज दुर्गा, काली, भगवती, चण्डी आदि नौ नामों से पुकारते है। जिना इस्तेमाल मूलनिवासियाें के राजाआें के विरोध में किया गया था। आज इन महिलाओं का नाम आज ब्राह्राण लोग क्यू लेते है क्याेंकि उनको पता है कि जिस प्रकार से उस समय मूलनिवासी राजाआें को अपने फरेब में फंसाकर मार डाला वैसे आज भी किया जा रहा है। इसलिए वे दुर्गा, काली आदि देवी की बड़ी जोरो पर प्रचार-प्रसार करते है। जब दुर्गा को बार-बार शराब पीते हुए बताया गया है। और शराब के नशे में उसका चेहरा लाल हो जाता था, वाणी लड़खड़ा जाती थी। (देखें दुर्गा-सप्तसती अध्याय-3 श्लोक 34-36) और आज हमारे लोग ही उन देवियों की पूजा करते है जिन देवियों ने हमारे पुरखों का नाश किया और उस देवता की पूजा करते है जिस देवता ने हमारे पुरखाें के साथ षडयंत्र पर षडयंत्र किया और उनकी हत्या की। विदेशी यूरेशियन ब्राह्राणों ने अंधविश्वास को बहुत जोराें शोरों पर बढ़ाया है। और इसमें उनका साथ जो आज की मीडिया है वह भी दे रही है। और अब जब नवरात्रि शुरू होता है तो उसमें जो ओझा, सोखा, पण्डे, पुजारी होते है उनकी खूब कमार्इ होती है। क्योंकि लोग अंधविश्वास में खूब चढ़ावा चढ़ाते है और अपने ही पुरखाें के हत्यारों की पूजा करते है। बाबा साहब ने कहा था कि हिन्दू धर्म के जितने भी देवी-देवता है वे सभी के सभी हमारे पूर्वजों के हत्यारे है। इसलिए हमें निर्णय करना चाहिए कि अपने ही पूर्वजाें के हत्या के दिन अर्थात नवरात्र का परित्याग करना चाहिए? सही अगर माना जाये तो नवरात्रि के नव दिन मूलनिवासियाें को शोक मनाना चाहिए कब तक जब तक अपने महान पूर्वजों के महानता पर लगे हुए दानवता के कलंक को मिटाकर अपने गौरवशाली इतिहास को पुन: स्थापित न कर ले। कर्इ हजारों सालों बाद अब वह समय आया है कि हम अपने पुरखों के सच्चे इतिहास को जाने और उनके महान कार्यो से प्रेरणा लेकर भारत मुकित मोर्चा द्वारा चलाये जा रहे। राष्ट्रव्यापी जन-आन्दोलन में सहभागी हों। और इस देश पर 2500 साल से राज्य करने वाले यूरेशियन ब्राह्राणों को यहां से निकाल सके। इस लेख से मेरा किसी की भावना को ठेसा पहुँचाने का मतलब नहीं है। मगर वास्तविकता यहीं है अगर विश्वास नहीं होता ब्राह्राणी व्यवस्था के पुराणाें का इतिहास उठाकर दे लो आपको यकीन हो जायेगा।
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