क्रांतिजोति सावित्रीमाई फुले
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(3 जन 1831-10 मार्च 1897)
आधुनिक भारत की पहली शिक्षित स्त्री , पहली अध्यापिका , स्त्रियॉं की पहली नेत्री , प्रथम सामाजिक क्रांतिकारी महिला , प्रथम समाजसेविका , 18 स्कूलों की प्रथम संचालिका , ब्राह्मणी विधवाओं के अवैध बच्चों को सुरक्षित जन्म देने के लिए खोले गए प्रथम"बाल हत्या प्रतिबंधक गृह"की संस्थापिका तथा व्यवस्थापिका , 100 अवैध-अनाथ बच्चों की माँ जैसी पोषणकर्ता , अकालग्रस्त केंद्र में 2000 निराश्रित बच्चों की पालनकर्ता , राष्ट्रपिता फुले के निर्वाण के बाद सत्यशोधक समाज की 7 साल तक अध्यक्षता , सत्यशोधक समाज के वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षा , सफल ओजस्वी वक्ता , क्रांतिकारी कवयित्री , स्त्री मुक्ति आंदोलन की प्रणेता , प्रखर विचारक , शूद्र-अतिशूद्र अर्थात एससी/एसटी/ ओबीसी उद्धारक , महान पति की वीर पत्नी , पति के अतिथियों की आवभगत संभालने वाली , पारिवारिक जिम्मेदारियाँ संभालने वाली , अनाथालयों की संचालिका , पति की खेती की देखरेख करने वाली और इस महान कार्य में सम्मान नहीं बल्कि अपमान सहन करने वाली , दुख-यातना सहनकरने वाली , इसके बावजूद अपने महान पति को एक शब्द से भी दुख नहीं पहुंचाने वाली और महान पति का अंतिम समय तक साथ देने वाली मूलनिवासी बहुजन उद्धारक प्रातः स्मरणीय माता सावित्रीमाई फुले की 183 वी जयंती पर साष्टांग प्रणाम !
राष्ट्रपिता महात्मा जोतिराव फुले की पतिन माता सावित्री बार्इ फुले के 183वें (3 जनवरी 1831) के जन्म दिन पर मूलनिवासी परिवार को हार्दिक सुवेच्छाएं प्रकट करते है क्याेंकि सावित्री बार्इ फुले ने अपने पति से प्रेरणा लेकर घर गृहस्थी से ऊपर उठकर समाज में जागृति हेतु शिक्षा की क्रांति लाने का बीड़ा उठाया क्याेंकि उस समय ब्राह्राणाें का राज था जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था में अछूतों और शोषितों (शूद्रों) को मानवीय जिन्दगी जीने का अधिकार नहीं था मगर जोतिराव फुले के प्रयासों को एक नया रास्ता दिखाने वाली माता जोतिराव फुले ने बहुजनों को शिक्षित करने का सफल योगदान किया जिन्हेें आज हम शत-शत नमन करते है।
माता सावित्री बार्इ फुले ने सित्रयोें को अधिकार एवं शिक्षा देने एवं दिलाने के लिए विकट परिसिथतियों का सामना कर प्रथम कन्या विधालय खोलकर प्रथम शिक्षिका बनी जिन्हें आधुनिक भारत में मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है 1852 में उन्हाेंने अछूत बालिकाओं के लिए एक विधालय की स्थापना की थी वह भारत की पहली बालिका विधालय की प्राचार्य और किसान स्कूल की संस्थापक भी बनी सावित्री जी और महात्मा जोतिराव फुले महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आन्दोलन में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में माना जाता है वहीं उनकी पतिन को महिलाओं और शोषित जातियों में शिक्षा की अलख जगाने का सफल प्रयास किया गया उन्हीें के आन्दोलन को आज बामसेफ एवंं भारत मुकित मोर्चा चलाने हेतु प्रयासरत है। जोतिराव फुले ही सावित्री बार्इ फुले के पति के साथ गुरू, सरंक्षक और समर्थक थे।
माता सावित्री बार्इ ने जहां प्रथम शिक्षिका बनकर मूलनिवासी बहुजनों में शिक्षा की जागृति बढ़ार्इ वहीं अपने जीवन को एक मिशन की तरह जीया जिसका उददेश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की गुलामी से मुकित के लिए शिक्षिका बनना उस समय आसान नहीं था जो उनके साथ ब्राह्राणवादी मानिकसता वाली महिलाआें ने नाइंसाफी की मगर बिना विचलित हुए अपने उददेश्य को पूर्ण किया ऐसी महिला से हमे प्रेरणा लेना चाहिए साथ ही अन्य को प्ररेणा का सहभागी बनाये।
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(3 जन 1831-10 मार्च 1897)
आधुनिक भारत की पहली शिक्षित स्त्री , पहली अध्यापिका , स्त्रियॉं की पहली नेत्री , प्रथम सामाजिक क्रांतिकारी महिला , प्रथम समाजसेविका , 18 स्कूलों की प्रथम संचालिका , ब्राह्मणी विधवाओं के अवैध बच्चों को सुरक्षित जन्म देने के लिए खोले गए प्रथम"बाल हत्या प्रतिबंधक गृह"की संस्थापिका तथा व्यवस्थापिका , 100 अवैध-अनाथ बच्चों की माँ जैसी पोषणकर्ता , अकालग्रस्त केंद्र में 2000 निराश्रित बच्चों की पालनकर्ता , राष्ट्रपिता फुले के निर्वाण के बाद सत्यशोधक समाज की 7 साल तक अध्यक्षता , सत्यशोधक समाज के वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षा , सफल ओजस्वी वक्ता , क्रांतिकारी कवयित्री , स्त्री मुक्ति आंदोलन की प्रणेता , प्रखर विचारक , शूद्र-अतिशूद्र अर्थात एससी/एसटी/ ओबीसी उद्धारक , महान पति की वीर पत्नी , पति के अतिथियों की आवभगत संभालने वाली , पारिवारिक जिम्मेदारियाँ संभालने वाली , अनाथालयों की संचालिका , पति की खेती की देखरेख करने वाली और इस महान कार्य में सम्मान नहीं बल्कि अपमान सहन करने वाली , दुख-यातना सहनकरने वाली , इसके बावजूद अपने महान पति को एक शब्द से भी दुख नहीं पहुंचाने वाली और महान पति का अंतिम समय तक साथ देने वाली मूलनिवासी बहुजन उद्धारक प्रातः स्मरणीय माता सावित्रीमाई फुले की 183 वी जयंती पर साष्टांग प्रणाम !
राष्ट्रपिता महात्मा जोतिराव फुले की पतिन माता सावित्री बार्इ फुले के 183वें (3 जनवरी 1831) के जन्म दिन पर मूलनिवासी परिवार को हार्दिक सुवेच्छाएं प्रकट करते है क्याेंकि सावित्री बार्इ फुले ने अपने पति से प्रेरणा लेकर घर गृहस्थी से ऊपर उठकर समाज में जागृति हेतु शिक्षा की क्रांति लाने का बीड़ा उठाया क्याेंकि उस समय ब्राह्राणाें का राज था जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था में अछूतों और शोषितों (शूद्रों) को मानवीय जिन्दगी जीने का अधिकार नहीं था मगर जोतिराव फुले के प्रयासों को एक नया रास्ता दिखाने वाली माता जोतिराव फुले ने बहुजनों को शिक्षित करने का सफल योगदान किया जिन्हेें आज हम शत-शत नमन करते है।
माता सावित्री बार्इ फुले ने सित्रयोें को अधिकार एवं शिक्षा देने एवं दिलाने के लिए विकट परिसिथतियों का सामना कर प्रथम कन्या विधालय खोलकर प्रथम शिक्षिका बनी जिन्हें आधुनिक भारत में मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है 1852 में उन्हाेंने अछूत बालिकाओं के लिए एक विधालय की स्थापना की थी वह भारत की पहली बालिका विधालय की प्राचार्य और किसान स्कूल की संस्थापक भी बनी सावित्री जी और महात्मा जोतिराव फुले महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आन्दोलन में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में माना जाता है वहीं उनकी पतिन को महिलाओं और शोषित जातियों में शिक्षा की अलख जगाने का सफल प्रयास किया गया उन्हीें के आन्दोलन को आज बामसेफ एवंं भारत मुकित मोर्चा चलाने हेतु प्रयासरत है। जोतिराव फुले ही सावित्री बार्इ फुले के पति के साथ गुरू, सरंक्षक और समर्थक थे।
माता सावित्री बार्इ ने जहां प्रथम शिक्षिका बनकर मूलनिवासी बहुजनों में शिक्षा की जागृति बढ़ार्इ वहीं अपने जीवन को एक मिशन की तरह जीया जिसका उददेश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की गुलामी से मुकित के लिए शिक्षिका बनना उस समय आसान नहीं था जो उनके साथ ब्राह्राणवादी मानिकसता वाली महिलाआें ने नाइंसाफी की मगर बिना विचलित हुए अपने उददेश्य को पूर्ण किया ऐसी महिला से हमे प्रेरणा लेना चाहिए साथ ही अन्य को प्ररेणा का सहभागी बनाये।
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