पाताल में शयन करने के लिए क्यों जाते हैं देवता?
Friday, 19 July 2013 20:48
अगर
आप कभी तिरुवनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर जाएं तो मंदिर के गर्भगृह
में भगवान विष्णु की प्रतिमा के दर्शन करने जरूर जाइए. करीब पचास फीट की
सोने की ये प्रतिमा श्रीमन्नारायण की निद्रावस्था में है. मंदिर बिल्कुल
बैकुंठ जैसा, सोने से लदा हुआ.
विशाल
परिसर और मंदिर के नौ द्वार. पद्मनाभ स्वामी मंदिर की समृद्धि और भव्यता
पिछले साल मंदिर के नीचे मिले करीब 10 लाख करोड़ के खजाने की वजह से खूब
चर्चा में रही. पद्मनाभ स्वामी और त्रावणकोर के राजवंश की दानवीरता की
कहानी फिर कभी बाद में अभी चर्चा मंदिर के गर्भगृह औऱ यहां भगवान विष्णु के
स्वरूप की. मंदिर के गर्भगृह में जैसा कि बताया करीब पचास फीट की सोने की प्रतिमा. क्षितिजाकार प्रतिमा के तीन भागों में दर्शन होते हैं, पहले अंधेरे गर्भगृह में सोने से चमचमाता विष्णु जी का मुख औऱ शेषनाग की तरफ फैला उनका हाथ, दूसरे हिस्से में सोने से लदा कमर का हिस्सा और तीसरे हिस्से में भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन. हमने भी दर्शन किए और जब चरणों के पास पहुंचे तो स्वाभाविक भक्त की तरह सिर के बल लेटकर प्रणाम करने लगे. इस पर मंदिर के पुजारियों ने टोका और कहा यहां भगवान को प्रणाम नहीं करते क्योंकि वो सो रहे हैं.
भगवान विष्णु के शयन पर जाने को लेकर अक्सर कोफ्त होती है, कई सवाल मन में कौंधते हैं. ब्रह्मा और शिव भी विश्राम के लिए जाते हैं, हालांकि इसकी ज्यादा चर्चा भी नहीं होती लेकिन भगवान विष्णु जो इस सृष्टि के पालन-पोषण के होल सोल इंचार्ज कहे जाते है, वो ही अगर विश्राम को चले जाएं तो फिर ये सृष्टि कैसे चलेगी, इस सवाल के सटीक जवाब की अब भी तलाश है. इंसानों को तो कहा जाता है कि कर्म ही पूजा है, चलते रहने का नाम ही जिंदगी है औऱ भगवान हैं कि 4-4 महीने तक सोने चले जाते हैं. मन में सवाल उठता है कि क्या संसार में इसीलिए इतनी अराजकता है, इसीलिए इतनी उठापटक है, जिसका जो आया कर रहा है क्योंकि उसके पालनहार को ही महीनों तक इसकी परवाह नहीं है.
अषाढ़ी एकादशी आई, पंढरपुर यात्रा संपन्न हुई और हिंदू मान्यताओं के मुताबिक जगत के पालनहार भगवान विष्णु फिर क्षीरसागर में शयन करने चले गए. अषाढ़ी एकादशी को देवशयनी एकदाशी भी कहा जाता है. इसी दिन के बाद हिंदू मान्यताओं के मुताबिक वो सभी धार्मिक कार्य ठप हो जाते हैं जिनमें भगवान विष्णु को साक्षात मानकर उनका आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु अषाढ़ की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक निद्रा में रहते हैं. कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी कहा जाता है. हिंदू धर्म में इसके बाद ही शादी-विवाह, यज्ञोपवीत, नामकरण जैसे धार्मिक संस्कार शुरू किए जाने का विधान माना गया है.
धार्मिक समुदाय में ज्यादा चर्चा विष्णु भगवान के शयन की ही होती है, लेकिन कम लोग जानते होंगे कि जिस तरह देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक भगवान विष्णु का निद्राकाल माना जाता है उसी तरह हिंदू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि देवोत्थान एकादशी से महाशिवरात्रि तक भगवान शिव विश्राम मुद्रा में रहते हैं और महाशिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक ब्रह्मा जी के विश्राम का समय होता है. तीनों देवताओं के विश्राम की जगह के बारे में भी धर्मग्रंथों में बताया गया है. कहा गया है कि इस दौरान ये देवता सुतल नाम की पाताल नगरी में निवास करते हैं. भूमंडल के नीचे पाताल में सात नगर बताए जाते हैं, क्षीरसागर में इन्ही में से एक है सुतल.
हमारी तरह इस युग के इंसानों को भगवान विष्णु के इस तरह क्षीरसागर में शयन जाने को लेकर उठते होंगे, लेकिन दरअसल हिंदू मान्यताओं में ही इसका जवाब भी है. जिसके मुताबिक भगवान विष्णु पाताल में विश्राम करने से ज्यादा अपने एक भक्त को दिया गया वचन निभा रहे हैं. कहानी राजा बलि और भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है. राजा बलि बेहद दानवीर थे. एक बार उन्होंने यज्ञ किया और भगवान उनकी परीक्षा के लिए ब्राह्मण भेष में पहुंच गए और राजा बलि से तीन पग जमीन दान में मांगी. बलि ने अपने प्रताप से भूमंडल को जीता था. भिक्षु बने विष्णु ने राजा से एक पग में पूरी धरती, दूसरे में संपूर्ण आकाश और दसों दिशाओं को ले लिया. बलि समझ गए कि ये बाबाजी तो भगवान हैं और उन्होंने भिक्षु से कहा तीसरा पैर आप मेरे सिर पर रखें. भगवान विष्णु ने बलि के सिर पर अपना पैर रखा और दानवीरता से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल का राजा बना दिया. अब बारी बलि की थी–बलि ने भिक्षु बने भगवान विष्णु से वर मांगा. बलि ने विष्णु समेत तीनों देवताओं यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश को उनके राज्य यानी पाताल में निवास करने को कहा. कहते हैं विष्णुजी के इसी वादे को पूरा करने के लिए तीनों देवता यानी विष्णु के अलावा ब्रह्मा और शिव भी 4-4 महीने पाताल में निवास करते हैं.
ये तो रही देवताओं के शयन की धार्मिक और पौराणिक कथा— लेकिन इसके वैज्ञानिक और पकृति से जुड़े पहलू भी हैं. देवशयनी एकादशी से हरिशयन का मतलब ये भी है कि बारिश के इन चार महीनों में सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश कमजोर रहता है. सूर्य किरणों के न आने से अग्नि तत्व कमजोर रहता है जिससे वातावरण में कई प्रकार के कीटाणु और रोगकारक जीव जंतु पैदा हो जाते हैं. इसीलिए इन चार महीनों में संतुलित जीवन व्यतीत करने और भगवान का ध्यान करने के लिए जो जहां है वहीं ठिठक जाता है. हिंदुओं के अलावा जैन धर्म में इसे चातुर्मास कहते हैं तो दूसरे धर्मों में भी इसका जिक्र है
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