शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

कर्जमाफी का सच

कर्जमाफी का सच PDF Print E-mail
Thursday, 07 March 2013 09:21
जनसत्ता 7 मार्च, 2013: पहले ही कई घोटालों के आरोपों से घिरी यूपीए सरकार की साख पर एक और बट्टा लगा है। कैग यानी नियंत्रक एवं महा लेखा परीक्षक की रिपोर्ट बताती है कि कर्जमाफी योजना में काफी अनियमितताएं हुई। हालांकि 2-जी या कोयला आबंटन से जुड़े घपलों की तरह ताजा मामले में किसी राजनीतिक पर उंगली नहीं उठी है, पर इससे सरकार की जवाबदेही कम नहीं हो जाती। कैग ने पिछले साल दिसंबर में ही कर्जमाफी पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। मंगलवार को यह संसद में पेश की गई। स्वाभाविक ही इस रिपोर्ट को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 2008 में जब यूपीए सरकार ने किसानों के लिए कर्जमाफी योजना का एलान किया तो बहुत-से अर्थशास्त्रियों ने उसकी आलोचना की, जिनमें कृषि मूल्य एवं लागत आयोग के अध्यक्ष भी शामिल थे। उनकी दलील थी कि इससे बैंक-ऋण न चुकाने की प्रवृत्ति पनपेगी; इसलिए ऐसी किसी योजना पर हजारों करोड़ रुपए आबंंटित करने के बजाय सरकार को सिंचाई और दूसरी कृषि-सुविधाएं बढ़ाने पर खर्च करना चाहिए। लेकिन किसानों की खुदकुशी की घटनाओं का हवाला देकर सरकार ने उस तर्क को दरकिनार कर दिया।
यह सही है कि किसानों की आत्महत्या के पीछे उनका कर्ज में डूबे होना बड़ा कारण रहा है। मगर कर्जमाफी योजना ऐसे समय आई जब पिछले लोकसभा चुनाव में थोड़ा ही समय रह गया था। इसलिए इसे एक चुनावी योजना के तौर पर ही देखा गया। यूपीए की सत्ता में वापसी से यह धारणा और मजबूत हुई। लेकिन यूपीए सरकार जिसे बाजी पलटने वाला कार्यक्रम मान रही थी उसके अमल में भी वह संजीदगी नहीं दिखा सकी। कर्ज-राहत के दो हिस्से थे। दो हेक्टेयर से कम कृषिभूमि वाले सीमांत किसानों का कर्ज पूरी तरह माफ करने की घोषणा की गई। इससे ज्यादा जमीन वाले
किसानों को ऋण में पचीस फीसद की राहत दी गई, बशर्ते वे शेष राशि चुका दें। लेकिन वित्त मंत्रालय के जिस महकमे को इस योजना की नोडल एजेंसी बनाया गया, यानी जिस पर अमल की जिम्मेदारी थी, उसने कोई निगरानी नहीं रखी। मंत्रालय ने करीब तीन महीने पहले कैग की रिपोर्ट मिलने के बाद रिजर्व बैंक और नाबार्ड को यह पता लगाने को कहा कि किस-किस स्तर पर कहां क्या गड़बड़ी हुई। पर मंत्रालय खुद अपनी जिम्मेवारी से पल्ला कैसे झाड़ सकता है, जब सीधे उसके ही एक विभाग को कार्यान्वयन पर नजर रखने का काम सौंपा गया था? कैग की जांच-पड़ताल बताती है कि साढ़े आठ फीसद मामलों में कर्जमाफी का फायदा उन्हें मिला जो इसके हकदार नहीं थे। दूसरी ओर, बहुत-से जरूरतमंद किसान राहत पाने से वंचित रह गए।
ऐसे हजारों मामले सामने आए जिनमें कर्जमाफी के बावजूद किसानों को ऋण-मुक्त होने का प्रमाणपत्र नहीं दिया गया। कई जगह बैंकों ने तरह-तरह के शुल्क वसूले, जो कि तय दिशा-निर्देशों का साफ उल्लंघन था। कर्जमाफी की इस योजना के अलावा कृषिऋण के आबंटन में भी अनियमितता के तथ्य आते रहे हैं। कुछ साल पहले खुलासा हुआ था कि दिल्ली और चंडीगढ़ में कुल जितना कृषिऋण बंटा, वह उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और झारखंड के सम्मिलित कृषिऋण से अधिक था। दिल्ली और चंडीगढ़ में कितनी खेती होती होगी यह बताने की जरूरत नहीं है। पर हैरत की बात यह भी है कि वित्त मंत्रालय कृषि-कर्ज वितरण के गोरखधंधे की तह में जाने से बचता रहा है। फसल बीमा जैसी दूसरी योजनाएं भी किसानों का कम, बैंकों और कंपनियों का हित ज्यादा साध रही हैं। कर्जमाफी में हुई बंदरबांट की जवाबदेही तय होनी चाहिए। पर इसी के साथ यह नीतिगत सवाल उठाने की भी जरूरत है कि किसानों को वास्तव में कर्जमाफी की जरूरत है या इसकी कि उन्हें उनकी उपज का न्यायसंगत मूल्य मिले।
 
किसानों की कर्ज माफी योजना में भारी धांधली: कैग

किसानों की ऋण माफी के लिए केंद्र की संप्रग सरकार की 52 हजार करोड़ रूपये की बहुचर्चित योजना में भारी गड़बड़ियों का खुलासा करते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें केवल बड़े पैमाने पर पात्र किसानों को नजरअंदाज किया गया बल्कि बड़ी संख्या में ऐसे किसानों को योजना का लाभ दिया गया जो इसके पात्र ही नहीं थे.
वर्ष 2008 में शुरू की गयी कृषि ऋण माफी तथा ऋण राहत योजना की लेखा परीक्षा संबंधी कैग की आज संसद में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि नौ राज्यों में लेखा परीक्षा जांच में 9334 खातों में से 1257 (13. 46 प्रतिशत) खाते वे थे जो कि योजना के तहत लाभ के पात्र थे लेकिन जिनको ऋणदात्री संस्थाओं द्वारा पात्र किसानों की सूची तैयार करते समय शामिल नहीं किया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि उसने जितने खातों की जांच की उनमें 22 प्रतिशत से अधिक मामलों में चूक या गड़बड़ी हुई जिससे इस योजना के क्रियान्वयन पर गंभीर चिंता होती है.
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पाया कि रिकॉर्ड से छेड़-छाड़ हुई है. उसने अरबों रुपए की इस योजना के क्रियान्वयन की निगरानी में खामी के लिए वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) की खिंचाई की है.
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कार्य निष्पादन की लेखा परीक्षा से कुल मिला कर यह बात सामने आयी कि इस योजना के क्रियान्वयन में (जांच किए गए मामलों में 22.32 फीसद में) चूक या गड़बड़ी पाई गई जिससे इस योजना के क्रियान्वयन के बारे में गंभीर चिंता पैदा हो गई है.’
रिकॉर्डों से छेड़-छाड़ का हवाला देते हुए कैग ने सुझाव दिया है कि वित्तीय सेवा विभाग को ऐसे मामलों की समीक्षा करनी चाहिए और गलती करने वाले अधिकारियों और बैंको के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि कई मामलों में जिन किसानों ने गैर कृषि उद्देश्य से ऋण लिया था या जिनका ऋण इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने योग्य नहीं था उन्हें लाभ पहुंचाया गया है.
इस रिपोर्ट में 2008 में घोषित कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना के कार्य निष्पादन का ऑडिट किया गया है. इसके तहत 3.69 लधु एंव सीमांत कृषकों तथा 60 लाख अन्य कृषकों को कुल 52,516 करोड़ रुपए की माफी या राहत दी गयी. रिपोर्ट में यह भी टिप्पणी की गयी है कि ऋण माफी दिशानिर्देश का उल्लंघन करते हुए सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) को भी फायदा पहुंचाया गया. इसमें कहा गया कि बैंकों ने इस योजना के तहत बिना वजह सरकार से दंड ब्याज, कानूनी प्रक्रिया से जुड़ा शुल्क, विविध शुल्क वसूल किए हैं. इस योजना के तहत बैंक को स्वयं इन शुल्क का वहन करना था. इस योजना के तहत लाभ पहुंचाने के बाद बैंकों को किसानों को प्रमाणपत्र जारी कर इसकी पावती प्राप्त करनी थी. हालांकि कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि कई मामलों में बैंकों ने किसानों से पावती प्राप्त नहीं की. रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया में वित्त मंत्रालय और कैग के अधिकारियों के बीच आखिरी बैठक (एक्जिट मीटिंग) तथा लेखा परीक्षा की मसौदा रिपोर्ट जारी होने के बाद वित्तीय सेवा विभाग ने इस योजना के कार्यान्वयन से जुड़ी प्रमुख संस्थाओं आरबीआई और नाबार्ड को जनवरी में सलाह दी थी और उनसे लेखा संबंधी टिप्पणियों के मद्देनजर तुरंत सुधारात्मक कदम उठाने के लिए बैंकों को दिशानिर्देश जारी करने के लिए कहा था.  डीएफएस ने निर्देश दिया था कि अयोग्य लाभार्थी को मिला धन वापस लेने, चूक करने वाले बैंकों के खिलाफ कार्रवाई, बैंक अधिकारियों और बैंक लेखा परीक्षकों की जिम्मेदारी तय की जाए. कैग ने बैंकों के अधिकारियों और आडिटरों की जिम्मेदारी सुनिश्चित किए जाने पर बल देते हुए सुझाव दिया है कि मंत्रालय को ज्यादा राशि वाले दावों पर किये गये भुगतानों, प्रशासनिक शुल्क जैसे चार्ज और नमूने के तौर पर कुछ दावों की खुद अपनी तरफ से जांच करानी चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘शिकायत या निरीक्षण के बाद आगे समुचित कार्रवाई की जानी चाहिए.’ निगरानी के सदर्भ में कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सूत्रधार की जिम्मेदारी निभा रही संस्थाएं बिना स्वतंत्र जांच के केवल बैंकों द्वारा पेश प्रमाणपत्रों और आंकड़ों पर ही निर्भर कर रही थीं. रिपोर्ट में कहा गया कि इससे हितों के टकराव का सवाल उठता है क्योंकि बैंक दोहरी भूमिका निभा रहे थे जिसमें एक भूमिका कार्यान्वयन की थी और दूसरी अपने ही काम की निगरानी की भूमिका.
कैग ने कहा कि वित्तीय सेवा विभाग और योजना के क्रियान्वयन के लिए नोडल (सूत्रधार) की भूमिका निभा रही एजेंसियां इस बात से वाकिफ थीं कि इस योजना के कार्यान्वयन में कई खामियां है फिर भी उन्होंने समय पर इसे ठीक करने के लिए पर्याप्त पहल नहीं की. इस योजना में चार वित्त वर्ष के दौरान करीब 3.45 करोड़ किसानों के 52,000 करोड़ रुपए के ऋण माफ किए गए हैं.

क्या है किसान कर्ज माफी घोटाला...
नई दिल्लीबुधवार, 6 मार्च 2013( 12:57 IST )
Webdunia

नई दिल्ली। देश में कर्ज के बोझ तले दबे किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही है वहीं लेकिन कैग के खुलासे से पता चला है कि किसानों को कर्ज से मुक्त कराने की योजना में भी भारी गड़बड़ी हुई है।

राज्यसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 52 हजार करोड़ रुपए की इस योजना से जरूरतमंदों को कम और गलत लोगों को ज्यादा फायदा मिला।

सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि किसानों का कर्ज माफ करने के लिए इस्तेमाल किए गए 52 हजार करोड़ रुपए की योजना में भारी अनियमितता बरती गई। कर्ज माफी के लिए तो जरूरतमंदों की ठीक से पहचान नहीं की गई और ही योग्य व्यक्तियों को पूरी तरह इसका फायदा मिला। और तो और उन्हें भी इस योजना का फायदा मिल गया, जो पात्र नहीं थे।

कैग के अनुसार 9 राज्यों में करीब 13 फीसदी सही खातों को लाभ नहीं मिला और जिन 80,277 खातों को फायदा मिला, उनमें 8.5 फीसदी इसके लायक नहीं थे। करीब 22 प्रतिशत मामलों में योजना को लागू करने के बारे में गंभीर चिंता जाहिर की गई है।

रिपोर्टे के मुताबिक योजना की निगरानी भी खामियों से भरपूर थी और 34 प्रतिशत मामलों में किसानों को कर्ज माफी का सर्टिफिकेट नहीं दिया गया।

गौरतलब है कि 2008 में यूपीए-1 सरकार के वक्त वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने किसानों की कर्ज माफी योजना की घोषणा की थी। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य कृषि कर्ज के बोझ से बैंकों किसानों को मुक्ति देना और नए सिरे से कृषि कर्ज को बांटना था। इस योजना के नाम पर ही संप्रग सरकार ने जनता का विश्वास हासिल कर चुनाव में जीत दर्ज की थी। (एजेंसी)
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