मूर्ति के बहाने आदिवासियों का दमन
- Friday, 15 November 2013 21:44
मोदी
सरकार राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक सरदार पटेल की प्रतिमा के बहाने
सरदार सरोवर के आसपास एक पर्यटन केन्द्र विकसित कर रही है. व्यापार और
कारोबार को राष्ट्रीय अस्मिता के रूप में पेश करके मोदी गुजरात में पर्यटन
कॉरीडोर विकसित करने की आधारशिला रख रहे हैं...
अमरेन्द्र यादव
आदिवासी,
किसान बहुल गांव केवाडिया में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 31
अक्टूगबर को नर्मदा तट पर लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 138वीं जयंती
के मौके पर विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा ’स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का शिलान्यास
करते हुए गर्व से घोषणा की थी कि भारत को श्रेष्ठ बनाने के लिए एकता की
शक्ति से जोड़ने का यह अभियान नर्मदा के तट पर एक नई ऐतिहासिक घटना है.
मोदी एक
तरफ तो ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ के निर्माण के उनके सपने को साकार करने के लिए
सभी का सहयोग, समर्थन और मार्गदर्शन मांग रहे थे, दूसरी तरफ उन्हीं के
अधिकारियों द्वारा परियोजना के कारण हो रहे विस्थापितों के पुर्नवास के लिए
आवाज उठाने वाले आदिवासियों और गैर-आदिवासी किसानों को उनके ही घरों में
नजरबंद कर दिया जा रहा है.
देशभर से
लोहा मांगकर सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने का दावा करने वाले मोदी
सरकार किसी को यह नहीं बता रहे हैं कि वास्तव में इस प्रतिमा के बहाने वे
सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाना चाहते हैं और बांध के आसपास पर्यटन विकास
के काम के लिए पर्यटन कॉरीडोर को विकसित करना चाहते हैं.
लौहपुरुष
सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची यह प्रतिमा नर्मदा नदी के बीचों-बीच
स्थापित की जा रही है. इसके बेस में स्मारक सहित कई अन्य निर्माण भी किये
जायेंगे. सरकार के दावे के अनुसार यह मूर्ति अमेरिका की ‘स्टैचू ऑफ
लिबर्टी’ से लगभग दोगुनी ऊंची होगी, जो विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति होने का
तमगा हासिल करेगी.
नदी के
बीचोंबीच स्थित इस मूर्ति के पास जाने के लिए जलमार्ग भी बनाया जाएगा. मोदी
सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सरदार पटेल के इस लौह भवन की जो
कल्पना की गई है, उसमें सरदार की मूर्ति के भीतर 500 फुट पर एक डेक का
निर्माण किया जाएगा. बिल्कुल एफिल टॉवर की तर्ज पर. इस
डेक तक पहुंचने के लिए सरदार के लौह भवन के भीतर तेज लिफ्ट लगाई जाएगी और
एक वक्त में यहां 200 लोग एक साथ मौजूद रहकर 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में
फैले विशाल सरदार सरोवर जलाशय का नजारा देख सकेंगे.
पहले चरण
में तीन साल के भीतर इस भवन के आसपास थीम पार्क, होटल, रेस्टोरेण्ट,
अंडरवाटर अम्यूजमेन्ट पार्क जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को साकार किया
जाना है. दूसरे चरण में भरुच तक नर्मदा तट का विकास के साथ सड़क, रेल
यातायात सहित पर्यटन के अन्य आधारभूत ढांचे का विकास किया जाएगा. इन
स्थानों पर शिक्षा और अनुसंधान केन्द्र के साथ नॉलेज सिटी, गरुणेश्वर से
भाड़भूत तक पर्यटन कॉरीडोर आदि विकसित किया जाना है.
7 अक्टूबर
2010 को सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ के
निर्माण की घोषणा की थी. ‘ स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' नर्मदा बांध के अंदर साधू
टापू क्षेत्र में राज्य सरकार की 2500 करोड़ की लागत से आकार लेने वाली है,
जबकि वियर-कम-काज-वे योजना 300 करोड़ की है. मूर्ति का निर्माण कार्य
आगामी 26 जनवरी से शुरू होने जा रहा है. मुख्य बांध से करीब 12 किलोमीटर की
दूरी पर वियर-कम-काज-वे बनाने की शुरुआत हो चुकी है.
गौरतलब है
कि नर्मदा घाटी में बांध की योजना 1946 में बनी थी (सरदार सरोवर नर्मदा
निगम लिमिटेड के अनुसार इस बांध का स्वप्न सरदार वल्लभभाई पटेल ने ही देखा
था). गुजरात के जिस गोरा गांव में इस बांध की नींव रखी गई थी, उसकी मूल
ऊंचाई 49.8 मीटर निर्धारित की गई थी. उस वक्त जिन चार बांधों को तत्काल
प्राथमिकता के आधार पर बनाने का निर्णय लिया गया था, वे पानी के प्यासे
इलाके थे.
गुजरात का
भरुच जिला उसमें से एक था, जहां नर्मदा नहर पर बांध बनाकर किसानी के लिए
पानी देने की योजना बनाई गई थी. लेकिन किसानों को पानी देने की यह योजना
बिजली पैदा करने की योजना में तब्दील कर दी गई.
आज नर्मदा
नदी के जिस नर्मदा बांध के कारण सरदार सरोवर का निर्माण हुआ है, उस पर
बनने वाली प्रस्तावित मूर्ति को एकता की बुनियाद बताया जा रहा है, असलियत
यह है कि लगातार बढ़ती बिजली की भूख ने इस बांध को बंटवारे का बांध बना
दिया है. नर्मदा बचाओ आंदोलन इस पूरे परिवर्तन का साक्षी है. उसी नर्मदा
बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर ने सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा पर अपनी
जो पहली प्रतिक्रिया दी है उसमें साफ कहा है कि सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा
के बहाने असल में बांध की ऊंचाई बढ़ाने की साजिश रची जा रही है, जिसके
कारण एक बार फिर बड़ी संख्या में स्थानीय निवासी अपने घरों से दर-ब-दर हो
जाएंगे.
बांध की
उंचाई इसके मूल 49.8 मीटर से ऊंचा उठते-उठते अब 122 मीटर तक पहुंच चुकी है.
सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा की आड़ में इस बांध की ऊचाई 138 मीटर ले जाने
की योजना है, ताकि पीने के पानी की सप्लाई बढ़ाई जा सके और बिजली की
पैदावार भी.
सरकार को
ऊंचाई बढ़ाने का एक वाजिब कारण इसी साल अगस्त में यह मिल गया कि नर्मदा में
बाढ़ से नर्मदा घाटी में करीब 70 हजार लोगों को विस्थापित होना पड़ा था.
यानी, अब जरूरत इस बात की है बांध की ऊंचाई को जल्द से जल्द वहां पहुंचा दी
जाए, जहां तक न पानी भरे और न बाढ़ के कारण लोगों को विस्थापित करना पड़े.
लेकिन क्या यह विस्थापन सिर्फ बांध में पानी बढ़ जाने के कारण ही होगा?
पानी तो
आज भरेगा कल उतर जाएगा, इसलिए जो आज विस्थापित होंगे वे कल फिर से अपनी
जमीन पर स्थापित हो जाएंगे. लेकिन स्थाई रूप से बांध का स्तर ऊपर उठाया
गया, तो आसपास के और 70 गांवों के लोग सदा के लिए विस्थापित हो जाएंगे,
मोदी की सरकार यह बात नहीं बता रही है. शायद इसीलिए सबसे ऊंची प्रतिमा के
भूमिपूजन समारोह में आसपास के गांवों में इसी डर से लोगों को नजरबंद किया
गया कि कहीं वे विरोध का नारा लगाते हुए एकता के इस नये इतिहास के खिलाफ
विद्रोह का बिगुल न बजा दें.
दरअसल,
विरोध कर रहे लोगों के अग्रणियों को कलेक्टर कार्यालय में तलब किया गया था,
जहां कलेक्टर राकेश शंकर की मौजूदगी में सरदार सरोवर नर्मदा निगम के आला
अधिकारियों के साथ बंद कमरे में बैठक हुई थी. राजपीपला नर्मदा जिले का
मुख्यालय है. अगस्त में हुई इस बैठक के बारे में अधिकारियों ने कुछ भी कहने
से इंकार कर दिया था. बैठक में नर्मदा निगम के सीजीएण जेसी चूडास्मा,
ज्वाइंट कमिश्नर एमडी पटेल भी मौजूद थे.
उल्लेखनीय
है कि पिछले जुलाई माह में मूर्ति निर्माण को लेकर काफी बवाल मचा था.
दरअसल नर्मदा जिले के केवडिया, कोठी, गोरा, वागडिया, लीमडी एवं नवागाम नामक
गांवों के लोग इन योजनाओं का विरोध कर रहे थे. इनकी दलील थी कि सरदार
सरोवर नर्मदा बांध योजना में गई उनकी जमीन का लाभ उन्हें अभी तक नहीं मिला
है. इसके बाद से ही नर्मदा जिला प्रशासन ग्रामीणों की नाराजगी दूर करने के
प्रयास में लगा था.
बड़ोदरा
की पत्रकार कालोनी में रहने वाले रोहित प्रजापति और तृप्ति शाह के साथ
सरदार सरोवर बांध पर बन रहे स्टैच्यू आफ यूनिटी के करीब के सात गांवों में
प्रमुख लोगों को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया. बहरहाल जिन किसानों,
आदिवासियों के लिए सरदार ने आंदोलन किया था और सीमित बांध का सपना देखा था,
उनका दमन ही एकमात्र ऐसा पहलू नहीं है जो मोदी सरकार की ओर से साकार किया
जा रहा है.
अपनी इस
महत्वाकांक्षी परियोजना से मोदी सरकार एक तीर से कई शिकार कर रहे हैं. एक
तरफ जहां इतिहास का पुनर्पाठ करवाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ कुछ विदेशी
कंपनियों (खासकर अमेरिकी कंपनी टर्नर कन्ट्रक्शन) को उपकृत भी किया जा रहा
है. गुजरात सरकार की ओर से 30 नवंबर तक टर्नर कंस्ट्रक्शन को स्टैचू आफ
यूनिटी का ठेका मिलना तय माना जा रहा है, जो आस्ट्रेलिया की मीनहार्ट्ज और
अमेरिका की ही माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स के साथ मिलकर इस परियोजना पर
काम शुरू करेगी.
प्रोजेक्ट
की हकीकत यह कि सरदार पटेल की आकृति वाली एक साठ मंजिला इमारत बनाई जा रही
है, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर होगी. अमेरिका की टर्नर कन्सट्रक्शन और माइकल
ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स भवन निर्माण की कंपनियां हैं, जिन्होंने पूरी
दुनिया में भवन निर्माण का जाल खड़ा कर रखा है. इन कंपनियों में जहां टर्नर
कंस्ट्रक्शन मुख्य निर्माण कंपनी है वही मीनहार्ट्ज तथा माइकल ग्रेव्स
एण्ड एसोसिएट्स डिजाइन और आर्किटेक्ट फर्म हैं.
मुख्यमंत्री
नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गठित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता
ट्रस्ट ने परियोजना के बारे में अपनी वेबसाइट पर जो आधिकारिक जानकारी
मुहैया कराई है, उसके अनुसार यह मूर्ति तकनीकी तौर पर यह एक 182 मीटर (597
फुट) ऊंची ईमारत होगी, जिसमें अंदर पहुंचकर कोई भी व्यक्ति विस्तृत सरदार
सरोवर का नजारा देख सकता है.
इस इमारत
की शक्ल एक इंसान जैसी होगी, जो सरदार वल्लभ भाई पटेल होंगे. जाहिर है मोदी
सरकार राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक सरदार पटेल की प्रतिमा के बहाने
सरदार सरोवर के आसपास एक पर्यटन केन्द्र विकसित कर रही है. व्यापार और
कारोबार को राष्ट्रीय अस्मिता के रूप में पेश करके मोदी गुजरात में पर्यटन
कॉरीडोर विकसित करने की आधारशिला रख रहे हैं.
टेण्डर
में घोषित 2 हजार, 60 करोड़ की इस मूल परियोजना के प्रचार के लिए 3 करोड़
का अलग से टेण्डर निकाला गया है, जिसका इस्तेमाल परियोजना के पूरा होने से
पहले इस मनोरंजन पार्क को दुनियाभर में डिजिटल मीडिया के जरिए प्रचारित
करना है. अगर यह परियोजना मनोरंजक पार्क के रूप में प्रचारित की जाती, तो
शायद देश और दुनिया के लिए सरदार पटेल का यह विशाल लौह भवन इतना चर्चा का
विषय नहीं बन पाता.
बहरहाल,
उन्होंने जैसे चाहा, वैसे आने वाले इतिहास की व्याख्या कर दी और दुनिया उस
‘सरदार के सपनों का सौदागर’ को मोदीनामा मान जोर-शोर से प्रचार कर रही है.
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