सोमवार, 8 दिसंबर 2014

खाप पंचायत अथवा खौफ पंचायत


खाप पंचायत अथवा खौफ पंचायत
खाप पंचायत अथवा खौफ पंचायत

पिछले कुछ समय से भारत की मुख्यधारा की मीडिया में, चाहे वो प्रिंट हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक,खाप पंचायतों की तथाकथित अतिवादी गतिविधियों के विरोध में चल रहे एक प्रभावशाली अभियान से प्रभावित होकर,सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे मेरे एक मित्र ने,जो कि हरियाणा के निवासी हैं, खाप पंचायतों पर एक कठोर टिप्पणी की। इस मुद्दे पर हमारी कुछ सकारात्मक बहस हुई । मैंने उनसे कहा कि मैं इस बात पर सहमत हूँ कि खाप पंचायतों में,हर दूसरी चीजों की तरह,देश,काल और परिस्थिति के अनुसार सुधार होना चाहिए परन्तु में सुधार के तरीके से पूर्णतः असहमत हूँ, उसी प्रकार जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द आज से 100 वर्ष से ज्यादा पहले,ऐसे ही तथाकथित समाज सुधारकों से,असहमत थे। उन्होने मद्रास के विक्टोरिया हाल में दिए अपने भाषण में कहा कि          “सुधारकों से मैं कहूँगा कि मैं स्वयं उनसे कहीं बढ़ कर सुधारक हूँ । वे लोग केवल इधर-उधर थोडा सुधार करना चाहते हैं। और मैं चाहता हूँ आमूल सुधार। हम लोगों का मतभेद है केवल सुधार की प्रणाली में। उनकी प्रणाली विनाशात्मक है,और मेरी संघटनात्मक। मैं सुधार में विश्वास नहीं करता,मैं विश्वास करता हूँ स्वाभाविक उन्नति में। मैं अपने को इश्वर के स्थान पर प्रतिष्ठित कर अपने समाज के लोगों के सिर पर यह उपदेश मढ़ने का साहस नहीं कर सकता कि ‘तुम्हें इसी भांति चलना होगा, दूसरी तरह नहीं।'”(विवेकानंद साहित्य, खंड-5, प्रष्ठ 108)      लेकिन जिस प्रकार भारतीय मुख्य धारा की मीडिया में खाप पंचायतों के द्वारा तथाकथित ओनर किलिंग, स्त्रियों पर अमानवीय अत्याचारों,भारतीय न्यायव्यवस्था के सामानांतर कानून चलाने जैसे आरोपों के कारण एक प्रभावशाली व एकतरफा नकारात्मक अभियान चलाया जा रहा है उसमें राजनैतिक सड्यंत्र की बू आती है । अंग्रेजी समाचार चैनल टाइम्स नाउ के एंकर अर्नब गोस्वामी और एन डी टी वी की बरखा दत्त जैसे लोग इश्वर के स्थान पर प्रतिष्ठित होकर हमारे समाज के लोगों पर यह उपदेश मढ़ने का साहस कर रहे हैं कि “तुम्हें इसी भांति चलना होगा,दूसरी तरह नहीं”
हमारे देश में अधिकतर मीडिया, न्याय व्यवस्था, प्रशासनिक तंत्र में ऐसे लोगों का वर्चस्व है जिनकी जड़ें कही न कहीं आजादी से पहले की अंग्रेजी सत्ता से जुडी हुई हैं,आजादी के बाद पंडित नेहरू जिनके पालक-पोषक थे । जब तक हम इस वर्ग के चरित्र को नहीं समझेंगे,तब तक हम निष्पक्ष विचार करने में समर्थ नहीं होंगे,और उनका मुकाबला करने में भी समर्थ नहीं होंगे । आखिर इस देश के दुश्मन कौन हैं ये स्पष्टता से समझने की जरुरत है । इन लोगों की सबसे बड़ी ताकत अंग्रेजी है,क्योंकि भारत के अधिसंख्य लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं अतः इनके किसी भी राजनीति से प्रेरित तथाकथित समाज सुधार अभियानों को कड़ी चुनौती नहीं मिल पाती है । ये जिस बात को सही मान लें वही कानून बन जाता है । ये उसी प्रकार है जिस प्रकार चक्रव्यूह में कौरवों ने अभिमन्यु का वध किया था । हालाँकि डॉ. सुब्रमनियन स्वामी, राजीव मल्होत्रा, मधु किश्वर जैसे लोग अभिमन्यु बन कर उनका प्रतिकार करने की कोशिस करते हैं जो कि नक्कारखाने मैं तूती की तरह सुनाई देता है । अब आप ऐसे विलायती रंग में रंगे लोगों का ऐक उदाहरण देखिये । मशहूर मार्केटिंग गुरु सुहैल सेठ ट्वीट करते हैं ( @suhelseth )      ” The only way this khap nonsense will end is by arresting these dolts; slapping them hard in jail ”        भावार्थ है कि खाप की बकवास बातें तभी ख़त्म होंगी जब इन मूर्खों को गिरफ्तार किया जायेगा और उन्हें जेल में जोरदार थप्पड़ लगाये जायेंगे । सुहैल सेठ ने शायद ही कभी किसी खाप पंचायत के बारे में नजदीकी से जानने की कोसिश की होगी और ऐसा भी संभव है कि उन्होने कभी गांव ही न देखा हो । लेकिन अंग्रेजी जानते हैं और प्रचार के अधिकतर माध्यमों पर अंग्रेजीदां लोगों का बोलबाला है अतः वे जो सोचें, उसे ही सभी को मानने के लिए बाध्य होना होगा । वे अपने हर उलटे सीधे विचार को बाकी समाज पर थोपने की क्षमता रखते हैं । वे जो सोच लें वही ब्रह्मवाक्य है । ऐसा आचार व्यवहार रखने वालों की एक लम्बी फ़ौज इस देश में है । ऐसे अंग्रेजी में रचे- बसे लोगों के बारे में स्वामी विवेकानन्द ने कहा था जो कि आज भी प्रासंगिक है ।            ” विलायती रंग में रंगा व्यक्ति सर्वथा मेरुदण्ड विहीन होता है, वह इधर-उधर के विभिन्न स्त्रोतों से वैसे ही एकत्र किये हुए, अपरिपक्व, विश्रंखल, बेमेल भावों की असंतुलित राशि मात्र है । वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता, उसका सिर हमेशा चक्कर खाया करता है । वह जो कुछ करता है, क्या आप उसका कारण जानना चाहते हैं ? अंग्रेजों से थोड़ी शाबाशी पा जाना ही उसके सब कार्यों का मूल प्रेरक है । वह जो समाज सुधार करने के लिए अग्रसर होता है, इसका मुख्य कारण यह है कि इसके लिए उन्हें साहबों से वाही वाही मिलती है । हमारी कितनी ही प्रथाएं इसलिए दोषपूर्ण हैं कि साहब लोग उन्हें दोषपूर्ण कहते हैं । मुझे ऐसे विचार पसंद नहीं हैं । अपने बल पर खड़े रहिये चाहे जीवित रहिये या मरिये । ये असंतुलित प्राणी अभी तक निश्चित व्यक्तित्व नहीं ग्रहण कर सके हैं; और हम उनको क्या कहें-स्त्री, पुरुष या पशु ! प्राचीन पथावलम्बी सभी लोग कट्टर होने पर भी मनुष्य थे- उन सभी लोगों में एक दृणता थी । “( विवेकानन्द साहित्य, खंड 5 प्रष्ट 47)         खाप पंचायतों के खिलाफ चलाये जा रहे इस नकारात्मक अभियान पर टिप्पणी करते हुए मधु पूर्णिमा किश्वर लिखती हैं कि ” पिछले कुछ वर्षों से मीडिया में प्रायोजित तरीके से   खाप पंचायत को दुष्ट घोषित करने के लिए एक क्रमबद्ध अभियान चलाया जा रहा है । और जिन्हौने कभी खाप शब्द का नाम भी नहीं सुना होगा, जो खाप से जुड़े किसी व्यक्ति से कभी मिला भी नहीं होगा, वे भी खाप को प्रतिबंधित करने के लिए चल रहे इस अभियान का समर्थन कर रहे हैं । ”

सामाजिक विषयों पर ड़ोकुमेंट्री फिल्म बनाने वाली,अवार्ड विनिंग युवा लेखिका दीपिका भारद्वाज ने रोहतक में एक खाप पंचायत से बात-चीत की । वे अपने ट्विटर अकाउंट ( @DeepikaBhardwaj ) पर कहती है जिसका भावार्थ निम्न प्रकार है        ” खाप पंचायत की मीडिया में बहुत ही नकारात्मक तस्वीर पेश की जा रही है । खाप एक ऐसा तंत्र है जहाँ हमारी न्याय व्यवस्था की तरह न्याय देरी से नहीं होता, सेलिब्रिटी केश भी नहीं होते है, सामान्य आदमी से कीड़े की तरह व्यवहार भी नहीं किया जाता है । यहाँ सारा कुटुम्ब एक परिवार की तरह समस्याओं को आपस में बात-चीत से, परिवारों को जोड़ने न कि तोड़ने के उद्देश्य से, हल करने की कोशिस करते हैं । जहाँ अभी भी लोग सामाजिक दवाब से कोई भी गलत कार्य करने से पहले दो बार विचार करते हैं । जब खाप के एक सदस्य ने किसी लड़की के फिल्म देखने जाने पर आपत्ति की तो अभी लोगों ने उनका विरोध किया । खाप पंचायत के सदस्यों ने बताया कि आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में उनके बयानों को पूर्णतः तोड़ मरोड़ कर दिखाया है । मीडिया एजेंडे के तहत उन्ही चीजों को दिखाता है जिन्हें वो दिखाना चाहता है । ” खाप ऐसा सामाजिक संगठन है जो हजारों वर्षों से चल रहा है । मुग़ल आक्रान्ताओं के समय में हमारे हिन्दू समाज को बचाए रखने में इनका विशेष योगदान है । लेकिन आज कुछ लोग इसे प्रतिबंधित करने के लिए अभियान चला रहे हैं । ऐसी सामाजिक संस्थाओं के सम्बन्ध में स्वामी  विवेकानन्द ने कहा था कि            “ये प्रथाएँ राष्ट्र के रूप में हमारी रक्षा के लिए आवश्यक थीं। और जब आत्मरक्षा के लिए इनकी जरुरत न रह जाएगी तब स्वभावतः ये नष्ट हो जाएंगी। किन्तु मेरी उम्र ज्यों ज्यों बढ़ती जाती है,ये पुरानी प्रथाएँ मुझे भली प्रतीत होती जाती हैं। एक समय ऐसा था जब मैं इनमें से अधिकांश को अनावश्यक तथा व्यर्थ समझता था,परन्तु आयुवृद्धि के साथ उनमें से किसी के विरुद्ध कुछ भी कहते मुझे संकोच होता है;क्योंकि उनका आविष्कार सैकड़ों सदियों के अनुभव का फल है। कल का छोकड़ा,कल ही जिसकी मृत्यु हो सकती है,यदि मेरे पास आये और मेरे चिरकाल के संकल्पों को छोड़ देने को कहे और यदि मैं उस लड़के के मतानुसार अपनी व्यवस्था को पलट दूँ,तो मैं ही मुर्ख बनूँगा,और कोई नहीं। भारतेतर भिन्न भिन्न देशों से,समाज-सुधार के विषय के यहाँ जितने उपदेश आते हैं,वे अधिकांश ऐसे ही हैं। वहां के ज्ञानाभिमानियों से कहो,”तुम अपने समाज का स्थायी संगठन कर सकोगे तब तुम्हारी बात मानेंगे। तुम किसी भाव को दो दिन के लिए भी धारण नहीं कर सकते। विवाद करके उसको छोड़ देते हो। तुम वसन्तकाल में कीड़ों की तरह जन्म लेते हो और उन्हीं की तरह कुछ क्षणों में मर जाते हो। बुलबुले की भाँति तुम्हारी उत्पत्ति होती है और बुलबुले की भाँति तुम्हारा नाश। पहले हमारे जैसा स्थाई समाज संगठित करो। पहले कुछ ऐसे सामाजिक नियमों और प्रथाओं को संचालित करो। जिनकी शक्ति हजारों वर्ष अक्षुण्ण रहे। तब तुम्हारे साथ इस विषय का वार्तालाप करने का समय आयेगा, किन्तु तब तक मेरे मित्र,तुम मात्र चंचल बालक हो।” (विवेकानंद साहित्य, खंड 5 प्रष्ठ 31-32) कुछ सुहैल सेठ जैसे लोग सभी को अपने विचारों से हांकना चाहते हैं । वो मार्केटिंग के गुरु हैं अतः वे चाहते हैं कि सभी दुकानदार हो जाएँ जो कि बिलकुल असंभव है । स्वामी विवेकानन्द ने सही ही कहा है कि              ” इसकी कोई जरुरत नहीं कि सभी दुकानदार हो जाएँ या सभी अध्यापक कहलावें या सभी युद्ध में भाग लें, किन्तु इन विभिन्न भावों में ही संसार की भिन्न भिन्न जातियाँ सामजस्य की स्थापना कर सकेंगी।” (विवेकानन्द साहित्य, खंड 5 प्रष्ठ 62)    यही बात देश पर भी पूर्णतः लागु होती है । मैं भारतीय मीडिया व राजनीति का पिछले कुछ वर्षों से गहन अध्ययन कर रहा हूँ । मेरा ये स्पष्ट मानना है कि खाप पंचायतों के खिलाफ चलाया जा रहा यह एकतरफा नकारात्मक अभियान, हिन्दुओं के खिलाफ चल रहे एक वैश्विक मानसिक, आर्थिक व राजनैतिक युद्ध का ही एक भाग है, जिसके बार में वरिष्ठ राजनेता डॉ. सुब्रमनिअन स्वामी ने अपनी अंग्रेजी में लिखी पुस्तक “हिन्दू अन्दर सीज” मैं वर्णन किया है और हिन्दू समाज को चेतावनी दी है । यह उसी फुट डालो और राज करो की नीति का एक हिस्सा है जिसके बारे में विद्वान लेखक राजीव मल्होत्रा ने अपनी पुस्तक “ब्रेकिंग इंडिया” मैं उल्लेख किया है । इन सब गतिविधियों की जड़ें एक ही जगह से खाद पानी पा रही हैं । मानसिक तौर पर जाट जाति को कमजोर करने के लिए पहले इतिहास को विकृत कर बिपिन चंद्रा जैसे तथाकथित विद्वानों ने जाटों को लुटेरी जाति घोषित किया । अभी हाल ही मैं मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में जाटों को ही दुष्ट ठहराने वाली एकतरफा रिपोर्टें आउटलुक पत्रिका में प्रकाशित हुईं । फ्रीलान्स रिपोर्टर नेहा दीक्षित को २०१४ का कुर्ट स्कॉर्क मेमोरियल फण्ड अवार्ड (Kurt Schork Memorial Fund Award ) लन्दन में इन्ही रिपोर्टों के लिए दिया गया है । ऐसी घटनाओं का एक लम्बा चक्र है जिसे गहराई से समझने की जरुरत है । जान बूझ कर एक एजेंडे के तहत जाटों को बदनाम करने का एक विद्वेषी अभियान चलाया जा रहा है । हर जाति का अपना एक मूल भाव हैं । खाप संस्थाएं मूलतः जाट जाति से जुड़ी हुई हैं । ये जाति स्वभाव से कर्मठ व साहसी व युद्धप्रिय है अतः उसी के अनुरूप उनका कठोर सामाजिक संगठन है और बाजार के इस युग में बनिया बुद्दि से सोचने वाले स्वार्थी लोग यहीं गलती कर बैठते हैं । उनकी इसी क्षमता को देखते हुए ही अंग्रेजों ने फ़ौज में जाट रेजिमेंट बनायी और उनके माध्यम से देश पर राज किया । हम लोग उनकी सही क्षमता को समझना नहीं चाहते या समझ नहीं पाए ये विचार हमेशा मेरे मन में आता है।
जानी मानी लेखिका और मानुषी नाम से, स्त्री अधिकारों का पैरोकार संगठन चलाने वाली, मधु किश्वर ने खाप पंचायत को प्रतिबंधित करवाने के लिए कुछ संगठनों द्वारा चलाये गए विद्वेषी अभियान के खिलाफ जिस प्रकार लड़ाई लड़ी है वह सराहनीय है । 2010 में शक्ति वाहिनी नाम के एक गैर सरकारी संगठन ने तथाकथित ओनर किलिंग के लिए खाप पंचायत को दोषी ठहराते हुए, उनको प्रतिबंधित करने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की । एक सोची समझी साजिस के तहत याचिका में किसी भी खाप पंचायत को प्रतिवादी बनाने की जगह केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय, महिला व बाल विकास मंत्रालय, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों को प्रतिवादी बनाया गया । सरकार के आदेश पर लॉ कमीशन ने ओनर किलिंग को रोकने के लिए एक कानून, “Prevention of Interference with the Freedom of Matrimonial alliances (in the name of honour and tradition ):A suggested legal framework’ का ड्राफ्ट तैयार किया । लेकिन किन मधु किश्वर कहती हैं कि इस कठोर कानून को यूपीए सरकार द्वारा पोषित एक नारीवादी समूह ने ड्राफ्ट किया था । हालाँकि अधिकतर राज्य सरकारों ने इसे नकार दिया । दो वर्ष से अधिक समय तक बिना खाप पंचायत का पक्ष सुने यह कार्यवाही चलती रही । जब 2013 में इस केस के अंतिम निर्णय का समय आया तो न्यायाधीश आफताब आलम और रंजना देसाई की बैंच ने इस निर्णय से प्रभावित होने वाले पक्ष की अनुपस्थिति में निर्णय सुनाने से मना कर दिया । अतः अनौपचारिक रूप से खाप पंचायत से बात-चीत का निर्णय लिया गया । अतः खाप के अंग्रेजी न जानने वाले प्रतिनिधियों ने इस अंग्रेजी न्यायव्यवस्था से भयभीत होकर मधु किश्वर की संस्था मानुषी से संपर्क किया । जब मानुषी ने खाप का पक्ष रखने के लिए किसी विद्वान महिला वकील से कहा तो सभी ने मना कर दिया । मधु किश्वर लिखती हैं कि ” जो वकील हत्यारों, बलात्कारियों का केस लेने मैं बिल्कुल नहीं जिझकते हैं वे ही खाप पंचायत की तरफ से बहस करना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ बताने लगे ।” क्योकि केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सोलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह बहस करेंगी खाप के विरोध में अतः मधु किश्वर ने खुद ही खाप पंचायत का पक्ष रखने का निर्णय लिया । कोर्ट ने इस बात को माना की जब तक सभी पक्षों को नहीं सुना जाता तब तक किसी निर्णय पर नहीं पंहुचा जा सकता है अतः न्यायालय ने सुनवाई तब तक रोक दी जब तक सभी पक्षों नहीं सुना जाता । मधु किश्वर कहती हैं ” अगर न्यायालय खाप पंचायत को प्रतिबंधित करने का निर्णय सुना देता तो ये मुख्यधारा की मीडिया में हेडलाइन होती और टी वी चैनलों पर बड़ी बड़ी बहस होती । जबकि न्यायालय ने निर्णय को रोक दिया है किसी भी अखबार व न्यूज़ चैनल में कोई खबर नहीं थी ” ये एक एकतरफा अभियान था । इंदिरा जयसिंह ने पूरी ताकत से शक्ति वाहिनी का समर्थन किया,खाप पंचायत को प्रतिबंधित करवाने के लिए लेकिन मधु किश्वर की सत्य की ताकत के सामने वो टिक नहीं सकीं । पूरी खाप पंचायतों व जाट समाज को उनका हृदय से आभारी होना चाहिए । किश्वर ने धर्म ध्वजा को झुकने नहीं दिया ।

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