रोनेनबर्ग ने कहा कि हिरोशिमा पर बम गिरने के बाद उन्हें अपने मिशन के महत्व का पता चला था
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर को परमाणु बम बनाने से रोकने के मकसद से
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ब्रिटेन ने 70 साल पहले नार्वे का एक दल भेजा था जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे जाबांज और अहम मिशन को अंजाम दिया था.
उस दल के अगुआ और एकमात्र जीवित सदस्य जोकिम रोनेनबर्ग ने बीते गुरूवार को लंदन पहुंचकर एक युद्ध स्मारक पर पुष्पगुच्छ चढ़ाए.
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नार्वे की सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख जब अपने वीरों को श्रद्धांजलि दे रहे थे तो 93 साल के रोनेनबर्ग चुपचाप इस दृश्य को देख रहे थे.
ये युद्ध स्मारक स्पेशल ऑपरेशंस एक्जक्यूटिव (एसओई) की याद में बनाया गया है जिसे विंस्टन चर्चिल ने
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नाज़ियों के कब्जे वाले यूरोप में गुप्त अभियान चलाने का जिम्मा सौंपा था.
एसओई ने परमाणु बम बनाने की हिटलर के मंसूबों पर पानी फेर दिया था अन्यथा
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द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम कुछ और हो सकता था.
फ़िल्म
एसओई के इस साहसिक कारनामे पर 1965 में द हीरोज़ ऑफ़ टेलीमार्क नाम से एक
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हॉलीवुड फ़िल्म भी बनी थी जिसमें कर्क डगलस मुख्य भूमिका में थे.
नार्वे पर जब नाज़ियों ने कब्जा किया तो रोनेनबर्ग
ब्रिटेन आ गए लेकिन वो स्वदेश लौटकर मातृभूमि को आजाद कराने के लिए लड़ना
चाहते थे.
"अगस्त 1945 में जब हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए गए तब हमें लगा कि हमने जो किया उसका बड़ा महत्व है"
रोनेनबर्ग ने बताया कि उन्हें लंदन में बेकर
स्ट्रीट ट्यूब स्टेशन के ठीक ऊपर बने एसओई के ऑफिस में बुलाया गया और विशेष
अभियान का जिम्मा सौंपा गया. उनसे कहा गया कि छह ऐसे लोगों को खोजिए जो
जल्दी से जल्दी इस मिशन को अंजाम दे सकें.
इस मिशन का मकसद नार्वे के दूरदराज के इलाक़े
वेरमॉक में स्थित दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत संयंत्र को नष्ट करना था.
रोनेनबर्ग ने कहा कि उन्हें कभी नहीं बताया गया कि उन्हें ये जिम्मेदारी
क्यों दी जा रही है.
ब्रितानी ख़ुफ़िया अधिकारियों को शक था कि नाज़ी
उस संयंत्र को इसलिए बचा रहे थे क्योंकि उसमें भारी जल बनाया जा रहा है
जिसे कि परमाणु बम बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.
आशंका
रोनेनबर्ग ने बताया कि इस संयंत्र पर सीधे तौर पर
बमबारी नहीं की जा सकती थी क्योंकि तरल अमोनिया के टैंकों के इसकी चपेट में
आने से भारी संख्या में आम लोगों के हताहत होने की आशंका थी.
इसके लिए स्वालोज नाम से एक छोटी टीम का गठन किया
गया जो अक्टूबर 1942 में अपने मिशन पर रवाना हुई. उनका काम दो ग्लाइडरों
में भरे उन सैनिकों का मार्गदर्शन करना था जो संयंत्र को नष्ट करने जा रहे
थे. लेकिन ये मिशन नाकाम रहा.
एक ग्लाइडर पहाड़ों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया और दूसरा मैदानी इलाक़े में.
सभी सैनिक पकड़े गए और उन्हें मार दिया गया. लेकिन स्वालोज की टीम बच निकलने में सफल रही. वो जंगलों में भटकते रहे.
क्या होता है भारी जल
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भारी जल यानि ड्यूटेरियम
ऑक्साइड में हाइड्रोजन का आइसोटोप होता है. इसमें एक न्यूट्रॉन होता है जो
कि इसके अणु को सामान्य जल की तुलना में भारी बनाता है
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भारी जल परमाणु संयंत्र में
न्यूट्रॉन मॉ़डिरेटर का काम करता है यानि ये न्यूट्रॉन की गति को कम करता
है जिससे नाभिकीय विखंडन रिएक्शन की संभावना बढ़ जाती है
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ये सामान्य जल से ज्यादा कारगर
मॉडिरेटर है क्योंकि ये कम न्यूट्रॉन को सोखता है यानि संवर्धित यूरेनियम
के बजाए प्राकृतिक यूरेनियम को संयंत्र में इस्तेमाल किया जा सकता है
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इससे परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाला प्लूटोनियम बनाना सस्ता और आसान होता है
तीन महीने बाद उन्हें संदेश मिला कि नार्वे के छह
और लोगों को भेजा जा रहा है. इस मिशन को नाम दिया गया था गनरसाइड.
रोनेनबर्ग को इस टीम का मुखिया बनाया गया.
मिशन
16 फरवरी को कड़ाके की सर्दी और घुप्प अंधेरे में
रोनेनबर्ग ने विमान से छलांग लगा दी. स्नो सूट के नीचे उन्होंने ब्रितानी
सैनिकों की पोशाक पहनी ताकि पकड़े जाने की स्थिति में उनके जिंदा रहने की
उम्मीद बनी रहे.
अगर ये पता चल जाता कि वे नार्वे की आज़ादी के
सिपाही हैं तो उन्हें तुरंत मार दिया जाता. लेकिन इसके लिए भी उन्होंने
पूरी तैयारी की थी और वे अपने साथ सायनाइड की गोली ले गए थे.
टीम उत्तरी यूरोप के सबसे घने जंगल में गलत जगह पर
उतरी. ये इलाक़ा पूर्व नियोजित स्थान से कई मील दूर था और उन्हें इंतजार
कर रही टीम तक पहुंचने में पांच दिन लग गए.
आखिरकार वे रात के समय संयंत्र की तरफ बढ़े.
संयंत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता था और इसके लिए नाले के ऊपर बने एक पुल
को पार करना था. वहां कड़ा पहरा था. नाला बेहद ख़तरनाक था लेकिन टीम के
अधिकांश सदस्यों ने इसे पार करने का विकल्प चुना.
वे एक रेलवे लाइन के साथ-साथ चलते हुए संयंत्र तक
पहुंचे और उसके अंदर घुसने के लिए वायर कटर का इस्तेमाल किया. भारी जल
संयंत्र के दरवाजे बंद थे इसलिए रोनेनबर्ग एक सुरंग के रास्ते रेंगते हुए
अंदर पहुंचे.
महत्व
अपने साथियो की याद में आयोजित समारोह में जोकिम रोनेनबर्ग.
उन्होंने कहा, “मुझे लगा कि बाकी लोग मेरे
पीछे-पीछे आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और केवल एक सदस्य ही मेरे पीछे आया.
दूसरे लोग सुरंग में आने का रास्ता नहीं खोज सके. हमने सोचा कि हम दोनों को
अपना काम शुरू कर देना चाहिए.”
दो और लोग खिड़की तोड़कर अंदर दाखिल हो गए.
उन्होंने संयंत्र को उड़ाने के लिए वहां विस्फोटक लगाया लेकिन उसकी आवाज़
वैसी नहीं हुई जैसी कि उनको उम्मीद थी. लेकिन वहां से निकलने की कहानी इस
मिशन का सबसे दिलचस्प पहलू है.
इस टीम मे उत्तरी नार्वे का 200 मील का इलाक़ा
स्की करते हुए पार किया. उनके पीछे जर्मन सेना की एक पूरी डिवीजन लगी थी और
सिर पर हवाई जहाज मंडरा रहे थे. लेकिन टीम बच निकलने में सफल रही.
संयंत्र कुछ महीनों तक बंद रहा और बाद में अमरीकी
बमवर्षकों ने इसे तबाह कर दिया. इस संयंत्र से भारी जल ले जा रही एक नौका
को भी डुबो दिया गया.
ये पूछने पर कि उन्हें अपने मिशन के महत्व का एहसास कब हुआ, रोनेनबर्ग ने कहा, “अगस्त 1945 में जब
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हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए गए तब हमें लगा कि हमने जो किया उसका बड़ा महत्व है.”