सत्ता के लिए अब ‘खुलेआम’खेल कर रहा है संघ!
Wed, Oct 22, 2014
सियासत में जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुद को राष्ट्रवादी सांस्कृतिक संगठन बताता रहा है और कहता रहा है कि राजनीति से उसका वास्ता नहीं है. लेकिन पिछले कुछ समय से संघ के सभी वरिष्ठ नेता जिस तरह से ‘खुलेआम’सत्ता में हिस्सेदार बन रहे हैं तो अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या दस जनपथ बन रहा है नागपुर संघ मुख्यालय?
बीजेपी नेताओं के साथ लोकसभा चुनाव के दौरान से लेकर अभी तक संघ और बीजेपी के नेता लगातार बैठकें कर रहे हैं. इससे संघ की छवि सांस्कृतिक संगठन की नहीं रहती जा रही है. यह पहले भी कहा जाता था कि बीजेपी का रिमोट कंट्रोल नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में है और बीजेपी वहीं से नियंत्रित होती है. यह बात सही भी थी लेकिन आज जैसी स्थिति नहीं देखने को मिलती थी जिसमें सब ‘खुलेआम’ हो रहा हो.
हरियाणा के मुख्यमंत्री बनने जा रहे मनोहर लाल खट्टर पूर्ण कालिक प्रचारक रहे हैं. हिमाचल में संघ के प्रचारक रहे मनोहर लाल खट्टर को राजनीति में नरेंद्र मोदी ही सियासत में लेकर आए. सियासत में इंटरेस्ट नहीं रखने वाले खट्टर अब जनसमर्थन के बल पर नहीं संघ के निर्देश पर हरियाणा के सीएम बनने जा रहे हैं. गौर करने वाली
बात यह है कि हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों जगहों पर बीजेपी ने कोई चेहरा सामने नहीं किया था. आपको बता दें कि हरियाणा में चुनाव के दौरान सर्वे का आधार माना जाए तो कैप्टन अभिमन्यू सबसे लोकप्रिय थे लेकिन सीएम का ताज संघ के निर्देश में तय हुआ.
अब महाराष्ट्र की बात करें तो यहां भी नितिन गडकरी का नाम सबसे आगे चल रहा है. नितिन गडकरी और संघ का रिश्ता सर्वविदित है. गडकरी बीजेपी से ज्यादा संघ के निर्देशों का पालन करते हैं. यहां भी आपको याद करा दें कि नितिन गडकरी सीएम की रेस से खुद का अलग बताते थे लेकिन संघ के निर्देश के बाद अब सीएम की रेस में सबसे आगे हैं. केंद्र में नरेंद्र महाराष्ट्र में देवेंद्र का चर्चा जोरों पर था लेकिन संघ सत्ता की कमान अपने हाथ में रखने के लिए नितिन गडकरी को सामने ला दिया है.
आपको याद हो तो मोहन भागवत ने संघ प्रमुख बनने के बाद नितिन गडकरी को पार्टी की कमान उस समय सौंपी जब उनके नेतृत्व में महाराष्ट्र में पार्टी की तत्काल हार हुई थी. गडकरी के माध्यम से भागवत ही बीजेपी चला रहे थे लेकिन गडकरी के विवादों में पड़ने के बाद उनकी अध्यक्ष पद पर दोबारा ताजपोशी नहीं हो पाई. इसे संघ की हार माना गया लेकिन ऐसा था नहीं. संघ ने उन राजनाथ सिंह को फिर अध्यक्ष बनाया जिनके बारे में उसका अनुभव रहा कि वह नागपुर के आदेशों की तामील में आडवाणी के विरोध की भी परवाह नहीं करते. ऐसा हुआ भी. आडवाणी के भारी विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी को बीजेपी की चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया गया. केंद्र में मोदी सरकार के गठन के बाद राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की नजर अब जम्मू कश्मीर पर टिक गयी है. संघ का शीर्ष नेतृत्व कश्मीर में बीजेपी को सत्ता पर काबिज देखना चाहता है और अपनी इस मंशा की पूर्ति के लिए संघ कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए जमीन तैयार करने में जुटेगा. अब संघ का यह रूप सबके सामने है. संघ अब अपने हाथ में सत्ता रखना चाह रहा है. अटल बिहारी वाजपेई के दौर में संघ और बीजेपी के बीच अक्सर किचकिच होती रहती थी. इसे मोदी राज में संघ नहीं होने देना चाह रहा है.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दस जनपथ के रिमोट से चलने वाले प्रधानमंत्री का तमगा बीजेपी और संघ के नेता अक्सर देते थे. लेकिन अटल सरकार से मोदी सरकार की तुलना करें तो साफ पता चलता है कि अब संघ के रिमोट से मोदी सरकार चल रही है. मनमोहन सिंह सरकार दस जनपथ के रिमोट से चलता था तो अब मोदी सरकार संघ के रिमोट से चल रहा है. लोकतंत्र में युवाओं ने देश की कमान मोदी को सौंपी है. भरोसा मोदी के वायदों पर है लेकिन यूं ही संघ बीजेपी को चलाता रहा तो मोदी सरकार को संघ की कठपुतली सरकार कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा.
संघ, मोदी और देश दुनिया में फैली उनकी टीम के लिए बेशक अच्छे दिन आ गए हैं. लेकिन क्या यही बात आम लोगों के बारे में भी कही जा सकती है और उन लोगों के लिए भी, जो संघ की वैचारिकी और मोदी की कार्यशैली के धुरविरोधी रहे हैं. क्या जनादेश की आड़ में उन्हें चुप रहने की हिदायत दी जा रही है या उनका बोरिया बिस्तर बांधा जाएगा? मोदी को अब युवाओं को भरोसा देना होगा कि यह सरकार संघ की है या उनकी खुद की ?
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