शनिवार, 6 सितंबर 2014

आत्महत्या : एक अनसुलझा सवाल


आत्महत्या : एक अनसुलझा सवाल

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में हर चौथे मिनट में एक खुदकुशी की घटना घटती है । रोजाना ३४८ लोग आत्महत्या करते हैं । आत्महत्या के आकड़े एक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य बनाये देश की वर्तमान संरचनाओं से उत्पन्न विषम परिस्थितियों के ज्वलंत उदाहरण पेश करते हैं ।  अगर हम आत्महत्या करने वाले लोगों का वर्गीकरण करके देखेंतोविभिन्न वर्ग और आयु के लोगों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के कारणभी भिन्न-भिन्न हैं । किसान कर्ज के बोझ से पल-पल की घुटन से मुक्त होने के लिए आत्महत्या करते हैं, तो मजदूर भुखमरी, बीमारी आदि कारणों से । किसानों की आत्महत्या का सही आंकड़ा निकालना काफी मुश्किल है, क्योंकि सरकार द्वारा किया गया किसानों का श्रेणीकरण काफी दोषपूर्ण है ।
पहली त्रुटि यह है कि केवल भूमिके पंजीकृत स्वामीत्व वालों को ही किसान का दर्जा दिया गया है, जबकि वर्तमान में कृषिकार्य करने वाले ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है, जो जमीन मालिक से जमीन पैदावार में आधे पर या अन्य रूपों में किराये पर लेकर खेतीबारी करते हैं और उनका पूरा परिवार उसी पर निर्भर होता है । किरायेदार कृषक सरकार द्वारा कृषक घोषित न होने के कारणसूखा या अन्य किसी भी प्रकार से फसल को हुई क्षति के दौरान दोहरी मार झेलते हैं । एक तरफउन्हें जमीन मालिक को जमीन का किराया देना होता है, तो दूसरी तरफ उन्हें सरकार की ओर से दी जाने वाली सूखा राहत जैसी अन्य सुविधायें भी नहीं मिलती ।
किसानों के श्रेणीकरण की दूसरी खामी कि पंजीकृत भू-स्वामी के वयस्क पुत्रों को भी इस श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है । इस हालत में तो कृषक निर्धारण की पूरी प्रक्रिया ही हास्यास्पद बन जाती है कि अपने घर की खेती करने वालों को भी किसान नहीं माना जा रहा । कृषक निर्धारण के समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए था कि भारत में एक सामाजिक-कानूनी प्रथा के तहत पिता के निधन के बाद ही जमीन के मालिकाना हक का स्थानांतरण पुत्र के नाम होता आया है।ऐसे में सरकार द्वारा किसानों की आत्महत्या की घोषित संख्या को वास्तविक कैसे माना जा सकता है?  किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं का अध्ययन करें तो हमें इसका प्रमुख कारण कृषिका अलाभकारी होना ही मिलता है । बिजली, खाद और बीज की महंगाई की तुलना में फसलों की कीमतें नहीं बढ़ीं। सरकार किसानों की फसल खरीदने के लिए जो मूल्य निर्धारित करती है , उसका भी लाभ बिचौलिये उठा लेते हैं । इस तरह कृषि लागत के अनुपात में तैयार फसल के सीमित कीमतों के सहारे पूरे परिवार का भरण-पोषण करना दुभर होता गया। फलत: किसानों ने संकटभरी जिंदगी से छुटकारा पाने खुदकुशी का रास्ता चुना।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट में बताया गया है कि आत्महत्या करने वालों में ३४.५ प्रतिशत की उम्र १५ से २९ वर्ष के बीच है। रिपोर्ट के अनुसार हर चार मिनट में हो रही एक आत्महत्या के क्रम में हर तीन आत्महत्या करने वालों में से एक युवा होता है। यानी हर १२ मिनट में एक युवा अपनी जीवनलीला खत्म कर रहा है। आज का युवा जल्द से जल्द ऐशो आराम की सारी चीजें हासिल करने की आकांक्षा का बोझ हमेशा अपने सिर पर रखे जी रहा है। वह निरंतर दबाव के कारण सफलता में विलंब या असफलता की आशंका से अवसाद का शिकार हो रहा है। जिसकी परिणति आत्महत्या के रुप में हो रही है। प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध भी आत्महत्या के प्रमुख कारण रहे हैं। ये दोनों विषय सामाजिक परंपरा और संस्कार से जुड़े हुए हैं। प्रेम प्रसंग में आत्महत्याओं के मुख्यत: दो ही कारण होते हैं।
पहला प्यार मेंधोखा और दूसरा पारिवारिक दबाव। भारत में आज भी मध्यवर्ग और निम्न वर्ग में अंतरजातीय विवाह को खुशी से स्वीकार नहीं किया जाता है। ऐसे में दो अंतरजातीय प्रेमियों को परिवार से बगावत या अपने सपनों का गला घोंट परिजनों के समक्ष समर्पण या फिर खुदकुशी में से एक को चुनना पड़ता है। अवैध संबंधों के बढ़ते मामलों को हम आधुनिक भौतिक सुविधाओं से युक्त उन्मुक्त जीवन शैली की देन मान सकते हैं, जिसने सबसे ज्यादा कुठाराघात संस्कारिक आदर्शों पर की है। २० वीं सदी के अंतिम दशक में आए वैश्वीकरण ने सुरक्षित तरीके से आजीविका चलाने के आदि भारतीयों को व्यापार की एक तेज आँधी में झोंक दिया। सरकार ने बाजार में ज्यादा से ज्यादा रुपया दौड़ाने के लिए बैंको में जमा धन पर ब्याज कम कर दिया। एक तरह से इसे लोगों को व्यापारी बनाने का सरकार का अप्रत्यक्ष संकेत कहा जा सकता है। इसका परिणाम यह हुआ कि एक ढर्रे पर अनुशासनात्मक रुप से धीमी गति से चल रही ङ्क्षजदगी अचानक प्रतिस्पर्धा की तेज दौड़ में बने रहने की जद्दोजहद को विवश हो गई।
भागमभाग की ङ्क्षजदगी में व्यक्ति आर्थिक रुप से तो मजबूत हुआ, लेकिन सामाजिक रुप से दिन पर दिन कमजोर होता गया। संयुक्त परिवार काफी तेजी से टूटने लगे। निजी सुख की अभिलाषा ने व्यक्ति को मानसिक रुप से काफी संकीर्ण बना दिया। लोगों की सोच पति-पत्नी और खुद के बच्चों तक सीमित रहने लगी। तेज रफ्तार जिंदगी में आगे निकलने की होड़ में व्यक्ति अपने को इतना अधिक व्यस्त कर लिया कि परिवार काफी पीछे छूट गया । एक तरफ बच्चे पारिवारिक वात्सल्य से महरूम हुए, तो दूसरी तरफ किताबों और अभिभावकों के बढ़ते बोझ ढोने को अभिशप्त । इसी का दुश्परिणाम है कि अब ९-१० साल के बच्चों द्वारा भी आत्महत्या करने के  मामले प्रकाश में आ रहे हैं।
आत्महत्या का मुद्दा भावना से जुड़ा प्रश्र है । कोई भी व्यक्ति खुदकुशी का निर्णय तभी लेता है, जब वह भावनात्मक रूप से अपने को काफी असहाय महसूस करता है । भारत में विकराल रूप लेती इस समस्या से निजात पाने के लिए सबसे अहम भूमिका परिवार को ही निभानी पड़ेगी । पारिवारिक सदस्यों में परस्पर का भावनात्मक सहयोग और सहनशीलता जैसे गुणों के विकास से  ही आत्महत्या की समस्या से उबरा जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

 रानी फाॅल / रानी जलप्रपात यह झारखण्ड राज्य के प्रमुख मनमोहन जलप्रपात में से एक है यहाँ पर आप अपनी फैमली के साथ आ सकते है आपको यहां पर हर प्...