मंगलवार, 2 सितंबर 2014

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4.95 लाख करोड़ कहां गए, 'बैड लोन' या महाघोटाला?

नई दिल्ली. सोचिए कि आम लोगों से कुछ हज़ार या कुछ लाख का लोन वसूलने के लिए ज़मीन-आसमान एक कर देने वाले देश के सरकारी बैंक आखिर औद्योगिक घरानों को हज़ारों करोड़ का लोन देकर आसानी से भूल कैसे जाते हैं! देश के जितने भी बड़े घोटाले आपके सामने हैं, उन सारे बड़े घोटालों का सुपर बॉस अब सामने आ गया है. देश का ये महाघोटाला है 4 लाख 95 हज़ार करोड़ रुपये का. 
जी हां, 4 लाख 95 हज़ार करोड़ रुपये का ये महाघोटाला सरेआम और सरकार की जानकारी में हुआ. इस महाघोटाले के किरदार हैं रसूखदार औद्योगिक घराने, देश के सरकारी बैंक और सत्ता के गलियारों में घूमने और ऊंची पहुंच रखने वाले लोग, जिन्होंने इस घोटाले को नाम दे रखा है बैड लोन यानी बैंकों का वो कर्ज़, जिसकी वसूली अब मुमकिन नहीं है. सरकारी बैंकों अपने बैड लोन को नॉन परफॉर्मिंग असेट्स यानी एनपीए के परदे में छिपाकर रखते हैं. और इसी एनपीए के परदे में चल रहा है कई बड़े औद्योगिक घरानों को मोटा लोन देने और फिर उसे हड़प जाने का खेल.
चलिए...थोड़ा और आसान भाषा में समझाते हैं. देश के तमाम औद्योगिक घराने नई कंपनी खोलते हैं और फिर अपनी साख दिखाकर नई कंपनी के नाम पर करोड़ों-अरबों का लोन लेते हैं. अगर नई कंपनी रंग नहीं जमा पाती, तो फिर उस पर ताला जड़ दिया जाता है और बैंकों को अंगूठा दिखा दिया जाता है कि भइया, कंपनी तो हो गई ठन-ठन गोपाल, अब लोन की वसूली भूल ही जाओ.
हैरानी वाली बात ये है कि आम आदमी से कुछ हज़ार या कुछ लाख रुपये के लोन की रिकवरी के लिए ज़मीन-आसमान एक कर देने वाले सरकारी बैंक बड़ी आसानी से इन कंपनियों की बात मान लेते हैं और कई बार तो लोन की रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर उन्हीं डिफॉल्टर कंपनियों को फिर से करोड़ों-अरबों का लोन दे देते हैं. अब औद्योगिक घरानों के बैड लोन और रिस्ट्रक्चरिंग के इस घालमेल में कितने बड़े पैमाने पर लूट चल रही है, इसका थोड़ा नमूना भी जान लीजिए.
मार्च 2008 में सरकारी बैंकों पर बैड लोन का बोझ सिर्फ 39 हज़ार करोड़ था, जो मार्च 2013 में 1 लाख 64 हज़ार करोड़ तक पहुंच गया. बैंकों के बड़े डिफॉल्टरों की बात करें तो बैड लोन में 43.5 फीसदी हिस्सेदारी सिर्फ 30 बड़े बकाएदारों की है. 31 मार्च 2013 तक देश की दस बड़ी कंपनियों ने ही बैड लोन के नाम पर सरकारी बैंकों के 18 हज़ार 35 करोड़ रुपये हज़म कर डाले थे. अगर आप सोच रहे हैं कि डिफॉल्टर होने वाली कंपनियों के कर्ता-धर्ता तो दिवालिया होकर भीख मांग रहे होंगे तो ऐसा नहीं है. डिफॉल्टर कंपनियों के मालिकों का कुछ नहीं बिगड़ा. वो आज भी अपनी तमाम दूसरी कंपनियों के मुनाफे पर मौज कर रहे हैं.
बर्बाद हुए तो इन कंपनियों में काम करने वाले आम लोग और बैंकों ने भी बड़ी मछलियों को बैड लोन का चारा खिलाने के चक्कर में ब्याज़ दरें बढ़ाकर आम आदमी को ही बेचारा किया. 2006 तक बैंकों को बैड लोन से जितना चूना लगा था, उसकी रिकवरी तो हुई नहीं, उल्टे 2006 से 2013 के बीच यानी सात साल में सरकारी बैंकों ने 4 लाख 95 हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज को बैड लोन के खाते यानी डुबंत खाते में डाल दिया. मार्च 2013 तक सरकारी बैंकों के बैड लोन का आंकड़ा 1 लाख 64 हज़ार करोड़ था. इस बैड लोन की रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर सरकारी बैंकों ने डिफॉल्टरों को ही 3 लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये और बांट दिए. ये कर्ज़ ये कहकर दिए गए कि ये गुड लोन है यानी पैसा ब्याज़ समेत वापस आ जाएगा.
बैंकों के बड़े डिफॉल्टर्स देश के आधा दर्ज़न सरकारी बैंक विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस को दिया अरबों रुपये का कर्ज़ आज तक वसूल नहीं पाई हैं. फिलहाल किंगफिशर एयरलाइंस को ताला लगे एक साल से ज्यादा हो चुका है और तमाम नोटिसों के बावजूद बैंक किंगफिशर एयरलाइंस से 2673 करोड़ रुपये का बकाया नहीं वसूल पाए. अब ये रकम बैंकों के बही-खाते में बैड लोन के नाम पर दर्ज़ हो चुकी है.
देश के सरकारी बैंकों का दूसरा सबसे बड़ा बैड लोन गुजरात की विनसम डायमंड्स एंड ज्वैलरी लिमिटेड पर है. 1986 में 150 करोड़ रुपये के अधिकृत पूंजी के साथ रजिस्टर्ड हुई विनसम डायमंड एंड ज्वैलरी लिमिटेड पर सरकारी बैंकों के 2660 करोड़ रुपये बकाया हैं. गुजरात की ही एक और ज्वैलरी कंपनी है, जिसका नाम है फॉरएवर प्रेसियस ज्वैलरी एंड डायमंड्स लिमिटेड. ये कंपनी 1996 में रजिस्टर्ड हुई और इस कंपनी में भी हरीशभाई मेहता और सत्यप्रकाश तंवर डायरेक्टर हैं. फॉरएवर ज्वैलरी एंड डायमंड्स लिमिटेड को भी बैंकों ने दिल खोलकर लोन दिया और अब 1254 करोड़ रुपये वसूलने में बैंकों को पसीने छूट रहे हैं.
पश्चिमी भारत का एक बड़ा औद्योगिक समूह है संदेसारा ग्रुप. इस ग्रुप की दो कंपनियां- स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड और स्टर्लिंग ऑयल रिसोर्सेज का नाम देश के टॉप टेन लोन डिफॉल्टर्स की लिस्ट में शामिल हैं. 26 करोड़ 78 लाख के पेडअप कैपिटल के साथ 1985 में रजिस्टर्ड हुई स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड कंपनी पर सरकारी बैंकों का 1732 करोड़ रुपये का कर्ज़ा है, जबकि 2006 में शुरू हुई स्टर्लिंग ऑयल रिसोर्सेज कंपनी पर 1197 करोड़ का कर्ज़ चढ़ा हुआ है.
देश के टॉप टेन बैंक डिफॉल्टर्स में तीसरे नंबर पर है गुजरात की इलेक्ट्रोथर्म इंडिया लिमिटेड. 1985 में रजिस्टर्ड इलेक्ट्रोथर्म इंडिया लिमिटेड पर सरकारी बैंकों का 2211 करोड़ रुपये का कर्ज़ है, जिसे ये कंपनी चुकाने में नाकाम रही. देश में कभी टेक्सटाइल किंग कहे जाने वाले एस कुमार्स नेशनवाइड लिमिटेड का नाम टॉप टेन बैंक डिफॉल्टर्स की लिस्ट में छठे नंबर पर हैं. एस कुमार्स नेशनवाइड लिमिटेड पर बैंकों का 1692 करोड़ का कर्ज़ है. सूर्या विनायक इंडस्ट्रीज़ का नाम सातवें बड़े डिफॉल्टर के तौर पर दर्ज़ है. फ्लोरियाना ग्रुप की सूर्या विनायक इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड पर 1446 करोड़ रुपये का कर्ज़ है, जो अब बैंकों के लिए बैड लोन बन चुका है.
बैंकों को अपने जिन बड़े डिफॉल्टर्स के चलते अरबों की चपत लगी है, उनमें कॉर्पोरेट इस्पात अलॉयज़ और ज़ूम डेवलपर्स का नाम भी शामिल है. कॉर्पोरेट इस्पात अलॉयज़ के डायरेक्टर्स में विद्यासागर बनारसी दास गर्ग, रविंद्र जायसवाल, मनोज जायसवाल, अभिषेक जायसवाल और प्रकाश जायसवाल के नाम शामिल हैं. कॉर्पोरेट इस्पात अलॉयज़ ने 1360 करोड़ का कर्ज़ नहीं चुकाया है, जबकि ज़ूम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने बैंकों के 1810 करोड़ रुपये हड़प रखे हैं.
गिरिजेश मिश्रा इंडिया न्यूज़ में एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं.

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