चिनकोरो वि की प्राचीनतम ममी
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दक्षिण अमेरिका के देश चिली की ‘एरिका वाटर कंपनी’ को समुद्र तट के किनारे रेतीले स्थान एल मोरा में गड्ढे खोदकर मोटी पाइप बिछाने का काम मिला हुआ था। तभी एक मजदूर लगभग चीख उठा। सभी उसके पास आए तो जो कुछ उन्होंने देखा, वह भयभीत कर देने वाला था। करीब तीन फुट गहरे गड्ढे में सूखा हाथ झांक रहा था। मजदूरों को लगा कि यह स्थान जरूर कोई पुराना कब्रगाह रहा होगा और यहां पर खुदाई कर उन्होंने महापाप किया है। यहां पर तैनात सुपरवाइजर ने जब मिट्टी हटवाकर पूरे शव पर नजर डाली तो वह भी दंग रह गया क्योंकि शव कंकाल के रूप में था। उस पर मिट्टी, राख व रंग की परत चढ़ाई गई थी। सुपर वाइजर ‘चिनकोरो ममी’ क्योंकि इसी स्थान पर ये मिली थीं। दक्षिण अमेरिकी देश चिली व पेरू के समुद्र तट के किनारे बसी सभ्यताएं मुख्य रूप से मछली पकड़ने का धंधा करती थीं। इन्हीं में एक सभ्यता थी चिनकोरो। ये धार्मिक कारणों से शव को ममी का रूप देते थे। इनका मानना था कि मृतक की आत्मा एक बार फिर शरीर में प्रवे श करती है। इस सभ्यता में हर वर्ग, चाहे वे अमीर हों या गरीब, सभी ममी बनवाते थे। रंग को लगा कि जरूर यह किसी प्राचीन सभ्यता में शवों को दफनाने का तरीका रहा होगा। उसने तु रं त ही काम रुकवा दिया और शहर के पुरातत्व विभाग से संपर्क किया। यहां के वि विद्यालय के पु रातत्व संग्रहालय के अधिकारियों को लगा कि जरूर इन मजदूरों ने हजार साल पुरानी ममी देखी होगी। लेकिन जब इन्होंने इस दफन शव को देखा तो वे तुरंत समझ गए कि यह किसी प्राचीन सभ्यता द्वारा बनाई गई ममी है। ममी बनाना प्राचीन मिस्र में हुआ करता था। अधिकारियों ने देखा कि कंकाल को मिट्टी, राख आदि से लेपकर शरीर का रूप दिया गया है। हां, कलाई और टखने के नीचे का हिस्सा कंकाल न होकर मृत व्यक्ति के सूखे हुए अंग ही थे। इन अधिकारियों ने सिर्फ 45 वर्गफुट क्षेत्रफल से 96 शव निकाले। सभी को ममी ममी बनाने का तरीका भी काफी लंबा था। पहले सहायक शव से आंतें, हृदय, फेफड़े, गुर्दे, यकृत आदि निकाल कर अलग रख देते। आंत आदि निकालने से पहले शव के सिर को काटकर धड़ से अलग कर देता। फिर पत्थर के चाकू से शव की खाल उतारी जाती। खाल को उतारने के बाद गोल-गोल लपेट दिया जाता। इसे फिर समुद्र के नमकीन पानी में डुबो दिया जाता ताकि वह नरम रहे। हाथों व पांवों (टखने से नीचे) की खाल नहीं उतारी जाती। हाथ व पांव भी सिर की तरह की चाकू से काटकर अलग कर दिये जाते। हड्डियों से मांस हटाने का काम भी चाकुओं की मदद से होता, पर कई बार खाल उतरे शव को गड्ढे में रख देते ताकि पक्षी व कीड़े मांस को खा डालें। खोपड़ी के नीचे स्थित छिद्र महारंध्र (फोरामेन मैगनम) के जरिए पूरा मस्तिष्क बाहर निकाल लेते थे। इसके बाद दोनों आंखें भी निकाल ली जाती थीं। यह नहीं मालूम हुआ कि निकाला गया मस्तिष्क, आंखें, आंतें वगैरह शव के साथ दफनाई जाती या उन्हें फेंक दिया जाता। इसके बाद ममी बनाने का दूसरा चरण शुरू होता। कंकाल मात्र रह गए शव को फिर शरीर का रूप दिया जाता। सबसे पहले खाली हो चुकी खोपड़ी को भूसे या रेत से भरा जाता। टोरटोरा नामक पतवार को पतली सींकों से जबड़े का निचला हिस्सा ऊपर से बांधा जाता। टांगों को शरीर से जोड़ने का काम बांस की खपच्चियों से होता। पेट व छाती में भी घास, राख और पानी को मिलाकर बनाई लुगदी भर दी जाती। इसके बाद पूरे शरीर पर हल्के धूसर रंग की लुगदी की परत चढ़ाई जाती। इसी से शव के प्रजनन अंग भी बनाए जाते। लुगदी से पूरा चेहरा बनाया जाता। कुछ ममियों के होंठ न बनाकर सिर्फ गोल छिद्र ही बना दिया जाता। हाथ व पांव पर लुगदी चढ़ाने से पहले इन पर लंबी घास लपेटी जाती, फिर इस पर लुगदी लगाकर हाथ व पांव का रूप दिया जाता। इस प्रकार कंकाल शरीर का रूप ले लेता। लुगदी लगा देने के बाद पूरे शरीर पर मृतक या समुद्री शेर (सी-लायन) की खाल के टुकड़े चिपका दिए जाते। इसके बाद ही पूरे शरीर पर मैगनीज खनिज से बना काला पेंट लगाया जाता, जिससे पूरी ममी काले रंग की नजर आने लगती। पांच से तीन हजार ईसा पूर्व बना कर दफनाया गया था। सभी को पीठ के बल ही लिटाया गया था। कुछ के पांवों में लकड़ी की खपच्चियां भी बंधी हुई थीं। यहां से मछली मारने वाले भाले (हारपून), सीपी से बने मछली पकड़ने वाले कांटे, हड्डी के चाकू और जाल बनाने वाले उपकरण भी मिले। जब सभी शवों की कार्बन डेटिंग की गई तो पता चला कि ये ममीज 7,000 साल पुरानी थीं यानी मिस्र में मिली प्राचीनतम ममियों से भी 2,400 साल पुरानी। इन ममियों को नाम दिया गया तक ऐसी ही काली ममियां बनती रहीं पर इसके बाद ममी बनाने का तरीका सरल कर दिया गया। अब शरीर के भीतरी अंग निकाल मिट्टी भर दी जाती। शरीर पर राख की लुगदी लगा उसे लाल रंग से रंगा जाता। कई जगहों पर बच्चों और वयस्कों की ममियां एक साथ मिली हैं, जो दिखाता है कि पूरे परिवार के सभी सदस्यों के लिए एक ही स्थान निर्धारित होगा। दफनाई गई ममी के ऊपर बड़े पत्थर रख दिए जाते। पुरातत्वविदों का कहना है कि चिनकोरो उन्हीं लोगों को कहना चाहिए, जो इस तरह से ममी बनाते थे। पर कई पुरातत्वविदों का कहना है कि उन लोगों को भी चिनकोरो कहते हैं, जो पहले से भी यहां बसे थे। पेरू से आने वाली ठंडी हवाओं के कारण ही एरिका (चिली) के निकट का समुद्री तट जीवों, पक्षियों और समुद्री घास से भरा रहता है। भोजन व पानी की वजह से करीब 9,000 वर्ष पूर्व चिनकोरो लोगों के पूर्वज संभवत: एंडीज पर्वत से उतरकर यहां बसने आए थे। पुरातत्वविदों का कहना है कि चिनकोरों लोग आत्मा के अस्तित्व को मानते थे। यही वजह थी कि वे शव को सुरक्षित रखते थे ताकि आत्मा शरीर में लौट सके। यह जरूर था कि 1500 ईसा पूर्व के आसपास ममी बनाने की प्रथा एकदम समाप्त हो गई। इन ममियों को दुनिया की प्राचीनतम व बेहद कठिनाई से बनाई गई ममियां कहा गया है पर पेरू की सरकार के पास इतना पैसा नहीं कि इन्हें सुरक्षित रख सके व डर है कि वि की यह धरोहर कहीं नष्ट न हो जाए। इन्दिरा भोजन व पानी की वजह से करीब 9000 वर्ष पूर्व चिनकोरों के पूर्वज संभवत: एंडीज पर्वत से उतरकर यहां बसने आए थे। पुरातत्वविदों का कहना है कि ये आत्मा के अस्तित्व को मानते थे। यही वजह थी कि वे शव को सुरक्षित रखते थे ताकि आत्मा शरीर में लौट सके। |
सोमवार, 3 सितंबर 2012
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