गुरुवार, 27 सितंबर 2012
रविवार, 23 सितंबर 2012
गुलाबी नगरी का जंतर मंतर
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सपना |
अल्फ्रेड नोबल
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प्र. विनीत |
करेंसी का राेचक सफर
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ब्रिटेन का हाईगेट कब्रिस्तान
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ब्रिटेन सिटी के भीतर के हाईगेट कब्रिस्तान ज्यादातर निजी गिरजाघरों से संबद्ध लोगों के थे लेकिन ये रोज-रोज आने वाले शवों को दफनाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं दे पाते थे। साथ ही, स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदेह माने गये। इतना ही नहीं, मृत लोगों के साथ हमेशा सम्मानजनक बर्ताव नहीं होने की शिकायतें भी थीं ब्रिटेन के उत्तर में स्थित हाईगेट कब्रिस्तान की कहानी किसी हॉरर मूवी से कम नहीं है। स्थानीय लोग बताते हैं कि दिन में बेजान दिखने वाले इस कब्रिस्तान में रात के सन्नाटे में कब्रों में दफन लोग यहां बने दो टावरों के बीच आते-जाते हैं। इस कब्रिस्तान को ब्रिटे न का सबसे भुतहा क्षेत्र माना जाता है । यह दुनिया के टॉप टेन हॉन्टेड प्लेस में भी शुमार है। दिन की रोशनी में हाईगेट कब्रिस्तान आम लोगों को बेहद खूबसूरत जगह लगती है। हाईगेट को गोथिक शिल्पकला का बेजोड़ नमूना माना जाता है। ब्रिटेन पहुंचने वाले पर्यटकों को जो गाइडबुक मिलती है, उसमें भी इसे मनमोहक जगहों की सूची में दिखाया गया है। धरोहरों को बताने वाली पुस्तिका में तो इसे ग्रेड- वन की श्रेणी में रखा गया है। हाईगेट कब्रिस्तान के दो हिस्से हैं- पूर्वी और पश्चिमी। समूचे कब्रिस्तान में करीब एक लाख सत्तर हजार कब्रें हैं, इनमें कई प्रतिष्ठित लोगों की कब्रें भी हैं। साथ ही कुछ ऐसे लोगों की कब्रें भी हैं, जिनकी हत्या के बाद सबूत छिपाने के लिए उन्हें यहां दफन कर दिया गया। हाईगेट कब्रिस्तान लंदन के कैम्डेन, हैरिंगे और इस्लिंगटन इलाके में पड़ता है। इसका सबसे नजदीकी परिवहन लिंक आर्कवे टय़ूब स्टेशन है। कब्रिस्तान के इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि 1839 में इसकी योजना बनी और तभी से काम शुरू भी हुआ। योजना के मुताबिक, सात बड़े और आधुनिक कब्रिस्तान बनने थे। इसे ‘मैग्निफिशेंट सेवन’ नाम दिया गया था। तब यह समूचा इलाका लंदन के बाहरी छोर पर था। शहर के भीतर मौजूद कब्रिस्तान ज्यादातर निजी गिरजाघरों के संचालकों के अपने थे लेकिन ये रोज-रोज आने वाले शवों को दफनाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं दे सकते थे। शवों को जल्दी दफन न किया जाय, तो वे सेहत के लिए भी हानिकर साबित होते थे। इतना ही नहीं, मृत लोगों के साथ कभी-कभी असम्मानजनक बर्ताव भी होता था। कब्रिस्तान में अंकित नक्काशी में शिल्पकार उद्यमी स्टेफन गियरी का योगदान है। बीस मई, 1839 को हाईगेट कब्रिस्तान लंदन के लॉर्ड बिशप चार्ल्स ब्लोमफील्ड ने ईसाई संत सेंट जेन्स को समर्पित किया। इसकी 15 एकड़ जमीन को र्चच ऑफ इंग्लैंड के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रखा गया और दो एकड़ दूसरे मतावलम्बियों के लिए। यहां शवों को दफन करने का अधिकार एक निश्चित अवधि के लिए एक र्चच को दिया गया। लिटिल विन्डमिल स्ट्रीट, सोहो की एलिजाबेथ जैक्सन पहली शख्सियत थीं जिन्हें यहां 26 मई, 1839 में सबसे पहले दफन किया गया। दूसरे मैग्नीफिशेंट सेवन की तरह हाईगेट भी मृत लोगों को दफनाने की पसंदीदा जगह थी। यह कब्रिस्तान खूबसूरती के कारण प्रशंसनीय लगता है। साथ ही, दर्शनीय भी। धनी लोगों की मौत के बाद उन्हें शाही अंदाज में दफनाने के बाद यहां गोथिक गुंबद और दूसरे निर्माण करवाये गये। कब्रिस्तान छोटी पहाड़ियों पर है और इसकी ढलान दक्षिण की ओर है। इसके बगल में वाटरलो पार्क है। 1854 में पूर्व का समूचा असली हिस्सा स्वैन्स लेन के पार इसी कब्रिस्तान तक है। आज भी इसके पश्चिमी हिस्से पर शवों को दफनाने का काम होता है। कब्रिस्तान जंगली सुनसान क्षेत्र नहीं है। कब्रिस्तान की जमीन पर काफी हरी-भरी है। साथ ही, यहां जंगली फूलों के पौधे भी उग आये हैं। सबसे ज्यादा भुतहा हरकतों के लिए जो कब्र र्चचा में है, वह है द हाईगेट वैम्पायर, जो असल में वैम्पायर के चलते र्चचा में नहीं है बल्कि एक भूत की छाया के चलते डरावनी जगह है। यह छाया सात फुट लंबी और कई टुकड़ों में बंटी पुरुष आकृति है। उसकी आंखें मनमोहक हैं और वह लंबे काले कोट और हाई हैट पहने दिखता है। जिन लोगों ने उसे देखा है उनका दावा है कि वह हवा में अचानक हल्की आकृति का दिखता और क्षणभर में गायब हो जाता है। 1960 से लेकर अब तक दर्जनों आकृतियां यहां दिखी हैं। कुछ लोगों का इनसे आमना-सामना भी हुआ है। रोचक घटनाएं एक बार किसी व्यक्ति की कार कब्रिस्तान के नजदीक दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। कार में बैठा व्यक्ति बताता है कि दुर्घटना के बाद चमकीली लाल आंखों वाला एक गूल (मौत आदि में रुचि रखने वाला डाकू प्रवृत्ति का पिशाच) कब्रिस्तान के लोहे के दरवाजे से उसे देख रहा था। एक बूढ़ी पागल औरत एक बार कब्रिस्तान की कब्रों के इर्द-गिर्द दौड़ती दिखी थी। उसके भूरे बाल कंधे के पीछे उड़ रहे थे। वह अपने उस बच्चे को खोज रही थी जिसकी उसने ही कथित रूप से हत्या कर दी थी। कब्रिस्तान में काले कफन से लिपटी आकृति जड़वत खड़ी आकाश की ओर एकटक देखे जा रही थी। जब एक व्यक्ति इस आकृति के करीब आया, तो वह गायब तो हो गयी लेकिन थोड़ी ही देर बाद कुछ दूरी पर दोबारा शून्य में टकटकी लगाये दिखी। यहां एक बिजने समैन को भूत का साया दिखा तो वह डर गया। उसका कहना है कि उसने यहां देखा कि कोई आकृति कंटीले बाड़ से कूदी और उसके सामने आ गयी। इतना ही नहीं, उसने अपने हाथ से कान, आंख और लंबी नाक की ओर इशारा किया। बाद में जब बिजनेसमैन ने इसकी र्चचा की तो पता चला कि भूत का वह साया कोई और नहीं, ब्रिटेन का बदमाश स्प्रिंग-हील्ड जैक था। यहां के स्थानीय निवासी ने हाईगेट में नर्स की प्रेतछाया देखी थी। उस समय वह कब्रों के ऊपर से उड़ रही थी। कमलेश |
देवदूत मददगार
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आध्यात्मिक जगत में देवदूतों या फरिश्तों (एंजल्स) का महत्व कम नहीं है। इन्हें शक्तिशाली आध्यात्मिक सत्ता माना जाता है जो ईश्वर और व्यक्ति के बीच संदेशवाहक या माध्यम का काम करते हैं। ‘एंजल्स’ ग्रीक शब्द एंजेलोस से बना है, जिसका अर्थ दूत यानी ‘मैसेंजर’ है। परंपरागत तौर पर इन्हें अलौकिक प्राणी के रूप में माना गया जो कि ईश्वर और मनुष्य के बीच सेतु का काम करते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्राकृतिक जगत पर इनका अधिकार होता है। दुनिया की कई संस्कृतियों और धर्मो में देवदूतों का जिक्र है लेकिन जिन प्रमुख धर्मो में इन्हें सर्वाधिक महत्व दिया जाता है, वे हैं- ईसाई, इस्लाम और यहूदी। बाइबल वास्तविक तौर पर इनके अस्तित्व को स्वीकारती है। ईसाइयों के इस पवित्र धर्मग्रंथ में 250 से ज्यादा बार एं जल्स का संदर्भ आया है। इनके अलावा इनका जिक्र बेबीलोन, सुमेर, मिस्र, यूनान आदि के साहित्य में भी पाया जाता है। हिंदू धर्म में एंजल्स या देवदूत का विचार ईसाइयत या इस्लाम की तरह नहीं है। हालांकि हिंदू धर्म कुछ खास पारलौकिक सत्ताओं में विश्वास करता है जो उन कायरे को करने में सक्षम हैं जिन्हें सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता। इन्हें कई हिंदू ‘देव’ या ‘देवी’ के रूप में पूजते हैं। इसी तरह इन्हें अवतार तथा ‘अर्ध दैवी सत्ता’ भी माना जाता है जिनमें अप्सरा, गंधर्व और सिद्ध शामिल हैं।ंिहंदू धर्म में आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिये एंजल्स की तुलना में गुरुओं का महत्व ज्यादा है। भौतिक देह त्यागने के बाद भी गुरु अपने शिष्यों का मार्गदर्शन सपने, दृष्टि या आभास के जरिये कर सकता है। इसी तरह सपने के माध्यम से शिष्य अपने गुरु से मंत्र के रूप में दीक्षा या आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इस्लाम में एंजल्स की धारणा पाश्चात्य विचारधारा से अलग है। इस्लाम के मुताबिक, एंजल्स या फरिश्ते की रचना ईश्वर ने प्रकाश से की है और आमतौर पर उन्हें नहीं देखा जा सकता। चूंकि उनमें निजी स्वतंत्र इच्छा-शक्ति नहीं होती, इसलिए उन्हें सर्वशक्तिमान ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना पड़ता है। कर्म की स्वतंत्रता के अभाव में वे ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकते। ईश्वर ने हर कार्य के लिए अलग-अलग एंजल्स नियुक्ति किये है। चूंकि एंजल्स ईश्वर की रचना हैं न कि ईश्वर, इसलिए मुस्लिम उनकी पूजा नहीं करते। बौद्धों में एंजल्स को देव कहा गया है। थियोसॉफी की शिक्षाओं में एंजल्स को देवा कहा जाता है। विश्वास किया जाता है कि इनका वास सौरमं डल के ग्रहों के वायुमंडल (प्लैनेटरी एंजल्स) या सूर्य के भीतर (सोलर एंजल) है और इनका कार्य प्रकृति के क्रमविकास में मदद करना है। इन्हें आध्यात्मिक क्रमविकास में अलग पंक्ति का माना जाता है जिसे ‘देवा इवोल्यूशन’ कहा जाता है। इन्हें मानव आकार में रंग-बिरंगी ज्वालाओं की तरह बताया गया है। थियोसॉफी विचारधारा को मानने वालों का कहना है कि तृतीय नेत्र के सक्रिय होने के बाद देवों के अतिरिक्त परियों, बौनों आदि प्राकृतिक आत्माओं को भी देखा जा सकता है। एंजल्स को अलग-अलग धर्मो में भले कई नामों से जाना जाता हो लेकिन हर जगह इनका आशय परोपकारी तथा मार्गदर्शक आत्मा से ही है, जैसे कि रक्षक आत्मा (गार्जियन स्पिरिट)। सबके कार्य एक जैसे ही हैं- मददगार देवदूत की तरह। एंजल्स के विवरणों में जो एक बात सामान्य पायी जाती है, वह है ‘बीइंग्स ऑफ लाइट’ यानी प्रकाशमय प्राणी। कई जगह इनके लंबे आकार, शक्ति और प्रभाव के चलते इन्हें देखने में डरावना बताया गया है तो कहीं सम्मोहक। इसी तरह इन्हें पंखों और कई जगह प्रभामंडल से युक्त दिखाया गया है। पंख और प्रभामंडल का यह पाश्चात्य विचार प्राचीन धर्म और पौराणिक साहित्य से प्रेरित है। मनुष्य जैसे दिखने वाले, लेकिन पंखों से युक्त देवदूतों के चित्रों के पीछे उन्हें ऐसी परोपकारी आत्मा की तरह दर्शाना था जो ‘उच्च लोक’ या स्वर्ग से आये थे। पंख इस बात को सरलता से व्यक्त कर देते हैं कि एंजल्स आत्मलोक से पृथ्वी तक आसानी से आ औ र जा सकते हैं। कई प्राचीन देवताओं को इसी तरह पक्षी तथा पंखों वाले प्राणी के रूप में दर्शाया गया है, जैसे कि मिस्र में। चौथी सदी तक पाश्चात्य संस्कृति में एंजल्स को बड़े स्तर पर पंखयुक्त दिखाया जाने लगा, हालांकि पौर्वत्य धर्मो में पंखों का इस्तेमाल नहीं किया गया। दुनिया की अनेक संस्कृतियों में भी अपने देवताओं-नायकों को पंखों में चित्रित किया गया है। ईसाई कलाकारों ने यूनानी कला से प्रेरित होकर देवदूतों को पंखों में चित्रित किया। जहां तक एंजल्स के पंखयुक्त होने की बात है, तो इसे महज मिथ माना जाता है। चूंकि ये आत्माएं हैं, इसलिए ईश्वर की तरह एंजल्स भी शरीर धारण नहीं करते। इन्हें पंखयुक्त देवकन्या या फिर शिशु की तरह दर्शाना मात्र कल्पना है। हिब्रूज में इन्हें हवा और आग की लपटें कहा गया है ले किन फरिश्तों में इतनी सामथ्र्य होती है कि जब वे अपना फर्ज निभा रहे हों, तब वे मनुष्य के रूप में प्रकट हो सकते हैं। ईसाई धर्मग्रंथों में मुख्यत: नौ प्रकार के एंजल्स का वर्णन है जिनके अलग-अलग उत्तरदायित्व हैं। कुछ धर्मग्रंथ कहते हैं कि इनकी संख्या इतनी ज्यादा है कि मनुष्य इन्हें गिन नहीं सकते। इनमें आर्केन्जल्स (महादूत) सबसे उच्च श्रेणी के हैं। इनको स्वर्ग के अलावा पृथ्वी पर भी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती है। उदाहरण के लिए, पूरे इतिहास काल में आर्केन्जल (गैब्रियल) को बड़े संदेश भेजने के लिए जाना जाता है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईश्वर ने वर्जिन मैरी को यह सू चना भेजने के लिए कि वह पृथ्वी पर जीसस क्राइस्ट की मां बनेंगी, गैब्रियल को ही भेजा। इसी तरह कहा गया है कि ईश्वर ने पृथ्वी पर हर आदमी की रक्षा के लिए ‘गार्जियन एंजल’ (अभिभावक देवदूत) भेजा हुआ है, जो मुसीबत के समय उनकी मदद करता है। लेकिन बड़े स्तर के कायरे के लिए अकसर महादूत या आर्केन्जल को ही भेजा जाता है। मुस्लिम मानते हैं कि गैब्रियल ने संपूर्ण कुरान मोहम्मद साहब को संप्रेषित की। कुछ धर्म ग्रंथों में चंद आर्केन्जल्स के नाम मिलते हैं, जबकि कुछ में इनकी संख्या ज्यादा बतायी गयी है। ज्यादातर धार्मिक विवरणों में आर्केन्जल्स को पुरुष के तौर पर दर्शाया गया है जबकि अधिकतर लोगों का विश्वास है कि एंजल्स का कोई लिंग (जेंडर) नहीं होता और वे मनुष्यों के सामने जिस रूप में चाहें, प्रकट हो सकते हैं। पश्चिमी देशों में एंजल्स को देखने के अकसर दावे किये जाते हैं। ब्रिटेन में वर्ष 2002 में इस पर अध्ययन हुआ था जिसमें अलग-अलग लोगों ने पिछले 25 वर्षो में 192 बार मनुष्य जैसी दयालु सत्ता को देखने का दावा किया। इसी तरह 127 बार मित्रवत सत्ता, 99 बार मददगार सत्ता, 104 बार एंजल्स और 41 बार संतों को देखने की रिपोर्ट सामने आयी। दिलचस्प बात यह थी कि इनमें सभी पारलौकिक सत्ताओं को मानवीय रूपों में देखने का दावा किया गया। इस तरह की सभी सूचनाएं पुलिस से हासिल की गयी थीं। ब्रिटेन की तुलना में वेल्स में एंजल्स के रूप में संत और संन्यासियों को देखे जाने की ज्यादा रिपोर्टे दर्ज हुई। इस मामले में अनुभव प्राप्त 350 लोगों के इंटरव्यू लियेगयेथे जिन्होंने तरह-तरह से इन्हें महसूस किया। इनमें मुख्य थे- खतरे के प्रति आगाह करने के लिए दृश्य तथा ध्वनि का अहसास, खतरनाक स्थिति से बचाने के लिए स्पर्श, धक्का या ऊपर उठाना आदि। वर्ष 2008 में अमेरिका की बेलॉर यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज ऑफ रिलीजन’ ने इस पर सव्रेक्षण किया जिसे ‘टाइम’ पत्रिका ने प्रकाशित किया था। इस सव्रे में 55 फीसद अमेरिकियों, जिनमें पांच में से एक धार्मिक नहीं था, का विश्वास था कि वे अपने जीवनकाल में गार्जियन एंजल द्वारा बचाये गये। इससे पहले 2007 में हुए प्यू पोल में 68 फीसद अमेरिकियों ने माना कि एंजल्स का अस्तित्व है। एंजल्स में विश्वास करने वालों में सबसे ज्यादा (81) प्रतिशत किशोरों का था। कनाडा में 1,000 लोगों से इस बारे में पूछे गये सवालों में 87 फीसद ने एंजल्स पर विश्वास जताया। दिनेश रावत |
शनिवार, 22 सितंबर 2012
दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं मुलायम
अखिलेश वाजपेयी/लखनऊ
Story Update :
Saturday, September 22, 2012 10:07 AM
मुलायम सिंह यादव कांग्रेस के दुश्मन भी दिखना चाहते हैं और परदे के पीछे दोस्ती
का दरवाजा भी खुला रखना चाहते हैं। वह केंद्र सरकार से फायदा भी लेना चाहते हैं
तो यह भी चाहते हैं कि सरकार अगर जल्दी विदा हो जाए तो यूपी में उनको इसका लाभ
मिले। पर, वह मुस्लिम वोटों की नाराजगी के भय से सरकार
गिराने का अपयश भी नहीं लेना चाहते। मुलायम के मन में तीसरे मोर्चे का सपना और
केंद्र में सरकार संचालन के सूत्रधार बनने की कल्पना तो है लेकिन वह यह भी नहीं
चाहते कि सपा की किसी चाल से बसपा और कांग्रेस में दोस्ती गहरी हो जाए।
अखाड़े के दांवपेच में माहिर मुलायम सिंह यादव सियासत में दो नांवों की सवारी की
कहावत को चरितार्थ करते दिख रहे हैं। एफडीआई पर सरकार के खिलाफ सड़क पर वामपंथी
संगठनों के मित्रों के हाथ में हाथ डालकर संघर्ष और अगले दिन ही सांप्रदायिक
शक्तियों को रोकने के नाम पर केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन का ऐलान करके मुलायम
फिलहाल यही कोशिश कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि वह कब तक और कहां तक दो नावों पर
सवारी कर पाते हैं। पर, मुलायम की कोशिश इस असंभव को संभव कर दिखाने
की ही है।
सांप्रदायिक
शक्तियां तो बहाना हैं
मुलायम भले ही कांग्रेस को समर्थन की वजह सांप्रदायिक
शक्तियों को मजबूत न होने देने की बता रहे हों लेकिन यही अकेली वजह नहीं है। इसके
पीछे मुलायम की अपनी गणित है। वह केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर उसे अपनी अंगुली पर
नचाना चाहते हैं और साथ ही उत्तर प्रदेश के लिए केंद्र से विभिन्न योजनाओं में
ज्यादा से ज्यादा लाभ हासिल कर लेना चाहते हैं। अभी हाल में प्रमोशन में आरक्षण
पर संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने से केंद्र का पीछे हटना मुलायम के दबाव
की बानगी है।
मायावती का डर भी
सपा नेता मुलायम सिंह
यादव और बसपा नेता मायावती सिर्फ राजनीतिक विरोधी ही नहीं हैं बल्कि इनके बीच
दुश्मनी निजी स्तर तक है। दोनों एक-दूसरे को आगे
बढ़ते नहीं देख सकते। मुलायम जानते हैं कि उनके समर्थन लेने से भी सरकार के
अस्तित्व पर फिलहाल कोई असर नहीं आने वाला। इसीलिए वह दुश्मनी व दोस्ती का खेल
साथ-साथ खेलना चाहते हैं। वह नहीं चाहते कि उनके
समर्थन वापस लेने का फायदा उठाकर बसपा व कांग्रेस की दोस्ती इतनी गहरी हो जाए कि
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में दोनों के बीच तालमेल या गठबंधन का कोई नया
समीकरण बन जाए।
कांग्रेस को खड़ा न होने देने की गणित
मुलायम नहीं चाहते कि उनकी तरफ से कोई ऐसा कदम उठे जिससे
कांग्रेस को यूपी में सपा के सामने खड़ा होने का मौका मिल जाए। वह लोकसभा चुनाव
तक अपनी तरफ से यही माहौल बनाकर रखना चाहते हैं कि सपा के लिए कांग्रेस कोई
चुनौती नहीं है। बाहर से समर्थन जारी रखने की घोषणा करके मुलायम यह संदेश बनाए
रखना चाहते हैं कि सपा की बदौलत ही कांग्रेस सत्ता में है।
मुस्लिम वोट की मजबूरी
पिछले दो दशक से यादव
व मुस्लिम वोटों के समीकरण से सियासत में महत्वपूर्ण मुकाम हासिल करने वाले
मुलायम किसी भी स्थिति में मुस्लिम वोटों की नाराजगी का जोखिम मोल नहीं लेना
चाहते। वह जानते हैं कि महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्य लोगों की तरह
मुस्लिम मतदाता भी केंद्र सरकार से निराश व नाराज हैं लेकिन यह मतदाता किसी भी
स्थिति में कोई ऐसा काम पसंद नहीं करेगा, जिससे भाजपा को
मजबूत होने या सरकार बनाने का मौका मिले। यह हकीकत भी उन्हें पता है, इसीलिए वह लड़ते भी दिखना चाहते हैं और सरकार भी बनाए रखना चाहते हैं।
मायावती भी मजबूर
मुलायम अगर मायावती के
कारण सरकार को बाहर से समर्थन को मजबूर हैं तो मायावती भी मुलायम के कारण सरकार
को समर्थन को मजबूर हैं। उन्हें पता है कि उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के खिलाफ
अभी उतना गुस्सा नहीं है जिसका चुनाव में लाभ उठाया जा सके। इसलिए वह इस समय कोई
ऐसी स्थिति नहीं खड़ी करना चाहतीं, जिससे चुनाव की नौबत बन जाए। मायावती आशंकित है कि जल्दी चुनाव हुए तो सपा को फायदा मिल जाएगा।
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