शुक्रवार, 13 मार्च 2015

सांप्रदायिक हिंसा 2014-गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक व असम

सांप्रदायिक हिंसा 2014-गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक व असम

सांप्रदायिक हिंसा 2014-गुजरात महाराष्ट्रतेलंगानाकर्नाटक व असम
गुजरात
गुजरात में 2014 में 59 सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं, जिनमें 8 लोग मारे गये और 372 घायल हुए। मई में नरेन्द्र मोदी की आमचुनाव में बड़ोदा से विजय के बाद, अनेक नेताओं द्वारा भड़काऊ वक्तव्य दिये जा रहे थे। इन लोगों के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा रही थी। बड़ोदा में उपचुनाव होने थे क्योंकि नरेंद्र मोदी ने इस लोकसभा क्षेत्र से इस्तीफा देकर, वाराणसी का सांसद बने रहने का निर्णय किया था। उपचुनाव में भारी अंतर से जीत सुनिश्चित करने के लिए सांप्रदायिकता की आग को जलाए रखना आवश्यक था। सितंबर में विहिप नेताओं ने यह कहना शुरू किया कि गरबा में मुसलमान युवकों का स्वागत नहीं है। उन्होंने कहा कि गरबे में आने वाले मुस्लिम युवक, हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसा लेते हैं। ये नेता इसे लव जिहाद बताते थे। भडूच जिले के विहिप अध्यक्ष विरल देसाई ने यह घोषणा की कि मुसलमानों के धार्मिक स्थलों पर गरबे का आयोजन किया जायेगा।
विहिप व बजरंगदल के नेताओं द्वारा बिना किसी आधार, के बार-बार मुसलमानों पर यह आरोप लगाने से कि वे गोवध कर रहे हैं, मुस्लिम समुदाय के खिलाफ वातावरण बन गया। विहिप ने अहमदाबाद के सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील दरियापुर इलाके में गोवध के खिलाफ प्रदर्शन किया। दंगों से प्रभावित लोगों ने आरोप लगाया कि विहिप और पुलिसकर्मियों के बीच की सांठगांट से हिंसा भड़की। पुलिसकर्मी, विहिप से जुड़े ‘गोरक्षकों’ को समय-समय पर सूचनाएं देते रहते थे, जिनके आधार पर झूठे आरोप लगाकर निर्दोश मुसलमानों के खिलाफ मनमानी और गैर-कानूनी कार्यवाहियां की जाती थीं। पुलिसकर्मियों और विहिप कार्यकर्ताओं ने नवसारी जिले के मुस्लिम-बहुल ढाबेल गांव में छापा मारा और गोमांस बेचने के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। अकेले अहमदाबाद शहर में 62 ‘गोरक्षक दल’ थे, जिनमें से हर एक के चार-पांच सदस्य थे। ये लोग शहर के प्रवेश बिंदुओं पर डेरा जमा लेते थे और पुलिस के साथ समन्वय कर अपनी बेजा कार्यवाहियों को अंजाम देते थे।
25 मई को दो हिंसक गुटों के बीच पत्थरबाजी हुई, जिसके बाद कई दुकानों और वाहनों में आग लगा दी गई। इस हिंसा में चार लोग घायल हुए। हिंसा की शुरूआत तब हुई जब एक बारात निकलने के दौरान, दो अलग-अलग समुदायों के सदस्यों की कारों में भिडंत हो गई।
बड़ोदा में 25 से 30 सितंबर तक सांप्रदायिक हिंसा हुई। हिंसा की शुरूआत तब हुई जब एक निजी ट्यूशन क्लास के हिंदू मालिक ने एक मुस्लिम पवित्र स्थल का अपमान करते हुए एक फोटो, सोशल नेटवर्किंग साईट पर अपलोड कर दी। क्लास के मुस्लिम विद्यार्थियों ने पुलिस कमिश्नर से इसकी शिकायत की। जब वे शिकायत कर लौट रहे थे तब एक छोटी सी घटना के बाद उनमें और कुछ वकीलों में विवाद हो गया, जो जल्दी ही हिंसा में बदल गया। हिंसा, फतेहपुरा और हाथीखाना इलाकों में फैल गई। पंजरीगर मोहल्ले में ट्यूशन क्लास की इमारत में तोड़फोड़ की गई और दोनों समुदायों की ओर से पत्थरबाजी हुई। वाहनों को जला दिया गया और दुकानों को लूटा गया। 26 सितंबर को हिंसा और भड़क उठी और एक मुस्लिम को चाकू मारकर घायल कर दिया गया। दस अन्य लोग भी घायल हुए।
26 नवंबर को सोमनाथ में शिव पुलिस चौकी के नजदीक, लगभग 8:30 बजे, हिंसा की शुरूआत हुई। झगड़ा दस रूपए के एक नोट को लेकर प्रारंभ हुआ, जिस पर एक मुसलमान और एक कोली दोनों अपना दावा जता रहे थे। बहसबाजी के बाद हाथापाई शुरू हो गई और मुसलमान युवक के सिर पर किसी ने एक टिफिन बॉक्स दे मारा। इससे उसे चोट आई और उसके सिर से खून बहने लगा। दोनों समुदायों के बुजुर्गों ने हस्तक्षेप किया और लड़ने वालों को अलग-अलग कर अपने-अपने घर भेज दिया। इसके करीब आधा घंटे बाद, शांतिनगर के कोली इकट्ठा हो गये और सड़क के उस पार बनी मुस्लिम बस्ती पर पत्थर फेंकने लगे। सड़क पर खड़ी कुछ मोटरसाइकिलों को भी जला दिया गया।
महाराष्ट्र
                महाराष्ट्र में सन् 2014 में साप्रदायिक हिंसा की 82 घटनाएं हुईं, जिनमें 12 लोग मारे गये और 165 घायल हुए। सन् 2014 में महाराष्ट्र, सांप्रदायिक घटनाओं के मामले में उत्तरप्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर रहा। अक्टूबर तक वहां कांग्रेस का शासन था और विधानसभा चुनाव के बाद, राज्य में भाजपा ने अपनी सरकार बनाई। घटनाएं छोटी-छोटी थीं परंतु राज्य का कोई क्षेत्र इनसे अछूता नहीं रहा। मुख्यतः यह हिंसा पश्चिमी महाराष्ट्र में केंद्रित थी। सन् 2014 में राज्य में लोकसभा व विधानसभा दोनों ही चुनाव होने थे। एनडीए व यूपीए और यूपीए के अंदर कांग्रेस व एनसीपी के बीच मराठा मतों के लिए धमासान मचा हुआ था। मराठा, महाराष्ट्र की आबादी का लगभग 50 प्रतिशत हैं। यूपीए के समर्थक मुख्यतः मराठा, मुसलमान और महार थे। एनडीए ने ओबीसी व महारों के एक तबके को अपने पक्ष में कर लिया था और वह मराठाओं को अपने साथ लेने के लिए आक्रामक अभियान चला रही थी। मराठाओं को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा के साथ लाने के लिए सांप्रदायिकता का खुलकर इस्तेमाल किया गया। कांग्रेस ने इस घोर सांप्रदायिक अभियान का विरोध इसलिए नहीं किया क्योंकि उसे यह डर था कि इससे उसकी छवि मुस्लिम-समर्थक की बन जायेगी व वह हिंदुओं के वोट खो देगी। पार्टी की सरकार ने उन हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जो मुसलमानों के विरूद्ध जहर उगल रहे थे और छोटे स्तर पर हिंसा भी भड़का रहे थे।
                पुणे में मई की 31 तारीख को धनंजय देसाई नामक व्यक्ति के नेतृत्व में हिंदू राष्ट्र सेना के कार्यकर्ताओं ने बसों में तोड़फोड़ और आग लगानी शुरू कर दी। हिंसा पर उतारू इस भीड़ ने दुकानों और मकानों पर पत्थर फेंके और कई दुकानों को लूटकर उनमें आग लगा दी। पुणे और उसके आसपास स्थित मुसलमानों के धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया गया। शहर के हुंडेवाणी इलाके में दो मदरसों और दो मस्जिदों पर हमला हुआ। आरोप यह था कि बालठाकरे और शिवाजी को अपमानित करते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट किया गया है। लगभग 250 सरकारी बसों को नुकसान पहुंचा। नेशनल कान्फिडेरेशन ऑफ हृयूमन राईट्स आर्गेनाईजेशंस की एक रपट के अनुसार,  फेसबुक पोस्ट और उसके बाद हुए दंगे-दोनों ही पूर्वनियोजित थे। लोनी में इस हिंदुत्व संगठन के 35 हथियारबंद गुंडों ने, जो मोटरसाइकिलों पर सवार थे, रोज बेकरी, बैंग्लोर बेकरी और महाराष्ट्र बेकरी में तोड़फोड़ की। इन तीनों के मालिक मुसलमान थे। रोज बेकरी से 35,000 रूपए नगद लूट लिए गये।
                पुलिस ने हमलावरों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही नहीं की और नतीजे में दो जून को उन्होंने और बड़ा हमला किया। काले पड़ेल, सैय्यद नगर व हादपसर बाजार में कई बेकरियों, दुकानों और होटलों में तोड़फोड की गई और उनमें आग लगा दी गई। बिस्कुट, केक आदि बनाने वाली मशीनों, फ्रीजरों, टेम्पों, कारों और साईकिलों को टुकड़े-टुकड़े कर जला दिया गया। होटल सहारा के पास स्थित दलित बौद्धों के मकानों पर भी हमला किया गया। नीला बड़ूकोंबे और मारूथी शिंदेबाबा, जो कि दलित हैं, ने कहा कि वे लगभग 50 सालों से उस इलाके में रह रहे हैं और पहली बार उन पर हमला हुआ है। कस्बापेठ में चार हिंदू राष्ट्रवादी कार्यकर्ता, मुसलमान युवकों से हिंसक मुठभेड़ में घायल हो गये। ये लोग एक मस्जिद पर हमला करने आये थे और मुसलमान युवकों ने उनका विरोध किया। इस सिलसिले में छः मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया। हादपसर बाजार क्षेत्र में स्थित नलबंद मस्जिद पर पत्थर फेंके गये। अब्दुल कबीर की फलों की दुकान और अब्दुल रफीक बागवान के केले के गोदाम में आग लगा दी गई। उरूली देवाची में जामा मस्जिद पर हमला हुआ। एक फ्रिज, पानी की टंकी और कुछ अन्य चीजें तोड़ दी गईं। ये सभी हमले 9 से 11 बजे रात के बीच हुए। रात लगभग 9 बजे, 28 वर्षीय मोहसिन शेख नामक युवक, जो शोलापुर का रहने वाला था और आईटी इंजीनियर था, को पीट-पीटकर मार डाला गया। मोहसिन का एक मित्र, जो उसके साथ था, बच गया परंतु मोहसिन, जो कि अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था, की एक अस्पताल में मौत हो गई। दो अन्य मुस्लिम युवक एजाज़ यूसुफ बागवान और अमीर शेख, जो कि वहां मौजूद थे, भी घायल हुए। पुणे के मुसलमान व्यापारियों और दुकानदारों को कुल मिलाकर लगभग 4.5 करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ।
तेलंगाना
                हैदराबाद के किशनगंज के सिक्ख छावनी क्षेत्र में 14 मई को सिक्खों के एक धार्मिक झंडे को कुछ अज्ञात लोगों ने जला दिया। इसके बाद लाठियों और तलवारों से लैस सिक्खों ने मुसलमानों के घरों पर हमला किया। यह दूसरी बार था जब झंडे को जलाने के मुद्दे को लेकर हिंसा भड़की और सिक्खों ने मुसलमानों पर हमला किया। तीन मुसलमान मारे गये, जिनमें से दो छुरेबाजी और एक पुलिस की गोली से मारा गया। किशनबाग में लंबे अरसे से हिंदू, मुसलमान और सिक्ख मिलजुलकर, शांतिपूर्ण ढंग से रहते आये थे।
कर्नाटक
                कर्नाटक में कुल मिलाकर 68 सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, जिनमें 6 लोग मारे गये और 151 घायल हुए। बीजापुर में नरेंद्र मोदी के शपथ लेने का जश्न मनाने के लिए 26 मई को पूर्व केंद्रीय मंत्री बासवन्ना गौड़ा पाटिल के नेतृत्व में जुलूस निकाला जा रहा था। इसके दौरान हुई हिंसा में 12 लोग घायल हुए। कई लोगों को उनकी इच्छा के विरूद्ध गुलाल लगा दिया गया। इसके बाद हुए विवाद में कई दुकानों और फुटपाथ पर धंधा करने वालों पर हमले हुए। लगभग एक लाख रूपये की संपत्ति नष्ट हो गई और 15 व्यक्ति घायल हुए।
असम
                नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के सोनवीजीत धड़े ने पिछले साल लगभग 100 लोगों की हत्यायें कीं, जिनमें बांग्लाभाषी मुसलमान और आदिवासी शामिल थे। केंद्र व राज्य सरकारों ने इस हथियारबंद सेना को खत्म करने के लिए समुचित प्रयास नहीं किए हैं।
                दो मई को नारायण गुरी, बकसा में 72 में से 70 मकानों में आग लगा दी गई। कुल मिलाकर 48 लोग मारे गये और 10 लापता हैं। कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए बैकी नदी में कूद गये। उनके बच्चे नदी में बह गये और उनमें से कई को गोली मार दी गई। इस हमले में जिंदा बचे लोगों के अनुसार यह जनसंहार बोडो लिबरेशन टाईगर्स के पूर्व सदस्यों ने अंजाम दिया था। बोडो टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट में इन लोगों को वनरक्षक नियुक्त किया गया है। इन्हें सरकारी तौर पर बंदूकें उपलब्ध कराई गईं हैं, जिनका इस्तेमाल इस हमले में किया गया। इस हमले के पीछे बोडो टेरिटोरियल कांउसिल के उपप्रमुख खंपा बोरगोयारी का हाथ बताया जाता है जो कि बोडो टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट के वन विभाग के प्रभारी हैं। यह जनसंहार गैर-बोडो रहवासियों को सबक सिखाने के लिए किया गया था क्योंकि उन्होंने अत्याचारी प्रशासन के खिलाफ मत दिया था।
                इस हमले का कारण बना बोडो पीपुल्स फ्रंट के विधायक व असम के पूर्व कृषि मंत्री प्रमिला रानी ब्रम्ह का यह बयान कि मुसलमानों ने 16वीं लोकसभा के चुनाव में बोडो पीपुल्स फ्रंट के उम्मीदवार को वोट नहीं दिये। इसके पहले, हरभंगा मतदान केंद्र पर मतदान के दौरान हुई हिंसा के बाद पुलिस द्वारा मुसलमानों के खिलाफ की गई क्रूरतापूर्ण कार्यवाही से हमलावरों को प्रोत्साहन मिला। जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो पता चला कि गैर-बोडो मतों के कारण, ‘सम्मिलित जनगोष्ठिया एक्यामंच’ के नाभा उर्फ हीरा सरानिया ने प्रमिला रानी ब्रम्ह को बड़े अंतर से पराजित किया।
                इसके बाद, 23 दिसंबर को एनडीएफबी के सोनवीजीत धड़े के कार्यकर्ताओं ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर 78 लोगों की जाने ले लीं। कुल मिलाकर 46 लोग सोनितपुर में मारे गये, 29 कोकराझार में और तीन चिरांग जिले में। आदिवासियों द्वारा जवाबी हमले में चार बोडो भी मारे गये। इस अंधाधुंध गोलीबारी में मारे जाने वालों में से अधिकांश ईसाई आदिवासी थे। उन पर हमला राज्य सरकार द्वारा इस हथियारबंद गिरोह के खिलाफ की गई कार्यवाही का बदला लेने के लिए किया गया।
                कोकराझार जिले के गुंसाई क्षेत्र के माणिकपुर और दीमापुर गांव में आदिवासियों ने कर्फ्यू के दौरान बदले की कार्यवाही करते हुए बोडो निवासियों के कई घरों में आग लगा दी। पुलिस द्वारा हमलावरों को तितरबितर करने के लिए गोली चलाईं गईं जिसमें तीन आदिवासी मारे गये। इनको मिलाकर, सोनितपुर जिले में हिंसा में मारे गये लोगों की संख्या 46 हो गई। (मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)
-इरफान इंजीनियर

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