शुक्रवार, 13 मार्च 2015

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े भी बताते हैं दिल्ली ही देश की अपराध राजधानी

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े भी बताते हैं दिल्ली ही देश की अपराध राजधानी

दिल्ली की सड़कों पर जो महिलाएं चलती हैं वे अपने अनुभव से जानती हैं कि राष्ट्रीय राजधानी उनके लिए बहुत ज्यादा असुरक्षित हैं। अब इस अहसास को राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की 2012 की रिपोर्ट ने आंकड़ों से साबित कर दिया है कि अगर मुंबई (232), कोलकाता (68), बेंग्लुरु (90) और चेन्नै (94) की बलात्कार घटनाओं को आपस में जोड़ (484) दिया जाए तो भी यह दिल्ली की 706 घटनाओं से कम हैं। हालांकि दिल्ली में महिलाओं की जनसंख्या (75.76) लाख) मुंबई (85.2 लाख) से कम है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ जो दिल्ली में अपराध होते हैं, वे सबसे ज्यादा हैं। 2012 के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने बीती 12 जून को जो अपनी रिपोर्ट जारी की, उससे मालूम होता है कि जिन 88 शहरों में महिला संबंधी अपराधों का ब्योरा लिया गया उनमें से कुल अपराध का 14.88 प्रतिशत दिल्ली में हो रहा था। दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 5959 मामले प्रकाश में आए। कोई दूसरा शहर दिल्ली के आसपास भी नहीं है। शहरी भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध में दूसरा नंबर बेंग्लुरु का है, लेकिन 6.18 प्रतिशत के साथ वह दिल्ली से बहुत पीछे है। जबकि कोलकाता का हिस्सा 5.66 प्रतिशत और मुंबई का 4.86 प्रतिशत है।
हत्याकांडों में वृध्दि
दिल्ली महिलाओं के लिए कितनी असुरक्षित है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ होने वाला हर 12वां अपराध बलात्कार है। इसके अतिरिक्त 2012 में दिल्ली में 3274 अपहरण के मामले सामने आए, जिनमें से आधे से ज्यादा (1787) में महिलाओं का अपहरण हुआ। अपहरण तो दिल्ली में अन्य शहरों की तुलना में कम से कम 10 गुना अधिक है।
जहां तक हत्या की बात है तो अन्य महानगरों की तुलना में दिल्ली में दोगुनी हत्याएं होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बतलाती है कि 2012 में दिल्ली में 408 हत्याएं हुई, जबकि मुंबई में 215, कोलकाता में 85, चेन्नै में 108 और बेंग्लुरु में 266 हत्याएं हुई। अन्य अपराधों में भी दिल्ली का नंबर अगर पहला नहीं है तो दूसरा अवश्य है। मसलन, बेंग्लुरु में 454 हत्या के प्रयास हुए तो दूसरे नम्बर पर 369 के साथ दिल्ली थी। इसी तरह धोखाधड़ी में जहां बेंग्लुरु 3092 के साथ पहले नम्बर पर था तो दिल्ली 2271 के साथ दूसरे स्थान पर थी। जाली नोटों के मामले में भी दिल्ली (59) केवल चेन्नै (137) से ही पीछे थी, लेकिन चोरी (20218) में तो वह दूसरे नंबर की मुंबई (10851) से बहुत आगे थी। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि दिल्ली को देश की ‘अपराध राजधानी’ भी कहा जाता है।
पिछले साल 17 दिसम्बर को जब दिल्ली का बस गैंगरेप सामने आया था, तब उसमें एक नाबालिग लड़के के शामिल होने के कारण इस बात पर बहुत बहस हुई थी कि नाबालिग होने की जो 18 वर्ष आयु सीमा रखी गई है, उसमें कमी करनी चाहिए क्योंकि आज के इंटरनेट युग में बच्चे जल्दी ‘बालिग’ हो रहे हैं, अपराध भी कर रहे हैं और इंसाफ का तकाजा है कि केवल 15-16 वर्ष तक के व्यक्ति को ही नाबालिक माना जाना चाहिए। इस प्रस्ताव का विरोध भी हुआ और नतीजतन कोई ठोस कदम इस सिलसिले में नहीं उठाया जा सका। लेकिन जो लोग नाबालिग की अधिकतम आयु सीमा को कम करने का विरोध कर रहे हैं, उन्हें एक नजर इस संदर्भ में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के न्यूनतम आंकड़ों पर गौर करना अवश्य चाहिए।
हालांकि बिहार व महाराष्ट्र की तुलना में दिल्ली में बाल अपराधियों की संख्या कम है, लेकिन राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की 2012 की रिपोर्ट से मालूम होता है कि दिल्ली के बाल अपराधियों में भी चिन्ताजनक वृध्दि हुई है। 100 नाबालिगों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है जबकि 74 को हत्या के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इसी तरह 63 नाबालिगों को बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इसके अतिरिक्त 18 नाबालिगों ने अपहरण किए, जिनमें से 10 अपहरण लड़कियों के थे। यही वजह है कि अब मनोवैज्ञानिक कह रहे हैं कि नाबालिगों द्वारा अपराध को रोकने के लिए जमीनी सच्चाई को समझते हुए नए नियम व रणनीतियां बनाई जाएं।
नाबालिगों द्वारा गंभीर अपराध
चिन्ता की बात यह है कि नाबालिगों द्वारा अपराध की घटनाएं पूरे देश में बढ़ती जा रही है और सबसे ज्यादा चिन्ताजनक स्थिति महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में है। 2012 में महाराष्ट्र में 183 नाबालिगों को हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जबकि मध्यप्रदेश के लिए यह आंकड़ा 197 था।
नाबालिग भी वयस्कों की तरह गंभीर अपराध कर सकते हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में कक्षा 12 के चार छात्रों ने अपने एक साथी की ग्रेटर नोएडा में हत्या की और उसके शव को लगभग 100 किमी दूर अलीगढ़ में जाकर फेंक आये।
इस किस्म की दर्दनाक घटनाएं चीख चीख कर कह रही हैं कि नाबालिग की कानूनी परिभाषा पर पुन: विचार किया जाए। हालांकि जस्टिस वर्मा समिति ने इस पर बहस की थी, लेकिन इस सिलसिले में मनोवैज्ञानिकों की भी राय लेनी चाहिए कि जब कोई नाबालिग अपराध करता है तो उसकी मानसिक आयु व स्वास्थ्य की दशा क्या होती है? इससे इस बात पर रोशनी पड़ेगी कि ट्रायल की न्यूनतम आयु 18 वर्ष हो या 16 वर्ष।
बहरहाल, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की जो 2012 के लिए रिपोर्ट जारी की गई है उससे स्पष्ट हो जाता है कि देश भर में विशेषकर दिल्ली में हर किस्म के अपराधों में निरन्तर वृध्दि हो रही है। एक सभ्य समाज के लिए आवश्यक है कि इन बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाया जाए ताकि हर व्यक्ति बिना खौफ व खतरे के अपनी क्षमता अनुरूप प्रगति करने के माहौल से लाभान्वित हो सकें।
आज पहले के मुकाबले महिलाएं कार्यस्थलों पर अधिक दिखाई देने लगी हैं, खासकर महानगरों में। उनकी सुरक्षा के इंतजाम करना भी बहुत जरूरी है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जिन महानगरों को महिलाओं के लिए ज्यादा सुरक्षित समझा जाता है, वहीं व अधिक असुरक्षित हैं, खासकर दिल्ली, मुंबई व बेंग्लुरु जैसे महानगरों में।
इस संदर्भ में जल्द ठोस कदम उठाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में भी सभी अपराधों को संज्ञान में नहीं लिया जाता है क्योंकि बहुत से अपराधों की शिकायत ही नहीं की जाती है या पुलिस उनको दर्ज नहीं करती है, जैसा कि ब्यूरो की रिपोर्ट में दिए गए एक दिलचस्प आंकड़े से जाहिर है। ब्यूरो के डाटा के अनुसार दिल्ली में लिखित व फोन के जरिए (जिसमें हेल्पलाइन भी शामिल हैं) 2099170 शिकायतें हासिल हुई थीं, लेकिन इनमें से केवल 60391 को ही केस के रूप में दर्ज किया गया। इसी तरह महाराष्ट्र में 943994 शिकायतें हासिल की गई जिसमें से सिर्फ 333680 को ही केस के रूप में दर्ज किया गया। कहने का अर्थ यह है कि स्थिति चिन्ताजनक है, इसमें सुधार लाने के लिए तुरंत ठोस प्रयासों की जरूरत है।

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