हिंदुत्व की राजनीति और तमिल लेखकों पर हमले
तमिलनाडु में जातीय पहचान की राजनीति के ज़ोर पकड़ने के साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले भी तेज़ हुए हैं.
पिछले कुछ महीनों में दो तमिल लेखकों पेरूमल मुरुगन और पुलियार मुरुगेसन पर घातक हमलों की वजह एक जाति विशेष का ‘अपमान’ बताया गया.इसके बाद तो मुरुगन ने ‘लेखक के रूप में अपनी मौत की घोषणा कर दी’ यानी लिखना बंद कर दिया जिसकी पूरे देश में चर्चा हुई.
जानकारों का कहना है कि केंद्र में 'भाजपा के सत्ता' में आने के बाद से, हिंदुत्ववादी गुटों ने अगले वर्ष होने वाले चुनाव को देखते हुए इस तरह के मुद्दों का इस्तेमाल अपना आधार बढ़ाने के लिए शुरू कर दिया है.
'हर राजनीतिक दल में'
बहुत से लोग तमिलनाडु में गाउंदर जाति के लोगों को ऐसी ही छवि से जोड़कर देखते हैं. मुरुगन पर हमले की वजह थी कि उनके लेखन में मुख्य पात्रों को गाउंदर जाति का बताया गया है.
करूर में गाउंदर जाति के नेता अमियप्पन वेंकटचलपति से सहमत नहीं हैं, “गाउंदर तमिलनाडु के दस ज़िलों में बड़ी संख्या में रहते हैं, ठीक उसी तरह जैसे बिहार या यूपी में यादव हैं, इन घटनाओं का भाजपा से कोई राजनीतिक लिंक नहीं है, हमारी जाति के लोग तो हर राजनीतिक दल में मौजूद हैं.”
'टालमटोल'
तमिलनाडु की एआईडीएमके सरकार भी इस मामले में बहुत संभलकर चल रही है.
मामला तब थमा जब मुरुगन ने एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के सामने माफ़ीनामे पर हस्ताक्षर किए.
इसके बाद मुरुगन ने लिखा जो उनके जीवन भर के लेखन से अधिक चर्चित हो गया, “लेखक पेरुमल मुरुगन मर गया, वह भगवान नहीं है इसलिए उसका नया अवतार नहीं होगा, अब सिर्फ़ पी मुरुगन स्कूल मास्टर जिंदा है.”
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