मंगलवार, 10 मार्च 2015

अभिशप्त आदिवासी

बीते तीन दशकों के दौरान विभिन्न सरकारों ने आदिवासियों और दलितों को उनके कल्याण से जुड़े लगभग पांच लाख करोड़ रुपयों से वंचित किया है. बजटीय आवंटन से उन्हें वंचित करने और उनके लिए आवंटित फंड का दूसरे मदों में इस्तेमाल का खुलासा करती एक रिपोर्ट
फोटोः तहलका आका्इव
फोटोः तहलका आका्इव
31 अगस्त 2010 को संसद में एक यादगार दृश्य पैदा हो गया था. उस दिन अरुण जेटली ने राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए निर्धारित फंड के कथित इस्तेमाल पर तत्कालीन यूपीए सरकार को घेरने की कोशिश की थी.
जेटली तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार द्वारा राष्ट्रमंडल खेलों से संबधित परियोजनाओं के लिए इस फंड के कथित इस्तेमाल पर सवाल उठा रहे थे.
जेटली उस समय राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे. उन्होंने कहा था, ‘महज इसलिए कि दिल्ली में रहनेवाले कुछ लोग, जिनका संबंध अनुसूचित जाति से है, राष्ट्रमंडल खेल देखने जाएंगे, आप यह नहीं कह सकते कि अनुसूचित जातियों के लिए तय फंड से स्टेडियम बनाए जाने चाहिए. राष्ट्रमंडल खेल ऐसी परियोजना नहीं है जो अनुसूचित जातियों को प्रत्यक्ष रूप से या परोक्ष तौर पर या दूर-दूर से भी फायदा पहुंचाती हो.’
उस समय हर राजनीतिक दल ने जेटली की बात से सहमति जताई थी. उन्होंने कहा, ‘जब एयर इंडिया कोई विमान उड़ाता है, तो किसी भी जाति या नस्ल का व्यक्ति उसमें यात्रा कर सकता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए निर्धारित फंड का ऐसी परियोजना में इस्तेमाल कर लिया जाए और सरकार कहे कि ये परियोजनाएं उनको फायदा पहुंचाती हैं. इन पैसों का इस्तेमाल कमजोर वर्गों की मदद के लिए उन क्षेत्रों में किया जाना चाहिए जहां इनकी बड़ी जनसंख्या बसती है.’
जेटली राजनीतिक तौर पर सही हो सकते हैं, विशेषकर जब बात वंचित वर्गों के लिए बजटीय आवंटन की हो. इसे ट्राइबल सब-प्लान (टीएसपी) और शिड्यूल्ड कास्ट्स सब-प्लान (एससीएसपी) भी कहा जाता है. यह आदिवासियों व दलितों के कल्याण और उनकी आर्थिक व सामाजिक बेहतरी के लिए होता है. इसमें इस बात पर जोर दिया जाता है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कुल जनसंख्या में एससी और एसटी के अनुपात के आधार पर उनके लिए बजटीय आवंटन करें. उदाहरण के तौर पर, साल 2011 की जनगणना के हिसाब से दलितों और आदिवासियों को सेंट्रल प्लान बजट की राशि का क्रमशः 16.6 फीसदी और 8.6 फीसदी आवंटित होना चाहिए. इसी तरह सभी राज्य सरकारों को अपनी जनसंख्या में इनकी संख्या के आधार पर अपने प्लान बजट में इन वर्गों के लिए राशि आवंटित करनी होती है.
लेकिन जब बात व्यवहार की आती है तो भारत का राजनीतिक वर्ग और यहां की नौकरशाही इस उचित बात को दरकिनार कर देती है और देश के इन सबसे गरीब वर्गों को उनके फंड के हक से वंचित करने और उनके लिए तय फंड के कहीं और इस्तेमाल में लग जाती है. दरअसल यह हमारी व्यवस्था में मौजूद भेदभाव ही है, जिसने यह सुनिश्चित किया है कि ये वर्ग वंचित बने रहें.
यह बात गौर करने लायक है कि इन वर्गों के लिए तय फंड पर कुछ साल पहले सवाल उठानेवाले जेटली ने पिछले आम बजट में क्या किया. आम बजट 2014-15 में जेटली ने दलितों को 47,260 करोड़ रुपयों से वंचित किया, जबकि इसमें आदिवासियों को 25,490 करोड़ रुपयों से वंचित किया गया. हालांकि, जेटली ऐसा करनेवाले पहले या अकेले वित्तमंत्री नहीं हैं. भारत में आम बजटों का इतिहास उठाकर देखें तो हर बार इन वर्गों को उस फंड से वंचित किया गया है, जिसके वे हकदार थे.
झारखंड
nवित्त वर्ष 2014-15 में बिल्डिंग एंड कंस््ट्रक्शन डिपार्टमेंट ने टीएसपी के तहत 97.75 करोड़ रुपये आवंटित किए. इसमें से 50 करोड़ रुपये का इस्तेमाल सर्किट हाउस बनाने में और 25 करोड़ रुपये का इस्तेमाल न्यायालय भवन बनाने में किया गया.
nवित्त वर्ष 2013-14 में 12 करोड़ रुपये में से 7 करोड़ रुपये का इस्तेमाल एक ट्रेनर एयरक्राफ्ट और एक मोटर ग्लाइडर की खरीदारी में किया गया, जबकि देवघर सहित विभिन्न जिला मुख्यालयों में रनवे निर्माण और विस्तार के लिए 4.82 करोड़ रुपये खर्च किए गए.
nटीएसपी के तहत गृह विभाग को 32.64 करोड़ रुपए आवंटित किए गए, जिनमें से एक करोड़ रुपये का इस्तेमाल जेल कर्मचारियों के आवास के निर्माण के लिए किया गया.
nवित्त वर्ष 2011-12 में 1.83 करोड़ रुपये का इस्तेमाल निर्माण गतिविधियों के लिए किया गया, जिसमें सीएम हाउस में एक हैलीपैड का निर्माण शामिल है.
दलित और आदिवासी समूहों के प्रमुख संगठन नेशनल कोएलीशन फॉर एससीएसपी-टीएसपी लेजिस्लेशन ने बजट के दस्तावेजों और सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए पिछले दिनों यह गणना की कि सातवीं से लेकर 12वीं पंचवर्षीय योजना (साल 2014-15 तक) के बीच आम बजट में दलितों और जनजातियों को कितने फंड से वंचित किया गया है. आंकड़ा देखकर आप चौंक जाएंगे- 5,27,723.72 करोड़ रुपये!
आइए इसी बात को दूसरे तरीके से समझते हैं. तकरीबन 30 सालों की इस अवधि के दौरान आम बजटों में इनके लिए 8,75,380.36 करोड़ रुपए आवंटित किए जाने चाहिए थे, लेकिन इनके लिए केवल 3,47,656.64 करोड़ रुपए ही आवंटित किए गए. इसका मतलब यह हुआ कि समाज के इन वंचित वर्गों को कायदे से जितनी राशि का आवंटन किया जाना चाहिए था, उसका सिर्फ 60 फीसदी तक ही आवंटित किया गया.
पूर्व केंद्रीय सचिव पीएस कृष्णन, जिन्होंने शुरुआती वर्षों में टीएसपी और एससीएसपी की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई, कहते हैं, ‘राजनीतिक नेतृत्व और असंवेदनशील नौकरशाही संविधान के उन आधारभूत सिद्धांतों को ध्वस्त कर रही हैं, जिनके आधार पर टीएसपी और एससीएसपी का ढांचा बनाया गया है. आवंटन के अनुमानित और काल्पनिक आंकड़े देकर इनको वैधता का जामा पहनाया गया है और इसे महत्वहीन बनाया गया है. लिहाजा यह पूरी प्रक्रिया महज अंकगणितीय कवायद बनकर रह गई है. इसका आदिवासियों और दलितों के विकास के लिए जरूरी उपायों से कोई नाता नहीं है. केंद्र और राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और जनजातियों की आर्थिक स्वतंत्रता और शैक्षिक समानता के अहम आयामों को भुला बैठी हैं.’ (नोउशनल एलोकेशन वह आवंटन है जो केवल कागज पर है, जहां जरूरी बजट का जिक्र तो होता है, लेकिन उसका समुदायों के लाभ के लिए उपयोग नहीं होता).
ऐसे में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को संस्थागत रूप से वंचित किए जाने की प्रक्रिया में इनको फंड से वंचित करना और इनके लिए आवंटित फंड का दूसरी जगह इस्तेमाल करना एक घातक संयोग बन जाता है. यह व्यवस्थित भेदभाव किस तरह काम करता है, इसे समझने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि पिछली सरकारों के योजनागत व्यय से संबंधित दस्तावेजों की बारीकी से जांच की जाय.
इस काम की शुरुआत केंद्रीय और पूर्वी राज्यों से की जा सकती है जहां संवैधानिक और सरकारी संस्थाओं ने यह बार-बार कहा है कि अन्याय और गरीबी ने वामपंथी अतिवाद के लिए उर्वरा भूमि तैयार की है.
झारखंड
झारखंड सरकार के योजनागत व्यय के विस्तृत अध्ययन से पता चलता है कि टीसपी फंड के करोड़ों रुपयों का इस्तेमाल दो वीआईपी जहाजों (एक ट्रेनर एयरक्राफ्ट और एक मोटर ग्लाइडर) की खरीद, हजारीबाग, पलामू, धनबाद, दुमका और गिरिडीह में झारखंड फ्लाइंग इंस्टीट्यूट के बुनियादी ढांचे के विकास, कई जिला मुख्यालयों में रनवे के निर्माण और विस्तार, न्यायालय परिसर में न्यायालय भवन, आवासीय भवन, पुलिस बैरक के निर्माण और न्यायालय से संबंधित अन्य निर्माण कार्यों, रांका में एडिशनल कमांडेंट भवन/ एसडीओ भवन, महुआटांड में डिप्टी एसपी भवन, माननीय मंत्रियों के लिए आवासीय भवन, एमएलए आवास/ वरिष्ठ अधिकारियों के आवास, रांची में मुख्यमंत्री आवास/ ऑफिसर्स क्वार्टर में हैलीपैड के निर्माण, रांची और खूंटी के कलेक्ट्रेट के भवन के निर्माण और अन्य कार्यों, माननीय न्यायाधीशों के लिए आठ घरों, माननीय मंत्रियों के लिए आवासीय भवन, खूंटी में एमएलए आवास/ बंगले के निर्माण सहित कई अन्य कामों पर हुआ है.

फोटोः तहलका आका्इव
फोटोः तहलका आका्इव
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश सरकार के वित्तीय वर्ष 2014-15 के बजट के विश्लेषण से भी एससीएसपी और टीएसपी के अन्य कामों के लिए इस्तेमाल की बात पता चलती है. इस फंड को राजमार्गों और पुलों सहित बुनियादी ढांचे से संबंधित बड़ी परियोजनाओं में इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा इसे झीलों और तालाबों के सुंदरीकरण, एनिमल इंजेक्शंस, सिंथेटिक हॉकी टर्फ बनाने, स्टेट इंडस्ट्रियल प्रोटेक्शन फोर्स के गठन के लिए इस्तेमाल किया गया है. और तो और इस फंड को सिंहस्थ मेला, जिसे उज्जैन कुंभ मेला के नाम से जाना जाता है, के लिए भी खर्च किया गया है. सामाजिक दृष्टि से देखें, तो यह मेला अछूत प्रथा को बढ़ावा देने के लिए कुख्यात है. इसके अतिरिक्त एससीएसपी और टीएसपी के फंड का उपयोग गौसेवकों को भत्ता देने के लिए भी किया गया है, जो संघ परिवार की परियोजना है.
छत्तीसगढ़
यही हाल मध्य प्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का भी है. अगर हम वित्त वर्ष 2014-15 के छत्तीसगढ़ के बजट पर नजर डालें, तो पता चलता है कि यहां टीएसपी और एससीएसपी फंड को अन्य कामों के अलावा ‘स्पेशल पुलिस’ और ‘पुलिस’ के लिए इस्तेमाल किया गया. एससीएसपी से 3.03 करोड़ रुपये पुलिस विभाग को दे दिए गए.

राजनीतिक नेतृत्व और असंवेदनशील नौकरशाही उन आधारभूत सिद्धांतों को ध्वस्त कर रही हैं जिनके ऊपर टीएसपी और एससीएसपी का ढांचा बनाया गया
ओडीसा
ओडीसा के विश्लेषण में साफ हुआ कि टीएसपी और एससीएसपी फंड का इस्तेमाल पुलिस और अन्य बलों के आधुनिकीकरण, जेलों और पुलिस बैरकों के निर्माण, ओडीसा स्टेट पुलिस हाउसिंग एंड वेलफेयर कॉरपोरेशन के जरिए पुलिस के लिए आवासीय भवनों के निर्माण के लिए किया गया.
गुजरात
कई सालों से देश का आदर्श राज्य माने जा रहे गुजरात ने भी व्यवस्थित तरीके से एससीएसपी और टीएसपी फंड को अन्य मदों में इस्तेमाल किया है. इस फंड का इस्तेमाल मुख्यतः बुनियादी ढांचा क्षेत्र की बड़ी परियोजनाओं और अहम सिंचाई परियोजनाओं में किया गया है, जो काफी हद तक अमीर किसानों को फायदा पहुंचाते हैं. गुजरात की भूमिहीन जनसंख्या में बड़ी संख्या दलितों की है. साल 2012-13 में इस फंड का इस्तेमाल स्वामी विवेकानंद की 150वी जयंती मनाने के लिए किया गया. अंबेडकर जयंती मनाने पर दलितों के खिलाफ हिंसा के देशभर में कई मामलों के मद्देनजर देखें, तो अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए तय फंड का ऐसा इस्तेमाल वाकई रोचक है.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली
जब बात फंड के दूसरी जगह इस्तेमाल की आती है, तो इस मामले में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का अपना अलग ही इतिहास है- राष्ट्रमंडल खेलों के लिए फ्लाईओवर और हाईवे बनाने के लिए इस फंड के कुख्यात और विवादित इस्तेमाल से लेकर दीवाली की मिठाइयां बांटने जैसे काम इस फंड के जरिए हुए.
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आंध्र प्रदेश
दलित और आदिवासी समूहों द्वारा प्रभावी राजनीतिक ध्रुवीकरण के फलस्वरूप आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने दिसंबर 2012 में एससीएसपी एंड एसटीपी सब-प्लान एक्ट लागू किया. अपनी तरह के इस पहले अधिनियम की कई सीमाएं हैं, लेकिन अनुसूचित जातियों और जनजातियों के विकास के लिए बनाए जानेवाले कानूनों के इतिहास के शुरुआती कदम के रूप में इस अधिनियम का स्वागत किया गया.
हालांकि इस अधिनियम के लागू होने से पहले आंध्र प्रदेश में भी उनके हक के फंड से उन्हें वंचित किए जाने और फंड का दूसरे मदों में इस्तेमाल करने का लंबा इतिहास रहा है. साल 2010-11 में इनके फंड का इस्तेमाल रिंग रोड परियोजनाओं, कॉलेज अध्यापकों को वेतन देने और मंडल मुख्यालयों में वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा स्थापित करने आदि के लिए किया गया. साल 2011-12 में उनके लिए आवंटित फंड का उपयोग प्रिंट मीडिया में सरकारी विज्ञापन देने और आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (एपीएसआरटीसी) को मदद करने के लिए किया गया. साल 2012-13 में इस फंड का इस्तेमाल हुसैन सागर झील, कैचमेंट एरिया इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट और हैदराबाद मेट्रो रेल परियोजना के लिए किया गया.
बिहार
केंद्र और राज्य की विभिन्न परियोजनाओं में कभी-कभी अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण के लिए आधिकारिक रूप से फंड अलग रख दिया जाता है. लेकिन व्यवस्था में मौजूद असंतुलित शक्ति संबंध और संरचनात्मक कारक इस लाभ को उन लोगों तक पहुंचने से रोकते हैं, जिनके लिए इन्हें रखा गया होता है. बिहार के जहानाबाद जिले के मखदूमपुर प्रखंड में एससीएसपी फंड से पांच सड़कों के निर्माण के बारे में प्रयास ग्रामीण विकास समिति का हालिया अध्ययन इस बात का जीवंत उदाहरण है. दरअसल इस परियोजना के जरिए दलित बस्तियों को मुख्य सड़कों से जोड़ा जाना था, लेकिन अधिकांश मामलों में सड़क को दलित बस्तियों से एक या दो किलोमीटर पहले वहीं तक रोक दिया गया जहां अन्य हिंदू जातियां रहती हैं. इस तरह उस जातीय जनसंख्या को इससे लाभ मिला जिसका वहां पर दबदबा है और दलित अभी भी कच्ची सड़कों का इस्तेमाल कर रहे हैं. बिहार में अछूत प्रथा के कई ऐसे उदाहरण भी देखे गए हैं जिनमें दलितों को उन सड़कों पर चलने से रोका गया है, जिनका सवर्ण इस्तेमाल करते हैं.
नेशनल कोएलीशन ऑफ दलित ह्यूमन राइट्स (एनसीडीएचआर) की नेशनल कोऑर्डिनेटर बीना जे पल्लिकल पूछती हैं, ‘क्या यह अजीब नहीं है कि आदिवासियों और दलितों के लिए आवंटित पैसों का इस्तेमाल राज्य की दमनकारी शक्तियों जैसे पुलिस बल को मजबूत करने में किया जाता है? क्या वे लोग उन पैसों के इस्तेमाल के जरिए सताए या मारे नहीं जाते, जो दरअसल उन्हीं के लिए आवंटित किए गए होते हैं? क्यों इन पैसों का इस्तेमाल उनके लिए रोजगार के मौके बनाने में नहीं किया जाता?’
इनके लिए आवंटित पैसों का दूसरी जगह इस्तेमाल किए जाने और जेलों में कैदियों की संख्या के बीच एक सीधा संबंध भी दिख रहा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से हाल ही में जारी किए आंकड़ों के मुताबिक 53 फीसदी भारतीय कैदी दलित, आदिवासी और मुस्लिम हैं, जबकि देश की कुल जनसंख्या में इनकी संख्या इससे कम है.
गुजरात
nवित्त वर्ष 2012-13 में 37.02 करोड़ रुपये जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) को इन्््फ्रास्ट्रक्चर और गवर्नेंस के लिए दे दिए गए.
nइसके अलावा 115 करोड़ रुपये स्वर्ण जयंती मुख्य मंत्री शहरी विकास योजना के तहत निगमों को सहायता अनुदान के तौर पर दे दिए गए.
nस्वर्णिम गुजरात के उद्देश्य हासिल करने और आदर्श कस्बे बनाने के लिए नगरपालिकाओं को मदद के तौर पर 124.27 करोड़ रुपये दे दिए गए.
nशेयर कैपिटल कंट्रिब्यूशन के तौर पर सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड की ओर 700 करोड़ रुपए बढ़ा दिए गए.
nवित्त वर्ष 2013-14 में 5 करोड़ रुपए का इस्तेमाल स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती मनाने के लिए कर दिया गया.
nमेडिकल, डेंटल, नर्सिंग और फिजियोथेरेपी कॉलेजों और अस्पतालों के िलए चिकित्सा उपकरणों और मोटर वाहनों के लिए 72 करोड़ रुपये का इस्तेमाल कर लिया गया.
nशेयर कैपिटल कंट्रिब्यूशन के तौर पर सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड को 200 करोड़ रुपये दे दिए गए.
nवित्त वर्ष 2014-15 में 32.61 करोड़ रुपये जल संरक्षण से जुड़े कामों में इस्तेमाल कर लिए गए, जिनमें अन्य कामों के अलावा तालाबों की खुदाई, चेक डैम आदि का निर्माण शामिल है.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के विकास रावल ने 2011 की जनगणना और नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह पाया है कि ‘केवल तीन फीसदी ग्रामीण आदिवासियों के घरों में नल से पानी आता है, इस समुदाय के 5 फीसदी से भी कम लोग बिजली का इस्तेमाल करते हैं, (केवल) लगभग 16 फीसदी लोगों के घर में किसी भी तरह के शौचालय हैं, 1.7 फीसदी के घरों में बाथरुम और बंद नालियां हैं, केवल 2.6 फीसदी के पास धुंआरहित ईंधन और घर के भीतर रसोई की सुविधा है. साल 2011 की जनगणना के साथ लिए गए आंकड़ों के मुताबिक 41 फीसदी ग्रामीण आदिवासी परिवारों के पास किसी भी तरह की मूलभूत संपत्ति (जैसे साईकिल, रेडियो या टेलीविजन) नहीं है.’
एनएसएसओ के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए उसी अध्ययन ने यह भी साबित किया कि ‘पीने के पानी और साफ-सफाई जैसी मूलभूत सुविधाओं के मामले में साल 1993 से 2012 के बीच मामूली विकास हुआ.’ अगर योजना आयोग की ओर से प्रकाशित विवादित अनुमानों पर भरोसा करें, तो 47 फीसदी आदिवासी परिवार गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रहे हैं (स्वतंत्र विश्लेषकों के मुताबिक यह आंकड़ा और अधिक है). सवाल उठता है कि इन लोगों को टीएसपी और एससीएसपी फंड से वंचित कर और उनके लिए आवंटित फंड को दमनात्मक व्यवस्थाओं को मजबूत करने व एयरक्राफ्ट, हैलीपैड और शानदार आवासीय कॉम्प्लैक्स जैसी विलासिता के लिए इस्तेमाल कर क्या राज्य स्वयं ही वित्तीय साधनों के बीच एक गृह युद्ध जैसी स्थितियां पैदा नहीं कर रहा है?
मध्य प्रदेश
वित्त वर्ष 2014-15 में मध्य प्रदेश में एससीएसपी फंड का इस तरह बेजा इस्तेमाल किया गया-
nराज्य के राजमार्गों के लिए 46.80 करोड़ रुपये लगाए गए.
nसिंहस्थ मेला (उज्जैन कुंभ मेला, जो अछूत प्रथा को बढ़ावा देने के लिए कुख्यात है) के लिए 25 करोड़ रुपये दिए गए.
nपुलिस स्टेशनों के निर्माण, स्टेट इंडस्ट्रियल प्रोटेक्शन फोर्स के गठन और ऑफिस फर्नीचर की खरीद के लिए 18.05 करोड़ रुपये इस्तेमाल किए गए.
nबड़े पुलों के निर्माण के लिए 15 करोड़ रुपये लगाए गए.
nस्टेडियम के निर्माण के िलए 4.5 करोड़ रुपए और सिंथेटिक हॉकी टर्फ के लिए 0.65 करोड़ रुपये दिए गए.
nजेलों में सुविधाएं देने के लिए 1.22 करोड़ रुपये दिए गए.

योजनाओं और परियोजनाओं के स्तर पर भी होता है भेदभाव
नेशनल कोएलीशन ऑफ एससीएसपी/टीएसपी के कन्वेनर पॉल दिवाकर शिक्षा का उदाहरण देते हुए बताते हैं, ‘आरटीआई के माध्यम से हमें इस बात के सबूत मिले हैं कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को टीएसपी और एससीएसपी फंड से पैसे दिए गए हैं. यह स्पष्ट है कि इस पैसे में से अधिकांश का इस्तेमाल संस्थाओं के लिए संपत्तियां बनाने के लिए किया गया है. नाममात्र की राशि का इस्तेमाल ही फेलोशिप और स्कॉलरशिप के लिए किया गया है, जो इस अतिशय जातिवादी शिक्षा व्यवस्था में दलित और आदिवासी छात्रों के आगे बढ़ने में काफी मददगार साबित होती है.’
अगर योजना आयोग की ओर से प्रकाशित विवादित अनुमानों पर भरोसा करें, तो 47 फीसदी आदिवासी परिवार गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रहे हैं
सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटिबिलिटी, दिल्ली में फैकल्टी के तौर पर काम कर रहे सुब्रत दास कहते हैं, ‘इन फंड को दूसरे कामों में इस्तेमाल किए जाने को कड़ाई से रोकने के अलावा अहम यह भी है कि इसमें सीधे हस्तक्षेप करके अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीधे नीतिगत लाभ सुनिश्चित किए जाएं.’
फोटोः ववजय पांडेय
फोटोः ववजय पांडेय
अपनी इस बात को आगे बढ़ाते हुए दास राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम का उदाहरण देते हैं. वह कहते हैं, ‘इस योजना के दिशा-निर्देश ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप के जरिए जल आपूर्ति के लिए हैं. हालांकि देश के कुछ हिस्सों में अनुसूचित जनजाति समुदाय पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं, जहां पाइप के जरिए जल आपूर्ति नहीं की जा सकती. ऐसे स्थानों के लिए स्प्रिंग बॉक्स जैसी चीज सबसे
उपयुक्त हो सकती है, जहां हमेशा बने रहनेवाले स्प्रिंग होते हैं. लेकिन इस योजना के दिशा-निर्देश इस तरह की परेशानी और चुनौती को उठाने के लिए तैयार नहीं दिखते.’
इसी तरह इस बात का उल्लेख किया जाता है कि एससीएपी और टीएसपी फंड के इस्तेमाल के मामले में मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी संवेदनहीन है. केंद्र सरकार के कार्यक्रम सर्व शिक्षा अभियान के विस्तृत अध्ययन के दौरान जयश्री मंगूभाई ने अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों के सामने पेश आनेवाले तीन तरह के भेदभावों का उल्लेख किया है- शिक्षकों द्वारा, साथी समूहों द्वारा और ‘व्यवस्था’ द्वारा. ‘बैठने की अलग व्यवस्था, अनुसूचित जाति के छात्रों को डांटने के दौरान अनावश्यक कड़ाई, अनुसूचित जाति के छात्रों को समय न देना, उन पर ध्यान न देना, स्कूल के सार्वजनिक कार्यक्रमों से अनुसूचित जाति के छात्रों को बाहर रखना, अनुसूचित जाति के छात्रों की पढ़ाई की क्षमता के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां देना, स्कूल की खेल गतिविधियों में अनूसूचित जाति के छात्रों को शामिल न करना, पाठ्यक्रम और किताबों में जातिगत विशिष्टताओं को शामिल करना, अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए लाभकारी योजनाओं को पूरी तरह लागू न करना, शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान उनके संवेदीकरण का अभाव’ जैसी चीजें इसमें शामिल होती हैं.
छत्तीसगढ़
nवित्त वर्ष 2014-15 के दौरान एससीएसपी से 3.03 करोड़ रुपये पुलिस विभाग को इस्तेमाल के लिए दे दिए गए, जबकि टीएसपी से 2 करोड़ रुपये स्पेशल पुलिस के काम के लिए लगा दिए गए.
आंध्र प्रदेश
nवित्त वर्ष 2010-11 में एससीएसपी से 62.4 करोड़ रुपये क्वार्टर रिंग रोड परियोजना के लिए एचएमडीए को बतौर कर्ज दिए गए.
nवित्त वर्ष 2011-12 में एससीएसपी से 9.7 करोड़ रुपये हुसैनसागर झील और कैचमेंट एरिया इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल किए गए.
nइसके अलावा 3.4 करोड़ रुपये सरकार के प्रचार कार्यों में खर्च किए गए.
ओडीसा
nवित्त वर्ष 2014-15 में एससीएसपी से 172 करोड़ रुपये िसंचाई और सड़कों के सुधार से जुड़ी परियोजनाओं के लिए लगाए गए.
nएससीएसपी से 73 करोड़ रुपये बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम में लगा दिए गए.
nटीएसपी से 12.8 करोड़ रुपये न्यायालय भवन और 12.41 करोड़ रुपये पुलिस कल्याण के लिए भवन बनाने में लगाए गए.
दिल्ली
nवित्त वर्ष 2006-07 में शीला दीक्षित के नेतृत्ववाली दिल्ली सरकार ने मैला ढोने वालों के कल्याण और विकास के लिए आवंटित 9.12 लाख रुपये का इस्तेमाल दीवाली की मिठाइयां और उपहार खरीदने में किया.
nवित्त वर्ष 2007-08 में भी दिल्ली सरकार ने मैला ढोने वालों के लिए आवंटित 7.85 लाख रुपये का इस्तेमाल दीवाली की मिठाइयां और उपहार खरीदने में किया.
एक शोधकर्ता और कार्यकर्ता संजय भारती कहते हैं, ‘जब इस तरह के भेदभाव का माहौल हो, तो यह कल्पना करना ही बेवकूफी है कि आम योजनाओं से अनुसूचित जाति/ जनजाति के छात्रों को बाकी छात्रों के बराबर फायदा होगा.’
पॉल दिवाकर कहते हैं, ‘सभी राजनीतिक दलों के नेता दिवास्वप्न देखते हैं कि भारत एक मजबूत आर्थिक शक्ति बनेगा. लेकिन दलितों और आदिवासियों के साथ हो रहे व्यवस्थागत भेदभाव के साथ आर्थिक शक्ति कैसे बना जा सकता है?’
दिवाकर कहते हैं, ‘हमने अधिकांश केंद्रीय बजटों और राज्य बजटों का विश्लेषण किया है. फंड से वंचित किए जाने, फंड का उपयोग न करने और फंड का दूसरी जगह इस्तेमाल करने जैसे गंभीर मसलों के अलावा आम स्थिति यह है कि लगभग 70 फीसदी आवंटित राशि सर्वाइवल योजनाओं में जाता है, विकास योजनाओं के लिए नहीं, जो आर्थिक क्षेत्र के तहत आता है. यह बात स्पष्ट रूप से जाहिर करती है कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों का आर्थिक विकास सरकारों की प्राथमिकता नहीं हैं. अगर सरकारें सर्वाइवल योजनाओं के साथ स्वामी-सेवक के संबंध जारी नहीं रखना चाहतीं, तो उन्हें लंबी अवधि की संपूर्ण विकास परियोजनाओं की पहल करनी चाहिए. इसीलिए हम एससीएसपी/टीएसपी के लिए विधेयक लाए जाने की मांग कर रहे हैं ताकि नियमों के उल्लंघन को फौजदारी अपराध माना जाए. फिलहाल इससे निपटने के लिए सर्फ दिशा-निर्देश हैं.’
दलितों और आदिवासियों के साथ हो रहे व्यवस्थागत भेदभाव के रहते भारत भला मजबूत आर्थिक शक्ति कैसे बन सकता है
क्या भारत सरकार दलितों और आदिवासियों की इस विकराल समस्या के समाधान के लिए कोई कड़ा कानून लाएगी? इस मसले पर काम करनेवालों और सार्वजनिक दस्तावेजों के मुताबिक, आंतरिक बहस और सक्रिय समूहों के दबाव के बाद यूपीए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इस बारे में एक विधेयक लाने और पारित कराने का प्रयास किया था.
इस विधेयक का मसौदा बनाने और उसे आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाने वाले पीएस कृष्णन कहते हैं, ‘सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से बनाए गए विधेयक में कई कमियां थीं. लेकिन यह एक सकारात्मक कदम था. फिर भी यह विधेयक आगे नहीं बढ़ पाया, क्योंकि यूपीए सरकार से जुड़े दो अहम लोगों- प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया- ने जोरदार तरीके से इसका विरोध किया था.’
रोचक बात यह है कि 27 जून 2005 को राष्ट्रीय विकास परिषद की 51वीं बैठक में बोलते हुए मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘1970 के दशक के मध्य में स्पेशल कंपोनेंट प्लान और ट्राइबल सब-प्लान की शुरुआत की गई थी. ट्राइबल सब-प्लान और स्पेशल कंपोनेंट प्लान दरअसल वार्षिक योजनाओं और पंचवर्षीय योजनाओं के अभिन्न हिस्से होने चाहिए. इसमें यह प्रावधान होने चाहिए कि इन फंड को दूसरी योजनाओं के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और ये फंड लैप्स नहीं हो सकते. इसके अलावा इनके साथ एक स्पष्ट लक्ष्य यह होना चाहिए कि 10 वर्षों की अवधि के दौरान अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के अंतर को मिटा दिया जाए.’
लेकिन यूपीए सरकार को जो दो कार्यकाल मिले, उसमें आदिवासियों और दलितों के लिए आवंटित फंड को दूसरे कामों के लिए इस्तेमाल किया गया, जिससे साफ होता है कि सिंह का यह भाषण महज शब्दों का आडंबर था. हालांकि सिंह और कांग्रेस अब सत्ता में नहीं हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चलती दिख रही है.
भारत में लंबे समय से दमित दलित और वंचित आदिवासी इन सबके बीच मानो यह सवाल पूछ रहे हों कि हमारे लिए तय सारे पैसे आखिर कहां गए?
(Published in Tehelkahindi Magazine, Volume 7 Issue 2, Dated 31 January 2015)

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