रविवार, 29 मार्च 2015

एनटीपीसी के सीएमडी की करतूतें दबाए बैठा है ऊर्जा मंत्रालय : घोटालों का कॉरपोरेशन..!

NTPC
नेशनल थर्मल पाड (एनटीपीसी) ने सरकारी परियोजना के लिए अधिग्रहीत की गई ज़मीन गुपचुप तरीके से बोफोर्स-फेम हिंदुजा समूह को दे दी. सरकार की सिमाद्री परियोजना की सैकड़ों एकड़ ज़मीन हिंदुजा समूह को दे दिए जाने के मामले में ऊर्जा मंत्रालय संदेहास्पद तरीके से चुप्पी साधे बैठा है, जबकि केंद्रीय सतर्कता आयोग ने आवश्यक कार्रवाई के लिए इसे ऊर्जा मंत्रालय को अग्रसारित कर दिया था. यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक को इसकी जानकारी है. एनटीपीसी के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक अरूप रॉय चौधरी ने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम स्थित सिमाद्री परियोजना की अधिग्रहीत ज़मीन हिंदुजा समूह को देकर क़ानून की तो धज्जियां उड़ाईं ही, एनटीपीसी और देश को भीषण आर्थिक एवं व्यापारिक नुक़सान भी पहुंचाया. 19 जून, 2014 को एनटीपीसी बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव पारित कर हिंदुजा समूह को ज़मीन दे दी गई थी.
एनटीपीसी की सिमाद्री परियोजना के लिए क़रीब 3400 एकड़ ज़मीन अधिग्रहीत की गई थी. उसी ज़मीन का बड़ा हिस्सा बिना किसी पूर्व अनुमति के हिंदुजा समूह को दे दिया गया. स्वाभाविक है कि यह काम लाभ-प्रभाव में ही किया गया होगा. एनटीपीसी के सीएमडी अरूप रॉय चौधरी जब नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) के सीएमडी थे, तब उन्होंने मेसर्स एअरकॉन इंजीनियरिंग सर्विसेज समेत कई अन्य ठेकेदारों से मिलीभगत करके भारत-पाक सीमा पर तारबंदी (फेंसिंग) जैसे संवेदनशील काम में भी घपला किया था. इस आरोप की भी शिकायत सीवीसी और पीएमओ को है. देश की ऊर्जा ज़रूरतों के लिए भारत सरकार अमेरिका के साथ परमाणु करार कर रही है, लेकिन ऊर्जा उत्पादन करने वाला देश का सबसे बड़ा प्रतिष्ठान नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) बिखरने की हालत में है. इस ओर केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया है. भ्रष्टाचार और अराजकता में घिरा एनटीपीसी बंद न हो जाए, इसके लिए एनटीपीसी के अधिकारियों ने ही भ्रष्ट प्रबंधन के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है.
एनटीपीसी के सीएमडी अरूप रॉय चौधरी जब नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) के सीएमडी थे, तब उन्होंने मेसर्स एअरकॉन इंजीनियरिंग सर्विसेज समेत कई अन्य ठेकेदारों से मिलीभगत करके भारत-पाक सीमा पर तारबंदी (फेंसिंग) जैसे संवेदनशील काम में भी घपला किया था. इस आरोप की भी शिकायत सीवीसी और पीएमओ को भेजी गई है.
एनटीपीसी के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक अरूप रॉय चौधरी के कुप्रबंधन के कारण प्रतिष्ठान को हो रहे नुक़सान के ख़िलाफ़ एनटीपीसी एक्जीक्यूटिव्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (नेफी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे सीधे हस्तक्षेप करने की अपील की है. नेफी का कहना है कि एनटीपीसी को बचाने के लिए कंपनी के शीर्ष नेतृत्व में आपातकालीन बदलाव की ज़रूरत है. नेफी एनटीपीसी के एक्जीक्यूटिव अफसरों का अकेला सर्वोच्च प्रतिनिधि संगठन है. नेफी ने प्रधानमंत्री से कहा है कि एनटीपीसी अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक अरूप रॉय चौधरी ने संस्था की बेहतरीन कार्य संस्कृति को नष्ट करके रख दिया है. संस्था के प्रतिबद्ध कार्यपालक अधिकारियों के प्रयासों को अनदेखा किया जा रहा है और पिछले 39 सालों में ऊर्जा उत्पादन के बड़े-बड़े कीर्तिमान स्थापित करने वाले उन अधिकारियों को कंपनी पर एक बोझ की तरह दिखाया जा रहा है. पिछले चार सालों में एनटीपीसी के शीर्ष प्रबंधन ने नेफी को पंगु करने की सारी कोशिशें की हैं और 24 अक्टूबर, 2013 के बाद से तो कोई बैठक भी नहीं बुलाई गई. वह बैठक भी काफी जद्दोजहद के परिणामस्वरूप 33 महीने के बाद हुई थी. इसके पीछे शीर्ष प्रबंधन का इरादा भ्रष्टाचार, अपनी कमजोरियों एवं नाकामियों पर पर्दा डालना है. इस वजह से एनटीपीसी के सारे एक्जीक्यूटिव अफसर खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और नीतिगत निर्णयों में उन्हें कोई भागीदारी नहीं दी जा रही है.
पिछले चार सालों में एनटीपीसी का जो लाभ आंकड़ों में दिखाया जाता है, वह फर्जी है. उत्पादन में कंपनी लाभ पर नहीं रही, तो अतिरिक्त क्षमता बढ़ाकर उसे लाभ के आंकड़ों में जोड़ दिया गया है. जबकि क्षमता के अनुरूप विद्युत उत्पादन में एनटीपीसी नाकाम हो रहा है. अब देश की प्रथम दस परियोजनाओं में एनटीपीसी का नाम कहीं भी शुमार नहीं है. कोयला घोटाले के गंभीर आरोपों में घिरे एनटीपीसी के पास अब केवल एक ही कोल ब्लॉक पकरी-बरवाडीह है, लेकिन औपचारिक मंजूरियों के बावजूद प्रबंधकीय अकर्मण्यता की वजह से वहां खनन कार्य नहीं हो रहा. देश में खनन के क्षेत्र में बेहतरीन तकनीकी विकास के लिए आस्ट्रेलिया की कंपनी थीस प्राइवेट लिमिटेड से संबद्ध संस्था थीस इंडिया से 30 नवंबर, 2010 को एक करार हुआ था, लेकिन विडंबना यह है कि एनटीपीसी के शीर्ष प्रबंधन ने अनुबंध को एकतरफ़ा समाप्त कर दिया. इस पर केंद्र सरकार ने कोई कार्रवाई भी नहीं की. एनटीपीसी स्वीकृत कोल ब्लॉक से कोयले का खनन नहीं कर रहा, जबकि कोयले की कमी के कारण ही एनटीपीसी की कई महत्वपूर्ण इकाइयां लचर हालत में पहुंच गई हैं और उत्पादन लगातार गिर रहा है. एनटीपीसी का बिहार का कहलगांव बिजलीघर हो या पश्‍चिम बंगाल का फरक्का बिजलीघर या फिर छत्तीसगढ़ के कोरबा, सीपत या बिलासपुर जैसे कई अन्य संयंत्र अपनी उत्पादन क्षमता में लगातार आ रही कमी के कारण चर्चा में हैं.
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के आंकड़े भी बताते हैं कि एनटीपीसी के 20 हज़ार मेगावाट क्षमता के बिजली घरों समेत कई अन्य ताप विद्युत घरों के समक्ष उत्पादन में हृास का भारी संकट है. पिछले वित्तीय वर्ष में एनटीपीसी ने 2675 मेगावाट बिजली उत्पादन (कॉमर्शियल) का लक्ष्य रखा था, लेकिन केवल 2003 मेगावाट विद्युत का ही उत्पादन हो सका. वाणिज्यिक बिजली के उत्पादन में लगी इकाइयां अपनी पूर्ण क्षमता से काम नहीं कर रहीं, लेकिन सीएमडी अरूप रॉय चौधरी देश भर में घूम-घूम कर प्रायोजित मेडल और सम्मान बटोरने में मस्त हैं. इसका खामियाजा आख़िरकार देश को ही भुगतना पड़ रहा है. वर्ष 2011-12 के अंत तक विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी जहां 16 प्रतिशत से बढ़कर 23.4 प्रतिशत हुई थी, वहीं एनटीपीसी की भागीदारी 25.32 प्रतिशत से बढ़कर मात्र 26 प्रतिशत तक पहुंची. इससे प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में एनटीपीसी की अधोगति का आकलन किया जा सकता है. ग़ैर पेशेवर (अन-प्रोफेशनल) रवैये के कारण एक नवंबर, 2014 को जब सेंसेक्स 20,450 पर था, तब एनटीपीसी के शेयर की क़ीमत 219 रुपये थी. दिसंबर 2014 में सेंसेक्स 38 प्रतिशत बढ़कर 27,371 तक पहुंच गया, लेकिन एनटीपीसी का शेयर 38 प्रतिशत कम होकर 135 रुपये पर गिर गया. इससे न केवल कंपनी एवं निवेशकों को आर्थिक क्षति पहुंची, बल्कि शेयर मार्केट में एनटीपीसी की साख को भी ऩुकसान पहुंचा. विडंबना यह भी है कि पिछले चार वर्षों में शुरू की गई किसी भी परियोजना के विस्तारण का काम समय पर नहीं हुआ. यहां तक कि कई साझा परियोजनाएं भी लंबित पड़ी हुई हैं.
पिछले चार सालों में एनटीपीसी का जो लाभ आंकड़ों में दिखाया जाता है, वह फर्जी है. उत्पादन में कंपनी लाभ पर नहीं रही, तो अतिरिक्त क्षमता बढ़ाकर उसे लाभ के आंकड़ों में जोड़ दिया गया है. जबकि क्षमता के अनुरूप विद्युत उत्पादन में एनटीपीसी नाकाम हो रहा है. अब देश की प्रथम दस परियोजनाओं में एनटीपीसी का नाम कहीं भी शुमार नहीं है. कोयला घोटाले के गंभीर आरोपों में घिरे एनटीपीसी के पास अब केवल एक ही कोल ब्लॉक  पकरी-बरवाडीह है, लेकिन औपचारिक मंजूरियों के बावजूद प्रबंधकीय अकर्मण्यता की वजह से वहां खनन कार्य नहीं हो रहा.
नेफी ने प्रधानमंत्री को आगाह करते हुए लिखा है कि वर्ष 2017 तक 43,128 मेगावाट से 75,000 मेगावाट का उत्पादन लक्ष्य पाने के लिए एनटीपीसी को खास ध्यान देना होगा, क्योंकि ज़मीनी हालत यह है कि एनटीपीसी की 30,351 परियोजनाएं 25 साल या उससे भी अधिक पुरानी हैं. एनटीपीसी में नई परियोजनाओं के क्रियान्वयन की ज़रूरत है, लेकिन शीर्ष प्रबंधन का इस पर ध्यान ही नहीं है. लिहाजा इस मामले में प्रधानमंत्री का हस्तक्षेप ज़रूरी हो गया है. प्रबंधकीय अराजकता का यह हाल है कि शीर्ष प्रबंधन के स्तर पर लिए गए फैसलों में कोई स्थायित्व नहीं रहता और अराजकतापूर्ण तरीके से फैसले लिए और खारिज किए जाते हैं. पहली बार अपर महाप्रबंधक (स्थापना) का पद सृजित किया गया, फिर छह महीने बाद ही उसे समाप्त कर दिया गया. प्रबंधन ने अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सस्ते मकान देने का वादा किया था. इसके लिए कई भर्तियां कर ली गईं, लेकिन प्रबंधन की तरफ़ से निजी बिल्डरों के बने फ्लैट बाज़ार की क़ीमत पर उपलब्ध कराए जाने लगे. हालत इतनी बदतर हो गई कि बिल्डरों के साथ करार पर एनटीपीसी ने ही होम लोन देने से इंकार कर दिया.
नेफी ने काफी विरोध करके इस योजना पर रोक लगवाई और सदस्यों को अपनी सदस्यता वापस लेने का विकल्प दिलवाया. इसके अलावा ईंधन सुरक्षा (कोल एवं गैस) के संवेदनशील मामले के निपटारे में भी प्रबंधन को घोर विफलता हासिल हो रही है. केंद्रीय इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेशन समिति (सीईआरसी) की 2014-19 के कठोर टैरिफ मानदंडों की नीतिगत वकालत में शीर्ष प्रबंधन की तरफ़ से कमजोरी बरती गई. इसकी वजह से एनटीपीसी को घोर आर्थिक क्षति पहुंच रही है. प्रबंधन मनमाने तरीके से अधिकारियों एवं कर्मचारियों के तबादले कर रहा है, इससे घोर निराशा का माहौल बन गया है. नेफी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश पांडेय ने कहा कि न्याय के सारे रास्ते बंद होने के कारण ही उन्हें प्रधानमंत्री को सीधे पत्र लिखने के लिए विवश होना पड़ा है. एनटीपीसी जैसे महत्वपूर्ण एवं सुविख्यात संस्थान और उसके कार्यपालकों (एक्जीक्यूटिव्स) की स्थिति अत्यंत ही दयनीय हो चुकी है. पांडेय ने कहा कि इस उच्च पेशेवर संस्था में घटिया राजनीति रोपने की कोशिशें हो रही हैं, जिसके तार सीधे सीएमडी कार्यालय से जुड़े पाए गए हैं, जिसे कंपनी के हित में तुरंत रोका जाना चाहिए.

कांग्रेस के चुनाव प्रचार में एनटीपीसी का हेलिकॉप्टर!
कोयला घोटाले का प्रमुख अभियुक्त सरकारी उपक्रम एनटीपीसी पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रचार-प्रसार में जी-जान से जुटा था. सीएमडी के आदेश पर एनटीपीसी के हेलिकॉप्टर सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार अभियान में जोर-शोर से लगे हुए थे. गहरा सवाल है कि कोयला घोटाले में फंसे प्रतिष्ठान के हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल सोनिया गांधी क्यों कर रही थीं? एनटीपीसी के हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन से अधिक गंभीर है और यह बड़े घोटाले से जुड़े होने का सूत्र है. लेकिन, विडंबना यह है कि इसकी सूचना होने के बावजूद चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की. एनटीपीसी से भी चुनाव आयोग ने यह नहीं पूछा कि सरकारी उपक्रम होते हुए उसने अपने हेलिकॉप्टर राजनीतिक इस्तेमाल के लिए कैसे दे दिए? एनटीपीसी ने आदर्श चुनाव आचार संहिता का ध्यान रखते हुए इसके लिए आयोग से इजाजत क्यों नहीं ली थी या किसके आदेश से एनटीपीसी प्रबंधन ने अपने हेलिकॉप्टर कांग्रेस को चुनाव प्रचार के लिए दे दिए थे?

जांच जारी थी, फिर कैसे हुआ चयन!
एनटीपीसी के सीएमडी अरूप रॉय चौधरी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की लंबी फेहरिस्त थी, तो सीएमडी के पद पर उनका चयन कैसे हो गया? प्रमुख समाजसेवी एवं आरटीआई योद्धा महेंद्र अग्रवाल का यह सवाल अब तक अनुत्तरित है. एनटीपीसी के सीएमडी पद के लिए 17 सितंबर, 2009 को जारी विज्ञप्ति द्वारा आवेदन आमंत्रित किए गए थे. इस पद के लिए कुल 25 आवेदन पत्र प्राप्त हुए थे, जिनमें एनटीपीसी में कार्यरत निदेशक (कॉमर्शियल) आईजे कपूर, अधिशासी निदेशक विश्‍वरूप और निदेशक (वित्त) एके सिंघल के साथ-साथ एनबीसीसी के सीएमडी अरूप रॉय चौधरी भी शामिल थे. पूरी मशीनरी अरूप रॉय चौधरी को एनटीपीसी का सीएमडी बनाने पर आमादा थी. इसलिए योग्यता का मापदंड ताख पर रख दिया गया और 25 आवेदकों में से एके सिंघल और अरूप रॉय चौधरी का नाम ही तत्कालीन ऊर्जा मंत्री की स्वीकृति के लिए भेजा गया. रॉय चौधरी की नियुक्ति वैसे ही हुई, जैसे पीजे थॉमस की नियुक्ति केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर हुई थी. आश्‍चर्य यह है कि सीएमडी पद पर चयनित व्यक्ति की पृष्ठभूमि की जांच भी नहीं की गई. रॉय चौधरी जब एनबीसीसी के चेयरमैन थे, तो उसका टर्नओवर लगभग 3,000 करोड़ रुपये था, जबकि एनटीपीसी का टर्नओवर 50 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक था. अरूप रॉय चौधरी के नाम पर मंजूरी की मुहर लगाने वाले तत्कालीन ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे के साथ-साथ शहरी विकास मंत्रालय और एनबीसीसी के सीवीओ संदेह के घेरे में हैं. भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में विजिलेंस क्लियरेंस दिया जाना पूरी तरह संदेहास्पद है. एनटीपीसी के सीएमडी पद के लिए चयन के समय रॉय चौधरी पर भ्रष्टाचार के दो गंभीर मामलों की जांच लंबित थी. एक जांच एनबीसीसी के सतर्कता विभाग के एके कपूर कर रहे थे, जो रॉय चौधरी की आय से अधिक संपति के मामले की थी. दूसरी जांच शहरी विकास मंत्रालय के सीवीओ द्वारा की जा रही थी. इन विभागों से मंजूरी मिलना मिलीभगत की सनद है. एनबीसीसी के सीवीओ रवनीश कुमार एवं शहरी विकास मंत्रालय के सीवीओ आरसी मिश्रा ने कैसे और किस तरह विजिलेंस क्लियरेंस दे दी, यह गहराई से जांच का विषय है. केंद्रीय सतर्कता आयोग भी कहता है कि रॉय चौधरी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के दो मामले लंबित हैं. रॉय चौधरी पर पुष्प बिहार प्लाजा भवन और एनबीसीसी के गेस्ट हाउस को अवैध तरीके से आवास के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप है. सीवीसी ने एनबीसीसी के सीवीओ से रिपोर्ट भी मांगी थी, लेकिन सीवीओ रवनीश कुमार ने बहाना बनाकर टाल दिया.

भ्रष्टाचार के आरोपों की लंबी फेहरिस्त
समाजसेवी महेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि अरूप रॉय चौधरी पर भ्रष्टाचार के आरोपों की लंबी फेहरिस्त है…
1. अरूप रॉय चौधरी ने हावड़ा के मेसर्स आरके मिलन के साथ मिलकर ज़मीन खरीद में एनबीसीसी को 12.12 करोड़ रुपये का नुक़सान पहुंचाया.
2. हरियाणा के गुड़गांव और खेखड़ा, लोनी बॉर्डर पर दो-दो भूमि खंड प्राइवेट पार्टियों से बाज़ार भाव से बहुत महंगे में खरीद कर एनबीसीसी को करोड़ों रुपये का नुक़सान पहुंचाया.
3. मेसर्स एअरकॉन इंजीनियरिंग सर्विसेज और अन्य ठेकेदारों से मिलीभगत कर भारत-पाक सीमा पर हुए बॉर्डर फेंसिंग के काम में घपला किया.
4. विबग्योर टावर प्रोजेक्ट, कोलकाता और नेताजी नगर प्रोजेक्ट में ठेकेदारों को ग़लत तरीके से भुगतान कर कंपनी को भारी नुक़सान पहुंचाया.
5. नॉर्थ-ईस्ट में मेसर्स एसके बिल्डर्स (मिजोरम), मेसर्स जादुमनी सिंह (मिजोरम), मेसर्स वीएमजी (मिजोरम), मेसर्स जीएस अग्रवाल (मिजोरम), मेसर्स जेसी कॉरपोरेशन (मेघालय एवं मिजोरम) के साथ मिलीभगत कर करोड़ों रुपये का ग़लत भुगतान कर उन कंपनियों को रॉय चौधरी ने बेजा फ़ायदा पहुंचाया.
6. एनबीसीसी गेस्ट हाउस 15-ए, सेक्टर 30, नोएडा को ग़लत तरीके से आवास के रूप में इस्तेमाल किया गया, जिस पर 2,11,902 रुपये की रिकवरी बनी थी, लेकिन दबाव डालकर उसे वेव-ऑफ (मा़फ ) करा लिया गया. सीवीसी की जांच चल रही थी.
7. बिहार में पटना के कंकड़बाग प्रोजेक्ट में भी काफी घोटाला किया गया. इस वजह से बिहार सरकार ने पांच सौ करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट एनबीसीसी से वापस ले लिया था. प्रोजेक्ट में डेनेज निर्माण आदि का काम था. घटिया निर्माण और घटिया सामग्री के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्थलीय निरीक्षण कर रिपोर्ट दर्ज कराने का आदेश दिया था. अनीसाबाद-फुलवारी शरीफ मुख्य मार्ग, पत्रकार नगर थाना क्षेत्र के मलाही पकड़ी में ड्रेनेज निर्माण, सड़क, सीवरेज, जलापूर्ति, कचरा प्रबंधन के नेहरू मिशन प्रोजेक्ट के 500 करोड़ रुपये का काम एनबीसीसी से वापस ले लिया गया था.
8. दिल्ली के साकेत (पुष्प विहार) में सामाजिक कार्यों मसलन, पोस्ट ऑफिस, समाज सदन आदि के निर्माण के लिए शहरी विकास मंत्रालय ने एनबीसीसी को ज़मीन दी थी. रॉय चौधरी ने उस ज़मीन पर कार्यालय और व्यवसायिक केंद्र का निर्माण कराकर आयकर और कस्टम एक्साइज विभाग को बेच दिया.
9. नेताजी नगर, चाणक्यपुरी दिल्ली में शहरी विकास मंत्रालय की ज़मीन लीला होटल्स को ग़लत ढंग से बेचने और मोटी रकम बतौर कमीशन खाने का आरोप.
10. रांची, कोलकाता, फरीदाबाद, बसंतकुंज, बसंत विहार, डिफेंस कालोनी एवं चितरंजन पार्क सहित अनेक स्थानों पर बेनामी संपतियां. विदेशों में भी कई बेनामी संपतियों के अलावा अरबों का निवेश.
11. उत्तर प्रदेश के अमेठी संसदीय क्षेत्र में जगदीशपुर स्थित स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया की मालविका स्टील फैक्ट्री बंद कराकर बिना किसी प्रस्ताव के तापीय परियोजना का राहुल गांधी से शिलान्यास कराने के लिए करोड़ों रुपये बर्बाद करने का आरोप.
12. सिंगरौली विद्युत गृह की ऐश पॉन्ड में जमा राख को एनसीएल की खाली पड़ी कोयला खदानों में भरने के लिए ढुलाई के टेंडर के नाम पर सैकड़ों करोड़ रुपये खाने का आरोप.
13. कंपनी के उत्तरी क्षेत्र मुख्यालय में महाप्रबंधक- कार्मिक उज्ज्वल बनर्जी, सिंगरौली परियोजना के एसके राय एवं दिनेश राय जैसे अनेक भ्रष्ट अधिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप.
महेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि रॉय चौधरी पर नियुक्तियों में भी घपला करने के कई आरोप हैं और ठेके देने में भी भारी अनियमितताएं करने की शिकायतें हैं. लिहाजा रॉय चौधरी और उनकी चौकड़ी में शामिल अधिकारियों के कारनामों की शीघ्र जांच कराकर देश के सबसे बड़े प्रतिष्ठान को भ्रष्टाचार के दलदल से बाहर निकालना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्राथमिक दायित्व होना चाहिए.

कोयला नहीं, कई घोटालों में लिप्त है एनटीपीसी
कोयला घोटाले में एनटीपीसी और उसकी सखा-संस्था एनएसपीसीएल के ख़िलाफ़ सीबीआई ने मुकदमा दर्ज कर रखा है. कोल ब्लॉक का आवंटन होने के बावजूद एनटीपीसी विदेशों से घटिया कोयला महंगे आयातित दर पर खरीद रहा था. सीबीआई ने इस मामले में एनटीपीसी के सीएमडी को अभियुक्त नहीं बनाया. जिन दो अधिकारियों को मुख्य अभियुक्त बनाया गया, वे दोनों सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली के ऊंचाहार स्थित एनटीपीसी प्रतिष्ठान के शीर्ष अधिकारी रहे हैं. इनमें से एक एके श्रीवास्तव ऊंचाहार स्थित प्रतिष्ठान के प्रमुख रहे हैं, तो दूसरे उमा शंकर वर्मा उसी प्रतिष्ठान में डिप्टी मैनेजर. ये दोनों अधिकारी इंदौर, कोलकाता एवं इंडोनेशिया की कंपनियों के साथ आपराधिक साठगांठ करके घटिया कोयले का आयात कर रहे थे. सीबीआई ने दूसरा मुकदमा भी एनटीपीसी की सहायक संस्था एनटीपीसी सेल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएसपीसीएल) के शीर्ष अफसरों और कुछ कंपनियों पर ठोंका है. दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से घटिया कोयला भी सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र स्थित ऊंचाहार एनटीपीसी में ही गिर रहा था. मात्र दो साल की अवधि में 116 करोड़ सात लाख 94 हज़ार 162 रुपये का घपला हुआ. समझा जा सकता है कि शीर्ष अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर इतना बड़ा घपला नहीं हो सकता. घोटालों और भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में भी एनटीपीसी बुरी तरह घिरा हुआ है. अभी कुछ ही दिनों पहले छत्तीसगढ़ में एनटीपीसी के बिजलीघर के लिए ज़मीनों की अवैध खरीद-बिक्री का मामला उजागर हुआ था.  छत्तीसगढ़ के पुसौर ब्लॉक में लगने वाले एनटीपीसी के चार हज़ार मेगावाट पावर प्लांट के नाम पर ज़मीनों की अवैध खरीद-बिक्री का धंधा हुआ. लारा सहित आधा दर्जन से अधिक गांवों में हुई रजिस्ट्रियों की जांच से सात हज़ार से भी अधिक ऐसे खाते सामने आए हैं, जिनमें पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि फर्जी मुआवजे के रूप में बांट दी गई. इस घोटाले में एनटीपीसी के अधिकारी से लेकर दलाल तक शामिल थे. ज़मीन की खरीद-बिक्री में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड एवं मध्य प्रदेश तक के लोग शामिल हैं. जांच में क़रीब 15 सौ फर्जी रजिस्ट्रियां पकड़ी गईं. जांच में यह तथ्य सामने आया कि ज़मीन घोटाले में एनटीपीसी के अधिकारी भी शामिल हैं. एनटीपीसी ज़मीन घोटाले की सीबीआई भी जांच कर रही है. एनटीपीसी में सैकड़ों करोड़ रुपये का पीएफ घोटाला भी सुर्खियों में आ चुका है.

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