रविवार, 29 मार्च 2015

फिर से सुलग रहा है भट्टा पारसौल

देशभर में मशहूर हो चुका भट्टा परसौल गांव इस बार भी सुलग रहा है. कुछ संशोधनों के बाद लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल पास भी हो गया, लेकिन केंद्र की किसान विरोधी नीति के खिलाफ उत्तर प्रदेश के भट्टा परसौल गांव में किसान नेता व भारतीय प्रजा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनवीर तेवतिया का किसान-मजदूर सत्याग्रह 15 फरवरी से जारी है. तेवतिया 20 फरवरी से लगातार आमरण अनशन पर हैं, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई है. तेवतिया ने ऐलान किया है कि अगर केंद्र ने किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो भारी तादाद में किसान दिल्ली कूच करेंगे. तेवतिया कहते हैं कि देश का किसान विकास का विरोधी नहीं है, लेकिन भ्रष्ट नेता नहीं चाहते कि कोई सुगम रास्ता निकले, क्योंकि इससे उनकी और नौकरशाहों की कमीशनखोरी बंद हो जाएगी. समय रहते इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो आनेवाले दिनों में इस क्षेत्र में तनाव ब़ढने से कोई नहीं रोक सकता. 
page-17केद्र सरकार की किसान विरोधी नीति के खिलाफ 15 फरवरी से जारी किसानों का आंदोलन व्यापक शक्ल लेने की तरफ बढ़ रहा है. इसमें उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों के किसान भी शरीक होने लगे हैं. हरियाणा के किसान भी साथ आने लगे हैं. तेवतिया ने ऐलान किया है कि भट्टा परसौल में किसानों का सत्याग्रह और उनका आमरण अनशन 62 दिन चलेगा और अगर केंद्र ने किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो भारी तादाद में किसान दिल्ली कूच करेंगे. भट्टा परसौल से शुरू हुए किसानों के इस आंदोलन में मथुरा, आगरा, बागपत, अलीगढ़, आजमगढ़, इलाहाबाद, लखनऊ के अलावा बड़ौत, पलवल और मेवात के किसान भी एकजुट हो रहे हैं. बिहार के कुछ इलाकों से भी किसानों के जुटने की खबर है.
कुछ संशोधनों के बाद लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल पास भी हो गया, लेकिन केंद्र की किसान विरोधी नीति के खिलाफ उत्तर प्रदेश के भट्टा परसौल गांव में किसान नेता व भारतीय प्रजा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनवीर तेवतिया का किसान-मजदूर सत्याग्रह 15 फरवरी से जारी है. तेवतिया 20 फरवरी से लगातार आमरण अनशन पर हैं, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई है. इस आंदोलन के समर्थन में अलीगढ़ में टप्पल और जिकरपुर में भी आंदोलन चल रहा है, जिसका नेतृत्व भारतीय प्रजा पार्टी के उत्तर प्रदेश महासचिव स्वामी राजपाल सिंह और संचालन शौबीर सिंह विद्यार्थी व शीशराम कर रहे हैं. आंदोलनकारी किसान भूमि अधिग्रहण नीति में संशोधन तो चाहते ही हैं, साथ ही उनकी यह भी मांग है कि किसानों की आधी जमीन ही अधिग्रहीत की जाए और शेष जमीन विकसित कर उन्हें वापस कर दी जाए. किसान मांग कर रहे हैं कि 25 प्रतिशत जमीन को नि:शुल्क मिक्स लैंडयूज बनाने की अनुमति दी जाए. इसके अलावा जिस रेट में सरकार जमीन बेचती है उसके औसत मूल्य का 60 प्रतिशत मुआवजे के रूप में किसानों को दिया जाए. तेवतिया का मानना है कि इस नीति से किसानों को फायदा होगा. दूसरी तरफ किसान भूमि अधिग्रहण का खुद ही विरोध नहीं करेंगे और उनकी सहमति की जरूरत समाप्त हो जाएगी. प्राधिकरण में रिश्‍वतखोरी बंद हो जाएगी. इससे स्मार्ट सिटी के साथ-साथ आदर्श गांव भी तैयार हो सकेगा. जो लोग गांवों में व्यवसाय कर रहे हैं, उनका धंधा तेजी से चल पड़ेगा, क्योंकि परियोजना में उन्हें कई प्रकार के काम मिल जाएंगे. लोगों को अच्छा दूध और ताज़ा सब्जी-फल प्राप्त होंगे और किसानों को अच्छा रेट मिल जाएगा.
मनवीर तेवतिया के नेतृत्व में शुरू हुए किसान आंदोलन का सबसे रोचक पहलू यह है कि इस बार कांग्रेस पार्टी ने भट्टा परसौल से किसानों का आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी. केंद्र में आई भाजपा सरकार के नए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस उसी गांव से आंदोलन शुरू करने का मन बना चुकी थी, जिस गांव ने राहुल गांधी को काफी सुर्खियां दी थीं. तमाम प्रतिबंधों को पार करते हुए पिछली बार जब राहुल गांधी भट्टा परसौल गांव पहुंचे थे तो उसने देशभर के लोगों का ध्यान खींचा था, लेकिन कांग्रेस फिर बैकफुट पर चली गई. भू-अधिग्रहण विवाद को लेकर ही भट्टा परसौल पांच साल पहले चर्चा में आया था. मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून में किए गए बदलाव के विरोध में कांग्रेस ने केंद्र के खिलाफ इसी गांव से लड़ाई शुरू करने की जनवरी में घोषणा भी कर दी थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, आदित्य जैन, सांसद दीपेंद्र हुड्डा, दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं द्वारा आंदोलन शुरू करने और फिर दिल्ली से पदयात्रा कर राहुल गांधी के इस आंदोलन में कूद पड़ने की रूपरेखा भी तैयार हो गई थी, लेकिन इसमें कोई सियासी लोचा हो गया और राहुल भी अज्ञातवास पर चले गए. कांग्रेस ने इस मुद्दे पर राहुल गांधी की पदयात्रा के पहले हर ब्लॉक में नुक्क़ड सभाएं करने और माहौल बनाने की रणनीति भी तैयार कर ली थी. कांग्रेस ने भूमि अध्यादेश के मुद्दे पर व्यापक विरोध की तैयारी के लिए तीन सदस्यीय समूह का गठन भी कर दिया था, जिसमें जयराम रमेश के अलावा आनंद शर्मा और केवी थॉमस भी शामिल थे, लेकिन भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ भट्टा परसौल गांव से हल्ला बोल अभियान शुरू करने की कांग्रेसी तैयारी का बिना पट पर आए ही पटाक्षेप हो गया.
उल्लेखनीय है कि जमीन अधिग्रहण के ही खिलाफ 2010 में भट्टा परसौल गांव से बड़ा आंदोलन शुरू हुआ था. पुलिस और किसानों के बीच जमकर खूनी संघर्ष हुआ था. इसमें दो किसान और पुलिस के जवानों की मौत हो गई थी. इसके बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे को लपक लिया था. तब पार्टी महासचिव राहुल गांधी अचानक गांव पहुंच गए थे. उन्होंने अंग्रेजों के जमाने के अधिग्रहण कानून में बदलाव की आवाज उठाते हुए भट्टा परसौल से अलीगढ़ तक पैदल यात्रा की थी. मोदी ने केंद्र की सत्ता में आते ही प्रावधान किया कि जमीन अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति जरूरी नहीं, जबकि कांग्रेस की सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए 70 फीसद किसानों की सहमति लेने का प्रावधान किया था.
आमरण अनशन के कारण किसान नेता की हालत खराब होती जा रही है. ग्रेटर नोएडा के एसडीएम सदर बच्चू सिंह के अलावा अनशन स्थल पर कोई अधिकारी नहीं आया. बच्चू सिंह भी एक दिन फ्लाइंग स्न्वैड की तरह आए और चले गए. सरकारी इंतजाम बस इतना हुआ कि एक सरकारी डॉक्टर तेवतिया की रोजाना मेडिकल जांच कर चला जाता है. तेवतिया अब खड़े नहीं हो पा रहे हैं. उनके स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है. ब्लड प्रेशर तेजी से घट रहा है, वजन कम हो रहा है और शुगर लेवल में गिरावट आ रही है. तेवतिया कहते हैं कि देश का किसान विकास का विरोधी नहीं है, लेकिन भ्रष्ट नेता नहीं चाहते कि कोई सुगम रास्ता निकले, क्योंकि इससे उनकी और नौकरशाहों की कमीशनखोरी बंद हो जाएगी. हमारे द्वारा दिया गया प्रस्ताव निश्‍चित ही विकास की गति को रफ़्तार देगा. तेवतिया ने कहा कि जल्दी ही यह आंदोलन देश के अन्य हिस्सों से भी शुरू हो जाएगा. मोदी सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति किसान विरोधी है. देश का किसान इससे आहत है, लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियां सिर्फ दिखावा कर रही हैं. मांस के निर्यात पर रोक लगाने की मांग पर तेवतिया जोर देकर कहते हैं कि मांस के व्यापार के कारण देश का पशुधन नष्ट हो रहा है और दूध-दही की भारी किल्लत होने लगी है. इसके अलावा मांस की कीमत भी आसमान छूने लगी है. पशुधन काटने से पशुओं की कीमतें इतनी बढ़ती जा रही हैं कि अब पशु खरीदना किसानों के सामर्थ्य से बाहर होता जा रहा है.

ताकि किसान खुद ही खेत छोड़ कर भाग जाएं
एक तरफ किसानों की जमीनें सरकार जब चाहे तब छीन लेगी, दूसरी तरफ किसानों की फसलों को लुटा कर सरकार पहले से ही किसानों को खेत छोड़ कर भागने पर मजबूर कर रही है. गेहूं, धान, गन्ना और आलू समेत अन्य फसलों की लागत का मूल्य भी उत्तर प्रदेश के किसानों को नहीं मिल पाता. किसानों का पैदा किया हुआ अनाज दलालों और बिचौलियों द्वारा औने-पौने भाव पर खरीदा जाता है. सरकारी खरीद केंद्र दलालों के भी दलाल का काम कर रहे हैं. गन्ना की फसलें चीनी मिलों द्वारा लूटी जा रही हैं. मौजूदा सरकार के अदूरदर्शी तौर-तरीकों के कारण गन्ना भी बिचौलिए ही खरीद रहे हैं. चीनी मिलों में गन्ना किसानों का करोड़ों का बकाया है और यह बढ़ता ही जा रहा है. अब तो चीनी मिलें गन्ना लेने के एवज में किसानों को पर्चियां तक नहीं दे रही हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि चीनी मिलें गन्ना मूल्य के भुगतान में भीषण कोताही बरत रही हैं. इस करतूत पर दर्जनों चीनी मिलों का गन्ना क्षेत्र डायवर्ट भी किया गया, लेकिन चीनी मिलों की हरकतें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. गन्ना मूल्य भुगतान में लापरवाही बरतने वाली कुछ चीनी मिलों के खिलाफ गन्ना एवं चीनी आयुक्त सुभाषचंद्र शर्मा ने कार्रवाई भी शुरू की. इस क्रम में कुंदरकी, थाना भवन, मकसूदापुर, बरखेड़ा, करीमगंज और चांदपुर के कई गन्ना क्रय केन्द्रों को निकटवर्ती दूसरी चीनी मिलों को डायवर्ट किया गया. इसके बाद गोला, खम्बारखेड़ा, चिलवरिया, बिलारी एवं बेलवाड़ा चीनी मिलों के भी कई क्रय केन्द्रों को अन्य चीनी मिलों के लिए डायवर्ट किया गया. सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि पेराई सत्र 2014-15 का ही किसानों के बकाये का 3931.82 करोड़ रुपया चीनी मिलों ने भुगतान नहीं किया. पिछले बकायों की तो बात ही छोड़ दें. सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले पेराई सत्र का भी 640.24 करोड़ रुपया किसानों को नहीं दिया गया. इस तरह किसानों के बकाये की राशि बढ़ती चली जा रही है. किसानों के साथ हो रहे ऐसे सलूक के खिलाफ अब विधानसभा में भी उग्र विरोध हो रहा है. गन्ना किसानों के बकाया भुगतान को लेकर विधानसभा के मौजूदा सत्र में विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया और बसपा को छोड़कर सम्पूर्ण विपक्ष ने सदन का बहिष्कार किया. विपक्ष ने आरोप लगाया कि चीनी मिलों ने पेराई सत्र 2013-14 के गन्ना मूल्य का ही किसानों को भुगतान नहीं किया तो 2014-15 के बकाये का भुगतान कैसे होगा. इस पर मंत्री रियाज अहमद ने कहा कि पेराई सत्र 2013-14 का 640.24 करोड़ रुपया बकाया रह गया है. मंत्री ने यह भी कहा कि निजी क्षेत्र की करीब दर्जनभर चीनी मिलों ने गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं किया, जिनके खिलाफ वसूली प्रमाण पत्र जारी किए जा चुके हैं और पुलिस में प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. कांग्रेस विधायक अजय कुमार लल्लू ने देवरिया और कुशीनगर में 15 चीनी मिलों के घटकर छह रह जाने पर गहरी चिंता जाहिर की. वहां की चीनी मिलें गन्ना किसानों और मजदूरों का अरबों रुपया दबाए बैठी हैं. भाजपा के लोकेन्द्र सिंह ने कहा कि गन्ना किसानों की आजीविका पर संकट आ गया है. किसान अपने बच्चों की पढ़ाई और उनकी शादी नहीं कर पा रहे हैं. उन पर बैंकों के कर्ज का भीषण दबाव है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी मिल मालिक बकाये का भुगतान नहीं कर रहे हैं. सरकार चीनी मिल मालिकों को रियायतें और सुविधाएं देने में लगी रहती है. भाजपा के सतीश महाना ने कहा कि गन्ना किसानों के मामले में सरकार संवेदनहीन है. भाजपा के सुरेश खन्ना ने कहा कि सरकार और चीनी मिल मालिकों की साठगांठ है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं होती है. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने चौथी दुनिया से कहा कि किसानों के पास खुद का हक पाने के लिए अब संघर्ष के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. उत्तर प्रदेश के किसानों के सामने पहले से गन्ने का बकाया, धान की खरीद नहीं होने, यूरिया की कालाबाजारी, सिंचाई की सुविधा नहीं होने जैसी समस्याएं खड़ी थीं, अब उनकी जमीनें छिनने का भी खतरा मंडराने लगा है. पूर्वांचल के किसान नेता शिवाजी राय कहते हैं कि किसानों पर सरकारों का दबाव इसलिए भी है कि वे खुद ब खुद अपनी जमीनें छोड़ कर भाग जाएं और वे जमीनें कॉरपोरेट घरानों को फार्मिंग के लिए दे दी जाएं. भारत की कृषि के कॉरपोरेटाइजेशन की साजिशें चल रही हैं.

किसानों की मांग
  • भूमि अधिग्रहण नीति में संशोधन हो (संशोधन के प्रस्ताव पीएमओ को पहले ही दिए जा चुके हैं).
  • किसानों की आधी जमीन का ही अधिग्रहण किया जाए और किसानों की शेष जमीन को विकसित कर वापस किया जाए.
  • किसानों की बची हुई आधी जमीन को विकसित कर उसके 25 प्रतिशत हिस्से को निःशुल्क मिक्स लैंड यूज के श्रेणी में रखने की व्यवस्था हो.
  • जिस रेट पर सरकार जमीन बेचती है, उसका औसत मूल्य (रेजिडेंशियल, कॉमर्शियल, इंडस्ट्रियल, इंस्टीट्यूशनल) का 60 प्रतिशत मुआवजे के रूप में किसानों को दिया जाए.
  • रेल, सड़क, बिजली (हाई टेंशन) के लिए ली जाने वाली जमीन किसानों से लीज पर ली जाए और किसानों को उसका आजीवन लीज रेंट दिया जाए, ताकि किसानों की स्थायी आय का स्रोत बना रहे.
  • भूमिहीन किसान-मज़दूर को निःशुल्क 200 वर्ग मीटर का प्लॉट मिक्स लैंड यूज की अनुमति के साथ मिले.
  • किसानों को सम्बद्ध परियोजना में 25 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा मिले. उनके लिए कोई अलग रेट नहीं, बल्कि जिस रेट पर प्राधिकरण जमीन बेच रहा हो, वही किसानों के लिए भी लागू हो.
  • किसानों की फसल की लागत समेत 20 प्रतिशत लाभ का मूल्य तय हो.
  • दूध की भारी किल्लत को देखते हुए मीट का अंधाधुंध निर्यात तत्काल बंद हो.

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