कुपोषित भारत के पोषित मंदिर
संख्या की दृष्टि से दुनिया में सबसे अधिक निर्धन लोग भारत में रहते हैं। इस बात का खुलासा लोकमित्र विश्व खाद्य कार्यक्रम में हुआ है। शायद यही कारण है कि दुनिया में भुखमरी से जितने लोग पीडि़त हैं उनमें से 50 फीसदी अकेले भारत में रहते हैं।जिस देश में सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं, उसी देश में सबसे ज्यादा अमीर मंदिर स्थित हैं। वैसे यह बताना तो मुश्किल है कि भारत में कुल कितने मंदिर हैं, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक भारत में 10 लाख से भी अधिक मंदिर हैं और इनमें से 100 मंदिर ऐसे हैं जिनका सालाना चढ़ावा भारत के बजट के कुल योजना व्यय के बराबर होगा। अकेले 10 सबसे ज्यादा धनी मंदिरों की ही संपत्ति देश के 100 मध्यम दर्जे के टॉप 500 में शामिल उद्योगपतियों से अधिक है।
धन और धार्मिक मान्यता के लिहाज से भारत के इन धनी मंदिरों
में तिरुमला का वेंकटेश्वर मंदिर सबसे आगे है, जो तिरुपति बालाजी का मंदिर
के रूप मे ंलोकप्रिय है। करीब 300 ईसवी के आसपास बने भगवान विष्णु के
वेंकटेश्वर अवतार के इस मंदिर में रोजाना तकरीबन
50 हजार से भी अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं। वर्ष के कुछ विशेष दिनों जैसे
नवरात्रि के दिनों में तो यहां 20 लाख तक श्रद्धाुल रोजाना दर्शन करने
पहुंचते हैं। बड़ी संख्या में यहां सिर्फ श्रद्धालु ही नहीं आते, बल्कि
उनका चढ़ावा भी बहुत भारी-भरकम होता है। नवरात्रि के दिनों में ही 12 से 15
करोड़ रुपये नकद और कई मन सोना चढ़ जाता है। बालाजी के मंदिर में इस समय
लगभग 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति मौजूद है, जो भारत के कुल बजट का 50वां
हिस्सा है। तिरुपति के बालाजी दुनिया के सबसे धनी देवता हैं, जिनकी सालाना
कमाई 600 करोड़ रुपये से अधिक है। यहां चढ़ावे को इक_ा करने और बोरियों
में भरने के लिए बाकायदा कर्मचारियों की फौज तैनात है। पैसों की गिनती के
लिए एक दर्जन से ज्यादा लोग मौजूद हैं और लगातार उनकी शिकायत रहती है कि उन
पर काम का बोझ बहुत ही ज्यादा है। किसी-किसी दिन तो ऐसा भी होता है कि तीन
से चार करोड़ रुपये तक का चढ़ावा चढ़ जाए और रुपये-पैसे गिनने वाले
कर्मचारी काम के भारी बोझ से दब जाएं। यह तो तब है, जब बालाजी के मंदिर में
आमतौर पर लोग छोटे नोट नहीं चढ़ाते।यहां सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात व
प्लेटिनम की ज्वेलरी तो चढ़ती ही है, सुविधा के लिए भक्त इनका ब्रांड भी
खरीदकर चढ़ा सकते हैं। बालाजी के मंदिर में हर वर्ष 350 किलोग्राम से
ज्यादा सोना और 500 किलोग्राम से ज्यादा चांदी चढ़ती है। यह कोई आज का
सिलसिला नहीं है। जब अंग्रेज भारत आए थे तो वह बालाजी मंदिर की शानो-शौकत
और चढ़ावा देखकर दंग रह गए थे। कहते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी बड़े पैमाने पर
बालाजी मंदिर से चांदी खरीदती थी। वर्ष 2008-09 का बालाजी मंदिर का बजट
1925 करोड़ रुपए का था। इस मंदिर की देखरेख करने वाले तिरुमाला तिरुपति
देवस्थानम ट्रस्ट ने 1000 करोड़ रुपये की फिक्स डिपोजिट कर रखी है।कुछ माह
पूर्व कर्नाटक के पर्यटन मंत्री जनार्दन रेड्डी ने हीरा जडि़त 16 किलो सोने
का मुकुट भगवान बालाजी को चढ़ाया था। जिसकी घोषित कीमत 45 करोड़ रुपये थी।
दरअसलए येदयुरप्पा सरकार की नाक में दम करने वाले बेल्लारी के रेड्डी
बंधुओं ने खनन कारोबार में 4,000 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था। उसी
मुनाफे का 1 प्रतिशत इन्होंने भगवान बालाजी को बतौर कमीशन अदा किया था,
लेकिन आप
यह न सोचें कि भगवान वेंकटेश्वर या बालाजी को पहली बार इतना महंगा मुकुट
किसी भक्त ने भेंट किया होगा। वास्तव में बालाजी के मुकुटों के भंडार में
यह 8वें नंबर पर ही आता है। इस तरह के उनके पास पहले से ही करीब 15 मुकुट
हैं।भारत के प्रमुख धनी मंदिरों के पास इतना सोना है, जितना सोना शायद
भारतीय रिजर्व बैंक के पास भी न हो। अकेले शीर्ष 100 मंदिरों के पास ही 7
अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर का सोना है। बालाजी का मंदिर देश का अकेला धनी
मंदिर नहीं है। देश में और भी कई मोटा पैसा बनाने वाले मंदिर हैं।
केरल
का गुरुवयूर मंदिर, शिरडी के साई बाबा का मंदिर, मुंबई का सिद्धिविनायक
मंदिर, जम्मू का माता वैष्णो मंदिर, गांधी नगर का अक्षरधाम मंदिर,
विशाखापट्टनम का सीमाचल मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिरए कोलकाता का काली
मंदिर और अमृतसर का स्वर्ण मंदिर ऐसे ही मंदिरों में शामिल हैं।गुरुवयूर
देवस्थानम ऐक्ट 1971 के जरिए संचालित सबरीमाला पहाडिय़ों में स्थित केरल का
यह मंदिर यों तो चढ़ावे के मामले में भले बालाजी के सामने न टिकता हो,
लेकिन इस मायने में यह अनोखा मंदिर है कि जनवरी 2010
में महज 15 दिनों में ही यहां 120 करोड़ रुपये से ज्यादा का चढ़ावा चढ़
गया। यहां भगवान अयप्पा स्वामी के भक्त दिल खोलकर दान करते हैं।दुनिया में
अगर किसी एक मंदिर में 1 साल में सबसे ज्यादा श्रद्धालु दर्शन के लिए
पहुंचते हैं तो वह यही गुरुवयूर मंदिर ही है। जहां औसतन 5 से 5।5 करोड़ लोग
हर साल दर्शन करने पहुंचते हैं। यह संख्या इसलिए मायने रखती है, क्योंकि
यह मंदिर पूरे साल नहीं खुलता। साल के कुछ दिनों में ही खुलता है। त्रिशूर
जिले में स्थित इस मंदिर में विशिष्ट पूजा के लिए वर्ष 2049 तक की बुकिंग
हो चुकी है। यह तब है, जबकि यह विशिष्ट पूजा 50,000 रुपये में होती है।
गुरुवयूर मंदिर के 125 करोड़ रुपये विभिन्न बैंकों में फिक्स डिपोजिट करके
रखे गए हैं।धनी मंदिरों की कतार में माता वैष्णो देवी का मंदिर भी शामिल
है, जिसकी सालाना कमाई 500 करोड़ से भी अधिक है। मजे की बात तो यह है कि इस
मंदिर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, जैसा कि दक्षिण के अमीर मंदिरों का
है। नया-नवेला होने के बावजूद वैष्णो देवी का मंदिर दक्षिण के हजारों साल
पुराने मंदिरों के वैभव से टक्कर लेता है। इस मंदिर की देखरेख माता वैष्णो
देवी श्राइन बोर्ड करता है। जिला जम्मू में कटरा के निकट स्थित माता वैष्णो
देवी का मंदिर देश का दूसरा ऐसा मंदिर है, जहां सबसे ज्यादा भक्त दर्शन के
लिए पहुंचते हैं। जबकि मंदिर सीधी 5,200 फीट की चढ़ाई के ऊपर स्थित एक
गुफा में है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसका नाम त्रिकुट भगवती है।
इस मंदिर के सीईओ आरके गोयल ने 2009 में बताया था कि हर गुजरते दिन के साथ
मंदिर की आय बढ़ती जा रही है।धनी मंदिरों की फेहरिस्त में इन दिनों चरम
लोकप्रियता की ओर बढ़ रहे शिरडी का साई बाबा मंदिर भी शामिल है, जिसकी
दैनिक आय
60 लाख रुपये से अधिक है और सालाना आय 210 करोड़ रुपये की सीमा पार कर
चुकी है। शिरडी साई बाबा सनातन ट्रस्ट द्वारा संचालित यह मंदिर महाराष्ट्र
का सबसे धनी मंदिर है, जिसकी कमाई लगातार बढ़ रही है। मंदिर के प्रबंधकों
के मुताबिक 2004 के मुकाबले अब तक 68 करोड़ रुपये से ज्यादा की सालाना
बढ़ोतरी हो चुकी है। यहां भी बड़ी तेजी से चढ़ावे में सोने और हीरे के
मुकुटों का चलन बढ़ रहा है। चांदी के आभूषणों की तो बात ही कौन
करे।महाराष्ट्र में ही एक और धनी मंदिर स्थित हैए मुंबई का सिद्धिविनायक
मंदिर। इस मंदिर की सालाना कमाई 46 करोड़ रुपये वर्ष 2009 में पहुंच चुकी
थी, जिसमें मंदी के बावजूद इस साल इजाफा ही हुआ है।
सिद्धिविनायक
मंदिर का भी 125 करोड़ रुपये का फिक्स डिपोजिट है। महाराष्ट्र के इस दूसरे
सर्वाधिक धनी मंदिर की सालाना कमाई कुछ साल पहले 3 करोड़ रुपये थी जो
पिछले साल एक दशक में बहुत तेजी से बढ़ी है। मंदिर के सीईओ हुनमंत बी जगताप
के मुताबिक देश और विदेश में भक्तों की आय बढऩे के कारण मंदिर की भी आय
में भारी इजाफा हुआ है। इस इंटरनेट के जमाने में मंदिर दर्शन कराने के
मामले में ही नहीं, चंदा वसूल करने के मामले में भी हाईटेक हो चुका है। यही
कारण है कि मंदिर में 1 लाख रुपये से लेकर 6 लाख रुपये तक के सोने और
प्लेटिनम के कार्ड उपलब्ध हैं यानी अगर आप चाहें तो 6 लाख रुपये का कूपन
खरीद कर भी सिद्धिविनायक भगवान गणेश को चढ़ा सकते हैं, उन्हें कूपन भी पसंद
है।कमाई के लिहाज से भले अपनी बड़ी पहचान न रखता हो, लेकिन स्थात्पय की
भव्यता और समृद्धि के चमचमाते आकर्षण के कारण अक्षरधाम मंदिर ने बड़ी तेजी
से भारतीयों के बीच पहचान बनाई है। फिर चाहे वह गांधीनगर, गुजरात का
अक्षरधाम हो या दिल्ली का। गांधी नगर स्थित अक्षरधाम मंदिर की सालाना आय 50
लाख से 1 करोड़ रुपये के बीच है। बोचासनवासी अक्षर पुरषोत्तम संस्थान
द्वारा संचालित राजधानी दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा
हिंदू मंदिर है। इसके पहले यह
खिताब कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर को हासिल था। धनी मंदिरों की इस सूची
में देश-विदेश के और भी पचासों मंदिर शामिल हैं। पुरी का जगन्नाथ मंदिर,
गुवहाटी का कामाख्या मंदिर, झारखंड स्थित देवघर का बाबा वैद्यनाथ का मंदिर,
कोलकाता स्थित काली मंदिर, केरल का प्राचीन अयप्पा मंदिर, तमिलनाडु का
मुरुगन मंदिर, वृंदावन स्थित बांके-बिहारी का मंदिर, उज्जैन का महाकालेश्वर
मंदिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, बनारस का बाबा विश्वनाथ मंदिर, गुजरात
स्थित सोमनाथ का मंदिर आदि। ये मंदिर भी चढ़ावे की दृष्टि से बड़े संपन्न
हैं।हिंदू मंदिरों की ही तरह बौद्धमठों और गुरुद्वारों ंमें भी बड़ा चढ़ावा
चढ़ता है।
गुरुद्वारे
तो खासतौर पर इस मामले में बड़े संपन्न हैं। यह अलग बात है कि तमाम
संपन्नता के बावजूद ये संपन्न मंदिरों की बराबरी कर पाने में असमर्थ हैं,
लेकिन अमृतसर का स्वर्ण मंदिर और दिल्ली के तीन प्रमुख गुरुद्वारे रकाबगंज,
बंगला साहिब और गुरुद्वारा शीशगंज भी चढ़ावे की दृष्टि से बड़े संपन्न
गुरुद्वारे हैं। हालांकि इस्लाम में चढ़ावे का चलन नहीं हैं, इसलिए मस्जिद
में चढ़ावे को स्वीकार करने की कोई व्यवस्था नहीं होती, लेकिन अपने को
इस्लाम का ही एक हिस्सा मानी जाने वाली मजारों में बड़ी तादाद में हर हफ्ते
चढ़ावा चढ़ता है। अजमेर शरीफ और पीराने कलियर देश में चढ़ावे के लिहाज से
सबसे संपन्न मजारें हैं।
कुल
मिलाकर हिंदुस्तान भले गरीब हो, यहां दुनिया के सबसे संपन्न मंदिरए
गुरुद्वारे और मजारें हैं। कहा जा सकता है कि भारत वह गरीब देश है, जहां
अमीर भगवान बसते हैं।भले ही सिद्धि विनायक हर दिन लाखों रुपये कीमत वाले
मोदक से भोग पाते
हों। भले वेंकटेश्वर भगवान बालाजी के लिए लाखों रुपये की कीमत वाला
प्रसादम् तैयार होता हो और भगवान जगन्नाथ की रसोई में विशेष तौर पर
रथयात्रा के दिनों में 1 लाख भक्तों का भोजन बनता हो। लेकिन इतनी भव्यता और
इतने वैभवशाली देवताओं के देश भारत की जन हकीकत हाहाकारी है। विश्व खाद्य
कार्यक्रम के मुताबिक दुनिया के आधे भूखे भारत में रहते हैं। हर 10 में से 6
हिंदुस्तानी जरूरी नागरिक सुविधाओं से वंचित हैं और गांवों में रहते हैं।
जहां आज भी बहुत कुछ भगवान भरोसे ही है। जहां तक गरीबी का किस्सा है, वह तो
हमारे भगवानों की ही तरह अपरंपार है। पिछले दो दशकों से तमाम दावों के
बावजूद न तो गरीबी घटी है और न ही गरीबों का कोई एक आंकड़ा ही तय हो सका
है। सरकार के अलग-अलग महकमों के मुताबिक देश में गरीबों का अलग-अलग प्रतिशत
है। किसी के मुताबिक यह 34 फीसदी है, कोई 44 फीसदी तक आंकड़ा ले जाता है
और किसी समिति के मुताबिक यह 26 फीसदी ही है।हालांकि भारत सरकार ने
अर्थशास्त्री सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता वाली समिति के जिस संशोधित
आंकड़े को सही माना है वह 38 फीसदी के आसपास है। कहने का मतलब यह कि भारत
सरकार अंतिम रूप से इस बात पर एकमत हो चुकी है कि गरीब 44 करोड़ लोग गरीबी
रेखा के नीचे हैं। गरीबी रेखा जैसा शब्द शायद पूरी हकीकत को पूरी स्पष्टता
से नहीं बताता। गरीबी रेखा से नीचे का मतलब है 5 लोगों का एक परिवार, जो 20
रुपये से भी कम में पूरे दिन गुजारा करता है। इस महंगाई में जहां 5 रुपये
की चाय और 30 रुपये किलो दूध हो, उस महंगाई के दौर में क्या 5
लोगों का एक परिवार पूरे दिन महज 20 रुपये में गुजर-बसर कर सकता है? जाहिर
है वह एक टाइम से ज्यादा समय भूखा रहता है।मंदिरों में भगवान का वास है और
देश में इतने मंदिर हैं कि अगर प्रमुख मंदिर ही यह तय कर लें कि वह अपने
पास मौजूद धन से दरिद्र नारायण की सेवा करेंगे तो देश में एक भी व्यक्ति
भूखा सोने के लिए बाध्य नहीं होगा। भारत सरकार को अनिवार्य शिक्षा कानून
लागू करने के लिए 30,000 करोड़ रुपये की दरकार है। अगर तिरुपति के बालाजी
ही ठान लें तो किसी दूसरे मंदिर की सहायता की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और
सरकार का यह कार्यक्रम आसानी से पूरा हो जाएगा। देश के 100 धनी मंदिर और 36
उद्योगपति देश के लगभग 95 फीसदी जीडीपी के बराबर की संपत्ति के स्वामी
हैं। माया मोह से छुटकारा दिलाने वाले भगवान और मंदिर अगर अपनी इस माया को
मुक्त कर दें तो कोई भी हिंदुस्तानी भूखे सोने, बिना दवाई के मरने और बिना
शिक्षा के नहीं रह सकता। लेकिन क्या माया मोह से दूर रहने की सीख देने वाले
मंदिर और उनके स्वामी खुद माया मोह के बंधन से दूर होंगे?
(साभार दैनिक जागरण, राष्ट्रीय संस्करण)
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