गुरुवार, 7 जून 2012

राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र में जन्मा सफेद ऊंट

नई दिल्ली, 06 अप्रैल 2011
White Camel for the first time in the 27 year history of National Research Center on Camelराष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र (एनआरसीसी), बीकानेर में ऊंट के सफेद शिशु के जन्म से केंद्र के परिसर में काफी उत्साह और हलचल देखने को मिली है। इस उपलब्धि पर डॉ. एन. वी. पाटिल, निदेशक, एनआरसीसी ने कहा कि यह अपने आप में एक दुर्लभ घटना है। अभी तक यहां सफेद नर शिशु ऊंट का जन्म नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि अब एनआरसीसी की इस नर शिशु सफेद ऊंट पर ध्यान रखने की योजना है तथा इसका सफेद ऊंट प्रजनन में इस्तेमाल करने की संभावनाओं पर भी विचार किया जा रहा है। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इसकी केवल 50 प्रतिशत ही संभावना है कि इनकी संतानें भी सफेद हों।
यह सफेद ऊंट मेवाड़ी नस्ल से संबंधित है, जो राजस्थान के अरावली पर्वतमाला के निचले तलहटी में पाया जाता है। यह एक लुप्त होती हुई नस्ल है। वर्ष 2007 की पशु जनगणना के अनुसार उस समय इनकी संख्या 8800 थी। डॉ. पाटिल ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा मेवाड़ी नस्लों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है और यही कारण है कि इन ऊंटों के संरक्षण, जर्मप्लाज्म और नस्ल में सुधार के उद्देश्य से एनआरसीसी इसे पहाड़ी क्षेत्रों के अपने केंद्र पर ला रहा है। उन्होंने कहा कि एनआरसीसी के 27 साल के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब कि किसी मादा ऊंट ने ऊंट के सफेद बच्चे को जन्म दिया हो।
मेवाड़ी नस्ल दूध उत्पादन के हिसाब से बहुत ही अच्छा मानी जाती है। जैसलमेरी या बीकानेरी नस्ल के ऊंट जो प्रतिदिन 5-6 लीटर दूध देते है की तुलना में इस नस्ल के ऊंट प्रतिदिन औसतन 7-8 लीटर दूध देते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के कारण अन्य नस्लों की तुलना में मेवाड़ी नस्ल काफी मजबूत होता है। ऊंट जनसंख्या में गिरावट आने का मुख्य कारण इसकी परिवहन के क्षेत्र में की परंपरागत भूमिका में कमी तथा मशीनीकरण के अलावा आटोमोबाइल व ट्रैक्टर के आने से जुताई में होने वाले प्रयोग में कमी है।
गैर प्रदूषणकारी परिवहन का साधन होने के बावजूद ऊंटों की भूमिका लगातार सीमित होती जा रही है। शहरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण चराई भूमि में कमी से ऊंट के रखरखाव की लागत भी बढ़ी है। आखिरी आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में कुल 517000 ऊंट थे, जबकि अन्य जानवरों की संख्या करोड़ों में थी। इन सभी कारणों की वजह से मेवाड़ी नस्ल जिनकी आबादी पहले से ही कम थी पर काफी बुरा असर पड़ा है। ऊंटों की 80 प्रतिशत आबादी राजस्थान में पायी जाती है जबकि गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश में भी ऊंटों की अच्छ-खासी तादाद है।
डॉ. पाटिल ने कहा कि एनआरसीसी को प्रमुख रूप से ऊंट उत्पादन, प्रजनन, विकास, रोग प्रबंधन तथा दूध के उत्पादों के मूल्य संवर्ध्दन में बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान का कार्य सौंपा गया है। एनआरसीसी वर्तमान में भाभा परमाणु केंद्र, मुम्बई के सहयोग से ऊंट प्रतिरक्षा विज्ञान परीक्षण में लगा हुआ है। ऊंट प्रतिरक्षा प्रणाली अद्भुत है जिसकी सहायता से मनुष्य में होने वाली अनेक बीमारियों का निदान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हम इन पर किए गए अध्ययनों के माध्यम से टीबी और थायराइड कैंसर के निदान पर काम कर रहे हैं।
एनआरसीसी एस. पी. मेडिकल कॉलेज, बीकानेर के सहयोग से एक सर्प विष रोधी टीका भी विकसित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जानवरों तथा मनुष्यों के अनेक रोगों के लिए दवाओं को विकसित किए जाने की इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। इसके अलावा रोटरी गियर प्रणाली के उपयोग से इनवर्टर बैटरी को चार्ज करने के लिए बिजली के उत्पादन में भी ऊंट को इस्तेमाल करने का प्रयास हो रहा है ताकि बिजली को दूर-दूर तक पहुंचाया जा सके। किसानों के खेतों की जुताई तथा अन्य कृषि कार्यों के लिए भी अनेक बहुद्देशीय उपकरण विकसित किए जा रहे हैं।
बीकानेर, जैसलमेर और कच्छ क्षेत्रों में ऊंट नस्लों के संरक्षण पर आधारित अनुसंधान प्रयासों के अतिरिक्त ऊंट के दूध से कई तरह के उत्पादों को विकसित किया जा रहा है। इन उत्पादों की पर्यटन के लिए स्थापित केंद्रों, मिल्क पार्लर में कुल्फी, चाय तथा कॉफी आदि के रूप में बहुत मांग है। इसके अलावा ऊंट के दूध से पनीर और दही बनाने का प्रयास भी जारी है।

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