” भारत की जनगणना 2011 ” एक नज़र
” भारत की जनगणना 2011 ” काफी चर्चा में है | जाती के आधार को लेकर राजनीतिक बबाल मचा हुआ है जबकि अभी तक कोई निश्चित फैसला सरकार की ओर से सामने नहीं आ पाया है | आइये डालते हैं जनगणना के विभिन्न पहलुओं पर एक नज़र | प्रस्तुत है आशीष शर्मा जी का यह आलेख :
जनगणना
का पहला चरण एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। दूसरा चरण अगले साल फरवरी में
होगा तथा मार्च के पहले सप्ताह में इसके आरंभिक आंकड़े पता चल जाएंगे।
लेकिन जनगणना का मतलब अब सिर्फ लोगों की गिनती भर नहीं है बल्कि यह जनगणना
हमें बताएगी कि पिछले दस साल में हमने कितनी प्रगति की और कहां चूक रह गई।
विकास के सरकारी दावों की असलियत को यही जनगणना हमें बताएगी। दूसरे-विकास
संबंधी जो आंकड़े सामने आएंगे, उन्हीं के आधार पर अगले दस साल की नीतियां
तय होंगी। वैसे भी 2011 में जब जनगणना के आंकड़े आ रहे होंगे तब बारहवीं
पंचवर्षीय योजना की तैयारियां चल रही होंगी। आपको याद होगा 2001 में जब
जनगणना के नतीजे आए थे तो उसमें एक चौंकाने वाला तथ्य निकाला था कि देश में
24 लाख मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरिजाघर आदि पूजा स्थल हैं लेकिन
स्कूल, कालेज आदि की संख्या 15 लाख और क्लिनिक, डिस्पेंसरी और अस्पतालों की
संख्या छह लाख है। यानी शिक्षा और स्वास्थ्य के कुल केंद्रों की संख्या
मिलकर 2१ लाख बनती है जो पूजास्थलों से तीन लाख कम थी। इन आंकड़ों ने हमारे
नीति निर्माताओं, उद्योगपतियों, अर्थशास्त्रियों को झकझोरा जरूर होगा और
इस दिशा में कदम भी बढ़ाया होगा। इस जनगणना में उम्मीद की जानी चाहिए कि इस
बार ये आंकड़े उलट निकलें। इसी प्रकार यह भी देखने वाली बात होगी कि क्या
प्रगति कर रहे हमारे समाज में अभी भी महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना
में घटता जा रहा है या इसमें वृद्धि के संकेत हैं। संभवत इन्हीं सब पहलुओं
को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इस बार जनगणना की थीम रखी है,
‘हमारी जनगणना हमारा भविष्य।’
क्यों जरूरी है जनगणना ?
देश में पहली जनगणना 1862 में हुई थी। यह
15वीं जनगणना है। शरुआत में हो सकता है जनगणना सिर्फ लोगों की गिनती के लिए
होती हो। लेकिन आजादी के बाद से इसका विकास में योगदान बढ़ता गया। देश में
विकास योजनाएं बनाने के लिए जनसंख्या के अलावा आंकड़े एकत्रित करने का कोई
जरिया ही नहीं है। आए जिन जिन सर्वेक्षण रिपोर्टो में हम पढ़ते हैं, वह
सिर्फ कुछ हजार या अधिकतम एक-दो लाख लोगों पर सर्वेक्षण करके तैयार की जाती
हैं जबकि जनगणना में 102 करोड़ लोगों के आंकड़े व्यक्तिगत स्तर पर जुटाये
जाएंगे। इसलिए दिल्ली से लेकर देहात तक की सही स्थिति जानने के लिए जनगणना
से पुख्ता और कोई सर्वेक्षण नहीं है।
करीब साल भर चलने वाली जनगणना दो चरणों
में होती है। 35 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में पहला चरण एक अप्रैल
से शुरू हो चुका है। पहले चरण में घर और घर से जुड़ी वस्तुओं की गणना की
जाती है। इसमें कुल 35 किस्म के सवाल पूछे जा रहे हैं। चूंकि इस बार
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) भी बन रहा है। इसका कार्य भी पहले चरण
में ही किया जा रहा है। एनपीआर के लिए 15 सवाल पूछे जाएंगे। जनगणना का
पहला चरण 15 मई तक पूरा होगा। दूसरे चरण में लोगों की गणना होगी जिसमें
लोगों से करीब 18-२0 व्यक्तिगत सूचनाओं से संबंधित सवाल पूछे जाएंगे। यह
कार्य 9 से 27 फरवरी, 2011 के दौरान देश में एक साथ होगा।
पहला चरण-हाउस लिस्टिंग एंड हाउसिंग जनगणना
कभी भी जनगणना करने वाले 35 सवालों की
सूची लेकर आपके पास आ सकते हैं। इसके लिए राज्यवार कार्यक्रम तैयार किया जा
चुका है। इनका सही जवाब देना हर नागरिक का कर्तव्य है। क्योंकि इन सवालों
के जवाब से ही भावी विकास योजनाएं बननी हैं। सवालों में घर के कमरों से
लेकर उसके निर्माण की सामग्री, इस्तेमाल, बिजली, पानी, टॉयलेट, बाथरूम आदि
के बारे में पूछा जाएगा। साथ ही आपके घर में वाहन है या नहीं है, कैसे जाते
हैं आदि सवाल हैं। इस बार कुछ नए सवाल मोबाइल फोन, कंप्यूटर एवं लेपटॉप को
लेकर जोड़े गए हैं। एक पहले से पूछे जा रहे एक अटपटे सवाल को हटा दिया गया
है जिसमें पूछा जाता था कि क्या घर में विवाहित जोड़े के सोने के लिए अलग
कमरा है। पूछे जाने वाले एक सवाल से दर्जनों किस्म के आंकड़े एकत्र हो सकते
हैं। मसलन, एक सवाल है घर में कितने कमरे हैं। इसका जवाब एक से दस तक हो
सकता है। जब 102 करोड़ की जनता के जवाब आएंगे तो इसके आधार पर आंकड़ों की
टेबलें बनेंगी कि कितने लोग एक कमरे के घर में रहते हैं, कितने दो, कितने
तीन, कितने चार आदि, कितने झोपड़ी में कितने बिना छत के। फिर यह आंकड़ा
राज्यवार, फिर जिला, तहसील और शहर, कस्बे और गांव के हिसाब से बनेगा। इस
प्रकार जो 35 सवाल घर और घर से जुड़ी वस्तुओं के बारे में पूछे गए हैं वह
करीब-करीब हमारे रहन-सहन और आर्थिक स्थिति का 95 फीसदी हालात प्रस्तुत कर
देंगे।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
यह नई कवायद है। इस बार जनगणना की सूचनाएं
एकत्र करने के साथ-साथ देश के सभी नागरिकों का निजी डाटा भी तैयार होगा।
इसमें नाम-पते के अलावा फोटो और दसों अंगुलियों के फिंगरप्रिंट भी लिए
जाएंगे। इसके बाद 15 साल से बडे लोगों को एक विशेष पहचान नंबर दिया जाएगा
तथा जो कम उम्र के हैं, उन्हें मां-बाप या अभिभावकों के साथ लिंक किया
जाएगा। बाद में नागरिकों को बायोमैट्रिक पहचान पत्र भी प्रदान किया जाएगा।
इस कार्य के लिए यूनिक आइडेंटीफिकेशन अथॉरिटी (यूआईडीए) की स्थापना की जा
चुकी है जिसके चैयरमैन मशहूर आईटी विशेषज्ञ नंदन नीलेकणी हैं। जनगणना के
बाद भी विशेष पहचान नंबर और नागरिकता पहचान पत्र का कार्य देने की
प्रक्रिया चलती रहेगी। ज्यों-ज्यों युवक 15 साल की उम्र पूरी करेंगे वे
नंबर के लिए आवेदन करेंगे और उन्हें बायोमैट्रिक कार्ड मिलते जाएंगे।
एनपीआर के फायदे ?
यह सवाल जब-तब उठे हैं कि हजारों करोड़
रुपये खर्च करके जनसंख्या रजिस्टर और फिर नागरिकता पहचान पत्र देने के क्या
फायदे हैं ? जबकि पहले से ही राशन कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट
आदि दिए जा रहे हैं। इसका कोई ठोस जवाब अभी किसी के पास नहीं है। अमेरिका
जैसे कई देशों में इस तरह के नंबर देने का प्रावधान है जो नागरिकता की
पहचान के साथ-साथ सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में मददगार साबित
होते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस नंबर या कार्ड से भविष्य में राशन कार्ड,
पैन कार्ड या वोटर कार्ड की जरूरत नहीं रहेगी। इसलिए फिलहाल इसे हमारे
चंद्र अभियान की तरह संभावित किसी भावी फायदे के लिए निवेश के रूप में देखा
जा रहा है। अलबत्ता जनसंख्या से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि पहचान
नंबर और पहचान पत्र का यदि फायदा होगा तो सिर्फ पुलिस महकमे को हो सकता है,
वर्ना नहीं।
जनगणना का दूसरा चरण
जनगणना का पहला दौर पूरा होने और आंकड़ों
के प्रोसेसिंग का काम पूरा होने के बाद फरवरी 9-27 के बीच जनगणना का दूसरा
और अंतिम दौर चलेगा। इस दौरान लोगों से व्यक्तिगत जानकारियों के संबंध में
18-20 सवाल पूछे जाएंगे। इन सवालों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इनमें
आमतौर पर नाम, पता, उम्र, बच्चों, शिक्षा, रोजगार, भाषा, धर्म आदि के बारे
में पूछा जाता है। विशेषज्ञों ने दो और सवाल पूछे जाने की जरूरत पर जोर
दिया है लेकिन सरकार उसमें फैसला नहीं ले रही है। एक-इस दौरान लोगों की आय
के भी आंकड़े जुटाए जाने चाहिए ताकि पता लगाया जा सके कि देश में वाकई
कितने गरीब हैं। इससे गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों का सही
ब्यौरा एकत्र किया जा सकेगा। दूसरे, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी का
सटीक ब्यौरा नहीं है। आजादी से पूर्व हुए कुछ सर्वेक्षण बताते हैं कि ओबीसी
आबादी 27 फीसदी थी। इसी के आधार पर उन्हें 27 फीसदी आरक्षण विभिन्न
क्षेत्रों में दिया जा रहा है। लेकिन यह आंकड़ा सटीक नहीं है। सरकार से
अपेक्षा की जा रही है कि अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों की भांति ही ओबीसी
के भी आंकड़े वह एकत्र करे लेकिन अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ
है।
यूआईडीए
यूनिक आईडेंटीफिकेशन अथॉरिटी का गठन किया
जा चुका है जिसके प्रमुख नंदन नीलेकणी हैं। कई बार यह सवाल उठता है कि
जनगणना महकमे का क्या काम है और यूआईडीए का क्या काम है क्योंकि दोनों एक
जैसी बात कहते हैं कि पापुलेशन रजिस्टर बनाया जाएगा, नंबर मिलेगा, कार्ड
मिलेगा आदि। यहां स्पष्ट कर दें कि जनगणना, जनसंख्या रजिस्टर बनाने तथा
नंबर देने का कार्य जनगणना महकमा ही करेगा जो गृह मंत्रालय के अधीन है।
यूआईडी अथारिटी की भूमिका खासतौर पर इसके तकनीकी पहलू को देखना है। नंबर
आवंटन की प्रक्रिया को जनगणना महकमा ही पूरा करेगा और सभी पक्षों के कमेंट
लेने के बाद उसे यूआईडीए को सौंपेगा। यूआईडीए नंबर की जांच करेगा। यह
सुनिश्चित करेगा कि उसकी कोडिंग ठीक है या नहीं, कहीं डुप्लीकेशन तो नहीं
हो रहा है। फिर नंबर के आधार पर बायोमैटिक डाटाबेस में डाले जाएंगे और
कार्ड बनेंगे।
जनगणना का कानूनी पहलू
जनगणना का काम सेनसेस एक्ट 1947 के
प्रावधानों के तहत किया जाता है। जबकि जनसंख्या रजिस्टर बनाने का काम
सिटीजनशिप एक्ट के तहत होता है। यह भी एक रोचक तथ्य है कि यह योजना एनडीए
शासन में बनी थी कि हर नागरिक को पहचान पत्र मिले। मकसद देश में अवैध
घुसपैठ को रोकना था। लेकिन योजना के और भी इस्तेमाल निकल सकते हैं। इसमें
सहयोग करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। एकत्र की जाने वाली सूचनाएं को
गोपनीय रखने का प्रावधान है। यहां तक कि कोर्ट के आदेश पर भी ये सूचनाएं
किसी को नहीं दी जा सकती हैं। कुल खर्च-जनगणना के कार्य को पूरा करने के
लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3538 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। यूआईडीए का
आवंटन अलग है। वैसे जनगणना कार्यालय का अनुमान है कि 2209 करोड़ में यह
कार्य पूरा कर लिया जाएगा। इस कार्य में कुल 25 लाख कार्मिकों की मदद ली
जाती है। ये लोग मूलत: राज्य सरकारों के कर्मचारी टीचर वगैरह होते हैं
जिन्हें पहले ट्रेनिंग दी जाती है तथा फिर इस कार्य में मदद ली जाती है। ये
लोग 640 जिलों, 5767 तहसीलों, 7642 टाउनों, छह लाख गांवों और 24 करोड़
घरों में जाकर आंकड़े एकत्र करते हैं।
आबादी की रफ्तार पर लगेगा ब्रेक !
देश की जनसंख्या 102 करोड़ से बढ़कर कितनी
होती है इसके पक्के नतीजे तो मार्च 2011 में ही पता चल पाएंगे। लेकिन कुछ
समय पूर्व राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग ने भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त
कार्यालय की मदद से जनसंख्या वृद्धि को लेकर जो प्रोजेक्शन किया, उसके
अनुसार इस बार आबादी में गिरावट का रूझान दिखना शुरू हो जाएगा। इसका यह
मतलब नहीं है कि आबादी में इजाफा नहीं होगा। लेकिन वह तो बढ़ेगी ही लेकिन
जनसंख्या की वृद्धि दर 1.6 से घटकर 1.3 रह जाएगी। दूसरे कुल प्रजनन दर
(टीएफआर) भी 2.9 से घटकर 2.3 तक आने का अनुमान है। जनसंख्या स्थिरीकरण के
लक्ष्यों के तहत भी टीएफआर को 2.1 पर लाने का लक्ष्य रखा गया है जिसके हम
काफी करीब पहुंच जाएंगे।
आजादी के बाद से यह पहला मौका होगा जब
आबादी में गिरावट का ट्रेंड नजर आएगा। इस बात को यूं समझ सकते हैं कि 1961
में देश की कुल आबादी 55 करोड़ थी। जो 1971 में बढ़कर 68 करोड़ हो गई।
इजाफा हुआ 13 करोड़ का। इसके बाद 1981 में जनसंख्या जा पहुंची 84 करोड़ और
कुछ इजाफा हुआ 16 करोड़ का। फिर 2001 में जनसंख्या हुई 102 करोड़ और आबादी
में कुल इजाफा हुआ करीब 18 करोड़ का। इस वृद्धि दर के अनुसार
अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों का आकलन है कि 201१ में भारत की आबादी बढ़कर 125
करोड़ हो जाएगी। यानी कुल इजाफा 23 करोड़ का होगा।
इसके विपरीत महापंजीयक कार्यालय और
जनसंख्या आयोग ने पिछले आठ वर्षो के दौरान प्रजनन दर में गिरावट के
मद्देनजर जो आकलन प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार 2011में आबादी 118 करोड़
रहने का अनुमान है। यानी इसमें कुल इजाफा महज 17 करोड़ का होगा। यानी
वृद्धि की दर पिछले दशक से कम होगी। आबादी में गिरावट के रूझान पर
सकारात्मक है या नहीं इस पर जनसंख्याविदों में भारी मतभेद हैं। हालांकि इसे
यह बेहतर संकेत माना जाना चाहिए। लेकिन कुछ आकलन खतरे के संकेत भी देते
हैं।
स्त्री पुरुष अनुपात-स्त्री-पुरुष अनुपात
जिसे लेकर बीते दशक में देश में खूब हंगामा रहा है, उसमें सुधार के संकेत
नहीं है। 2001 में प्रति एक हजार पुरुषों पर 933 महिलाएं थी जो 2011 में
932 रहने का अनुमान है।
कम उम्र के लोग घटेंगे-इसी आकलन में कहा
गया है कि अभी 2001 में 15 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या 34 फीसदी थी
जो 2011 में महज 28 फीसदी रह जाएगी।
बढ़ जाएंगे बूढ़े-२011 में बूढ़ों की
आबादी में काफी इजाफे का अनुमान है। 2001 में बूढ़ों की आबादी 6.9 फीसदी
यानी करीब 7.06 करोड़ थी जो 201१ में बढ़कर 8.३ फीसदी यानी करीब 9.74 करोड़
हो जाएगी। मध्यम आयु वर्ग के लोगों में इजाफा होगा। अभी 22 फीसदी आबादी
मध्यम आयु वर्ग में जो बढ़कर 25 फीसदी हो जाएगी।
औसत आयु में इजाफे के संकेत- यदि पिछली
जनगणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो पुरुषों की औसत आयु 64 और महिलाओं की 66
साल दर्ज की गई थी। दस सालों के बाद इसमें इजाफे के संकेत हैं। इसके क्रमश
67.3 तथा 69.6 साल रहने का अनुमान लगाया गया है।
क्या होगी 2011 में कुछ बड़े राज्यों की आबादी? (आकलन)
उ.प्र. प्रदेश : 20 करोड़
महाराष्ट्र : 11.2 करोड़
बिहार : 8.7 करोड़
राजस्थान : 6.7 करोड़
मध्य प्रदेश : 7.2 करोड़
झारखंड : 3.1 करोड़
उत्तराखंड : 98 लाख
उड़ीसा : 4 करोड़
हिप्र : 67 लाख
हरियाणा : 2.5 करोड़
दिल्ली : 1.74 करोड़
पंजाब : 2.6 करोड़
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