भ्रष्टाचार
के लिए एक ना एक मामले में रिश्वत दी है।
• भारत के 40 फीसदी उत्तरदाताओं का मानना था
कि बीते दो सालों में भ्रष्टाचार काफी बढ़ा है।
• 1-5 अंकों के एक पैमाने पर ( जहां 1 का अर्थ
है बिल्कुल भ्रष्ट नहीं और 5 का अर्थ है बहुत ज्यादा भ्रष्ट) भारतीय मतदाताओं ने
राजनीतिक दलों को 4.4 अंक देते हुए उन्हें सर्वाधिक भ्रष्ट माना। भ्रष्टाचार के
मामले में पुलिस का स्थान भारतीय उत्तरदाताओं की नजर में इसके तुरंत बाद आता है
जिसे उन्होंने भ्रष्टाचार के पैमाने पर 4.1 अंक दिए। भारतीय उत्तरदाताओं की नजर
में सबसे कम भ्रष्ट सेना है। सेना को भारतीय उत्तरदाताओं ने सबसे कम भ्रष्ट माना
और भ्रष्टाचार के पैमाने पर सेना को 2.5 अंक हासिल हुए. स्वयंसेवी संगठनों को
भ्रष्टाचार के पैमाने पर भारतीय उत्तरदाताओं ने सर्वेक्षण में 2.9 अंक दिए जबकि
मीडिया को 3.2।
• सर्वेक्षण में 86 फीसदी भारतीय उत्तरदाताओं
का मानना था कि राजनीतिक दल बहुत ज्यादा भ्रष्ट हैं जबकि 75 फीसदी उत्तरदाताओं का
मानना था कि पुलिस बहुत ज्यादा भ्रष्ट है. महज 20 फीसदी उत्तरदाताओं का कहना था कि
सेना बहुत ज्यादा भ्रष्ट है।
• सर्वेक्षण
में शामिल भारतीय लोगों में 62 फीसदी ने कहा कि उनके परिवार के एक ना एक सदस्य ने
पुलिस को घूस दिया जबकि 61 फीसदी ने रजिस्ट्री और परमिट के बाबत घूस देने की बात
कही जबकि 58 फीसदी का कहना था कि उन्हें जमीन से संबंधित कामों के लिए घूस देना
पडा
• सर्वेक्षण में शामिल भारतीय उत्तरदाताओं में
से 30 फीसदी ने इस बात से सहमति जतायी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में साधारण
आदमी सार्थक भूमिका निभा सकता है जबकि 26 फीसदी भारतीय उत्तरदाता इस बात से सहमत
नहीं थे।
• सर्वेक्षण में शामिल भारतीय उत्तरदाताओं में
99 फीसदी ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के तह पाँच गतिविधियों में हिस्सेदारी करने
की इच्छा जतायी है। ये गतिविधियां हैं- किसी अर्जी पर हस्ताक्षर करना, विरोध प्रदर्शन में
हिस्सा लेना, किसी संगठन
से जुड़ना, सोशल
मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करना और इस इस्तेमाल के लिए ज्यादा खर्च करना।
• वैश्विक स्तर पर देखें तो चार में से एक
व्यक्ति यानि 27 फीसदी ने कहा कि बीते बारह महीने में उसे सार्वजनिक संस्था के साथ
अपने बरताव में या फिर सार्वजनिक सेवाओं को हासिल करने में घूस देना पडा है।
• सर्वेक्षण में कुल आठ सेवाओं को लेकर सवाल
पूछे गये थे। इनमें पुलिस और अदालत के बारे में विश्वभर के लोगों ने माना कि उनके
भ्रष्ट होने की आशंका सबसे ज्यादा है। सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन 31 फीसदी ने कहा
कि उन्हें सेवा हासिल करने के लिए पुलिस महकमे को घूस देनी पड़ी।
भारत
में मौजूद अंडरग्राऊंड अर्थव्यवस्था का गहरा संबंध अवैध ढंग से होने वाले
वित्तीय प्रवाह से है। विदेशों में अवैध रुप से मौजूद भारतीय संपदा का कुल मूल्य
फिलहाल $462 बिलियन
डालर है। जो अंडरग्राऊंड अर्थव्यवस्था का तकरीबन 72 फीसदी है।इसका अर्थ
हुआ कि भारत की अंडरग्राऊंड अर्थव्यवस्था का तीन चौथाई हिस्सा जो
कि अनुमानतया देश की जीडीपी के 50 फीसदी($640 2008 के अंत में) के बराबर
है, देश
से बाहर मौजूद है।
द
ड्राइवर्स एंड डायनेमिक्स ऑव इलिसिट फाइनेंशियल
फ्लोज् इन इंडिया 1948-2008
नामक दस्तावेज के अनुसार-
·
इस तथ्य से कि देश की अंडरग्राऊंड अर्थव्यवस्था का महज 27.8 फीसदी
ही देश में
मौजूद है, खुलासा
होता है कि सरकार का ध्यान अपनी तरफ बगैर खींचे
विपुल धनराशि एकत्र करने की इच्छा ही सीमापारीय अवैध मौद्रिक लेन-देन
का मुख्य कारक है।
·
साल 1991-2008
यानी उदारीकरण के बाद की अवधि में विनियमन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था
से काले धन का प्रवाह विदेशों में बढ़ा है। व्यापार में कीमतों में हेरफेर
के अवसर बढ़े हैं, साथ
ही वैश्विक स्तर
पर मौजूद कुछ टैक्स हैवन कहलाने वाली जगहों ने काले धन के प्रवाह को और बल प्रदान
किया है।
·
संख्याओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बड़े पैमाने के काले
धन के प्रवाह
और आमदनी के असमान वितरण के बीच सीधा रिश्ता है।
·
साल 1948 से
2008 के
बीच भारत को अवैध ढंग से होने वाले वित्तीय प्रवाह के कारण
213 बिलियन
डालर का घाटा उठाना पडा है। यह अवैध धन अमूमन भ्रष्टाचार, घूसखोरी,
नजराना और टैक्सचोरी के जरिए
एकत्र की गई।
·
भारत के मौजूदा अवैध वित्तीय प्रवाह का कुल मूल्य कम से कम 462 बिलियन डालर
है।
·
साल 2008 के
अंत में देश की जीडीपी के 16.6 फीसदी
के बराबर काला धन विदेशों
में गया।
· काले
धन का विदेशी प्रवाह सालाना 11.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा( रियल टर्म में
6.4 फीसदी
सालाना)
·
भारत को साल 2002-2006 के बीच हर साल 16 बिलियन
डालर गंवाना पडा।
·
साल 1948 से
2008 के
बीच भारत के निजी क्षेत्र में एख बदलाव यह हुआ कि विकसित
देशों के बैंकों में जमापूंजी ना रखकर अब वे ऑवशोर फाइनेंशियल सेंटर में अपनी
जमा पूंजी रखने लगे हैं। साल 1995 में ऑवशोर फाइनेंशियल सेंटर में ऱखी जमापूंजी
36.4 फीसदी
थी जबकि 2009 में
54.2 फीसदी
तक पहुंच गई है।
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