स्वयंसेवी संस्था प्रथम द्वारा प्रस्तुत द एनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन रिपोर्ट २००९ के अनुसार-
११-१४ आयु वर्ग की लड़कियों में स्कूल वंचितों की कमी
• केरल (94%), असम (84%), और महाराष्ट्र (81%) अपेक्षाकृत उच्च साक्षरता दर वाले राज्य हैं।
• अपेक्षाकृत निम्न साक्षरता दर वाले राज्यों के नाम हैं-- बिहार (58%), राजस्थान (62%) और आंध्रप्रदेश(64%)
• निम्न साक्षरता दर वाले अन्य राज्यों के नाम हैं-- झारखंड (64.6%), उत्तरप्रदेश (66.2%), जम्मू-कश्मीर(67.7%) और ओड़िसा (68.3%)
• देश की व्यस्क आबादी( १५ साल और उससे ज्यादा की उम्र) का 66% हिस्सा साक्षर है।
• ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्चे के आधार पर सबसे निचली श्रेणी में ५१.२ फीसदी आबादी निरक्षर है। प्रति व्यक्ति मासिक खर्चे के हिसाब से सबसे ऊंचसी श्रेणी में आने वाली ग्रामीण आबादी में भी महज २२.८ फीसदी लोग साक्षर हैं।
• ग्रामीण इलाके की महिलाओं और पुरुषों तथा शहरी इलाके की महिलाओं और पुरुषों के बीच साक्षरता दर क्रमशः 51.1%, 68.4%, 71.6% और 82.2% पायी गई। ४२ दौर की गणना( साल ) में यही आंकड़ा क्रमशः 24.8%, 47.6%, 59.1% और 74.0% का था।
• 98% फीसदी ग्रामीण घरों और 99% फीसदी शहरी घरों के दो किलोमीटर की परिधि में प्राथमिक विद्यालय मौजूद हैं।
• 79% फीसदी ग्रामीण घरों और 97% फीसदी शहरी घरों के दो किलोमीटर की परिधि में माध्यमिक विद्यालय मौजूद हैं।
• 47% फीसदी ग्रामीण घरों और 91% फीसदी शहरी घरों के दो किलोमीटर की परिधि में माध्यमिक और प्राथमिक विद्यालय दोनों मौजूद हैं।
• ५-२९ साल के आयु वर्ग के लोगों में ४६ फीसदी आबादी अभी किसी भी शैक्षिक संस्था में नामांकित नहीं है, इस आयु वर्ग के दो फीसदी लोगों का नामांकन तो है लेकिन इनकी शैक्षिक संस्था में उपस्थिति नहीं है। इस आयु वर्ग के ५२ फीसदी व्यक्तियों की शैक्षिक संस्था में उपस्थिति दर्ज की गई है।
• 5-29 साल के आयु वर्ग में प्राथमिक और उससे ऊंचे दर्जे की कक्षा में नामांकित व्यक्तियों के हिसाब से देखें तो - 49% प्राथमिक स्तर पर, 24% माध्यमिक स्तर पर ; 20% उच्च माध्यमिक स्तर पर और 7% हायर सेकेंडरी स्तर पर नामांकित हैं।
• सामान्य पाठ्यक्रम में 97.8% व्यक्तियों ने दाखिला लिया है। तकनीकी प्रकृति के पाठ्यक्रम में 1.9% और रोजगारपरक पाठ्यक्रम में लोगों ने दाखिला लिया है।
• अखिल भारतीय स्तर पर नेट अटेन्डेंट रेशियो कक्षाI-VIII के लिए 86% है।
• अपेक्षाकृत उच्च नेट अटेन्डेंट रेशियो (कक्षाI-VIII के लिए) वाले बड़े राज्यों के नाम हैं- : हिमाचल प्रदेश (96%),केरल(94%) और तमिलनाडु (92%)।
• अपेक्षाकृत निम्न नेट अटेन्डेंट रेशियो (कक्षाI-VIII के लिए) वाले बड़े राज्यों के नाम हैं-: बिहार (74%), झारखंड (81%), उत्तरप्रदेश (83%)
• प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिहाज से निजी संस्थाओं में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों में 73% ही किसी मान्यता प्राप्त संस्था से संबद्ध हैं।
• माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिहाज से निजी संस्थाओं में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों में 78% विद्यार्थी ही किसी मान्यता प्राप्त संस्था से संबद्ध हैं।
• प्राथमिक स्तर पर 71% फीसदी छात्रों को मुफ्त शिक्षा हासिल है( ग्रामीण - 80%, शहरी - 40%)
• माध्यमिक स्तर पर 68% फीसदी छात्रों को मुफ्त शिक्षा हासिल है( ग्रामीण - 75%, शहरी - 45%)
• उच्च माध्यमिक स्तर या हायर सेकेंडरी स्तर पर 48% फीसदी छात्रों को मुफ्त शिक्षा हासिल है( ग्रामीण - 54%, शहरी - 35%)
• निजी शैक्षिक संस्था में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 1413 रुपये का है। (ग्रामीण- . 826 रुपये , शहरी - .3626 रुपये )
• निजी शैक्षिक संस्था में माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 2088 रुपये का है। (ग्रामीण- . 1370 रुपये , शहरी - .4264 रुपये )
• निजी शैक्षिक संस्था में माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 2088 रुपये का है। (ग्रामीण- . 1370 रुपये , शहरी - .4264 रुपये )
•निजी शैक्षिक संस्था में सेंकेंडरी या हायर सेकेंडरी स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 4351रुपये का है( ग्रामीण-3019, शहरी-7212)
• सेंकेंडरी या हायर सेकेंडरी स्तर से आगे की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 7360 रुपये का है( ग्रामीण-6327, शहरी-8466)
• तकनीकी शिक्षा के लिए यही खर्चा प्रति छात्र सालाना 32112 रुपये का है( ग्रामीण-27177 रुपये, शहरी-34822 रुपये)।
• रोजगारपरक शिक्षा के लिए यही खर्चा प्रति छात्र सालाना 14881 रुपये का है( ग्रामीण- 13699 रुपये, शहरी-17016 रुपये)।
• बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओड़ीसा में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए अगर छात्र निजी स्कूलों में दाखिल है तो उसका सालाना औसत खर्चा ६००-८०० रुपये का है जबकि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में ३५०० रुपये तक।
• ग्रामीण इलाकों में मासिक खर्चे के लिहाज से सबसे निचली श्रेणी में आने वाला तबके के एक छात्र पर उसका परिवार प्राथमिक शिक्षा के लिए ३५२ रुपये सालाना खर्च करता है तो मासिक खर्चे के लिहाज से सबसे उंचले पादान पर आने वाली श्रेणी के छात्र के लिए यही खर्चा ३५१६ रुपये का है। शहरी क्षेत्र में उपरोक्त वर्गों के लिए यह खर्चा क्रमशः 1035 रुपये और 13474 रुपये का है।
• अगर अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो शिक्षा पर कुल सालाना खर्चा प्रति छात्र ३०५८ रुपये का है जिसमें ट्यूशन फीस का हिस्सा 1034 रुपये का, परीक्षा शुल्क सहति अन्य शुल्कों(४५९ रुपये) का हिस्सा कुल खर्चे का आधा है। किताब और स्टेशनरी की खरीद पर ८५६ रुपये का खर्चा बैठता है तथा प्राइवेट कोचिंग पर ३५४ रुपये का।
• जहां तक ग्रामीण भारत का सवाल है शिक्षा पर कुल खर्चे का ४० फीसदी हिस्सा ट्यूशन फीस, परीक्षा और अन्य शुल्कों के मद में आता है जबकि कुल खर्चे का २५ फीसदी हिस्सा किताबों और स्टेशनरी की खरीदारी पर। शहरी क्षेत्र में ट्यूशन फीस का हिस्सा कुल खर्चे में ४० फीसदी का है।
• ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की तादाद ७६ फीसदी है, माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की तादाद ७३ फीसदी और हायर सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा ६२ फीसदी का है।
• शहरी क्षेत्र में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिहाज से कुल छात्रों का ५९ फीसदी निजी स्कूलों में पढ़ता है। मिडिल और सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में ५४-५५ फीसदी का है। शहरी क्षेत्र में प्राथमिक स्तर पर कुळ छात्रों का महज ३५ फीसदी सरकारी स्कूलों में पढ़ता है, माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए कुल छात्रों का ४० फीसदी हिस्सा सरकारी स्कूलों में जाता है और हायर सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा ४३ फीसदी का है। .
• असम बिहार छ्तीसगढ़ और ओड़िसा में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए कुल छात्रों का ९० फीसदी हिस्सा सरकारी स्कूलों या फिर स्थानीय निकायों द्वारा संचालित स्कूलों में जाता है जबकि केरल में ३५ फीसदी और पंजाब में ४५ फीसदी। इन दो राज्यों में अधिकतर छात्र निजी संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करते हैं।
• सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चों में ६० फीसदी को मिड डे मील हासिल होता है। इसकी तुलना में सराकारी सहायता प्राप्त निजी संस्थानों में पढ़ने वाले १६ फीसदी बच्चों को और सरकारी सहायता विहीन निजी संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों में से महज २ फीसदी छात्रों को मिड डे मील मिलता है।
• सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे कुल 69% फीसदी छात्रों को मुफ्त पाठ्यपुस्तकें मिलती है, सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में पढने वाले कुल २२ फीसदी छात्रों को जबकि गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में पढ़ने वाले कुल ४ फीसदी छात्रों को मुफ्त पाठ्यपुस्तकें हासिल होती हैं।
• स्कूली पढ़ाई पूरी ना कर पाने की मुख्य वजहें- धन की कमी (21%), विद्यार्थी का पढ़ाई में मन ना लगना (20%), पढाई में असफल होने का तनाव ना झेल पाना (10%), अपेक्षा का पूरा हो जाना यानि जहां तक पढना था पढ़ लिया का भाव-(10%), माता पिता का बच्चे की पढ़ाई में दिलचस्पी ना लेना- (9%)
• स्कूल में नाम ना लिखाने की तीन वजहें बार बार अध्ययन के दौरान लोगों ने स्वीकार की-क) माता पिता का बच्चे की पढ़ाई के प्रति रुचि ना रखना (33.2%), ख) धन की कमी (21%) और ग) शिक्षा को जरुरी ना मानना (21.8%).
Note: Net Attendance Ratio (I-VIII)=(Number of persons in age-group 6-13 currently attending Classes I-VIII divided by Estimated population in the age-group I-VIII years) multiplied by hundred
११-१४ आयु वर्ग की लड़कियों में स्कूल वंचितों की कमी
• साल २००८ में ६-१४ आयु वर्ग के स्कूल वंचित बच्चों की तादाद ४.३ फीसदी थी जो साल २००९ में घटकर ४ फीसदी हो गई।
• साल २००८ में ११-१४ आयु वर्ग की बच्चियों में स्कूल वंचितों की संख्या ७.२ फीसदी थी जो साल २००९ में घटकर ६.८ फीसदी हो गई। प्रतिशत पैमाने पर यह कमी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ (3.8) , बिहार (2.8), राजस्थान (2.6), ओडिसा (2.1), जम्मू-कश्मीर (1.9) में नजर आई। मेघालय को छोड़कर पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भी यही रुझान रहा। .
• आंध्रप्रदेश में साल २००८ में ११-१४ आयु वर्ग की बच्चियों में स्कूल वंचितों की संख्या ६.६ फीसदी थी जो साल २००९ में बढ़कर १०.८ फीसदी हो गई। पंजाब में यह आंकड़ा ४.९ फीसदी से बढ़कर ६.३ फीसदी पर पहुंचा।
प्राइवेट स्कूलों में नामांकन के मामले में रुझान में ज्यादा बदलाव नहीं
• कुल मिलाकर देखें तो ६-१४ आयु वर्ग के बच्चो के प्राइवेट स्कूलों में नामांकन के मामले में साल २००९ के मुकाबले साल २००९ में महज नामालूम (0.8 प्रतिशत अंक) सी कमी आई। बहरहाल, छह राज्यों में इस मामले में प्रतिशत पैमाने पर पांच अंकों की कमी आई है। पंजाब में इस आयु वर्ग के बच्चों का प्राइवेट स्कूल में नामांकन प्रतिशत पैमाने पर सर्वाधिक है और वहां इस मामले में कुल 11.3 अंकों की कमी दर्ज की गई।
देश में पांच साल के आयु वर्ग के कुल बच्चों में ५० फीसदी स्कूलों में नामांकित हैं।
• साल २००९ में ५ साल की उम्र वाले ५० फीसदी बच्चे स्कूलों में नामांकित थे। साल २००८ में भी यही स्थिति थी।
• आंगनवाड़ी या बालवाड़ी जैसे प्रीस्कूल स्तर पर देखें तो ३-४ साल के आयु वर्ग के बच्चों के मामले में स्थिति पिछले साल की ही तरह है। खासकर बिहार, ओडिसा, छत्तीसगढ़ और गुजरात में इस आयु वर्ग के बच्चों का दाखिला प्रीस्कूल स्तर की संस्थाओं में प्रतिशत पैमाने पर पांच अंक बढ़ा है।
कक्षा-१ के स्तर पर सीखने की क्षमता में सुधार आया
• बच्चे की बोध क्षमता की बुनियादी शुरुआती कक्षाओं में पड़ती है। कुल मिलाकर देखें तो जहां साल २००८ में कक्षा-१ के स्तर पर कुल ६५.१ फीसदी बच्चे वर्णमाला के अक्षरों को पहचान पाते थे वहीं साल २००९ में ऐसे बच्चों की तादाद ६८.८ फीसदी हो गई। ठीक इसी तरह संख्याओं को पहचानने के मामले में एक साल के अंदर यह आंकड़ा ६५.३ फीसदी से बढ़कर ६९.३ फीसदी तक जा पहुंचा है।
• संख्या १-९ तक की पहचान या वर्णमाला के अक्षरों की पहचान के मामले में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, झारखंड और ओड़िसा में कक्षा-१ के स्तर पर बच्चों की बोध क्षमता के लिहाज से पिछले साल के मुकाबले प्रतिशत पैमाने पर १० अंकों की बढ़त दर्ज की गई है। तमिलनाडु और गोवा में पाठवाचन क्षमता और गणितीय योग्यता के मामले में उक्त स्तर पर पांच अंकों की बढत दर्ज की गई है। यही रुझान उत्तराखंड,महाराष्ट्र और करनाटक में भी नजर आई ।
कक्षा-५ के स्तर पर बोध क्षमता में तमिलनाडु (पाठ वाचन क्षमता) को छोड़कर कोई खास बदलाव नहीं
• ग्रामीण बच्चों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि साल २००८ में जहां कक्षा- ५ के ५६.२ फीसदी छात्र कक्षा-२ के लिए मानक रुप में तैयार की गई पुस्तक को पढ़-समझ लेते थे वहीं साल २००९ में ऐसे बच्चों की तादाद घटकर ५२.८ फीसदी हो गई। इसके मायने हुए कि कम से पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले कम से कम ४० फीसदी बच्चे बोध के लिहाज से ३ कक्षा पीछे चल रहे हैं।
• तमिलनाडु में, सरकारी स्कूलों की पांचवीं कक्षा में पढ़ने बच्चों के मामले में यह तथ्य प्रकाश में आया कि उनके पाठन वाचन की क्षमता में पिछले साल के मुकाबले प्रतिशत पैमाने पर ८ अंकों का इजाफा हुआ है। कर्नाटक और पंजाब में भी साल २००८ के मुकाबले इस मामले में प्रगति नजर आई मगर बाकी राज्यों में मामला कमोबेश पिछले साल वाला ही रहा।
• जहां तक गणितीय योग्यता का सवाल है, देशव्यापी स्तर पर देखें तो कक्षा पांच में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में घटाव करने की क्षमता में खास बढोत्तरी नहीं हुई है।इस मामले में कुल सात राज्यों में प्रतिशत पैमाने पर ५-८ फीसदी बढत (विद्यार्थियों की संख्या के मामले में) नजर आई। इन राज्यों के नाम हैं- हिमाचल प्रदेश, पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिसा, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक।
देशस्तर पर अंग्रेजी पढ़ सकने और उसे समझ पाने के की क्षमता के मामले में पर्याप्त विभिन्नता है।
• अखिल भारतीय आंकड़े संकेत करते हैं कि कक्षा -५ में पढ़ रहे ग्रामीण विद्यार्थियों में २५ फीसदी की तादाद अंग्रेजी में लिखे सरल वाक्य पढ़ लेते हैं। अंग्रेजी के सरल वाक्यों को बच्चों की जो तादाद पढ़ लेती है उसमें ८० फीसदी बच्चे उक्त वाक्य का अर्थ भी समझते हैं।
• कक्षा -८ के स्तर पर पढ़ने वाले कुल बच्चों में ६०.२ फीसदी बच्चे अंग्रेजी के सरल वाक्य पढ़ पाते हैं। त्रिपुरा के छोड़कर सभी उत्तर पूर्वी राज्यों, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल में कक्षा- ८ में पढ़ रहे कुल विद्यार्थियों में ८० फीसदी की तादाद ना सिर्फ अंग्रेजी में लिखे वाक्य धड़ल्ले से पढ़ लेती है बल्कि उसके मायने भी समझती है।
हर कक्षा के ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की तादाद में इजाफा
• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो साल २००७ से २००८ के बीच ट्यूशन फड़ने वाले बच्चों की तादाद बढ़ी है और ऐसा हर कक्षा के विद्यार्थी के साथ देखने में आया। यह तथ्य सरकारी और निजी दोनों तरह के स्कूल के बच्चों पर लागू होती है। सिर्फ कर्नाटक और केरल में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के मामले में ट्यूशन पढ़ने के इस चलन में किंचित गिरावट देखने में आई।
• जहां तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का सवाल है, ट्यूशन पढ़ने का रुझान कक्षाओं की बढ़ती के साथ बढ़ोतरी करता नजर आया। पहली की कक्षा के १७.१ फीसदी छात्र ट्यूशन पढ़ते पाये गए तो आठवीं कक्षा के ३०.८ फीसदी छात्र।
•जो बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं उनमें पहली कक्षा में पढ़ने वाले कम से कम २३.३ फीसदी छात्र ट्यूशन पढ़ते पाये गए जबकि कक्षा- ४ के मामले में यही आंकड़ा बढ़कर २९.८ फीसदी तक पहुंचता है। .
• ट्यूशन पढ़ने की सर्वाधिक प्रवृति पश्चिम बंगाल के छात्रों में नजर आई। यहां सरकारी स्कूल की पहली कक्षा में पढ़ रहे ५० फीसदी बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं और यही तादाद कक्षा ८ तक जाते-जाते ९० फीसदी तक पहुंच जाती है। बिहार और ओड़िसा में भी ट्यूशन पढने वाले बच्चों की तादाद बहुत ज्यादा ( कक्षा-१ में एक तिहाई तो कक्षा -८ में ५० फीसदी) है।
कुछ राज्यों में बच्चों की स्कूल-उपस्थिति में सुधार की जरुरत
• तीन सालों (2005, 2007 और 2009) के आंक़ड़ों की तुलना से संकेत मिलते हैं कि विभिन्न राज्यों में स्कूल उपस्थिति के मामले में पर्याप्त अंतर है।बिहार जैसे राज्यों में हमारी टीम ने अपने दौरे के दौरान पाया कि जिन बच्चों ने स्कूल में दाखिला लिया है उनमें सिर्फ ६० फीसदी ही स्कूल आये हैं जबकि दक्षिण के राज्यों में में बच्चों की स्कूल उपस्थिति का आंकड़ा ९० फीसदी का था। इसके अतिरिक्त राजस्थान, उत्तरप्रदेश, झारखंड, ओडिसा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बच्चों की स्कूल उपस्थिति को बढ़ाने की दिशा में प्रयास किये जाने की जरुरत है। अधिकांश राज्यों में हमारी पर्यवेक्षक टीम ने पाया कि दौरे के दिन कुल नियुक्त शिक्षकों में से ९० फीसदी स्कूल में उपस्थित थे।
दो या अधिक कक्षा के विद्यार्थियों का पढ़ाई के लिए एक साथ बैठने का रुझान व्यापक
• साल २००७ और २००९ के सर्वेक्षण के दौरान पर्येवक्षकों से कहा गया कि अगर कक्षा-२ और ४ के विद्यार्थियों को एक साथ करके किसी अन्य कक्षा के साथ बैठाकर पढाया जाता हो तो वे इस बात की अपने सर्वेक्षण में निशानदेही करें।दोनों ही सालों में यह घटना व्यापक स्तर पर पायी गई। अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो कक्षा-२ और ४ के ५० फीसद विद्यार्थियों को एक साथ करके किसी अन्य कक्षा के साथ बैठाकर पढाने की घटना सामने आई।
शौचालयों की संख्या में बढ़ोतरी और पेयजल की सुविधाओं में सुधार
• अखिल भारतीय स्तर के आंकड़ों का संकेत है कि शौचालय और पेयजल की व्यवस्था से हीन विद्यालयों के चलन में कमी आई है। ७५ फीसदी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों और अपर प्राइमरी कहे जाने वाले ८१ फीसदी विद्यालयों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध है। सरकारी विद्यालयों में हर १० विद्यालय में ४ विद्यालय ऐसे थे जहां लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं थी। अपर प्राइमरी स्कूल के मामले में यह संख्या २६ फीसदी तक है। लगभग १२-१५ फीसदी शौचालय(लड़कियों के लिए) बंद पाये गए जबकि ३०-४० फीसदी ऐसी अवस्था में थे कि उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था।
पिछले वित्तीय वर्ष (स्कूलों के लिए लागू) में बहुत से विद्यालयों को अनुदान नहीं मिला-
• अनुदान के मामले में स्कूलों में राज्यवार पर्याप्त अंतर देखने में आया। नगालैंड में हमारी टीम जितने स्कूलों पर पर्येवक्षण के लिए गई उनमें ९० फीसदी को अनुदान हासिल हुआ था जबकि झारखंड ओड़िसा और मध्यप्रदेश में ऐसे विद्यालयों की तादाद (साल 2008-2009) ६० फीसदी या उससे भी कम थी ।
• साल २००८ में ११-१४ आयु वर्ग की बच्चियों में स्कूल वंचितों की संख्या ७.२ फीसदी थी जो साल २००९ में घटकर ६.८ फीसदी हो गई। प्रतिशत पैमाने पर यह कमी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ (3.8) , बिहार (2.8), राजस्थान (2.6), ओडिसा (2.1), जम्मू-कश्मीर (1.9) में नजर आई। मेघालय को छोड़कर पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भी यही रुझान रहा। .
• आंध्रप्रदेश में साल २००८ में ११-१४ आयु वर्ग की बच्चियों में स्कूल वंचितों की संख्या ६.६ फीसदी थी जो साल २००९ में बढ़कर १०.८ फीसदी हो गई। पंजाब में यह आंकड़ा ४.९ फीसदी से बढ़कर ६.३ फीसदी पर पहुंचा।
प्राइवेट स्कूलों में नामांकन के मामले में रुझान में ज्यादा बदलाव नहीं
• कुल मिलाकर देखें तो ६-१४ आयु वर्ग के बच्चो के प्राइवेट स्कूलों में नामांकन के मामले में साल २००९ के मुकाबले साल २००९ में महज नामालूम (0.8 प्रतिशत अंक) सी कमी आई। बहरहाल, छह राज्यों में इस मामले में प्रतिशत पैमाने पर पांच अंकों की कमी आई है। पंजाब में इस आयु वर्ग के बच्चों का प्राइवेट स्कूल में नामांकन प्रतिशत पैमाने पर सर्वाधिक है और वहां इस मामले में कुल 11.3 अंकों की कमी दर्ज की गई।
देश में पांच साल के आयु वर्ग के कुल बच्चों में ५० फीसदी स्कूलों में नामांकित हैं।
• साल २००९ में ५ साल की उम्र वाले ५० फीसदी बच्चे स्कूलों में नामांकित थे। साल २००८ में भी यही स्थिति थी।
• आंगनवाड़ी या बालवाड़ी जैसे प्रीस्कूल स्तर पर देखें तो ३-४ साल के आयु वर्ग के बच्चों के मामले में स्थिति पिछले साल की ही तरह है। खासकर बिहार, ओडिसा, छत्तीसगढ़ और गुजरात में इस आयु वर्ग के बच्चों का दाखिला प्रीस्कूल स्तर की संस्थाओं में प्रतिशत पैमाने पर पांच अंक बढ़ा है।
कक्षा-१ के स्तर पर सीखने की क्षमता में सुधार आया
• बच्चे की बोध क्षमता की बुनियादी शुरुआती कक्षाओं में पड़ती है। कुल मिलाकर देखें तो जहां साल २००८ में कक्षा-१ के स्तर पर कुल ६५.१ फीसदी बच्चे वर्णमाला के अक्षरों को पहचान पाते थे वहीं साल २००९ में ऐसे बच्चों की तादाद ६८.८ फीसदी हो गई। ठीक इसी तरह संख्याओं को पहचानने के मामले में एक साल के अंदर यह आंकड़ा ६५.३ फीसदी से बढ़कर ६९.३ फीसदी तक जा पहुंचा है।
• संख्या १-९ तक की पहचान या वर्णमाला के अक्षरों की पहचान के मामले में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, झारखंड और ओड़िसा में कक्षा-१ के स्तर पर बच्चों की बोध क्षमता के लिहाज से पिछले साल के मुकाबले प्रतिशत पैमाने पर १० अंकों की बढ़त दर्ज की गई है। तमिलनाडु और गोवा में पाठवाचन क्षमता और गणितीय योग्यता के मामले में उक्त स्तर पर पांच अंकों की बढत दर्ज की गई है। यही रुझान उत्तराखंड,महाराष्ट्र और करनाटक में भी नजर आई ।
कक्षा-५ के स्तर पर बोध क्षमता में तमिलनाडु (पाठ वाचन क्षमता) को छोड़कर कोई खास बदलाव नहीं
• ग्रामीण बच्चों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि साल २००८ में जहां कक्षा- ५ के ५६.२ फीसदी छात्र कक्षा-२ के लिए मानक रुप में तैयार की गई पुस्तक को पढ़-समझ लेते थे वहीं साल २००९ में ऐसे बच्चों की तादाद घटकर ५२.८ फीसदी हो गई। इसके मायने हुए कि कम से पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले कम से कम ४० फीसदी बच्चे बोध के लिहाज से ३ कक्षा पीछे चल रहे हैं।
• तमिलनाडु में, सरकारी स्कूलों की पांचवीं कक्षा में पढ़ने बच्चों के मामले में यह तथ्य प्रकाश में आया कि उनके पाठन वाचन की क्षमता में पिछले साल के मुकाबले प्रतिशत पैमाने पर ८ अंकों का इजाफा हुआ है। कर्नाटक और पंजाब में भी साल २००८ के मुकाबले इस मामले में प्रगति नजर आई मगर बाकी राज्यों में मामला कमोबेश पिछले साल वाला ही रहा।
• जहां तक गणितीय योग्यता का सवाल है, देशव्यापी स्तर पर देखें तो कक्षा पांच में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में घटाव करने की क्षमता में खास बढोत्तरी नहीं हुई है।इस मामले में कुल सात राज्यों में प्रतिशत पैमाने पर ५-८ फीसदी बढत (विद्यार्थियों की संख्या के मामले में) नजर आई। इन राज्यों के नाम हैं- हिमाचल प्रदेश, पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिसा, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक।
देशस्तर पर अंग्रेजी पढ़ सकने और उसे समझ पाने के की क्षमता के मामले में पर्याप्त विभिन्नता है।
• अखिल भारतीय आंकड़े संकेत करते हैं कि कक्षा -५ में पढ़ रहे ग्रामीण विद्यार्थियों में २५ फीसदी की तादाद अंग्रेजी में लिखे सरल वाक्य पढ़ लेते हैं। अंग्रेजी के सरल वाक्यों को बच्चों की जो तादाद पढ़ लेती है उसमें ८० फीसदी बच्चे उक्त वाक्य का अर्थ भी समझते हैं।
• कक्षा -८ के स्तर पर पढ़ने वाले कुल बच्चों में ६०.२ फीसदी बच्चे अंग्रेजी के सरल वाक्य पढ़ पाते हैं। त्रिपुरा के छोड़कर सभी उत्तर पूर्वी राज्यों, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल में कक्षा- ८ में पढ़ रहे कुल विद्यार्थियों में ८० फीसदी की तादाद ना सिर्फ अंग्रेजी में लिखे वाक्य धड़ल्ले से पढ़ लेती है बल्कि उसके मायने भी समझती है।
हर कक्षा के ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की तादाद में इजाफा
• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो साल २००७ से २००८ के बीच ट्यूशन फड़ने वाले बच्चों की तादाद बढ़ी है और ऐसा हर कक्षा के विद्यार्थी के साथ देखने में आया। यह तथ्य सरकारी और निजी दोनों तरह के स्कूल के बच्चों पर लागू होती है। सिर्फ कर्नाटक और केरल में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के मामले में ट्यूशन पढ़ने के इस चलन में किंचित गिरावट देखने में आई।
• जहां तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का सवाल है, ट्यूशन पढ़ने का रुझान कक्षाओं की बढ़ती के साथ बढ़ोतरी करता नजर आया। पहली की कक्षा के १७.१ फीसदी छात्र ट्यूशन पढ़ते पाये गए तो आठवीं कक्षा के ३०.८ फीसदी छात्र।
•जो बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं उनमें पहली कक्षा में पढ़ने वाले कम से कम २३.३ फीसदी छात्र ट्यूशन पढ़ते पाये गए जबकि कक्षा- ४ के मामले में यही आंकड़ा बढ़कर २९.८ फीसदी तक पहुंचता है। .
• ट्यूशन पढ़ने की सर्वाधिक प्रवृति पश्चिम बंगाल के छात्रों में नजर आई। यहां सरकारी स्कूल की पहली कक्षा में पढ़ रहे ५० फीसदी बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं और यही तादाद कक्षा ८ तक जाते-जाते ९० फीसदी तक पहुंच जाती है। बिहार और ओड़िसा में भी ट्यूशन पढने वाले बच्चों की तादाद बहुत ज्यादा ( कक्षा-१ में एक तिहाई तो कक्षा -८ में ५० फीसदी) है।
कुछ राज्यों में बच्चों की स्कूल-उपस्थिति में सुधार की जरुरत
• तीन सालों (2005, 2007 और 2009) के आंक़ड़ों की तुलना से संकेत मिलते हैं कि विभिन्न राज्यों में स्कूल उपस्थिति के मामले में पर्याप्त अंतर है।बिहार जैसे राज्यों में हमारी टीम ने अपने दौरे के दौरान पाया कि जिन बच्चों ने स्कूल में दाखिला लिया है उनमें सिर्फ ६० फीसदी ही स्कूल आये हैं जबकि दक्षिण के राज्यों में में बच्चों की स्कूल उपस्थिति का आंकड़ा ९० फीसदी का था। इसके अतिरिक्त राजस्थान, उत्तरप्रदेश, झारखंड, ओडिसा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बच्चों की स्कूल उपस्थिति को बढ़ाने की दिशा में प्रयास किये जाने की जरुरत है। अधिकांश राज्यों में हमारी पर्यवेक्षक टीम ने पाया कि दौरे के दिन कुल नियुक्त शिक्षकों में से ९० फीसदी स्कूल में उपस्थित थे।
दो या अधिक कक्षा के विद्यार्थियों का पढ़ाई के लिए एक साथ बैठने का रुझान व्यापक
• साल २००७ और २००९ के सर्वेक्षण के दौरान पर्येवक्षकों से कहा गया कि अगर कक्षा-२ और ४ के विद्यार्थियों को एक साथ करके किसी अन्य कक्षा के साथ बैठाकर पढाया जाता हो तो वे इस बात की अपने सर्वेक्षण में निशानदेही करें।दोनों ही सालों में यह घटना व्यापक स्तर पर पायी गई। अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो कक्षा-२ और ४ के ५० फीसद विद्यार्थियों को एक साथ करके किसी अन्य कक्षा के साथ बैठाकर पढाने की घटना सामने आई।
शौचालयों की संख्या में बढ़ोतरी और पेयजल की सुविधाओं में सुधार
• अखिल भारतीय स्तर के आंकड़ों का संकेत है कि शौचालय और पेयजल की व्यवस्था से हीन विद्यालयों के चलन में कमी आई है। ७५ फीसदी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों और अपर प्राइमरी कहे जाने वाले ८१ फीसदी विद्यालयों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध है। सरकारी विद्यालयों में हर १० विद्यालय में ४ विद्यालय ऐसे थे जहां लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं थी। अपर प्राइमरी स्कूल के मामले में यह संख्या २६ फीसदी तक है। लगभग १२-१५ फीसदी शौचालय(लड़कियों के लिए) बंद पाये गए जबकि ३०-४० फीसदी ऐसी अवस्था में थे कि उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था।
पिछले वित्तीय वर्ष (स्कूलों के लिए लागू) में बहुत से विद्यालयों को अनुदान नहीं मिला-
• अनुदान के मामले में स्कूलों में राज्यवार पर्याप्त अंतर देखने में आया। नगालैंड में हमारी टीम जितने स्कूलों पर पर्येवक्षण के लिए गई उनमें ९० फीसदी को अनुदान हासिल हुआ था जबकि झारखंड ओड़िसा और मध्यप्रदेश में ऐसे विद्यालयों की तादाद (साल 2008-2009) ६० फीसदी या उससे भी कम थी ।
भारत में शिक्षा-एक नजर
* युवा (१५–२४ साल) साक्षरता दर २०००-२००७*, पुरुष ८७
* युवा (१५–२४ साल) साक्षरता दर, २०००-२००७*, महिला ७७
* प्रति सौ व्यक्तियों पर फोन, (साल २००६) -१५
* प्रति सौ व्यक्तियों पर इंटरनेट-यूजर की संख्या, साल(२००६)-११
* प्राइमरी स्कूल में नामांकन का अनुपात (साल २०००-२००७)-सकल, पुरुष ९०
* प्राइमरी स्कूल में नामांकन का अनुपात (साल २०००-२००७)-सकल, स्त्री ८७
* प्राथमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, पुरुष, ८५
* प्राथमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, स्त्री ८१
* माध्यमिक विद्यालय में नामांकन- अनुपात, २०००-२००७, पुरूष ५९
* माध्यमिक विद्यालय में नामांकन- अनुपात, २०००-२००७, स्त्री ४९
* माध्यमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, पुरुष ५९
* माध्यमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, स्त्री ४९
* नोट: नामांकन अनुपात का अर्थ होता है कि किसी विशिष्ट शिक्षा स्तर पर दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या कितनी है। इसमें दाखिला लेने वाले विद्यार्थी की उम्र का आकलन नहीं किया जाता।
* युवा (१५–२४ साल) साक्षरता दर २०००-२००७*, पुरुष ८७
* युवा (१५–२४ साल) साक्षरता दर, २०००-२००७*, महिला ७७
* प्रति सौ व्यक्तियों पर फोन, (साल २००६) -१५
* प्रति सौ व्यक्तियों पर इंटरनेट-यूजर की संख्या, साल(२००६)-११
* प्राइमरी स्कूल में नामांकन का अनुपात (साल २०००-२००७)-सकल, पुरुष ९०
* प्राइमरी स्कूल में नामांकन का अनुपात (साल २०००-२००७)-सकल, स्त्री ८७
* प्राथमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, पुरुष, ८५
* प्राथमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, स्त्री ८१
* माध्यमिक विद्यालय में नामांकन- अनुपात, २०००-२००७, पुरूष ५९
* माध्यमिक विद्यालय में नामांकन- अनुपात, २०००-२००७, स्त्री ४९
* माध्यमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, पुरुष ५९
* माध्यमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, स्त्री ४९
* नोट: नामांकन अनुपात का अर्थ होता है कि किसी विशिष्ट शिक्षा स्तर पर दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या कितनी है। इसमें दाखिला लेने वाले विद्यार्थी की उम्र का आकलन नहीं किया जाता।
Source: UNICEF, http://www.unicef.org/infobycountry/india_statistics.html
एनएसएस द्वारा प्रस्तुत एजुकेशन इन
इंडिया २००७-०८, पार्टिसिपेशन एंड एक्सपेंडिचर, रिपोर्ट संख्या-
532(64/25.2/1): (जुलाई 2007–जून 2008) के अनुसार-
• केरल (94%), असम (84%), और महाराष्ट्र (81%) अपेक्षाकृत उच्च साक्षरता दर वाले राज्य हैं।
• अपेक्षाकृत निम्न साक्षरता दर वाले राज्यों के नाम हैं-- बिहार (58%), राजस्थान (62%) और आंध्रप्रदेश(64%)
• निम्न साक्षरता दर वाले अन्य राज्यों के नाम हैं-- झारखंड (64.6%), उत्तरप्रदेश (66.2%), जम्मू-कश्मीर(67.7%) और ओड़िसा (68.3%)
• देश की व्यस्क आबादी( १५ साल और उससे ज्यादा की उम्र) का 66% हिस्सा साक्षर है।
• ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्चे के आधार पर सबसे निचली श्रेणी में ५१.२ फीसदी आबादी निरक्षर है। प्रति व्यक्ति मासिक खर्चे के हिसाब से सबसे ऊंचसी श्रेणी में आने वाली ग्रामीण आबादी में भी महज २२.८ फीसदी लोग साक्षर हैं।
• ग्रामीण इलाके की महिलाओं और पुरुषों तथा शहरी इलाके की महिलाओं और पुरुषों के बीच साक्षरता दर क्रमशः 51.1%, 68.4%, 71.6% और 82.2% पायी गई। ४२ दौर की गणना( साल ) में यही आंकड़ा क्रमशः 24.8%, 47.6%, 59.1% और 74.0% का था।
• 98% फीसदी ग्रामीण घरों और 99% फीसदी शहरी घरों के दो किलोमीटर की परिधि में प्राथमिक विद्यालय मौजूद हैं।
• 79% फीसदी ग्रामीण घरों और 97% फीसदी शहरी घरों के दो किलोमीटर की परिधि में माध्यमिक विद्यालय मौजूद हैं।
• 47% फीसदी ग्रामीण घरों और 91% फीसदी शहरी घरों के दो किलोमीटर की परिधि में माध्यमिक और प्राथमिक विद्यालय दोनों मौजूद हैं।
• ५-२९ साल के आयु वर्ग के लोगों में ४६ फीसदी आबादी अभी किसी भी शैक्षिक संस्था में नामांकित नहीं है, इस आयु वर्ग के दो फीसदी लोगों का नामांकन तो है लेकिन इनकी शैक्षिक संस्था में उपस्थिति नहीं है। इस आयु वर्ग के ५२ फीसदी व्यक्तियों की शैक्षिक संस्था में उपस्थिति दर्ज की गई है।
• 5-29 साल के आयु वर्ग में प्राथमिक और उससे ऊंचे दर्जे की कक्षा में नामांकित व्यक्तियों के हिसाब से देखें तो - 49% प्राथमिक स्तर पर, 24% माध्यमिक स्तर पर ; 20% उच्च माध्यमिक स्तर पर और 7% हायर सेकेंडरी स्तर पर नामांकित हैं।
• सामान्य पाठ्यक्रम में 97.8% व्यक्तियों ने दाखिला लिया है। तकनीकी प्रकृति के पाठ्यक्रम में 1.9% और रोजगारपरक पाठ्यक्रम में लोगों ने दाखिला लिया है।
• अखिल भारतीय स्तर पर नेट अटेन्डेंट रेशियो कक्षाI-VIII के लिए 86% है।
• अपेक्षाकृत उच्च नेट अटेन्डेंट रेशियो (कक्षाI-VIII के लिए) वाले बड़े राज्यों के नाम हैं- : हिमाचल प्रदेश (96%),केरल(94%) और तमिलनाडु (92%)।
• अपेक्षाकृत निम्न नेट अटेन्डेंट रेशियो (कक्षाI-VIII के लिए) वाले बड़े राज्यों के नाम हैं-: बिहार (74%), झारखंड (81%), उत्तरप्रदेश (83%)
• प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिहाज से निजी संस्थाओं में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों में 73% ही किसी मान्यता प्राप्त संस्था से संबद्ध हैं।
• माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिहाज से निजी संस्थाओं में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों में 78% विद्यार्थी ही किसी मान्यता प्राप्त संस्था से संबद्ध हैं।
• प्राथमिक स्तर पर 71% फीसदी छात्रों को मुफ्त शिक्षा हासिल है( ग्रामीण - 80%, शहरी - 40%)
• माध्यमिक स्तर पर 68% फीसदी छात्रों को मुफ्त शिक्षा हासिल है( ग्रामीण - 75%, शहरी - 45%)
• उच्च माध्यमिक स्तर या हायर सेकेंडरी स्तर पर 48% फीसदी छात्रों को मुफ्त शिक्षा हासिल है( ग्रामीण - 54%, शहरी - 35%)
• निजी शैक्षिक संस्था में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 1413 रुपये का है। (ग्रामीण- . 826 रुपये , शहरी - .3626 रुपये )
• निजी शैक्षिक संस्था में माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 2088 रुपये का है। (ग्रामीण- . 1370 रुपये , शहरी - .4264 रुपये )
• निजी शैक्षिक संस्था में माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 2088 रुपये का है। (ग्रामीण- . 1370 रुपये , शहरी - .4264 रुपये )
•निजी शैक्षिक संस्था में सेंकेंडरी या हायर सेकेंडरी स्तर की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 4351रुपये का है( ग्रामीण-3019, शहरी-7212)
• सेंकेंडरी या हायर सेकेंडरी स्तर से आगे की शिक्षा के लिए दाखिल हर छात्र पर सालाना औसत खर्चा 7360 रुपये का है( ग्रामीण-6327, शहरी-8466)
• तकनीकी शिक्षा के लिए यही खर्चा प्रति छात्र सालाना 32112 रुपये का है( ग्रामीण-27177 रुपये, शहरी-34822 रुपये)।
• रोजगारपरक शिक्षा के लिए यही खर्चा प्रति छात्र सालाना 14881 रुपये का है( ग्रामीण- 13699 रुपये, शहरी-17016 रुपये)।
• बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओड़ीसा में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए अगर छात्र निजी स्कूलों में दाखिल है तो उसका सालाना औसत खर्चा ६००-८०० रुपये का है जबकि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में ३५०० रुपये तक।
• ग्रामीण इलाकों में मासिक खर्चे के लिहाज से सबसे निचली श्रेणी में आने वाला तबके के एक छात्र पर उसका परिवार प्राथमिक शिक्षा के लिए ३५२ रुपये सालाना खर्च करता है तो मासिक खर्चे के लिहाज से सबसे उंचले पादान पर आने वाली श्रेणी के छात्र के लिए यही खर्चा ३५१६ रुपये का है। शहरी क्षेत्र में उपरोक्त वर्गों के लिए यह खर्चा क्रमशः 1035 रुपये और 13474 रुपये का है।
• अगर अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो शिक्षा पर कुल सालाना खर्चा प्रति छात्र ३०५८ रुपये का है जिसमें ट्यूशन फीस का हिस्सा 1034 रुपये का, परीक्षा शुल्क सहति अन्य शुल्कों(४५९ रुपये) का हिस्सा कुल खर्चे का आधा है। किताब और स्टेशनरी की खरीद पर ८५६ रुपये का खर्चा बैठता है तथा प्राइवेट कोचिंग पर ३५४ रुपये का।
• जहां तक ग्रामीण भारत का सवाल है शिक्षा पर कुल खर्चे का ४० फीसदी हिस्सा ट्यूशन फीस, परीक्षा और अन्य शुल्कों के मद में आता है जबकि कुल खर्चे का २५ फीसदी हिस्सा किताबों और स्टेशनरी की खरीदारी पर। शहरी क्षेत्र में ट्यूशन फीस का हिस्सा कुल खर्चे में ४० फीसदी का है।
• ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की तादाद ७६ फीसदी है, माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की तादाद ७३ फीसदी और हायर सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा ६२ फीसदी का है।
• शहरी क्षेत्र में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिहाज से कुल छात्रों का ५९ फीसदी निजी स्कूलों में पढ़ता है। मिडिल और सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में ५४-५५ फीसदी का है। शहरी क्षेत्र में प्राथमिक स्तर पर कुळ छात्रों का महज ३५ फीसदी सरकारी स्कूलों में पढ़ता है, माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए कुल छात्रों का ४० फीसदी हिस्सा सरकारी स्कूलों में जाता है और हायर सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा ४३ फीसदी का है। .
• असम बिहार छ्तीसगढ़ और ओड़िसा में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए कुल छात्रों का ९० फीसदी हिस्सा सरकारी स्कूलों या फिर स्थानीय निकायों द्वारा संचालित स्कूलों में जाता है जबकि केरल में ३५ फीसदी और पंजाब में ४५ फीसदी। इन दो राज्यों में अधिकतर छात्र निजी संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करते हैं।
• सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चों में ६० फीसदी को मिड डे मील हासिल होता है। इसकी तुलना में सराकारी सहायता प्राप्त निजी संस्थानों में पढ़ने वाले १६ फीसदी बच्चों को और सरकारी सहायता विहीन निजी संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों में से महज २ फीसदी छात्रों को मिड डे मील मिलता है।
• सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे कुल 69% फीसदी छात्रों को मुफ्त पाठ्यपुस्तकें मिलती है, सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में पढने वाले कुल २२ फीसदी छात्रों को जबकि गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में पढ़ने वाले कुल ४ फीसदी छात्रों को मुफ्त पाठ्यपुस्तकें हासिल होती हैं।
• स्कूली पढ़ाई पूरी ना कर पाने की मुख्य वजहें- धन की कमी (21%), विद्यार्थी का पढ़ाई में मन ना लगना (20%), पढाई में असफल होने का तनाव ना झेल पाना (10%), अपेक्षा का पूरा हो जाना यानि जहां तक पढना था पढ़ लिया का भाव-(10%), माता पिता का बच्चे की पढ़ाई में दिलचस्पी ना लेना- (9%)
• स्कूल में नाम ना लिखाने की तीन वजहें बार बार अध्ययन के दौरान लोगों ने स्वीकार की-क) माता पिता का बच्चे की पढ़ाई के प्रति रुचि ना रखना (33.2%), ख) धन की कमी (21%) और ग) शिक्षा को जरुरी ना मानना (21.8%).
Note: Net Attendance Ratio (I-VIII)=(Number of persons in age-group 6-13 currently attending Classes I-VIII divided by Estimated population in the age-group I-VIII years) multiplied by hundred
एजुकेशन फॉर ऑल रिपोर्ट २०१० के अनुसार
• मानव विकास सूचकांकों में गिरावट के रुझान हैं। तकरीबन १२
करोड़ पचास लाख अतिरिक्त लोग साल २००९ में कुपोषण के जाल में फंसे और आशंका
है कि ९ करोड़ की और आबादी साल २०१० तक गरीबी के जाल में फंसेगी।
• बढती गरीबी, बेरोजगारी और घटती मजदूरी के कारण कई गरीब
परिवार शिक्षा पर हो रहे अपने खर्चे में कटौती कर रहे हैं और अपने बच्चों
का नाम स्कूल से कटवा रहे हैं।
• साल १९९९ से लेकर अबतक स्कूल वंचित बच्चों की तादाद में में विश्वस्तर पर कमी(३ करोड़ ३० लाख) आई है। दक्षिण और पश्चिम एशिया में स्कूल वंचित बच्चों की तादाद में ५० फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। यह संख्या तकरीबन २ करोड़ १० लाख के बराबर पहुंचती है।
• विश्वस्तर पर देखें तो स्कूल वंचित बच्चियों की संख्या भी कम हुई है। पहले यह ५८ फीसदी थी और अब घटकर ५४ फीसदी हो गई है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर लैंगिक-असमानता में कई देशों में कमी आ रही है।
• साल १९८५-१९९४ और साल २०००-२००७ के बीच विश्वस्तर पर व्यस्क साक्षरता की दर में १० फीसदी का इजाफा हुआ। फिलहाल व्यस्क साक्षरता दर ८४ फीसदी है। व्यस्क पुरुषों की तुलना में व्यस्क महिलाओं की साक्षरता दर इस अवधि में कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है।
• प्रति वर्ष १७ करोड़ ५० लाख बच्चे विश्व में कुपोषण से प्रभावित होते हैं। यह तथ्य सेहत और शिक्षा के लिहाज से एक आपात् स्थिति की सूचना देता है।
• साल २००७ में ७ करोड़ २० लाख बच्चे स्कूल वंचित थे। अगर मौजूदा हालात जारी रहे तो २०१५ तक कुल ५ करोड़ ६० लाख बच्चे स्कूल वंचित रहेंगे।
• शिक्षा से संबंधित लक्ष्यों में साक्षरता को सबसे कम महत्व मिला है। विश्व में कुल ७५ करोड़ ९० लाख लोग निरक्षर हैं और इनमें महिलाओं की संख्या दो तिहाई है।
• साल २०१५ तक सार्विक प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए १० लाख ९० हजार अतिरिक्त शिक्षकों की जरुरत पड़ेगी।
• कुल २२ देशों में ३० फीसदी से ज्यादा नौजवानों को महज चार साल तक की शिक्षा हासिल हुई है। ऐसे नौजवानों की तादाद उप सहारीय अफ्रीकी के ११ देशों में ५० फीसदी से भी ज्यादा है।
• साल १९९९ से लेकर अबतक स्कूल वंचित बच्चों की तादाद में में विश्वस्तर पर कमी(३ करोड़ ३० लाख) आई है। दक्षिण और पश्चिम एशिया में स्कूल वंचित बच्चों की तादाद में ५० फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। यह संख्या तकरीबन २ करोड़ १० लाख के बराबर पहुंचती है।
• विश्वस्तर पर देखें तो स्कूल वंचित बच्चियों की संख्या भी कम हुई है। पहले यह ५८ फीसदी थी और अब घटकर ५४ फीसदी हो गई है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर लैंगिक-असमानता में कई देशों में कमी आ रही है।
• साल १९८५-१९९४ और साल २०००-२००७ के बीच विश्वस्तर पर व्यस्क साक्षरता की दर में १० फीसदी का इजाफा हुआ। फिलहाल व्यस्क साक्षरता दर ८४ फीसदी है। व्यस्क पुरुषों की तुलना में व्यस्क महिलाओं की साक्षरता दर इस अवधि में कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है।
• प्रति वर्ष १७ करोड़ ५० लाख बच्चे विश्व में कुपोषण से प्रभावित होते हैं। यह तथ्य सेहत और शिक्षा के लिहाज से एक आपात् स्थिति की सूचना देता है।
• साल २००७ में ७ करोड़ २० लाख बच्चे स्कूल वंचित थे। अगर मौजूदा हालात जारी रहे तो २०१५ तक कुल ५ करोड़ ६० लाख बच्चे स्कूल वंचित रहेंगे।
• शिक्षा से संबंधित लक्ष्यों में साक्षरता को सबसे कम महत्व मिला है। विश्व में कुल ७५ करोड़ ९० लाख लोग निरक्षर हैं और इनमें महिलाओं की संख्या दो तिहाई है।
• साल २०१५ तक सार्विक प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए १० लाख ९० हजार अतिरिक्त शिक्षकों की जरुरत पड़ेगी।
• कुल २२ देशों में ३० फीसदी से ज्यादा नौजवानों को महज चार साल तक की शिक्षा हासिल हुई है। ऐसे नौजवानों की तादाद उप सहारीय अफ्रीकी के ११ देशों में ५० फीसदी से भी ज्यादा है।
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