आजाद देश की गुलाम किशोर आबादी ?
एक अरब इक्कीस करोड़ की आबादी वाले भारत में 20 फीसदी व्यक्ति
किशोर
उम्र (10-19साल) के हैं, मतलब किसी भी अन्य देश के किशोरवय लोगों की संख्या की तुलना में ज्यादा।( भारत में इस उम्र के लोगों की कुल तादाद 24 करोड़ 30 लाख है जबकि चीन में किशोरवय लोगों की संख्या तकरीबन 20 करोड़ है।)
उम्र (10-19साल) के हैं, मतलब किसी भी अन्य देश के किशोरवय लोगों की संख्या की तुलना में ज्यादा।( भारत में इस उम्र के लोगों की कुल तादाद 24 करोड़ 30 लाख है जबकि चीन में किशोरवय लोगों की संख्या तकरीबन 20 करोड़ है।)
हरियाणा के बागपत और असम के गुवाहाटी से आने
वाले महिला-उत्पीड़न �
�ी खबरों के बीच यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि दुनिया की सबसे बड़ी किशोर आबादी की दशा जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों(शादी, संतान आदि) के मामले में पसंद-नापसंद यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिहाज से कैसी है? इस स्वतंत्रता के साथ देश में प्रचलित जाति-पंचायतें क्या बरताव करती हैं और देश के मानव-विकास पर इसका क्या असर पड़ता है?(इन सवालों के उत्तर की एक झलक मिलती है इस एलर्ट के सबसे नीचे पेस्ट की गई विविधा फीचर्स द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट से)
वाले महिला-उत्पीड़न �
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हाल की कई रिपोर्टों में भारत की किशोरवय आबादी, विशेषकर
किशोरवय स्त्रियों की दशा पर रोशनी डाली गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ क
ी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं। इस तथ्य का एक संकेत यह है कि भारत जैसे देश में बाल-विवाह का चलन जारी है। सेव द चिलड्रेन की तरफ �
�े जारी एक नई रिपोर्ट में इसी तथ्य की तरफ इशारा करते हुए कहा गया है कि भारत में 15-19 साल के उम्र की विवाहित महिलाओं की संख्या 30 फीसदी है।जबकि इस उम्र के लड़कों में महज पाँच फीसदी ही शादीशुदा हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार चूंकि भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है, सो इस उम्र में मां बनने वाली महिलाओं की प्रसवकालीन मृत्यु-दर भी ज्यादा है।
ी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं। इस तथ्य का एक संकेत यह है कि भारत जैसे देश में बाल-विवाह का चलन जारी है। सेव द चिलड्रेन की तरफ �
�े जारी एक नई रिपोर्ट में इसी तथ्य की तरफ इशारा करते हुए कहा गया है कि भारत में 15-19 साल के उम्र की विवाहित महिलाओं की संख्या 30 फीसदी है।जबकि इस उम्र के लड़कों में महज पाँच फीसदी ही शादीशुदा हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार चूंकि भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है, सो इस उम्र में मां बनने वाली महिलाओं की प्रसवकालीन मृत्यु-दर भी ज्यादा है।
पंचायतों के ये
तानाशाही फैसले
बाबूलाल नागा
इन दिनों जाति पंचायतों की तानाशाही
बढ़ती जा रही है। कभी तो वे अपनी पसंद से शादी करने वाले नौजवानों कोमारने का फतवा
देते हैं। कहीं जबरन बाल विवाह को नामंजूर करने से रोकते हैं। कहीं ये पंचायतें
लोगों की जान की दुश्मन बन जाती है।
पिछले दिनों राजस्थान राज्य में ऐसे ही कुछ जाति पंचायतों के तानाशाही फैसलों की
खूब चर्चा हुई है।
जोधपुर की एक जातीय पंचायत ने बाल
विवाह को निरस्त करने पर लड़की के घरवालों पर नौ लाख रुपए का जुर्माना
ठोक दिया है। बिरादरी से बाहर करने की धमकी
भी दी है। शोभा नाम की इस लड़की की शादी महज दस साल की उम्र में
कर दी गई थी। लड़की ने अब अपनी बीए की पढ़ाई
पूरी कर ली है। बचपन में की गई इस शादी को न मानते हुए उसने ससुराल
जाने से मना कर दिया है। समाज के लोग उन पर
दबाव बना रहे हैं। उसे धमकियां भी दे रहे हैं। जोधपुर जिले में ही बोयल
गांव की रेखा और दौसा की संतरा ने भी जाति
पंचायत के फैसलों के खिलाफ बगावत की है। संतरा राजपत्रित अधिकारी है।
उसका पति दसवीं फेल है और नशे का आदी है।
बचपन में कर दी गई यह शादी संतरा को कबूल नहीं। सब कुछ जानते हुए वो एक नशेड़ी आदमी के साथ नहीं रहना चाहती। संतरा ने इस
फैसले को नहीं माना है। जातीय पंचायत ने धमकी दी है। कहा है, किसी भी कीमत पर
संतरा का अपहरण करके भी ससुराल भेजेंगे। संतरा को रातोंरात घर छोड़कर भागना पड़ा।
उसने कलक्टर व पुलिस अधीक्षक को इस
बारे में बताया। रेखा भी बीए अंतिम वर्ष की छात्रा है। उसका मंगेतर नशेड़ी और
दसवीं मंे दो बार फेल है। वो जब पांच साल की
थी तब उनका रिश्ता तय हुआ था। रेखा के दादा ने उनका मुंह जुबानी रिश्ता
तय किया था। रेखा ने ऐसे रिश्ते को मानने से
इंकार कर दिया है। इस पर पंचों ने रेखा के घर वालों पर जुर्माना भरने का
फरमान सुनाया है। युवक ने रेखा को उठा ले
जाने व तेजाब डालने की भी धमकी दी है।
श्रीगंगानगर थाना क्षेत्र की
मसानीवाला पंचायत के गांव 7एलसी की पंचायत ने एक दलित युवक को जूतों की माला
पहनाकर सरेआम उसे गांव में घुमाने की सजा
दी। पंचायत ने दलित युवक मुकेश कुमार पर चोरी का आरोप लगाकर ये सज़ा
दी। उसकी पत्नी सुमन मेघवाल ने हिम्मत करके
उसे छुड़ाया। पति की बेइज्जती से वह दुखी हो गई और जहरीला पदार्थ खा
लिया। तबीयत बिगड़ने पर उसे अस्पताल में
भर्ती करवाया गया। टोंक के चंदवाड़ में समाज के पंच पटेलों ने गांव के हंसराज
बैरवा को जाति से बाहर कर हुक्का पानी बंद
कर दिया। हंसराज ने बाबा रामदेव के मंदिर निर्माण में चंदा देने से मना कर दिया
था। इसी बात पर पंचों ने उसे ये सजा दी। हाल
ही में जयपुर के बस्सी उपखंड के ग्राम गोठड़ा में जातीय पंचायत के
माध्यम से एक परिवार को समाज से बहिस्कृत
करने, हुक्का पानी बंद करने, समाज की धर्मशाला, सार्वजनिक
स्थानों, मंदिर आदि में जाने पर रोक लगाने का मामला सामने आया। गोठड़ा निवासी
नारायण लाल माली के खिलाफ समाज की एक अनौपचारिक सभा का पर्चा बंटवाया। सभा में उसके खिलाफ निर्णय सुनाते हुए
11 हजार रुपए का अर्थदंड लगाया। गत वर्ष भीलवाड़ा जिले के बड़ा महुआ गांव के 31 दलितों परिवारों का सामाजिक बहिष्कार
कर दिया गया था। इन दलित परिवारों ने जलझूलनी एकादशी पर लोकदेवता रामदेव पीर की शोभायात्रा निकाली थी। गांव
के सवर्ण परिवारों ने इस शोभायात्रा का विरोध किया था। इसी कारण इन दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार किया गया।
पूरे पांच माह बीस दिन बाद इन दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार खत्म हो पाया था।
हमारा देश अभी भी जाति पंचायतांे के
गैर संवैधानिक और अमानवीय फैसलों के साए में जी रहा है। जातीय पंचायतों
की ऐसी हरकतें दिन ब दिन बढ़ती जा रही हंै।
ऐसे तमाम मामलों में पंचायतें कानून विरोधी फैसले कर रही हैं। अब तक पंचायतों
को इन नाजायज फैसलों से रोकने के लिए कोई
असरदार कदम नहीं उठाए गए हैं। इन पंचायतों में एक तरफ आम जनता के
इंसानी हकों को छीना जाता है। दूसरी तरफ
तरक्की पसंद नौजवानों को सरेआम दंडित किया जा रहा है। सबसे बड़ी बात ये
कि इन पंचायतों में औरतों की न तो भागीदारी
होती है न ही सुनवाई। सवाल यह भी है कि जाति पंचायतों की बैठकें किसी
बंद कमरे की बजाए खुले मैदान में होती है।
इसके बाद भी कोई इन जातीय फैसलों के खिलाफ नहीं हो पाता। हैरानी है कि
अब तक न्यायपालिका का ध्यान इन पंचायतों की
तरफ क्यों नहीं गया। इनके खिलाफ किसी न्यायालय की पहल से अब तक
कोई आदेश जारी क्यों नहीं किया गया।
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