शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

असुरक्षित परिवेश

साल १९७० में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या १,१४,१०० थी जो साल २००४ तक चार गुना बढ़कर ४,२९,९१० हो गई।$
• सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की तादाद साल १९७० में १४,५०० थी जो साल २००४ तक छह गुनी बढ़कर ९२,६१८ हो गई।$
• खेती में सर्वाधिक मारक दुर्घटनाएं बिजली चालित मशीनों पर काम के दौरान होती हैं। बिजली चालित मशीनों से खेतिहर कामों में अनुमानतया १ लाख में २२ किसानों की मृत्यु होती है।**
• ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रामक रोगों, मातृ-स्वास्थ्य या पिर पोषणगत कारणों से अपेक्साकृत ज्यादा लोगों(४१ फीसदी) की मृत्यु होती है। *
• रासायनिक खाद, कीटनाशक और खरपतवार नाशकों के इस्तेमाल के कारण किसानों को की किस्म की बीमारियों का शिकार होना पड़ता है।**
• काम आय, कम पोषण और हाड़तोड़ मेहनत के कारण किसान-परिवार स्वास्थ्य समस्याओं से घिरे रहते हैं। इसका सीधा असर खेती की उत्पादकता पर भी पड़ता है और उपचार पर खर्च होने से किसान की आमदनी भी प्रभावित होती है।**
$ मिनिस्ट्री ऑव रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवे
* समरी रिपोर्ट ऑन कॉजेज ऑव डेथ इन इंडिया (2001-2003)
** एनसीईयूएस (2007), रिपोर्ट ऑन कंडीशन ऑव वर्क एंड प्रोमोशन ऑव लाइवलीहुड इन द अन-आर्गनाइज्ड सेक्टर 
साल 1970 (1,14,100) से लेकर साल 2005 (4,39,200) सड़क दुर्घटनाओं में बढोतरी हुई है। साल 1970 में सड़क दुर्घटनाओं के फलस्वरुप 14,500 लोग मारे गए थे जबकि साल 2005 में सड़क दुर्गटनाओं में मारे गए लोगों की तादाद 94,900 थी।

स्रोत: मिनिस्ट्री ऑव रोड ट्रान्सपोर्ट एंड हाईवेज, http://morth.nic.in/
• साल 1970 से लेकर साल 2004 के बीच सड़क दुर्घटनाओं में चार गुणे का इजाफा हुआ है।
• साल 1970 में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 14,500 लोग मारे गए जबकि साल 2004 में 92,618 व्यक्ति यानी मारे गए लोगों की तादाद में कुछ छह गुणी वृद्धि हुई।
• प्रति हजार वाहन संख्या के आधार पर सड़क दुर्गठनाओं को आकलन करें तो साल 1970( 814.42) से साल 2004(59.12) के बीच सड़क दुर्घटनाएं कम हुई हैं।
 • मोटर वाहन द्वारा हुई दुर्घटना से साल साल 2005 में मारे गए लोगों में सर्वाधिक आंध्रप्रदेश(10,534) थे। इसके बाद महाराष्ट्र( 10259) और उत्तरप्रदेश (9,955) का नंबर रहा।
नेशनल कमीशन फॉर इंन्टरप्राइजेज इन द अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर- एनसीईयूएस(2007) के रिपोर्ट ऑन कंडीशन ऑव वर्क एंड प्रोमोशन ऑव लाइवलीहुड इन द अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर के अनुसार- http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf

•  खेती किसानी का नाम असंगठित क्षेत्र में आता है। इस वजह से खेतिहर कामों में होने वाली दुर्घटनाओं या उसके हताहतों की तादाद के बारे में कोई विस्तृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। ट्रैक्टर के पलटने या फिर उससे गिरकर दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं खेतिहर कामों में सर्वाधिक (27.7 फीसदी) हुई हैं, इसके बाद नंबर थ्रेसर (14.6 फीसदी) और स्प्रेयर-डस्टर से हुई दुर्घटनाओं का है। चारा कटाई की मशीन से तकरीबन 7.8 फीसदी दुर्घटनाएं हुई हैं। सर्वाधिक घातक किस्म की दुर्घटनाओं की वजह खेतिहर कामों में बिजली चालित मशीनों का इस्तेमाल है। इससे सालाना 10 हजार किसानों में 22 किसान गंभीर रुप से घायल या फिर मृत्यु का शिकार होते हैं।  
पंजाब में थ्रेसर के इस्तेमाल के कारण होने वाली दुर्घटनाओं पर केंद्रित एक सर्वेक्षण में पाया गया कि थ्रेसर से हुई दुर्घटनाओं में 73 फीसदी मानवीय कारण हुईं, 13 फीसदी मशीनी गड़बड़ियों के कारण और शेष 14 फीसदी फसल या फिर अन्य कारणों से हुईं। एक अखिल भारतीय स्तर के शोध में कहा गया है कि खेती में मशीनीकरण यों तो सबसे ज्यादा उत्तरी भारत में हुआ है लेकिन दुर्घटनाएं सर्वाधिक दक्षिणी भारत के गांवों में होती हैं। खेती के कामों में होने वाली दुर्घटनाओं में ट्रैक्टर, थ्रेसर, स्प्रेयर, गन्ना पेराई की मशीन और चारा कटाई की मशीन से होने वाली दुर्घटनाओं का योग 70 फीसदी है।
• सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के अतिरिक्त किसानों और खेतिहर मजदूरों को खाद, कीटनाशक और खरपतवारनाशक तथा मशीनों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण कुछ विशेष स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है।
• कई अध्ययनों से खुलासा हुआ है कि खेती में मशीनों की बढ़ोतरी और विविध रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से किसानों की सेहत पर गंभीर खतरे की आशंका उत्पन्न हुई है।
 • खेतिहर किसान और मजदूरों को पेशेगत सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधायें अपेक्षाकृत कम हासिल हैं। इसलिए उनकी परेशानी कुछ और बढ़ जाती है।
• स्वास्थ्य सेवा की कम उपलब्धता, कम आमदनी और साथ ही रोजाना का कम पोषण शारीरिक श्रम प्रधान खेती के कामों में लगे किसानों और खेतिहर मजदूरों को गंभीर किस्म के बीमारियों के मुंह में झोंकता है।

असुरक्षित परिवेश

समरी रिपोर्ट ऑन कॉजेज ऑव डेथ इन इंडिया नामक रिपोर्ट(2001-2003) के अनुसार-

•  देश में सर्वाधिक मृत्यु असंतारी रोगों(42 फीसदी) के कारण होती है। संचारी रोग, मातृत्व की स्थितियों या फिर पोषणगत कारण कुल 38 फीसदी मामलों में मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं। घायल होने या फिर अन्य कारणों से कुल 10 फीसदी लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
• संचारी रोगों, अभावग्रस्त मातृत्व या फिर पोषण गत कमियों के कारण देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत ज्यादा लोग(41 फीसदी) मृत्यु का शिकार होते हैं। शहरों में असंचारी रोगों से ज्यादा(56 फीसदी) लोग मृत्यु के शिकार होते हैं गांवों में कम(40 फीसदी)।
 • बीमारियों से होने वाली मृत्यु में लैंगिक आदार पर अंतर देखा जा सकता है। डायरिया से होने वाली मृत्यु में महिला(10 फीसदी) और पुरुष(7 फीसदी) के बीच तर हैं। यही बात टीबी के मामले में है जहां टीबी से मरने वाली महिलाओं की तादाद 5 फीसदी है तो पुरुषों की 7 फीसदी जबकि कार्डियोवास्क्यूलर कारणों से 17 फीसदी महिलाएं मृत्यु का शिकार होती हैं तो पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 20 फीसदी का है।
• महिलाओं और पुरुषों की सर्वाधिक तादाद कार्डियोवास्यक्यूलर कारणों से मृत्यु का शिकार होती है।
 नगालैंड, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मिजोरम, मणिपुर में एचआईवी एडस् का हिस्सा 15-29 आयुवर्ग के लोगों में हुई कुल मृत्यु की तादाद में 2.4 फीसदी का है।
• देश के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में जिन कारणों से लोग मृत्यु का शिकार होते हैं उसमें एक बड़ा कारण मलेरिया है। इन इलाकों में मृत्यु के  शिकार लोगों में क्रमश 6 और 5 फीसदी सिर्फ मलेरिया का ग्रास बनते हैं। देश के दक्षिणी इलाके होने वाली मृत्यु की संख्या के लिहाज से देखें तो पायेंगे कि 5  फीसदी मालों में लोगों ने आत्महत्या की है।
   
 
स्रोत: मिनिस्ट्री ऑव रोड ट्रान्सपोर्ट एंड हाईवेज, http://morth.nic.in/

भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 
• साल 1970 से लेकर साल 2004 के बीच सड़क दुर्घटनाओं में चार गुणे का इजाफा हुआ है।
• साल 1970 में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 14,500 लोग मारे गए जबकि साल 2004 में 92,618 व्यक्ति यानी मारे गए लोगों की तादाद में कुछ छह गुणी वृद्धि हुई।
• प्रति हजार वाहन संख्या के आधार पर सड़क दुर्गठनाओं को आकलन करें तो साल 1970( 814.42) से साल 2004(59.12) के बीच सड़क दुर्घटनाएं कम हुई हैं।
 • मोटर वाहन द्वारा हुई दुर्घटना से साल साल 2005 में मारे गए लोगों में सर्वाधिक आंध्रप्रदेश(10,534) थे। इसके बाद महाराष्ट्र( 10259) और उत्तरप्रदेश (9,955) का नंबर रहा।
नेशनल कमीशन फॉर इंन्टरप्राइजेज इन द अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर- एनसीईयूएस(2007) के रिपोर्ट ऑन कंडीशन ऑव वर्क एंड प्रोमोशन ऑव लाइवलीहुड इन द अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर के अनुसार- http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf

•  खेती किसानी का नाम असंगठित क्षेत्र में आता है। इस वजह से खेतिहर कामों में होने वाली दुर्घटनाओं या उसके हताहतों की तादाद के बारे में कोई विस्तृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। ट्रैक्टर के पलटने या फिर उससे गिरकर दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं खेतिहर कामों में सर्वाधिक (27.7 फीसदी) हुई हैं, इसके बाद नंबर थ्रेसर (14.6 फीसदी) और स्प्रेयर-डस्टर से हुई दुर्घटनाओं का है। चारा कटाई की मशीन से तकरीबन 7.8 फीसदी दुर्घटनाएं हुई हैं। सर्वाधिक घातक किस्म की दुर्घटनाओं की वजह खेतिहर कामों में बिजली चालित मशीनों का इस्तेमाल है। इससे सालाना 10 हजार किसानों में 22 किसान गंभीर रुप से घायल या फिर मृत्यु का शिकार होते हैं।  
पंजाब में थ्रेसर के इस्तेमाल के कारण होने वाली दुर्घटनाओं पर केंद्रित एक सर्वेक्षण में पाया गया कि थ्रेसर से हुई दुर्घटनाओं में 73 फीसदी मानवीय कारण हुईं, 13 फीसदी मशीनी गड़बड़ियों के कारण और शेष 14 फीसदी फसल या फिर अन्य कारणों से हुईं। एक अखिल भारतीय स्तर के शोध में कहा गया है कि खेती में मशीनीकरण यों तो सबसे ज्यादा उत्तरी भारत में हुआ है लेकिन दुर्घटनाएं सर्वाधिक दक्षिणी भारत के गांवों में होती हैं। खेती के कामों में होने वाली दुर्घटनाओं में ट्रैक्टर, थ्रेसर, स्प्रेयर, गन्ना पेराई की मशीन और चारा कटाई की मशीन से होने वाली दुर्घटनाओं का योग 70 फीसदी है।
• सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के अतिरिक्त किसानों और खेतिहर मजदूरों को खाद, कीटनाशक और खरपतवारनाशक तथा मशीनों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण कुछ विशेष स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है।
• कई अध्ययनों से खुलासा हुआ है कि खेती में मशीनों की बढ़ोतरी और विविध रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से किसानों की सेहत पर गंभीर खतरे की आशंका उत्पन्न हुई है।
 • खेतिहर किसान और मजदूरों को पेशेगत सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधायें अपेक्षाकृत कम हासिल हैं। इसलिए उनकी परेशानी कुछ और बढ़ जाती है।
• स्वास्थ्य सेवा की कम उपलब्धता, कम आमदनी और साथ ही रोजाना का कम पोषण शारीरिक श्रम प्रधान खेती के कामों में लगे किसानों और खेतिहर मजदूरों को गंभीर किस्म के बीमारियों के मुंह में झोंकता है।
 
समरी रिपोर्ट ऑन कॉजेज ऑव डेथ इन इंडिया नामक रिपोर्ट(2001-2003) के अनुसार-

•  देश में सर्वाधिक मृत्यु असंतारी रोगों(42 फीसदी) के कारण होती है। संचारी रोग, मातृत्व की स्थितियों या फिर पोषणगत कारण कुल 38 फीसदी मामलों में मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं। घायल होने या फिर अन्य कारणों से कुल 10 फीसदी लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
• संचारी रोगों, अभावग्रस्त मातृत्व या फिर पोषण गत कमियों के कारण देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत ज्यादा लोग(41 फीसदी) मृत्यु का शिकार होते हैं। शहरों में असंचारी रोगों से ज्यादा(56 फीसदी) लोग मृत्यु के शिकार होते हैं गांवों में कम(40 फीसदी)।
 • बीमारियों से होने वाली मृत्यु में लैंगिक आदार पर अंतर देखा जा सकता है। डायरिया से होने वाली मृत्यु में महिला(10 फीसदी) और पुरुष(7 फीसदी) के बीच तर हैं। यही बात टीबी के मामले में है जहां टीबी से मरने वाली महिलाओं की तादाद 5 फीसदी है तो पुरुषों की 7 फीसदी जबकि कार्डियोवास्क्यूलर कारणों से 17 फीसदी महिलाएं मृत्यु का शिकार होती हैं तो पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 20 फीसदी का है।
• महिलाओं और पुरुषों की सर्वाधिक तादाद कार्डियोवास्यक्यूलर कारणों से मृत्यु का शिकार होती है।
 नगालैंड, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मिजोरम, मणिपुर में एचआईवी एडस् का हिस्सा 15-29 आयुवर्ग के लोगों में हुई कुल मृत्यु की तादाद में 2.4 फीसदी का है।
• देश के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में जिन कारणों से लोग मृत्यु का शिकार होते हैं उसमें एक बड़ा कारण मलेरिया है। इन इलाकों में मृत्यु के  शिकार लोगों में क्रमश 6 और 5 फीसदी सिर्फ मलेरिया का ग्रास बनते हैं। देश के दक्षिणी इलाके होने वाली मृत्यु की संख्या के लिहाज से देखें तो पायेंगे कि 5  फीसदी मालों में लोगों ने आत्महत्या की है।
 

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