साल १९९३-९४ में ग्रामीण इलाकों में पुरुष साक्षरता की दर(राष्ट्रीय स्तर) ६३ फीसदी थी जो साल १९९९-२००० में बढ़कर ६८ फीसदी हो गई।*
• साल १९९३-९४ में ग्रामीण इलाकों में महिला साक्षरता की दर(राष्ट्रीय स्तर) ३६ फीसदी थी जो साल १९९९-२००० में बढ़कर ४३ फीसदी हो गई।*
• भारत के ग्रामीण अंचल में अनुसूचित जनजाति के तबके के लोगों में साक्षरता दर सबसे कम(४२ फीसदी) पायी गई है। इसके तुरंत बाद अनुसूचित जाति के परिवार के लोगों में साक्षरता दर की कमी(४७ फीसदी) लक्षित की जा सकती है।*
• शिक्षा के हर मरहले पर पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की मौजूदगी कम है। इससे शिक्षा के मामले में स्त्री-पुरुष के बीच अन्तर का खुलासा होता है। *
• मध्यप्रदेश और राजस्थान में साल १९९३-९४ से १९९९-२००० के बीच साक्षरता दर में सर्वाधिक तेज बढ़ोतरी हुई।*
• सर्वाधिक कम भूमि की मिल्कियत वाले वर्ग में साक्षरता दर ५२ फीसदी है जबकि सर्वाधिक बड़े आकार की भू-मिल्कियत वाले वर्ग में साक्षरता दर ६४ फीसदी है।*
• ग्रामीण भारत में 6-14 साल की उम्र के 96.7% बच्चे स्कूलों में नामांकित हैं। साल 2010 से इस संख्या में खूब तेज बढ़त हुई है।**
• निजी स्कूलों में नामांकन में बढोत्तरी करीब-करीब सभी राज्यों में देखने को मिल रही है। 2012 में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गोवा और मेघालय में 6-14 आयुवर्ग के 40 फीसदी से अधिक बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित थे। केरल और मणिपुर के लिए यह प्रतिशत 60 से ज्यादा था। **
• 2010 में राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा 5 के आधे से अधिक (53.7 फीसदी) विद्यार्थी कक्षा 2 के स्तर का पाढ़ पढ़ पाने में सक्षम थे और ऐसे बच्चों का अनुपात गिरकर साल 2011 में 48.2 फीसदी पहुंचा तो साल 2012 में 46 फीसदी। **
• 2010 में 10 में 7(70.9 फीसदी) कक्षा 5 में नामांकित बच्चे दो अंकों का घटाव(जिसमें हासिल लेना पड़ता हो) कर सकते थे। 2011 में यह अनुपात घटकर 10 में 6(61 फीसदी) और 2012 में गिरकर 10 में से 5(53.5फीसदी) हो गया है। **
• साल १९९३-९४ में ग्रामीण इलाकों में महिला साक्षरता की दर(राष्ट्रीय स्तर) ३६ फीसदी थी जो साल १९९९-२००० में बढ़कर ४३ फीसदी हो गई।*
• भारत के ग्रामीण अंचल में अनुसूचित जनजाति के तबके के लोगों में साक्षरता दर सबसे कम(४२ फीसदी) पायी गई है। इसके तुरंत बाद अनुसूचित जाति के परिवार के लोगों में साक्षरता दर की कमी(४७ फीसदी) लक्षित की जा सकती है।*
• शिक्षा के हर मरहले पर पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की मौजूदगी कम है। इससे शिक्षा के मामले में स्त्री-पुरुष के बीच अन्तर का खुलासा होता है। *
• मध्यप्रदेश और राजस्थान में साल १९९३-९४ से १९९९-२००० के बीच साक्षरता दर में सर्वाधिक तेज बढ़ोतरी हुई।*
• सर्वाधिक कम भूमि की मिल्कियत वाले वर्ग में साक्षरता दर ५२ फीसदी है जबकि सर्वाधिक बड़े आकार की भू-मिल्कियत वाले वर्ग में साक्षरता दर ६४ फीसदी है।*
• ग्रामीण भारत में 6-14 साल की उम्र के 96.7% बच्चे स्कूलों में नामांकित हैं। साल 2010 से इस संख्या में खूब तेज बढ़त हुई है।**
• निजी स्कूलों में नामांकन में बढोत्तरी करीब-करीब सभी राज्यों में देखने को मिल रही है। 2012 में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गोवा और मेघालय में 6-14 आयुवर्ग के 40 फीसदी से अधिक बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित थे। केरल और मणिपुर के लिए यह प्रतिशत 60 से ज्यादा था। **
• 2010 में राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा 5 के आधे से अधिक (53.7 फीसदी) विद्यार्थी कक्षा 2 के स्तर का पाढ़ पढ़ पाने में सक्षम थे और ऐसे बच्चों का अनुपात गिरकर साल 2011 में 48.2 फीसदी पहुंचा तो साल 2012 में 46 फीसदी। **
• 2010 में 10 में 7(70.9 फीसदी) कक्षा 5 में नामांकित बच्चे दो अंकों का घटाव(जिसमें हासिल लेना पड़ता हो) कर सकते थे। 2011 में यह अनुपात घटकर 10 में 6(61 फीसदी) और 2012 में गिरकर 10 में से 5(53.5फीसदी) हो गया है। **
* लिटरेसी एंड लेवलस् ऑव एजुकेशन इन इंडिया १९९९-२००० ५५ वें दौर की गणना एनएसएस जुलाई १९९९-जूल २०००
** एनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन रिपोर्ट(असर) 2012
** एनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन रिपोर्ट(असर) 2012
चाइल्ड राइट एंड यू(क्राई) नामक स्वयंसेवी संगठन ने 13
राज्यों के 71 जिलों में शिक्षा का अधिकार कानून का जायजा लेने के लिए एक अध्ययन
किया है।
अध्ययन में अग्रलिखित राज्यों के जिलों को शामिल किया गया- आंध्रप्रदेश, कर्नाटक,
केरल, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड, ओडिसा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र,
मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश। अध्ययन में दिल्ली, कोलकाता, मुबंई और
हैदराबाद जैसे शहर को भी शामिल किया गया।अध्ययन के लिए आंकड़ों का संकलन
सितंबर-अक्तूबर 2012 की अवधि में किया गया। अध्ययन में शामिल आंकड़ें 747 प्राथमिक
और अपर प्राथमिक विद्यालयों के हैं।
चाइल्ड राइट एंड यू (क्राई) द्वारा प्रस्तुत लर्निंग ब्लॉक नामक अध्ययन(जून 2013) के अनुसार अनुसार
http://www.cry.org/mediacenter/afarcryfromequitablequality
educationforall.html:
शौचालय:
• अध्ययन के अनुसार 11 फीसदी स्कूलों में शौचालय नहीं है और केवल 18 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था है। 34 फीसदी स्कूलों में शौचालय इस्तेमाल के लायक नहीं है। ज्यादातर स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है। तकरीबन 49 फीसदी स्कूलों में स्कूल के कर्मचारी और छात्रों के लिए कॉमन टॉयलेट है।
पेयजल
• 20 फीसदी स्कूलों में स्वच्छ पेयजल की सुविधा नहीं थी।12 फीसदी स्कूल ऐसे मिले जो पेयजल के लिए टैप या हैंडपंप पर आश्रित थे और ये टैप अथवा हैंडपंप स्कूल के आहाते से बाहर थे।
प्रधानाध्यापक के लिए अलग कमरा :
• तकरीबन 59 फीसदी स्कूलों में प्रधानाध्यापक के लिए अलग से कमरा नहीं था।
रसोईघर और मिड डे मील :
• मिड डे मील प्रोग्राम के तहत भोजन पकाने के लिए स्कूल के आहाते के अंदर रसोईघर का रहना अनिवार्य है। लेकिन 18 फीसदी स्कूलों में मिड डे मील स्कूल के अहाते में जिस तरह के रसोईघर में पकाया जाता था उसे या तो समुचित नहीं कहा जा सकता या फिर ऐसे स्कूलों में रसोईघर की ही व्यवस्था नहीं थी।
खेल के मैदान और खेलकूद की सामग्री :
• सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन 63 फीसदी स्कूलों में खेल का मैदान नहीं था और 6द फीसदी स्कूलों में खेल की सामग्री नहीं थी।
स्कूल-परिसर की दीवार :
• तकरीबन 60 फीसदी स्कूल ऐसे थे जिनके आहाते की दीवार या तो टूटी हुई थी, या अभी उसका निर्माण हो रहा था या फिर दीवार बनी ही नहीं थी।
पुस्तकालय :
• अध्ययन में पाया गया कि 74 फीसदी स्कूलों में पुस्तकालय नहीं थे। जिन स्कूलों में पुस्तकालय था उनमें 84 फीसदी स्कूलों में एक्टिविटी बुक्स नहीं थे और 80 फीसदी में कहानी या सामान्य ज्ञान की किताबें नहीं थीं।
आयु के औचित्य से नामांकन :
• अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार केवल 13 फीसदी स्कूलों में आयु-औचित्य से नामांकन दिया जा रहा था। इनमें से ज्यादातर स्कूलों में आयु-औचित्य के आधार पर नामांकन पाने वाले छात्रों के लिए विशेष कोचिंग या प्रशिक्षण की व्यवस्था थी।
• हालांकि शिक्षा के अधिकार कानून में कहा गया है कि नामांकन के समय किसी विद्यार्थी के द्वारा उम्र का प्रमाणपत्र देना जरुरी नहीं है, बावजूद इसके 61 फीसदी स्कूलों में उम्र का प्रमाणपत्र मांगा गया और 47 फीसदी स्कूलों में उम्र का प्रमाणपत्र देना नामांकन के लिए अनिवार्य था।
• शिक्षा के अधिकार कानून के विधानों के विपरीत, 66 फीसदी स्कूलों में नामांकन के समय पीछे प्राप्त शिक्षा का प्रमाणपत्र मांगा गया। उनमें से तकरीबन 46 फीसदी स्कूलों ने नियम के विपरीत छात्र से नामांकन के समय स्थानांतरण प्रमाणपत्र की मांग की।
स्कूल प्रबंधन समिति :
• 9 फीसदी स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति नहीं थी और जिन स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति गठित की गई थी उनमें से 9 फीसदी के पास किसी बैठक की विवरणी नहीं थी। तकरीबन 45 फीसदी प्राथमिक विद्यालय और 38 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों के अभिभावक को स्कूल प्रबंधन समिति का सदस्य नहीं बनाया गया था। तकरीबन 59 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों और 54 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों को स्कूल प्रबंधन समिति का सदस्य नहीं बनाया गया था।
• 44 फीसदी प्राथमिक और 32 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में महिलायें स्कूल प्रबंधन समिति की सदस्य नहीं बनायी गई थीं। तकरीबन 52 फीसदी प्राथमिक विद्यालय और 41 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालय ऐसे थे जहां स्कूल प्रबंधन समिति में वंचित तबके के लोगों को सदस्य नहीं बनाया गया था। 51 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों और 47 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों को स्कूल प्रबंधन समिति का सदस्य नहीं बनाया गया था। सर्वेक्षण में शामिल 55 फीसदी विद्यालयों की प्रबंधन समिति स्कूल के विकास की योजना बनाने में शामिल नहीं थी।
छात्र-शिक्षक अनुपात :
• शिक्षा के अधिकार कानून में लोअर प्राइमरी स्कूल के लिए 30 छात्र पर एक शिक्षक का और अपर प्राइमरी स्कूल में 35 छात्र पर एक शिक्षक का विधान है। अध्ययन में पाया गया कि लोअर प्राइमरी स्कूल में 39 छात्र पर एक शिक्षक है और अपर प्राइमरी स्कूल में 40 छात्र पर एक शिक्षक।
• अध्ययन में पाया गया कि 21 फीसदी प्राइमरी स्कूलों और 17 फीसदी अपर प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक मिड डे मील की तैयारी से जुड़ी किसी ना किसी गतिविधि में संलग्न थे जो कि कानून के खिलाफ है।
शिक्षक :
• 28 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों और 31 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक नहीं थे।
• कुल 35 फीसदी प्राथमिक स्कूल ऐसे थे जहां शिक्षक या तो बारहवीं पास थे अथवा जिनके पास शिक्षण का डिप्लोमा था। तकरीबन 56 फीसदी प्राथमिक स्कूल ऐसे थे जहां शिक्षक स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्राप्त थे।
चाइल्ड राइट एंड यू (क्राई) द्वारा प्रस्तुत लर्निंग ब्लॉक नामक अध्ययन(जून 2013) के अनुसार अनुसार
http://www.cry.org/mediacenter/afarcryfromequitablequality
educationforall.html:
शौचालय:
• अध्ययन के अनुसार 11 फीसदी स्कूलों में शौचालय नहीं है और केवल 18 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था है। 34 फीसदी स्कूलों में शौचालय इस्तेमाल के लायक नहीं है। ज्यादातर स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है। तकरीबन 49 फीसदी स्कूलों में स्कूल के कर्मचारी और छात्रों के लिए कॉमन टॉयलेट है।
पेयजल
• 20 फीसदी स्कूलों में स्वच्छ पेयजल की सुविधा नहीं थी।12 फीसदी स्कूल ऐसे मिले जो पेयजल के लिए टैप या हैंडपंप पर आश्रित थे और ये टैप अथवा हैंडपंप स्कूल के आहाते से बाहर थे।
प्रधानाध्यापक के लिए अलग कमरा :
• तकरीबन 59 फीसदी स्कूलों में प्रधानाध्यापक के लिए अलग से कमरा नहीं था।
रसोईघर और मिड डे मील :
• मिड डे मील प्रोग्राम के तहत भोजन पकाने के लिए स्कूल के आहाते के अंदर रसोईघर का रहना अनिवार्य है। लेकिन 18 फीसदी स्कूलों में मिड डे मील स्कूल के अहाते में जिस तरह के रसोईघर में पकाया जाता था उसे या तो समुचित नहीं कहा जा सकता या फिर ऐसे स्कूलों में रसोईघर की ही व्यवस्था नहीं थी।
खेल के मैदान और खेलकूद की सामग्री :
• सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन 63 फीसदी स्कूलों में खेल का मैदान नहीं था और 6द फीसदी स्कूलों में खेल की सामग्री नहीं थी।
स्कूल-परिसर की दीवार :
• तकरीबन 60 फीसदी स्कूल ऐसे थे जिनके आहाते की दीवार या तो टूटी हुई थी, या अभी उसका निर्माण हो रहा था या फिर दीवार बनी ही नहीं थी।
पुस्तकालय :
• अध्ययन में पाया गया कि 74 फीसदी स्कूलों में पुस्तकालय नहीं थे। जिन स्कूलों में पुस्तकालय था उनमें 84 फीसदी स्कूलों में एक्टिविटी बुक्स नहीं थे और 80 फीसदी में कहानी या सामान्य ज्ञान की किताबें नहीं थीं।
आयु के औचित्य से नामांकन :
• अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार केवल 13 फीसदी स्कूलों में आयु-औचित्य से नामांकन दिया जा रहा था। इनमें से ज्यादातर स्कूलों में आयु-औचित्य के आधार पर नामांकन पाने वाले छात्रों के लिए विशेष कोचिंग या प्रशिक्षण की व्यवस्था थी।
• हालांकि शिक्षा के अधिकार कानून में कहा गया है कि नामांकन के समय किसी विद्यार्थी के द्वारा उम्र का प्रमाणपत्र देना जरुरी नहीं है, बावजूद इसके 61 फीसदी स्कूलों में उम्र का प्रमाणपत्र मांगा गया और 47 फीसदी स्कूलों में उम्र का प्रमाणपत्र देना नामांकन के लिए अनिवार्य था।
• शिक्षा के अधिकार कानून के विधानों के विपरीत, 66 फीसदी स्कूलों में नामांकन के समय पीछे प्राप्त शिक्षा का प्रमाणपत्र मांगा गया। उनमें से तकरीबन 46 फीसदी स्कूलों ने नियम के विपरीत छात्र से नामांकन के समय स्थानांतरण प्रमाणपत्र की मांग की।
स्कूल प्रबंधन समिति :
• 9 फीसदी स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति नहीं थी और जिन स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति गठित की गई थी उनमें से 9 फीसदी के पास किसी बैठक की विवरणी नहीं थी। तकरीबन 45 फीसदी प्राथमिक विद्यालय और 38 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों के अभिभावक को स्कूल प्रबंधन समिति का सदस्य नहीं बनाया गया था। तकरीबन 59 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों और 54 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों को स्कूल प्रबंधन समिति का सदस्य नहीं बनाया गया था।
• 44 फीसदी प्राथमिक और 32 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में महिलायें स्कूल प्रबंधन समिति की सदस्य नहीं बनायी गई थीं। तकरीबन 52 फीसदी प्राथमिक विद्यालय और 41 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालय ऐसे थे जहां स्कूल प्रबंधन समिति में वंचित तबके के लोगों को सदस्य नहीं बनाया गया था। 51 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों और 47 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों को स्कूल प्रबंधन समिति का सदस्य नहीं बनाया गया था। सर्वेक्षण में शामिल 55 फीसदी विद्यालयों की प्रबंधन समिति स्कूल के विकास की योजना बनाने में शामिल नहीं थी।
छात्र-शिक्षक अनुपात :
• शिक्षा के अधिकार कानून में लोअर प्राइमरी स्कूल के लिए 30 छात्र पर एक शिक्षक का और अपर प्राइमरी स्कूल में 35 छात्र पर एक शिक्षक का विधान है। अध्ययन में पाया गया कि लोअर प्राइमरी स्कूल में 39 छात्र पर एक शिक्षक है और अपर प्राइमरी स्कूल में 40 छात्र पर एक शिक्षक।
• अध्ययन में पाया गया कि 21 फीसदी प्राइमरी स्कूलों और 17 फीसदी अपर प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक मिड डे मील की तैयारी से जुड़ी किसी ना किसी गतिविधि में संलग्न थे जो कि कानून के खिलाफ है।
शिक्षक :
• 28 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों और 31 फीसदी अपर प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक नहीं थे।
• कुल 35 फीसदी प्राथमिक स्कूल ऐसे थे जहां शिक्षक या तो बारहवीं पास थे अथवा जिनके पास शिक्षण का डिप्लोमा था। तकरीबन 56 फीसदी प्राथमिक स्कूल ऐसे थे जहां शिक्षक स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्राप्त थे।
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