खास बात
10510.149914.pdf # फैक्टशीट-बीमेन फार्मर्स एंड फूड सिक्यूरिटी, हंगर प्रोजेक्ट, http://www.thp.org/system/files/Factsheet+on+Women+Farmers
+and+Food+Security.pdf
* रिपोर्ट ऑन कंडीशन ऑव वर्क्स् एं प्रोमोशन ऑव लाइवलीहुड इन अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर, http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf
$प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन- अ रिपोर्टकार्ड ऑन एडोलेसेंट(यूनिसेफ), नंबर 10,अप्रैल 2012-http://www.unicef.org/media/files/PFC2012_A_report_card_on
_adolescents.pdf:
इंद्राणी मजूमदार, एन नीता और इंदु अग्निहोत्री द्वारा इकॉनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली(मार्च 9 2013) में प्रस्तुत माईग्रेशन एंड जेंडर इन इंडिया नामक रिपोर्ट के अनुसार (Economic and Political Weekly, March 9, 2013, Vol xlvIiI No 10):
• यह रिपोर्ट सेंटर फॉर विमेन्स डेवलपमेंट स्टडीज द्वारा साल 2009 से 2011 के बीच करवाये गए सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वेक्षण 20 राज्यों में किया गया और जानने की कोशिश की गई कि पलायन के संदर्भ में महिलाओं कामगारों की स्थिति क्या है, उनके काम की दशा क्या है।
पलायन का स्वरुप
• सर्वेक्षण से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार पलायन करने वाली महिलाओं में मात्र 42 फीसदी और पुरुषों में मात्र 36 फीसदी ही ऐसे हैं जिन्होंने लंबी अवधि के लिए पलायन किया। दूसरे शब्दों में कहें तो तकरीबन 58 फीसदी महिला-कामगारों का पलायन छोटी अवधि के लिए हुआ।यह तथ्य राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के तथ्यों से कहीं अलग इशारे करता है जिसमें बताया गया है कि भारत में कामगारों की जो संख्या पलायन करती है उसमें एक तिहाई हिस्सा छोटी अवधि के लिए पलायन करने वालों का होता है।
• पलायन करने वाले महिला कामगारों में 20 फीसदी और पलायन करने वाले पुरुष कामगारों में 23 फीसदी चक्रीय-पलायन से संबद्ध हैं( इनमें लंबी अवधि का पलायन 4 महीने से ज्यादा का और छोटी अवधि का पलायन चार महीने से कम की अवधि का है। इन कामगारों में 9 फीसदी छोटी अवधि के पलायनकर्ता हैं यानि ये लोग अपने कार्य-वर्ष का बड़ा हिस्सा अपने गांवों में ही गुजारते हैं।
पलायन करने वाली महिला-कामगारों का सामाजिक वर्ग
• चक्रीय पलायन करने वाली महिला कामगारों में 59 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 41 फीसदी अनुसूचित जाति की हैं। इसकी तुलना में उच्च वर्ण की महिला-कामगारों की संख्या 18 फीसदी है।.
• अन्य पिछड़ा वर्ग से जुड़ी जिन महिला कामगारों ने पलायन किया है उनमें 39 फीसदी तादाद छोटी अवधि के लिए पलायन करने वालों का है। इस सामाजिक वर्ग में 65 फीसदी तादाद लंबी अवधि के लिए पलायन करने वाली महिला कामगारों का है।
• पलायन के बाद 40 फीसदी महिला कामगार तुलनात्मक रुप से ज्यादा विविध उद्योग या सेवाओं से जुड़ती हैं जबकि पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 51 फीसदी का है।
• ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन करने वाली महिला कामगारों को ज्यादातर रोजगार ईंट-भट्ठे पर हासिल है। इसे पूरे देश भर में देखा जा सकता है। हालांकि खेतिहर कामों के लिए पलायन अब भी प्रमुख है।
• शहरी इलाके में पलायन से संबद्ध महिला कामगारों की 31 फीसदी तादाद या तो बेरोजगार है या फिर पलायन से पहले उनका काम घरेलू कामकाज करना था। शहरी इलाके में पलायन से संबद्ध महिला कामगारों मात्र 13 फीसदी ही ऐसी हैं जिनकी पृष्ठभूमि पलायन से पहले खेतिहर काम करने की है।
कामगारों की पलायन-प्रक्रिया से जुड़े कुछ तथ्य
• सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन 50 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें गरीबी, कर्ज, आमदनी में कमी, स्थानीय स्तर पर रोजगार का अभाव जैसे कारणों से पलायन करना पडा। पलायन करने वाली महिला कामगारों में 62 फीसदी ने काम के लिए अन्य जगह पर जाने का खर्चा अपनी घरेलू बचत की रकम से उठाया। महिला कामगारों का पलायन(43 फीसदी) परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हुआ जबकि पुरुष कामगारों में 43 फीसदी अकेले पलायन करने वाले रहे। बहरहाल यह बात महत्वपूर्ण है कि तकरीबन 23 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने अकेले पलायन किया जबकि 7 फीसदी का कहना था कि उनका पलायन महिला-समूह के रुप में हुआ जबकि 19 फीसदी महिला कामगारों का पलायन ऐसे समूह के साथ हुआ जिसमें बहुसंख्या पुरुषों की थी।.
• काम के लिए शहरी ठिकानों की तरफ कूच करने वाली महिला कामगारों में 72 फीसदी की उम्र 36 साल से कम थी जबकि काम के लिए शहरी ठिकानों पर कूच करने वाले पुरुष कामगारों में 63 फीसदी की उम्र 36 साल से कम थी। ठीक इसी तरह काम के लिए ग्रामीण ठिकानों को कूच करने वाली महिला कामगारों में 61 फीसदी की उम्र 36 साल से कम की थी जबकि काम के लिए ग्रामीण ठिकानों को कूच करने वाले पुरुष कामगारों में 56 फीसदी की उम्र 36 साल से कम की थी। काम के लिए शहरी ठिकानों की तरफ कूच करने वाली महिला कामगारों में 34 फीसदी तादाद ऐसी महिलाओं की थी जिनकी उम्र 15-25 साल के बीच थी जबकि इस श्रेणी में आने वाले पुरुष कामगारों में महज 22 फीसदी ही 15-25 साल के थे। काम के लिए ग्रामीण ठिकानों को कूच करने वाली महिला कामगारों 24 फीसदी तादाद 15-25 साल के बीच के आयु-वर्ग के महिलाओं की थी।.
• सर्वक्षण में शामिल तकरीबन 5 फीसदी महिला कामगारों और 9 फीसदी पुरुष कामगारों ने कहा कि वे काम के लिए जिस जगह पर पलायन करके आये हैं वहां स्थानीय लोग किसी ना किसी तरह उन्हें तकलीफ पहुंचाते हैं। 23 फीसदी महिला कामगारों और 20 फीसदी पुरुष कामगारों का कहना था कि उनके साथ हिंसा का बर्ताव हुआ है और कभी ना कभी उन्हें जबरन काम करने के लिए बाध्य किया गया है।
• पलायन करने वाली महिला कामगारों में 67 फीसदी तादाद ऐसी महिलाओं की थी जिनके साथ उनके कम उम्र बच्चे थे जबकि 26 फीसदी पुरुष कामगारों के साथ उनके कमउम्र बच्चों ने पलायन किया।
पलायन करने वाली महिला कामगारों के काम की दशा
• काम के लिए शहरी ठिकानों पर कूच करने वाली 59 फीसदी महिला कामगार और काम के लिए ग्रामीण ठिकानों की तऱफ कूच करने वाली 78 फीसदी महिला कामगार अकुशल हस्तकर्म मजदूर(अनस्किल्ड मैनुअल लेबर) के रुप में कार्यशील हैं जबकि शहरी क्षेत्र में 18 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में 16 फीसदी महिला कामगार कुशल हस्तकर्म मजदूर के रुप में कार्यशील हैं।ग्रामीण इलाके की पलायित महिला कामगारों में 6 फीसदी क्लर्की, सुपरवाईजरी, प्रबंधकीय या फिर ऐसे कामों से जुड़ी हैं जसमें उच्च स्तर की शिक्षा की जरुरत होती है जबकि शहरी इलाके की पलायित महिला कामगारों में यह तादाद 23 फीसदी है।
• पलायन करने वाली महिला कामगारों में 41 फीसदी पलायन से पहले दिहाड़ी मजदूरी में लगी थीं और पलायन करने के बाद ऐसी महिलाओं के बीच दिहाड़ी करने वालों की तादाद बढ़कर 44 फीसदी हो गई। ठेके पर काम करने वाली महिला कामगारों की तादाद अगर पलायन से पहले 13 फीसदी थी तो पलायन करने के बाद यह तादाद बढ़कर 26 फीसदी हो गई और ठेके पर काम करने वाली महिला कामगारों की कुल संख्या में 70 फीसदी महिलायें दिहाड़ी मजदूर के रुप में कार्यरत हैं।
• पलायन की शिकार शहरी महिला कामगारों में सर्वाधिक तादाद ऐसी महिलाओं का है जो नियमित रोजगार के लिए किसी निजी नियोक्ता से जुड़ी हैं। पलायन से पहले अगर ऐसी महिलाओं का तादाद 21 फीसदी थी तो पलायन के बाद यह तादाद बढ़कर 41 फीसदी हो गई। हालांकि यह तथ्य भी ध्यान में ऱखने लायक है कि निजी कंपनियों में काम करने वाली ऐसी पलायित महिला कामगारों को काम से जुड़ी सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं हैं। इनमें से तकरीबन 85 फीसदी ने कहा कि उन्हें मातृत्व अवकाश नहीं मिलता जबकि 80 फीसदी का कहना था कि उन्हें बीमारी की दशा में छुट्टी लेने पर उसका भुगतान नहीं किया जाता।
• पलायन करने वाले महिला कामगारों में ज्यादातर को भविष्यनिधि सुरक्षा या फिर स्वास्थ्य बीमा भी हासिल नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र की पलायिक महिला कामगारों में यह तादाद 93 फीसदी और शहरी क्षेत्र की पलायित महिला कामगारों के मामले में यह तादाद 84 फीसदी है। डे केयर सेंटर या क्रेच की सुविधा भी नगण्य है। शहरी क्षेत्र की महिला कामगारों के मामलों में महज 4.4 फीसदी को और ग्रामीण क्षेत्र की महिला कामगार के मामले में महज 3.4 फीसदी को यह सुविधा हासिल है।
• काम के लिए ग्रामीण ठिकानों की तरफ कूच करने वाली महिला कामगारों में ज्यादातर यानि 68 फीसदी को प्रतिदिन 8 घंटे या उससे कम समय के लिए काम करना पड़ता है जबकि जिन महीनों में काम ज्यादा होता है उस समय उन्हें 8 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ता है। कुल 41 फीसदी को 10 घंटे और 20 फीसदी महिला कामगारों को 12 घंटे प्रतिदिन काम करना पड़ता है। शहरी क्षेत्र में 8 घंटे या उससे कम अवधि के लिए प्रतिदिन काम करने वाली महिला कमगारों की तादाद 78 फीसदी है लेकिन शहरी क्षेत्र में सघन काम के मौसम में 21 फीसदी महिलाओं को प्रतिदिन 10 घंटे और 6 फीसदी को प्रतिदिन 12 घंटे काम करना पड़ता है।
भुगतान का तरीका
• तकरीबन 20 फीसदी महिला कामगारों को(शहरी और ग्रामीण) दिहाड़ी तौर पर मजदूरी हासिल होती है। शहरी क्षेत्र में यह मजदूरी औसतन 141 रुपये और ग्रामीण क्षेत्र में यह मजदूरी औसतन 136 रुपये है। दिहाड़ी तौर पर मजदूरी पाने वाली महिला कामगारों में ज्यादातर तादाद खेतिहर महिला मजदूरों (47 फीसदी) और ईंट भट्ठा पर काम करने वालों(28 फीसदी) है। शहरी इलाके में दिहाड़ी भुगतान पाने वाली महिला-कामगारों में ज्यादातर(67 फीसदी) निर्माण-कार्य से जुड़ी हैं।
• ग्रामीण इलाकों में पलायन करने वाली महिला कामगारों में 22 फीसदी की औसत मासिक आमदनी 4,778 रुपये की जबकि शहरी क्षेत्र में पलायन करने वाली महिला कामगारों में 64 फीसदी की औसत मासिक आमदनी 6729 रुपये की है।
• पलायित ग्रामीण महिला मजदूर में 32 फीसदी को कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी मिलती है जबकि पलायित शहरी महिला मजदूर में 45 फीसदी को कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी हासिल होती है।पलायित ग्रामीण महिला मजदूरों में महज 5 फीसदी को निर्धारित न्यूतम मजदूरी से ज्यादा हासिल होता है जबकि शहरी क्षेत्र की पलायित महिला मजदूरों में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से तनिक ज्यादा हासिल करने वालों की तादाद 7 फीसदी है। निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम हासिल करने वाली महिलाओं की तादाद काफी ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्र की पलायित महिला मजदूर के मामले में यह संख्या 64% और शहरी क्षेत्र की पलायित महिला मजदूर के मामले में यह संख्या 44 फीसदी है।.
• ग्रामीण इलाके से पलायन करने वाली महिला कामगारों में 13 फीसदी तादाद ऐसी महिलाओं की है जो दिहाड़ी के रुप में रोजाना 100 रुपये से भी कम कमाती हैं जबकि ऐसे पुरुषों की संख्या मात्र 3 फीसदी है।
सुविधायें
• पलायन करने वाली महिला कामगारों में 76 फीसदी महिलाओं कामगारों(शहरी और ग्रामीण) के पास राशन कार्ड नहीं थे। मात्र 16 फीसदी के पास बीपीएल श्रेणी का कार्ड था। आधा फीसदी महिलाओं के पास अंत्योदय कार्ड था जबकि 7 फीसदी के पास एपीएल कार्ड था।सर्वेक्षण से पता चलता है कि 91 फीसदी महिलाओं(पलायन करने वाली कामगार) ने कभी सार्वजनिक आवास-योजना हासिल नहीं की, 79 फीसदी के पास मनरेगा का जॉब कार्ड नहीं था और कुल 96 फीसदी महिलाओं को कभी भी रोजगार की किसी सरकारी योजनाओं में काम नहीं मिला।
- साल 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल श्रमशक्ति की तादाद 40 करोड़ है जिसमें 68.37 फीसद पुरुष और 31.63 फीसद महिला कामगार हैं। @
- तकरीबन 75.38% फीसद महिला श्रमशक्ति खेती में लगी है। @
- एफएओ के आकलन के मुताबिक विश्वस्तर पर होने वाले कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50 फीसद महिलायें उपजाती हैं। #
- साल 1991 की जनगणना के अनुसार 1981 से 1991 तक पुरुष खेतिहरों की संख्या में 11.67 फीसदी की बढोतरी हुई और पुरुष खेतिहरों की संख्या 5करोड़ 60 लाख से बढ़कर 1991 में 7करोड़ 60 लाख 70 हजार हो गई। महिला खेतिहरों की संख्या इसी अवधि में कहीं ज्यादा तेजी(45.23 फीसदी) से बढ़ी और महिला खेतिहरों की संख्या 1 करोड़ 40 लाख 80 से बढ़कर 2 करोड़ 10 लाख 50 हजार हो गई।
- महिला श्रमशक्ति में खेतिहर कामगारों की संख्या बहुत ज्यादा है। साल 2005 में खेतिहर महिला कामगारों की तादाद 72.8 फीसद थी जबकि पुरुषों की 48.9 फीसद। *
- भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है जबकि अमीर देशों में इस उम्र की तकरीबन 90 फीसदी महिलाओं को प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों की सहायता हासिल होती है।$
10510.149914.pdf # फैक्टशीट-बीमेन फार्मर्स एंड फूड सिक्यूरिटी, हंगर प्रोजेक्ट, http://www.thp.org/system/files/Factsheet+on+Women+Farmers
+and+Food+Security.pdf
* रिपोर्ट ऑन कंडीशन ऑव वर्क्स् एं प्रोमोशन ऑव लाइवलीहुड इन अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर, http://nceus.gov.in/Condition_of_workers_sep_2007.pdf
$प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन- अ रिपोर्टकार्ड ऑन एडोलेसेंट(यूनिसेफ), नंबर 10,अप्रैल 2012-http://www.unicef.org/media/files/PFC2012_A_report_card_on
_adolescents.pdf:
इंद्राणी मजूमदार, एन नीता और इंदु अग्निहोत्री द्वारा इकॉनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली(मार्च 9 2013) में प्रस्तुत माईग्रेशन एंड जेंडर इन इंडिया नामक रिपोर्ट के अनुसार (Economic and Political Weekly, March 9, 2013, Vol xlvIiI No 10):
• यह रिपोर्ट सेंटर फॉर विमेन्स डेवलपमेंट स्टडीज द्वारा साल 2009 से 2011 के बीच करवाये गए सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वेक्षण 20 राज्यों में किया गया और जानने की कोशिश की गई कि पलायन के संदर्भ में महिलाओं कामगारों की स्थिति क्या है, उनके काम की दशा क्या है।
पलायन का स्वरुप
• सर्वेक्षण से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार पलायन करने वाली महिलाओं में मात्र 42 फीसदी और पुरुषों में मात्र 36 फीसदी ही ऐसे हैं जिन्होंने लंबी अवधि के लिए पलायन किया। दूसरे शब्दों में कहें तो तकरीबन 58 फीसदी महिला-कामगारों का पलायन छोटी अवधि के लिए हुआ।यह तथ्य राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के तथ्यों से कहीं अलग इशारे करता है जिसमें बताया गया है कि भारत में कामगारों की जो संख्या पलायन करती है उसमें एक तिहाई हिस्सा छोटी अवधि के लिए पलायन करने वालों का होता है।
• पलायन करने वाले महिला कामगारों में 20 फीसदी और पलायन करने वाले पुरुष कामगारों में 23 फीसदी चक्रीय-पलायन से संबद्ध हैं( इनमें लंबी अवधि का पलायन 4 महीने से ज्यादा का और छोटी अवधि का पलायन चार महीने से कम की अवधि का है। इन कामगारों में 9 फीसदी छोटी अवधि के पलायनकर्ता हैं यानि ये लोग अपने कार्य-वर्ष का बड़ा हिस्सा अपने गांवों में ही गुजारते हैं।
पलायन करने वाली महिला-कामगारों का सामाजिक वर्ग
• चक्रीय पलायन करने वाली महिला कामगारों में 59 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 41 फीसदी अनुसूचित जाति की हैं। इसकी तुलना में उच्च वर्ण की महिला-कामगारों की संख्या 18 फीसदी है।.
• अन्य पिछड़ा वर्ग से जुड़ी जिन महिला कामगारों ने पलायन किया है उनमें 39 फीसदी तादाद छोटी अवधि के लिए पलायन करने वालों का है। इस सामाजिक वर्ग में 65 फीसदी तादाद लंबी अवधि के लिए पलायन करने वाली महिला कामगारों का है।
• पलायन के बाद 40 फीसदी महिला कामगार तुलनात्मक रुप से ज्यादा विविध उद्योग या सेवाओं से जुड़ती हैं जबकि पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 51 फीसदी का है।
• ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन करने वाली महिला कामगारों को ज्यादातर रोजगार ईंट-भट्ठे पर हासिल है। इसे पूरे देश भर में देखा जा सकता है। हालांकि खेतिहर कामों के लिए पलायन अब भी प्रमुख है।
• शहरी इलाके में पलायन से संबद्ध महिला कामगारों की 31 फीसदी तादाद या तो बेरोजगार है या फिर पलायन से पहले उनका काम घरेलू कामकाज करना था। शहरी इलाके में पलायन से संबद्ध महिला कामगारों मात्र 13 फीसदी ही ऐसी हैं जिनकी पृष्ठभूमि पलायन से पहले खेतिहर काम करने की है।
कामगारों की पलायन-प्रक्रिया से जुड़े कुछ तथ्य
• सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन 50 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें गरीबी, कर्ज, आमदनी में कमी, स्थानीय स्तर पर रोजगार का अभाव जैसे कारणों से पलायन करना पडा। पलायन करने वाली महिला कामगारों में 62 फीसदी ने काम के लिए अन्य जगह पर जाने का खर्चा अपनी घरेलू बचत की रकम से उठाया। महिला कामगारों का पलायन(43 फीसदी) परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हुआ जबकि पुरुष कामगारों में 43 फीसदी अकेले पलायन करने वाले रहे। बहरहाल यह बात महत्वपूर्ण है कि तकरीबन 23 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने अकेले पलायन किया जबकि 7 फीसदी का कहना था कि उनका पलायन महिला-समूह के रुप में हुआ जबकि 19 फीसदी महिला कामगारों का पलायन ऐसे समूह के साथ हुआ जिसमें बहुसंख्या पुरुषों की थी।.
• काम के लिए शहरी ठिकानों की तरफ कूच करने वाली महिला कामगारों में 72 फीसदी की उम्र 36 साल से कम थी जबकि काम के लिए शहरी ठिकानों पर कूच करने वाले पुरुष कामगारों में 63 फीसदी की उम्र 36 साल से कम थी। ठीक इसी तरह काम के लिए ग्रामीण ठिकानों को कूच करने वाली महिला कामगारों में 61 फीसदी की उम्र 36 साल से कम की थी जबकि काम के लिए ग्रामीण ठिकानों को कूच करने वाले पुरुष कामगारों में 56 फीसदी की उम्र 36 साल से कम की थी। काम के लिए शहरी ठिकानों की तरफ कूच करने वाली महिला कामगारों में 34 फीसदी तादाद ऐसी महिलाओं की थी जिनकी उम्र 15-25 साल के बीच थी जबकि इस श्रेणी में आने वाले पुरुष कामगारों में महज 22 फीसदी ही 15-25 साल के थे। काम के लिए ग्रामीण ठिकानों को कूच करने वाली महिला कामगारों 24 फीसदी तादाद 15-25 साल के बीच के आयु-वर्ग के महिलाओं की थी।.
• सर्वक्षण में शामिल तकरीबन 5 फीसदी महिला कामगारों और 9 फीसदी पुरुष कामगारों ने कहा कि वे काम के लिए जिस जगह पर पलायन करके आये हैं वहां स्थानीय लोग किसी ना किसी तरह उन्हें तकलीफ पहुंचाते हैं। 23 फीसदी महिला कामगारों और 20 फीसदी पुरुष कामगारों का कहना था कि उनके साथ हिंसा का बर्ताव हुआ है और कभी ना कभी उन्हें जबरन काम करने के लिए बाध्य किया गया है।
• पलायन करने वाली महिला कामगारों में 67 फीसदी तादाद ऐसी महिलाओं की थी जिनके साथ उनके कम उम्र बच्चे थे जबकि 26 फीसदी पुरुष कामगारों के साथ उनके कमउम्र बच्चों ने पलायन किया।
पलायन करने वाली महिला कामगारों के काम की दशा
• काम के लिए शहरी ठिकानों पर कूच करने वाली 59 फीसदी महिला कामगार और काम के लिए ग्रामीण ठिकानों की तऱफ कूच करने वाली 78 फीसदी महिला कामगार अकुशल हस्तकर्म मजदूर(अनस्किल्ड मैनुअल लेबर) के रुप में कार्यशील हैं जबकि शहरी क्षेत्र में 18 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में 16 फीसदी महिला कामगार कुशल हस्तकर्म मजदूर के रुप में कार्यशील हैं।ग्रामीण इलाके की पलायित महिला कामगारों में 6 फीसदी क्लर्की, सुपरवाईजरी, प्रबंधकीय या फिर ऐसे कामों से जुड़ी हैं जसमें उच्च स्तर की शिक्षा की जरुरत होती है जबकि शहरी इलाके की पलायित महिला कामगारों में यह तादाद 23 फीसदी है।
• पलायन करने वाली महिला कामगारों में 41 फीसदी पलायन से पहले दिहाड़ी मजदूरी में लगी थीं और पलायन करने के बाद ऐसी महिलाओं के बीच दिहाड़ी करने वालों की तादाद बढ़कर 44 फीसदी हो गई। ठेके पर काम करने वाली महिला कामगारों की तादाद अगर पलायन से पहले 13 फीसदी थी तो पलायन करने के बाद यह तादाद बढ़कर 26 फीसदी हो गई और ठेके पर काम करने वाली महिला कामगारों की कुल संख्या में 70 फीसदी महिलायें दिहाड़ी मजदूर के रुप में कार्यरत हैं।
• पलायन की शिकार शहरी महिला कामगारों में सर्वाधिक तादाद ऐसी महिलाओं का है जो नियमित रोजगार के लिए किसी निजी नियोक्ता से जुड़ी हैं। पलायन से पहले अगर ऐसी महिलाओं का तादाद 21 फीसदी थी तो पलायन के बाद यह तादाद बढ़कर 41 फीसदी हो गई। हालांकि यह तथ्य भी ध्यान में ऱखने लायक है कि निजी कंपनियों में काम करने वाली ऐसी पलायित महिला कामगारों को काम से जुड़ी सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं हैं। इनमें से तकरीबन 85 फीसदी ने कहा कि उन्हें मातृत्व अवकाश नहीं मिलता जबकि 80 फीसदी का कहना था कि उन्हें बीमारी की दशा में छुट्टी लेने पर उसका भुगतान नहीं किया जाता।
• पलायन करने वाले महिला कामगारों में ज्यादातर को भविष्यनिधि सुरक्षा या फिर स्वास्थ्य बीमा भी हासिल नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र की पलायिक महिला कामगारों में यह तादाद 93 फीसदी और शहरी क्षेत्र की पलायित महिला कामगारों के मामले में यह तादाद 84 फीसदी है। डे केयर सेंटर या क्रेच की सुविधा भी नगण्य है। शहरी क्षेत्र की महिला कामगारों के मामलों में महज 4.4 फीसदी को और ग्रामीण क्षेत्र की महिला कामगार के मामले में महज 3.4 फीसदी को यह सुविधा हासिल है।
• काम के लिए ग्रामीण ठिकानों की तरफ कूच करने वाली महिला कामगारों में ज्यादातर यानि 68 फीसदी को प्रतिदिन 8 घंटे या उससे कम समय के लिए काम करना पड़ता है जबकि जिन महीनों में काम ज्यादा होता है उस समय उन्हें 8 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ता है। कुल 41 फीसदी को 10 घंटे और 20 फीसदी महिला कामगारों को 12 घंटे प्रतिदिन काम करना पड़ता है। शहरी क्षेत्र में 8 घंटे या उससे कम अवधि के लिए प्रतिदिन काम करने वाली महिला कमगारों की तादाद 78 फीसदी है लेकिन शहरी क्षेत्र में सघन काम के मौसम में 21 फीसदी महिलाओं को प्रतिदिन 10 घंटे और 6 फीसदी को प्रतिदिन 12 घंटे काम करना पड़ता है।
भुगतान का तरीका
• तकरीबन 20 फीसदी महिला कामगारों को(शहरी और ग्रामीण) दिहाड़ी तौर पर मजदूरी हासिल होती है। शहरी क्षेत्र में यह मजदूरी औसतन 141 रुपये और ग्रामीण क्षेत्र में यह मजदूरी औसतन 136 रुपये है। दिहाड़ी तौर पर मजदूरी पाने वाली महिला कामगारों में ज्यादातर तादाद खेतिहर महिला मजदूरों (47 फीसदी) और ईंट भट्ठा पर काम करने वालों(28 फीसदी) है। शहरी इलाके में दिहाड़ी भुगतान पाने वाली महिला-कामगारों में ज्यादातर(67 फीसदी) निर्माण-कार्य से जुड़ी हैं।
• ग्रामीण इलाकों में पलायन करने वाली महिला कामगारों में 22 फीसदी की औसत मासिक आमदनी 4,778 रुपये की जबकि शहरी क्षेत्र में पलायन करने वाली महिला कामगारों में 64 फीसदी की औसत मासिक आमदनी 6729 रुपये की है।
• पलायित ग्रामीण महिला मजदूर में 32 फीसदी को कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी मिलती है जबकि पलायित शहरी महिला मजदूर में 45 फीसदी को कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी हासिल होती है।पलायित ग्रामीण महिला मजदूरों में महज 5 फीसदी को निर्धारित न्यूतम मजदूरी से ज्यादा हासिल होता है जबकि शहरी क्षेत्र की पलायित महिला मजदूरों में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से तनिक ज्यादा हासिल करने वालों की तादाद 7 फीसदी है। निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम हासिल करने वाली महिलाओं की तादाद काफी ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्र की पलायित महिला मजदूर के मामले में यह संख्या 64% और शहरी क्षेत्र की पलायित महिला मजदूर के मामले में यह संख्या 44 फीसदी है।.
• ग्रामीण इलाके से पलायन करने वाली महिला कामगारों में 13 फीसदी तादाद ऐसी महिलाओं की है जो दिहाड़ी के रुप में रोजाना 100 रुपये से भी कम कमाती हैं जबकि ऐसे पुरुषों की संख्या मात्र 3 फीसदी है।
सुविधायें
• पलायन करने वाली महिला कामगारों में 76 फीसदी महिलाओं कामगारों(शहरी और ग्रामीण) के पास राशन कार्ड नहीं थे। मात्र 16 फीसदी के पास बीपीएल श्रेणी का कार्ड था। आधा फीसदी महिलाओं के पास अंत्योदय कार्ड था जबकि 7 फीसदी के पास एपीएल कार्ड था।सर्वेक्षण से पता चलता है कि 91 फीसदी महिलाओं(पलायन करने वाली कामगार) ने कभी सार्वजनिक आवास-योजना हासिल नहीं की, 79 फीसदी के पास मनरेगा का जॉब कार्ड नहीं था और कुल 96 फीसदी महिलाओं को कभी भी रोजगार की किसी सरकारी योजनाओं में काम नहीं मिला।
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