गुरुवार, 12 सितंबर 2013

किस मोड़ पर खड़ा है जिन्ना के ख़्वाबों का पाकिस्तान?

किस मोड़ पर खड़ा है जिन्ना के ख़्वाबों का पाकिस्तान?

 गुरुवार, 12 सितंबर, 2013 को 09:19 IST तक के समाचार

मोहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गाँधी
पाकिस्तानी अपने राष्ट्र निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के 65 साल बाद भी उनके नज़रिए और खोए हुए भाषणों को खोज रहे हैं.
पाकिस्तानियों को इस बात पर यक़ीन करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है कि जिन्ना ने पाकिस्तान का निर्माण इस्लाम के नाम पर एक धार्मिक देश के रूप में किया था. हालाँकि कई लोग इससे असहमत हैं और मानते हैं कि जिन्ना एक मुसलमानों की बहुसंख्यक आबादी वाले धर्मनिरपेक्ष देश का निर्माण करना चाहते थे.
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तालिबानी चरमपंथ और इस्लामी अतिवाद के इस दौर में पिछले कुछ सालों से जिन्ना के इन दोनों नज़रियों पर बहस तेज़ हुई है. इस बहस के केंद्र बिंदु में 1947 में आज़ादी से कुछ दिन पहले दिए गए जिन्ना के भाषण भी हैं. इन भाषणों के प्रतिलेख पाकिस्तान में मौज़ूद हैं लेकिन स्पष्ट आवाज़ में इनकी रिकॉर्डिंग वहाँ उपलब्ध नहीं हैं.
वैसे तो पाकिस्तान की सरकारी रेडियो सर्विस 'रेडियो पाकिस्तान' के पास टूटी हुई आवाज़ में इन भाषणों की कुछ पुरानी रिकॉर्डिंग हैं. इनमें पाकिस्तान के गठन से तीन दिन पहले 11 अगस्त को कराची में संविधान सभा के समक्ष दिया गया जिन्ना का महत्वपूर्ण भाषण नहीं है.
पाकिस्तान के उदारवादियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण भाषण था जिसमें जिन्ना ने बेहद स्पष्ट शब्दों में अपने सपनों के देश के बारे में जिक्र करते हुए कहा था कि जो देश वो बनाएंगे वह एक सहिष्णु समावेशी और धर्मनिरपेक्ष देश होगा.
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इस भाषण में जिन्ना ने कहा था, "आप स्वतंत्र हैं. पाकिस्तान में आप अपने मंदिरों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं, आप अपनी मस्जिदों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं या आप अपने किसी भी अन्य प्रकार के पूजास्थल में जाने के लिए स्वतंत्र हैं. आप चाहे जिस भी धर्म, जाति या पंथ के हों, देश को इस बात से कोई मतलब नहीं होगा."

छेड़छाड़

मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड माउंटबेटन और श्रीमति माउंटबेटन
दस्तावेज़ बताते हैं कि उस वक़्त जिन्ना के करीब रहने वाले कट्टरपंथी धार्मिक नेताओं को उनका यह भाषण अच्छा नहीं लगा था और उन्होंने इसे अगले दिन के अख़बारों से लगभग गायब करा दिया था. पाकिस्तान की अगली सैन्य सरकारों पर तो जिन्ना के इन भाषणों को नज़रअंदाज़ करने और अधिकारिक दस्तावेज़ों से हटवाने के प्रयास करने तक के आरोप लगे.
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पाकिस्तान के कुछ नेता जिन्ना के उस भाषण से इतना असहज क्यों थे? बहुत से लोग मानते हैं कि ये उनकी भारत विरोधी और हिंदू विरोधी विचारधारा के ज़रिए सत्ताकेंद्र बनाने की नीतियों के ख़िलाफ़ थी.
1970 और 1980 के दशक में जब पाकिस्तान का इस्लामीकरण हो रहा था और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर नए कठिन क़ानून लागू किए जा रहे थे तब उस भाषण के विवादित हिस्सों को आम लोगों की पहुँच से दूर ही कर दिया गया. ये जिन्ना की छवि बदले जाने का दौर था.
उन्हें एक पश्चिमी सोच वाले धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के बजाए एक इस्लामवादी नेता के रूप में स्थापित किया जा रहा था और इसी बीच जिन्ना के उस ऐतिहासिक भाषण की संभावित ऑडियो रिकॉर्डिंग गायब हो गई. जिन्ना के पाकिस्तान के विचार को और भी अव्यवस्थित कर दिया गया.
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देश के कट्टरपंथी सवाल करने लगे कि क्या क़ायद-ए-आज़म ने वे शब्द कहे भी थे या नहीं या कहे थे तो क्या उस वक़्त वे अपने होशो-हवास में थे और अगर कहे थे तो क्या उनके शब्दों का कोई और अर्थ भी हो सकता है. रेडियो पाकिस्तान के पूर्व महानिदेशक मुर्तज़ा सोलांगी इसे जानबूझकर इतिहास मिटाने का आपराधिक मामला मानते हैं.
हालाँकि वे पूरे विश्वास के साथ ये दावा नहीं करते हैं कि पाकिस्तान के पास उस ऐतिहासिक भाषण की ऑडियो रिकॉर्डिंग कभी थी भी या नहीं. हालाँकि इस भाषण की कॉपी हासिल करने के अपने पिछले कुछ सालों के प्रयासों के बाद वे ये दावा ज़रूर करते हैं कि यदि ये रिकॉर्डिंग कभी थी तो इसे पाकिस्तान ने जानबूझकर नष्ट कर दिया होगा.

भारत में आरटीआई

मोहम्मद अली जिन्ना
इस ऑडियो की खोजबीन में सोलांगी ने लंदन में बीबीसी से संपर्क किया. उन्हें बताया गया कि बीबीसी के अभिलेखों में जिन्ना के भाषणों के टेप नहीं है. फिर उन्होंने भारत में आल इंडिया रेडियो से संपर्क किया. आल इंडिया रेडियो ने उन्हें बताया कि उनके पास भाषण का ऑडियो है.
लेकिन इन भाषणों को उपलब्ध कराने में भारत ने दो साल का वक़्त और लिया. आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल के प्रयासों से एआईआर को इन्हें सार्वजनिक करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसलिए जब हाल ही में आल इंडिया रेडियो ने पाकिस्तान रेडियो को जिन्ना के 1947 में दिए गए दो भाषणों की असली रिकॉर्डिंग दी तब इसे एक कामयाबी के रूप में देखा गया.
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हालाँकि सोलांगी को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि उन दो भाषणों में 11 अगस्त 1947 को दिया गया भाषण नहीं था. जो रिकॉर्डिंग भारत ने पाकिस्तान को उपलब्ध करवाईं वे पहले से ही पाकिस्तान रेडियो के आर्काइव में थी. सोलांगी कहते हैं कि बस अब ये रिकॉर्डिंग बेहतर आवाज़ में हैं.
जो दो भाषण दिए गए हैं उनमें वर्तमान भारत की सीमाओं में दिया गया जिन्ना का अंतिम भाषण भी शामिल है. इस जिन्ना ने तीन जून 1947 को दिल्ली में दिया था. दूसरी रिकॉर्डिंग 14 अगस्त 1947 को संविधान सभा के समक्ष दिए गए जिन्ना के प्रचलित भाषण की है. इस भाषण को आल इंडिया रेडियो को साउंड इंजीनियरों ने रिकॉर्ड किया था.
उन्हें इस भाषण को रिकॉर्ड करने के लिए दिल्ली से कराची बुलाया गया था क्योंकि तब जन्म ले रहे पाकिस्तान के पास ऐसे भाषण को रिकॉर्ड करने के लिए रेडियो स्टेशन उपलब्ध नहीं था. माना जाता रहा है कि आल इंडिया रेडियो के इंजीनियरों ने कराची में दिए गए जिन्ना के दोनों भाषणों को रिकॉर्ड किया था. इनमें 11 अगस्त को दिया गया वह ऐतिहासिक भाषण भी शामिल था.
सोलांगी कहते हैं, "उन्होंने पहले मुझसे कहा था कि उनके पास 11 अगस्त के भाषण की रिकॉर्डिंग भी है लेकिन अब वे इस बारे में गोलमोल जबाव दे रहे हैं. बाकी लोगों से उन्होंने कहा कि ये उनके पास नहीं है. इसलिए अभी हम पुख़्ता तौर पर ये नहीं कह सकते कि ये रिकॉर्डिंग उनके पास है या नहीं."

इस्लामी पहचान

कराची में जिन्ना की मजार
कुछ पाकिस्तानी शक करते हैं कि इसका संबंध भारत में प्रचलित बँटवारे और उसके दौरान हई हिंदू-मुस्लिम हिंसा के लिए जिन्ना को ज़िम्मेदार बताने वाली धारणा से भी हो सकता है. जिन्ना को भारत का विभाजन कराने वाला व्यक्ति बताया जाता रहा है.
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हालाँकि यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि यदि भाषण की रिकॉर्डिंग है तो फिर जब भारत के अधिकारियों ने बाकी दो भाषण उपलब्ध करवा दिए तो फिर 11 अगस्त की रिकॉर्डिंग उपलब्ध क्यों नहीं करवाई. इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक 'जिन्ना इंस्टीट्यूट' के निदेशक रज़ा रूमी मानते हैं कि भारतीय अधिकारी जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं.
वे कहते हैं, "भारतीय अफ़सरशाही में मौज़ूद लालफीताशाही के मद्देनज़र जिन्ना के रिकॉर्डिंग माँगने की गुज़ारिश का काग़ज़ों में खो जाना कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी. जिन्ना के 11 अगस्त के भाषण की रिकॉर्डिंग भारत और पाकिस्तान के इतिहास के छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकती हैं."
यदि ये रिकॉर्डिंग कभी मिल भी गईं तो क्या ये पाकिस्तान में हाशिये पर रह रहे उदारवादी लोगों को कट्टरपंथियों और धार्मिक अतिवादियों से बहस जीतकर पाकिस्तान को गहरी इस्लामी पहचान से मुक़्त करने में मदद कर पाएंगी?
सोलांगी कहते हैं, "यह धार्मिक कट्टरपंथियों को इस बात पर राज़ी करने के लिए नहीं है कि जिन्ना एक अलग तरीके का पाकिस्तान चाहते थे बल्कि ये खंडित इतिहास को सुधारकर लोगों को यह सोचने देने के लिए है कि वे किस तरह का पाकिस्तान चाहते हैं."

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