हैदराबाद: दसियों हज़ार क़त्ल लेकिन ज़िक्र तक नहीं
बुधवार, 25 सितंबर, 2013 को 07:00 IST तक के समाचार
1947 में जब भारत आज़ाद हुआ था,
उस समय हुई सांप्रदायिक हिंसा में लगभग पांच लाख लोगों की मौत हुई थी.
ज़्यादातर मौतें तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान से सटी सीमा पर हुई. लेकिन
इसके एक ही साल बाद, हैदराबाद में भी 'क़त्लेआम' हुआ, जिस पर कभी ज़्यादा
बातचीत नहीं हुई.
वर्ष 1948 में सितंबर और अक्तूबर के महीनों में, ब्रितानी राज ख़त्म होने के कुछ ही समय बाद, हैदराबाद में हज़ारों लोग मारे गए थे.इस घटना को क़रीब से देखने वाले और कई विश्लेषकों का मानना है कि भारत की अलग-अलग सरकारें इसे छुपाती-दबाती रही.
क़त्लेआम उस वक़्त के हैदराबाद राज्य में हुआ था. तत्कालीन हैदराबाद, उन पांच सौ राजशाहियों में से एक था, जिन्हें ब्रितानी राज में स्वायत्ता दी गई थी.
आज़ादी के बाद क्या हुआ
भारत को 1947 में जब आज़ादी मिली, तब लगभग सभी रजवाड़े भारत का हिस्सा बनने को राज़ी हो गए. लेकिन हैदराबाद के निज़ाम ने अपने राज्य की स्वायत्ता बरक़रार रखने पर ज़ोर दिया.ये बात भारत के हिंदू बहुल नेताओं को पसंद नहीं आई.
भारत सरकार और हैदराबाद के बीच बातचीत और फिर तकरार के बाद सरकार ने अपना संयम खो दिया.
देश के बिल्कुल मध्य में एक स्वतंत्र मुसलमान राज्य स्थापित होने देना उस समय के हिंदू बहुल भारत की सरकार के लिए मुसीबत बन सकती थी.
इसी बात ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को वो मौक़ा दिया, जिसकी उनको तलाश थी. साल 1948 में भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला कर दिया.
ख़ूनख़राबा
कुछ ही दिनों में बिना किसी ज़्यादा ख़ूनख़राबे के निज़ाम की फ़ौज हार गई, लेकिन इस कार्रवाई को “पुलिस कार्रवाई” कहा गया.इसके कुछ ही दिन बाद दिल्ली में ख़बरें मिलने लगीं कि सरकार की कार्रवाई के बाद इलाक़े में लूटपाट, मुसलमानों की हत्या और बलात्कार होने लगे.
इस घटना की तह तक पहुंचने के लिए नेहरू ने एक जांच आयोग गठित किया जिसमें कई धर्मों के सदस्य शामिल थे.
हैदराबाद गई इस टीम का नेतृत्व एक हिंदू, पंडित सुंदरलाल कर रहे थे. लेकिन वो रिपोर्ट जिस पर उनका नाम छपा था वो कभी सबके सामने आ ही नहीं पाई.
सुंदरलाल की टीम दर्जनों गावों में गई, वहां उन्होंने काफ़ी सावधानी से उन मुसलमानों का वृतांत दर्ज किया जो हिंसा के बाद जीवित बचे थे. इनमें लिखा गया “हमारे पास पक्के सुबूत थे कि लूट और अन्य अपराध की कई घटनाओं में भारतीय सेना और स्थानीय पुलिस के जवान शामिल थे. दौरे के दौरान हमें पता चला कि कई जगहों पर सैनिकों ने हिंदुओं को मुसलमानों के घर और दुकान जलाने के लिए उकसाया.”
'सेना का हमला'
जाँच टीम ने कहा कि भारतीय सेना मुसलमान ग्रामीणों से हथियार ले लेती थी, लेकिन हिंदुओं के पास हथियार छोड़ दिए जाते थे.रिपोर्ट के अनुसार, ख़ून-ख़राबे की कई घटनाओं में सेना के जवान सक्रिय रूप से शामिल थे – “सशस्त्र सुरक्षाबलों के जवानों ने कई गांवों और शहरों के युवा मुसलमान पुरूषों को घरों से बाहर निकालकर मार दिया.”
कहा गया कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा, हिंदुओं पर वर्षों से हो रही रज़ाकारों की तरफ़ से की गई हिंसा और अत्याचार का बदला है.
सुंदरलाल की रिपोर्ट के साथ दिए गए ख़ुफ़िया चिट्ठों में जांचकर्ताओं ने हिंदुओं के कथित बदले का ज़िक्र किया – “कई जगहों पर हमें ऐसे कुएं दिखाए गए जिनमें लाशें पड़ी सड़ रही थीं. ऐसे एक कुएं में हमने 11 लाशें गिनी, इनमें एक महिला की लाश शामिल थी जिनके सीने से एक मृत बच्चा लिपटा हुआ था.”
सुंदरलाल रिपोर्ट
जांच दल के ख़ुफ़िया चिठ्ठों के अनुसार, “हमें गड्ढों में मानव शरीर के अंग दिखे. कई जगहों पर जले हुए शव दिखे जिनमें अब केवल हड्डियां बची थी.”सुंदरलाल रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक़ हिंसा में क़रीब 27,000 से 40,000 लोगों की मौत हुई.
हालांकि ये हो सकता है की आज़ादी के बाद के दौर में, तत्कालीन हैदराबाद राज्य में क्या हुआ ये जानकारी सार्वजनिक होने से मुसलमान, हिंदुओं के ख़िलाफ़ भड़क जाते.
ये भी अभी साफ़ नहीं है कि इस घटना के कई दशकों के बाद भी इस बात का ज़िक्र स्कूल की किताबों में क्यो नहीं है. आज भी सिर्फ़ कुछ ही भारतीयों को पता है कि असल में क्या हुआ था.
'रिपोर्ट सार्वजनिक हो'
सुंदरलाल रिपोर्ट के बारे में आज भी कुछ ही लोग जानते है, लेकिन अब इसे नई दिल्ली के क्लिक करें नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी में रखा गया है.भारतीय मीडिया में आई रिपोर्टों में हाल ही में मांग की गई कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराया जाए, ताकि सारा देश सच्चाई जान सके.
हैदराबाद में उस समय रहे, अस्सी साल के बरगुला नरसिंह राव बताते हैं, “इस देश में अपनी तमाम दिक्क़तों और टकरावों के साथ रहते हुए मैं इन घटनाओं को कोई ख़ास तवज्जो नहीं दूंगा. क्या होता है, उसकी प्रतिक्रिया और उसकी भी प्रतिक्रिया, सब चलती रहेंगी, लेकिन अध्ययन के तौर पर, प्रसारण के तौर पर, इन चीज़ों को सामने आने दीजिए. मुझे इससे कोई दिक्क़त नहीं है.”
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