जो चीजें कुछ दशक पूर्व तक सिर्फ हमारी कल्पना में होती थीं, अब वे
हकीकत बनती जा रही हैं। तकनीकी तरक्की के चलते इंटेलीजेंट मशीनें सुपर
इंटेलीजेंट में बदल रही हैं। अब तक मनुष्य द्वारा नियंत्रित होने वाली
मशीनें धीरे-धीरे पूर्ण स्वचालन की ओर बढ़ रही हैं जहां वे अपने निर्माताओं
ने भी ज्यादा तेज, स्मार्ट व शक्तिशाली हैं और खुद फैसले ले सकती हैं।
मशीनों के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक और
विचारक इस पर चिंता जाहिर कर रहे हैं कि खतरा बनने से पहले ही कैसे इन पर
रोक लगे
दिनेश रावत तब ‘रोबोट’ शब्द अस्तित्व में भी नहीं आया था और यह बात किसी की कल्पना में भी नहीं थी कि भविष्य में ये न सिर्फ मनुष्यों के लिए बेहद मददगार साबित होंगे बल्कि एक दिन उनके लिए खतरा भी बन जाएंगे। इसकी पहली झलक हमें एम्ब्रोज बायर्स की 1909 में लिखी कहानी ‘मोक्संस मास्टर्स’ में मिलती है। मोक्सन एक आविष्कारक है और एक ऐसे यांत्रिक मानव की रचना करता है जो उसके लिए कई तरह के काम कर सकता है, यहां तक कि उसके साथ शतरंज भी खेल सकता है। एक दिन मोक्सन अपने उस मशीनी मानव के साथ शतरंज खेलता है और खेलते- खेलते मशीनी मानव को हरा देता है। अपनी हार से मशीनी मानव इतना क्रुद्ध होता है कि मोक्सन को जान से मार डालता है। यह कहानी थी। हकीकत में इसकी चरम परिणति 90 के दशक में तब सामने आयी जब आईबीएम के डीप ब्लू कंप्यूटर यानी कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफिशल इंटेलीजेंस) ने शतरंत के विश्व चैंपियन गैरी कास्पारोव को हरा कर सनसनी मचा दी थी। यों तो रोबोटिक्स का मूल ‘ऑटोमेटा’ (स्वचल प्रारूप) का आविष्कार प्राचीन सभ्यताओं द्वारा किया गया था लेकिन शब्द के रूप में इसका पहला प्रयोग 1920 में चेक लेखक कारेल चेपेक के नाटक ‘आरयूआर’ (रोसमंस यूनिवर्सल रोबोट) के साथ हुआ।
सहायक के रूप में रोबोट पिछले 20-25 वर्षो में रोबोट के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास हुआ। घर में बुजुगरे, असहायों की देखभाल से लेकर उद्योग, सीमा की निगरानी और अंतरिक्ष की पड़ताल तक में उनकी मदद ली जा रही है। आज रोबोट्स से वह सब काम भी लिया जा रहा है, जिन्हें करने में मनुष्य असमर्थ है या जहां जान का जोखिम है। उदाहरण के लिए- वे वहां पहुंच सकते हैं जहां मनुष्य नहीं। बिना थके लगातार काम कर सकते हैं, उन्हें न भोजन करने के लिए रुकना होता है और न सांस लेने के लिए सुस्ताना पड़ता है। उन्हें न आग से भय है न पानी से, न आंधी से और न तूफान से। जिस तरह से सूक्ष्म रोबोट् स पर अनुसंधान और विकास हो रहा है, उसे देखते हुए विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आने वाले वर्षो में वे हमारे शरीर के भीतर पहुंचकर सेहत की पड़ताल ही नहीं, सर्जरी तक करेंगे। लेकिन रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धि में हो रही प्रगति क्या मनुष्य जाति के लिए खतरा बन सकती है? ब्रिटेन के ‘सुपरब्रेन’ समझे जाने वाले भौतिकविद स्टीफन हॉकिंग, एस्ट्रोनॉर्मर रॉयल मार्टिन रीज समेत अनेक वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और विचारकों का मानना है कि मानव अस्तित्व के लिए अब असली खतरा प्रकृति से नहीं बल्कि तकनीक से है। उनका कहना है कि हम समय के उस बिंदु पर पहुंच रहे हैं जिसे ‘सिंगुलरिटी’ कहा जाता है और जहां स्मार्ट मशीनें उनका निर्माण करने वालों से ज्यादा स्मार्ट, शक्तिशाली और तेज हो जाती हैं । फिर इसके बाद सचेतन हो जाती हैं। इस तरह के खतरों की पहचान और उनसे मानवता को बचाने व सावधान करने के लिए बाकायदा ब्रिटेन में एक सोसाइटी का गठन किया गया है। इंटेलीजेंट टेक्नोलॉजी : विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में कम्प्यूटरों का नेटवर्क अपना मस्तिष्क विकसित कर सकता है। कृत्रिम बुद्धि से संचालित मशीनें मनु ष्य के लिए जरूरी संसाधनों को अपने लक्ष्य की तरफ मोड़ सकती हैं जिससे मनुष्य जाति के लिए खतरा पै दा हो सकता है। साइबर हमले : आज पावर ग्रिड से लेकर ट्रैफिक कंट्रोल और बैंकिंग से लेकर संचार व्यवस्था इंटरनेट के जरिये कम्प्यूटर प्रणाली से जुड़ी हुई है। यदि को ई दुश्मन देश या आतंकवादी इस नेटवर्क पर हमला करते हैं तो इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इंजीनिर्यड इंफेक्शन : मानव निर्मित और बिना प्रतिकारक के सुपर वायरस या बैक्टीरिया लैब से छू ट सकते हैं या आतंकवादियों द्वारा मुक्त किये जा सकते हैं। इनके संक्रमण से लाखों की संख्या में मौतें हो सकती हैं। महामारी का फै लाव : अंतरराष्ट्रीय यात्राएं चंद दिनों के भीतर जंतुओं के उत्परिवर्तित घातक वायरस को दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचा सकती हैं। इससे पहले कि कोई वैक्सीन तैयार किया जा सके, लाखों- करोड़ लोग काल के मुंह में समा सकते हैं। इनके अलावा जो अन्य खतरे हैं, उनमें हैं ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाली समस्याएं, बढ़ती जनसंख्या के कारण अन्न और जल जैसे संसाधनों पर बढ़ता दबाव और उसके चलते होने वाले युद्ध; परमाणु बमों और दुर्घटनाओं से होने वाला नुकसान तथा क्षुद्रग्रह/उल्कापिंड के धरती से टकराने का खतरा। विशेषज्ञ मानते हैं कि हमारे लिए भविष्य में सबसे खतरा टेक्नोलॉजी यानी इंटेलीजेंट मशीनों से होगा। शीनें
मानव नियंत्रण जरूरी कृत्रिम दिमाग या इंटेलीजेंट मशीनें किस तरह काम करती हैं और क्या-क्या कर सकती हैं, इसे टर्मिनेटर सीरीज की ‘द राइज ऑफ मशीन’ जैसी अनेक साइंस फिक्शन फिल्मों में देखा जा सकता है। वार्नर ब्रदर्स की ‘किलर रोबोट्स’
ऐसी ही फिल्म है जिसमें रोबोट्स अपने लक्ष्य को बिना मानव संचालन के खुद-ब-खुद भेदते हैं। ऐसे रोबोट्स पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ‘किलर रोबोट्स’ फिल्म के मद्देनजर ही ‘ह्यूमन राइट वाच’ के एक सदस्य क्रिस्टोफ हेंस ने संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाने का प्रस्ताव रखा। उनका कहना था कि इससे पहले कि इस तरह के रोबोट्स हकीकत बनें, ऐसी मशीनों के निर्माण पर विश्वव्यापी रोक लगा देनी चाहिए। उनका तर्क था कि मशीनों में नैतिकता नहीं होती, इसलिए उनके हाथों में मारने की ताकत नहीं दी जानी चाहिए। इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र ने संज्ञान लेते हुए इस साल मई में ड्राफ्ट जारी किया जिसमें कहा गया कि बिना मानव नियंत्रणके ऐसे रोबोट के निर्माण पर रोक लगे जो मनुष्य के जीवन और मौत का फैसला ले सके।
साकार होती कल्पना अब तक रोबोटों के तरह-तरह के कारनामे फिल्मों में ही देखते आये हैं लेकिन धीरे-धीरे यह सब वास्तविकता में भी दिखने लगे हैं। कुछ ही दशक पहले तक यह इं सानी कल्पना थी कि रोबोट हमारे घर और उद्योगों में काम करें और हम आराम और सुविधा-संपन्न जीवन जियें। ऐसा ही काफी कुछ अब हमारे सामने है। अमे रिका में ‘द होम एक्सप्लोरिंग रोबोटिक बटलर’ ऐसा ही एक रोबोट है जो शेल्फ से किताब छांटकर ला सकता है, वापस रख सकता है या किचन से पानी ला सकता है, पसंदीदा व्यंजन अलग कर सकता है, यहां तक कि नाखून भी काट सकता है। इसी तरह जापान में सील जैसा पारो नाम का रोबोट उम्रदराज तथा एकाकी लोगों के साथी की भूमिका निभाता है, उनके छोटे-मोटे काम करता है, समय पर दवा उपलब्ध कराता है और उनका मनोरंजन करता है। माना जा रहा है कि अगले कुछ ही दशकों में रोबोट हर किसी की जिंदगी का हिस्सा बन जाएगा। जारी पेज 3
सेना की पसंद बन रहे रोबोट रोबोटिक्स के विशेषज्ञों की मानें तो इस समय दुनिया के 40 देशों में ऐसे हथियार और उपकरण तैयार किये जा रहे हैं जो स्वयं निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं। इसमें ड्रोन से लेकर ‘लेग्ड स्क्वाड सपोर्ट सिस्टम तक शामिल हैं। इन्हें नामी प्राइवेट हथियार कंपनियां तैयार कर रही हैं। इस तरह के गैर मानव संचालित हथियारों में सैन्य रणनीतिकारों की बहुत दिलचस्पी है। इनके लिए न तो बीमा की जरूरत होती है न रसद की समस्या। न इन्हें गुस्सा आता है और न ये युद्ध के किसी तनाव से जूझते हैं। ये आदेशों की अवहेलना भी नहीं करते हैं। इतना ही नहीं, वे बहुत सारे मानव सैनिकों की जान भी बचा सकते हैं। रोबोटों के इन्हीं फायदों को देखते हुए अमेरिका 7,000 ऐसी मशीनें तैयार कर रहा है जो युद्ध भूमि में सैनिकों की मदद कर सकें।
प्राकृतिक खतरों से ज्यादा तकनीकी खतरा खगोलविज्ञानी मार्टिन रीज के नेतृत्व में गठित ‘द कैम्ब्रिज सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ एक्जिसटेंशल रिस्क’ (सीएसईआर) के तहत जिन प्राकृतिक और तकनीकी खतरों को अध्ययन का विषय बनाया जाएगा, उनमें प्रमुख हैं-
दिनेश रावत तब ‘रोबोट’ शब्द अस्तित्व में भी नहीं आया था और यह बात किसी की कल्पना में भी नहीं थी कि भविष्य में ये न सिर्फ मनुष्यों के लिए बेहद मददगार साबित होंगे बल्कि एक दिन उनके लिए खतरा भी बन जाएंगे। इसकी पहली झलक हमें एम्ब्रोज बायर्स की 1909 में लिखी कहानी ‘मोक्संस मास्टर्स’ में मिलती है। मोक्सन एक आविष्कारक है और एक ऐसे यांत्रिक मानव की रचना करता है जो उसके लिए कई तरह के काम कर सकता है, यहां तक कि उसके साथ शतरंज भी खेल सकता है। एक दिन मोक्सन अपने उस मशीनी मानव के साथ शतरंज खेलता है और खेलते- खेलते मशीनी मानव को हरा देता है। अपनी हार से मशीनी मानव इतना क्रुद्ध होता है कि मोक्सन को जान से मार डालता है। यह कहानी थी। हकीकत में इसकी चरम परिणति 90 के दशक में तब सामने आयी जब आईबीएम के डीप ब्लू कंप्यूटर यानी कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफिशल इंटेलीजेंस) ने शतरंत के विश्व चैंपियन गैरी कास्पारोव को हरा कर सनसनी मचा दी थी। यों तो रोबोटिक्स का मूल ‘ऑटोमेटा’ (स्वचल प्रारूप) का आविष्कार प्राचीन सभ्यताओं द्वारा किया गया था लेकिन शब्द के रूप में इसका पहला प्रयोग 1920 में चेक लेखक कारेल चेपेक के नाटक ‘आरयूआर’ (रोसमंस यूनिवर्सल रोबोट) के साथ हुआ।
सहायक के रूप में रोबोट पिछले 20-25 वर्षो में रोबोट के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास हुआ। घर में बुजुगरे, असहायों की देखभाल से लेकर उद्योग, सीमा की निगरानी और अंतरिक्ष की पड़ताल तक में उनकी मदद ली जा रही है। आज रोबोट्स से वह सब काम भी लिया जा रहा है, जिन्हें करने में मनुष्य असमर्थ है या जहां जान का जोखिम है। उदाहरण के लिए- वे वहां पहुंच सकते हैं जहां मनुष्य नहीं। बिना थके लगातार काम कर सकते हैं, उन्हें न भोजन करने के लिए रुकना होता है और न सांस लेने के लिए सुस्ताना पड़ता है। उन्हें न आग से भय है न पानी से, न आंधी से और न तूफान से। जिस तरह से सूक्ष्म रोबोट् स पर अनुसंधान और विकास हो रहा है, उसे देखते हुए विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आने वाले वर्षो में वे हमारे शरीर के भीतर पहुंचकर सेहत की पड़ताल ही नहीं, सर्जरी तक करेंगे। लेकिन रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धि में हो रही प्रगति क्या मनुष्य जाति के लिए खतरा बन सकती है? ब्रिटेन के ‘सुपरब्रेन’ समझे जाने वाले भौतिकविद स्टीफन हॉकिंग, एस्ट्रोनॉर्मर रॉयल मार्टिन रीज समेत अनेक वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और विचारकों का मानना है कि मानव अस्तित्व के लिए अब असली खतरा प्रकृति से नहीं बल्कि तकनीक से है। उनका कहना है कि हम समय के उस बिंदु पर पहुंच रहे हैं जिसे ‘सिंगुलरिटी’ कहा जाता है और जहां स्मार्ट मशीनें उनका निर्माण करने वालों से ज्यादा स्मार्ट, शक्तिशाली और तेज हो जाती हैं । फिर इसके बाद सचेतन हो जाती हैं। इस तरह के खतरों की पहचान और उनसे मानवता को बचाने व सावधान करने के लिए बाकायदा ब्रिटेन में एक सोसाइटी का गठन किया गया है। इंटेलीजेंट टेक्नोलॉजी : विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में कम्प्यूटरों का नेटवर्क अपना मस्तिष्क विकसित कर सकता है। कृत्रिम बुद्धि से संचालित मशीनें मनु ष्य के लिए जरूरी संसाधनों को अपने लक्ष्य की तरफ मोड़ सकती हैं जिससे मनुष्य जाति के लिए खतरा पै दा हो सकता है। साइबर हमले : आज पावर ग्रिड से लेकर ट्रैफिक कंट्रोल और बैंकिंग से लेकर संचार व्यवस्था इंटरनेट के जरिये कम्प्यूटर प्रणाली से जुड़ी हुई है। यदि को ई दुश्मन देश या आतंकवादी इस नेटवर्क पर हमला करते हैं तो इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इंजीनिर्यड इंफेक्शन : मानव निर्मित और बिना प्रतिकारक के सुपर वायरस या बैक्टीरिया लैब से छू ट सकते हैं या आतंकवादियों द्वारा मुक्त किये जा सकते हैं। इनके संक्रमण से लाखों की संख्या में मौतें हो सकती हैं। महामारी का फै लाव : अंतरराष्ट्रीय यात्राएं चंद दिनों के भीतर जंतुओं के उत्परिवर्तित घातक वायरस को दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचा सकती हैं। इससे पहले कि कोई वैक्सीन तैयार किया जा सके, लाखों- करोड़ लोग काल के मुंह में समा सकते हैं। इनके अलावा जो अन्य खतरे हैं, उनमें हैं ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाली समस्याएं, बढ़ती जनसंख्या के कारण अन्न और जल जैसे संसाधनों पर बढ़ता दबाव और उसके चलते होने वाले युद्ध; परमाणु बमों और दुर्घटनाओं से होने वाला नुकसान तथा क्षुद्रग्रह/उल्कापिंड के धरती से टकराने का खतरा। विशेषज्ञ मानते हैं कि हमारे लिए भविष्य में सबसे खतरा टेक्नोलॉजी यानी इंटेलीजेंट मशीनों से होगा। शीनें
मानव नियंत्रण जरूरी कृत्रिम दिमाग या इंटेलीजेंट मशीनें किस तरह काम करती हैं और क्या-क्या कर सकती हैं, इसे टर्मिनेटर सीरीज की ‘द राइज ऑफ मशीन’ जैसी अनेक साइंस फिक्शन फिल्मों में देखा जा सकता है। वार्नर ब्रदर्स की ‘किलर रोबोट्स’
ऐसी ही फिल्म है जिसमें रोबोट्स अपने लक्ष्य को बिना मानव संचालन के खुद-ब-खुद भेदते हैं। ऐसे रोबोट्स पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ‘किलर रोबोट्स’ फिल्म के मद्देनजर ही ‘ह्यूमन राइट वाच’ के एक सदस्य क्रिस्टोफ हेंस ने संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाने का प्रस्ताव रखा। उनका कहना था कि इससे पहले कि इस तरह के रोबोट्स हकीकत बनें, ऐसी मशीनों के निर्माण पर विश्वव्यापी रोक लगा देनी चाहिए। उनका तर्क था कि मशीनों में नैतिकता नहीं होती, इसलिए उनके हाथों में मारने की ताकत नहीं दी जानी चाहिए। इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र ने संज्ञान लेते हुए इस साल मई में ड्राफ्ट जारी किया जिसमें कहा गया कि बिना मानव नियंत्रणके ऐसे रोबोट के निर्माण पर रोक लगे जो मनुष्य के जीवन और मौत का फैसला ले सके।
साकार होती कल्पना अब तक रोबोटों के तरह-तरह के कारनामे फिल्मों में ही देखते आये हैं लेकिन धीरे-धीरे यह सब वास्तविकता में भी दिखने लगे हैं। कुछ ही दशक पहले तक यह इं सानी कल्पना थी कि रोबोट हमारे घर और उद्योगों में काम करें और हम आराम और सुविधा-संपन्न जीवन जियें। ऐसा ही काफी कुछ अब हमारे सामने है। अमे रिका में ‘द होम एक्सप्लोरिंग रोबोटिक बटलर’ ऐसा ही एक रोबोट है जो शेल्फ से किताब छांटकर ला सकता है, वापस रख सकता है या किचन से पानी ला सकता है, पसंदीदा व्यंजन अलग कर सकता है, यहां तक कि नाखून भी काट सकता है। इसी तरह जापान में सील जैसा पारो नाम का रोबोट उम्रदराज तथा एकाकी लोगों के साथी की भूमिका निभाता है, उनके छोटे-मोटे काम करता है, समय पर दवा उपलब्ध कराता है और उनका मनोरंजन करता है। माना जा रहा है कि अगले कुछ ही दशकों में रोबोट हर किसी की जिंदगी का हिस्सा बन जाएगा। जारी पेज 3
सेना की पसंद बन रहे रोबोट रोबोटिक्स के विशेषज्ञों की मानें तो इस समय दुनिया के 40 देशों में ऐसे हथियार और उपकरण तैयार किये जा रहे हैं जो स्वयं निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं। इसमें ड्रोन से लेकर ‘लेग्ड स्क्वाड सपोर्ट सिस्टम तक शामिल हैं। इन्हें नामी प्राइवेट हथियार कंपनियां तैयार कर रही हैं। इस तरह के गैर मानव संचालित हथियारों में सैन्य रणनीतिकारों की बहुत दिलचस्पी है। इनके लिए न तो बीमा की जरूरत होती है न रसद की समस्या। न इन्हें गुस्सा आता है और न ये युद्ध के किसी तनाव से जूझते हैं। ये आदेशों की अवहेलना भी नहीं करते हैं। इतना ही नहीं, वे बहुत सारे मानव सैनिकों की जान भी बचा सकते हैं। रोबोटों के इन्हीं फायदों को देखते हुए अमेरिका 7,000 ऐसी मशीनें तैयार कर रहा है जो युद्ध भूमि में सैनिकों की मदद कर सकें।
प्राकृतिक खतरों से ज्यादा तकनीकी खतरा खगोलविज्ञानी मार्टिन रीज के नेतृत्व में गठित ‘द कैम्ब्रिज सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ एक्जिसटेंशल रिस्क’ (सीएसईआर) के तहत जिन प्राकृतिक और तकनीकी खतरों को अध्ययन का विषय बनाया जाएगा, उनमें प्रमुख हैं-
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