शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

शिक्षा -4


स्वयंसेवी संस्था असर(एएसईआर) द्वारा प्रस्तुत एनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन रिपोर्ट २००८ के अनुसार-
http://asercentre.org/asersurvey/aser08/pdfdata/aser08nati
onal.pdf

  • स्कूल वंचित बच्चों की तादाद में कमी आ रही है और इस दिशा में बिहार ने अच्छी प्रगति की है.राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो ७-१० साल के आयु वर्ग के बच्चों में स्कूल-वंचितों की संख्या २.७ फीसदी है जबकि ११-१४ आयु वर्ग में ६.३ फीसदी बच्चे स्कूल वंचित हैं।
  • साल २००७ और २००८ के बीच ११-१४ साल के आयु वर्ग की लड़कियों में स्कूल वंचितों की तादाद में कोई खास बदलाव नहीं आया और इस आयु वर्ग की लड़कियों की ७.३ फीसदी संख्या २००८ में स्कूल वंचित है।
  • साल २००७ के बाद से अधिकतर राज्यों में स्कूल वंचित बच्चों की संख्या में कमी आयी है। यूपी और राजस्थान इसके अपवाद हैं। .
  • बिहार में स्कूल वंचित बच्चों(६-१४ साल) की संख्या में चार सालों(२००५-२००८) में कमी आयी है। चार साल पहले ऐसे बच्चों की तादाद १३.१ फीसदी थी जो घटकर ५.७ फीसदी हो गई है। इस अवधि में स्कूल वंचित लड़कियों(११-१४ साल) की संख्या २०.१ फीसदी से घटकर ८.८ फीसदी हो गई है।
प्राइवेट स्कूलों में दाखिला बढ़ रहा है
साल २००५ में प्राइवेट स्कूलों में जाने वाले बच्चों की तादाद राष्ट्रीय स्तर पर १६.४ फीसदी थी जो साल २००८ में बढ़कर २२.५ फीसदी हो गई। अगर साल २००५ को आधार मानें तो प्राइवेट स्कूलों में नाम लिखवाने की घटना में ३७.२ फीसदी का इजाफा हुआ। कर्नाटक, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में यह बात खास रुप से नोट की जा सकती है।
  • साल २००८ में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले लड़कों की तुलना में लड़कियों की तादाद २० फीसदी कम थी। यह बात ७-१० और ११-१४ यानी दोनों ही आयु वर्ग पर लागू होती है।
  • केरल और गोवा में स्कूल जाने वाले बच्चों की कुल संख्या का ५० फीसदी प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रहा है। डिस्ट्रिक्ट इन्फॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की सूचना के मुताबिक इन राज्यों में ७० फीसदी प्राइवेट स्कूलों को सरकारी अनुदान मिलता है।
  • नगालैंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में ३२ से ४२ फीसदी बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं। डिस्ट्रिक्ट इन्फॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की सूचना से पता चलता है कि इन राज्यो में अधिकतर प्राइवेट स्कूलों को सरकारी अनुदान नहीं मिलता।
  • मध्यप्रदेश और छ्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों में पाठ-वाचन की क्षमता में खास प्रगति हुई है।
  • छ्त्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों में पाठ वाचन की क्षमता में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। साल २००७ में यहां तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले महज ३१ फीसदी छात्र पहली कक्षा की पुस्तक पढ़ पाते थे लेकिन २००८ में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या ७० फीसदी हो गई।साल २००७ में पांचवीं क्लास के ५८ फीसदी विद्यार्थी दूसरी क्लास की किताबों की भाषा को पढ-समझ पाते थे जबकि साल २००८ में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या ७५ फीसदी हो गई।
  • मध्यप्रदेश में साल २००६ और २००७ की तुलना में २००८ में बच्चों के पाठ-बोध की क्षमता में अच्छी बढ़त हुई है। यहां सरकारी स्कूलों की पांचवीं क्लास में पढ़ने वाले ८६ फीसदी बच्चे कक्षा-२  की किताबों की भाषा पढ़-समझ लेते हैं । इस मामले में मध्यप्रदेश असर के मूल्यांकन के लिहाज से बाकी राज्यों से बेहतर है। मिसाल के लिए केरल और हिमाचल प्रदेश में सरकारी स्कूलों की पांचवीं जमात में पढ़ रहे महज ७३-७४ फीसदी बच्चों की भाषाई क्षमता ऐसी थी कि वे कक्षा-२ की पुस्तकों को पढ़-समझ सकें।
  • मध्यप्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश के स्कूली बच्चों की भाषायी क्षमता बाकी राज्यों के स्कूलों बच्चों की तुलना में बेहतर है। इन राज्यों में पहली कक्षा में पढ़ रहे लगभग ८५ फीसदी बच्चे वर्णों को पहचान लेते हैं और कक्षा-२ की किताबें पढ़-समझ लेने वाले बच्चों (पांचवीं क्लास में पढ़ने वाले) की संख्या भी ७५ फीसदी से ज्यादा है।
  • मध्यप्रदेश ने इस दिशा में तेज गति से प्रगति दो चरणों में की । मध्यप्रदेश को पहली बढ़त साल २००६ में हासिल हुई और दूसरी साल २००८ में।
  • कर्नाटक और उड़ीसा में दूसरी से चौथी जमात तक के छात्रों की पाठ-वाचन की क्षमता में लगातार बेहतरी हुई है। जांच-परीक्षा के परिणामों से पता चलता है कि इन राज्यों में छात्रों की पाठ-वाचन क्षमता में पांच से छह फीसदी का इजाफा हुआ है।
    छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में छात्रों की गणितीय क्षमता में भी बढ़ोतरी हुई है-
  • असर की जांच परीक्षा से पता चलता है कि मध्यप्रदेश और छ्त्तीसगढ़ में पिछले एक साल में छात्रों की गणित की योग्यता में बेहतरी प्रगति हुई है। दोनों ही राज्यों में पहली कक्षा के ९१ फीसदी से ज्यादा विद्यार्थी एक से नौ तक के अंकों को पहचान पाने में सफल रहे। हालांकि केरल में ऐसे बच्चों की तादाद ९६ फीसदी है लेकिन साक्षरता के मामले में देश में सबसे आगे रहने वाले यह राज्य तीसरी जमात के बच्चों की गणितीय योग्यता के मामले में मध्यप्रदेश और छ्तीसगढ़ से पीछे है।
  • साल २००७ में मध्यप्रदेश में तीसरी जमात के ६१.३ फीसदी बच्चे घटाव के सरल प्रश्न हल कर लेते थे जबकि २००८ में ऐसे बच्चों की तादाद बढ़कर ७२.२ फीसदी हो गई। केरल में ऐसे बच्चों की तादाद ६१.४ थी।
  • साल २००८ में मध्यप्रदेश में पांचवी कक्षा के ७८.२ फीसदी बच्चे किसी संख्या में किसी संख्या से ठीक-ठीक भाग देने में सक्षम थे। यह आंकड़ा पूरे देश के हिसाब से सबसे ज्यादा है। कई अन्य राज्यों में यह आंकड़ा ६० फीसदी का है। मिसाल के लिए हिमाचलप्रदेश, छत्तीसगढ़ , मणिपुर और गोवा का नाम लिया जा सकता है। .
  • छत्तीसगढ़ में भी बच्चों की गणित करने की क्षमता में बेहतर प्रगति हुई है। साल २००८ में यहां कक्षा-२ के ७७ फीसदी बच्चे एक से सौ तक के अंकों को पहचानने में सफल रहे। साल २००७ में कक्षा-२ के छात्रों के लिए यही आंकड़ा ३७ फीसदी का था। ठीक इसी तरह साल २००७ में यहां कक्षा-३ के २१ फीसदी बच्चे घटाव के प्रश्नों को ठीक ठीक हल कर पाते थे जबकि साल २००८ में ६३ फीसदी बच्चे यह गणित करने में सफल रहे।
  • समय का हिसाब
  • देश में कक्षा पांच में पढ़ने वाले ६१ फीसदी बच्चे घड़ी में देखकर ठीक-ठीक समय बता सकते हैं।
  • यूपी, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और गुजरात में कक्षा-५ के महज ५० फीसदी छात्र घड़ी में देखकर ठीक-ठीक समय बता पाये। बिहार, झारखंड, उड़ीसा, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में यह आंकड़ा  राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।
  • मध्यप्रदेश, केरल, छ्त्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में छात्रों में गणित और भाषायी योग्यता बाकी राज्यों के छात्रों की तुलना में ज्यादा थी और इन राज्यों में कक्षा-५ के ७५ फीसदी से ज्यादा बच्चों ने घड़ी में देखकर सही समय बताया।
असर के सर्वेक्षण की कुछ और महत्वपूर्ण बातें-
  • ९२ फीसदी ग्रामीण बस्तयों के एक किलोमीटर के दायरे में प्राइमरी स्कूल मौजूद है। ६७ फीसदी गांवों में सरकारी मिडिल स्कूल है और ३३.८ फीसदी गांवों में सरकारी हाईस्कूल मौजूद हैं। देश के ४५ फीसदी गांवों में प्राइवेट स्कूल भी हैं। .
  • देश के ५८ फीसदी गांवों में एसटीडी बूथ हैं जबकि ४८ फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास कोई सेलफोन या लैंडलाइन कनेक्शन है। 
  • सर्वेक्षण में जिन घरों का मुआयना किया गया उसमें ६५ फीसदी घरों में बिजली का कनेक्शन लगा था।
  • देश के ७१ फीसदी गांवों का पक्की सड़क के सहारे बाहरी इलाके से संपर्क है। इस मामले में पीछे रहने वाले राज्यों के नाम हैं-असम (यहां महज ३२ फीसदी गांव पक्की सड़क से जुड़े हैं), पश्चिम बंगाल (५३ फीसदी) और मध्यप्रदेश (५८ फीसदी) ।
  • एनएसएस यानी राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ५५ दौर के आकलन पर आधारित लिटरेसी एंड लेवल ऑफ एजुकेशन इन इंडिया जुलाई १९९९-जून २००० के अनुसार-

    • भारत के शहरी इलाके में १००० में ७९८ व्यक्ति साक्षर है यानी शहरी इलाके में हर पांचवां व्यक्ति निरक्षर है। शहरी इलाके के साक्षरों में ३२५ व्यक्तियों(७९८ में) ने माध्यमिक या उससे आगे की शिक्षा पायी है। ग्रामीण भारत की तुलना में यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है। शहरी इलाके में १००० में ८६५ पुरुष साक्षर थे जबकि महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा ७२ फीसदी का है।
    • देश के ग्रामीण इलाके में अनुसूचित जनजाति के परिवारों में साक्षरता दर सबसे कम (४२ फीसदी) है। इसके बाद अनुसूचित जाति के परिवारों(४२ फीसदी) का नंबर है। देश के शहरी इलाके में सबसे कम साक्षरता दर अनुसूचित जाति के परिवारों (६६ फीसदी) की है। शहरी इलाके में अनुसूचित जनजाति के परिवारों की साक्षरता दर ७० फीसदी है। शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों में अन्य सामाजिक वर्गों के बीच साक्षरता दर अपेक्षाकृत ज्यादा है।   
    • हर शिक्षा-स्तर में महिलाओं का अनुपात पुरुषों की अपेक्षा कम है। अगर ग्रामीण और शहरी परिवारों को प्रति व्यक्ति मासिक खर्चे के आधार पर सोपानिक क्रम में सजाये तो हर ऊपरले पादान पर साक्षर व्यक्तियों की संख्या बढती जाती है। स्त्री-पुरुषों के अनुपात के मामले में भी यही बात है। 
    • भारत के ग्रामीण इलाके में गैर खेतिहर स्वरोजगार में लगे परिवारों में प्रति हजार व्यक्ति में ६३० व्यक्ति साक्षर थे जबकि खेतिहर मजदूर वर्ग में यह आंकड़ा प्रतिहजार ४२६ व्यक्तियों का है।   
    • जमीन की मिल्कियत के लिहाज से देखें तो ग्रामीण भारत में साक्षरता की दर जमीन की बढ़ती हुई मिल्कियत के साथ बड़ी धीमी गति से बढ़ती हुई पायी गई। जिन परिवारों के पास सबसे कम जमीन की मिल्कियत थी उनमें साक्षरता दर ५२ फीसदी की है जबकि सर्वाधिक जमीन की मिल्कियत वाले वर्ग में ६४ फीसदी की।
    • जमीन की मिल्कियत को आधार मानकर देखें तो हर भूस्वामी वर्ग में महिलाओं में साक्षरता की दर पुरुषों की तुलना में कम है।
    • भारत के ग्रामीण इलाके में इस्लाम धर्म के अनुयायियों में साक्षरता दर (स्त्री और पुरुष दोनों के लिए) अन्य धर्मावलंबियों की तुलना में कम है। ग्रामीण इलाके में हिन्दू धर्म या फिर किसी अन्य धर्म को मानने वाले परिवारों में महिलाओं की साक्षरता की स्थिति इससे कुछ ही बेहतर है ज्यादा नहीं। भारत के शहरी इलाके में हिन्दू, सिख या फिर बौद्ध धर्म मानने वाले पुरुषों के बीच साक्षरता दर ८८-८९ फीसदी है। ईसाई या जैन धर्म मानने वाले पुरुषों के बीच साक्षरता दर  ऊंची(९४ फीसदी और इससे अधिक) है। शहरी इलाके में भी इस्लाम धर्म के अनुयायी पुरुष या स्त्रियों में साक्षरता दर तुलनात्मक रुप से कम है। 
    • भारत के ग्रामीण इलाके में बाकी धर्मों की तुलना में हिन्दू या इस्लाम धर्म मानने वालों में स्त्री और पुरुष के बीच साक्षरता दर में ज्यादा का अंतर है। शहरी भारत के लिए भी यही बात लागू होती है लेकिन शहरों में हिन्दू या इस्लाम धर्म मानने वालों में स्त्री-पुरुष के बीच साक्षरता के दर में अन्तर ग्रामीण भारत की तुलना में कम है। 
    • साल १९९३-९४ से १९९९-२००० के बीच देश के कुल १५ बड़े राज्यों में से मध्यप्रदेश और राजस्थान में पुरुषों और स्त्रियों की साक्षरता दर में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इन राज्यों में पुरुषों के मामले में साक्षरता दर में ९ फीसदी की और महिलाओं के मामले में १० फीसदी के बढोतरी हुई। बड़े राज्यों के दायरे में महाराष्ट्र भी शामिल है और इस राज्य में पुरुषों की साक्षरता में तो नहीं लेकिन महिलाओं की साक्षरता दर में १० फीसदी का इजाफा हुआ। जहां तक भारत के शहरी इलाके का सवाल है साल १९९३-९४ से साल १९९९-२००० के बीच कर्नाटक, राजस्थान, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के शहरी इलाके साक्षरता-वृद्धि के राष्ट्रीय औसत की तुलना में कहीं आगे रहे।
    • ग्रामीण इलाकों के हिसाब से देखें तो बड़े राज्यों में केरल में साक्षरता दर सबसे ज्यादा रही। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ५० और ५५ वें दोनों ही दौर की गणना में केरल में साक्षरता दर ९० फीसदी की पायी गई। इस गणना में दूसरे स्थान पर असम(६९ फीसदी) रहा। बिहार में सबसे कम साक्षरता-दर(४२ फीसदी) थी। इसके बाद नंबर आंध्रप्रदेश(४६ फीसदी) और राजस्थान का है।
    • भारत के शहरी इलाके में जीविका के लिए दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर परिवारों में साक्षरता दर बहुत कम है। इस वर्ग के प्रति हजार व्यक्तियों में ५९३ यानी लगभग ५९ फीसदी साक्षर पाये गए जबकि इस वर्ग के लिए राष्ट्रीय औसत ८० फीसदी का है। वेतनभोगी या नियमित आमदनी वाले शहरी परिवारों में इसकी तुलना में साक्षरता दर ज्यादा है।
    • कुल ३२ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में महज ८ में ग्रामीण इलाकों में साक्षरता दर ८० फीसदी या उससे ज्यादा है। इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के नाम हैं- गोवा,  केरल,  मिजोरम,  नगालैंड,  अंडमान निकोबार द्वीपसमूह,  दमन और दिऊ, दिल्ली और लक्षद्वीप। .
    • साल १९९३-९४ से साल १९९९-२००० के बीच राष्ट्रीय स्तर पर साक्षरता दर (प्रतिशत पैमाने पर) बढ़ी है। ग्रामीण इलाके के पुरुषों के मामले में साक्षरता दर ६३ फीसदी से बढ़कर ६८ फीसदी और शहरी इलाके के पुरुषों के मामले में साक्षरता दर ८५ फीसदी से बढ़कर ८७ फीसदी हो गई। महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा ग्रामीण इलाके के लिए ३६ फीसदी बनाम ४३ फीसदी और शहरी इलाके के लिए ६८ फीसदी बनाम ७२ फीसदी का है।व्यक्ति के आधार पर देखें तो ग्रामीण इलाके में १९९३-९४ में ५० फीसदी साक्षरता दर थी जो साल १९९९-२००० में बढ़कर ५६ फीसदी हो गई। शहरी इलाके के लिए यह आंकड़ा ७७ फीसदी बनाम ८० फीसदी का है।
    • राष्ट्रीय स्तर पर भारत की जनगणना के आंकड़ो और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों के बीच अन्तर( साक्षरता दर के आंकड़ों के मामले में)३ फीसदी का है। ग्रामीण इलाके के पुरुषों की साक्षरता दर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण में ७३ फीसदी बतायी गई है जबकि जनगणना के आंकडों में ७६ फीसदी। ठीक इसी तरह महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा क्रमशः ५१ फीसदी और ५४ फीसदी का है।
    प्राथमिक शिक्षा में प्रगति का ग्राफ (साल १९९९ से)
    Source: RGI; SES, MHRD

    शैक्षिक संस्थानों की बढ़ोतरी का ग्राफ (साल १९९९ से)
    नीचे दिए गए आरेख से पता चलता है कि साल १९९९-२००० से २००४-०५ के बीच स्कूलों में नामांकन की तादाद(लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए) बढ़ी है लेकिन लड़कों के नामांकन की तादाद लड़कियों के नामांकन से ज्यादा है। 
     Source: SES, MHRD *Provisional
    कन्फेडरेशन ऑव इंडियन इंडस्ट्री नई दिल्ली द्वारा प्रस्तुत- राइट टू एजुकेशन-एक्शन नाऊ नामक दस्तावेज के अनुसार-
    • सातवें एजुकेशन सर्वे (२००२) में कहा गया है कि १०.७१ लाख यानी ८७ फीसदी बस्तियों के एक किलोमीटर के दायरे में प्राथमिक विद्यालय मौजूद है जबकि १.६ लाख बस्तियों के एक किलोमीटर के दायरे में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं है। .
    • देश के सिर्फ ७८ फीसदी बस्तियों के ३ किलोमीटर के दायरे में अपर प्राइमरी स्कूल की मौजूदगी है और ग्रामीण आबादी के ८६ फीसदी हिस्से की जरुरतें इनसे पूरी हो पाती हैं। साल २००२-०३ के बाद से अबतक ८८९३० नये अपर प्राइमरी स्कूल खोले गए हैं लेकिन इनकी संख्या अब भी जरुरत के लिहाज से कम है।
    • मध्यप्रदेश में सिर्फ एक तिहाई शिक्षक स्कूल में उपस्थित होते हैं जबकि बिहार में यह आंकड़ा २५ फीसदी का और यूपी में २० फीसदी का है।
    • राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो साल २००४-०५ में २.८ प्राथमिक विद्यालयों पर अपर प्राइमरी स्कूलों की संख्या एक थी। साल २००५-०६ में देश में २.५ प्राइमरी स्कूलों पर अपर प्राइमरी स्कूलों की संख्या १ थी। हर दो प्राथमिक विद्यालय पर कम से कम एक अपर प्राइमरी स्कूल हो(जैसी कि सर्व शिक्षा अभियान की मान्यता है) इसके लिए १ लाख ४० हजार अपर प्राइमरी स्कूल खोलने होंगे।
    • सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत ७.९५ लाख शिक्षकों की बहाली हुई है ताकि प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर ४४ छात्रों पर १ शिक्षक होने के बजाय ४० छात्रों पर १ शिक्षक का छात्र-शिक्षक अनुपात कायम किया जा सके। शिक्षकों को कार्यकालीन प्रशिक्षण भी दिया गया है। इसके अतिरिक्त बच्चों को ६.९ लाख रुपये मूल्य की पाठ्यपुस्तकें मुफ्त बांटी गई हैं। 
    • साल २००२-०३ में ड्राप-आऊट दर १५ फीसदी थी जो साल २००३-०४ में घटकर १३ फीसदी और २००४-०५ में घटकर १२ फीसदी हो गई। ड्राप-आऊट रेट में आ रही कमी उत्साहवर्धक है लेकिन इस दिशा में पूरी गंभीरता से और गहन कोशिश करनी होगी।
    • साल १९९९-२००० से शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। साल १९९९-२००० में प्राइमरी स्तर पर १९.२ लाख शिक्षक थे। साल २००३-०४ में इनकी संख्या बढ़कर २०.९ लाख हो गई। इसी अवधि में अपर प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या १२.९८ लाख से बढ़कर १६.०२ लाख हो गई।
    • सरकार ने प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम, प्राथमिक विद्यालयों में पोषाहार सहायता देने का राष्ट्रीय कार्यक्रम ( नेशलन प्रोग्राम ऑव न्यूट्रीशनल सपोर्ट टू प्राइमरी एजुकेशन), मिड डे मील और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना जैसी संस्थाओं शुरु की हैं।
    यूनेस्कों इंस्टीट्यूट ऑव स्टैटिक्स के अनुसार-
    ४० फीसदी बच्चे प्री-प्राइमरी स्कूलों में नामांकित है
    ८७ फीसदी लड़कियां और ९० फीसदी लड़के प्राइमरी स्कूलों में हैं।
    तृतीयक आयु वर्ग की १२ फीसदी आबादी शिक्षा के तृतीयक स्तर पर है।
    ८६ फीसदी बच्चों ने प्राइमरी की सम्पूर्ण पढ़ाई पूरी की है  
    सरकार के खर्चे का १०.७ फीसदी शिक्षा के मद में जाता है
    ६५.२ फीसदी व्यस्क और ८१.३ फीसदी युवा साक्षर हैं।
     भारत में शिक्षा-एक नजर

    • युवा (१५–२४ साल) साक्षरता दर २०००-२००७*,  पुरुष ८७
    • युवा (१५–२४ साल) साक्षरता दर, २०००-२००७*, महिला ७७
    • प्रति सौ व्यक्तियों पर फोन, (साल २००६) -१५
    • प्रति सौ व्यक्तियों पर इंटरनेट-यूजर की संख्या, साल(२००६)-११
    • प्राइमरी स्कूल में नामांकन का अनुपात (साल २०००-२००७)-सकल, पुरुष ९०
    • प्राइमरी स्कूल में नामांकन का अनुपात (साल २०००-२००७)-सकल, स्त्री ८७
    • प्राथमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, पुरुष, ८५
    • प्राथमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, स्त्री ८१
    • माध्यमिक विद्यालय में नामांकन- अनुपात, २०००-२००७, पुरूष ५९
    • माध्यमिक विद्यालय में नामांकन- अनुपात, २०००-२००७, स्त्री ४९
    • माध्यमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, पुरुष ५९
    • माध्यमिक विद्यालय में उपस्थिति का अनुपात (२०००-२००७)-निवल, स्त्री ४९
    • नोट: नामांकन अनुपात का अर्थ होता है कि किसी विशिष्ट शिक्षा स्तर पर दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या कितनी है। इसमें दाखिला लेने वाले विद्यार्थी की उम्र का आकलन नहीं किया जाता।
    Source: UNICEF, http://www.unicef.org/infobycountry/india_statistics.html
     

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