शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

किशोर आबादी के कुछ अनजाने तथ्य - यूनिसेफ की नई रिपोर्ट [Share this article] [Share this article] दुनिया में किशोर उम्र के लोगों की तादाद 1 अरब 20 लाख है लेकिन आबादी के इतने बड़े हिस्से के रोजमर्रा की जिन्दगी के बारे में- उसके आस-निरास, आशा-आकांक्षा और उसके सामने खड़ी बाधाओं के बारे में हमारी जानकारी कितनी है ? यूनिसेफ की नई रिपोर्ट प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन- अ रिपोर्टकार्ड ऑन एडोलेसेंट का निष्कर्ष है- “ बहुत कम ।” मिसाल के लिए भारत के बारे में ही सोचें। विज्ञापनों की भाषा और चुनाव-प्रचार के तकाजों से लैस बहस-मुबाहिसों में भारत का एक नाम “ यंगिस्तान ” है। लेकिन शायद ही कभी भारत के बारे में बताया जाता है कि यहां की आबादी में 20 फीसदी व्यक्ति किशोर उम्र (10-19साल) के हैं और भारत में इस उम्र के लोगों की कुल तादाद 24 करोड़ 30 लाख है जो किसी भी अन्य देश के किशोरवय लोगों की संख्या की तुलना में ज्यादा है। (चीन में किशोरवय लोगों की संख्या तकरीबन 20 करोड़ है।) ऐसे में सवाल उठना चाहिए कि, दुनिया की सबसे ज्यादा किशोर आबादी वाले देश भारत में किशोरों की दशा कैसी है- सेहत के मानकों पर या फिर जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों(शादी, संतान आदि) के मामले में पसंद-नापसंद के लिहाज से? इसका एक अंदाजा आप खुद लगायें। रिपोर्ट के अनुसार भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं। भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है। अगर इन तथ्यों के साथ इस बात का भी ख्याल रखें कि भारत में 15-19 वर्ष की तकरीबन 47 फीसदी महिलायें औसत से कम वज़न की हैं और इस उम्र की 50 फीसदी से ज्यादा महिलायें रक्ताल्पता(एनीमिया) की शिकार हैं तो फिर सहज ही कल्पना की जा सकती है कि स्वास्थ्य, जीवन-संभाव्यता और जीवन के रोजमर्रा की स्थितियों पर पकड़ के मामले में भारत में किशोरवय विवाहित स्त्रियों की दशा कैसी है ! क्या ये तथ्य इशारा करते हैं कि भारत में किशोरावस्था में विवाह ( बाल-विवाह का एक रुप?) अब भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है ? रिपोर्ट के आंकड़ों को खंगालने पर इसका उत्तर हां में मिलता है। यूनिसेफ की उपर्युक्त रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया और उप-सहारीय अफ्रीका में 15-19 साल की उम्र की सर्वाधिक महिलायें या तो शादीशुदा हैं या फिर किसी ना किसी रुप में उनका यौन-संबंध बन चुका है। रिपोर्ट में चेतावनी के स्वर में कहा गया है कि किशोरवय में लड़कियों के ब्याहे जाने की तादाद इससे भी ज्यादा हो सकती हैं क्योंकि जो लड़की अभी अब्याही है उसके बारे में शंका करने के पर्याप्त आधार हैं कि किशोरावस्था के पूरा होने से पहले ही उसका ब्याह कर दिया जाएगा। मिसाल के लिए, रिपोर्ट में दिए गए इस तथ्य पर गौर करें- विकासशील देशों में 20-24 साल के आयुवर्ग की एक तिहाई से ज्यादा महिलाओं का ब्याह 18 साल या उससे कम उम्र में हो जाता है। ऐसे विवाह की परिणतियां सामाजिक-आर्थिक और मनोवैज्ञानिक धरातल पर महिलाओं को कमजोर करने में होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार- अपने माता-पिता के परिवार से दूर ऐसी किशोरवय महिलायें ज्यादातर मामलों में ना तो अपनी औपचारिक पढ़ाई पूरी कर पाती हैं ना ही उनके अन्य मानवाधिकारों की कायदे से पूर्ति हो पाती है। इस तथ्य की तरफ इशारा करते हुए कि किशोरावस्था व्यक्तित्व के विकास का निर्णायक चरण है रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि सह्राब्दी विकास-लक्ष्यों के अनुरुप- “ हमें किशोरवय आबादी के लिए ज्यादा संसाधन खर्च करने चाहिए ” अन्यथा आगे के दिनों में हमारा सामना एक ऐसी पीढ़ी से होगा जो समाज के सदस्य के तौर पर कम कार्य-कुशल और उत्पादक होगी। रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य- प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन- अ रिपोर्टकार्ड ऑन एडोलेसेंट(यूनिसेफ), नंबर 10,अप्रैल 2012 नामक दस्तावेज के अनुसार http://www.unicef.org/media/files/PFC2012_A_report_card_on _adolescents.pdf: • दुनिया की कुल आबादी में किशोरवय(10-19 वर्ष) व्यक्तियों की तादाद 1 अरब 20 करोड़ यानी 18 फीसदी है। किशोरवय कुल व्यक्तियों में आधे से अधिक एशिया में रहते हैं। भारत में किशोरवय लोगों की तादाद 24 करोड़ 30 लाख है जो किसी भी अन्य देश के किशोरवय लोगों की संख्या की तुलना में ज्यादा है। चीन में किशोरवय लोगों की संख्या तकरीबन 20 करोड़ है। • वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 1 करोड़ 40 लाख किशोरवय व्यक्ति सड़क-दुर्घटना, प्रसवजनित जटिलताओं, आत्महत्या, हिंसा, एड्स और अन्य कारणों से मौत का शिकार होते हैं।. • साल 2010 में भारत में 10-19 साल की उम्र के व्यक्तियों की संख्या कुल आबादी में 20 फीसदी थी। • भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं।. • भारत में 15-19 वर्ष की तकरीबन 47 फीसदी महिलायें औसत से कम वज़न की हैं और उनका बॉडी मॉस इंडेक्स 18.5 से कम है।. • भारत में 15-19 साल के आयु वर्ग की 50 फीसदी से ज्यादा महिलायें रक्ताल्पता(एनीमिया) की शिकार हैं। इस आयु-वर्ग में तकरीबन 39 फीसदी महिलायें साधारण तौर पर एनीमियाग्रस्त हैं, 15 फीसदी महिलाओं में एनीमियाग्रस्तता मंझोले दर्जे की है जबकि कुल 2 फीसदी महिलायें गंभीर रुप से एनीमियाग्रस्त हैं।. • बांग्लादेश, भारत और नाइजीरिया को एक साथ मिलाकर देखें तो किशोरवय में मां बनने वाली हर तीन महिला में से एक इन्हीं देशों से है।. • भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है जबकि अमीर देशों में इस उम्र की तकरीबन 90 फीसदी महिलाओं को प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों की सहायता हासिल होती है।. • भारत में अमीर परिवारों की तुलना में गरीब परिवारों में कम उम्र महिलाओं के 18 साल से कम उम्र में मां बनने की संभावना 7 गुना ज्यादा है। • भारत में साल 2002-2010 की अवधि में 15-19 साल की उम्र के तकरीबन 57 फीसदी पुरुषों ने माना कि पत्नी को पति के द्वारा किन्हीं परस्थितियों में पीटना जायज है जबकि इसी अवधि में इसी उम्र की तकरीबन 53 फीसदी महिलाओं की मान्यता थी कि पत्नी का पति के हाथों प्रताडित होना किन्हीं परिस्थितियों में जायज है।. • भारत में साल 2005-2010 के बीच 15-19 साल की तकरीबन 8 फीसदी महिलाओं के 15 साल से कम उम्र में यौन-संबंध बने जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 3 फीसदी पुरुषों के यौन-संबंध बने।. • भारत में 15-19 साल की तकरीबन 19 फीसदी महिलाओं को साल 2005-2010 की अवधि में एड्स की समग्र जानकारी थी जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 35 फीसदी पुरुषों को एडस् की समग्र जानकारी थी। • भारत में 15-19 साल की तकरीबन 30 फीसदी महिलायें वर्ष 2000-2010 की अवधि में या तो विवाहित थीं या उनके यौन-संबंध बन चुके थे।


किशोर आबादी के कुछ अनजाने तथ्य - यूनिसेफ की नई रिपोर्ट

दुनिया में किशोर उम्र के लोगों की तादाद 1 अरब 20 लाख है लेकिन आबादी के इतने बड़े हिस्से के रोजमर्रा की जिन्दगी के बारे में- उसके आस-निरास, आशा-आकांक्षा और उसके सामने खड़ी बाधाओं के बारे में हमारी जानकारी कितनी है ? यूनिसेफ की नई रिपोर्ट प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन- अ रिपोर्टकार्ड ऑन एडोलेसेंट का निष्कर्ष है- “ बहुत कम ।”

मिसाल के लिए भारत के बारे में ही सोचें। विज्ञापनों की भाषा और चुनाव-प्रचार के तकाजों से लैस बहस-मुबाहिसों में  भारत का एक नाम “ यंगिस्तान ” है। लेकिन शायद ही कभी भारत के बारे में बताया जाता है कि यहां की आबादी में 20 फीसदी व्यक्ति किशोर उम्र (10-19साल) के हैं और भारत में इस उम्र के लोगों की कुल तादाद 24 करोड़ 30 लाख है जो किसी भी अन्य देश के किशोरवय लोगों की संख्या की तुलना में ज्यादा है। (चीन में किशोरवय लोगों की संख्या तकरीबन 20 करोड़ है।)

ऐसे में सवाल उठना चाहिए कि, दुनिया की सबसे ज्यादा किशोर आबादी वाले देश भारत में किशोरों की दशा कैसी है- सेहत के मानकों पर या फिर जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों(शादी, संतान आदि) के मामले में पसंद-नापसंद के लिहाज से?

इसका एक अंदाजा आप खुद लगायें। रिपोर्ट के अनुसार भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं।  भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है। अगर इन तथ्यों के साथ इस बात का भी ख्याल रखें कि भारत में 15-19 वर्ष की तकरीबन 47 फीसदी महिलायें औसत से कम वज़न की हैं और इस उम्र की 50 फीसदी से ज्यादा महिलायें रक्ताल्पता(एनीमिया) की शिकार हैं तो फिर सहज ही कल्पना की जा सकती है कि  स्वास्थ्य, जीवन-संभाव्यता और जीवन के रोजमर्रा की स्थितियों पर पकड़ के मामले में भारत में किशोरवय विवाहित स्त्रियों की दशा कैसी है !

क्या ये तथ्य इशारा करते हैं कि भारत में किशोरावस्था में विवाह ( बाल-विवाह का एक रुप?) अब भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है ? रिपोर्ट के आंकड़ों को खंगालने पर इसका उत्तर हां में मिलता है। यूनिसेफ की उपर्युक्त रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया और उप-सहारीय अफ्रीका में 15-19 साल की उम्र की सर्वाधिक महिलायें या तो शादीशुदा हैं या फिर किसी ना किसी रुप में उनका यौन-संबंध बन चुका है। रिपोर्ट में चेतावनी के स्वर में कहा गया है कि किशोरवय में लड़कियों के ब्याहे जाने की तादाद इससे भी ज्यादा हो सकती हैं क्योंकि जो लड़की अभी अब्याही है उसके बारे में शंका करने के पर्याप्त आधार हैं कि किशोरावस्था के पूरा होने से पहले ही उसका ब्याह कर दिया जाएगा। मिसाल के लिए, रिपोर्ट में दिए गए इस तथ्य पर गौर करें- विकासशील देशों में 20-24 साल के आयुवर्ग की एक तिहाई से ज्यादा महिलाओं का ब्याह 18 साल या उससे कम उम्र में हो जाता है।

ऐसे विवाह की परिणतियां सामाजिक-आर्थिक और मनोवैज्ञानिक धरातल पर महिलाओं को कमजोर करने में होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार- अपने माता-पिता के परिवार से दूर ऐसी किशोरवय महिलायें ज्यादातर मामलों में ना तो अपनी औपचारिक पढ़ाई पूरी कर पाती हैं ना ही उनके अन्य मानवाधिकारों की कायदे से पूर्ति हो पाती है। इस तथ्य की तरफ इशारा करते हुए कि किशोरावस्था व्यक्तित्व के विकास का निर्णायक चरण है रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि सह्राब्दी विकास-लक्ष्यों के अनुरुप- “ हमें किशोरवय आबादी के लिए ज्यादा संसाधन खर्च करने चाहिए ” अन्यथा आगे के दिनों में हमारा सामना  एक ऐसी पीढ़ी से होगा जो समाज के सदस्य के तौर पर कम कार्य-कुशल और उत्पादक होगी।

रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन- अ रिपोर्टकार्ड ऑन एडोलेसेंट(यूनिसेफ), नंबर 10,अप्रैल 2012 नामक दस्तावेज के अनुसार

• दुनिया की कुल आबादी में किशोरवय(10-19 वर्ष) व्यक्तियों की तादाद 1 अरब 20 करोड़ यानी 18 फीसदी है। किशोरवय कुल व्यक्तियों में आधे से अधिक एशिया में रहते हैं। भारत में किशोरवय लोगों की तादाद 24 करोड़ 30 लाख है जो किसी भी अन्य देश के किशोरवय लोगों की संख्या की तुलना में ज्यादा है। चीन में किशोरवय लोगों की संख्या तकरीबन 20 करोड़ है।

• वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 1 करोड़ 40 लाख किशोरवय व्यक्ति सड़क-दुर्घटना, प्रसवजनित जटिलताओं, आत्महत्या, हिंसा, एड्स और अन्य कारणों से मौत का शिकार होते हैं।.

• साल 2010 में भारत में 10-19 साल की उम्र के व्यक्तियों की संख्या कुल आबादी में 20 फीसदी थी।

• भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं।.

• भारत में 15-19 वर्ष की तकरीबन 47 फीसदी महिलायें औसत से कम वज़न की हैं और उनका बॉडी मॉस इंडेक्स 18.5 से कम है।.

• भारत में 15-19 साल के आयु वर्ग की 50 फीसदी से ज्यादा महिलायें रक्ताल्पता(एनीमिया) की शिकार हैं। इस आयु-वर्ग में तकरीबन 39 फीसदी महिलायें साधारण तौर पर एनीमियाग्रस्त हैं, 15 फीसदी महिलाओं में एनीमियाग्रस्तता मंझोले दर्जे की है जबकि कुल 2 फीसदी महिलायें गंभीर रुप से एनीमियाग्रस्त हैं।.

• बांग्लादेश, भारत और नाइजीरिया को एक साथ मिलाकर देखें तो किशोरवय में मां बनने वाली हर तीन महिला में से एक इन्हीं देशों से है।.

• भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है जबकि अमीर देशों में इस उम्र की तकरीबन 90 फीसदी महिलाओं को प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों की सहायता हासिल होती है।.

• भारत में अमीर परिवारों की तुलना में गरीब परिवारों में कम उम्र महिलाओं के 18 साल से कम उम्र में मां बनने की संभावना 7 गुना ज्यादा है।

• भारत में साल 2002-2010 की अवधि में 15-19 साल की उम्र के तकरीबन 57  फीसदी पुरुषों ने माना कि पत्नी को पति के द्वारा किन्हीं परस्थितियों में पीटना जायज है जबकि इसी अवधि में इसी उम्र की तकरीबन 53 फीसदी महिलाओं की मान्यता थी कि पत्नी का पति के हाथों प्रताडित होना किन्हीं परिस्थितियों में जायज है।.

• भारत में साल 2005-2010 के बीच 15-19 साल की तकरीबन 8 फीसदी महिलाओं के 15 साल से कम उम्र में यौन-संबंध बने जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 3 फीसदी पुरुषों के यौन-संबंध बने।.

• भारत में 15-19 साल की तकरीबन 19 फीसदी महिलाओं को साल 2005-2010 की अवधि में एड्स की समग्र जानकारी थी जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 35 फीसदी पुरुषों को एडस् की समग्र जानकारी थी।

• भारत में 15-19 साल की तकरीबन 30 फीसदी महिलायें वर्ष 2000-2010 की अवधि में या तो विवाहित थीं या उनके यौन-संबंध बन चुके थे।

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