http://www.booz.com/media/uploads/BoozCo_Empowering-the-Th
ird-Billion_Full-Report.pdf
-दुनिया
में 865 मिलियन महिलाएं अर्थव्यवस्था से बाहर हैं। इसमें 94 फीसद तादाद विकासशील
देशों की महिलाओं की है और 6 फीसद तादाद विकसित देशों की महिलाओं की।
-साल 2020
तक अर्थव्यवस्था के दरवाजे के बाहर खड़ी महिलाओं की संख्या 1 अरब हो जाएगी।
-अगर
महिलाओं के रोजगार की दर पुरुषों के रोजगार दर के बराबर हो तो भारत के सकल घरेलू
उत्पाद में 27 फीसदी का इजाफा हो सकता है।
-महिलाओं
और पुरुषों के रोजगार-दर में बराबरी लाकर संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र सरीखी
विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अपनी जीडीपी में क्रमश 12 और 34 फीसद का इजाफा कर सकती
हैं।
-आबादी के
मामले में दुनिया के देशों के बीच दूसरे नंबर पर मौजूद भारत का वैश्विक टैलेंट-पूल
में 14 फीसद का योगदान है।55 लाख महिलाएं हर साल भारतीय कार्यबल में शामिल होती
हैं।
-स्त्री-पुरुष
की समानता स्थापित करने वाली नीतियों के बावजूद हर साल हिन्दुस्तान में तकरीबन
1,000 महिलाएं “ ऑनर कीलिंग” का शिकार होती हैं।
-आर्थिक
मामलों में, भारत
स्त्री-पुरुष के बीच सर्वाधिक गैर-बराबरी वाले देशों में एक है। वर्ल्ड इकॉनॉमिक
फोरम के एक सर्वे(2010) में भारत के बारे में कहा गया कि अगर वरिष्ठ प्रबंधकीय
पदों की संख्या 10 हो तो उसमें 9 पर पुरुष मिलेंगे सिर्फ एक पर महिला।
-सरकार का
भी इस मामले में रिकार्ड अच्छा नहीं कहा जाएगा। भारत में सरकार के द्वारा बहुत से
ऐसे सामाजिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिसमें महिला कर्मचारी को न्यूनतम मजदूरी
से भी कम भुगतान दिया जाता है और इन कार्यक्रमों से जुड़ी महिला कर्मचारी को
रिटायर्मेंट, पेंशन या
स्वास्थ्य सुविधा के मद में भी कुछ हासिल नहीं होता।
-
रिपोर्ट
में कहा गया है- “अधिकतर
भारतीय महिलाओं को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, सामाजिक सेवा, परिवहन तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल नहीं है। अगर
भारत अपनी महिला आबादी को आर्थिक रुप से मजबूत बनाना चाहता है तो उसे इन बुनियादी
समस्याओं का समाधान करना चाहिए। हालांकि भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की
शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए अच्छा खासा जोर दिया गया है लेकिन भारत में
विनिर्माण का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और इसके लिए व्यवसायिक रुप से हुनरमंद
लोगों की जरुरत है जबकि देश की शिक्षा व्यवस्था इस मामले में मांग के अनुरुप
पूर्ति नहीं कर पा रही है।”
-रिपोर्ट के
अनुसार अर्थव्यवस्था के बाहर खड़ी महिलाओं के हाथ मजबूत करने के मामले में भारत का
स्थान 128 देशों के बीच 115 वां है जबकि चीन का 58 वां और ब्राजील का 46 वां।देश में साल 2011 में महिलाओं के साथ अपराध की कुल 228650 घटनाएं दर्ज हुईं जबकि साल 2010 में महिलाओं के साथ अपराध की कुल 213585 घटनाएं दर्ज हुई थीं।
• महिलाओं के साथ आपराधिक कर्म की
सर्वाधिक घटनाएं (12.7%) पश्चिम बंगाल से
प्रकाश में आईं जबकि त्रिपुरा में महिलाओं के साथ अपराधिक कर्म की दर(क्राईम रेट)
सर्वाधिक (37.0) रही।इस मामले में राष्ट्रीय औसत 18.9 का है।.
• महिलाओं के साथ आपराधिक कर्म का
प्रतिशत आईपीसी के अंतर्गत आने वाले कुल अपराधिक कृत्य की तादाद में पिछले पाँच
सालों में बढ़ा है। साल 2007 में महिलाओं पर
होने वाले अपराधों का प्रतिशत कुल अपराधों में अगर 8.8% था तो साल 2011 में 9.4% फीसदी।
• मध्यप्रदेश में महिलाओं के साथ
बलात्कार (3,406), छेड़खानी (6,665) और इम्पोर्टेशन (आईपीसी की धारा- 366-B) की घटनाएं (45) देश में सर्वाधिक
हुईं। इनका प्रतिशत क्रमश 14.1%, 15.5% और 56.3% रहा।
• आंध्रप्रदेश में महिलाओं के साथ
यौन-दुराचार की 42.7% (3,658) घटनाएं हुईं।
• महिलाओं के अपहरण 21.2%
(7,525) और उनकी देहज-हत्या के सर्वाधिक मामले 26.9%
(2,322) उत्तरप्रदेश में प्रकाश में आये।
• महिलाओं के साथ आपराधिक कृत्य के कुल
मामलों में 13.3% (4,489) दिल्ली में,
5.6% (1,890) बंगलुरु में और 5.5% (1,860) हैदराबाद में प्रकाश में आये।
( अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति से संबंधित इस रिपोर्ट के आंकड़े वेबसाइट के मानवाधिकार खंड में उपलब्ध हैं)
नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के नवीनतम क्राईम इन इंडिया-2011 नामक दस्तावेज के अनुसार-
प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन- अ रिपोर्टकार्ड ऑन
एडोलेसेंट(यूनिसेफ), नंबर 10,अप्रैल 2012 नामक दस्तावेज के अनुसार
http://www.unicef.org/media/files/PFC2012_A_report_card_on_adolescents.pdf:
• दुनिया की कुल आबादी में किशोरवय(10-19 वर्ष) व्यक्तियों की तादाद 1 अरब
20 करोड़ यानी 18 फीसदी है। किशोरवय कुल व्यक्तियों में आधे से अधिक एशिया
में रहते हैं। भारत में किशोरवय लोगों की तादाद 24 करोड़ 30 लाख है जो किसी
भी अन्य देश के किशोरवय लोगों की संख्या की तुलना में ज्यादा है। चीन में
किशोरवय लोगों की संख्या तकरीबन 20 करोड़ है।
• वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 1 करोड़ 40 लाख किशोरवय व्यक्ति सड़क-दुर्घटना, प्रसवजनित जटिलताओं, आत्महत्या, हिंसा, एड्स और अन्य कारणों से मौत का शिकार होते हैं।.
• साल 2010 में भारत में 10-19 साल की उम्र के व्यक्तियों की संख्या कुल आबादी में 20 फीसदी थी।
• भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं।.
• भारत में 15-19 वर्ष की तकरीबन 47 फीसदी महिलायें औसत से कम वज़न की हैं और उनका बॉडी मॉस इंडेक्स 18.5 से कम है।.
• भारत में 15-19 साल के आयु वर्ग की 50 फीसदी से ज्यादा महिलायें रक्ताल्पता(एनीमिया) की शिकार हैं। इस आयु-वर्ग में तकरीबन 39 फीसदी महिलायें साधारण तौर पर एनीमियाग्रस्त हैं, 15 फीसदी महिलाओं में एनीमियाग्रस्तता मंझोले दर्जे की है जबकि कुल 2 फीसदी महिलायें गंभीर रुप से एनीमियाग्रस्त हैं।.
• .बांग्लादेश, भारत और नाइजीरिया को एक साथ मिलाकर देखें तो किशोरवय में मां बनने वाली हर तीन महिला में से एक इन्हीं देशों से है।.
• भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है जबकि अमीर देशों में इस उम्र की तकरीबन 90 फीसदी महिलाओं को प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों की सहायता हासिल होती है।.
• भारत में अमीर परिवारों की तुलना में गरीब परिवारों में कम उम्र महिलाओं के 18 साल से कम उम्र में मां बनने की संभावना 7 गुना ज्यादा है।
• भारत में साल 2002-2010 की अवधि में 15-19 साल की उम्र के तकरीबन 57 फीसदी पुरुषों ने माना कि पत्नी को पति के द्वारा किन्हीं परस्थितियों में पीटना जायज है जबकि इसी अवधि में इसी उम्र की तकरीबन 53 फीसदी महिलाओं की मान्यता थी कि पत्नी का पति के हाथों प्रताडित होना किन्हीं परिस्थितियों में जायज है।.
• भारत में साल 2005-2010 के बीच 15-19 साल की तकरीबन 8 फीसदी महिलाओं के 15 साल से कम उम्र में यौन-संबंध बने जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 3 फीसदी पुरुषों के यौन-संबंध बने।.
• भारत में 15-19 साल की तकरीबन 19 फीसदी महिलाओं को साल 2005-2010 की अवधि में एड्स की समग्र जानकारी थी जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 35 फीसदी पुरुषों को एडस् की समग्र जानकारी थी।
• भारत में 15-19 साल की तकरीबन 30 फीसदी महिलायें वर्ष 2000-2010 की अवधि में या तो विवाहित थीं या उनके यौन-संबंध बन चुके थे।.
• वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 1 करोड़ 40 लाख किशोरवय व्यक्ति सड़क-दुर्घटना, प्रसवजनित जटिलताओं, आत्महत्या, हिंसा, एड्स और अन्य कारणों से मौत का शिकार होते हैं।.
• साल 2010 में भारत में 10-19 साल की उम्र के व्यक्तियों की संख्या कुल आबादी में 20 फीसदी थी।
• भारत में 20-24 साल की उम्र की 22 फीसदी महिलाएं साल 2000-2010 की अवधि में 18 साल से कम उम्र में मां बनीं।.
• भारत में 15-19 वर्ष की तकरीबन 47 फीसदी महिलायें औसत से कम वज़न की हैं और उनका बॉडी मॉस इंडेक्स 18.5 से कम है।.
• भारत में 15-19 साल के आयु वर्ग की 50 फीसदी से ज्यादा महिलायें रक्ताल्पता(एनीमिया) की शिकार हैं। इस आयु-वर्ग में तकरीबन 39 फीसदी महिलायें साधारण तौर पर एनीमियाग्रस्त हैं, 15 फीसदी महिलाओं में एनीमियाग्रस्तता मंझोले दर्जे की है जबकि कुल 2 फीसदी महिलायें गंभीर रुप से एनीमियाग्रस्त हैं।.
• .बांग्लादेश, भारत और नाइजीरिया को एक साथ मिलाकर देखें तो किशोरवय में मां बनने वाली हर तीन महिला में से एक इन्हीं देशों से है।.
• भारत में, गरीब परिवारों में 20 साल या इससे कम उम्र की तकरीबन 30 फीसदी माताओं को ही प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चकित्साकर्मियों की देखभाल मिल पाती है जबकि अमीर देशों में इस उम्र की तकरीबन 90 फीसदी महिलाओं को प्रसव के दौरान प्रशिक्षित चिकित्साकर्मियों की सहायता हासिल होती है।.
• भारत में अमीर परिवारों की तुलना में गरीब परिवारों में कम उम्र महिलाओं के 18 साल से कम उम्र में मां बनने की संभावना 7 गुना ज्यादा है।
• भारत में साल 2002-2010 की अवधि में 15-19 साल की उम्र के तकरीबन 57 फीसदी पुरुषों ने माना कि पत्नी को पति के द्वारा किन्हीं परस्थितियों में पीटना जायज है जबकि इसी अवधि में इसी उम्र की तकरीबन 53 फीसदी महिलाओं की मान्यता थी कि पत्नी का पति के हाथों प्रताडित होना किन्हीं परिस्थितियों में जायज है।.
• भारत में साल 2005-2010 के बीच 15-19 साल की तकरीबन 8 फीसदी महिलाओं के 15 साल से कम उम्र में यौन-संबंध बने जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 3 फीसदी पुरुषों के यौन-संबंध बने।.
• भारत में 15-19 साल की तकरीबन 19 फीसदी महिलाओं को साल 2005-2010 की अवधि में एड्स की समग्र जानकारी थी जबकि इसी अवधि में इसी उम्र के 35 फीसदी पुरुषों को एडस् की समग्र जानकारी थी।
• भारत में 15-19 साल की तकरीबन 30 फीसदी महिलायें वर्ष 2000-2010 की अवधि में या तो विवाहित थीं या उनके यौन-संबंध बन चुके थे।.
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