मंगलवार, 10 सितंबर 2013

पास विधयेक 2013


लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन और विधि मान्यकरण) विधेयक, 2013 के मुख्य बिंदु
संसद ने लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक-2013 को पारित कर दिया. लोकसभा ने इस विधेयक को 6 सितंबर 2013 को पारित किया था जबकि राज्यसभा ने इसे पहले ही अपनी मंजूरी प्रदान कर चुकी थी. यह विधेयक 10 जुलाई 2013 से लागू करने का निर्णय लिया गया.
 इस विधेयक के द्वारा जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के खंड 62 में संशोधन किया गया है. संशोधित कानून के अनुसार हिरासत या कैद में होने के बावजूद कोई व्यक्ति मतदाता बना रहेगा क्योंकि उसके मतदान के अधिकार को सिर्फ अस्थायी रूप से स्थगित किया गया है.
लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2013'' में जेल में बंद होने के दौरान चुनाव लड़ने तथा अपील के लंबित होने के दौरान सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने की अनुमति देने का प्रावधान है, लेकिन इस दौरान उन्हें मतदान और वेतन हासिल करने का अधिकार नहीं रहेगा.
विदित हो कि पटना उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा था कि हिरासत या कैद में किसी व्यक्ति को मतदान करने का अधिकार नहीं है. मतदाता नहीं होने के नाते वह संसद या विधानसभाओं के चुनाव भी नहीं लड़ सकता. सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई 2013 को अपने एक आदेश में पटना उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि की थी.

लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन और विधि मान्यकरण) विधेयक, 2013 को राज्यसभा में 30 अगस्त 2013 को पेश किया गया. कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने इस विधेयक को पेश किया. इसके जरिये वर्ष 1951 के मूल कानून में बदलाव किए जाने हैं. यदि यह विधेयक संसद से पारित होने के बाद कानून बन गया तो यह 10 जुलाई 2013 से लागू होना है. उसी दिन सर्वोच्च न्यायालय ने दो निर्णय दिए थे. इनके तहत दोषी साबित किए गए सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता को समाप्त करने तथा ऐसे लोगों के जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई. लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन और विधि मान्यकरण) विधेयक, 2013 का उद्देश्य इस विधेयक का उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों को निष्प्रभावी बनाने है जिसमें दोषी ठहराये गए सांसदों एवं विधायकों को फौरन अयोग्य घोषित करने और उनके चुनाव लड़ने पर रोक संबंधित व्यवस्था दी गई थी.
विधेयक पर केंद्र सरकार का मत विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों में कहा गया कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के उक्त आदेश की समीक्षा की है तथा भारत के एटार्नी जनरल से विचार विमर्श कर इस आदेश के खिलाफ पुनरीक्षा याचिका दायर की है. इसमें कहा गया कि इसके अतिरिक्त सरकार का यह मत है कि उक्त पुनरीक्षा याचिका के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से पैदा हुई स्थिति से उपयुक्त रूप से निबटने की जरूरत है. अत: उक्त कानून का संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया.
लोक प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन और विधि मान्यकरण) विधेयक, 2013 के मुख्य बिंदु इसमें प्रस्तावित है कि विधायक या विधान पार्षद को तब अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है जबकि वह दोषी साबित होने के 90 दिनों के भीतर अपील दाखिल कर देता है या फैसले पर स्थगन आदेश मिल जाता है.
जन प्रतिनिधि कानून में संशोधन के लिए लाए गए इस विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि दोषी ठहराये जाने के बाद कोई सांसद या विधायक को अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता बशर्ते कि उनकी अपील अदालत के सामने लंबित हो और फैसले पर स्थगनादेश दिया गया हो.
खाद्य सुरक्षा बिल का बेड़ा पार
खाद्य सुरक्षा बिल का बेड़ा पार
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संप्रग सरकार के लिए चुनाव जिताऊ दांव बताए जा रहे खाद्य सुरक्षा विधेयक पर संसद की मुहर लग गई। लोकसभा के बाद राज्यसभा ने भी सोमवार को इसे पारित कर दिया। राज्यसभा से इसके पारित होने के बाद देश की साठ फीसद से अधिक आबादी को सस्ता अनाज मुहैया कर भूख से निजात दिलाने की इस कोशिश को अब राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने भर की देर है।
विधेयक पर हुई बहस का जवाब देते हुए खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने यह भी स्पष्ट किया कि खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद यदि इससे बेहतर योजनाएं राज्यों में हैं तो वे भी लागू रहेंगी। विधेयक के प्रावधान राज्यों में मौजूद सस्ता अनाज उपलब्ध कराने की योजनाओं को सुरक्षित रखते हैं। नेता विपक्ष अरुण जेटली ने इस बारे में उनसे स्पष्टीकरण मांगा था। जेटली के एक अन्य सवाल पर थॉमस ने कहा कि राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन के सर्वेक्षण के आधार पर नए कानून का दायरा ग्रामीण क्षेत्र में 75 फीसद और शहरी क्षेत्र में 50 फीसद तक रखने का फैसला किया गया है।
खाद्य मंत्री ने विपक्ष की उन आलोचनाओं को खारिज कर दिया कि सरकार ने जल्दबाजी में इसे पेश किया है। उनका कहना था कि विधेयक को उनके मंत्रालय ने सभी राज्यों से पर्याप्त मशविरे के बाद पेश किया है। वामपंथी सांसदों की ओर से खाद्यान्न सुरक्षा को सभी के लिए लागू करने की मांग का जवाब देते हुए खाद्य मंत्री ने कहा, सरकार कुल खाद्यान्न उत्पादन का 30 फीसद खरीद रही है। ऐसे में मौजूदा क्षमताओं का आकलन करने के बाद ही सीमाओं को तय किया गया है। गौरतलब है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत देश की करीब 67 प्रतिशत आबादी को दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल दिया जाना है। विधेयक को लोकसभा की मंजूरी पहले ही मिल चुकी है। इससे पहले विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के एम वेंकैया नायडू ने पूछा कि सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने तो जा रही है, लेकिन खेती को बचाने और किसानों के हितों के लिए वह क्या उपाय कर रही है? खाद्य सुरक्षा के लिए 35 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी, यदि उतना नहीं हुआ तो क्या सरकार उसके लिए भी आयात करेगी। उन्होंने यह भी पूछा कि खराब अर्थ व्यवस्था में वह सब्सिडी के लिए धन कहां से जुटाएगी? बसपा प्रमुख मायावती ने विधेयक का समर्थन तो किया, लेकिन यह भी कहा कि सरकार इसे लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर आई है। उसे मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर उन्हें भी विश्वास में लेना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने खाद्य सुरक्षा के तहत चावल, गेहूं के अलावा दाल, मोटा अनाज, खाद्य तेल भी दिए जाने की पैरवी की। सपा के नरेश अग्रवाल ने विधेयक का समर्थन करने के साथ यह भी जोड़ा कि यह खाद्य सुरक्षा नहीं, बल्कि 'वोट विधेयक' है। इससे गरीबों को कोई फायदा नहीं होगा। विधेयक लाने से पहले केंद्र को इस पर राज्यों से विस्तृत विचार-विमर्श करना चाहिए था। माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि यदि सरकार वाकई लोगों को खाद्य सुरक्षा पर गंभीर है तो उसे इसमें पूरे देश को शामिल करना चाहिए। जो राज्य सरकारें केंद्र की इस योजना से भी कम मूल्य में खाद्यान्न उपलब्ध करा रही हैं, उनकी योजनाओं को रोका नहीं जाना चाहिए। जदयू के वशिष्ट नारायण सिंह ने कहा कि खाद्य सुरक्षा का पूरा खर्च केंद्र को उठाना चाहिए क्योंकि बिहार जैसा राज्य इसके लिए अलग से धन खर्च करने की स्थिति में नहीं है।
पेंशन बिल लोस में पारित
पेंशन बिल लोस में पारित जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। करीब नौ साल से लंबित पेंशन सुधारों पर सरकार ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है। बुधवार को लोकसभा में पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी बिल 2011 पारित हो गया। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने वामपंथी समेत तमाम दलों की इन आशंकाओं को खारिज कर दिया कि नई पेंशन व्यवस्था में सुनिश्चित रिटर्न की सुविधा नहीं है। उन्होंने कहा कि एनपीएस में शामिल होने वाले कर्मचारी सरकारी बांडों में निवेश करने वाले फंड का चयन कर सेवानिवृत्ति के बाद सुनिश्चित रिटर्न का विकल्प चुन सकते हैं। पीएफआरडीए ऐसी स्कीमों को अलग से अधिसूचित भी कर सकता है।  लोकसभा में करीब साढ़े तीन घंटे हुई चर्चा के बाद सदन ने पीएफआरडीए विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। हालांकि वामपंथी दलों और बीजद सदस्यों द्वारा कुछ संशोधनों का प्रस्ताव किया गया, लेकिन सदन ने इन्हें नकार दिया। वित्त मंत्री ने चर्चा के जवाब में कहा कि देश में अब तक नई पेंशन व्यवस्था के तहत 26 राज्य जुड़ चुके हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को पेंशन लाभ देने में मदद मिलेगी।  बुधवार को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बिल को सदन के पटल पर रखा। सरकार को इस बिल को पास कराने में खास मुश्किल नहीं हुई। भाजपा पहले ही पेंशन बिल का समर्थन कर चुकी थी। पार्टी ने पेंशन बिल में कुछ संशोधन सुझाए थे, जिन्हें सरकार ने मान लिया था। वित्त मंत्री ने कहा भी कि सरकार ने वित्त पर संसद की स्थायी समिति की तकरीबन सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। इन सिफारिशों को विधेयक में संशोधन के तौर पर सरकार ने शामिल किया। सरकार का कहना है कि नई पेंशन व्यवस्था 'कमाई के साथ बचत भी' के सिद्धांत पर आधारित है।  विधेयक में 26 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रावधान भी है। साथ ही पेंशन फंड मैनेजरों में कम से कम एक प्रबंधक सार्वजनिक उपक्रम का होना भी अनिवार्य रखा गया है। पहली जनवरी 2004 के बाद केंद्रीय सेवा में शामिल हुए सभी लोगों के लिए एनपीएस अनिवार्य है। देश भर में अभी 52.83 लाख उपभोक्ता पंजीकृत हैं और इसका कोष लगभग 35,000 करोड़ रुपये का है। विधेयक पारित होने के बाद पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथारिटी को वैधानिक दर्जा मिल जाएगा। वित्त मंत्री ने कहा कि यह विधेयक निवेशकों को अपने फंड के निवेश के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध कराएगा।
पेंशन कोष नियामक और विकास प्राधिकरण विधेयक, 2011 लोकसभा में पारित
लोकसभा ने पेंशन कोष नियामक तथा विकास प्राधिकरण विधेयक-2011 को 4 सितम्बर 2013 को पारित कर दिया. इससे पहले इसे 24 मार्च 2011 को संवैधानिक नियामक संस्था पेंशन कोष नियामक तथा विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) बनाने हेतु लोकसभा में पेश किया गया था. यह विधेयक नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के नियमन का अधिकार पीएफआरडीए को देता है. लोकसभा में एक विधेयक के पक्ष में 174 और विपक्ष में 33 वोट पड़े. पेंशन कोष नियामक और विकास प्राधिकरण विधेयक, 2011 का उद्देश्य इस विधेयक के जरिये पेंशन निधि विनियामक एवं विकास प्राधिकरण को पेंशन के मामलें में वैधानिक अधिकार प्राप्त होना है. फिलहाल इसका दर्जा गैर वैधानिक है. नई पेंशन प्रणाली धन अर्जन के साथ धन बचत के सिद्धांत पर आधारित है. यह विशेष रूप से अवकाश प्राप्ति हेतु है और उनके लिए जिनकी नियमित आय है. विधेयक में शामिल कुछ प्रमुख प्रस्ताव न्यूनतम निश्चित लाभ की इच्छा रखने वाले उपभोक्ताओं को प्राधिकरण द्वारा अधिसूचित न्यूनतम निश्चित लाभ योजनाओं में अपने धन के निवेश का विकल्प होना है.
उपभोक्ताओं को व्यक्तिगत पेंशन खाते से धन की निकासी की सशर्त अनुमति दी जानी है. इन शर्तों में धन निकासी का उद्देश्य, सीमा तथा तेजी शामिल है.
पेंशन क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 26 प्रतिशत या बीमा क्षेत्र के लिए ऐसा स्वीकृत प्रतिशत जो भी अधिक हो.
पेंशन फंड मैनेजरों में से कम से कम एक सार्वजनिक क्षेत्र से होना है.
पीएफआरडीए कानून के तहत नियम बनाने जैसे महत्त्वपूर्ण मामलों पर पीएफआरडीए को सलाह देने के लिए एक पेंशन सलाहकार समिति स्थापित की जानी है, जिसमें सभी हितधारकों का प्रतिनिधित्व होना है.
विधेयक में उपभोक्ताओं को अपने धन का निवेश करने के व्यापक विकल्प दिए जाने है.
इनमें सरकारी बॉण्ड में निवेश का विकल्प तथा उनकी जोखिम क्षमता के अनुरूप अन्य कोष में निवेश का विकल्प भी होना है.
नई पेंशन प्रणाली 1 जनवरी 2004 को सेवा में प्रवेश करने वाले केंद्र सरकार के सभी कर्मचारियों (सशस्त्र सेनाओं को छोड़ कर) के लिए अनिवार्य बनाई गई है.



नयी दिल्ली, तीन सितंबर (एजेंसी) सदियों से देश पर कलंक बनी हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए लोकसभा में आज एक महत्वपूर्ण विधेयक पेश किया गया। इस विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन संज्ञेय अपराध तथा गैर जमानती होगा। कोल ब्लाक आवंटन मुद्दे को लेकर भाजपा सदस्यों के भारी हंगामे के बीच सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक ने ‘‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास विधेयक 2012’’ को पेश किया। विधेयक के कारणों और उद्देश्यों में कहा गया है कि हाथ से मैला उठाने की अमानवीय पद्धति का शमन करने के लिए पूर्व में किए गए योजनाबद्ध प्रयासों के बावजूद यह पद्धति अभी भी देश के विभिन्न भागों में जारी है।
इसमें आगे कहा गया है कि मौजूदा विधियां अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला उठाने की दोहरी बुराइयों का शमन करने में पर्याप्त साबित नहीं हुई हैं। ये बुराइयां संविधान प्रदत्त गरिमा से रहने के अधिकार के विपरीत
हैं।
विधेयक आगे कहता है कि इन बुराइयों की वजह से इस काम में लगे कर्मियों के लिए भी यह एक गंभीर स्वास्थ्य संकट और उनकी सेहत के लिए बड़ी समस्या है।     विधेयक कहता है , ‘‘ यह भी महसूस किया गया है कि मौजूदा विधियां इन बुरी पद्धतियों का शमन करने के लिए पर्याप्त रूप से कड़ी नहीं हैं। इसी के मद्देनजर हाथ से मैला उठाने के काम में लोगों को लगाने पर रोक तथा मलनालियों और मल विगलन कुंडों की हाथ से हानिकारक सफाई करने के कार्य को बंद करने , हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों और उनके कुटुंबों का पुनर्वास करने तथा उससे संबंधित अन्य मामलों के लिए व्यापक और कड़े उपबंध किए जाने की जरूरत है। ’’
विधेयक में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य सरकार इस कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक उपखंड में एक सतर्कता समिति का गठन करेगी और कानून का उल्लंघन संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आएगा तथा ऐसे दोषियों को जमानत भी नहीं मिलेगी।

मैला ढोने वालों की सुध ली संसद ने
(02:35:00 AM) 07, Sep, 2013, Saturday


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नयी दिल्ली !   हाथ से मैला ढोने की प्रथा के निवारण तथा मैलाकर्मियों  के पुनर्वास के उद्देश्य से लाये गये विधेयक को आज लोकसभा ने मंजूरी दे दी।
    ...
हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास विधेयक..2012...नामक विधेयक को संक्षिप्त चर्चा के बाद ध्वनिमत से मंजूर कर लिया गया।
   
यह विधेयक सूखे शौचालयो पर रोक लगाने...हाथ से मैला ढोने की प्रथा पर रोक लगाने...मैला उठाने वाले र्कमियो के पुनर्वास एवं रोजगार तथा मैला र्कमियो को सम्मान के साथ जीवन जीने का हक दिलाने के उद्देश्य से लाया गया है।
      
विधेयक पर हुयी संक्षिप्त चर्चा का जवाब देते हुये सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री कुमारी शैलजा ने कहा कि पहले इस बारे मे जो कानून था वह इसलिये क्रियान्वित नहीं हो पाया कि ज्यादातर राज्यो का कहना था कि उनके यहां हाथ से मैला ढोने की प्रथा ही नहीं है.. लेकिन राज्यो के ऐसे दावो के बावजूद सच्चाई यह है कि हमारे देश मे यह प्रथा कायम है और इसमे कई लाख लोग संलग्न है। उन्होने कहा कि केवल नकारने से यह शर्मनाक प्रथा समाप्त नहीं होगी बल्कि हमे इस कंलक को स्वीकारना होगा और उसके बाद कलंक को खत्म करने के लिये ठोस कदम उठाने होगे।
   
चर्चा मे भाग लेते हुये भारतीय जनता पार्टी के अर्जुन राम मेघवाल ने हाथ से मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने मे स्वयंसेवी संस्थाओ की मदद लेने की जरूरत पर बल देते हुये कहा कि इस सिलसिले मे डा. बिदेश्वरी पाठक के नेतृत्व मे काम करने वाली संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने प्रशंसनीय कार्य किया है। उन्होने कहा कि मैला र्कमियो के पुनवार्स के अलावा उनकी मकान की समस्या को दूर करने के लिये भी कदम उठाया जाना चाहिये।
   
समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि मैलाकर्मियों को ठेके के बजाय पक्की नौकरी दी जाये और उनके बच्चो के लिये शिक्षा का इंतजाम हो। उन्होने कहा इनके लिये हमारा नारा होना चाहिये..झाडू छोडो..कलम उठाओ..1
   
चर्चा मे बहुजन समाज पार्टी के डा. बलिराम, जद..यू..के महेश्वर हजारे, तृूणमूल कांग्रेस की रत्ना डी नाग..डीएमके के अदनी शंकर ...माकपा की सुस्मिता वाउरी...बीजू जनता दल के मोहन जेना ...राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी..के संजीव गणेश नायक..तेलुगू देशमपार्टी के नमा नागेश्वर राव..भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रबोध पांडा और राष्ट्रीय जनता दल के जय नारायण निषाद ने भी हिस्सा लिया।



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