आठवीं ऐनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन
रिपोर्ट(जारी 17 जनवरी 2013) की मुख्य बातें-
http://img.asercentre.org/docs/Publications/ASER%20Reports
/ASER_2012/nationalfinding.pdf
http://img.asercentre.org/docs/Publications/ASER%20Reports
/ASER_2012/fullaser2012report.pdf
-- कुल मिलाकर 6-14 आयु-वर्ग के बच्चों के नामांकन की दर 96 फीसदी से अधिक बनी हुई है। सभी राज्यों में निजी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है।
-- ग्रामीण भारत में 6-14 आयु-वर्ग के बच्चों की नामांकन दर ऊच्च बनी हुई है। 2012 में ग्रामीण भारत में इस आयु वर्ग के 96.5 फीसदी से भी अधिक बच्चे स्कूलों में नामांकित थे। यह लगातार चौथा वर्ष है जब नामांकन दर 96 फीसदी या उससे अधिक है।
-- राष्ट्रीय स्तर पर 6-14 आयु वर्ग में उन बच्चों का अनुपात जो किसी स्कूल में नामांकित नहीं कुछ बढ़ा है। जहां 2011 में 3.3 फीसदी था वहीं 2012 में बढ़कर यह 3.5 फीसदी हो गया । यह बढ़ोत्तरी 11-14 आयु-वर्ग की लड़कियों के लिए सर्वाधिक है, इस वर्ग के लिए अनामांकित बच्चों का प्रतिशत 2011 में 5.2 फीसदी था जो साल 2012 में बढ़कर 6 फीसदी पर पहुंच गया।
-- राजस्थान और उत्तरप्रदेश में 11-14 आयु वर्ग की लड़कियों में उन लड़कियों का प्रतिशत जो स्कूल में नामांकित नहीं थीं, 2011 में क्रमश 8.9 फीसदी और 9.7 फीसदी था जो साल 2012 में भड़कर 11 फीसदी से अधिक हो गया।
-- राष्ट्रीय स्तर पर, 6-14 आयु-वर्ग के लिए निजी स्कूलों में नामांकन साल दर साल बढ़ा है। साल 2006 में सौ में अगर 18.7 बच्चे निजी स्कूलों में जा रहे थे तो साल 2012 में 28.3 फीसदी बच्चे निजी स्कूलों में जाने लगे। यानि बीते तीन सालों में निजी स्कूलों में दाखिले की दर 10 फीसदी प्रतिवर्ष रही है।
-- निजी स्कूलों में नामांकन में बढोत्तरी करीब-करीब सभी राज्यों में देखने को मिल रही है। 2012 में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गोवा और मेघालय में 6-14 आयुवर्ग के 40 फीसदी से अधिक बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित थे। केरल और मणिपुर के लिए यह प्रतिशत 60 से ज्यादा था।
-- देश के ग्रामीण हिस्से में, प्रारंभिक स्तर पर यानि कक्षा 1-8 के करीब एक चौथाई बच्चे चाहे वे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हों या सरकारी स्कूलों में, पैसे देकर निजी ट्यूशन के लिए जाते हैं। सामान्यतया जो बच्चे ट्यूशन हासिल करते हैं उनका शिक्षण-स्तर उन बच्चों से बेहतर था जो ट्यूशन हासिल नहीं कर रहे थे
-- 2010 में राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा 5 के आधे से अधिक (53.7 फीसदी) विद्यार्थी कक्षा 2 के स्तर का पाढ़ पढ़ पाने में सक्षम थे और ऐसे बच्चों का अनुपात गिरकर साल 2011 में 48.2 फीसदी पहुंचा तो साल 2012 में 46 फीसदी। पढ़ाई लिखाई के बुनियादी कौशल के मामले में गिरावट निजी स्कूलों में जा रहे बच्चों की तुलना में सरकारी स्कूलों में दिखाई दे रही है। सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 के उन बच्चों का प्रतिशत जो कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं 2010 में 50.7 फीसदी था जो साल 2012 में गिरकर 41.7 फीसदी हो गया।
-- 2011 और 2012 के बीच कक्षा 5 में पढ़ने वाले सभी बच्चों के लिए, हरियाणा, बिहार मध्यप्रदेश महाराष्ट्र और केरल में पढ़ने के स्तर में बड़ी गिरावट(5 फीसदी प्वाईंट) देखी गई। महाराष्ट्र और केरल में तो निजी स्कूलों में जिनमें बड़े अनुपात में सहायता प्राप्त करने वाले स्कूल भी शामिल हैं, कक्षा 5 में पढ़ने की क्षमता में गिरावट दिखा रहे हैं।
-- 2012 को भारत में गणित के वर्ष के रुप में मनाया गया परन्तु भारतीय बच्चों के लिए बुनियादी गणित के मान से यह वर्ष खराब रहा। 2010 में 10 में 7(70.9 फीसदी) कक्षा 5 में नामांकित बच्चे दो अंकों का घटाव(जिसमें हासिल लेना पड़ता हो) कर सकते थे। 2011 में यह अनुपात घटकर 10 में 6(61 फीसदी) और 2012 में गिरकर 10 में से 5(53.5फीसदी) हो गया है। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल को छोड़कर हर बड़ा राज्य गणित कर पाने के स्तरों में भारी गिरावट के संकेत दिखा रहा है।
-- 2011 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चों और 2012 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चों की तुलना करें तो लगभग सभी राज्यों में बुनियादी घटाव करने की क्षमता में 10 प्रतिशत बिन्दु से अधिक की गिरावट देखा जा सकती है। इसमें अपवाद हैं बिहार, असम और तमिलनाडु जहां गिरावट कम है, आंध्रप्रदेश कर्नाटक और केरल में या तो 2011 की तुलना में सुधार हुआ है या खोई खास बढलाव नहीं हुआ है।
-- भारत में छोटे स्कूलों का अनुपात बढ़ रहा है। असर 2012 के दौरान कुल 14591 स्कूलों का अवलोकन किया गया। समय के साथ सरकारी प्राथमिक विद्याल्यों में 60 या उससे कम नामांकन वाले सरकारी प्राथमिक स्कूलो का अनुपात बढ़ा है। 2009 में यह 26.1 फीसदी था जो साल 2012 में बढ़कर 32.1 फीसदी हो गया।
-- प्राथमिक कक्षाओं में उन बच्चों का अनुपात भी बढ़ रहा है जो मल्टीग्रेड कक्षाओं में बैठते हैं। कक्षा 2 के लिए यह प्रतिशत 2009 में 55.8 था जो साल 2012 में बढ़कर 62.6 फीसदी हो गया। क्क्षा 4 के लिए यह प्रतिशत 2010 में 51 फीसदी से बढ़कर 2012 में 56.6 फीसदी हो गया है।
-- शिक्षा के अधिकार के मानकों के आधार पर छात्र शिक्षक अनुपात में समय के साथ सुधार दिख रहा है। 2010 में उन स्कूलों का अनुपात जो छात्र-शिक्षक अनुपात के मानको को पूरा कर रहे थे 38.9 फीसदी था जो साल 2012 में बढ़कर 42.8 फीसदी हो गया।
-- राष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों में सुविधाओं में भी समय के साथ सुधार दिख रहा है। स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता में सुधार स्पष्ट दिख रहा है- 2012 में अवलोकित सभी स्कूलों में 73 फीसदी स्कूलों में पेयजल उपलब्ध था। उन विद्यालयों का अनुपात जिनमें उपयोग करने योग्य शौचालय है 2010 में 47.2 फीसदी से बढ़कर साल 2012 में 56.5 फीसदी हो गया है। अवलोगन किए गए स्कूलों में लगभग 80 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था थी। अवलोगन किए गए स्कूलों में 87.1 फीसदी स्कूलों में सर्वे के दिन देखा गया कि मध्याह्न भोजन दिया जा रहा है।
http://img.asercentre.org/docs/Publications/ASER%20Reports
/ASER_2012/nationalfinding.pdf
http://img.asercentre.org/docs/Publications/ASER%20Reports
/ASER_2012/fullaser2012report.pdf
-- कुल मिलाकर 6-14 आयु-वर्ग के बच्चों के नामांकन की दर 96 फीसदी से अधिक बनी हुई है। सभी राज्यों में निजी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है।
-- ग्रामीण भारत में 6-14 आयु-वर्ग के बच्चों की नामांकन दर ऊच्च बनी हुई है। 2012 में ग्रामीण भारत में इस आयु वर्ग के 96.5 फीसदी से भी अधिक बच्चे स्कूलों में नामांकित थे। यह लगातार चौथा वर्ष है जब नामांकन दर 96 फीसदी या उससे अधिक है।
-- राष्ट्रीय स्तर पर 6-14 आयु वर्ग में उन बच्चों का अनुपात जो किसी स्कूल में नामांकित नहीं कुछ बढ़ा है। जहां 2011 में 3.3 फीसदी था वहीं 2012 में बढ़कर यह 3.5 फीसदी हो गया । यह बढ़ोत्तरी 11-14 आयु-वर्ग की लड़कियों के लिए सर्वाधिक है, इस वर्ग के लिए अनामांकित बच्चों का प्रतिशत 2011 में 5.2 फीसदी था जो साल 2012 में बढ़कर 6 फीसदी पर पहुंच गया।
-- राजस्थान और उत्तरप्रदेश में 11-14 आयु वर्ग की लड़कियों में उन लड़कियों का प्रतिशत जो स्कूल में नामांकित नहीं थीं, 2011 में क्रमश 8.9 फीसदी और 9.7 फीसदी था जो साल 2012 में भड़कर 11 फीसदी से अधिक हो गया।
-- राष्ट्रीय स्तर पर, 6-14 आयु-वर्ग के लिए निजी स्कूलों में नामांकन साल दर साल बढ़ा है। साल 2006 में सौ में अगर 18.7 बच्चे निजी स्कूलों में जा रहे थे तो साल 2012 में 28.3 फीसदी बच्चे निजी स्कूलों में जाने लगे। यानि बीते तीन सालों में निजी स्कूलों में दाखिले की दर 10 फीसदी प्रतिवर्ष रही है।
-- निजी स्कूलों में नामांकन में बढोत्तरी करीब-करीब सभी राज्यों में देखने को मिल रही है। 2012 में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गोवा और मेघालय में 6-14 आयुवर्ग के 40 फीसदी से अधिक बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित थे। केरल और मणिपुर के लिए यह प्रतिशत 60 से ज्यादा था।
-- देश के ग्रामीण हिस्से में, प्रारंभिक स्तर पर यानि कक्षा 1-8 के करीब एक चौथाई बच्चे चाहे वे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हों या सरकारी स्कूलों में, पैसे देकर निजी ट्यूशन के लिए जाते हैं। सामान्यतया जो बच्चे ट्यूशन हासिल करते हैं उनका शिक्षण-स्तर उन बच्चों से बेहतर था जो ट्यूशन हासिल नहीं कर रहे थे
-- 2010 में राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा 5 के आधे से अधिक (53.7 फीसदी) विद्यार्थी कक्षा 2 के स्तर का पाढ़ पढ़ पाने में सक्षम थे और ऐसे बच्चों का अनुपात गिरकर साल 2011 में 48.2 फीसदी पहुंचा तो साल 2012 में 46 फीसदी। पढ़ाई लिखाई के बुनियादी कौशल के मामले में गिरावट निजी स्कूलों में जा रहे बच्चों की तुलना में सरकारी स्कूलों में दिखाई दे रही है। सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 के उन बच्चों का प्रतिशत जो कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं 2010 में 50.7 फीसदी था जो साल 2012 में गिरकर 41.7 फीसदी हो गया।
-- 2011 और 2012 के बीच कक्षा 5 में पढ़ने वाले सभी बच्चों के लिए, हरियाणा, बिहार मध्यप्रदेश महाराष्ट्र और केरल में पढ़ने के स्तर में बड़ी गिरावट(5 फीसदी प्वाईंट) देखी गई। महाराष्ट्र और केरल में तो निजी स्कूलों में जिनमें बड़े अनुपात में सहायता प्राप्त करने वाले स्कूल भी शामिल हैं, कक्षा 5 में पढ़ने की क्षमता में गिरावट दिखा रहे हैं।
-- 2012 को भारत में गणित के वर्ष के रुप में मनाया गया परन्तु भारतीय बच्चों के लिए बुनियादी गणित के मान से यह वर्ष खराब रहा। 2010 में 10 में 7(70.9 फीसदी) कक्षा 5 में नामांकित बच्चे दो अंकों का घटाव(जिसमें हासिल लेना पड़ता हो) कर सकते थे। 2011 में यह अनुपात घटकर 10 में 6(61 फीसदी) और 2012 में गिरकर 10 में से 5(53.5फीसदी) हो गया है। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल को छोड़कर हर बड़ा राज्य गणित कर पाने के स्तरों में भारी गिरावट के संकेत दिखा रहा है।
-- 2011 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चों और 2012 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चों की तुलना करें तो लगभग सभी राज्यों में बुनियादी घटाव करने की क्षमता में 10 प्रतिशत बिन्दु से अधिक की गिरावट देखा जा सकती है। इसमें अपवाद हैं बिहार, असम और तमिलनाडु जहां गिरावट कम है, आंध्रप्रदेश कर्नाटक और केरल में या तो 2011 की तुलना में सुधार हुआ है या खोई खास बढलाव नहीं हुआ है।
-- भारत में छोटे स्कूलों का अनुपात बढ़ रहा है। असर 2012 के दौरान कुल 14591 स्कूलों का अवलोकन किया गया। समय के साथ सरकारी प्राथमिक विद्याल्यों में 60 या उससे कम नामांकन वाले सरकारी प्राथमिक स्कूलो का अनुपात बढ़ा है। 2009 में यह 26.1 फीसदी था जो साल 2012 में बढ़कर 32.1 फीसदी हो गया।
-- प्राथमिक कक्षाओं में उन बच्चों का अनुपात भी बढ़ रहा है जो मल्टीग्रेड कक्षाओं में बैठते हैं। कक्षा 2 के लिए यह प्रतिशत 2009 में 55.8 था जो साल 2012 में बढ़कर 62.6 फीसदी हो गया। क्क्षा 4 के लिए यह प्रतिशत 2010 में 51 फीसदी से बढ़कर 2012 में 56.6 फीसदी हो गया है।
-- शिक्षा के अधिकार के मानकों के आधार पर छात्र शिक्षक अनुपात में समय के साथ सुधार दिख रहा है। 2010 में उन स्कूलों का अनुपात जो छात्र-शिक्षक अनुपात के मानको को पूरा कर रहे थे 38.9 फीसदी था जो साल 2012 में बढ़कर 42.8 फीसदी हो गया।
-- राष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों में सुविधाओं में भी समय के साथ सुधार दिख रहा है। स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता में सुधार स्पष्ट दिख रहा है- 2012 में अवलोकित सभी स्कूलों में 73 फीसदी स्कूलों में पेयजल उपलब्ध था। उन विद्यालयों का अनुपात जिनमें उपयोग करने योग्य शौचालय है 2010 में 47.2 फीसदी से बढ़कर साल 2012 में 56.5 फीसदी हो गया है। अवलोगन किए गए स्कूलों में लगभग 80 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था थी। अवलोगन किए गए स्कूलों में 87.1 फीसदी स्कूलों में सर्वे के दिन देखा गया कि मध्याह्न भोजन दिया जा रहा है।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में
नामांकनों की संख्या में तेज बढ़त
·
ग्रामीण भारत में 6-14 साल की उम्र के 96.7% बच्चे
स्कूलों में नामांकित हैं। साल 2010 से इस संख्या में खूब
तेज बढ़त हुई है।
·
साल 2006 में जिन राज्यों में 11-14 साल की उम्र की स्कूल-वंचित
लड़कियों की संख्या ज्यादा(10 फीसदी से अधिक) थी, उन राज्यों ने लड़कियों के
स्कूली दाखिले के मामले में अच्छी प्रगति की है। मिसाल
के लिए बिहार में साल 2006 में स्कूल वंचितों की तादाद 17.6% थी जो साल 2011 में घटकर 4.3% रह
गयी। राजस्थान में साल 2006 में यह संख्या 18.9% थी जो साल 2011 में घटकर 8.9% पर
आ गई है। ठीक ऐसे ही यूपी के मामले में यह संख्या साल 2006 में 11.1% थी
जो 2011 में घटकर 9.7% रह
गई है।
·
पाँच साल की उम्र वाले बच्चों की बड़ी संख्या फिलहाल
स्कूलों में नामांकित है। पाँच साल की उम्र के
स्कूल-दाखिल बच्चों की संख्या अखिल भारतीय स्तर पर साल
2011 में
57.8% है। राज्यवार
इस आंकड़े में बड़ी भिन्नता है। नगालैंड में यह तादाद 87.1% है
तो कर्नाटक में
18.8%।
अधिकतर राज्यों में निजी
स्कूलों में दाखिले का चलन बढ़ा है-
·
6-14 साल की उम्र वाले बच्चों के
मामले में राष्ट्रीय स्तर पर निजी स्कूलों में दाखिले का चलन साल दर साल बढ़ रहा
है।साल 2006 में अगर निजी स्कूलों में इस आयुवर्ग के 18.7% बच्चे
निजी स्कूलों में नामांकित थे तो साल 2011 में 25.6%। बिहार को छोड़कर बाकी राज्यों
में यह रुझान जारी है।
·
उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र,
आंध्रप्रदेश, केरल, मणिपुर और मेधालय में गुजरे पाँच सालों में निजी स्कूलों में
दाखिले के मामले में प्रतिशत पैमाने पर 10 अंकों की बढ़ोतरी हुई है।
·
ASER
2011 के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा, उत्तरप्रदेश, नगालैंड, मेघालय, पंजाब,
जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड,महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के ग्रामीण इलाकों
में 30-50 फीसद बच्चे निजी श्रेणी के स्कूलों में नामांकित हैं।
पठन की बुनियादी क्षमता के
मामले में कई राज्यों में कमी के रुझान हैं-
·
राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो उत्तर भारत के कई राज्यों में
पठन की योग्यता के मामले में गिरावट आई है। अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो साल 2010
में ऐसे बच्चों की तादाद 53.7%
थी जो Std V में
थे लेकिन
Std 2 की
किताबों को बढ़ सकते थे। साल 2011 में ऐसे बच्चों की तादाद घटकर 48.2% हो
गई है। दक्षिण भारत के राज्यों में ऐसी गिरावट के रुझान नहीं हैं।
·
इस मामले में कुछ राज्यों से अच्छी खबर भी है। गुजरात,पंजाब
और तमिलनाडु कक्षा 2 की किताबों को पढ़-समझ सकने की योग्यता रखने वाले कक्षा पाँच में
दाखिल विधार्थियों का प्रतिशत 2010 की तुलना में 2011 में बढ़ा है। पूर्वोत्तर
के कई राज्यों में इस मामले में सकारात्मक रुझान हैं।कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में
इस मामले में आंकड़े में कोई तबदीली नहीं आई है।
अधिकतर राज्यों में गणित करने
की क्षमता के मामले में गिरावट के रुझान हैं-
·
गणित करने की बुनियादी क्षमता की जांच के मामले में ASER 2011 के
आकलन कहते हैं कि इसमें गिरावट आई है। मिसाल के लिए, साल 2010 में कक्षा 3 के 36.3% विद्यार्थी दो अंकों के घटाव
का गणित (जिसमें हासिल लेना पड़ता हो) सफलता पूर्वक करते पाये गए जबकि साल 2011
में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या घटकर 29.9% पर आ गई है। साल 2010 में इसी
स्तर के घटाव का गणित करने वाले कक्षा पाँच के विद्यार्थियों की संख्या राष्ट्रीय
स्तर पर 70.9% थी
जो साल 2010 में
61.0% पर
आ गई है।.
·
गणित कर सकने की क्षमता में कमी का यह रुझान सभी राज्यों
में देखा जा सकता है। सिर्फ आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में साल 2010 के
मुकाबले 2011 में आंकड़े में इजाफा हुआ है। पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस मामले
में सकारात्मक रुझान देखने को मिले जबकि गुजरात में 2010 के मुकाबले 2011 में
साधारण गणित कर सकने की क्षमता में कोई बदलाव नहीं आया है।
स्कूलों के सर्वेक्षण के आधार
पर उनके बारे में तैयार किए गए कुछ निष्कर्ष-
बच्चों की उपस्थिति घटी है-
·
अखिल भारतीय स्तर पर साल 2007 में कक्षाओं में बच्चों की
उपस्थिति
73.4% थी जो साल 2011 में घटकर 70.9% पर आ गई है( ग्रामीण भारत के
प्राथमिक विद्यालयों में)
·
कुछ राज्यों में कक्षाओं में बच्चों की उपस्थिति में भारी
गिरावट आई है, मिसाल के लिए बिहार में प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति
साल 2007 में 59.0% थी
जो साल 2011 में घटकर 50.0% पर आ गई। मध्यप्रदेश
में साल 2007 में यह आंकड़ा 67.0% का था जो साल 2011 में घटकर 54.5% पर
आ गया जबकि उत्तरप्रदेश में 64.4% (2007) से घटकर 57.3% (2011) पर।
कक्षा 2 और कक्षा 4 के आधे से
अधिक विद्यार्थी एक साथ किसी अन्य कक्षा में बैठते हैं-
·
स्कूलों के सर्वेक्षण के दौरान ASER ने
अपना ध्यान कक्षा
2 और 4 के
विद्यार्थियों पर केंद्रित किया और जानना चाहा कि इन कक्षाओं के विद्यार्थी कहां
बैठते हैं।
·
राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो, ग्रामीण भारत के प्राथमिक
विद्यालयों में जितनी भी कक्षाएं लगती हैं उसमें 50 फीसदी से ज्यादा मामलों में एक
से ज्यादा कक्षा के विद्यार्थी बैठाए जाते हैं। मिसाल के लिए अखिल भारतीय स्तर पर
कक्षा 2 के 58.3% विद्यार्थी
प्राथमिक विद्यालयों में किसी अन्य कक्षा के साथ बैठाए जाते हैं। कक्षा-4 के लिए
विद्यार्थियों का यह आंकड़ा 53% का है।
·
स्कूलों को अनुदान की राशि मिलती है, लेकिन समय पर नहीं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के
अनुपालन से संबंधित निष्कर्ष
शिक्षक-छात्र अनुपात और
कक्षा-शिक्षक अनुपात के मामले में आंकड़ों में ज्यादा बदलाब नहीं
·
छात्र-शिक्षक अनुपात के मामले में अखिल भारतीय स्तर पर
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मानकों के अनुपालन करने वाले स्कूलों की संख्या
आनुपातिक तौर पर सुधरी है मगर यह सुधार बड़ा कम है। इस मामले में शिक्षा का अधिकार
अधिनियम के मानक का पालन करने वाले स्कूलों की तादाद साल 2010 में 38.9% थी
तो साल 2011 में 40.7% फीसदी।
साल 2011 में कर्नाटक में इस मामले में 94.1% फीसदी स्कूल मानक का पालन करते
मिले जबकि जम्मू-कश्मीर, नगालैंड और मणिपुर में ऐसे
स्कूलों की तादाद
80% से ज्यादा थी।
·
साल 2010 में प्रति शिक्षक एक क्लासरुम की मौजूदगी अखिल
भारतीय स्तर पर 76.2% स्कूलों
में थी जो साल 2011 में घटकर 74.3% स्कूलों में रह गई है। मिजोरम
में 94.8% स्कूल
प्रति शिक्षक एक क्लासरुम के मानक का पालन कर रहे हैं जबकि पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान,
उत्तरप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में ऐसे स्कूलों की तादाद 80 फीसदी से ज्यादा
है।
भवन, खेल के मैदान,चहारदीवारी
और पेयजल के मामले में ज्यादा बदलाव नहीं-
·
साल 2011 में अखिल भारतीय स्तर पर ऐसे स्कूलों का अनुपात
ज्यादा नहीं बदला जहां कार्यालय-सह-स्टोररुम की व्यवस्था हो। यह आंकड़ा 74% पर
स्थिर है। ठीक इसी तरह सर्वेक्षण के दौरान जिन स्कूलों का मौका-मुआयना किया गया
उनमें कुल 62 फीसदी में साल 2010 में भी खेल के मैदान थे और 2011 में भी इतने ही
स्कूलों में यह सुविधा पायी गई। चहारदीवारी युक्त स्कूलों की संख्या में
बढ़ोतरी(साल 2010 में 50.9% तो
साल 2011 में 54.1%) है।
·
राष्ट्रीयस्तर पर साल 2010 के सर्वेक्षण में पेयजल की
सुविधा से हीन विद्यालयों की संख्या 17.0% थी और साल 2011 में
16.6%। ऐसे
विद्यालय जहां पेयजल की सुविधा(इस्तेमाल करने लायक) हो, साल 2010 में तकरीबन 73
फीसदी थे तो साल 2011 में भी कमोबेश इतने ही। इस मामले में केरल का रिकार्ड( 93.8% स्कूलों
में इस्तेमाल कर सकने लायक पेयजल सुविधा) सबसे अच्छा पाया गया।
बालिकाओं के लिए शौचालय की
व्यवस्था बेहतर हुई है-
·
साल 2010 में ऐसे विद्यालयों की तादाद 31.2% थी
जहां बालिकाओं के लिए अलग से शौचालय की सुविधा नहीं थी। साल 2011 में यह तादाद
घटकर 22.6% पर
आ गई है। बालिकाओं के लिए अलग से बने ऐसे शौचालय जो उपयोग करने लायक हों, पिछले
साल की तुलना में बढ़े हैं( साल 2010 में ऐसे शौचालय वाले स्कूलों की तादाद 32.9% थी तो साल 2011 में
43.8%।
स्कूलों में पुस्तकालय की
संख्या बढ़ी है और उनका इस्तेमाल करने वाले विद्यार्थियों की भी-
·
साल 2010 में पुस्तकालय वंचित विद्यालयों की संख्या 37.5% थी
जो साल 2011 में घटकर 28.6% पर
आ गई है वहीं साल 2010 में कुल 37.9% विद्यालयों में पिछले साल विद्यार्थी पुस्तकालय की सुविधा
का लाभ उठा रहे थे जबकि अब 2011 में ऐसे स्कूलों की संख्या 42.3% पर जा पहुंची है।
स्वयंसेवी संस्था प्रथम द्वारा प्रस्तुत एनुअल स्टेटस् ऑव एजुकेशन रिपोर्ट 2010(असर) के अनुसार-
· नामांकन- सर्वेक्षण के अनुसार देश
के:ग्रामीण इलाके में 6-14 साल की उम्र के 96.5 फीसदी बच्चों का नामांकन
स्कूल में है।इनमें से कुल 71.1% बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं
जबकि, 24.3 % फीसदी बच्चों ने प्राइवेट स्कूलों में दाखिला लिया है।
· स्कूल वंचित लडकियां-- 11-14 आयुवर्ग की कुल 5.9% लड़कियां भी स्कूल-वंचित हैं। बहरहाल साल 2009 में स्कूल वंचित लड़कियों की तादाद 6.8 फीसदी थी यानि सर्वेक्षण के अनुसार स्कूल वंचित बच्चियों की तादाद में कमी आई है।
· राजस्थान(12.1%) और यूपी (9.7%) जैसे राज्यों में स्कूल वंचित बच्चियों की संख्या अब भी ज्यादा है और साल 2009 की तुलना में इसमें कुछ खास कमी नहीं आई है। इस सिलसिले में बिहार का जिक्र जरुरी है। बिहार में साल 2005 के बाद से स्कूल वंचित लड़के और लड़कियों की तादाद में उल्लेखनीय कमी आई है। साल 2006 में बिहार में 11-14 आयुवर्ग के स्कूल वंचित लड़कों की तादाद 12.3 फीसदी और लड़कियों की तादाद 17.7 फीसदी थी जो साल 2010 में घटकर क्रमश 4.4% और 4.6% फीसदी हो गई है।
· प्राईवेट स्कूलों में दाखिले में बढोतरी- ग्रामीण भारत में प्राईवेट स्कूलों में दाखिले का चलन बढ़ा है। साल 2009 में देश के ग्रामीण इलाके में कुल 21.8% फीसदी बच्चे प्राईवेट स्कूलों में दाखिल थे तो साल 2010 में उनकी तादाद बढ़कर 24.3% फीसदी हो गई है। इस आंकड़े में साल 2005(असर की प्रथम रिपोर्ट) से ही इजाफा हो रहा है। 2005 में देश के गंवई इलाके में प्राईवेट स्कूलों में दाखिल बच्चों की तादाद 16.3% फीसदी थी।
· साल 2009 से 2010 के बीच दक्षिण के राज्यों में गंवई इलाके में प्राईवेट स्कूलों में दाखिले का चलन उल्लेखनीय गति से बढ़ा है। आंध्रप्रदेश में प्राईवेट स्कूल में दाखिल बच्चों की तादाद एक साल के अंदर 29.7% फीसदी से बढ़कर to 36.1% फीसदी हो गई है। तमिलनाडु में प्राईवेट स्कूलों में दाखिल बच्चों की तादाद 19.7% फीसदी से बढ़कर 25.1% फीसदी, कर्नाटक में 16.8% फीसदी से बढ़कर 20% फीसदी और केरल में 51.5% फीसदी से बढ़कर 54.2% फीसदी हो गई है।
· प्राईवेट स्कूल में बच्चों के दाखिले के मामले में अन्य राज्यों में पंजाब कहीं आगे है। वहां यह तादाद साल भर के अंदर 30.5% फीसदी से बढ़कर 38% फीसदी तक पहुंच गई है। बहरहाल बिहार में यह अनुपात (5.2%) फीसदी, पश्चिम बंगाल में (5.9%), झारखंड में (8.8%) ओड़ीसा में (5.4%) और त्रिपुरा में (2.8%) है।
· पाँच साल की उम्र के बच्चों के स्कूल-नामांकन की तादाद बढ़ी- राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो साल 2009 में स्कूलों में दाखिला ले चुके पाँच साल की उम्र के बच्चों की तादाद 54.6% फीसदी थी जो साल 2010 में बढ़कर 62.8% फीसदी हो गई। कर्नाटक में यह बढ़ोतरी खास तौर पर देखने में आई।यहां साल 2009 में पाँच साल की उम्र के 17.1% फीसदी बच्चे स्कूलों में दाखिल थे। साल 2010 में इनकी तादाद बढ़कर 67.6 फीसदी हो गई।
· पाँच साल की उम्र के बच्चों के स्कूली नामांकन में अन्य राज्यों में भी तादाद बढ़ी है। पंजाब में यह तादाद साल भर के अंदर बढ़कर 68.3% से 79.6% फीसदी, हरियाणा में (62.8% से 76.8%), राजस्थान में (69.9% से75.8%), यूपी में (55.7% से 73.1%) और असम में 49.1% से बढ़कर 59% फीसदी हो गई है।
· कुछ राज्यों को छोड़कर पढ़ पाने की क्षमता के मामले में खास बढ़त दर्ज नहीं हुई--: स्कूली शिक्षा के पाँच साल के बाद भी स्कूलों में दाखिल तकरीबन आधे बच्चे पढ़ पाने की क्षमता के मामले में दूसरी कक्षा के विद्यार्थी से अपेक्षित योग्यता तक भी नहीं पहुंच पाये हैं।कक्षा पाँच में दाखिल केवल 53.4% फीसदी बच्चे ही कक्षा दो के बच्चे से अपेक्षित पाठ को पढ़ पाने में सक्षम हैं।
· गणित कर पाने की क्षमता में फिसड्डीपन--: औसतन कहा जा सकता है कि सरल गणित करने की क्षमता के मामले में बच्चों में फिसड्डीपन बढ़ा है। कक्षा-1 के कुल 69.3% फीसदी बच्चे साल 2009 में 1-9 तक की संख्या पहचान पाने में सक्षम थे लेकिन साल 2010 में ऐसे बच्चों की तादाद घटकर 65.8% फीसदी हो गई। ठीक इसी तरह कक्षा तीन के कुल 39% फीसदी छात्र साल 2009 में दो अंकों के घटाव का गणित कर पाने में सक्षम पाये गये जबकि साल 2010 में ऐसे बच्चों की तादाद घटकर 36.5 फीसदी हो गई। भाग करने की गणितीय क्षमता से लैस क्लास पाँच के बच्चों की तादाद साल 2009 में 38% फीसदी थी जो साल 2010 में घटकर 35.9% फीसदी हो गई।
· रोजमर्रा के हिसाब के मामले में मिडिल स्कूल के छात्र कमजोर हैं— साल 2010 में असर सर्वेक्षण के दौरान मिडिल स्कूल के बच्चों से रोजमर्रा के हिसाब वाले सवाल मसलन मेन्यूकार्ड से जुड़े प्रश्न, कैलेंडर पढ़ने के बारे में और खेत या जमीन का क्षेत्रफल या फिर किसी चीज का आयतन बचाने के सवाल पूछे गए। आठवीं क्लास के तकरीबन तीन चौथाई बच्चों ने मेन्यूकार्ड से संबंधित सवाल हल कर दिये, दो तिहाई छात्र कलैंडर पर आधारित सवाल के सही जवाब दे पाये जबकि सिर्फ 50 फीसदी छात्र ही क्षेत्रफल-आयतन से जुड़े सवालों को हल कर पाये।क्षेत्रफल के सवालों को हल कर पाना छात्रों के लिए कहीं ज्यादा कठिन साबित हुआ जबकि ऐसे सवाल चौथी क्लास की पाठ्यपुस्तक से ही शुरु हो जाते हैं। केरल(79% ) और बिहार(69%) के आठवीं क्लास के छात्र क्षेत्रफल पर आधारित सवालों को हल करने में बाकी राज्यों से कहीं आगे थे।
· प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में ट्यूशन का चलन पिछले साल के मुकाबले कम हुआ है-- प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में आठवीं क्लास तक के बच्चों के बीच ट्यूशन का चलन एक साल के अंदर साफ-साफ कम होता नजर आ रहा है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में ट्यूशन लेने का चलन कम नहीं हुआ है हालांकि बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडीसा जैसे राज्यों में जहां प्राईवेट स्कूलों में दाखिल बच्चों की संख्या कम है, पांचवीं क्लास में पढ़ रहे बच्चों में ट्यूशन लेने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा( पश्चिम बंगाल-75.6%, बिहार -55.5% और ओडीसा -49.9%) है।
· शिक्षा के अधिकार का अनुपालन – असर 2010 के सर्वेक्षण में कुल 13000 स्कूलों को शामिल किया गया। इसमें 60 फीसदी स्कूल इमारत के मामले में शिक्षा के अधिकार के मानकों के अनुरुप पाये गये। बहरहाल इन स्कूलों में से आधे से अधिक में शिक्षकों की तादाद बढ़ानी होगी।एक तिहाई स्कूलों में क्लासरुम की संख्या बढ़ानी होगी। सर्वेक्षण में शामिल कुल 13 हजार स्कूलों में से 62% में खेलकूद के लिए मैदान था, 50 फीसदी में चहारदीवारी थी और कुल 90 फीसदी स्कूलों में शौचालय मौजूद थे। बहरहाल शौचालय की सुविधायुक्त स्कूलों में केवल आधे ऐसे हैं जहां शौचालय इस्तेमाल करने लायक दशा में है। सर्वेक्षण में शामिल शौचालययुक्त स्कूलों में से 70% में लड़कियों के लिए अलग से इसकी सुविधा है लेकिन इस्तेमाल करने लायक दशा में शौचालय केवल 37 फीसदी स्कूलों में पाये गए। 81% स्कूलों में रसोईघर बने थे और 72 फीसदी स्कूलों में पेयजल की सुविधा थी।
· प्राइमरी स्कूलों में सभी शिक्षकों की मौजूदगी के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट के रुझान हैं। सर्वेक्षण के दिन सभी शिक्षकों की मौजूदगी वाले प्राइमरी स्कूलों की तादाद साल 2007 में 73.7%, साल 2009 में 69.2% और साल 2010 में 63.4% पायी गई।
· समग्र ग्रामीण भारत में साल 2007 से 2010 के बीच स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति के मामले में कोई खास बदलाव देखने में नहीं आया। इस अवधि में स्कूलों में छात्रों की मौजूदगी तकरीबन 73% फीसदी पर स्थिर रही। हां, राज्यवार इसमें खास अन्तर जरुर है।
· स्कूल वंचित लडकियां-- 11-14 आयुवर्ग की कुल 5.9% लड़कियां भी स्कूल-वंचित हैं। बहरहाल साल 2009 में स्कूल वंचित लड़कियों की तादाद 6.8 फीसदी थी यानि सर्वेक्षण के अनुसार स्कूल वंचित बच्चियों की तादाद में कमी आई है।
· राजस्थान(12.1%) और यूपी (9.7%) जैसे राज्यों में स्कूल वंचित बच्चियों की संख्या अब भी ज्यादा है और साल 2009 की तुलना में इसमें कुछ खास कमी नहीं आई है। इस सिलसिले में बिहार का जिक्र जरुरी है। बिहार में साल 2005 के बाद से स्कूल वंचित लड़के और लड़कियों की तादाद में उल्लेखनीय कमी आई है। साल 2006 में बिहार में 11-14 आयुवर्ग के स्कूल वंचित लड़कों की तादाद 12.3 फीसदी और लड़कियों की तादाद 17.7 फीसदी थी जो साल 2010 में घटकर क्रमश 4.4% और 4.6% फीसदी हो गई है।
· प्राईवेट स्कूलों में दाखिले में बढोतरी- ग्रामीण भारत में प्राईवेट स्कूलों में दाखिले का चलन बढ़ा है। साल 2009 में देश के ग्रामीण इलाके में कुल 21.8% फीसदी बच्चे प्राईवेट स्कूलों में दाखिल थे तो साल 2010 में उनकी तादाद बढ़कर 24.3% फीसदी हो गई है। इस आंकड़े में साल 2005(असर की प्रथम रिपोर्ट) से ही इजाफा हो रहा है। 2005 में देश के गंवई इलाके में प्राईवेट स्कूलों में दाखिल बच्चों की तादाद 16.3% फीसदी थी।
· साल 2009 से 2010 के बीच दक्षिण के राज्यों में गंवई इलाके में प्राईवेट स्कूलों में दाखिले का चलन उल्लेखनीय गति से बढ़ा है। आंध्रप्रदेश में प्राईवेट स्कूल में दाखिल बच्चों की तादाद एक साल के अंदर 29.7% फीसदी से बढ़कर to 36.1% फीसदी हो गई है। तमिलनाडु में प्राईवेट स्कूलों में दाखिल बच्चों की तादाद 19.7% फीसदी से बढ़कर 25.1% फीसदी, कर्नाटक में 16.8% फीसदी से बढ़कर 20% फीसदी और केरल में 51.5% फीसदी से बढ़कर 54.2% फीसदी हो गई है।
· प्राईवेट स्कूल में बच्चों के दाखिले के मामले में अन्य राज्यों में पंजाब कहीं आगे है। वहां यह तादाद साल भर के अंदर 30.5% फीसदी से बढ़कर 38% फीसदी तक पहुंच गई है। बहरहाल बिहार में यह अनुपात (5.2%) फीसदी, पश्चिम बंगाल में (5.9%), झारखंड में (8.8%) ओड़ीसा में (5.4%) और त्रिपुरा में (2.8%) है।
· पाँच साल की उम्र के बच्चों के स्कूल-नामांकन की तादाद बढ़ी- राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो साल 2009 में स्कूलों में दाखिला ले चुके पाँच साल की उम्र के बच्चों की तादाद 54.6% फीसदी थी जो साल 2010 में बढ़कर 62.8% फीसदी हो गई। कर्नाटक में यह बढ़ोतरी खास तौर पर देखने में आई।यहां साल 2009 में पाँच साल की उम्र के 17.1% फीसदी बच्चे स्कूलों में दाखिल थे। साल 2010 में इनकी तादाद बढ़कर 67.6 फीसदी हो गई।
· पाँच साल की उम्र के बच्चों के स्कूली नामांकन में अन्य राज्यों में भी तादाद बढ़ी है। पंजाब में यह तादाद साल भर के अंदर बढ़कर 68.3% से 79.6% फीसदी, हरियाणा में (62.8% से 76.8%), राजस्थान में (69.9% से75.8%), यूपी में (55.7% से 73.1%) और असम में 49.1% से बढ़कर 59% फीसदी हो गई है।
· कुछ राज्यों को छोड़कर पढ़ पाने की क्षमता के मामले में खास बढ़त दर्ज नहीं हुई--: स्कूली शिक्षा के पाँच साल के बाद भी स्कूलों में दाखिल तकरीबन आधे बच्चे पढ़ पाने की क्षमता के मामले में दूसरी कक्षा के विद्यार्थी से अपेक्षित योग्यता तक भी नहीं पहुंच पाये हैं।कक्षा पाँच में दाखिल केवल 53.4% फीसदी बच्चे ही कक्षा दो के बच्चे से अपेक्षित पाठ को पढ़ पाने में सक्षम हैं।
· गणित कर पाने की क्षमता में फिसड्डीपन--: औसतन कहा जा सकता है कि सरल गणित करने की क्षमता के मामले में बच्चों में फिसड्डीपन बढ़ा है। कक्षा-1 के कुल 69.3% फीसदी बच्चे साल 2009 में 1-9 तक की संख्या पहचान पाने में सक्षम थे लेकिन साल 2010 में ऐसे बच्चों की तादाद घटकर 65.8% फीसदी हो गई। ठीक इसी तरह कक्षा तीन के कुल 39% फीसदी छात्र साल 2009 में दो अंकों के घटाव का गणित कर पाने में सक्षम पाये गये जबकि साल 2010 में ऐसे बच्चों की तादाद घटकर 36.5 फीसदी हो गई। भाग करने की गणितीय क्षमता से लैस क्लास पाँच के बच्चों की तादाद साल 2009 में 38% फीसदी थी जो साल 2010 में घटकर 35.9% फीसदी हो गई।
· रोजमर्रा के हिसाब के मामले में मिडिल स्कूल के छात्र कमजोर हैं— साल 2010 में असर सर्वेक्षण के दौरान मिडिल स्कूल के बच्चों से रोजमर्रा के हिसाब वाले सवाल मसलन मेन्यूकार्ड से जुड़े प्रश्न, कैलेंडर पढ़ने के बारे में और खेत या जमीन का क्षेत्रफल या फिर किसी चीज का आयतन बचाने के सवाल पूछे गए। आठवीं क्लास के तकरीबन तीन चौथाई बच्चों ने मेन्यूकार्ड से संबंधित सवाल हल कर दिये, दो तिहाई छात्र कलैंडर पर आधारित सवाल के सही जवाब दे पाये जबकि सिर्फ 50 फीसदी छात्र ही क्षेत्रफल-आयतन से जुड़े सवालों को हल कर पाये।क्षेत्रफल के सवालों को हल कर पाना छात्रों के लिए कहीं ज्यादा कठिन साबित हुआ जबकि ऐसे सवाल चौथी क्लास की पाठ्यपुस्तक से ही शुरु हो जाते हैं। केरल(79% ) और बिहार(69%) के आठवीं क्लास के छात्र क्षेत्रफल पर आधारित सवालों को हल करने में बाकी राज्यों से कहीं आगे थे।
· प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में ट्यूशन का चलन पिछले साल के मुकाबले कम हुआ है-- प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में आठवीं क्लास तक के बच्चों के बीच ट्यूशन का चलन एक साल के अंदर साफ-साफ कम होता नजर आ रहा है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में ट्यूशन लेने का चलन कम नहीं हुआ है हालांकि बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडीसा जैसे राज्यों में जहां प्राईवेट स्कूलों में दाखिल बच्चों की संख्या कम है, पांचवीं क्लास में पढ़ रहे बच्चों में ट्यूशन लेने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा( पश्चिम बंगाल-75.6%, बिहार -55.5% और ओडीसा -49.9%) है।
· शिक्षा के अधिकार का अनुपालन – असर 2010 के सर्वेक्षण में कुल 13000 स्कूलों को शामिल किया गया। इसमें 60 फीसदी स्कूल इमारत के मामले में शिक्षा के अधिकार के मानकों के अनुरुप पाये गये। बहरहाल इन स्कूलों में से आधे से अधिक में शिक्षकों की तादाद बढ़ानी होगी।एक तिहाई स्कूलों में क्लासरुम की संख्या बढ़ानी होगी। सर्वेक्षण में शामिल कुल 13 हजार स्कूलों में से 62% में खेलकूद के लिए मैदान था, 50 फीसदी में चहारदीवारी थी और कुल 90 फीसदी स्कूलों में शौचालय मौजूद थे। बहरहाल शौचालय की सुविधायुक्त स्कूलों में केवल आधे ऐसे हैं जहां शौचालय इस्तेमाल करने लायक दशा में है। सर्वेक्षण में शामिल शौचालययुक्त स्कूलों में से 70% में लड़कियों के लिए अलग से इसकी सुविधा है लेकिन इस्तेमाल करने लायक दशा में शौचालय केवल 37 फीसदी स्कूलों में पाये गए। 81% स्कूलों में रसोईघर बने थे और 72 फीसदी स्कूलों में पेयजल की सुविधा थी।
· प्राइमरी स्कूलों में सभी शिक्षकों की मौजूदगी के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट के रुझान हैं। सर्वेक्षण के दिन सभी शिक्षकों की मौजूदगी वाले प्राइमरी स्कूलों की तादाद साल 2007 में 73.7%, साल 2009 में 69.2% और साल 2010 में 63.4% पायी गई।
· समग्र ग्रामीण भारत में साल 2007 से 2010 के बीच स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति के मामले में कोई खास बदलाव देखने में नहीं आया। इस अवधि में स्कूलों में छात्रों की मौजूदगी तकरीबन 73% फीसदी पर स्थिर रही। हां, राज्यवार इसमें खास अन्तर जरुर है।
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